CBSE Class 10 Hindi (Course A) Chapter-wise Previous Years Questions (2022) with Solution

 

Class 10 Hindi (Course B) Question Paper (2022) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 10th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 10 Hindi (Course A) question paper (2022).

 

Kshitij Bhag 2

 

Chapter 4 – Utsah Aur At Nahi Rahi Hai (लगभग 25-30 शब्दों में )

 

प्रश्न 1 – यदि ‘उत्साह’ कविता को कोई अन्य शीर्षक देना हो तो आप क्या शीर्षक देना चाहेंगे और क्यों ? (25 – 30 शब्दों में)

उत्तर – यदि “उत्साह” कविता को कोई अन्य शीर्षक देना हो, तो हम “नवजीवन की गर्जना” शीर्षक दे सकते हैं। क्योंकि कविता में बादलों की गर्जना को नई ऊर्जा, प्रेरणा और जीवन का प्रतीक माना गया है। बादलों की गर्जना से विकल और उन्मन जनों को शांति और ताजगी मिलती है। इसी कारण से “नवजीवन की गर्जना” शीर्षक कविता के मूल भाव और संदेश को पूरी तरह से व्यक्त करता है।

 

प्रश्न 2 – ‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर लिखिए कि ‘फागुन’ का व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है । (25 – 30 शब्दों में)

उत्तर – फागुन के समय प्रकृति अपने चरम सौंदर्य पर होती है और मस्ती से इठलाती है। फागुन के समय पेड़ हरियाली से भर जाते हैं और उन पर रंग-बिरंगे सुगन्धित फूल उग जाते हैं। इसी कारण जब हवा चलती है, तो फूलों की नशीली ख़ुशबू उसमें घुल जाती है। इस हवा में सारे लोगों पर भी मस्ती छा जाती है, वो काबू में नहीं कर पाते और मस्ती में झूमने लगते हैं।

 

प्रश्न 3 – ‘उत्साह’ कविता के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए । (25 – 30 शब्दों में)

उत्तर – कवि ने बादलों के रूप सौंदर्य का वर्णन अत्यधिक सुंदरता से किया है। कवि कहते हैं कि बादल सुंदर – सुंदर, काले घुंघराले अर्थात गोल – गोल छल्ले के आकार के समान हैं। बादल किसी छोटे बच्चे की कल्पना की तरह होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे छोटे बच्चों की कल्पनाएँ (इच्छाएँ) पल – पल बदलती रहती हैं तथा हर पल उनके मन में नई – नई बातें या कल्पनाएँ जन्म लेती हैं। ठीक उसी प्रकार बादल भी आकाश में हर पल अपना रूप यानि आकार बदलते रहते हैं।

 

प्रश्न 4 – ‘निराला’ ने ‘उत्साह’ कविता के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन के क्या संदेश दिए हैं ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए । (25 – 30 शब्दों में)

उत्तर – “उत्साह” कविता के माध्यम से निराला ने सामाजिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण संदेश दिया है। जैसे बादल वर्षा करके धरती को नया जीवन देते हैं, वैसे ही समाज में भी क्रान्ति के द्वारा परिवर्तन और नवचेतना की आवश्यकता है। कविता में बादल की गर्जना और वर्षा को समाज में बदलाव लाने वाले तत्व के रूप में प्रस्तुत किया गया है। समाज को भी नयी सोच, ऊर्जा और उत्साह की आवश्यकता है, ताकि वह भी उन्नति की ओर बढ़ सके। इस प्रकार, निराला ने सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता और उसकी प्रक्रिया को प्रेरणादायक ढंग से प्रस्तुत किया है।

 

प्रश्न 5 – प्रकृति के सौंदर्य का जो चित्र ‘अट नहीं रही है’ कविता उपस्थित करती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए। (25 – 30 शब्दों में)

उत्तर – कविता ‘अट नहीं रही है’ में कवि ने फागुन के सब ओर फैले सौन्दर्य और मन को मोहने वीले रूप के प्रभाव को दर्शाया है। फागुन के सौंदर्य का वर्णन अत्यधिक अद्धभुत तरीके से किया है। वसंत को घर – घर में फैला हुआ दिखाया है। यहाँ ‘घर – घर भर देते हो’ में फूलों की शोभा की ओर संकेत किया गया है और मन में उठी खुशी को भी दर्शाया गया है। ‘उड़ने को पर – पर करना’ भी ऐसा सांकेतिक प्रयोग है। यह पक्षियों की उड़ान पर भी लागू होता है और मन की उमंग पर भी। सौंदर्य से आँख न हटा पाना भी उसके विस्तार की झलक देता है। कवि ने पेड़ों पर आए नए पत्ते एवं फूलों का अद्धभुत सुंदरता से वर्णन किया है, फूलों से फैलने वाली मनमोहक सुगंध का, वृक्षों पर आए नए फलों का, आसमान में उड़ते हुए पक्षियों का, खेत – खलियान में आई हुई फसल का, चारों तरफ से फैली हुई हरियाली से लोगों में आए हुए उल्लास के माध्यम से प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किया है।

 

प्रश्न 6 – ‘अट नहीं रही है’ कविता में प्रकृति में परिवर्तन के जो दृश्य कवि को मंत्रमुग्ध कर रहे है उनका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए । (25 – 30 शब्दों में)

उत्तर – ‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन महीने के सौंदर्य का वर्णन है। इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य कहीं भी नहीं समा रहा है और धरती पर बाहर बिखर गया है। इस महीने सुगंधित हवाएँ वातावरण को महका रही हैं। इस समय प्रकृति अपने चरम सौंदर्य पर होती है और मस्ती से इठलाती है। पेड़ों पर आए लाल – हरे पत्ते और फूलों से यह सौंदर्य और भी बढ़ गया है। इससे मन में उमंगें उड़ान भरने लगी हैं। फागुन का सौंदर्य अन्य ऋतुओं और महीनों से बढ़कर होता है। इस समय चारों ओर हरियाली छा जाती है। खेतों में कुछ फसलें पकने को तैयार होती हैं। सरसों के पीले फूलों की चादर बिछ जाती है। लताएँ और डालियाँ रंग – बिरंगे फूलों से सज जाती हैं। प्राणियों का मन उल्लास से भर जाता है। ऐसा लगता है कि इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य छलक उठा है।

 

प्रश्न 7 – फागुन की सुंदरता में ऐसा अलग और अनोखा क्या है कि कवि की आँख उससे हट नहीं रही है ? ‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर बताइए । (25 – 30 शब्दों में)

उत्तर – कवि की आँख फागुन की सुंदरता से हट नहीं रही है , क्योंकि फागुन के महीने में प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फागुन बहुत मतवाला , मस्त और शोभाशाली है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। पेड़ों की डालियाँ पत्तों से भरी हुई हैं , पेड़ों पर फूल आ जाने से पेड़ कहीं हरे और कहीं लाल दिखाई दे रहे हैं , उनको देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने अपने हृदय पर फूलों की माला पहन राखी हों। फूलों की खुशबू भी पूरे वातावरण में फैल गई है। इसलिए कवि की आँखें फागुन की सुन्दरता से मंत्रमुग्ध होकर उससे हटाने से भी नहीं हटती।

 

प्रश्न 8 – इस सत्र में पढ़ी गई किस कविता में कवि ने बादलों के विविध रूपों का चित्रण किया है ? उनका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए । (25 – 30 शब्दों में)

उत्तर – इस सत्र में पढ़ी गई कविता ‘उत्साह’ में कवि ने बादलों के विविध रूपों का सुंदर चित्रण किया है। कहीं कवि ने बादलों को घोर गगन में लहराते और गरजते हुए दिखाया है। तो कहीं बादलों की ललित और काले घुँघराले बालों के रूप में वर्णित किया हैं। कवि ने बादलों को “नवजीवन वाले” भी कहा है, क्योंकि वे तपती धरती को ठंडक और शीतलता प्रदान करने धरती को नया जीवन प्रदान करते हैं। कवि ने बादलों को जीवन के नूतन स्रोत के रूप में भी चित्रित किया है।

 

प्रश्न 9 – ‘उत्साह’ कविता में बादल किनके प्रतीक हैं ? कविता के आधार पर दो बिंदुओं को लिखिए । (25 – 30 शब्दों में)

उत्तर – “उत्साह” कविता में बादलों को दो प्रतीकों का प्रतिनिधित्व करते दर्शाया गया है। पहला है नई ऊर्जा और प्रेरणा के रूप में। बादलों की गर्जना और बिजली को कवि नई कविताओं और जीवन में नए उत्साह का प्रतीक मानता है। दूसरा है शांति और ताजगी के रूप में। गर्मी और सूखे से व्याकुल धरती को बादल अपनी बारिश से शीतलता और ताजगी प्रदान करते हैं। इससे धरती और लोग पुनः जीवन्त हो जाते हैं और प्रकृति में नई स्फूर्ति और शांति का संचार होता है।

 

प्रश्न 10 – ‘अट नहीं रही है’ कविता के शीर्षक की सार्थकता तर्क सहित सिद्ध कीजिए । (25 – 30 शब्दों में)

उत्तर – बादल भयंकर गर्जना के साथ जब बरसते हैं , तो धरती के सभी प्राणियों में एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। लोगों का मन एक बार फिर से नए जोश व उत्साह से भर जाता है। कवि भी बादलों के माध्यम से लोगों में उत्साह का संचार करना चाहते हैं और समाज में एक नई क्रांति लाने के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहते हैं। एक ओर बादलों के गर्जन में उत्साह समाया है , तो दूसरी ओर कवि लोगों में उत्साह का संचार करके क्रांति के लिए तैयार करना चाहते हैं। इसलिए इस कविता का शीर्षक “ उत्साह ” रखा गया है।

 

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Chapter 9 – Lakhnavi Andaz (लगभग 25-30 शब्दों में )

 

प्रश्न 1 – ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट क्यों खरीदा।

उत्तर – लेखक बताते हैं कि आराम से अगर लोकल ट्रेन के सेकंड क्लास में जाना हो तो उसके लिए कीमत भी अधिक लगती है। लेखक को बहुत दूर तो जाना नहीं था। लेकिन लेखक ने टिकट सेकंड क्लास का ही ले लिया ताकि वे अपनी नयी कहानी के संबंध में सोच सके और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य का नज़ारा भी ले सकें , इसलिए भीड़ से बचकर , शोरगुल से रहित ऐसा स्थान जहाँ कोई न हो , लेखक ने चुना।

 

प्रश्न 2 – यदि लेखक ने खीरा खा लिया होता तो क्या नवाब साहब भी खीरा खा लेते ? ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर तर्क सहित स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – यदि लेखक ने खीरा खा लिया होता, तो संभव है कि नवाब साहब भी खीरा खा लेते। लखनवी अंदाज़ पाठ में नवाब साहब अपनी शान और आत्म-सम्मान को बनाए रखने के प्रयास में थे। लेखक की उपस्थिति और उसके द्वारा खीरा न खाने से नवाब साहब को अपने दिखावे को बनाए रखना पड़ा। यदि लेखक खीरा खा लेता, तो नवाब साहब भी दिखावा छोड़कर खीरा खाने लगते क्योंकि वे भी खीरे का आनंद लेना चाहते थे, लेकिन समाज में नवाबी स्थिति और शिष्टता के कारण वे खीरा नहीं खा पा रहे थे।

 

प्रश्न 3 – ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में पाठकों के लिए क्या संदेश निहित है ?

उत्तर – ‘लखनवी अंदाज’ नामक पाठ के माध्यम से लेखक यह संदेश देना चाहता है कि हमें अपना व्यावहारिक दृष्टिकोण विस्तृत करते हुए दिखावेपन से दूर रहना चाहिए। हमें वर्तमान के कठोर यथार्थ का सामना करना चाहिए तथा काल्पनिकता को छोड़कर वास्तविकता को अपनाना चाहिए जो हमारे व्यवहार और आचरण में भी दिखना चाहिए।

 

प्रश्न 4 – खीरा खाने की चाहत होते हुए भी लेखक ने नवाब साहब के आग्रह पर खीरा क्यों नहीं खाया ? उसने खीरा खाने की अपनी अरुचि का क्या कारण बताया ? ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर – नवाब लोग अपनी नवाबी को कायम रखने के लिए दिखावे का सहारे लेते हैं। जब लेखक अचानक नवाब साहब वाले डब्बे में आया तो उस समय नवाब साहब खीरे खाने की तैयारी में थे। परन्तु लेखक जैसे आम आदमी के समक्ष खीरे जैसी तुच्छ चीज खाना नवाब साहब को अपनी हैसीयत के विपरीत लगा। जब लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया तब अपनी झूठी नवाबी शान को दिखाने के लिए उन्होंने खीरे फ़ेंक दिए और कारण बताया कि खीरा पेट के लिए अच्छा नहीं होता। उनका यह कारण बिलकुल गलत था क्योंकि उन्होंने स्वयं ही खीरे खाने के लिए ख़रीदे थे परन्तु लेखक के समक्ष झूठा दिखावा करने के लिए खीरे नहीं खाए।

 

प्रश्न 5 – ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर लिखिए कि गाड़ी के किस डिब्बे में लेखक चढ़ गए और उनका कौन-सा अनुमान प्रतिकूल निकला ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – लेखक जिस लोकल ट्रेन से जाना चाहता था, किसी कारण थोड़ी देरी होने के कारण लेखक से वह गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, लेखक ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। लेखक ने अंदाज़ा लगाया था कि लोकल ट्रेन का वह सेकंड क्लास का छोटा डिब्बा खाली होगा परन्तु लेखक के अंदाज़े के विपरीत वह डिब्बा खाली नहीं था। उस डिब्बे के एक बर्थ पर लखनऊ के नवाबी परिवार से सम्बन्ध रखने वाले एक सफेद कपड़े पहने हुए सज्जन व्यक्ति बहुत सुविधा से पालथी मार कर बैठे हुए थे।

 

प्रश्न 6 – ‘लेखक की तुलना में नवाब साहब अधिक शिष्ट और सभ्य थे।’ ‘लखनवी अंदाज’ पाठ के आधार पर सोदाहरण बताइए ।

उत्तर – लखनवी अंदाज़ पाठ के आधार पर, नवाब साहब लेखक की तुलना में अधिक शिष्ट और सभ्य थे। क्योंकि नवाब साहब ने बड़े ही सलीके से खीरे को खाने से पहले उसे साफ किया, और अत्यंत शाही तरीके से तैयार किया। नवाब साहब ने खीरा खाने से पहले लेखक से कई बार पूछा कि क्या वह खीरा खाना पसंद करेगा। किन्तु लेखक ने केवल अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए खीरा खाने से इंकार कर दिया और तिरछी नजरों से केवल नवाब साहब को देखता रहा।

 

प्रश्न 7 – नवाब साहब ने खीरा न खाने का जो कारण बताया, क्या वह सही था ? ‘लखनवी अंदाज’ पाठ के आधार पर कारण सहित लिखिए |

उत्तर – जब लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया तब अपनी झूठी नवाबी शान को दिखाने के लिए उन्होंने खीरे फ़ेंक दिए और कारण बताया कि खीरा पेट के लिए अच्छा नहीं होता। उनका यह कारण बिलकुल गलत था क्योंकि उन्होंने स्वयं ही खीरे खाने के लिए ख़रीदे थे परन्तु लेखक के समक्ष झूठा दिखावा करने के लिए खीरे नहीं खाए।

 

प्रश्न 8 – “नवाबी नसल’ से आप क्या समझते हैं ? “लखनवी अंदाज’ पाठ के संदर्भ में लिखिए ।

उत्तर – “लखनवी अंदाज’ पाठ में नवाब साहब की सभी हरकतें, दिखावे व् नजाकत लखनवी नवाबों जैसे हैं। नवाब लोग अपनी हैसियत को ऊँचा दिखाने के लिए दिखावे करते हैं। पाठ में नवाब साहब भी पहले तो खीरा खाने की सभी तैयारियों को बड़ी ही नजाकत से पूरा किया परन्तु जब लेखक ने खीरा खाने से मना कर दिया तब अपनी झूठी शान दिखाने के लिए खीरे को तुच्छ कहकर फ़ेंक दिया।

 

प्रश्न 9 – लेखक को देखकर नवाब साहब असहज क्यों हो गए ? “लखनवी अंदाज’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर – लेखक के डिब्बे में अचानक से कूद जाने के कारण उन सज्जन के ध्यान में बाधा या अड़चन पड़ गई थी, जिस कारण उन सज्जन की नाराज़गी साफ़ दिखाई दे रही थी। लेखक उन सज्जन की नाराज़गी को देख कर सोचने लगे कि, हो सकता है, वे सज्जन भी किसी कहानी के लिए कुछ सोच रहे हों या ऐसा भी हो सकता है कि लेखक ने उन सज्जन को खीरे – जैसी तुच्छ वस्तु का शौक करते देख लिया था और इसी हिचकिचाहट के कारण नवाब साहब असहज हो गए।

 

प्रश्न 10 – लेखक को नवाब साहब का मौन रहना और बातें करना दोनों ही अच्छा नहीं लग रहा था, क्यों ? ‘लखनवी अंदाज़ पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर – लेखक को नवाब साहब का मौन रहना और बातें करना दोनों ही अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि जब नवाब साहब बात कर रहे थे तब उनकी झूठी शान और दिखावा साफ दिख रहा था। और जब नवाब साहब मौन थे और खीरे को शाही तरीके से काटकर सजा रहे थे तो वह लेखक को असहज कर रहा था, क्योंकि इससे उनकी असली स्थिति और दिखावे की असंगति स्पष्ट हो रही थी।

 

प्रश्न 11 – ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में नवाब साहब ने लेखक को खीरे की क्या विशेषता बताई और क्या वह सही थी ?

उत्तर – ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में नवाब साहब ने लेखक को खीरे के बारे में कहा कि खीरा होता तो बहुत स्वादिष्ट है लेकिन जल्दी पचने वाला नहीं होता , और साथ – ही – साथ बेचारे बदनसीब पेट पर बोझ डाल देता है। यह बात बिलकुल अनुचित है क्योंकि नवाब साहब ने खीरे ख़रीदे तो खाने के लिए ही थे परन्तु लेखक जैसे आम आदमी के सामने खीरे जैसे तुच्छ वस्तु का सेवन करना उन्हें अपनी शान के खिलाफ लगा।

 

प्रश्न 12 – बड़े जतन से खीरा खाने की तैयारी के बावजूद भी नवाब साहब ने खीरा क्यों नहीं खाया ? ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर लिखिए |

उत्तर – बड़े जतन से खीरा खाने की तैयारी के बावजूद भी नवाब साहब ने खीरा इसलिए नहीं खाया क्योंकि नवाब साहब ने खीरे ख़रीदे तो खाने के लिए ही थे परन्तु लेखक जैसे आम आदमी के सामने खीरे जैसे तुच्छ वस्तु का सेवन करना उन्हें अपनी शान के खिलाफ लगा।

 

प्रश्न 13 – नवाब साहब द्वारा किया गया सहसा अभिवादन लेखक को अच्छा नहीं लगने के क्या कारण रहे होंगे ? ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर – लेखक के डिब्बे में अचानक से कूद जाने के कारण उन सज्जन के ध्यान में बाधा या अड़चन पड़ गई थी, जिस कारण उन सज्जन की नाराज़गी साफ़ दिखाई दे रही थी। लेखक उन सज्जन की नाराज़गी को देख कर सोचने लगे कि, हो सकता है, वे सज्जन भी किसी कहानी के लिए कुछ सोच रहे हों या ऐसा भी हो सकता है कि लेखक ने उन सज्जन को खीरे जैसी तुच्छ वस्तु का शौक करते देख लिया था और इसी हिचकिचाहट के कारण नवाब साहब असहज हो गए। नवाब साहब कुछ देर तक तो गाड़ी की खिड़की से बाहर देखकर वर्तमान स्थिति पर गौर करते रहे थे , अचानक से ही नवाब साहब ने लेखक को पूछा कि क्या लेखक भी खीरे खाना पसंद करेंगे । इस तरह अचानक से नवाब साहब के व्यवहार में हुआ परिवर्तन लेखक को कुछ अच्छा नहीं लगा। क्योंकि पहले के व्यवहार से स्पष्ट था कि नवाब साहब को लेखक का डिब्बे में आना पसंद नहीं आया था।

 

प्रश्न 14 – क्या सेकंड क्लास में बैठकर लेखक अपनी नई कहानी के बारे में सोच पाया ? ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर – सेकंड क्लास में बैठकर लेखक अपनी नई कहानी के बारे में अवश्य सोच पाया क्योंकि जब नवाब साहब ने लेखक को खीरे के बारे में बताया कि खीरा होता तो बहुत स्वादिष्ट है लेकिन जल्दी पचने वाला नहीं होता , और साथ – ही – साथ बेचारे बदनसीब पेट पर बोझ डाल देता है। नवाब साहब की ऐसी बातें सुनकर लेखक को जो बात समझ नहीं आ रही थी अब समझ में आ रही थी ! नवाब साहब की बात सुन कर लेखक ने मन ही मन सोचा कि नवाब साहब ही नयी कहानी के लेखक हैं, क्योंकि लेखक के अनुसार अगर खीरे की सुगंध और स्वाद का केवल अंदाज़ा लगा कर ही पेट भर जाने का डकार आ सकता है तो बिना विचार, बिना किसी घटना और पात्रों के, लेखक के केवल इच्छा करने से ही ‘नयी कहानी’ भी बन सकती। 

 

प्रश्न 15 – ‘लखनवी अंदाज’ पाठ के आधार पर बताइए कि नवाब साहब को खीरे खाने की तैयारी करते देख लेखक ने क्या सोचा ? उसके मन में कौन-सी इच्छा जगी और नवाब साहब के पूछने पर उसने खाने से क्यों मना कर दिया ?

उत्तर – लेखक तिरछी नज़रों से नवाब साहब को खीरे खाने की तैयारी करते देखकर सोच रहे थे , नवाब साहब ने सेकंड क्लास का टिकट ही इस ख़याल से लिया होगा ताकि कोई उनको खीरा खाते न देख लें लेकिन अब लेखक के ही सामने इस तरह खीरे को खाने के लिए तैयार करते समय अपना स्वभाविक व्यवहार कर रहे हैं। अपना काम कर लेने के बाद नवाब साहब ने फिर एक बार लेखक की ओर देख लिया और फिर उनसे एक बार खीरा खाने के लिए पूछ लिया, और साथ – ही – साथ उन खीरों की खासियत बताते हुए कहते हैं कि वे खीरे लखनऊ के सबसे प्रिय खीरें हैं। नमक – मिर्च छिड़क दिए जाने से उन ताज़े खीरे की पानी से भरे लम्बे – लम्बे टुकड़ों को देख कर लेखक के मुँह में पानी ज़रूर आ रहा था, लेकिन लेखक पहले ही इनकार कर चुके थे, जिस कारण लेखक ने अपना आत्मसम्मान बचाना ही उचित समझा।

 

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Kritika Bhag 2 

 

Chapter 1 – Mata Ka Aanchal ( लगभग 50-60 शब्दों में )

 

प्रश्न 1 – ‘माता का आँचल’ पाठ में वर्णित खेल-खिलौनों की दुनिया वर्तमान खिलौनों की दुनिया से बेहतर थी, क्यों ? कारण सहित उत्तर दीजिए ।

उत्तर – भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री से हमारे खेल और खेल सामग्रियों में बहुत अधिक अंतर आ गया है। भोलानाथ के समय में बच्चे आँगन व् खेत में पड़ी हुई किसी भी वस्तु को उठा कर उसे ही खेल का आधार बना लिया करते थे। वे खेत की मिट्टी, पत्थर, लकड़ी ,पेड़ों के पत्तों व् घर के टूटे-फूटे सामान से ही खेलते व् खुश हो जाते थे। खेल की सामग्रियाँ बच्चे खुद से तैयार करते थे।

परन्तु आज भोलानाथ के समय से बिल्कुल भिन्न खेल और खेल सामग्री हैं और सबसे महत्वपूर्ण बच्चों की सुरक्षा हर समय अभिभावकों की चिंता का विषय है। आज खेल सामग्री का निर्माण बच्चे स्वयं नहीं करते बल्कि खिलौनों को बाज़ार से खरीद कर लाते है।अब की पीढ़ी खेलने के लिए वीडियो गेम, क्रिकेट, वॉलीबॉल, फुटबॉल, वेस-बॉल जैसी चीजों से खेलते हैं। ऐसा लगता है जैसे आज के बच्चों का धूल-मिट्टी से कोई संबंध ही नहीं रहा है।

खेल-खिलौनों की दुनिया वर्तमान खिलौनों की दुनिया से बेहतर थी क्योंकि पहले के खेल-खिलौनों से बच्चों का सर्वांगीण विकास होता था।

 

प्रश्न 2 – पिता द्वारा भोलानाथ को खाना खिलाने के बाद भी उसकी माँ उसे खाना खिलाती थी, क्यों ? ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर – भोलानाथ के बाबूजी भोलानाथ को अपने ही हाथ से, फूल के एक कटोरे में गोरस और भात मिलाकर खिलाते थे। जब भोलानाथ भर पेट से अधिक खा लेते तब मइयाँ थोड़ा और खिलाने के लिए ज़िद करती थी। वह भोलानाथ के बाबू जी से कहने लगती कि वे तो चार – चार दाने के निवाले बच्चे के मुँह में देते जाते हैं, इससे वह थोड़ा खाने पर भी समझ लेता है कि बहुत खा चुके, वे खिलाने का ढंग नहीं जानते – बच्चे को भर – मुँह कौर खिलाना चाहिए। और कहती – जब खाएगा बड़े – बड़े कौर , तब पाएगा दुनिया में ठौर अर्थात स्थान व् अवसर। भोलानाथ की माता भोलानाथ के पिता से कहती हैं कि पुरुष क्या जाने कि बच्चों को कैसे खाना खिलाना चाहिए , और माता के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भी भरता है।

 

प्रश्न 3 – वात्सल्य और ममता की आधार-भूमि एक रहने पर भी माता-पिता और बच्चों के संबंधों में तब से अब तक बहुत बदलाव हुए हैं। – ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर इसे सोदाहरण स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – वात्सल्य और ममता की आधार-भूमि एक रहने पर भी माता-पिता और बच्चों के संबंधों में तब से अब तक बहुत बदलाव हुए हैं। गाँव में माता-पिता अपने बच्चों के साथ अधिक समय व्यतीत करते हैं। पिता बच्चों के हर खेल में शामिल होने का प्रयास करते हैं और माता अपने बच्चे को अच्छे से खाना खिलाने के लिए तरह-तरह के स्वांग रचती है। गाँव के लोग भी सभी बच्चों को अपने ही बच्चों की तरह प्यार करते हैं और बच्चे मंडलियाँ बना कर अलग-अलग ढंग से खेल-खेलते हैं।

आज के व्यस्त समय में माता-पिता अपने बच्चों के साथ अधिक समय व्यतीत नहीं कर पाते और दिन भर व्यस्त होने के कारण न ही पिता बच्चों के साथ हर खेल में शामिल हो सकता है। आज के समय में सुरक्षा के माध्यम से बच्चों को अकेले बाहर जाने नहीं दिया जा सकता और न ही आज के बच्चों के पास खेत-खलियान बचे हैं जहाँ वे कोई खेल खेल सके।

 

प्रश्न 4 – ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर बालक भोलानाथ के भयभीत हो जाने वाली घटना का उल्लेख कीजिए । भयभीत भोलानाथ पिता के पास न जाकर माँ के पास ही क्यों गया ?

उत्तर – जब भोलानाथ और उनके साथी चूहों के बिल से पानी डालने लगे, तो उस बिल से साँप निकल आया। रोते-चिल्लाते भोलानाथ और उनके साथी बेतहाशा भाग चले! कोई औंध गिरा, कोई अंटाचिट। किसी का सिर फूटा, किसी के दाँत टूटे। सभी गिरते-पड़ते भागे। भोलानाथ का सारा शरीर लहूलुहान हो गया। पैरों के तलवे काँटों से छलनी हो गए। भोलानाथ एक सुर में दौड़े हुए आए और घर में घुस गए। भोलानाथ दौड़ते हुए मइयाँ के पास ही चले गए। जाकर उसी की गोद में शरण ली। भोलानाथ को डर से काँपते देखकर लेखक की माँ भी जोर से रो पड़ी और सब काम छोड़ बैठी। भोलानाथ के डर से काँपते हुए ओंठों को मइयाँ बार-बार देखकर रोती और बड़े लाड़ से भोलानाथ को गले लगा लेती थी। इसी समय बाबू जी दौड़े आए। बाबूजी आकर झट से भोलानाथ को मइयाँ की गोद से अपनी गोद में लेना चाहते थे। पर भोलानाथ ने मइयाँ के आँचल की- प्रेम और शांति के अनुभव की-छाया न छोड़ी क्योंकि एक बच्चे को माँ के आँचल से सुरक्षित और कोई स्थान नहीं लगता।

 

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Chapter 2 – Saana Saana Hath Jodi ( लगभग 50-60 शब्दों में )

 

प्रश्न 1 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि…’ पाठ में पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ती मानवीय गतिविधियों के किन दुष्प्रभावों का उल्लेख किया गया है ? स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – आज की पीढ़ी प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रही है व् पहाड़ों पर प्रकृति की शोभा को नष्ट किया जा रहा कर रही है। वृक्षों को काटकर जंगलों को नष्ट किया जा रहा है। सुख-सुविधा के नाम पर पॉलिथीन का अधिक प्रयोग और वाहनों के द्वारा प्रतिदिन छोड़ा धुंआ पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ रहा है। हमारे कारखानों से निकलने वाले जल में खतरनाक केमिकल व रसायन होते हैं जिसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। साथ में घरों से निकला दूषित जल भी नदियों में ही जाता है। जिसके कारण हमारी नदियाँ लगातार दूषित हो रही हैं। अब नदियों का जल पीने लायक नहीं रहा है। वनों की अंधाधुंध कटाई से मृदा का कटाव होने लगा है जो बाढ़ को आमंत्रित कर रहा है। दूसरे अधिक पेड़ों की कटाई ने वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता बढ़ा दी है जिससे वायु प्रदूषित होती जा रही है। इन सभी के कारण मौसम में परिवर्तन आ रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

 

प्रश्न 2 – “हम सभी नदियों और पर्वतों के ऋणी हैं” – कैसे ? ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए |

उत्तर – पाठ “साना-साना हाथ जोड़ि” के आधार पर हम कह सकते हैं कि “हम सभी नदियों और पर्वतों के ऋणी हैं” क्योंकि ये प्राकृतिक तत्व हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। नदियाँ हमें पानी, खेती, और जीवन की अन्य आवश्यकताएँ प्रदान करती हैं, जबकि पर्वत हमें प्राकृतिक संसाधन और सुरक्षा प्रदान करते हैं। हमारी संस्कृति और सभ्यता भी इन नदियों और पर्वतों के योगदान से समृद्ध हुई है। इसलिए, हमें इनकी रक्षा करनी चाहिए और इनके महत्त्व को समझना चाहिए।

 

प्रश्न 3 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर बताइए कि पहाड़ के सौंदर्य पर मंत्रमुग्ध लेखिका पहाड़ों पर ‘किस दृश्य को देख क्षुब्ध और परेशान हो उठती हैं ? क्या आपने भ्रमण या पर्यटन के दौरान ऐसे दृश्य देखे हैं ? ऐसे दृश्यों और अपने मन पर पड़े उनके प्रभाव को अपने शब्दों में लिखिए ।

उत्तर – “साना-साना हाथ जोड़ि” पाठ के आधार पर, लेखिका पहाड़ों के सौंदर्य से मंत्रमुग्ध होती हैं। वे पहाड़ की खूबसूरती का आनंद ले रही थीं, लेकिन जब उन्होंने सुना कि पहाड़ी रास्तों को बनाने में कई लोगों की मौत भी हो जाती है तो लेखिका को पहले के कुछ दृश्य याद आने लगे। इसी प्रकार एक बार पलामू और गुमला के जंगलों में लेखिका ने पीठ पर बच्चे को कपड़े से बाँधकर पत्तों की तलाश में वन-वन डोलती आदिवासी युवतियों को देखा था। उन आदिवासी युवतियों के फूले हुए पाँव और इन पत्थर तोड़ती पहाड़िनों के हाथों में पड़े गाठे या निशान , एक ही कहानी कह रहे थे कि आम ज़िंदगियों की कहानी हर जगह एक-सी है।

भ्रमण के दौरान हमने भी ऐसे दृश्य देखे हैं, जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ मानव द्वारा की गई अव्यवस्था और क्षति को देखा है। इन दृश्यों के कारण हम बहुत उदास और चिंतित हो गए थे। ऐसे दृश्य व् अनुभव किसी के भी मन में गहरा प्रभाव डाल सकते है। इन सभी से सीख ली जा सकती है कि प्रकृति की सुंदरता की रक्षा करना कितना आवश्यक है।

 

प्रश्न 4 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि..’ पाठ में सैनिकों की किन कठिनाइयों का उल्लेख है ? क्या वर्तमान में उनकी स्थिति में सुधार आया है ? पाठ के आधार पर तर्क सहित उत्तर दीजिए ।

उत्तर – देश की सीमाओं पर बैठे फौजी उन सभी कठिनाइयों में जूझते हैं जो सामान्य जीवन जीने वाले व्यक्ति उम्मीद भी नहीं कर सकते। कड़कड़ाती ठंड जहाँ तापमान माइनस में चला जाता है, जहाँ पेट्रोल को छोड़ सब कुछ जम जाता है, वहाँ भी फौजी तैनात रहते हैं और हम आराम से अपने घरों पर बैठे रहते हैं। इसी तरह वे शरीर को तपा देने वाली गर्मियों के दिनों में रेगिस्तान जैसी जगहों पर भी अनेक विषमताओं से जूझते हुए कठिनाइयों का सामना करते हैं। कभी सघन जंगलों में, बरसात में भीगते हुए, खतरनाक जानवरों का सामना कर हमें सुरक्षित जीवन जीने का अवसर देते हैं।

हमें चाहिए कि हम उनके व उनके परिवार वालों के प्रति सदैव सम्माननीय व्यवहार करें। जिस तरह वह अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हैं, हमें उनके परिवार वालों का ध्यान रख उसी तरह अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। सदैव उनको अपने से पहले प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि एक फौजी भी हमारी सुरक्षा को सबसे पहले प्राथमिकता देता है फिर चाहे उसे अपनी जान का दाव ही क्यों न खेलना पड़े। 

 

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