CBSE Class 10 Hindi Chapter 2 Saana Saana Hath Jodi (साना-साना हाथ जोड़ी) Question Answers (Important) from Kritika Book
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Class 10 Hindi Saana Saana Hath Jodi Textbook Based Questions and Answers (पाठ्यपुस्तक पर आधारित प्रश्नोत्तर)
प्रश्न 1 – झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर – झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका के मन को सम्मोहित कर रहा था। लेखिका गैंगटॉक की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर बहुत हैरान थी उन्हें ऐसा लगा रहा था जैसे आसमान उलटा हो गया हो और सारे तारे बिखरकर नीचे टिमटिमा रहे हों। दूर पहाड़ के आस-पास के समतल मैदानी भू-भाग पर सितारों के गुच्छे रोशनियों की एक झालर-सी बना रहे थे। लेखिका को यह सब समझ में नहीं आ रहा था। लेखिका जो दृश्य देख रही थी वह रात में जगमगाता गैंगटॉक शहर था। लेखिका ने पाया कि इतिहास और वर्तमान के संधि-स्थल पर खड़ा परिश्रमी बादशाहों का वह एक ऐसा शहर था जिसका सब कुछ सुंदर था। चाहे वह वहां की सुबह हो , शाम हो या रात हो। और वह रहस्य से भरी हुई सितारों भरी रात लेखिका के मन को इस तरह मुग्ध कर रही थी, कि उन जादू भरे क्षणों में लेखिका को अपना सब कुछ ठहरा हुआ प्रतीत हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे लेखिका की बुद्धि, स्मृति और आस-पास का सब कुछ व्यर्थ है।उसके भीतर-बाहर जैसे एक शून्य-सा व्याप्त हो गया था।
प्रश्न 2 – गंतोक को ‘मेहनकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया?
उत्तर – गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ इसलिए कहा क्योंकि यह पर रहने वाला हर व्यक्ति चाहें वह बच्चा हो या बूढ़ा हो, पुरुष हो या महिला हो हर कोई कड़ी मेहनत करके अपना गुजारा चलाते हैं। गंतोक एक ऐसा पर्वतीय स्थल है जिसे वहाँ के मेहनतकश लोगों ने अपनी मेहनत से रहने योग्य बना दिया है। यहाँ बड़े बड़े पहाड़ों को काटकर लोग रास्ते बनाते हैं, बच्चे सुबह-सुबह तीन-चार किलोमीटर पहाड़ों की चढ़ाई करके स्कूल जाते हैं फिर घर आने के बाद घर के कामों में अपने माता-पिता का हाथ बटाते हैं। यहां के लोगों ने अपनी मेहनत से यहाँ जीवन जीना शहर से भी खूबसूरत बना रखा हैं।
प्रश्न 3 – कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर – लेखिका व् उनकी टीम पहाड़ी रास्तों पर जब आगे बढ़ने लगे तो उन्हें एक जगह दिखाई दी जहाँ एक पंक्ति में सफेद-सफेद बौद्ध पताकाएँ लगी हुई थी। ये पताकायें किसी ध्वज की तरह लहरा रही थी। शांति और अहिंसा की प्रतीक इन पताकाओं पर मंत्र लिखे हुए थे। कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है। जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ सफेद पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। और इन्हें कभी उतारा नहीं जाता है, ये धीरे-धीरे अपने आप ही नष्ट हो जाती हैं। कभी कबार किसी नए कार्य की शुरुआत में भी ये पताकाएँ लगा दी जाती हैं केवल अंतर् इतना होता है कि वे रंगीन होती हैं।
प्रश्न 4 – जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।
उत्तर – जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं –
- सिक्किम में गंतोक से लेकर यूमथांग तक घाटियों के सारे रास्ते हिमालय की अत्यधिक गहरी घाटियों और अत्यधिक घनी फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी।
- शांत और अहिंसा के मंत्र लिखी पताकाएँ पहाड़ी रास्तों पर फहराई बुद्धिस्ट की मृत्यु व नए कार्य की शुरूआत पर फहराई जाती हैं शां
- जब यहाँ किसी बुद्ध के अनुयायी की मौत होती है तो श्वेत पताकाएँ लगाई जाती हैं। इनकी संख्या 108 होती हैं।
- रंगीन पताकाएँ किस नए कार्य के शुरू होने पर लगाई जाती हैं।
- यहाँ के प्रसिद्ध स्थल कवी-लोंग-स्टॉक- में ‘गाइड’ फिल्म की शूटिंग हुई थी।
- यहाँ धर्मचक्र अर्थात् प्रेअर व्हील भी हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।
- यह पहाड़ी इलाका है। यहाँ के लोग मेहनतकश लोग हैं व जीवन काफी मुश्किलों भरा है। यही कारण है कि यहाँ कोई भी चिकना-चर्बीला आदमी नहीं मिलता है।
- यहाँ की युवतियाँ बोकु नाम का सिक्किम परिधान डालती हैं। जिसमें उनके सौंदर्य की छटा निराली होती है।
- यहाँ के घर, घाटियों में ताश के घरों की तरह पेड़ के बीच छोटे-छोटे होते हैं।
- बच्चों को लगभग 3 किलोमीटर चढाई करके पढ़ाई के लिए जाना पड़ता है क्योंकि दूर-दूर तक कोई स्कूल नहीं है।
- नार्गे ने उत्साहित होकर ‘कटाओ’ के बारे में बताया कि ‘कटाओ हिंदुस्तान का स्विट्जरलैंड है।”
प्रश्न 5 – लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर – लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका ने उसके बारे में पूछा तो पता चला कि यह धर्म-चक्र है। इसे प्रेयर व्हील भी कहा जाता है। इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका को यह सुन कर एक बात समझ में आई कि चाहे मैदान हो या पहाड़, सभी वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद इस देश की आत्मा एक जैसी। लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की अवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक जैसी ही हैं।
प्रश्न 6 – जितने नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?
उत्तर – जितेन नार्गे लेखिका का ड्राइवर कम गाइड था। वह नेपाल से कुछ दिन पहले आया था जिसे नेपाल और सिक्किम की अच्छी जानकारी थी। वह सिक्किम व् उसके क्षेत्र-से अच्छी तरह परिचित था। वह ड्राइवर के साथ-साथ गाइड का कार्य कर रहा था। उसमें प्रायः गाइड के वे सभी गुण विद्यमान थे जो एक अच्छे गाइड में होने चाहिए। जैसे-
एक कुशल गाईड में उस स्थान की भौगोलिक, प्राकृतिक और सामाजिक जानकारी होनी चाहिए, जो नार्गे में उचित रूप से विध्यमान थी।
एक कुशल गाईड को इस बात की अच्छे से जानकारी होनी चाहिए कि कहाँ रुकना है? यह निर्णय करने में वह स्वयं ही समर्थ होना चाहिए। उसे कुछ सलाह देने की आवश्यकता नहीं होनो चाहिए।
गाइड में सैलानियों को प्रभावित करने की रोचक शैली होनी चाहिए ।
एक सुयोग्य गाइड क्षेत्र के जन-जीवन की गतिविधियों की भी जानकारी रखता है और संवेदनशील भी होता है।
कुशल गाईड की वाणी प्रभावशाली होनी चाहिए। ताकि वह अपनी वाक्पटुता से पर्यटन स्थलों के प्रति जिज्ञासा बनाए रख सके।
कुशल गाईड को इतना सक्षम होना चाहिए कि वह भ्र्मणकर्ताओं के सभी प्रश्नों के उत्तर दे सकें।
प्रश्न 7 – इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के पल-पल परिवर्तित होते रूप को देखा। गैंगटॉक के होटल की बालकनी से उसे हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी कंचनजंघा दिखाई देती परन्तु मौसम की खराबी के कारण वह उसके दर्शन नहीं कर पाईं। पर चारों तरफ़ उसे तरह−तरह के रंग−बिरंगे फूल ही फूल दिखे जिसने उसे मोहित कर लिया। जैसे-जैसे लेखिका अपनी यात्रा में आगे बढ़ रही थी पहाड़ की ऊंचाई भी बढ़ने लगी। ऊँचाई के कारण बाजार , लोग , बस्तियां सब पीछे छूटने लगे। और ऊँचाई के कारण अब लेखिका को नीचे घाटियों में पेड़ पौधों के बीच बने छोटे-छोटे घर, ताश के पत्तों से बने घरों की तरह प्रतीत हो रहे थे। हिमालय का विराट व वैभवशाली रूप धीरे-धीरे लेखिका के सामने आने लगा था। अब लेखिका को हिमालय पल-पल बदलता हुआ नजर आ रहा था। क्योंकि लेखिका को अब हिमालय के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे, आसमान छूते पर्वत शिखर, ऊंचाई से झर-झर गिरते जलप्रपात, नीचे पूरे वेग से बहती चांदी की तरह चमकती तीस्ता नदी को देखकर अंदर ही अंदर अत्यंत ख़ुशी महसूस हो रही थी। लेखिका को पर्वत , झरने , घाटियों , वादियों के ऐसे दुर्लभ नजारे पहली बार देखने को मिल रहे थे और उन्हें सभी कुछ बेहद खूबसूरत लग रहा था। जगह-जगह चेतावनियाँ भी लिखी गई थी और कहीं – कहीं कुछ श्लोगन भी लिखे गए थे। लेखिका को सब कुछ कल्पनाओं से भी ज्यादा अद्धभुत लग रहा था।
प्रश्न 8 – प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर – प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को पहली बार अहसास हुआ कि यही चलायमान सौंदर्य जीवन का आनंद है। जैसे-जैसे लेखिका का सफर आगे बढ़ रहा था, प्राकृतिक दृश्य पल पल बदलते जा रहे थे और उनको ऐसे बदलता देख कर लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे कोई जादू की छड़ी घुमा कर इन दृश्यों को बदल रहा हो। लेखिका को पर्वत , झरने , घाटियों , वादियों के ऐसे दुर्लभ नजारे पहली बार देखने को मिल रहे थे और उन्हें सभी कुछ बेहद खूबसूरत लग रहा था। प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को असीम आत्मीय सुख की अनुभूति होती है। आगे लेखिका की जीप “सेवेन सिस्टर्स वॉटरफॉल” पर रूक गई। उस पानी को अपनी अंजनी में भर कर लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे उसने संकल्प कर अपने अंदर की सारी बुराइयों व दुष्ट वासनायों को इस झरने के निर्मल धारा में बहा दिया हों। यह सब लेखिका के मन व आत्मा को शांति देने वाला था। विशालकाय पर्वतों के बीच और घाटियों के ऊपर बने तंग कच्चे-पक्के रास्तों से गुज़रते हुए लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे वे किसी घनी हरियाली वाली गुफा के बीच हिलते-ढुलते निकल रहे हों। लेखिका खामोश थी। वह किसी ऋषि की तरह शांत बैठी हुई थी। इसका कारण यह था कि लेखिका अपने चारों और की प्राकृतिक सुंदरता को अपने अंदर समाना चाहती थी। परन्तु लेखिका को अपने अंदर कुछ बूँद-बूँद पिघलने सा प्रतीत हो रहा था।
प्रश्न 9 – प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर – प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को सड़क बनाने के लिए पत्थर तोड़ती, सुंदर कोमलांगी पहाड़ी औरतों का दृश्य झकझोर गया। लेखिका ने सफ़र के दौरान कुछ पहाड़ी औरतों को कुदाल और हथौड़ी से पत्थर तोड़ते हुए देखा तो लेखिका उन्हें देख कर अचंभित हो गई। कुछ महिलाओं की पीठ में बड़ी सी टोकरिया थी जिनमें उनके छोटे बच्चे बैठे थे। इस दृश्य में लेखिका ने मातृत्व साधना और श्रम साधना का एक मिश्रित रूप देखा। लेखिका को पता चला कि ये महिलाएं पहाड़ी रास्तों को चौड़ा करने का काम कर रही है और यह बहुत ही खतरनाक काम होता है क्योंकि रास्तों को चौड़ा बनाने के लिए पहले डायनामाइट का प्रयोग किया जाता है और फिर ये महिलाएं उन रास्तों को चलने लायक बनाती हैं। यह विचार उसके मन को बार-बार झकझोर रहीं था कि नदी, फूलों, वादियों और झरनों के ऐसे स्वर्गिक सौंदर्य के बीच भूख, मौत, दैन्य और जिजीविषा के बीच जंग जारी है।
प्रश्न 10 – सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।
उत्तर – सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव कराने में निम्न लोगों का योगदान होता है –
वे सभी लोग जो सैलानियों की सुखद व्यवस्था में संलग्न होते हैं।
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव कराने में सबसे बड़ा हाथ एक कुशल गाइड का होता है। जो अपनी जानकारी व अनुभव से सैलानियों को प्रकृति व स्थान के दर्शन कराता है।
वहाँ के स्थानीय निवासियों व जन जीवन का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। उनके द्वारा ही खतरनाक घाटियों के सौंदर्य तक पहुंचने के लिए सुगम रास्तों का निर्माण किया जाता है और यदि ये ना हों तो वो स्थान नीरस व बेजान लगने लगते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण अपने मित्रों व सहयात्रियों का साथ पाकर यात्रा और भी रोमांचकारी व आनन्दमयी बन जाती है क्योंकि वे मस्ती भरा माहौल बनाए रखते हैं।
प्रश्न 11 – “कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर – किसी भी देश की आमजनता देश की आर्थिक प्रगति में बहुत अधिक अप्रत्यक्ष योगदान देती है। अप्रत्यक्ष इसलिए क्योंकि आम जनता जितना अधिक परिश्रम करती है उन्हें उसका आधा पारिश्रमिक भी नहीं दिया जाता। परन्तु फिर भी वे कठिन से कठिन काम को अपना कर्तव्य समझ कर पूरा व् निष्ठा से करते हैं। आम जनता के इस वर्ग में मज़दूर, ड्राइवर, बोझ उठाने वाले, फेरीवाले, कृषि कार्यों से जुड़े लोग इत्यादि आते हैं। उदाहरण के तौर पर अपनी यूमथांग की यात्रा में लेखिका ने देखा कि पहाड़ी मजदूर औरतें पत्थर तोड़कर पर्यटकों के आवागमन के लिए रास्ते बना रही हैं। इससे यहाँ पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी जिसका सीधा-सा असर देश की प्रगति पर पड़ेगा। इस रास्ते को बनाने के कार्य में कई मजदूर अपनी जान भी गवा देते हैं। इसी प्रकार प्रत्येक कार्यों में शामिल आम जनता राष्ट्र की प्रगति में अपना बहुमूल्य योगदान देते हैं।
प्रश्न 12 – आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।
उत्तर – आज की पीढ़ी प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रही है व् पहाड़ों पर प्रकृति की शोभा को नष्ट किया जा रहा कर रही है। वृक्षों को काटकर जंगलों को नष्ट किया जा रहा है। सुख-सुविधा के नाम पर पॉलिथिन का अधिक प्रयोग और वाहनों के द्वारा प्रतिदिन छोड़ा धुंआ पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ रहा है। हमारे कारखानों से निकलने वाले जल में खतरनाक कैमिकल व रसायन होते हैं जिसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। साथ में घरों से निकला दूषित जल भी नदियों में ही जाता है। जिसके कारण हमारी नदियाँ लगातार दूषित हो रही हैं। अब नदियों का जल पीने लायक नहीं रहा है। वनों की अन्धांधुध कटाई से मृदा का कटाव होने लगा है जो बाढ़ को आमंत्रित कर रहा है। दूसरे अधिक पेड़ों की कटाई ने वातावरण में कार्बनडाइ आक्साइड की अधिकता बढ़ा दी है जिससे वायु प्रदुषित होती जा रही है। इन सभी के कारण मौसम में परिवर्तन आ रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। हमें चाहिए कि हम मिलकर इस समस्या का समाधान निकाले। हम सबको मिलकर अधिक से अधिक पेड़ों को लगाना चाहिए। पेड़ों को काटने से रोकने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए ताकि वातावरण शुद्ध बना रहे। हमें नादियों की निर्मलता व स्वच्छता को बनाए रखने के लिए कारखानों से निकलने वाले प्रदूर्षित जल को नदियों में डालने से रोकना चाहिए तथा इसका उचित रूप से निपटारा करना चाहिए। लोगों की जागरूकता के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन होना चाहिए।
प्रश्न 13 – प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है? प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
उत्तर – लेखिका को उम्मीद थी कि उसे लायुग में बर्फ देखने को मिल जाएगी, लेकिन एक सिक्कमी युवक ने बताया कि प्रदूषण के कारण स्नोफॉल कम हो गया है; अतः उन्हें 500 मीटर ऊपर कटाओ’ में ही बर्फ देखने को मिल सकेगी। प्रदूषण के कारण पर्यावरण में अनेक परिवर्तन आ रहे हैं। स्नोफॉल की कमी के कारण नदियों में जल-प्रवाह की मात्रा भी दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। परिणामस्वरूप पीने योग्य जल में भी कमी दर्ज की गई है। प्रदूषण के कारण ही वायु, भूमि भी प्रदूषित हो रही है। अनेक रोगों का कारण भी प्रदूषण ही है जैसे महानगरों में साँस लेने के लिए ताजा हवा का मिलना भी मुश्किल हो रहा है। साँस संबंधी रोगों के साथ-साथ कैंसर तथा उच्च रक्तचाप की बीमारियाँ बढ़ रही हैं। ध्वनि प्रदूषण मानसिक अस्थिरता, बहरेपन तथा अनिद्रा जैसे रोगों का कारण बन रहा है।
प्रश्न 14 – ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए?
उत्तर – ‘कटाओ’ को अपनी स्वच्छता और सुंदरता के कारण हिंदुस्तान का स्विट्जरलैंड कहा जाता है या यह कहना गलत नहीं होगा कि कटाओ, स्विट्जरलैंड से भी अधिक सुंदर है। यह सुंदरता आज इसलिए विद्यमान है कि यहाँ कोई दुकान आदि नहीं है। यदि यहाँ भी दुकानें खुल जाएँ, व्यवसायीकरण हो जाए तो इस स्थान की सुंदरता जाती रहेगी, इसलिए कटाओं में दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। ‘कटाओ’ में दुकान न होने से व्यवसायीकरण नहीं हुआ है जिससे आने-जाने वाले लोगों की संख्या सीमित रहती है, जिससे यहाँ की सुंदरता बची है। जैसे दुकानें आदि खुल जाने से अन्य पवित्र स्थानों की सुंदरता जाती रही है वैसे ही दुकानों के खुल जाने से कटाओ की सुंदरता भी मटमैली हो जाएगी।
प्रश्न 15 – प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर – प्रकृति ने जल-संचय की बड़ी अद्भुत व्यवस्था की है। प्रकृति, सर्दियों के समय में पहाड़ों पर बर्फ बरसा देती है और जब गर्मी शुरू हो जाती है तो उस बर्फ को पिघला कर नदियों को जल से भर देती है। जिससे गर्मी से व्याकुल लोगों को गर्मियों में जल की कमी नही होती। यदि प्रकृति ने बर्फ के माध्यम से जल संचय की व्यवस्था ना की होती तो हमारे जीवन के लिए आवश्यक जल की आपूर्ति सम्भव नहीं थी। प्रकृति सर्दियों में पर्वत शिखरों पर बर्फ के रूप में गिरकर जल का भंडारण करती है। जो गर्मियों में जलधारा बनकर प्यास बुझाते हैं। नदियों के रूप में बहती यह जलधारा अपने किनारे बसे नगर-गाँवों में जल-संसाधन के रूप में तथा नहरों के द्वारा एक विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई करती हैं और अंततः सागर में जाकर मिल जाती हैं। सागर से जलवाष्प बादल के रूप में उड़ते हैं, जो मैदानी क्षेत्रों में वर्षा तथा पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ के रूप में बरसते हैं। इस प्रकार ‘जल-चक्र’ द्वारा प्रकृति ने जल-संचयन तथा वितरण की व्यवस्था की है।
प्रश्न 16 – देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
उत्तर – देश की सीमाओं पर बैठे फौजी उन सभी कठिनाइयों में जूझते हैं जो सामान्य जीवन जीने वाले व्यक्ति उम्मीद भी नहीं कर सकते। कड़कड़ाती ठंड जहाँ तापमान माइनस में चला जौता है, जहाँ पेट्रोल को छोड़ सब कुछ जम जाता है, वहाँ भी फौजी तैनाते रहते हैं और हम आराम से अपने घरों पर बैठे रहते हैं। इसी तरह वे शरीर को तपा देने वाली गर्मियों के दिनों में रेगिस्तान जैसी जगहों पर भी अनेक विषमताओं से जूझते हुए कठिनाइयों का सामना करते हैं। कभी सघन जंगलों में, बरसात में भीगते हुए, खतरनाक जानवरों का सामना कर हमें सुरक्षित जीवन जीने का अवसर देते हैं।
हमें चाहिए कि हम उनके व उनके परिवार वालों के प्रति सदैव सम्माननीय व्यवहार करें। जिस तरह वह अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हैं, हमें उनके परिवार वालों का ध्यान रख उसी तरह अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। सदैव उनको अपने से पहले प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि एक फौजी भी हमारी सुरक्षा को सबसे पहले प्राथमिकता देता है फिर चाहे उसे अपनी जान का दाव ही क्यों न खेलना पड़े।
Class 10 Hindi Saana Saana Hath Jodi Extra Question Answers (अतिरिक्त प्रश्न उत्तर)
प्रश्न 1 – लेखिका गैंगटॉक की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर क्यों अचंभित थी?
उत्तर – लेखिका गैंगटॉक की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर बहुत हैरान थी उन्हें ऐसा लगा रहा था जैसे आसमान उलटा हो गया हो और सारे तारे बिखरकर नीचे टिमटिमा रहे हों। दूर पहाड़ के आस-पास के समतल मैदानी भू-भाग पर सितारों के गुच्छे रोशनियों की एक झालर के लग रहे थे। लेखिका को यह सब समझ में नहीं आ रहा था। लेखिका जो दृश्य देख रही थी वह रात में जगमगाता गैंगटॉक शहर था। लेखिका ने पाया कि इतिहास और वर्तमान के संधि-स्थल पर खड़ा परिश्रमी बादशाहों का वह एक ऐसा शहर था जिसका सब कुछ सुंदर था। चाहे वह वहां की सुबह हो , शाम हो या रात हो। और वह रहस्य से भरी हुई सितारों भरी रात लेखिका के मन को इस तरह मुग्ध कर रही थी, कि उन जादू भरे क्षणों में लेखिका को अपना सब कुछ ठहरा हुआ प्रतीत हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे लेखिका की बुद्धि, स्मृति और आस-पास का सब कुछ व्यर्थ है।
प्रश्न 2 – लेखिका सुबह होते ही बालकनी की तरफ क्यों भागी?
उत्तर – लेखिका और उनकी टीम को सुबह यूमथांग के लिए निकलना था, पर सुबह जैसे ही लेखिका की आँख खुली वह बालकनी की तरफ भागी। क्योंकि यहाँ के लोगों ने लेखिका को बताया था कि यदि मौसम साफ हो तो बालकनी से भी हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी कंचनजंघा को देखा जा सकता है। परन्तु मौसम अच्छा होने के बावजूद भी आसमान हलके-हलके बादलों से ढका हुआ था और पिछले वर्ष की ही तरह इस बार भी बादलों के दरवाजे ठाकुर जी के दरवाजों की तरह बंद ही रहे। कंचनजंघा न दिखनी थी, न दिखी। परन्तु सामने ही तरह-तरह के रंग-बिरंगे इतने सारे फूल दिखाई पड़े कि लेखिका को लगा जैसे वह किसी फूलों के बाग में आ गई हो।
प्रश्न 3 – बौद्ध पताकाओं के बारे में लेखिका को गाइड ने क्या जानकारी दी?
उत्तर – जगह-जगह गदराए पाईन और धूपी के खूबसूरत नुकीले पेड़ों का निरिक्षण लेते हुए लेखिका व् उनकी टीम पहाड़ी रास्तों पर जब आगे बढ़ने लगे तो उन्हें एक जगह दिखाई दी जहाँ एक पंक्ति में सफेद-सफेद बौद्ध पताकाएँ लगी हुई थी। ये पताकायें किसी ध्वज की तरह लहरा रही थी। शांति और अहिंसा की प्रतीक इन पताकाओं पर मंत्र लिखे हुए थे। लेखिका के पूछने पर नार्गे ने बताया कि यहाँ बुद्ध की बड़ी मान्यता है। उसने यह भी बताया कि जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ सफेद पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। और इन्हें कभी उतारा नहीं जाता है, ये धीरे-धीरे अपने आप ही नष्ट हो जाती हैं। कभी कबार किसी नए कार्य की शुरुआत में भी ये पताकाएँ लगा दी जाती हैं केवल अंतर् इतना होता है कि वे रंगीन होती हैं।
प्रश्न 4 – धर्म चक्र अथवा प्रेयर व्हील के बारे में जान कर लेखिका को क्या महसूस हुआ?
उत्तर – लेखिका ने देखा कि एक कुटिया के भीतर एक घूमता चक्र था। उसके बारे में जब लेखिका ने नार्गे से पूछा तो वह कहने लगा कि मैडम यह धर्म चक्र है। इसे प्रेयर व्हील भी कहा जाता है। इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका को यह सुन कर एक बात समझ में आई कि चाहे मैदान हो या पहाड़, सभी वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद इस देश की आत्मा एक जैसी। लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की अवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक जैसी ही हैं।
प्रश्न 5 – ऊँचाई पर जाते हुए लेखिका को क्या-क्या परिवर्तन दिखाई दिए?
उत्तर – धीरे-धीरे जैसे-जैसे लेखिका और उनकी टीम और ऊँचाई की ओर बढ़ने लगे। बाजार, लोग और बस्तियाँ पीछे छूटने लगे। अब चारों ओर दिखने वाला दृश्य से चलते-चलते स्वेटर बुनती नेपाली युवतियाँ और पीठ पर भारी-भरकम कार्टून ढोते बौने से दिखते बहादुर नेपाली गायब हो रहे थे। कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ रही थी वैसे-वैसे बाजार, लोग और बस्तियाँ दिखने बंद हो रहे थे। ऊँचाई पर से अब नीचे देखने पर लेखिका को घाटियों में ताश के घरों की तरह पेड़-पौधों के बीच छोटे-छोटे घर दिखाई दे रहे थे। जैसे दूर से हिमालय छोटी-छोटी पहाड़ियों के रूप में दिखाई देता था, अब वह छोटी-छोटी पहाड़ियों के रूप में नहीं बल्कि अपने विशाल रूप एवं समृद्धि के साथ लेखिका के सामने आने वाला था। जैसे-जैसे लेखिका और उनकी टीम और ऊँचाई में जाते जा रहे थे उनके रास्ते सुनसान, तंग और जलेबी की तरह घुमावदार होने लगे थे। हिमालय बड़ा होते-होते अत्यधिक विशालकाय होने लगा। घटाएँ इतनी गहरी होती जा रही थी कि लग रहा था जैसे वह पाताल नाप रही हों। वादियाँ चौड़ी होती जा रही थी। बीच-बीच में किसी चमत्कार की तरह रंग-बिरंगे फूल प्रबलता से मुस्कुराते हुए लग रहे थे। हिमालय में हर पल मौसम और परिस्तिथियाँ बदलती रहती हैं और दर्शकों, यात्रियों और तीर्थाटानियों को इसमें रोमांच मिलता है।
प्रश्न 6 – लेखिका यात्रा के दौरान क्यों शांत थी?
उत्तर – उन विशालकाय पर्वतों के बीच और घाटियों के ऊपर बने तंग कच्चे-पक्के रास्तों से गुज़रते हुए लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे वे किसी घनी हरियाली वाली गुफा के बीच हिलते-ढुलते निकल रहे हों। इस बिखरी हुई बेहद सुंदरता का मन पर यह प्रभाव पड़ा कि सभी घूमने आए हुए यात्री झूम-झूमकर गाना गाने लगे-“सुहाना सफर और ये मौसम हँसी…।” परन्तु लेखिका खामोश थी। वह किसी ऋषि की तरह शांत बैठी हुई थी। इसका कारण यह था कि लेखिका अपने चारों और की प्राकृतिक सुंदरता को अपने अंदर समाना चाहती थी।
प्रश्न 7 – लेखिका को किन दृश्यों को देखकर लगा कि ब्रह्माण्ड में बहुत कुछ घटित हो रहा है?
उत्तर – सफ़र में लेखिका की आँखों और आत्मा को सुख देने वाले अनेक नज़ारे दिखे। कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े, तो कहीं हलका पीलापन लिए, तो कहीं पलस्तर उखड़ी दीवार की तरह पथरीला और देखते ही देखते चारों ओर दिखने वाले मनमोहक दृश्य ऐसे छू-मंतर हो गए जैसे किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो। सब पर बादलों की एक मोटी चादर छा गई। सब जगह केवल बादल ही बादल। उन पर्वत, झरने, फूलों, घाटियों और वादियों के दुर्लभ नजारे देख कर लग रहा था जैसे वे अपने आप को समर्पित किए हुए हो। वहीं पर कहीं श्लोगन लिखा था ‘थिंक ग्रीन।’ लेखिका को सोच कर आश्चर्य हो रहा था कि पलभर में ब्रह्मांड में कितना कुछ घटित हो रहा था। हर पल बहने वाले झरने, नीचे वेग से बहती तिस्ता नदी। सामने उठती धुंध। ऊपर मँडराते आवारा बादल। धीरे-धीरे हवा में हिलोरे लेते प्रियुता और रूडोडेंड्रो के फूल। सब अपनी-अपनी लय तान और प्रवाह में बहते हुए। लेखिका को पहली बार अहसास हुआ कि जीवन का आनंद इसी हमेशा चलते रहने वाले सौंदर्य में है।
प्रश्न 8 – प्राकृतिक सुंदरता के बीच लेखिका को किस दृध्य को देखकर झटका लगा?
उत्तर – प्राकृतिक सौंदर्य में डूबी लेखिका आधी नींद की अवस्था में थोड़ी दूर तक निकल आई थी कि अचानक उनके पाँवों पर मानो ब्रेक सी लगी जैसे अपना सब कुछ भूल कर नृत्य करती अपने में ही मस्त हुई नृत्यांगना के घुंघरू अचानक टूट गए हों। लेखिका ने देखा कि प्रकृति के इस अद्वितीय सौंदर्य से बिलकुल अलग कुछ पहाड़ी औरतें पत्थरों पर बैठीं पत्थर तोड़ रही थीं। गुँथे आटे के समान कोमल शरीर और हाथों में कुदाल और हथौड़े। कई औरतों की पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे हुए थे। कुछ औरतें कुदाल को अपनी पूरी ताकत के साथ ज़मीन पर मार रही थीं। इतने सुंदर स्वर्ग के समान सौंदर्य, नदी, फूलों, वादियों और झरनों के बीच भूख, मौत, दैन्य और जिन्दा रहने की यह जंग देखकर लेखिका आश्चर्यचकित थी। लेखिका मातृत्व और श्रम साधना का यह दृश्य एक साथ देख रही थी।
प्रश्न 9 – चाय के बागानों में काम करती युवतियों का वर्णन लेखिका ने किस प्रकार किया है?
उत्तर – संध्या में अब लेखिका की जीप चाय के बागानों से होकर गुज़र रही थी कि फिर एक दृश्य ने लेखिका को अपनी और आकर्षित किया। नीचे चाय के हरे-भरे बागानों में कई युवतियाँ बोकु अर्थात सिक्किमी परिधान पहन कर चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। उनका यौवन किसी नदी में उफान लेता हुआ प्रतीत हो रहा था और मेहनत से उनका गुलाबी चेहरा चमक रहा था। उनमें से एक युवती ने चटक लाल रंग का बोकु पहन रखा था। घनी हरियाली के बीच वह चटक लाल रंग डूबते सूरज की सोने जैसी और सात्विक चमक में कुछ इस तरह इंद्रधनुषी छटा बिखेर रहा था। लेखिका पहली बार इतना अधिक प्राकृतिक सौंदर्य देख रही थी जिस पर वह विश्वास नहीं कर पा रही थी।
प्रश्न 10 – लायुंग की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन अपने शब्दों में करें?
उत्तर – यूमथांग पहुँचने के लिए लेखिका को रात भर लायुंग में डेरा डालना था। आसमान को छूने वाले पहाड़ों के नीचे समतल जगह में साँस लेती एक छोटी-सी शांत बस्ती थी – लायुंग। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सारी दौड़-धूप से दूर जिंदगी जहाँ निश्चिन्त होकर सो रही थी। लेखिका और उनके साथी लायुंग में ही ठहरे थे। तिस्ता नदी के किनारे पर बसे लकड़ी के एक छोटे-से घर में लेखिका और उनके साथी ठहरे हुए थे। लेखिका मुँह-हाथ धोकर तुरंत ही तिस्ता नदी के किनारे बिखरे पत्थरों पर बैठ गई थी। उसके सामने बहुत ऊपर से बहता झरना नीचे कल-कल बहती तिस्ता नदी में मिल रहा था। धीमी, हलकी हवा बह रही थी। पेड़-पौधे झूम रहे थे। चाँद को गहरे बादलों की परत ने ढक रखा था। बाहर से पक्षी और लोग अपने घरों को लौट रहे थे। वातावरण में अद्भुत शांति फैली हुई थी। मंदिर की घंटियों की ध्वनि ऐसी लग रही थी जैसे घुँघरुओं की रुनझुनाहट हो रही हो। ऐसा मनमोहक दृश्य देखकर लेखिका की आँखें स्वतः ही भर आईं थी। लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे उनके अंदर ज्ञान का नन्हा-सा बोधिसत्व उगने लगा हो। वहाँ लेखिका को सुख शांति और सुकून मिल रहा था।
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