Character Sketch of Bade Bhai Saheb

 

बड़े भाई साहब और लेखक का चरित्र-चित्रण | Character Sketch of Bade Bhai Sahab and Narrator from CBSE Class 10 Hindi Sparsh Book Chapter 8 बड़े भाई साहब

 

बड़े भाई साहब मुंशी प्रेमचंद जी की कृति है। इस कृति के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद जी ने भारतीय संस्कृति के भ्रातृ प्रेम को उजागर किया है। इस कृति के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद जी ने एक बड़े भाई का अपने छोटे भाई के प्रति प्रेम, धैर्य और संयम का बेहद ही आकर्षक ढंग से प्रस्तुतिकरण किया है। 

 

बड़े भाई साहब का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of Bade Bhai Sahab)

बड़े भाई साहब नामक कृति में बड़े भाई का चरित्र चित्रण निम्नलिखित है; 

गंभीर: बड़े भाई साहब नामक कृति में बड़े भाई बहुत गंभीर स्वभाव के थे। उनके मन में चंचलता बिल्कुल भी नहीं थी। वह हर समय किताबों में खोए रहते थे। 

बुद्धिमान: बड़े भाई साहब भले ही अपने दर्जे में 3 बार फेल हुए लेकिन तब भी वह बहुत ज्यादा बुद्धिमान थे। जब छोटे भाई को घमंड आ गया था तब रावण और शैतान का उदाहरण देकर उन्होंने अपने छोटे भाई की आखें खोल दी थी। 

हार न मानने वाले: बड़े भाई साहब तीन सालों से लगातार एक ही दर्जे में फेल हो रहे थे लेकिन तब भी वो हर साल उतनी ही लगन से जी तोड़ मेहनत करते थे। फेल होने के बावजूद उनके मनोबल में कोई आंच न आई। 

धैर्यवान: बड़े भाई साहब बहुत धैर्यवान थे। बार बार फेल होने के बावजूद वह धैर्य पूर्वक पढ़ाई करते थे। 

छोटे भाई के मार्गदर्शक: बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई के मार्गदर्शक थे। जब छोटे भाई दिन भर खेलता रहता था तो वह अपने छोटे भाई को कटु वचन बोलकर और भिन्न भिन्न उदाहरण देकर उसको पढ़ाई करने को बोलते थे। 

तर्कशास्त्र में पारंगत: बड़े भाई साहब तर्क शास्त्र में बहुत पारंगत थे। वह अपने तर्क के द्वारा बार बार छोटे भाई को सही रास्ता दिखाते हैं। वास्तव में उनके तर्क की बदौलत ही रोज छोटा भाई न मन होने के बावजूद किताब खोलकर पढ़ने बैठता है। 

शिक्षा व्यवस्था के विरोधी: बड़े भाई साहब उस जमाने की शिक्षा व्यवस्था से काफी नाराज थे क्योंकि उनकी नजर में शिक्षा का मतलब किताबों को रटना था। असल जिंदगी में उस शिक्षा का कोई मतलब नहीं था। 

जब छोटा भाई पास हो जाता है तो बड़े भाई साहेब उसको यही समझाते हैं कि पास हो जाने का ये मतलब नहीं की तुमको सारा ज्ञान प्राप्त हो गया। हमसे ज्यादा ज्ञान तो हमारे दादा, जो सिर्फ पांचवे दर्जे तक ही पढ़ें हैं उनको है। हमारी शिक्षा हमको बस दर्जे में पास करवाती है, असली ज्ञान नहीं देती। 

 

बड़े भाई साहब के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Bade Bhai Sahab)

Q1. बड़े भाई साहब का उस समय की शिक्षा व्यवस्था के प्रति क्या नजरिया था?

Q2. बड़े भाई साहब कोई खेल क्यों नहीं खेलते थे?

 

लेखक का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of Narrator)

लेखक अपने बड़े भाई के बिल्कुल विपरीत थे। उसके चरित्र चित्रण निम्नलिखित है – 

चंचल: भारतीय समाज के एक आदर्श छोटे भाई की तरह वह भी चंचल है। उसके दिन की शुरुआत तथा अंत खेलने कूदने से होती था। 

पढ़ाई में अरुचि: बड़े भाई साहब के विपरीत उसको पढ़ना बिलकुल भी पसंद नहीं था। वह बस इतना पढ़ते थे कि क्लास में उसको डांट न मिले। उसको एक घंटे भी पढ़ने में मरने जैसा लगता था।

भ्रातृ प्रेम: लेखक बहुत ज्यादा भ्रातृ प्रेमी था। बड़े भाई साहब के सभी बच्चों के सामने कटु वचन के बावजूद वह उनसे जबान नहीं लड़ाया। 

लापरवाह: लेखक बहुत लापरवाह थे। अपने बड़े भाई साहब से डांट सुनने के बाद जोश जोश में टाइम टेबल तो बना लेते लेकिन कभी टाइम टेबल के अनुसार पढ़ाई नहीं करते। दिन भर बस खेलता रहता और पढ़ाई बिल्कुल भी न करते थे। 

 

लेखक के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Narrator)

  1. लेखक पढ़ाई में कैसा था?
  2. लेखक का स्वभाव कैसा था? 
  3. बड़े भाई साहब ने लेखक को बाहर पतंग खेलते देख क्या सलाह दी? 

 

Bade Bhai Saheb Summary

मुंशी प्रेमचंद जी ने अपनी इस कृति में एक बड़े भाई के हृदय और विचारधारा को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किए हैं। बड़े भाई साहब नामक पाठ में दो भाइयों की कहानी है। इसमें एक बड़ा भाई है और एक छोटा। 

बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई से कुछ ही साल बड़े हैं लेकिन वह अपने छोटे भाई के लिए एक मिसाल तैयार करना चाहते हैं इसीलिए वह दिन रात पढ़ाई करते हैं तथा छोटा भाई बिल्कुल भी पढ़ाई नहीं करता और दिन भर खेलता है लेकिन वह हर साल परीक्षा पास कर लेता है और धीरे-धीरे करके बड़े भाई साहब के दर्जे तक आ जाता है।

बड़े भाई साहब उसको खूब समझाते हैं तथा डांटते भी हैं इससे छोटा भाई जोश में आकर टाइम टेबल भी बना लेता है लेकिन कभी भी उसका पालन नहीं करता है। 

छोटा भाई एक एक दर्जा पास करके बड़े भाई साहब के दर्जे से सिर्फ एक दर्जा पीछे था इससे वह अब बिलकुल भी पढ़ाई नहीं करता और पतंगबाजी करने लगा। एक दिन पतंगबाजी करते-करते उसको बड़े भाई साहब ने पकड़ लिया और खूब खरी खोटी सुनाते हुए बोले की समझ किताबों को रटने से नहीं आती बल्कि दुनिया को समझने से आती है आज अगर तुम किताबों को रटने से ही पास हो जाओगे तो बाद में तुम दुनियादारी में काफी पीछे रह जाओगे। 

ऐसे ही खरी खोटी सुनने के बावजूद भी छोटा भाई उनसे जबान नहीं लड़ाई और सर नीचे करके खड़ा रहा। आज उसको समझ में आया है कि भले ही वह दर्जे में अपने बड़े भाई से एक ही दर्जा पीछे हो लेकिन वह हमेशा उनसे छोटा ही रहेगा तथा समझ के दर्जे में भी छोटा रहेगा। 

उसने नम आंखों से अपने बड़े भाई साहब को देखा। अपने छोटे भाई की नम आंखों को देखकर बड़े भाई साहब भी समझ गए और उसको खुश करने हेतु उसके साथ मिलकर पतंग उड़ाने लगे। 

 

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