CBSE Class 11 Hindi Chapter 16 Aao Milkar Bachaaen (आओ मिलकर बचाएँ) Question Answers (Important) from Aroh Book
Aao Milkar Bachaaen Class 11 – CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag-1 Chapter 16 Aao Milkar Bachaaen Question Answers. The questions listed below are based on the latest CBSE exam pattern, wherein we have given NCERT solutions of the chapter, extract based questions, multiple choice questions, short and long answer questions.
सीबीएसई कक्षा 11 हिंदी आरोह भाग-1 पुस्तक पाठ 16 आओ मिलकर बचाएँ प्रश्न उत्तर | इस लेख में NCERT की पुस्तक के प्रश्नों के उत्तर तथा महत्वपूर्ण प्रश्नों का व्यापक संकलन किया है।
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प्रश्न 1 – माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर – कवयित्री ने ‘माटी का रंग’ प्रयोग करके स्थानीय विशेषताओं को उजागर करना चाहा है। संथाल परगने के लोगों में जुझारूपन, अक्खड़ता, नाच-गान, सरलता आदि विशेषताएँ जमीन से जुड़ी हैं। कवयित्री चाहती है कि आधुनिकता के चक्कर में हम अपनी संस्कृति को हीन न समझे। हमें अपनी पहचान बनाए रखनी चाहिए। इस कविता में कवयित्री क्षेत्रीय संथालों के लोक जीवन की महत्ता को बताती है। वे उनकी स्वाभाविक सम्वेदनाओं को (सादगी, मासूमियत, प्रकृति के प्रति लगाव), शहरीकरण के आवरण से दूर रखने की ओर इशारा करती हैं। जिस प्रकार शहरी संस्कृति ने अनेक संस्कृतियों की कब्रों के ऊपर, अपनी इमारत खड़ी की है। वे नहीं चाहती हैं, कि जो वर्तमान में संस्कृति शेष है, वो भी कब्र में बंद हो जाए।
प्रश्न 2 – भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – झारखंडी’ का अभिप्राय है – झारखंड के लोगों की स्वाभाविक बोली। कवयित्री का भाषा में झारखंडीपन से अभिप्राय उन आदिवासी समूह की मातृभाषा से हैं। प्रत्येक आदिवासी समूह की अस्मिता और पहचान का मूल स्रोत, उसकी भाषा होती है। इसी प्रकार संथालियों की भाषा संथाल है। इस भाषा में झारखंड की पहचान झलकती है। उनकी भाषा से यह पता लगता है, कि वे झारखंड के रहने वाले हैं। कवयित्री भाषा के इसी स्थानीय प्रयोग और स्वाभाविक विशेषताओं को नष्ट होने से बचाना चाहती है।
प्रश्न 3 – दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?
उत्तर – दिल का भोलापन सच्चाई और ईमानदारी के लिए जरूरी है, परंतु हर समय भोलापन ठीक नहीं होता। कवयित्री भोलेपन के साथ अक्खड़पन और जुझारूपन की आवश्यकता से अभिप्राय, अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता, और अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाने से है। भोलेपन का फायदा उठाने वालों के साथ अक्खड़पन दिखाना भी जरूरी है। अपनी बात को मनवाने के लिए अकड़ भी होनी चाहिए। साथ ही कर्म करने की प्रवृत्ति भी आवश्यक है। अत: कवयित्री भोलेपन, अक्खड़पन व जुझारूपन-तीनों गुणों को बचाने की आवश्यकता पर बल देती है।
प्रश्न 4 – प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?
उत्तर – कविता में प्रकृति के विनाश एवं विस्थापन के कठिन दौर के साथ-साथ संथाली समाज की अशिक्षा, कुरीतियों और शराब की ओर बढ़ते झुकाव को भी व्यक्त किया गया है जिसमें पूरी-पूरी बस्तियाँ डूबती जा रही हैं। इस कविता में आदिवासी समाज में व्याप्त जड़ता, काम से अरुचि, बाहरी संस्कृति और शहरीकरण का अंधानुकरण, शराबखोरी, अकर्मण्यता, अशिक्षा, अपनी भाषा से अलगाव, परम्पराओं से विद्वेष की भावना आदि बुराइयों का भी जिक्र मिलता है।
प्रश्न 5 – इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है-से क्या आशय है?
उत्तर – कविता के अनुसार कवयित्री आज के युग की विकासलीला के परिणामस्वरूप, समाज में फैली अस्त व्यस्तता की ओर संकेत करती हैं। वे कहती हैं, कि आज के युग में मानवीय मूल्यों का हनन और प्राकृतिक संपदाएं नष्ट हो रही हैं। लेकिन अभी भी बहुत कुछ ऐसा है, जिसकी रक्षा करके उसे सुरक्षित किया जा सकता है। अगर व्यक्ति आदिवासियों की संस्कृतियों के विकास के नाम पर नष्ट करने के बजाए, उसे संजोए तो चीजें सुधार सकती हैं। कवयित्री को आशा है, कि सब ठीक हो सकता है। लोगों का विश्वास, उनकी टूटती उम्मीदों को जीवित करना, सपनों को पूरा करना आदि ऐसे तत्व हैं, जिन्हें सामूहिक प्रयासों से बचाया जा सकता है।
प्रश्न 6 – निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए :
(क) ठंडी होती दिनचर्या में,
जीवन की गर्माहट
उत्तर – इस पंक्ति में कवयित्री ने आदिवासी क्षेत्रों में विस्थापन की पीड़ा को व्यक्त किया है। विस्थापन से वहाँ के लोगों की दिनचर्या ठंडी पड़ गई है। हम अपने प्रयासों से उनके जीवन में उत्साह जगा सकते हैं। यह काव्य पंक्ति लाक्षणिक है। इसका अर्थ है-उत्साहहीन जीवन। ‘गर्माहट’ उमंग, उत्साह और क्रियाशीलता का प्रतीक है। इन प्रतीकों से अर्थ गंभीर्य आया है। शांत रस विद्यमान है। अतुकांत अभिव्यक्ति है।
(ख) थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ा-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ।
उत्तर – इस अंश में कवयित्री अपने प्रयासों से लोगों की उम्मीदें, विश्वास व सपनों को जीवित रखना चाहती है। समाज में बढ़ते अविश्वास के कारण व्यक्ति का विकास रुक-सा गया है। वह सभी लोगों से मिलकर प्रयास करने का आहवान करती है। उसका स्वर आशावादी है। ‘थोड़ा-सा’; ‘थोड़ी-सी’ वे ‘थोड़े-से’ तीनों प्रयोग एक ही अर्थ के वाहक है। अतः अनुप्रास अलंकार है। दूर्द (उम्मीद), संस्कृत (विश्वास) तथा तद्भव (सपने) शब्दों को मिला-जुला प्रयोग किया है। तुक, छंद और संगीत विहीन होते हुए कथ्य में आकर्षण है। खड़ी बोली है।
प्रश्न 7 – बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?
उत्तर – बस्तियों को शहर की नग्नता व जड़ता से बचाने की जरूरत है। स्वभावगत, वेशभूषा व वनस्पति विहीन नग्नता से बचाने का प्रयास सामूहिक तौर पर हो सकता है। शहरी जिंदगी में उमंग, उत्साह व अपनेपन का अभाव होता है। शहर के लोग अलगाव भरी जिंदगी व्यतीत करते हैं। कविता में कवयित्री बस्तियों को शहर की आबों हवा से बचाने की बात करती है, उनके यह कहने का अर्थ है, कि जिस शहरी परिवेश को ग्रामीण जीवन के लिए आदर्श समझ जाता है। वह न केवल संस्कृतियों के घातक है, बल्कि मानवीय पतन की अध्यक्षता कर रहा है। वे शहर में पर्यावरण व्यवहार से परेशान हैं, एकांकी जीवन, अलगाव, और व्यस्तता आदि समस्याओं से बस्तियों को बचाना चाहती हैं।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर – (Important Question Answers)
प्रश्न 1 – “अपनी बस्तियों को
नंगी होने से
शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे।”
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री क्या बचाने का आह्वाहन करती हैं?
उत्तर – निम्न पंक्तियों से कवयित्री आह्वाहन करती है कि हमे अपनी पौराणिक संस्कृति को शहरी अमर्यादित तौर-तरीकों अर्थात जीवनशैली से बचाना होगा, हमें स्थानीय भाषा को बनावटी शहरी भाषा में परिवर्तित होने से रोकना होगा, हमें पर्यावरण में हो रहे बदलाव तथा मानवीय शोषण से उसे बचाना होगा।
प्रश्न 2 – ‘अक्खड़पन’ से कवयित्री क्या संदेश देना चाहती हैं?
उत्तर – ‘अक्खड़पन’ अर्थात बोली में सफ़ाई एवं सटीकता का प्रमाण होना। कवयित्री इस गुण को आदिवासियों की बोली में बताती है अर्थात आदिवासियों के मन में कोई छल, कपट नहीं होता, वे साफ़ एवं सीधी बात करते हैं। कवयित्री इस गुण को शहरी वातावरण के प्रभाव से बचाना चाहती हैं।
प्रश्न 3 – शहरी जीवन भाग-दौड़ भरा होने पर भी कवयित्री उसे ठंडी दिनचर्या क्यों मानती हैं?
उत्तर – शहर में काम की भाग-दौड़ तो बहुत है, पर सामाजिक संबंधों, भावों, प्रेम एवं सौहार्द का अभाव है। आडंबर से भरे शहरी जीवन में गायन-नृत्य, प्रकृति के सान्निध्य का अभाव है। इसी से जीवन दिखावा मात्र है। परस्पर स्नेह के अभाव में गर्माहट नहीं आ सकती। इसीलिए कवयित्री ठंडी होती दिनचर्या को अपनी बस्ती से दूर रखना चाहती है।
प्रश्न 4 – शहरी प्रभाव के कारण प्राकृतिक वातावरण में क्या परिवर्तन हो रहे हैं?
उत्तर – शहरी प्रभाव के कारण संथाल बस्तियों में विस्थापन की समस्या आ रही है। जंगल की ताज़ी हवा, नदियों का स्वच्छ जल, पहाड़ों की मौन शांति, मिट्टी की सुगंध, फ़सलों की लहलहाहट, खुले आँगन, मैदान और चरागाह समाप्त होते जा रहे हैं। इससे बच्चे, बूढे और पशु सभी के लिए अभावग्रस्त स्थिति पैदा हो गई है।
प्रश्न 5 – मिट्टी के रंग का उपयोग करके क्या संकेत दिया गया है?
उत्तर – कवयित्री स्वयं संथाली समाज से जोड़ रखती हैं इसलिए “संथाल परगना की माटी का रंग” से उनका तात्पर्य संथाल समाज की संस्कृति, उनका रहन-सहन, लोकशैली, बोल-चाल अर्थात प्रवति से है जो कि उनकी पहचान है। इस पंक्ति से कवयित्री ने बड़े ही सुंदरता से सभी को अपनी मिट्टी अर्थात पहचान से जुड़े रहने को कहा है। वे चाहती हैं की संथाल समाज़ के लोग अपनी पहचान को ना भूले अर्थात उनका भोलापन, अक्खड़पन, जुझारूपन इत्यादि जैसी विशेषताओं को शहरी प्रभाव से बचाये रखे।
प्रश्न 6 – “इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है” से कवयित्री का कया अभिप्राय है?
उत्तर – “इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है” से कवयित्री का अभिप्राय शहरी विकास में विलुप्त होते हुए एवं शून्य की ओर बढ़ते हुए संस्कारपूर्ण मौलिक तत्वों का है परन्तु कवयित्री निराश नहीं हैं चूँकि अभी भी समय है अपनी शेष संस्कृति को बचाने का, पर्यावरण के संतुलन को बचाने का। सामूहिक प्रयासों से हम अपनी टूटती उमीदों को बचा सकते है, सपनो को पूरा कर सकते है, अपने पौराणिक इतिहास को संजो सकते हैं बस जरुरत है थोड़े विश्वास की, थोड़ी उम्मीद की।
प्रश्न 7 – कवयित्री ऐसा क्यों कहती है “की बस्तियों को शहर से रक्षा करने की आवश्यकता है?”
उत्तर – बढ़ती जनसँख्या और शहरी विकास धीरे धीरे बस्तियों के भोलेपन, भावनात्मकता, सादगी, खुले आँगन, शीतल हवा, सुखद वातावरण को ढकती जा रही है। कवयित्री इस ढकाव से बस्तियों को बचाना चाहती हैं। शहर में प्रदुषण भी एक अहम समस्या है जो बस्तियों में न के बराबर है साथ ही साथ कटते हुए जंगल आदिवासियों के स्थायी निवास छीन रहे हैं जिससे शहरों के वातावरण की और जाते हुए बस्ती के लोग अपने संस्कारों, भोलेपन, भावनात्मकता, सादगी जैसे गुणों को भूलते जा रहे हैं। कवयित्री इन सभी से बस्तियों की रक्षा करना चाहती हैं।
प्रश्न 8 – ‘आओ मिलकर बचाएँ’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट करें।
उत्तर – प्रस्तुत कविता की रचना संथाल आदिवासी परिवार में जन्मी कवयित्री निर्मला पुतुल दुवारा की गई है। इस कविता में प्रकृति और सामाजिक व्यवस्था को बचाने के लिए प्रयास करने का आह्वान किया गया है। कवयित्री को लगता है कि हम अपनी पारंपरिक भाषा, भावुकता, भोलापन, ग्रामीण संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। प्राकृतिक नदियाँ, पहाड़, मैदान, मिट्टी, फ़सल, हवाएँ आधुनिकता का शिकार हो रही हैं। हमें इन सबको बचाना है।
इस कविता में दोनों पक्षों का यथार्थ चित्रण हुआ है। वृहत्तर संदर्भ में यह कविता समाज में उन चीजों को बचाने की बात करती है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक परिवेश के लिए जरूरी है। प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आज आदिवासी समाज संकट में है, जो कविता का मूल स्वरूप है। आज के परिवेश में विकार बढ़ रहे हैं जिन्हें हमें मिटाना है। हमें प्राचीन संस्कारों और प्राकृतिक उपादानों को बचाना है। वह कहती है कि निराश होने की बात नहीं है क्योंकि अभी भी बचाने के लिए बहुत कुछ बचा है।
बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर (Multiple Choice Questions)
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) एक प्रकार का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन है जिसमें एक व्यक्ति को उपलब्ध विकल्पों की सूची में से एक या अधिक सही उत्तर चुनने के लिए कहा जाता है। एक एमसीक्यू कई संभावित उत्तरों के साथ एक प्रश्न प्रस्तुत करता है।
प्रश्न 1 – ‘आओ मिलकर बचाएँ’ कविता की कवयित्री किस समाज से ताल्लुक रखती हैं –
(क) शंथाली आदिवासी समाज से
(ख) संथल आदिवासी समाज से
(ग) संथाली आदिवासी समाज से
(घ) ग्रामीण आदिवासी समाज से
उत्तर – (ग) संथाली आदिवासी समाज से
प्रश्न 2 – संथाली आदिवासी समाज की भाषा क्या है –
(क) झारखडी
(ख) झारखंडी
(ग) जारखंडी
(घ) जारखेडी
उत्तर – (ख) झारखंडी
प्रश्न 3 – कवयित्री के अनुसार यह कैसा दौर है –
(क) हैरानी भरा
(ख) सुखद वातावरण भरा
(ग) विश्वास भरा
(घ) अविश्वास भरा
उत्तर – (घ) अविश्वास भरा
प्रश्न 4 – बस्तियों के नंगी होने से कवयित्री का क्या तात्पर्य हैं –
(क) वृक्ष सहित यानि पेड़ पौधों के साथ
(ख) वृक्ष विहीन यानि बिना पेड़ पौधों के
(ग) बस्ती विहीन यानि बिना इंसानो के
(घ) पेड़ों के बिना यानि बिना फल-फूल के
उत्तर – (ख) वृक्ष विहीन यानि बिना पेड़ पौधों के
प्रश्न 5 – कवयित्री को पूरी बस्ती के किसमें डूब जाने का डर हैं –
(क) लूट-पात के नशे में
(ख) भक्ति के नशे में
(ग) सिगरेट के नशे में
(घ) शराब के नशे में
उत्तर – (घ) शराब के नशे में
प्रश्न 6 – धनुष की डोरी किसका प्रतीक है –
(क) ताकत का
(ख) कमजोरी का
(ग) शिकार का
(घ) स्वयंबर का
उत्तर – (ग) शिकार का
प्रश्न 7 – कवयित्री के अनुसार रोने के लिए क्या चाहिए –
(क) मुट्ठी भर एकांत
(ख) मुट्ठी भर लोग
(ग) मुट्ठी भर विश्वास
(घ) मुट्ठी भर शोर
उत्तर – (क) मुट्ठी भर एकांत
प्रश्न 8 – “मन का हरापन” में “हरापन” किसका प्रतीक हैं –
(क) सुकून का
(ख) प्राकृतिक सुंदरता का
(ग) खुशियों का
(घ) वन में हरियाली का
उत्तर – (ग) खुशियों का
प्रश्न 9 – मिट्टी का क्या गुण है –
(क) उपजाऊपन
(ख) सौंधपन
(ग) हरियाली
(घ) पोषक
उत्तर – (ख) सौंधपन
प्रश्न 10 – कवयित्री संथाली समाज के लोगो से क्या बचाने का आह्वान करती है –
(क) अपनी प्रकृति को
(ख) अपनी नदियों को
(ग) अपनी वेश-भूषा को
(घ) अपनी संस्कृति को
उत्तर – (घ) अपनी संस्कृति को
सार-आधारित प्रश्न Extract Based Questions
सार-आधारित प्रश्न बहुविकल्पीय किस्म के होते हैं, और छात्रों को पैसेज को ध्यान से पढ़कर प्रत्येक प्रश्न के लिए सही विकल्प का चयन करना चाहिए। (Extract-based questions are of the multiple-choice variety, and students must select the correct option for each question by carefully reading the passage.)
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
1 –
अपनी बस्तियों की
न होने से
शहर की आबो हवा से बचाएँ उसे
अपने चहरे पर
सथिल परगान की माटी का रंग
बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में
भाषा में झारखंडीयन
ठड़ी होती दिनचय में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन जुझारूपन भी
प्रश्न 1 – कवयित्री क्या बचाने का आहवान करती है?
(क) आदिवासी संभाल लोगों को शहरी लोगों से
(ख) आदिवासी संभाल बस्ती को शहरी अपसंस्कृति से
(ग) आदिवासी संभाल परिवेश को शहरी परिवेश से
(घ) आदिवासी संभाल पहनावे को शहरी पहनावे से
उत्तर – (ख) आदिवासी संभाल बस्ती को शहरी अपसंस्कृति से
प्रश्न 2 – झारखंडीपन से आशय है –
(क) झारखंड के जीवन के भोलेपन और सरलता से
(ख) झारखंड के जीवन के सरसता और अक्खड़पन से
(ग) झारखंड के जीवन के जुझारूपन से
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 3 – आम व्यक्ति की दिनचर्या पर क्या प्रभाव पड़ा है –
(क) ठहर-सी गई है
(ख) उनमें उदासीनता बढ़ती जा रही है
(ग) भोलापन बढ़ गया है
(घ) (क) और (ख) दोनों
उत्तर – (घ) (क) और (ख) दोनों
प्रश्न 4 – कवयित्री आदिवासियों की किस प्रवृत्ति को बचाना चाहती है –
(क) भोलेपन की प्रवृत्ति को
(ख) अक्खड़पन की प्रवृत्ति को
(ग) संघर्ष करने की प्रवृत्ति को
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 5 – मन का हरापन से क्या तात्पर्य है?
(क) मन की मधुरता, सरसता व उमंग
(ख) मन का साफ व् सरल होना
(ग) मन हरियाली होना
(घ) (क) और (ग) दोनों
उत्तर – (क) मन की मधुरता, सरसता व उमंग
2 –
भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुन्हा की धार
जगंल की ताज हवा
नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों की धुन
मिट्टी का सोंधार
फलों की ललहाहट
प्रश्न 1 – आदिवासी जीवन में किसका प्रयोग किया जाता है –
(क) तीर, धनुष, कुल्हाड़ी का
(ख) सितार, ढोलक, फूल का
(ग) रंग, ताज, पानी का
(घ) हवा, मिट्टी, फूल का
उत्तर – (क) तीर, धनुष, कुल्हाड़ी का
प्रश्न 2 – आदिवासी किन चीजों से सीधे तौर पर जुड़े हैं –
(क) जंगल, नदी, पर्वत
(ख) तीर, धनुष, कुल्हाड़ी
(ग) सितार, ढोलक, फूल
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) जंगल, नदी, पर्वत
प्रश्न 3 – आदिवासियों की दिनचर्या का अंग कौन-सी चीजें हैं –
(क) सितार, ढोलक, फूल
(ख) धनुष, तीर, व कुल्हाड़ियाँ
(ग) जंगल, नदी, पर्वत
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ख) धनुष, तीर, व कुल्हाड़ियाँ
प्रश्न 4 – काव्यांश में कवयित्री किस किस चीज को बचाने का आहवान करती है –
(क) जंगलों की ताजा हवा, नदियों की पवित्रता को
(ख) पहाड़ों के मौन, मिट्टी की खुशबू को
(ग) स्थानीय गीतों व् फसलों की लहलहाहट को
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 5 – भीतर की आग से तात्पर्य है –
(क) आंतरिक जोश व संघर्ष करने की क्षमता
(ख) बाहरी जोश व संघर्ष करने की क्षमता
(ग) अतिरिक्त जोश व संघर्ष करने की क्षमता
(घ) जोश व संघर्ष करने की क्षमता
उत्तर – (क) आंतरिक जोश व संघर्ष करने की क्षमता
3 –
नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भर एकात
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी हरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शांति
और इस अविश्वास भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोडे-से सपने
आओ मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा हैं।
अब भी हमारे पास
प्रश्न 1 – कवयित्री एकांत की इच्छा क्यों रखती है –
(क) ताकि एकांत में रोकर मन की पीड़ा, वेदना को कम कर सके
(ख) ताकि एकांत में रह कर मन का शोर कम कर सके
(ग) ताकि एकांत में अपनों को याद किया जा सके
(घ) ताकि एकांत में कविताएँ लिख सके
उत्तर – (क) ताकि एकांत में रोकर मन की पीड़ा, वेदना को कम कर सके
प्रश्न 2 – बच्चों, पशुओं व बूढों को किनकी आवश्यकता है –
(क) बच्चों को स्कूल, पशुओं के लिए चारा तथा बूढ़ों को पहाड़ों का शांत वातावरण
(ख) बच्चों को खेलने के लिए मैदान, पशुओं के लिए घर तथा बूढ़ों को शहरी वातावरण
(ग) बच्चों को खेलने के लिए मैदान, पशुओं के लिए हरी हरी घास तथा बूढ़ों को पहाड़ों का शांत वातावरण
(घ) बच्चों को खेलने के लिए खिलोने, पशुओं के लिए सूखी घास तथा बूढ़ों को पहाड़ों का शांत वातावरण
उत्तर – (ग) बच्चों को खेलने के लिए मैदान, पशुओं के लिए हरी हरी घास तथा बूढ़ों को पहाड़ों का शांत वातावरण
प्रश्न 3 – कवयित्री शहरी प्रभाव पर क्या व्यंग्य करती है?
(क) कि शहरीकरण के कारण अब नाचने-गाने के लिए स्थान नहीं है
(ख) कि लोगों की हँसी गायब होती जा रही है
(ग) कि जीवन की स्वाभाविकता समाप्त हो रही है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4 – कवयित्री ने आज के युग को कैसा बताया है –
(क) अविश्वास से युक्त
(ख) विश्वास से युक्त
(ग) सुख-वैभव से युक्त
(घ) दुःख से युक्त
उत्तर – (क) अविश्वास से युक्त
प्रश्न 5 – कवयित्री ने ऐसा क्यों कहा कि बहुत कुछ बचा है, अब भी हमारे पास –
(क) क्योंकि हमारे देश की संस्कृति व सभ्यता के सभी तत्वों का पूर्णतः विनाश हो गया है
(ख) क्योंकि हमारे देश की संस्कृति व सभ्यता के सभी तत्वों का पूर्णतः विनाश नहीं हुआ है
(ग) क्योंकि हमारे देश की संस्कृति व सभ्यता का पूरी तरह शहरीकरण हो गया है
(घ) क्योंकि हमारे देश की संस्कृति के सभी तत्वों का पूर्णतः विकास नहीं हुआ है
उत्तर – (ख) क्योंकि हमारे देश की संस्कृति व सभ्यता के सभी तत्वों का पूर्णतः विनाश नहीं हुआ है
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