CBSE Class 11 Hindi Chapter 1 Bhartiya Gayikaon Me Bejod Lata Mangeshkar (भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ – लता मंगेशकर) Question Answers (Important) from Vitan Book
Bhartiya Gayikaon Me Bejod Lata Mangeshkar Class 11 – CBSE Class 11 Hindi Vitan Bhag-1 Chapter 1 Bhartiya Gayikaon Me Bejod Lata Mangeshkar Question Answers. The questions listed below are based on the latest CBSE exam pattern, wherein we have given NCERT solutions of the chapter, extract based questions, multiple choice questions, short and long answer questions.
सीबीएसई कक्षा 11 हिंदी वितान भाग-1 पुस्तक पाठ 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ – लता मंगेशकर प्रश्न उत्तर | इस लेख में NCERT की पुस्तक के प्रश्नों के उत्तर तथा महत्वपूर्ण प्रश्नों का व्यापक संकलन किया है।
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Bhartiya Gayikaon Me Bejod Lata Mangeshkar Question and Answers (भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ – लता मंगेशकर प्रश्न-अभ्यास )
प्रश्न 1 – लेखक ने पाठ में गानपन का उल्लेख किया है। पाठ के संदर्भ में स्पष्ट करते हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिए किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है?
उत्तर – ‘गानपन’ का मतलब है- गायन में कितनी मिठास और मस्ती है और इसका शाब्दिक अर्थ है – वह गायकी जो एक आम इंसान को भी भाव-विभोर कर दे। वास्तव में, यह कला लता जी में थी। गीत को गाने में मन की गहराइयों से भाव पिरोए जाएँ, यही उनका प्रयास रहता था। लता जी के गीतों में मस्ती और मिठास शत-प्रतिशत भरी हुई थी और यही उनकी लोकप्रियता का कारण रहा है। जिस प्रकार मनुष्य को मनुष्य कहने के लिए ‘मानवता’ नामक गुण का होना अनिवर्य हैं, उसी तरह गीत में ‘गानपन’ का होना अति आवश्यक हैं तभी इसे संगीत कहा जाता है। ‘लता जी की लोकप्रियता का मुख्य कारण यही गानपन था। यह गुण अपनी गायकी में लाने के लिए गायक को भरपूर रियाज़ करना चाहिए। साथ ही गीत के बोल, स्वरों के साथ-साथ भावों में भी पिरोए जाने चाहिए। गानों में गानपन के लिए स्वरों का उचित ज्ञान के साथ-साथ स्पष्टता व निर्मलता भी होनी चाहिए। स्वरों का जितना स्पष्ट व निर्मल उच्चारण होगा, संगीत उतना ही मधुर होगा। गाने में रस के अनुसार लय और ताल होना आवश्यक है। श्रोताओं को गाने का स्वर और अर्थ स्पष्ट रूप से समझ आना चाहिए। स्वर, लय, ताल, उच्चारण आदि का सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त कर उनको अपने संगीत में उतारने का प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 2 – लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है? आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नज़र आती हैं? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर – भारत में लता जी को स्वर कोकिला कहा जाता है। उनकी गायकी की क्षमता से लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। लेखक ने लता की गायकी की निम्नलिखित विशेषताओं को उजागर किया है –
सुरीलापन – लता के गायन में सुरीलापन था। उनके स्वर में अद्भुत मिठास, तन्मयता, मस्ती, लोच आदि था। उनका उच्चारण मधुर पूँज से परिपूर्ण रहता था।
निर्मलता – लता के स्वरों में निर्मलता थी। लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण था, वही उसके गायन की निर्मलता में झलकता था।
कोमलता – लता के स्वरों में कोमलता व मुग्धता थी। इसके विपरीत नूरजहाँ के गायन में मादक उत्तान दिखता था।
स्पष्ट उच्चारण – लेखक ने लता जी की गायन की एक और विशेषता का वर्णन करते हुए बताया है कि उनके गायन में स्पष्ट उच्चारण का प्रभाव नजर आता था।
शास्त्रीय शुद्धता – लता जी शास्त्रीय शुद्धता में भी पारंगत थी। मधुर आवाज होने के साथ-साथ उनके अंदर गीत रंजकता का गुण भी पाया जाता था। गायन के क्षेत्र में लता मंगेशकर को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। उन्होंने बहुत से प्रकार के गीत गाये हैं। लता जी की आवाज इतनी मधुर थी कि किसी को भी अपनी और खींचने की क्षमता रखती थी। ये भारत की सर्वश्रेष्ठ गायिकाओं में से एक है।
हमें लता की गायकी में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ नजर आती हैं। उन्होंने भक्ति, देशप्रेम, श्रृंगार, विरह आदि हर भाव के गीत गाए हैं। उनका हर गीत लोगों के मन को छू लेता है। वे गंभीर या अनहद गीतों को सहजता से गा लेती थी। एक तरफ ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत से सारा देश भावुक हो उठता है तो दूसरी तरफ ‘दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे’ फ़िल्म के अल्हड़ गीत युवाओं को मस्त करते हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि लता मंगेशकर गायन क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ है और उनका कोई जोड़ नहीं है।
प्रश्न 3 – लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है, जबकि श्रृंगारपरक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती हैं। इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर – लेखक का यह कथन पूरी तरह से सत्य प्रतीत नहीं होता। यह संभव है कि किसी विशेष चित्रपट में लता ने करुण रस के गीतों के साथ न्याय नहीं किया हो, किंतु सभी चित्रपटों पर यह बात लागू नहीं होती। लता ने कई चित्रपटों में अपनी आवाज़ दी है तथा उनमें करुण रस के गीत बड़ी मार्मिकता व रसोत्कटता के साथ गाए हैं। उनकी वाणी में एक स्वाभाविक करुणा विद्यमान थी। उनके स्वरों में करुणा छलकती-सी प्रतीत होती थी। फ़िल्म ‘रुदाली’ में उनका ‘दिल-हुँ-हुँ करे…….’ गीत विरही जनों के हृदयों को उत्कंठित ही नहीं करता अपितु अपनी मार्मिकता से हृदय को बींध-सा देता है। इसी प्रकार अन्य कई चित्रपटों पर भी यह बात लागू होती है। अत: यह नहीं कहा जा सकता है कि लता जी केवल श्रृंगार के गीत ही भली प्रकार गा सकती थी। वे सभी गीतों को समान रसमयता के साथ गा सकती थी।
प्रश्न 4 – संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है, तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं – इस कथन को वर्तमान फ़िल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – भारतीय संगीत शास्त्र बहुत प्राचीन है। इसमें वैदिक काल से ही नाना प्रकार के प्रयोग होते रहे हैं। इतनी प्राचीन परंपरा होने के कारण उसका क्षेत्र भी बहुत विशाल हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय संस्कृति भी बहुरंगी संस्कृति है। इसमें केवल भारतीय ही नहीं अपितु विदेशों से आने वाली संस्कृतियों का भी समावेश समय-समय पर होता रहा है। आज भी संगीत में नए-नए प्रयोग होते देखे जा सकते हैं। शास्त्रीय व लोकसंगीत की परंपरा आज भी निरंतर चल रही है, किंतु उनमें नाना प्रकार के प्रयोग करके संगीत को नया आयाम आज की फ़िल्मों में दिया जा रहा है। फ़िल्मों में गीत-संगीतकार कुछ-न-कुछ नया करने का प्रयास पहले से ही करते आए हैं। संगीत के क्षेत्र में हर समय कुछ नया करने की गुंजाइश होती है इसके अंदर अपार संभावनाएं छुपी होती है। यदि वर्तमान समय में हम संगीत को सुने तो हम पाते हैं कि हर रोज कोई न कोई नई दुनिया का आविष्कार मिलता है, साथ ही नए-नए स्वरों और प्रयोग भी सुनने को मिलते हैं। वर्तमान में पश्चिमी संगीत को बड़े पैमाने पर सुना जा रहा है। आज शास्त्रीय गीत, लोकगीत, प्रांतीय गीत और पश्चिमी गीत के नाम का बोलबाला है। वर्तमान समय में हमें यह भी देखने को मिलता है की पश्चिमी गीतों और लोकगीतों को मिलाकर नए गीत बनाए जा रहे हैं। सीधे तौर पर कहा जाए तो वर्तमान समय में संगीत में नयापन देखने को मिल रहा है और अभी भी कई सुर और ताल का प्रयोग होना संगीत की दुनिया में बाकी है। इस प्रकार वर्तमान फ़िल्मी संगीत में भी नए प्रयोगों के माध्यम से संगीत का विस्तार हो रहा है।
प्रश्न 5 – ‘चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए’-अकसर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस संदर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें।
उत्तर – अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान खराब कर दिए हैं लेकिन कुमार गंधर्व इस आरोप से सहमत नहीं हैं। कुमार गंधर्व की नजर में, संगीत में चित्रपट संगीत आने के बाद काफी सुधार आया है। और इसकी वजह से श्रोताओं को गीत समझने में आसानी होती है। आज के समय में लोगों को गीतों से बहुत लगाव है। आज सामान्य वर्ग भी संगीत की लय को समझने में सक्षम है।
इस विषय में कुमार गंधर्व का मत है कि वस्तुतः फ़िल्मी संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं अपितु सुधारे हैं। आज फ़िल्मी संगीत के कारण एक साधारण श्रोता भी स्वर, लय, ताल आदि के विषय में जानकारी रखने लगा है। लोगों की रुचि संगीत में बढ़ी है। शास्त्रीय संगीत के काल में कितने लोग संगीत का ज्ञान रखते थे? कितने लोग उसके दीवाने होते थे? अर्थात् बहुत कम। आज लोग केवल फ़िल्मी संगीत ही नहीं शास्त्रीय संगीत की ओर भी मुड़ने लगे हैं। यह भी फ़िल्मी संगीत के कारण ही संभव हुआ है। चित्रपट संगीत के संदर्भ में, मेरी राय कुछ अलग है – मुझे लगता है कि चित्रपट संगीत से संगीत में अश्लीलता और शोर को बढ़ावा मिला है। यद्यपि चित्रपट संगीत में सुधार हुआ है, लेकिन यह बात केवल पुराने संगीत तक ही सीमित रह गई है। जहां पुराना संगीत मधुरता और जुड़ाव लाता था, वही आज का संगीत भयानक, शोर और तनाव लाता है। गाने के बोल विचित्र, भयानक, और अश्लील होते हैं। हो सकता है आने वाले समय में इसमें कुछ सुधार हो और कुमार गंधर्व का कथन सही साबित हो। क्योंकि आज के फ़िल्मी संगीत के कारण ही शास्त्रीय संगीतकारों की पूछ भी बढ़ी है। जब उन्हें फ़िल्मों में संगीत देने व कार्यक्रम प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है तो लाखों लोग उन्हें पहचानते हैं। अतः फ़िल्मी संगीत पर उपर्युक्त दोष लगाना उचित नहीं है।
प्रश्न 6 – शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार क्या होना चाहिए? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय है? स्वयं आप क्या सोचते हैं?
उत्तर – कुमार गंधर्व का स्पष्ट मत है कि चाहे शास्त्रीय संगीत हो या फ़िल्मी संगीत, वही संगीत अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाएगा, जो ‘रसिकों या श्रोताओं को अधिक आनंदित कर सकेगा। वस्तुतः यह तथ्य बिलकुल सही है कि संगीत का मूल ही आनंद है। संगीत की उत्पत्ति उल्लास से हुई है। श्रोता भी संगीत अपने मनोविनोद के लिए ही सुनते हैं न कि ज्ञान के लिए। अतः संगीत का चरम उद्देश्य आनंद प्राप्ति ही है। जो भी संगीत श्रोताओं को अधिक-से-अधिक आनंदित करेगा, वही अधिक लोकप्रिय भी होगा। संगीत को मज़ेदार बनाने में गीत की क्षमता का महत्व होना जरूरी है। अगर शास्त्रीय संगीत में रंजकता का अभाव है, तो वह बिल्कुल नीरस, बदसूरत हो जाएगा और इस में कुछ कमी महसूस होगी। गीत में गायपन का होना आवश्यक है। गीत की सारी मिठास, उसकी सारी ताकत उस पर निर्भर है। अतः उसी को अधिक महत्त्व भी श्रोताओं द्वारा दिया जाएगा। यह बात संगीत ही नहीं अन्य सभी कलाओं पर भी लागू होती है। रंजक के स्वर को रसिक वर्ग के लिए कैसे प्रस्तुत किया जाए इसके लिए बैठक करनी चाहिए। सोचना चाहिए कि कैसे श्रोताओं के लिए अच्छे संगीत प्रस्तुत किए जाएं जो उन्हें निराश और उबाऊ ना लगे। इसलिए लेखक की राय बिल्कुल सही है और मुझे लगता है कि हर कोई इससे सहमत होगा।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर – (Important Question Answers)
प्रश्न 1 – संगीत के प्रति आम लोगों की सोच में लता की गायकी से क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर – संगीत ने सदा से मनुष्य को आनंद की अनुभूति दी है। शास्त्रीय संगीत साधारण मनुष्य की समझ से दूर है लेकिन चित्रपट संगीत ने आम मनुष्य को संगीत से परिचत करा दिया है और लता के संगीत ने लोगों का शास्त्रीय संगीत के प्रति दृष्टिकोण बदल दिया है। लता की गायकी का जादू ऐसा है कि घरों में छोटे-छोटे बच्चों को भी सुर में गुन-गुनाते हुए देखा जा सकता है। लोगों का संगीत के विविध प्रकारों से परिचय हो रहा है। स्वर ज्ञान बढ़ रहा है। सुर-ताल की समझ आ रही है। साधारण मनुष्य भी संगीत की अच्छी पहचान रखने लगा है। इसका सारा श्रेय लता के संगीत को जाता है। उनके संगीत ने नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है। संगीत के प्रति आम लोगों की सोच में परिवर्तन लता के संगीत के जादू से आया है।
प्रश्न 2 – लता मंगेशकर को बेजोड़ गायिका माना गया है, इस बात तो सिद्ध करने के लिए कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर – लता मंगेशकर को बेजोड़ गायिका कहने के कई कारण हैं, उनमें से तीन निम्नलिखित हैं –
(क) उनकी सुरीली आवाज़ जो ईश्वर की देन तो थी ही, पर स्वयं लता जी ने उसे बहुत त्याग और रियाज़ करके निखारा था।
(ख) उनके गायन में जो ‘गानपन’ था वैसा किसी अन्य में नहीं मिलता।
(ग) उच्चारण में शुद्धता और नाद का जैसा संगम था, जैसी भावों में निर्मलता थी, उसने लता जी को सभी अन्य गायिकाओं से अलग बना दिया था।
प्रश्न 3 – शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में अंतर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर – शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत की तुलना नहीं की जा सकती। दोनों प्रकार के संगीत का अंत आनंद की प्राप्ति है। दोनों प्रकार के संगीत का अपने-अपने क्षेत्र में बहुत महत्त्व है। श्रोता उस संगीत को ज्यादा पसंद जिसमें उन्हें अधिक आनंद की प्राप्ति होती है। दोनों में समानता होते हुए भी अंतर है। शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में निम्नलिखित अंतर है –
शास्त्रीय संगीत में गंभीरता का स्थायी भाव है जबकि चित्रपट संगीत का गुण धर्म जलद लय और चपलता है।
शास्त्रीय संगीत से ताल परिष्कृत रूप में पाया जाता है और चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है।
चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है जबकि शास्त्रीय संगीत में तालों का पूरा ध्यान रखा जाता है।
चित्रपट संगीत गाने वालों को शास्त्रीय संगीत का ज्ञान होनाआवश्यक है परंतु शास्त्रीय संगीत गायक को चित्रपट संगीत ज्ञान होना आवश्यक नहीं है।
चित्रपट संगीत का एक गीत तीन-साढ़े तीन मिनट में वही आनंद और कलात्मकता प्रदान करता है जो शास्त्रीय संगीत तीन-साढ़े तीन घंटे की महफिल से प्राप्त होता है।
प्रश्न 4 – चित्रपट संगीत के लोकप्रिय होने के कारणों को समझाइए?
उत्तर – पहले समय में संगीत के क्षेत्र में शास्त्रीय संगीत का एकाधिकार था लेकिन चित्रपट संगीत ने शास्त्रीय संगीत के एकाधिकार को तोड़ दिया है। चित्रपट संगीत ने संगीत को जनसाधारण के बीच में पहुँचा दिया है। लोगों द्वारा शास्त्र शुद्ध संगीत के स्थान पर सुरीला और भावपूर्ण संगीत को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है। चित्रपट संगीत की लचकदारी ने उसे लोकप्रिय बना दिया। इस संगीत की मान्यताएँ, मर्यादा तथा संगीत तंत्र सब कुछ निराला है जिसने लोगों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ी है। चित्रपट संगीत निर्देशकों ने अपने संगीत में हर क्षेत्र तथा शास्त्रीय संगीत का बहुत उपयोग किया है। जहां चित्रपट संगीत में शास्त्रीय रागदारी सुनी जा सकती है। वहीं राजस्थानी, पंजाबी, बंगाली, पहाड़ी लोक गीतों के सुरीले बोल सुने जा सकते हैं। चित्रपट संगीत में देश की विभिन्नता, एकता के रूप में समाहित है। इस संगीत के माध्यम से लोग अपनी संस्कृति से परिचित हो रहे हैं। चित्रपट संगीत के जनसाधारण में अधिक लोकप्रिय होने का श्रेय लता मंगेशकर को भी जाता है। लता मंगेशकर के स्वरों की निर्मलता, कोमलता और सुरीलेपन ने लोगों को अपने साथ गुनगुनाने के लिए मज़बूर कर दिया है। लता के कारण ही भारत का चित्रपट संगीत भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय हो चुका है।
प्रश्न 5 – लेखक कब से स्वयं का लता मंगेशकर के संगीत से जुड़ाव अनुभव करने लगा?
उत्तर – लेखक बरसों पहले बीमार पड़ा था। बीमारी के दिनों में उसने रेडियो पर एक अद्वितीय स्वर सुना। उसे वह स्वर आम स्वरों से कुछ अलग लगा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह स्वर किस गायिका का है। गीत के अंत में जब लता मंगेशकर का नाम सुना तो लेखक को मन ही मन में लता मंगेशकर के संगीत से जुड़ाव अनुभव करने लगा।
प्रश्न 6 – लेखक के अनुसार हम किस चमत्कार को प्रत्यक्ष देख रहे हैं?
उत्तर – लेखक के अनुसार लता मंगेशकर एक चमत्कार थी। ऐसा कलाकार शताब्दियों में शायद एक ही पैदा होता है। लता मंगेशकर से पहले भी कई गायिकाएँ आईं तथा बाद में भी न जाने कितनी प्रसिद्ध गायिकाएँ हुईं। परंतु लोकप्रियता का जो शिखर लता ने प्राप्त किया था उसे कोई छू भी नहीं पाया है। लगभग आधी शताब्दी से अधिक हो गया जनमन पर अपना निरंतर प्रभुत्व रखा हुआ था। संगीत के क्षेत्र में एक राग भी ज़्यादा समय तक टिका नहीं रहता परंतु लता का स्थान संगीत क्षेत्र में अटल है। लता के गीत भारत में ही नहीं विदेशों में भी अधिक लोकप्रिय हैं। लेखक के अनुसार यह चमत्कार ही है कि ऐसे कलाकार को हमने अपने मध्य, अपनी आँखों के सामने घूमता-फिरता देखा है।
प्रश्न 7 – पाठ के अनुसार बताइए कि कुमार गंधर्व ने लता जी की गायकी के किन दोषों का उल्लेख किया है?
उत्तर – कुमार गंधर्व का मानना है कि लता जी की गायकी में करुण रस विशेष प्रभावशाली रीति से व्यक्त नहीं होता। उन्होंने करुण रस के साथ उतना न्याय नहीं किया। बजाय इसके मुग्ध श्रृंगार की अभिव्यक्ति वाले गीत बड़ी उत्कटता से गाए हैं। दूसरी बात यह है कि लता जी ज्यादातर ऊँची पट्टी में ही गाती थी जो चिलवाने जैसा लगता था। भले ही कुमार गंधर्व जी ने लता जी के दोष गिनवाए हो परन्तु पाठ में आगे लेखक ने दोनों ही दोषों को निर्देशकों पर डालकर लता जी को दोषमुक्त कर दिया है।
प्रश्न 8 – लेखक के अनुसार लता जी का तीन मिनट का गायन शास्त्रीय संगीत के तीन घंटे से भी अधिक प्रभावशाली कैसे है?
उत्तर – लेखक कुमार गंधर्व के अनुसार शास्त्रीय गायन किसी उत्तम लेखक के किसी विस्तृत लेख में जीवन के रहस्य का विशद रूप में वर्णन जैसा है। वही बात, वही रहस्य, छोटे से सुभाषित में, या नन्हीं-सी कहावत में सुंदरता और परिपूर्णता के साथ प्रकट होता है, लता जी के गायन में यही श्रेष्ठता थी। वे आगे लिखते हैं कि तीन घंटों की रंगदार महफ़िल का सारा रस लता जी की तीन मिनट की ध्वनि मुद्रिका में आस्वादित किया जा सकता है। उनका एक-एक गाना एक संपूर्ण कलाकृति होती है।
प्रश्न 9 – लेखक ने लता मंगेशकर को चित्रपट संगीत के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ साबित करने का प्रयास किया है। इसके लिए लेखक ने पाठ में क्या-क्या कहा है?
उत्तर – चित्रपट संगीत के क्षेत्र की लता अनभिषिक्त साम्राज्ञी थी और भी अनेक पार्श्व गायिकाएँ थी, पर लता की लोकप्रियता इन सबसे कहीं अधिक थी। उनकी लोकप्रियता के शिखर का स्थान अचल है। बीते अनेक वर्षों से आज तक उनकी लोकप्रियता अबाधित है। भारतीय गायिकाओं में लता के जोड़ की गायिका हुई ही नहीं। लता के कारण चित्रपट संगीत को विलक्षण लोकप्रियता प्राप्त हुई है, यही नहीं लोगों का शास्त्राीय संगीत की ओर देखने का दृष्टिकोण भी एकदम बदला है। लगभग आधी शताब्दी तक जनमत पर “सतत प्रभुत्व रखना आसान नहीं है। लता की लोकप्रियता केवल देश में ही नहीं, विदेशों में भी लोगों को उनके गीत पागल कर देते हैं। अंत में, वे कहते हैं कि ऐसा कलाकार शताब्दियों में एक ही पैदा होता है।
प्रश्न 10 – चित्रपट संगीत और लता मंगेशकर का परस्पर अटूट संबंध था ।’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर – लता मंगेशकर के जीवन से चित्रपट संगीत को अलग करके देखें तो वहाँ जीवन नहीं होगा, ठीक वैसे ही चित्रपट संगीत से लता को हटा दें तो अर्धशताब्दी विशाल शून्य-सी प्रतीत होगी। पिछले पचपन-साठ वर्षों से लता जी अबाध रूप से गायकी के क्षेत्र में अपनी लोकप्रियता बनाए हुए थी और यही लोकप्रियता चित्रपट निर्माताओं को बार-बार बाध्य करती थी। कि वे अगली फ़िल्म के गीत भी लता जी से गवाते थे, वो भी उनकी शर्ते मानकर। इस दीर्घकाल में बहुत-सी नई-अच्छी गायिकाएँ भी आईं जिन्हें अवसर मिले और वे लोकप्रिय भी हुई, पर लता जी के मुकाम तक कोई नहीं पहुँच सकी। अतः बाध्य होकर फिर जहाज़ के पंछी की भाँति फ़िल्म निर्माता लता जी के पास पहुँच जाते थे। इस अटूट संबंध का पहला कारण था – लता जी की योग्यता, जिसके समक्ष कोई नहीं टिक पाता। दूसरी बात थी – लता जी का त्याग व् रियाज़ ! इस कला के प्रति उनके जैसा समर्पण अन्य किसी कलाकार में दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता। यही कारण था कि उनके साथ उनके बाद आने वाली अनेकानेक पाश्र्व गायिकाएँ उतनी एकाग्रता से संगीत के साथ न्याय नहीं कर पाईं, क्योंकि उनका ध्यान अन्यत्र भी लगा रहता था। उन सबकी तुलना में लता जी का जीवन पूरी तरह संगीत को समर्पित था। यही समर्पण चित्रपट संगीत के साथ उनका अटूट संबंध बनाए हुए था।
प्रश्न 11 – लता मंगेशकर जी ने किन-किन विषयों पर गीत गाए हैं?
उत्तर – फ़िल्म संगीतवालों ने समाज की संगीत विषयक अभिरुचि में एक प्रभावशाली परिवर्तन किया। इस संगीत की लचकदारी और रोचकता ही उसकी सामर्थ्य है। यहाँ का तंत्र ही अलग है। यहाँ नवनिर्मित की बहुत गुंजाइश है। इसी कारण लता मंगेशकर ने राजस्थानी, पंजाबी, बंगाली, मराठी प्रदेशों के लोकगीतों को खूब गाया है। धूप का कौतुक करने वाले पंजाबी लोकगीत, रूक्ष और निर्जल राजस्थान में पर्जन्य की याद दिलाने वाले गीत, पहाड़ों की घाटियों, खोरों में प्रतिध्वनि देने वाले पहाड़ी गीत लता जी ने गाए हैं। ऋतु चक्र समझाने वाले और खेती के विविध कामों का हिसाब लेने वाले कृषि गीत, ब्रजभूमि के गीत जिनमें सहजता समाई हुई है, इन सभी को फ़िल्मों में खूब लिया गया और इसी परिणामस्वरूप लता जी द्वारा गाया भी गया। कुमार गंधर्व का मानना है कि यदि लता जी के संगीत निर्देशकों के स्थान पर ‘वे होते तो इतना सरल-सरल काम लता जैसी गायिका को नहीं देते। वे उन्हें और मुश्किल काम देते। इसका कारण वे बताते हैं कि लता में और बहुत-सी संभावनाएँ छिपी थी। उन्हें बाहर लाने के लिए उनसे और कठिन कार्य करवाया जाना चाहिए था।
प्रश्न 12 – लता मंगेशकर जी की गायकी की समीक्षा आप किस तरह करेंगे?
उत्तर – लता मंगेशकर जी की गायकी के दोनों पक्षों का वर्णन किया गया है। उन्होंने, लता की निर्विवाद सुरीली आवाज़ का जिक्र किया है कि लता आवाज़ के कारण उस ज़माने की प्रसिद्ध गायिकाओं से ऊपर फ़िल्म जगत पर छा गईं। उसके बाद, गाने के तरीके में ‘गानपन’ की तारीफ़ करते हुए लेखक ने इसे जन सामान्य के मन की गहराइयों तक उतरकर लोकप्रियता का कारण बताया है। उनके द्वारा शब्दों का नादमय उच्चारण, जिसकी गूँज लंबे समय तक श्रोताओं के मन पर बनी रहती है। लता जी के व्यक्तित्व की निर्मलता उनके स्वर में भी है और वही गायकी के माध्यम से श्रोताओं के कानों और मन पर निर्मलता /का असर छोड़ती है। यही कारण है कि लता जी के आने के बाद हमारे देश के सामान्य लोगों का संगीत के प्रति रुझान और दृष्टिकोण बदल गया है। उन्हीं के कारण लोगों में अच्छे गीतों की समझ जागृत हुई है।
प्रश्न 13 – आज शास्त्रीय संगीत के स्थान पर फ़िल्म संगीत को अधिक पसंद क्यों किया जाता है?
उत्तर – भारत में शास्त्रीय संगीत प्रायः घरानों के नाम से काफ़ी पुराने समय से चला आ रहा है। पहले यह राजदरबारों, मंदिरों आदि तक सीमित था। इसे श्रेष्ठता का सूचक माना जाता था। आधुनिक युग में फ़िल्मों के आने से संगीत की दिशा बदली। शास्त्रीय संगीत अपनी सीमा को लाँघना नहीं चाहता था। कठिन होने के कारण जनसाधारण की समझ से यह बाहर था। फ़िल्मी संगीत सरल होने के कारण जनसाधारण में लोकप्रिय हो गया। फ़िल्मी संगीत सरल, सर्वसुलभ, कर्णप्रिय होने के कारण आम जनता इसकी तरफ आकर्षित हो रही है। शास्त्रीय संगीत सरकारी सहायता का मोहताज रहता है। सरकारी कार्यक्रमों को छोड़कर अन्य सभी सामाजिक कार्यक्रमों में फ़िल्मी संगीत छाया रहता है। शास्त्रीय संगीत को सीखने में कठिन मेहनत, धैर्य व धन की जरूरत होती है। जबकि फ़िल्मी संगीत कम मेहनत, से सीखा जा सकता है। इससे आय भी अधिक होती है। इसलिए फ़िल्मी संगीत ज्यादा लोकप्रिय है।
प्रश्न 14 – संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है इस संबंध में आपकी क्या राय है?
उत्तर – संगीत का क्षेत्र बड़ा ही विस्तृत है इसमें हर समय, हर दिन, हर रोज कुछ नया करने की होड़ लगी रहती है। संगीत में कई प्रकार के धुन, राग , ताल और स्वर आज भी अछूते हैं। जिस पर कई सुधार और नए प्रयोग निरंतर हो रहे हैं। आज भी शास्त्रीय संगीत, प्रांतीय गीत, लोकगीत और पश्चिमी गीतो को संगीत के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है।
प्रश्न 15 – लता जी के संगीत में शास्त्रीय शुद्धता किस प्रकार सिद्ध होती है?
उत्तर – लता जी की आवाज और शब्दावली के संगम के साथ लता जी के संगीत में हमें रंजकता जैसे विशेषता दिखती है। उन्होंने भक्ति, देश भक्ति, प्रेम और आराधना, आरती जैसे विभिन्न प्रकार के संगीत गाए हैं। उनके द्वारा गाया गया संगीत श्रोताओं के मन को गहराई से छू जाता है। गंभीर या हास्य प्रकार के संगीत को गाना तो बहुत आसान है, परंतु देश भक्ति संगीत गाना मुश्किल है। लता जी का देश भक्ति संगीत (ए मेरे वतन के लोगों) ने पूरे भारत वासियो को हमेशा रुला देता है। इससे यह सिद्ध होता है कि लता जी शास्त्रीय संगीत में पारंगत थी और उनके संगीत में शास्त्रीय शुद्धता देखने को मिलती थी। लता जी की आवाज में जो मिठास थी उसी के कारण भारत में उन्हें स्वर कोकिला कहा जाता है।
प्रश्न 16 – ‘भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर’,-प्रस्तुत पाठ में गाने के लिए किन तत्वों को आवश्यक माना गया है?
उत्तर – पाठ के लेखक कुमार गंधर्व के अनुसार गाने की सारी मिठास, सारी ताकत उसकी रंजकता पर मुख्यतः अवलंबित रहती है। रंजकता का मर्म रसिक वर्ग के समक्ष कैसे प्रस्तुत किया जाए, किस रीति से उसकी बैठक बिठाई जाए और श्रोताओं से कैसे सुसंवाद साधा जाए इसमें समाविष्ट है। सरल शब्दों में कहें तो गाने के लिए सबसे आवश्यक तत्व है उसकी रंजकता अर्थात् श्रोताओं द्वारा जो गायकी सबसे अधिक पसंद की जाती है वही सर्वश्रेष्ठ है। गाने की कसौटी उसकी लोकप्रियता है।
प्रश्न 17 – ‘भारतीय गायिकाओं में बेजोड़: लता मंगेशकर’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘भारतीय गायिकाओं में बेजोड़: लता मंगेशकर’ पाठ के माध्यम से भारतीय गायिकाओं में लता के जोड़ की गायिका न होने के कारणों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट किया है। गायन कला से जुड़े बहुत महत्त्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन किया है। लता मंगेशकर के गानपन ने संगीत को विशिष्ट लोगों की श्रेणी से निकालकर साधारण लोगों में लोकप्रिय बना दिया है। लेखक बहुत समय पहले बीमारी के समय में लता मंगेशकर का गीत रेडियो पर सुना और वह उसी समय से स्वयं को लता मंगेशकर के संगीत से जुड़ा हुआ अनुभव करने लगा। लता से पहले भी कई गायिकाएं आई हैं और बाद में भी परंतु लता के समान लोकप्रियता के शिखर तक कोई नहीं पहुँच पाया। आधी से अधिक शताब्दी बीत चुकी है लेकिन लता की लोकप्रियता कम नहीं हुई है इसका कारण लता के स्वरों की निर्मलता, कोमलता तथा मिठास है उनका स्वर लोगों को संगीत के साथ सीधा जोड़ता है। चित्रपट संगीत के निर्देशकों संगीत के माध्यम से शास्त्रीय संगीत को लोगों से जोड़ दिया है। उनके गीतों के माध्यम से राजस्थानी, पहाड़ी, पंजाबी, बंगाली लोकगीतों का बहुत उपयोग हुआ। साथ में देश की संस्कृति से आम लोगों को परिचित कराया है। संगीत का क्षेत्र एक ऐसा चित्र है जिसमें सभी वर्ण के लोग एक समान आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं। लेखक ने इस पाठ के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि लता मंगेशकर की गायकी ने संगीत को एक नई दिशा प्रदान की है। संगीत सभा-समारोहों की परिधि से निकलकर लता मंगेशकर के कारण ही सामान्य जन मानस तक पहुँचा है।
बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर (Multiple Choice Questions)
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) एक प्रकार का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन है जिसमें एक व्यक्ति को उपलब्ध विकल्पों की सूची में से एक या अधिक सही उत्तर चुनने के लिए कहा जाता है। एक एमसीक्यू कई संभावित उत्तरों के साथ एक प्रश्न प्रस्तुत करता है।
प्रश्न 1 – भारतीय गायकाओं में बेजोड़ -लता मंगेशकर पाठ के अनुसार लता जी के गानों की वजह से लोगो की किसमे रूचि बड़ी है –
(क) शास्त्रीय संगीत में
(ख) लता जी के गानों में
(ग) चित्रपट संगीत में
(घ) वाद्ययंत्रों में
उत्तर – (क) शास्त्रीय संगीत में
प्रश्न 2 – लता मंगेशकर जी को किस नाम से देश विदेश में जाना जाता है –
(क) स्वर साम्राज्ञी
(ख) स्वर कोयल
(ग) स्वर कोकिला
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) स्वर कोकिला
प्रश्न 3 – इस पाठ का मुख्य उद्देश्य क्या है –
(क) शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देना
(ख) लता जी के व्यक्तित्व से परिचय कराना
(ग) चित्रपट संगीत को बढ़ावा देना
(घ) लता जी की प्रसिद्धि बतलाना
उत्तर – (ख) लता जी के व्यक्तित्व से परिचय कराना
प्रश्न 4 – लता से पूर्व किस प्रसिद्ध गायिका का जमाना था –
(क) आशा भोंसले
(ख) नूरजहां
(ग) उषा मंगेशकर
(घ) अनुराधा जी
उत्तर – (ख) नूरजहां
प्रश्न 5 – लता जी की प्रसिद्धि का कारण क्या हैं –
(क) उनके गानों का गानपन
(ख) उनके पिता की प्रसिद्धि
(ग) उनके गानों के प्रति प्यार
(घ) उनके गानों का चयन
उत्तर – (क) उनके गानों का गानपन
प्रश्न 6 – सामान्यतया लता जी ने कौन सी पट्टी में गीत गाए हैं –
(क) मध्यम पट्टी में
(ख) नीची पट्टी में
(ग) ऊंची पट्टी में
(घ) ऊँची व् नीची दोनों पट्टी में
उत्तर – (ग) ऊंची पट्टी में
प्रश्न 7 – शास्त्रीय संगीत में ताल किस रूप में पाया जाता है –
(क) आदि अवस्था
(ख) माध्यमिक अवस्था
(ग) प्राथमिक अवस्था
(घ) परिष्कृत रूप
उत्तर – (घ) परिष्कृत रूप
प्रश्न 8 – चित्रपट संगीत का ताल कौन सी अवस्था का होता है –
(क) आदि अवस्था
(ख) माध्यमिक अवस्था
(ग) प्राथमिक अवस्था
(घ) परिष्कृत रूप
उत्तर – (ग) प्राथमिक अवस्था
प्रश्न 9 – भारतीय फिल्मों में किस संगीत की धुनों का अधिक प्रयोग किया गया है –
(क) राजस्थानी संगीत
(ख) लोक संगीत
(ग) गुजराती संगीत
(घ) पंजाबी संगीत
उत्तर – (ख) लोक संगीत
प्रश्न 10 – हमारे शास्त्रीय गायक किस प्रकार की वृत्ति वाले होते हैं –
(क) दूरदृष्टि
(ख) खोजी
(ग) संतुष्टि वहीन
(घ) आत्मसंतुष्टि
उत्तर – (घ) आत्मसंतुष्टि
प्रश्न 11 – लेखक के अनुसार गाने की सारी मिठास किसके कारण आती है –
(क) शब्दों की कोमलता के कारण
(ख) लेखक के कारण
(ग) रंजकता के कारण
(घ) गायिका के कारण
उत्तर – (ग) रंजकता के कारण
प्रश्न 12 – लेखक के अनुसार लता जैसा गायक कलाकार कितने समय बाद पैदा होता है –
(क) सदियों में बहुत बार
(ख) सदियों में एक या दो बार
(ग) सदियों में एक बार
(घ) चमत्कार से ही
उत्तर – (ग) सदियों में एक बार
प्रश्न 13 – लेखक के अनुसार हमारा क्या सौभाग्य हैं –
(क) लता मंगेशकर को साक्षात् देख पाना
(ख) लता मंगेशकर के गाने सुन पाना
(ग) लता मंगेशकर को जान पाना
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) लता मंगेशकर को साक्षात् देख पाना
प्रश्न 14 – भारतीय गायकाओं में बेजोड़ -लता मंगेशकर पाठ में “अनभिषिक्त” का क्या अर्थ है –
(क) जो अनमोल हो
(ख) जो खोजा न गया हो
(ग) बेताज
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) बेताज
प्रश्न 15 – लेखक ने “चित्रपट संगीत का पर्याय” किसे माना है –
(क) लता जी के पिता को
(ख) लता मंगेशकर को
(ग) नूरजहाँ को
(घ) विस्मिल्ला खाँ को
उत्तर – (ख) लता मंगेशकर को
प्रश्न 16 – लेखक ने लता मंगेशकर जी को क्या उपाधि दी हैं –
(क) संगीत की बेताज स्वर साम्राज्ञी
(ख) शास्त्रीय संगीत की बेताज स्वर साम्राज्ञी
(ग) चित्रपट संगीत की बेताज स्वर साम्राज्ञी
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) चित्रपट संगीत की बेताज स्वर साम्राज्ञी
प्रश्न 17 – लेखक कुमार गंधर्व ने लता की आवाज सबसे पहले कहाँ सुनी थी –
(क) दूरदर्शन पर
(ख) रेडियो पर
(ग) परदे पर
(घ) सिनेमा पर
उत्तर – (ख) रेडियो पर
प्रश्न 18 – लता जी के स्वरों की विशेषता क्या हैं –
(क) कोमलता
(ख) निर्मलता
(ग) मुग्धता
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 19 – चित्रपट संगीत में किसको अग्र स्थान दिया जाता है –
(क) सुलभता व लोच को
(ख) सुलभता व निर्मलता को
(ग) सुलभता व कोमलता को
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (क) सुलभता व लोच को
प्रश्न 20 – चित्रपट संगीत में कितने तालों का उपयोग किया जाता हैं –
(क) आदि तालों का
(ख) पूर्ण तालों का
(ग) आधे तालों का
(घ) केवल अंत के तालों का
उत्तर – (ग) आधे तालों का
सार-आधारित प्रश्न Extract Based Questions
सार-आधारित प्रश्न बहुविकल्पीय किस्म के होते हैं, और छात्रों को पैसेज को ध्यान से पढ़कर प्रत्येक प्रश्न के लिए सही विकल्प का चयन करना चाहिए। (Extract-based questions are of the multiple-choice variety, and students must select the correct option for each question by carefully reading the passage.)
1 –
बरसों पहले की बात है। मैं बीमार था। उस बीमारी में एक दिन मैंने सहज ही रेडियो लगाया और अचानक एक अद्वितीय स्वर मेरे कानों में पड़ा। स्वर सुनते ही मैंने अनुभव किया कि यह स्वर कुछ विशेष है, रोज़ का नहीं। यह स्वर सीधे मेरे कलेजे से जा भिड़ा। मैं तो हैरान हो गया। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि यह स्वर किसका है। मैं तन्मयता से सुनता ही रहा। गाना समाप्त होते ही गायिका का नाम घोषित किया गया – लता मंगेशकर। नाम सुनते ही मैं चकित हो गया। मन-ही-मन एक संगति पाने का भी अनुभव हुआ। सुप्रसिद्ध गायक दीनानाथ मंगेशकर की अजब गायकी एक दूसरा स्वरूप लिए उन्हीं की बेटी की कोमल आवाज़ में सुनने का अनुभव हुआ। मुझे लगता है ‘बरसात’ के भी पहले के किसी चित्रपट का वह कोई गाना था। तब से लता निरंतर गाती चली आ रही है और मैं भी उसका गाना सुनता आ रहा हूँ। लता के पहले प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ का चित्रपट संगीत में अपना ज़माना था। परंतु उसी क्षेत्र में बाद में आई हुई लता उससे कहीं आगे निकल गई। कला के क्षेत्र में ऐसे चमत्कार कभी-कभी दीख पड़ते हैं। जैसे प्रसिद्ध सितारिये विलायत खाँ अपने सितारवादक पिता की तुलना में बहुत ही आगे चले गए।
प्रश्न 1 – लेखक ने अपनी बिमारी के दिन रेडियो पर किसका गाना सुना –
(क) लता मंगेशकर
(ख) नूरजहाँ
(ग) विलायत खाँ
(घ) दीनानाथ मंगेशकर
उत्तर – (क) लता मंगेशकर
प्रश्न 2 – लेखक ने लता मंगेशकर का गाना कहाँ सूना –
(क) चित्रपट पर
(ख) दूरदर्शन पर
(ग) रेडियो पर
(घ) सितार पर
उत्तर – (ग) रेडियो पर
प्रश्न 3 – लता मंगेशकर ने गायिकी में किसे पीछे छोड़ दिया था –
(क) अपने पिता
(ख) नूरजहाँ
(ग) विलायत खाँ
(घ) दीनानाथ मंगेशकर
उत्तर – (ख) नूरजहाँ
प्रश्न 4 – पहली बार लता मंगेशकर का गाना सुन कर लेखक को कैसा लगा –
(क) लेखक ने अनुभव किया कि यह स्वर कुछ विशेष है
(ख) लेखक हैरानी से सुनता ही रहा
(ग) लेखक तन्मयता से सुनता रहा
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 5 – कला के क्षेत्र में कैसे चमत्कार कभी-कभी दीख पड़ते हैं –
(क) गायिकी में कोई इतनी छोटी उम्र में प्रसिद्ध हो जाए
(ख) अपने पिता से भी कई अधिक प्रसिद्धि प्राप्त कर ले
(ग) दूसरे प्रसिद्ध व्यक्तियों को पीछे छोड़ दें
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ख) अपने पिता से भी कई अधिक प्रसिद्धि प्राप्त कर ले
2 –
सामान्य श्रोता को अगर आज लता की ध्वनिमुद्रिका और शास्त्राीय गायकी की ध्वनिमुद्रिका सुनाई जाए तो वह लता की ध्वनिमुद्रिका ही पसंद करेगा। गाना कौन से राग में गाया गया और ताल कौन-सा था, यह शास्त्राीय ब्योरा इस आदमी को सहसा मालूम नहीं रहता। उसे इससे कोई मतलब नहीं कि राग मालकोस था और ताल त्रिताल। उसे तो चाहिए वह मिठास, जो उसे मस्त कर दे, जिसका वह अनुभव कर सके और यह स्वाभाविक ही है। क्योंकि जिस प्रकार मनुष्यता हो तो वह मनुष्य है, वैसे ही ‘गानपन’ हो तो वह संगीत है। और लता का कोई भी गाना लीजिए तो उसमें शत-प्रतिशत यह ‘गानपन’ मौजूद मिलेगा।
लता की लोकप्रियता का मुख्य मर्म यह ‘गानपन’ ही है। लता के गाने की एक और विशेषता है, उसके स्वरों की निर्मलता। उसके पहले की पार्श्व गायिका नूरजहाँ भी एक अच्छी गायिका थी, इसमें संदेह नहीं तथापि उसके गाने में एक मादक उत्तान दीखता था। लता के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। ऐसा दीखता है कि
लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है वही उसके गायन की निर्मलता में झलक रहा है। हाँ, संगीत दिग्दर्शकों ने उसके स्वर की इस निर्मलता का जितना उपयोग कर लेना चाहिए था, उतना नहीं किया। मैं स्वयं संगीत दिग्दर्शक होता तो लता को बहुत जटिल काम देता, ऐसा कहे बिना रहा नहीं जाता।
लता के गाने की एक और विशेषता है, उसका नादमय उच्चार। उसके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों के आलाप द्वारा बड़ी सुंदर रीति से भरा रहता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक दूसरे में मिल जाते हैं। यह बात पैदा करना बड़ा कठिन है, परंतु लता के साथ यह बात अत्यंत सहज और स्वाभाविक हो बैठी है।
प्रश्न 1 – सामान्य श्रोता को अगर आज लता की ध्वनिमुद्रिका और शास्त्राीय गायकी की ध्वनिमुद्रिका सुनाई जाए तो वह क्या पसंद करेगा –
(क) लता की ध्वनिमुद्रिका
(ख) लता की ध्वनिमुद्रिका और शास्त्राीय गायकी की ध्वनिमुद्रिका
(ग) लता की शास्त्राीय गायकी की ध्वनिमुद्रिका
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (क) लता की ध्वनिमुद्रिका
प्रश्न 2 – लता के गाने की क्या विशेषता है –
(क) उसके स्वरों की कठोरता
(ख) उसके स्वरों की स्पष्टता
(ग) उसके स्वरों की निर्मलता
(घ) उसके स्वरों की समझ
उत्तर – (ग) उसके स्वरों की निर्मलता
प्रश्न 3 – गायिका नूरजहाँ के गाने में क्या दीखता था –
(क) एक सुरीला उत्तान
(ख) एक स्पष्ट समझ
(ग) एक मादक उत्तान
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) एक मादक उत्तान
प्रश्न 4 – लेखक स्वयं संगीत दिग्दर्शक होता तो क्या करता –
(क) लता को बहुत जटिल काम देता
(ख) लता को बहुत सरल काम देता
(ग) लता को विभिन्न काम देता
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) लता को बहुत जटिल काम देता
प्रश्न 5 – निम्न में से लता के गाने की विशेषता कौन सी है –
(क) उसका कठिन परिश्रम
(ख) उसका मादक उत्तान
(ग) उसका नादमय उच्चार
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) उसका नादमय उच्चार
3 –
जहाँ गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायीभाव है वहीं जलदलय और चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुणधर्म है। चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है। चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है। उसकी लयकारी बिलकुल अलग होती है, आसान होती है। यहाँ गीत और आघात को ज्यादा महत्व दिया जाता है। सुलभता और लोच को अग्र स्थान दिया जाता है ; तथापि चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है और वह लता के पास निःसंशय है। तीन-साढे़ तीन मिनट के गाए हुए चित्रपट के किसी गाने का और एकाध खानदानी शास्त्रीय गायक की तीन-साढ़े तीन घंटे की महफ़िल, इन दोनों का कलात्मक और आनंदात्मक मूल्य एक ही है, ऐसा मैं मानता हूँ। किसी उत्तम लेखक का कोई विस्तृत लेख जीवन के रहस्य का विशद् रूप में वर्णन करता है तो वही रहस्य छोटे से सुभाषित का या नन्ही-सी कहावत में सुंदरता और परिपूर्णता से प्रकट हुआ भी दृष्टिगोचर होता है। उसी प्रकार तीन घंटों की रंगदार महफ़िल का सारा रस लता की तीन मिनट की ध्वनिमुद्रिका में आस्वादित किया जा सकता है। उसका एक-एक गाना एक संपूर्ण कलाकृति होता है। स्वर, लय, शब्दार्थ का वहाँ त्रिवेणी संगम होता है और महफ़िल की बेहोशी उसमें समाई रहती है। वैसे देखा जाए तो शास्त्रीय संगीत क्या और चित्रपट संगीत क्या, अंत में रसिक को आनंद देने की सामर्थ्य किस गाने में कितना है, इस पर उसका महत्व ठहराना उचित है।
प्रश्न 1 – शास्त्रीय संगीत का स्थायीभाव क्या है –
(क) चपलता
(ख) गंभीरता
(ग) जलदलय
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ख) गंभीरता
प्रश्न 2 – चित्रपट संगीत का मुख्य गुणधर्म कौन सा है –
(क) गंभीरता और चपलता
(ख) गंभीरता और जलदलय
(ग) जलदलय और चपलता
(घ) केवल (क)
उत्तर – (ग) जलदलय और चपलता
प्रश्न 3 – चित्रपट संगीत की विशेषता क्या है –
(क) चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है
(ख) चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है
(ग) चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4 – शास्त्रीय संगीत की विशेषता कौन सी है –
(क) शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है
(ख) शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है
(ग) गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायीभाव है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर -(घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 5 – लता मंगेशकर के गाने में कौन सा त्रिवेणी संगम होता है –
(क) स्वर, लय, शब्दार्थ का
(ख) स्वर, गीत, शब्दार्थ का
(ग) स्वर, लय, शब्दकोष का
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (क) स्वर, लय, शब्दार्थ का
4 –
सच बात तो यह है कि हमारे शास्त्रीय गायक बड़ी आत्मसंतुष्ट वृत्ति के हैं। संगीत के क्षेत्र में उन्होंने अपनी हुकुमशाही स्थापित कर रखी है। शास्त्र-शुद्धता के कर्मकांड को उन्होंने आवश्यकता से अधिक महत्व दे रखा है। मगर चित्रपट संगीत द्वारा लोगों की अभिजात्य संगीत से जान-पहचान होने लगी है। उनकी चिकित्सक और चौकस वृत्ति अब बढ़ती जा रही है। केवल शास्त्र-शुद्ध और नीरस गाना उन्हें नहीं चाहिए, उन्हें तो सुरीला और भावपूर्ण गाना चाहिए। और यह क्रांति चित्रपट संगीत ही लाया है। चित्रपट संगीत समाज की संगीत विषयक अभिरुचि में प्रभावशाली मोड़ लाया है। चित्रपट संगीत की लचकदारी उसका एक और सामर्थ्य है, ऐसा मुझे लगता है। उस संगीत की मान्यताएँ, मर्यादाएँ, झंझटें सब कुछ निराली हैं। चित्रपट संगीत का तंत्र ही अलग है। यहाँ नवनिर्मिति की बहुत गुंजाइश है। जैसा शास्त्रीय रागदारी का चित्रपट संगीत दिग्दर्शकों ने उपयोग किया, उसी प्रकार राजस्थानी, पंजाबी, बंगाली, प्रदेश के लोकगीतों के भंडार को भी उन्होंने खूब लूटा है, यह हमारे ध्यान में रहना चाहिए। धूप का कौतुक करने वाले पंजाबी लोकगीत, रूक्ष और निर्जल राजस्थान में पर्जन्य की याद दिलाने वाले गीत पहाड़ों की घाटियों, खोरों में प्रतिध्वनित होने वाले पहाड़ी गीत, ऋतुचक्र समझाने वाले और खेती के विविध कामों का हिसाब लेने वाले कृषिगीत और ब्रजभूमि में समाविष्ट सहज मधुर गीतों का अतिशय मार्मिक व रसानुकूल उपयोग चित्रपट क्षेत्र के प्रभावी संगीत दिग्दर्शकों ने किया है और आगे भी करते रहेंगे। थोडे़ में कहूँ तो संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं। फलस्वरूप चित्रपट संगीत दिनों दिन अधिकाधिक विकसित होता जा रहा है।
प्रश्न 1 – हमारे शास्त्रीय गायक बड़ी आत्मसंतुष्ट वृत्ति के हैं – ऐसा क्यों –
(क) संगीत के क्षेत्र में उन्होंने अपनी हुकुमशाही स्थापित कर रखी है
(ख) शास्त्र-शुद्धता के कर्मकांड को उन्होंने आवश्यकता से अधिक महत्व दे रखा है
(ग) केवल (क)
(घ) (क) और (ख) दोनों
उत्तर – (घ) (क) और (ख) दोनों
प्रश्न 2 – लोगों की अभिजात्य संगीत से जान-पहचान किसके कारण होने लगी है –
(क) चित्रपट संगीत द्वारा
(ख) शास्त्रीय संगीत द्वारा
(ग) संगीत दिग्दर्शकों द्वारा
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) चित्रपट संगीत द्वारा
प्रश्न 3 – गद्यांश में लेखक ने चित्रपट संगीत की क्या विशेषता बताई है –
(क) चित्रपट संगीत समाज की संगीत विषयक अभिरुचि में प्रभावशाली मोड़ लाया है
(ख) चित्रपट संगीत की लचकदारी उसका एक और सामर्थ्य है
(ग) चित्रपट संगीत की मान्यताएँ, मर्यादाएँ, झंझटें सब कुछ निराली हैं
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4 – चित्रपट क्षेत्र के प्रभावी संगीत दिग्दर्शकों ने चित्रपट संगीत को प्रसिद्ध करने में क्या-क्या उपयोग किया है –
(क) राजस्थानी, पंजाबी, बंगाली, प्रदेश के लोकगीतों के भंडार को उन्होंने खूब लूटा है
(ख) धूप का कौतुक करने वाले पंजाबी लोकगीत, रूक्ष और निर्जल राजस्थान में पर्जन्य की याद दिलाने वाले गीत पहाड़ों की घाटियों का उपयोग
(ग) खोरों में प्रतिध्वनित होने वाले पहाड़ी गीत, ऋतुचक्र समझाने वाले और खेती के विविध कामों का हिसाब लेने वाले कृषिगीत और ब्रजभूमि में समाविष्ट सहज मधुर गीतों का अतिशय मार्मिक व रसानुकूल उपयोग
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 5 – लेखक के अनुसार संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है क्यों –
(क) क्योंकि संगीत में समाज की सभी चीज़े समाहित हैं
(ख) क्योंकि अब तक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है
(ग) क्योंकि संगीत में बदलाव होता रहता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ख) क्योंकि अब तक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है
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