Character Sketch of Pahalwan ki Dholak

 

लेखक (फणीश्वर नाथ रेणु)और पहलवान लुट्टन सिंहका चरित्र-चित्रण | Character Sketch of the Writer (Phanishwar Nath Renu) and Pahalwan Luttan Singh from CBSE Class 12 Hindi Chapter 13 पहलवान की ढोलक

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लेखक (फणीश्वर नाथ रेणु) का चरित्र-चित्रण | (Character Sketch of  the Writer)

पहलवान की ढोलककहानी के लेखकफणीश्वर नाथ रेणु जीहैं। फणीश्वर नाथ रेणु जी की कलम में अपने गाँव, अंचल एवं संस्कृति को सजीव करने की अद्भुत क्षमता है।

  • लेखक के कलम में पात्रों को सजीव करने की क्षमता है लेखक की रचना में ऐसा प्रतीत होता है जैसे हर एक पात्र वास्तविक जीवन ही जी रहा हो। पात्रों एवं उसके आसपास के वातावरण का इतना सच्चा चित्रण बहुत कम देखने को मिलता है। रेणु वैसे गिनेचुने कथाकारों में से हैं जिन्होंने गद्य में भी संगीत पैदा कर दिया है, नहीं तो ढोलक की उठतीगिरती आवाज़  और पहलवान के क्रियाकलापों का ऐसा सामंजस्य दुर्लभ है।

 

लेखक (फणीश्वर नाथ रेणु) के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of the Writer)

प्रश्न 1 – लेखक ने कहानी में किसका जिक्र किया है? और उस पात्र से क्या सीख मिलती है?

 

पहलवान लुट्टन सिंह का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of  Pahalwan Luttan Singh)

लोगों की निराशा को आशा में बदलने की कोशिश करने वालारात की खमोशी को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही तोड़ती थी। पहलवान की ढोलक संध्याकाल से लेकर प्रात:काल तक लगातार एक ही गति से बजती रहती थी और गाँव में फैली महामारी से होने वाली मौतों को चुनौती देती रहती थी। ढोलक की आवाज निराश, हताश, कमजोर और अपनों को खो चुके लोगों में संजीवनी भरने का काम करती थी।

  • कठिनाइयों भरा जीवन लुट्टन सिंह जब नौ साल का था तब उसके मातापिता का देहांत हो चुका था। सौभाग्य से उसकी शादी पहले ही हो गयी थी। वरना उम्र छोटी होने के कारण वह भी शायद अपने मातापिता की तरह मृत्यु को प्राप्त करता। उसकी विधवा सास ने ही उसको पाल पोस कर बड़ा किया। वह बचपन में गाय चराता, खूब दूधदही खाता और कसरत करता था। गांव के लोग उसकी सास को परेशान करते थे जो उसे अच्छा नहीं लगता था। इसीलिए उसने गांव के लोगों से बदला लेने के लिए ही पहलवान बनने की ठानी थी। और युवावस्था तक आते आते वह अच्छा खासा पहलवान बन गया था। उसने कुश्ती के दाँव पेंच भी सीख लिए थे।
  • बहादुर एक बार लुट्टन सिंह श्याम नगर मेले में दंगल देखने गया। वहाँ कुश्ती देखकर और ढोल की आवाज सुनकर उसकी नसों में जैसे खून बिजली की तरह दौड़ने लगा और उसने बिना सोचे समझे वहाँ चाँद सिंह नाम के एक पहलवान को चुनौती दे दी। लुट्टन सिंह की चुनौती चाँद सिंह ने स्वीकार कर ली लेकिन जब लुट्टन सिंह चाँद सिंह से भिड़ा तो चाँद सिंह बाज की तरह लुट्टन से भिड़ गया और उसने पहली बार में ही लुट्टन को जमीन में पटक दिया। लेकिन लुट्टन सिंह उठ खड़ा हुआ और दुबारा दंगल शुरू हुआ। इस बार लुट्टन सिंह ने सभी की उम्मीदों के विपरीत चांद सिंह को चित कर दिया। उसने इस पूरी कुश्ती में ढोल को अपना गुरु मानते हुए उसके स्वरों के हिसाब से ही दांवपेंच लगाया और कुश्ती जीत ली।
  • लुट्टन सिंह ढोलक को ही अपना गुरु मानता था लुट्टन सिंह ने हमेशा से ही ढोलक को ही अपना गुरु माना था इसीलिए अपने दोनों बेटों को भी ढोलक की थाप में पूरा ध्यान देने को कहता था। उसने अपने दोनों बेटों को भी अपनी ही तरह पहलवान बना दिया था।
  • हिम्मती लुट्टन सिंह की जिंदगी ठीकठाक चल रही थी। लेकिन राजा की मृत्यु के बाद उनके बेटे ने राज्य का भार संभाल लिया। नये राजा को कुश्ती में बिलकुल भी दिलचस्पी नहीं थी। और लुट्टन सिंह पर होने वाला खर्चा सुन कर उसने लुट्टन सिंह को राजदरबार से निकाल दिया। गाँव वालों ने उसकी मदद के लिए गाँव के एक छोर पर उसकी एक छोटी सी झोपड़ी बना दी और उसके खानेपीने का इंतजाम भी कर दिया। इसके बदले में वह गाँव के नौजवानों को पहलवानी सिखाने लगा। लेकिन यह सब ज्यादा दिनों तक नही चला क्योंकि गाँव के गरीब नौजवान पहलवानी करने के लिए पौष्टिक आहार आदि का खर्च नहीं उठा पाते थे। इसीलिए अब वह अपनी ढोलक की थाप पर अपने दोनों बेटों को ही कुश्ती सिखाया करता था। उसके बेटे दिन भर मजदूरी करते जिससे उनका गुजरबसर चलता और शाम को कुश्ती के दांव पेंच सीखते थे। 
  • साहसी यह पहलवान के साहस का ही प्रतीक है कि जब गांव के लोगों के साथसाथ उसके बेटों को भी हैजे और मलेरिया ने जकड़ लिया। तब पहलवान की ढोलक की आवाज ही लोगों को उनके जिंदा होने का एहसास दिलाती थी। वह उनके लिए संजीवनी का काम करती थी। पहलवान के दोनों बेटे भी बीमारी की चपेट में आकर मरने की स्थिति में पहुंच चुके थे और मरने से पहले वो अपने पिता से ढोलक बजाने को कहते हैं। लुट्टन सिंह रात भर ढोलक बजाता है और सुबह जाकर देखता है तो वो दोनों पेट के बल मरे पड़े थे। वह अपने दोनों बेटों को कंधे पर ले जाकर नदी में बहा देता हैं। लोगों का मनोबल टूटे इसके लिए वह उसी रात को फिर से ढोलक बजाता है। लोगों ने उसकी हिम्मत की दाद दी और साथ ही साथ खुद में भी एक ऊर्जा का अनुभव किया।

 

पहलवान लुट्टन सिंह के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Pahalwan Luttan Singh)

प्रश्न 1 – पहलवान की ढोलक लोगों को किस मुसीबत में साहस प्रदान करती थी?
प्रश्न 2 – लेखक ने गाँव के लोगों के दुःख को गाँव के वातावरण से किस प्रकार जोड़ा है?
प्रश्न 3 – पहलवान की ढोलक किस प्रकार लोगों में संजीवनी भरने का काम करती थी?
प्रश्न 4 – पहलवान का जीवन कठिनाइयों से भरा था। पाठ के आधार पर वर्णन कीजिए।
प्रश्न 5 – पहलवान अत्यंत बहादुर था। पाठ के किस अंश से स्पष्ट होता है?
प्रश्न 6 – पहलवान का गुरु कौन था?
प्रश्न 7 – राजा के संरक्षण और राजा की मृत्यु के बाद पहलवान के जीवन में आए अंतर का वर्णन करों।
प्रश्न 8 – बेटों की मृत्यु के बाद भी रात में पहलवान ढोलक क्यों बजाता रहा?
प्रश्न 9 – आपके अनुसार पहलवान ने क्यों कहा था कि जब वह मर जाए तो उसे पीठ के बल नहीं बल्कि पेट के बल चिता पर लिटाना और चिता जलाते वक्त ढोलक अवश्य बजाना।

 

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