NCERT Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 Chapter 10 Apurv Anubhav Summary, Explanation with Video and Question Answers
Apurv Anubhav – NCERT Solution for Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 book Chapter 10 Apurv Anubhav Summary and detailed explanation of lesson “Apurv Anubhav” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with all the exercises, Questions and Answers are given at the back of the lesson. Take Free Online MCQs Test for Class 7.
इस लेख में हम हिंदी कक्षा 7 ” वसंत भाग – 2 ” के पाठ – 10 ” अपूर्व अनुभव ” पाठ के पाठ – प्रवेश , पाठ – सार , पाठ – व्याख्या , कठिन – शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर , इन सभी के बारे में चर्चा करेंगे –
कक्षा – 7 पाठ 10 ” अपूर्व अनुभव”
- अपूर्व अनुभव पाठ प्रवेश<
- अपूर्व अनुभव पाठ सार
- अपूर्व अनुभव पाठ की व्याख्या
- अपूर्व अनुभव प्रश्न-अभ्यास
- Class 7 Hindi Chapter 10 Apoorv Anubhav MCQs
- अपूर्व अनुभव Question Answers, Class 7 Chapter 10 NCERT Solutions
- Class 7 Hindi Chapter Wise Word Meanings
लेखक परिचय –
लेखिका – तेत्सुको कुरियानागी
( अनुवाद – पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा )
अपूर्व अनुभव पाठ प्रवेश
प्रस्तुत पाठ ‘ अपूर्व अनुभव ’ ‘ तोत्तो – चान ’ नामक विश्व प्रसिद्ध पुस्तक का एक अंश है। ‘ तोत्तो – चान ’ नामक पुस्तक की लेखिका ” तेत्सुको कुरियानागी ” हैं और इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद किया है ” पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा ” ने। ‘ तोत्तो – चान ’ नामक पुस्तक विश्व साहित्य की एक बहुत ही मूलयवान सम्पति की तरह है , जो मूलतः जापानी भाषा में लिखी गई है। इसका अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में हो चुका है। यह एक ऐसी अनोखी पाठशाला और उसमें पढ़ने वाले बच्चों की कहानी है जिनके लिए रेल के डिब्बे कक्षाएँ थीं , गहरी जड़ों वाले पेड़ पाठशाला का गेट और पेड़ की शाखा बच्चों के खेलने के कोने थे। इस अनोखे स्कूल के संस्थापक थे श्री कोबायाशी। लेखिका खुद भी इस स्कूल की छात्रा रही थीं। उन्हीं के बचपन के अनुभवों पर पुस्तक ‘ तोत्तो – चान ’ का यह अंश ‘ अपूर्व अनुभव ’ आधारित है।
अपूर्व अनुभव पाठ सार
प्रस्तुत पाठ ‘ अपूर्व अनुभव ’ ‘ तोत्तो – चान ’ नामक विश्व प्रसिद्ध पुस्तक का एक भाग है। ‘ तोत्तो – चान ’ नामक पुस्तक की लेखिका ” तेत्सुको कुरियानागी ” हैं और इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद ” पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा ” ने किया है। ‘ तोत्तो – चान ’ नामक पुस्तक विश्व साहित्य की एक बहुत ही मूलयवान सम्पति की तरह है , जो मूलतः जापानी भाषा में लिखी गई है। कहानी के इस भाग में लेखिका कहती हैं कि आज तोत्तो – चान के लिए एक ऐसा दिन आ गया था जब उसे कोई बहुत बड़ा हिम्मत वाला काम करना था। और वह काम था उसने यासुकी – चान को अपने पेड़ पर चढ़ने का निमंत्रण दिया था। परन्तु इस बात को उन दोनों के सिवा कोई और नहीं जानता था। जापान के तोमोए में प्रत्येक बच्चा बाग़ में मौजूद पेड़ों में से खुद के लिए एक पेड़ चुन लेता था और उस पर अपना हक समझता था। उसी तरह तोत्तो – चान ने भी उसका अपना एक चुन रखा था , उस पर चढ़ना मुश्किल था परन्तु जब उस पेड़ पर ठीक से कोई चढ़ जाता था तो वह उस पेड़ की जमीन से कोई छह फुट की ऊँचाई पर पेड़ के तने का वह भाग था जहाँ से दो मोटी – मोटी डालियाँ एक साथ निकलती थी वहाँ तक पहुँच जाता था। बिना अनुमति के कोई भी दूसरे बच्चे के पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था। यासुकी – चान का अपना कोई पेड़ नहीं था , इसी कारण तोत्तो – चान ने यासुकी – चान को अपने पेड़ पर निमंत्रित किया था। यासुकि – चान को अपने पेड़ पर तो बुला लिया था। तोत्तो – चान ने अपने भाई को बता दिया कि वह यासुकी – चान को अपने पेड़ पर चढ़ने देने वाली है। तोत्तो – चान को यासुकी – चान स्कूल के मैदान में बनी क्यारियों के पास मिला। स्कूल में गरमी की छुट्टियों होने के कारण कोई नहीं था , स्कूल में सब खाली पड़ा हुआ था। तोत्तो – चान बहुत ही प्रोत्साहित थी क्योंकि वे दोनों आज कुछ ऐसा करने वाले थे जिसका राज किसी को भी पता न था। जितनी ख़ुशी तोत्तो – चान को यासुकि – चान को अपने पेड़ पर चढ़ाने की हो रही थी उतनी ही ख़ुशी यासुकि – चान को भी हो रही थी क्योंकि वह पहली बार किसी पेड़ पर चढ़ने वाला था। लेखिका कहती हैं कि तोत्तो – चान यासुकी – चान को अपने पेड़ की ओर ले गई और उसके बाद वह जल्दी से स्कूल के चौकीदार के छप्पर की ओर भागी , तोत्तो – चान ने इसकी योजना पहली रात में ही बना दी थी कि किस तरह यासुकी – चान को वह अपने पेड़ पर चढ़ने में मदद करेगी। तोत्तो – चान पहले स्वयं कुरसी के सहारे ऊपर चढ़ी और सीढ़ी के किनारे को पकड़ लिया। तब उसने यासुकि – चान को पुकारा और कहा कि ठीक है , अब वह भी ऊपर चढ़ने की कोशिश करे। तोत्तो – चान की बात सुन कर यासुकी – चान ने सीढ़ी पर चढ़ने की कोशिश की परन्तु यासुकी – चान के हाथ – पैर इतने कमजोर थे कि वह पहली सीढ़ी पर भी बिना किसी के सहारे के चढ़ नहीं पा रहा था। जब तोत्तो – चान ने देखा कि यासुकी – चान बिना सहारे के नहीं चढ़ पा रहा है तो तोत्तो – चान सीढ़ी पर से नीचे उतर आई और यासुकी – चान को सहारे देते हुए पीछे से धक्का देने लगी। परन्तु तोत्तो – चान थी तो छोटी और कोमल – सी ही , यासुकी – चान को धक्का देने के अलावा वह और क्या कर सकती थी। उसे एक दूसरी योजना सूझी। वह फिर से स्कूल के चौकीदार के छप्पर की ओर दौड़ी और वहाँ पर मौजूद हर एक चीज को उलट – पुलटकर देखने लगी। आखिर उसे एक तीन पैरों वाली सीढ़ी मिल गई , जिसे पकड़ कर रखना भी जरुरी नहीं था। तोत्तो – चान ने यासुकी – चान को हिम्मत देते हुए बड़ी बहन की – सी आवाज में कहा कि देखो , अब डरना मत यह तीन पैरों वाली सीढ़ी जोर – जोर से इधर – उधर नहीं हिलेगी। यासुकी – चान किसी भी कीमत पर पेड़ पर चढ़ना चाहता था और जब उसने तोत्तो – चान को उसके लिए कड़ी मेहनत करते हुए देखा तो उसने अपने डर को एक तरफ करके पेड़ पर चढ़ने का फैसला कर लिया। यासुकी – चान बहुत कमजोर था जिस कारण उसे सीढ़ी के आखरी सीढ़ी पर पहुँचने में बहुत अधिक समय लगा था। यासुकी – चान पोलियो के कारण बहुत कमजोर था और उसके शरीर में खुद को सही से संतुलित करने की शक्ति नहीं थी और जब वह सीढ़ी पर चढ़ने का प्रयास कर रहा था तो उसका शरीर इधर – उधर हिल – डुल रहा था जिस कारण उसके गिरने की सम्भावना बढ़ रही थी , यही कारण है कि तोत्तो – चान उससे सहारे देने के लिए अपने सिर का इस्तेमाल कर रही थी क्योंकि उसके दोनों हाथ तो यासुकी – चान के पैरों को ऊपर धकेलने में व्यस्त थे। तोत्तो – चान के साथ – साथ यासुकी – चान भी अपनी पूरी शक्ति के साथ जूझ रहा था और आखिर वह ऊपर पहुँच गया। वह एक पल में तो खुशी के मारे चिल्ला उठा परन्तु , उसे अचानक अपनी और तोत्तो – चान की सारी मेहनत बेकार लगने लगी। क्योंकि तोत्तो – चान तो सीढ़ी पर से छलाँग लगाकर पेड़ के उस हिस्से पर पहुँच गई जहाँ दो मोटी – मोटी शाखाएँ जुड़ी हुई थी , पर यासुकी – चान को सीढ़ी से पेड़ पर लाने की हर कोशिश बेकार रही। यासुकी – चान सीढ़ी थामे हुए तोत्तो – चान की ओर देखने लगा। यह सब देख कर तोत्तो – चान को रोना आने वाला था। तोत्तो – चान को रोना जरूर आ रहा था परन्तु वह रोई नहीं। क्योंकि उसे डर था कि अगर वह ही रोने लगेगी तो यासुकी – चान भी रो पड़ेगा। तोत्तो – चान किसी भी तरह से हार नहीं मानने वाली थी , वह हर कीमत पर यासुकी – चान को अपने पेड़ पर से वह सारी चीज़े दिखाना चाहती थी जो उसने पहले कभी नहीं देखी थीं। तोत्तो – चान यासुकी – चान से बहुत छोटी थी और यासुकी – चान बहुत बड़ा था , जिस कारण तोत्तो – चान को अगर कोई अपने से बड़े यासुकी – चान का पूरा भार खींच कर पेड़ पर चढ़ाते हुए देखता तो उसे वे सच में बहुत बड़ा खतरा उठाते ही दिखाई देते। क्योंकि यासुकी – चान बड़ा होने के साथ ही शारीरिक रूप से अस्वस्थ भी था जिस कारण अगर थोड़ी सी भी गलती के कारण वो सीढ़ी से निचे गिर जाता तो उसे बहुत चोट लग सकती थी। परन्तु लेखिका कहती है कि यासुकी – चान को तो तोत्तो – चान पर पूरा विश्वास था और तोत्तो – चान खुद भी तो यासुकी – चान के लिए बहुत बड़ा खतरा उठा रही थी। अपने छोटे – छोटे हाथों से वह पूरी ताकत से यासुकी – चान को पेड़ की ओर खींचने लगी थी। काफी मेहनत करने के बाद दोनों आमने – सामने पेड़ की उस शाखा पर खड़े थे , जहाँ से पेड़ की दो मोटी शाखाएँ जुड़ रही थी। यासुकी – चान कभी पेड़ पर नहीं चढ़ा था तो उसे नहीं पता था कि पेड़ के ऊपर से सारी दुनिया कैसी दिखती है , जिस कारण जब वह पेड़ पर चढ़ता है तो वह हैरानी से और ख़ुशी से बोल पड़ता है कि तो ऐसा होता है पेड़ पर चढ़ना। लेखिका कहती हैं कि वे दोनों बड़ी देर तक पेड़ पर बैठे – बैठे इधर उधर की बैफजूल बातें कर रहे थे। यासुकी – चान ख़ुशी से भरा हुआ था और तोत्तो – चान को बता रहा था कि उसकी बहन अमरीका में है , और उसने यासुकी – चान को बताया है कि वहाँ एक चीज होती है – टेलीविजन। टेलीविजन के बारे में वह कहती है कि जब टेलीविजन जापान में आ जाएगा तो सब घर बैठे – बैठे ही सूमो – कुश्ती देख सकेंगे। वह कहती है कि टेलीविजन एक डिब्बे जैसा होता है। तोत्तो – चान को यासुकी – चान की कोई भी बात समझ में नहीं आ रही थी क्योंकि यासुकी – चान जिस टेलीविजन के बारे में बता रहा था वह जापान में किसी ने नहीं देखा था। यासुकी – चान की बातें सुन कर वह तो यह ही सोचती रही कि कोई सूमो पहलवान घर में रखे किसी डिब्बे में कैसे समाजाएँगे ? क्योंकि सूमो पहलवान का आकार तो बड़ा होता है। परन्तु फिर भी उसे यासुकी – चान की बात बहुत मन मोहक लगी। उस समय ऐसा लग रहा था कि पेड़ मानो गीत गा रहे थे और दोनों ही बहुत ज्यादा खुश थे। क्योंकि उन्होंने कड़ी मेहनत के बाद अपने लक्ष्य को हासिल किया था। यासुकी – चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह पहला और अंतिम मौका था। कहने का तात्पर्य यह है कि यासुकी – चान का यह पहले मौका था जब वह पेड़ पर चढ़ा था और आखरी इसलिए क्योंकि उन दोनों को बहुत मेहनत करनी पड़ी थी और साथ – ही – साथ यह बहुत खतरे वाला काम भी था।
अपूर्व अनुभव पाठ की व्याख्या
पाठ – सभागार में शिविर लगने के दो दिन बाद तोत्तो – चान के लिए एक बड़ा साहस करने का दिन आया। इस दिन उसे यासुकी – चान से मिलना था। इस भेद का पता न तो तोत्तो – चान के माता – पिता को था , न ही यासुकी – चान के। उसने यासुकी – चान को अपने पेड़ पर चढ़ने का न्योता दिया था।
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखिका तोत्तो – चान द्वारा यासुकी – चान को बिना किसी को बताए अपने पेड़ पर बुलाने का वर्णन कर रही हैं। इस गद्यांश में हमें ज्ञात होता है कि तोत्तो – चान का कोई निजी पेड़ है।
कठिन शब्द
सभागार – वह स्थान जहाँ सभा होती है , सभाभवन , सभागृह या ऑडिटोरियम
शिविर – सैनिक पड़ाव , खेमा
साहस – हिम्मत , उग्रता , प्रचंडता
भेद – राज़ , छेदना , अंतर , बिलगाव
न्योता – किसी आयोजन में सम्मिलित होने के लिए किसी को बुलाना , निमंत्रण
व्याख्या – लेखिका कहती हैं कि सभागृह में पड़ाव लगने के दो दिन बाद तोत्तो – चान के लिए एक ऐसा दिन आ गया था जब उसे कोई बहुत बड़ा हिम्मत वाला काम करना था। इस दिन उसे एक लड़के जिसका नाम यासुकी – चान था उससे मिलना था। उसने यासुकी – चान को अपने पेड़ पर चढ़ने का निमंत्रण दिया था।किन्तु इस राज़ का पता किसी को नहीं था। न तो तोत्तो – चान के माता – पिता को और न ही यासुकी – चान के माता – पिता को।
पाठ – तोमोए में हरेक बच्चा बाग के एक – एक पेड़ को अपने खुद के चढ़ने का पेड़ मानता था। तोत्तो – चान का पेड़ मैदान के बाहरी हिस्से में कुहोन्बुत्सु जाने वाली सड़क के पास था। बड़ा सा पेड़ था उसका , चढ़ने जाओ तो पैर फिसल – फिसल जाते। पर , ठीक से चढ़ने पर जमीन से कोई छह फुट की ऊँचाई पर एक द्विशाखा तक पहुँचा जा सकता था। बिलकुल किसी झूले सी आरामदेह जगह थी यह। तोत्तो – चान अकसर खाने की छुट्टी के समय या स्कूल के बाद ऊपर चढ़ी मिलती। वहाँ से वह सामने दूर तक ऊपर आकाश को या नीचे सड़क पर चलते लोगों को देखा करती थी।
बच्चे अपने – अपने पेड़ को निजी संपत्ति मानते थे। किसी दूसरे के पेड़ पर चढ़ना हो तो उससे पहले पूरी शिष्टता से , ” माफ़ कीजिए , क्या मैं अंदर आ जाऊँ ? ” पूछना पड़ता था।
नोट – कहानी के इस अंश में लेखिका जापान में एक ऐसी जगह का वर्णन कर रही हैं जहाँ पर हर बच्चा एक पेड़ को अपनी निजी सम्पति मानता था और उस पर बिना उसकी इज्जाजत के कोई नहीं चढ़ सकता था।
कठिन शब्द
तोमोए – जापान का एक गाँव
हरेक – हर एक, प्रत्येक
द्विशाखा – पेड़ के तने का वह भाग है जहाँ से दो मोटी-मोटी डालियाँ एक साथ निकलती हैं
आरामदेह – आरामदायक , आराम देने वाला
अकसर – अधिकतर , अकेला
निजी संपत्ति – वैयक्तिक उपयोग की वस्तुएं , अर्जित आय तथा बचत साथ ही उत्पादन के कतिपय साधन जो व्यक्तिगत रूप से इस्तेमाल किए जाते हैं ,
शिष्टता – सभ्य , शिष्ट आचरण
व्याख्या – लेखिका जापान के एक गाँव तोमोए की बात करते हुए कहती है कि तोमोए में हर एक बच्चा बाग के एक – एक पेड़ को अपने खुद के चढ़ने का पेड़ मानता था। कहने का तात्पर्य यह है कि तोमोए में प्रत्येक बच्चा बाग़ में मौजूद पेड़ों में से खुद के लिए एक पेड़ चुन लेता था और उस पर अपना हक समझता था। उसी तरह तोत्तो – चान ने भी उसका अपना एक चुन रखा था और उस का वह पेड़ मैदान के बाहरी हिस्से में कुहोन्बुत्सु जाने वाली सड़क के पास में मौजूद था। उसका चुना हुआ वह पेड़ बहुत बड़ा था , उस पर चढ़ना मुश्किल था क्योंकि जब भी तोत्तो – चान उस पर चढ़ने जाया करती थी तो उसके पैर बहुत ज्यादा फिसल जाया करते थे। परन्तु जब उस पेड़ पर ठीक से कोई चढ़ जाता था तो वह उस पेड़ की जमीन से कोई छह फुट की ऊँचाई पर पेड़ के तने का वह भाग था जहाँ से दो मोटी – मोटी डालियाँ एक साथ निकलती थी वहाँ तक पहुँच जाता था। वह जगह बिलकुल किसी झूले के सामान थी जो बहुत ही आराम देने वाली थी। तोत्तो – चान अधिकतर जब स्कूल में खाने की छुट्टी का समय होता था या स्कूल के बाद उस पेड़ के ऊपर चढ़ी हुई मिलती थी। वहाँ से वह सामने दूर तक ऊपर आकाश को या नीचे सड़क पर चलते हुए लोगों को देखा करती थी। लेखिका कहती हैं कि जापान के उस गाँव तोमोए के बच्चे अपने – अपने पेड़ को अपनी वैयक्तिक उपयोग की वस्तु मानते थे। अर्थात वे बच्चे जिस पेड़ को अपना कह देते थे उसे हमेशा के लिए अपनी सम्पति मान लेते थे। और यदि किसी दूसरे बच्चे को उनके पेड़ पर चढ़ना हो तो उससे पहले पूरे शिष्टाचार के साथ उस बच्चे से आज्ञा लेनी पड़ती थी जिसका वह पेड़ हो। उसे कुछ इस तरह कहना पड़ता कि माफ़ कीजिए , क्या मैं अंदर आ जाऊँ ? बिना अनुमति के कोई भी दूसरे बच्चे के पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था।
पाठ – यासुकी – चान को पोलियो था , इसलिए वह न तो किसी पेड़ पर चढ़ पाता था और न किसी पेड़ को निजी संपत्ति मानता था। अतः तोत्तो – चान ने उसे अपने पेड़ पर आमंत्रित किया था। पर यह बात उन्होंने किसी से नहीं कही , क्योंकि अगर बड़े सुनते तो जरूर डाँटते। घर से निकलते समय तोत्तो – चान ने माँ से कहा कि वह यासुकी – चान के घर डेनेनचोफु जा रही है। चूँकि वह झूठ बोल रही थी , इसलिए उसने माँ की आँखों में नहीं झाँका। वह अपनी नज़रें जूतों के फीतों पर ही गड़ाए रही। रॉकी उसके पीछे – पीछे स्टेशन तक आया। जाने से पहले उसे सच बताए बिना तोत्तो – चान से रहा नहीं गया।
” मैं यासुकी – चान को अपने पेड़ पर चढ़ने देने वाली हूँ ” , उसने बताया।
नोट – कहानी के इस भाग में लेखिका वर्णन कर रही हैं कि यासुकी – चान को पोलियो था जिस कारण उसका अपना कोई पेड़ नहीं था इसीलिए तोत्तो – चान ने उसे अपने पेड़ पर आमंत्रित किया था किन्तु इस बात का पता किसी को भी नहीं था। क्योंकि यासुकी – चान का पेड़ पर चढ़ना किसी खतरे से खाली नहीं था।
कठिन शब्द
आमंत्रित – निमंत्रित , बुलाया हुआ , बुलाना , निमंत्रण देना
व्याख्या – लेखिका बताती हैं कि यासुकी – चान को पोलियो था , जिस कारण दूसरे बच्चों की तरह वह न तो किसी पेड़ पर चढ़ पाता था और न किसी पेड़ को निजी संपत्ति मानता था। इसका अर्थ यह हुआ कि यासुकी – चान का अपना कोई पेड़ नहीं था , इसी कारण तोत्तो – चान ने यासुकी – चान को अपने पेड़ पर निमंत्रित किया था। यासुकि – चान को अपने पेड़ पर तो बुला लिया था किन्तु तोत्तो – चान ने यह बात किसी से नहीं कही थी और न ही यासुकि – चान ने अपने घर पर किसी को बताया था कि वह तोत्तो – चान के पेड़ पर चढ़ने वाला है , क्योंकि अगर दोनों के घर के बड़े लोग इस बात को सुनते तो उन्हें जरूर डाँटते क्योंकि यासुकि – चान अपने पोलियो के कारण पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था और तोत्तो – चान भी अभी छोटी बच्ची ही थी , जिस कारण वह भी यासुकि – चान की मदद नहीं कर सकती थी। यासुकी – चान का पेड़ पर चढ़ना किसी खतरे से खाली नहीं था। ऐसा करने पर उन दोनों को ही चोट लग सकती थी। इसी वजह से घर से निकलते समय तोत्तो – चान ने अपनी माँ से कहा कि वह यासुकी – चान के घर डेनेनचोफु जा रही है। क्योंकि वह झूठ बोल रही थी , इसलिए उसने माँ की आँखों में नहीं देखा। वह अपनी नज़रें जूतों के फीतों पर ही गड़ाए रही। कहने का तात्पर्य यह है कि झूठ बोलते हुए तोत्तो – चान अपनी माँ की आँखों में इसलिए नहीं देख रही थी क्योंकि उसे मालूम था कि उसकी माँ यह जोखिम भरा कार्य नहीं करने देगी। इसके साथ ही उसे यह डर भी था कि शायद वह माँ से नजरें मिलाकर जब यह बात कहेगी तो उसका झूठ पकड़ा जाएगा। उसका भाई रॉकी उसे यासुकि – चान के घर छोड़ने उसके पीछे – पीछे स्टेशन तक आया। जाने से पहले तोत्तो – चान से उसे सच बताए बिना नहीं रहा गया। अर्थात तोत्तो – चान ने अपने भाई को बता दिया कि वह यासुकी – चान को अपने पेड़ पर चढ़ने देने वाली है।
पाठ – जब तोत्तो – चान स्कूल पहुँची तो रेल – पास उसके गले के आसपास हवा में उड़ रहा था। यासुकी – चान उसे मैदान में क्यारियों के पास मिला। गरमी की छुट्टियों के कारण सब सूना पड़ा था। यासुकी – चान उससे कुल जमा एक ही वर्ष बड़ा था , पर तोत्तो – चान को वह अपने से बहुत बड़ा लगता था।
जैसे ही यासुकी – चान ने तोत्तो – चान को देखा , वह पैर घसीटता हुआ उसकी ओर बढ़ा। उसके हाथ अपनी चाल को स्थिर करने के लिए दोनों ओर फैले हुए थे। तोत्तो – चान उत्तेजित थी। वे दोनों आज कुछ ऐसा करने वाले थे जिसका भेद किसी को भी पता न था। वह उल्लास में ठिठियाकर हँसने लगी। यासुकी – चान भी हँसने लगा।
नोट – कहानी के इस भाग में लेखिका तोत्तो – चान और यासुकि – चान की ख़ुशी का वर्णन कर रही हैं कि वे दोनों एक ऐसा काम जो किसी ने पहले नहीं किया था उस काम को करने के लिए बहुत उत्साहित थे।
कठिन शब्द
सूना – जनहीन , एकांत स्थान , खाली
घसीटना – वस्तु को इस प्रकार खींचना कि वह रगड़ खाती हुई खींचने वाले की तरफ बढ़ती जाये , शामिल करना
स्थिर – निश्चल , अचर , स्थायी
उत्तेजित – जिसमें उत्तेजना आई हो , उकसाया हुआ , भड़काया हुआ , उत्तेजना से भरा हुआ , प्रेरित , प्रोत्साहित
भेद – रहस्य , राज
उल्लास – खुशी , हर्ष , उमंग
ठिठियाकर – ठहाका मार कर हंसना
व्याख्या – लेखिका कहती हैं कि तोत्तो – चान जब अपने भाई को सब कुछ सच बता कर जब अपने स्कूल पहुँची तो रेल – पास उसके गले के आसपास हवा में उड़ रहा था। तोत्तो – चान को यासुकी – चान स्कूल के मैदान में बनी क्यारियों के पास मिला। स्कूल में गरमी की छुट्टियों होने के कारण कोई नहीं था , स्कूल में सब खाली पड़ा हुआ था। लेखिका बताती हैं कि यासुकी – चान , तोत्तो – चान से केवल एक ही वर्ष बड़ा था , परन्तु तोत्तो – चान को वह अपने से बहुत बड़ा लगता था। जैसे ही यासुकी – चान ने तोत्तो – चान को देखा , वह अपना पोलियो से ग्रसित पैर को घसीटता हुआ तोत्तो – चान की ओर चलने लगा। यासुकि – चान के दोनों हाथ उसकी चाल को स्थायी करने के लिए दोनों ओर फैले हुए थे। अर्थात यासुकि – चान इस तरह से अपने हाथों को फैला कर चल रहा था जिससे उसका संतुलन बना रहे और वह गिरे नहीं। तोत्तो – चान बहुत ही प्रोत्साहित थी क्योंकि वे दोनों आज कुछ ऐसा करने वाले थे जिसका राज किसी को भी पता न था। वह इतनी अधिक खुश थी कि वह ख़ुशी के कारण ठहाके मार कर हँसने लगी थी। यासुकी – चान भी उसे हँसता हुआ देख कर हँसने लगा था। कहने का तात्पर्य यह है कि जितनी ख़ुशी तोत्तो – चान को यासुकि – चान को अपने पेड़ पर चढ़ाने की हो रही थी उतनी ही ख़ुशी यासुकि – चान को भी हो रही थी क्योंकि वह पहली बार किसी पेड़ पर चढ़ने वाला था।
पाठ – तोत्तो – चान यासुकी – चान को अपने पेड़ की ओर ले गई और उसके बाद वह तुरंत चौकीदार के छप्पर की ओर भागी , जैसा उसने रात को ही तय कर लिया था। वहाँ से वह एक सीढ़ी घसीटती हुई लाई। उसे तने के सहारे ऐसे लगाया , जिससे वह द्विशाखा तक पहुँच जाए। वह कुरसी से ऊपर चढ़ी और सीढ़ी के किनारे को पकड़ लिया। तब उसने पुकारा , ” ठीक है , अब ऊपर चढ़ने की कोशिश करो। ”
यासुकी – चान के हाथ – पैर इतने कमजोर थे कि वह पहली सीढ़ी पर भी बिना सहारे के चढ़ नहीं पाया। इस पर तोत्तो – चान नीचे उतर आई और यासुकी – चान को पीछे से धकियाने लगी। पर तोत्तो – चान थी छोटी और नाजुक – सी , इससे अधिक सहायता क्या करती ! यासुकी – चान ने अपना पैर सीढ़ी पर से हटा लिया और हताशा से सिर झुकाकर खड़ा हो गया। तोत्तो – चान को पहली बार लगा कि काम उतना आसान नहीं है जितना वह सोचे बैठी थी। अब क्या करे वह ?
नोट – कहानी के इस भाग में लेखिका वर्णन कर रही हैं कि तोत्तो – चान किस तरह यासुकी – चान को अपने पेड़ पर चढ़ने में मदद कर रही है।
कठिन शब्द
धकियाना – ढकेलना , धक्का देना , प्रोत्साहित करना
नाज़ुक – कोमल , सुकुमार , पतला , महीन
हताशा – निराशा , दुःख , निष्फलता
व्याख्या – लेखिका कहती हैं कि तोत्तो – चान यासुकी – चान को अपने पेड़ की ओर ले गई और उसके बाद वह जल्दी से स्कूल के चौकीदार के छप्पर की ओर भागी , यह सब उसने रात को ही तय कर लिया था। कहने का तात्पर्य यह है कि तोत्तो – चान ने इसकी योजना पहली रात में ही बना दी थी कि किस तरह यासुकी – चान को वह अपने पेड़ पर चढ़ने में मदद करेगी। चौकीदार के छप्पर पर से वह एक सीढ़ी घसीटती हुई ले लाई। सीढ़ी को वह घसीटते हुए इसलिए ले आई क्योंकि छोटी सी होने के कारण सीढ़ी को उठा पाना उसके लिए आसान नहीं था। तोत्तो – चान ने सीढ़ी को अपने पेड़ के तने के सहारे ऐसे लगाया , जिससे वह पेड़ के तने के उस भाग तक पहुँच जाए जहाँ से दो मोटी – मोटी डालियाँ एक साथ निकलती हैं। तोत्तो – चान पहले स्वयं कुरसी के सहारे ऊपर चढ़ी और सीढ़ी के किनारे को पकड़ लिया। तब उसने यासुकि – चान को पुकारा और कहा कि ठीक है , अब वह भी ऊपर चढ़ने की कोशिश करे। तोत्तो – चान की बात सुन कर यासुकी – चान ने सीढ़ी पर चढ़ने की कोशिश की परन्तु यासुकी – चान के हाथ – पैर इतने कमजोर थे कि वह पहली सीढ़ी पर भी बिना किसी के सहारे के चढ़ नहीं पा रहा था। जब तोत्तो – चान ने देखा कि यासुकी – चान बिना सहारे के नहीं चढ़ पा रहा है तो तोत्तो – चान सीढ़ी पर से नीचे उतर आई और यासुकी – चान को सहारे देते हुए पीछे से धक्का देने लगी। परन्तु तोत्तो – चान थी तो छोटी और कोमल – सी ही , यासुकी – चान को धक्का देने के अलावा वह और क्या कर सकती थी। यासुकी – चान ने अपना पैर सीढ़ी पर से हटा लिया और हनिराशा के साथ सिर झुकाकर खड़ा हो गया। क्योंकि उसे अब लग रहा था कि अब वह पेड़ पर नहीं चढ़ पाएगा। तोत्तो – चान को अब पहली बार ऐसा लगने लगा था कि यासुकी – चान को पेड़ पर चढ़ाने का काम उतना भी आसान नहीं है जितना वह सोच कर बैठी थी। अब तोत्तो – चान सोच में पड़ गई थी कि अब वह यासुकी – चान को पेड़ पर चढ़ाने के लिए क्या करे ? कहने का तात्पर्य यह है कि तोत्तो चान छोटी जरूर थी परन्तु वह बहुत बहादुर और साहसी थी , तभी तो एक बार असफल होने पर भी उसने हार नहीं मानी और यासुकी – चान को पेड़ पर चढ़ाने के लिए कुछ और योजना सोचने लगी।
पाठ – यासुकी – चान उसके पेड़ पर चढ़े , यह उसकी हार्दिक इच्छा थी। यासुकी – चान के मन में भी उत्साह था। वह उसके सामने गई। उसका लटका चेहरा इतना उदास था कि तोत्तो – चान को उसे हँसाने के लिए गाल फुलाकर तरह – तरह के चेहरे बनाने पडे़।
” ठहरो , एक बात सूझी है। ”
वह फिर चौकीदार के छप्पर की ओर दौड़ी और हरेक चीज उलट – पुलटकर देखने लगी। आखिर उसे एक तिपाई – सीढ़ी मिली जिसे थामे रहना भी जरुरी नहीं था।
वह तिपाई – सीढ़ी को घसीटकर ले आई तो अपनी शक्ति पर हैरान होने लगी। तिपाई की ऊपरी सीढ़ी द्विशाखा तक पहुँच रही थी।
” देखो , अब डरना मत , ” उसने बड़ी बहन की – सी आवाज में कहा , ” यह डगमगाएगी नहीं। ”
यासुकी – चान ने घबराकर तिपाई – सीढ़ी और पसीने से तरबतर तोत्तो – चान की ओर देखा। उसे भी काफी पसीना आ रहा था। उसने पेड़ की ओर देखा और तब निश्चय के साथ पाँव उठाकर पहली सीढ़ी पर रखा।
नोट – कहानी के इस अंश में लेखिका वर्णन कर रही हैं कि एक बार निराशा हाथ लगने पर भी किस तरह तोत्तो – चान हार नहीं मानती और दूसरी योजना के साथ यासुकी – चान का हौसला बढ़ाते हुए उसे पेड़ पर चढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है।
कठिन शब्द
हार्दिक इच्छा – अभिलाषा , चाह , ख़्वाहिश , तमन्ना , कामना , इष्ट , प्रिय या सुखद वस्तु को प्राप्त करने की मनोवृत्ति , तृप्ति या संतोष के लिए मन में होने वाली चाह
उत्साह – उमंग , हौसला , चेष्टा
तिपाई – तीन पायों वाली बैठने की चौकी , तीन पैरों वाली
डगमगाना – क़दम ठीक से न पड़ना , ज़ोर से इधर-उधर हिलना-डुलना , डगमग करने लगना , विचलित करना
तर-बतर – अधिक भीगा हुआ
निश्चय – संकल्प करना , प्रस्ताव , रिजोल्यूशन , निश्चित रूप से , अवश्य
व्याख्या – लेखिका कहती है कि तोत्तो – चान की बहुत बड़ी ख़्वाहिश थी कि यासुकी – चान उसके पेड़ पर चढ़े। यासुकी – चान के मन में भी इस बात की बहुत अधिक ख़ुशी थी कि वह पहली बार पेड़ पर चढ़ने वाला था। लेकिन जब पहली कोशिश में वह असफल हो गया तो तोत्तो – चान उसके सामने गई। जब तोत्तो – चान ने यासुकी – चान का उदासी के कारण लटका हुआ चेहरा इतना उदास था कि तोत्तो – चान को बहुत बुरा लगा और तोत्तो – चान को यासुकी – चान को हँसाने के लिए गाल फुलाकर तरह – तरह के चेहरे बनाने पडे़। कहने का तात्पर्य यह है कि तोत्तो – चान बहुत अच्छी लड़की थी वह यासुकी – चान को दुःखी नहीं देख पा रही थी इसी कारण वह किसी जोकर की तरह अपना मुँह बना कर यासुकी – चान को खुश करने की कोशिश करने लगी। जब तोत्तो – चान यासुकी – चान को हसाने का प्रयास कर रही थी तभी उसे एक दूसरी योजना सूझी। वह फिर से स्कूल के चौकीदार के छप्पर की ओर दौड़ी और वहाँ पर मौजूद हर एक चीज को उलट – पुलटकर देखने लगी। आखिर उसे एक तीन पैरों वाली सीढ़ी मिल गई , जिसे पकड़ कर रखना भी जरुरी नहीं था। कहने का तात्पर्य यह है कि जो सीढ़ी तोत्तो – चान पहले ले कर आई थी वह दो पैरों वाली थी जिस कारण जब तोत्तो – चान और यासुकी चान उस से पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे तो उन्हें सही से चढ़ने के लिए उसे पकड़ने की जरुरत पड़ रही थी , नहीं तो उस सीढ़ी का संतुलन बिगड़ सकता था और वे गिर सकते थे और सहारे की जरुरत के कारण यासुकी – चान उससे पेड़ पर नहीं चढ़ पा रहा था क्योंकि सीढ़ी का सहारा लेने के लिए उसके हाथ और पैर बहुत कमजोर थे। अब तोत्तो – चान जिस सीढ़ी को ले कर आई थी वह तिपाई – सीढ़ी यानि वह तीन पैर वाली सीडी थी जिसको किसी सहारे की आवश्यकता नहीं पड़ती और वह दो पैरों वाली सीढ़ी से ज्यादा सुरक्षित होती है। लेखिका कहती है कि जब तोत्तो – चान उस तीन पैरों वाली सीढ़ी को घसीटकर ले आई तो उसे खुद की शक्ति पर अर्थात ताकत पर हैरानी होने लगी। क्योंकि तीन पैरों वाली सीढ़ी उस दो पैरों वाली सीढ़ी से ज्यादा भारी थी। वह तीन पैरों वाली सीढ़ी की ऊपरी सीढ़ी पेड़ की उस शाखा तक पहुँच रही थी जहाँ पर से पेड़ की दो मोटी डालियाँ जुडी हुई थी। तोत्तो – चान ने यासुकी – चान को हिम्मत देते हुए बड़ी बहन की – सी आवाज में कहा कि देखो , अब डरना मत यह तीन पैरों वाली सीढ़ी जोर – जोर से इधर – उधर नहीं हिलेगी। यासुकी – चान ने घबराकर उस तीन पैरों वाली सीढ़ी को देखा और फिर पसीने से बुरी तरह भीगी हुई तोत्तो – चान की ओर देखा। यासुकी – चान को भी काफी पसीना आ रहा था। यासुकी – चान ने पेड़ की ओर देखा और फिर दृढ़ संकल्प के साथ पाँव उठाकर पहली सीढ़ी पर रखा। कहने का तात्पर्य यह है कि यासुकी – चान किसी भी कीमत पर पेड़ पर चढ़ना चाहता था और जब उसने तोत्तो – चान को उसके लिए कड़ी मेहनत करते हुए देखा तो उसने अपने डर को एक तरफ करके पेड़ पर चढ़ने का फैसला कर लिया।
पाठ – उन दोनों को यह बिलकुल भी पता न चला कि कितना समय यासुकी – चान को ऊपर तक चढ़ने में लगा। सूरज का ताप उन पर पड़ रहा था , पर दोनों का ध्यान यासुकी – चान के ऊपर तक पहुँचने में रमा था। तोत्तो – चान नीचे से उसका एक – एक पैर सीढ़ी पर धरने में मदद कर रही थी। अपने सिर से वह उसके पिछले हिस्से को भी स्थिर करती रही। यासुकी – चान पूरी शक्ति के साथ जूझ रहा था और आखिर वह ऊपर पहुँच गया।
” हुर्रे ! ” पर , उसे अचानक सारी मेहनत बेकार लगने लगी। तोत्तो – चान तो सीढ़ी पर से छलाँग लगाकर
द्विशाखा पर पहुँच गई , पर यासुकी-चान को सीढ़ी से पेड़ पर लाने की हर कोशिश बेकार रही। यासुकी – चान सीढ़ी थामे तोत्तो – चान की ओर ताकने लगा। तोत्तो – चान की रुलाई छूटने को हुई। उसने चाहा था कि यासुकी – चान को अपने पेड़ पर आमंत्रित कर तमाम नयी – नयी चीजें दिखाए।
पर , वह रोई नहीं। उसे डर था कि उसके रोने पर यासुकी – चान भी रो पड़ेगा। उसने यासुकी – चान का पोलियो से पिचकी और अकड़ी उँगलियों वाला हाथ अपने हाथ में थाम लिया। उसके खुद के हाथ से वह बड़ा था , उँगलियाँ भी लंबी थीं। देर तक तोत्तो – चान उसका हाथ थामे रही। तब बोली , ” तुम लेट जाओ , मैं तुम्हें पेड़ पर खींचने की कोशिश करती हूँ। “
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखिका तोत्तो – चान और यासुकी – चान की लगातार कोशिश करने के बाद भी असफल होने का वर्णन कर रही हैं लेकिन साथ ही तोत्तो – चान की हिम्मत और यासुकी – चान को पेड़ पर चढ़ाने की ज़िद का भी वर्णन कर रही हैं।
कठिन शब्द
ताप – गर्मी , तपिश , आँच
धरने – रखने
रुलाई – रोने का भाव , रोने की प्रवृत्ति
व्याख्या – लेखिका कहती हैं कि जब हिम्मत करके यासुकी – चान सीढ़ी पर चढ़ने लगा तो तोत्तो – चान और यासुकी – चान में से यह बिलकुल भी किसी को पता नहीं चला कि यासुकी – चान को ऊपर तक चढ़ने में कितना समय लगा था। अर्थात यासुकी – चान बहुत कमजोर था जिस कारण उसे सीढ़ी के आखरी सीढ़ी पर पहुँचने में बहुत अधिक समय लगा था। सूरज की गर्म किरणें उन दोनों पर पड़ रही थी , पर दोनों का ही ध्यान गर्मी पर बिलकुल नहीं था , उन दोनों का पूरा ध्यान तो यासुकी – चान के ऊपर तक पहुँचने में लगा हुआ था। तोत्तो – चान नीचे से यासुकी – चान का एक – एक पैर सीढ़ी पर रखने में उसकी मदद कर रही थी। अर्थात यासुकी – चान इतना कमजोर था कि अपने आप उससे अपना पैर एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी तक नहीं उठाया जा रहा था , इसी कारण तोत्तो – चान उसकी मदद कर रही थी। यासुकी – चान के पैरो को ऊपर की सीढ़ी पर रखते हुए तोत्तो – चान अपने सिर से यासुकी – चान के पिछले हिस्से को भी सीधा करती रही। कहने का तात्पर्य यह है कि यासुकी – चान पोलियो के कारण बहुत कमजोर था और उसके शरीर में खुद को सही से संतुलित करने की शक्ति नहीं थी और जब वह सीढ़ी पर चढ़ने का प्रयास कर रहा था तो उसका शरीर इधर – उधर हिल – डुल रहा था जिस कारण उसके गिरने की सम्भावना बढ़ रही थी , यही कारण है कि तोत्तो – चान उससे सहारे देने के लिए अपने सिर का इस्तेमाल कर रही थी क्योंकि उसके दोनों हाथ तो यासुकी – चान के पैरों को ऊपर धकेलने में व्यस्त थे। तोत्तो – चान के साथ – साथ यासुकी – चान भी अपनी पूरी शक्ति के साथ जूझ रहा था और आखिर वह ऊपर पहुँच गया। वह एक पल में तो खुशी के मारे चिल्ला उठा परन्तु , उसे अचानक अपनी और तोत्तो – चान की सारी मेहनत बेकार लगने लगी। क्योंकि तोत्तो – चान तो सीढ़ी पर से छलाँग लगाकर पेड़ के उस हिस्से पर पहुँच गई जहाँ दो मोटी – मोटी शाखाएँ जुड़ी हुई थी , पर यासुकी – चान को सीढ़ी से पेड़ पर लाने की हर कोशिश बेकार रही। यासुकी – चान सीढ़ी थामे हुए तोत्तो – चान की ओर देखने लगा। यह सब देख कर तोत्तो – चान को रोना आने वाला था। उसने यह चाहा था कि वह यासुकी – चान को अपने पेड़ पर आमंत्रित कर के वो सारी नयी – नयी चीजें दिखाए जो उसने पहले कभी नहीं देखी थी। तोत्तो – चान को रोना जरूर आ रहा था परन्तु वह रोई नहीं। क्योंकि उसे डर था कि अगर वह ही रोने लगेगी तो यासुकी – चान भी रो पड़ेगा। तोत्तो – चान ने यासुकी – चान को हिम्मत देने के लिए उसकी पोलियो से पिचकी और अकड़ी हुई उँगलियों वाला हाथ अपने हाथ में थाम लिया। यासुकी – चान भले ही पोलियो ग्रस्त था लेकिन उसका हाथ और उसकी उँगलियाँ तोत्तो – चान से फिर भी लंबी थीं। कहने का तात्पर्य यह है कि तोत्तो – चान यासुकी – चान से काफी छोटी थी परन्तु हिम्मत में वह उससे बहुत बड़ी थी। बहुत देर तक तोत्तो – चान यासुकी – चान का हाथ पकड़ कर रही। और फिर उससे बोली कि वह लेट जाए , वह उसे पेड़ पर खींचने की कोशिश करेगी। कहने का अभिप्राय यह है कि तोत्तो – चान किसी भी तरह से हार नहीं मानने वाली थी , वह हर कीमत पर यासुकी – चान को अपने पेड़ पर से वह सारी चीज़े दिखाना चाहती थी जो उसने पहले कभी नहीं देखी थीं।
पाठ – उस समय द्विशाखा पर खड़ी तोत्तो – चान द्वारा यासुकी – चान को पेड़ की ओर खींचते अगर कोई बड़ा देखता तो वह जरूर डर के मारे चीख उठता। उसे वे सच में जोखिम उठाते ही दिखाई देते। पर यासुकी – चान को तोत्तो – चान पर पूरा भरोसा था और वह खुद भी यासुकी – चान के लिए भारी खतरा उठा रही थी। अपने नन्हें – नन्हें हाथों से वह पूरी ताकत से यासुकी – चान को खींचने लगी। बादल का एक बड़ा टुकड़ा बीच – बीच में छाया करके उन्हें कड़कती धूप से बचा रहा था। काफी मेहनत के बाद दोनों आमने – सामने पेड़ की द्विशाखा पर थे। पसीने से तरबतर अपने बालों को चेहरे पर से हटाते हुए तोत्तो – चान ने सम्मान से झुककर कहा , ” मेरे पेड़ पर तुम्हारा स्वागत है। ”
यासुकी – चान डाल के सहारे खड़ा था। कुछ झिझकता हुआ वह मुसकराया। तब उसने पूछा , ” क्या मैं अंदर आ सकता हूँ ? “
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखिका ने तोत्तो – चान और यासुकी – चान के द्वारा पेड़ पर चढ़ने में की गई मेहनत में मिलने वाली सफलता का वर्णन कर रही है।
कठिन शब्द
जोखिम – हानि , अनिष्ट , घाटे की संभावना , ख़तरा , संकट
भरोसा – आत्मविश्वास , विश्वास , पक्की आशा , आस्था , आश्रय , सहारा , अवलंब
झिझकना – झिझकने की क्रिया या भाव , किसी कार्य में लज्जा या भय आदि के कारण होने वाला संकोच , हिचक
व्याख्या – लेखिका कहती है कि जब तोत्तो – चान यासुकी – चान को पेड़ पर चढ़ने में मदद करते हुए खींच रही थी तो उस समय उस पेड़ की शाखा पर खड़ी तोत्तो – चान द्वारा यासुकी – चान को पेड़ की ओर खींचते हुए अगर कोई बड़ा देख लेता तो वह जरूर डर के मारे चीख उठता। कहने का तात्पर्य यह है कि तोत्तो – चान यासुकी – चान से बहुत छोटी थी और यासुकी – चान बहुत बड़ा था , जिस कारण तोत्तो – चान को अगर कोई अपने से बड़े यासुकी – चान का पूरा भार खींच कर पेड़ पर चढ़ाते हुए देखता तो उसे वे सच में बहुत बड़ा खतरा उठाते ही दिखाई देते। क्योंकि यासुकी – चान बड़ा होने के साथ ही शारीरिक रूप से अस्वस्थ भी था जिस कारण अगर थोड़ी सी भी गलती के कारण वो सीढ़ी से निचे गिर जाता तो उसे बहुत चोट लग सकती थी। परन्तु लेखिका कहती है कि यासुकी – चान को तो तोत्तो – चान पर पूरा विश्वास था और तोत्तो – चान खुद भी तो यासुकी – चान के लिए बहुत बड़ा खतरा उठा रही थी। अपने छोटे – छोटे हाथों से वह पूरी ताकत से यासुकी – चान को पेड़ की ओर खींचने लगी थी। आसमान में बादल का एक बड़ा टुकड़ा बीच – बीच में छाया करके उन्हें सूरज की कड़कती धूप से बचा रहा था। कहने का अभिप्राय यह है कि शायद भगवान् भी उन दोनों की कड़ी मेहनत को देख कर खुश हो गए थे , इसीलिए उन्हें सूरज की कड़कड़ाती धूप से बचाने के लिए बादल का बड़ा सा टुकड़ा आसमान में भेज दिया था। काफी मेहनत करने के बाद दोनों आमने – सामने पेड़ की उस शाखा पर खड़े थे , जहाँ से पेड़ की दो मोटी शाखाएँ जुड़ रही थी। पसीने से पूरी तरह भीगे हुए अपने बालों को अपने चेहरे पर से हटाते हुए तोत्तो – चान ने सम्मान के साथ झुककर यासुकी – चान का अपने पेड़ पर स्वागत किया। यासुकी – चान डाल के सहारे खड़ा था। क्योंकि पोलियो के कारण उसका शरीर बिना किसी सहारे के खड़े रहने में असमर्थ था। तोत्तो – चान के द्वारा अपना स्वागत करते देख यासुकी – चान कुछ संकोच करता हुआ थोड़ा सा मुसकराया। और तब उसने परम्परागत तैर पर तोत्तो – चान से पूछा कि क्या वह अंदर आ सकता है ?
पाठ – उस दिन यासुकी – चान ने दुनिया की एक नयी झलक देखी , जिसे उसने पहले कभी न देखा था। ” तो ऐसा होता है पेड़ पर चढ़ना ” , यासुकी – चान ने
खुश होते हुए कहा।
वे बड़ी देर तक पेड़ पर बैठे – बैठे इधर – उधर की गप्पें लड़ाते रहे।
” मेरी बहन अमरीका में है , उसने बताया है कि वहाँ एक चीज होती है – टेलीविजन। ” यासुकी – चान उमंग से भरा बता रहा था , ” वह कहती है कि जब वह जापान में आ जाएगा तो हम घर बैठे – बैठे ही सूमो – कुश्ती देख सकेंगे। वह कहती है कि टेलीविजन एक डिब्बे जैसा होता है। ”
तोत्तो – चान उस समय यह तो न समझ पाई कि यासुकी – चान के लिए , जो कहीं भी दूर तक चल नहीं सकता था , घर बैठे चीजों को देख लेने के क्या अर्थ होंगे ? वह तो यह ही सोचती रही कि सूमो पहलवान घर में रखे किसी डिब्बे में कैसे समा जाएँगे ? उनका आकार तो बड़ा होता है , पर बात उसे बड़ी लुभावनी लगी। उन दिनों टेलीविजन के बारे में कोई नहीं जानता था। पहले – पहल यासुकी – चान ने ही तोत्तो – चान को उसके बारे में बताया था।
पेड़ मानो गीत गा रहे थे और दोनों बेहद खुश थे। यासुकी – चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह पहला और अंतिम मौका था।
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखिका कहती है कि तोत्तो – चान के पेड़ पर से यासुकी – चान ने बहुत ही अनोखी दुनिया देखी थी और वह बहुत ज्यादा खुश भी था।
कठिन शब्द
उमंग – उल्लास , मौज , ख़ुशी
लुभावनी – मोहक , सुंदर , आकर्षक
व्याख्या – लेखिका कहती हैं कि जब यासुकी – चान तोत्तो – चान के पेड़ पर चढ़ा तो उस दिन यासुकी – चान ने दुनिया की एक नयी झलक देखी थी , जिस दुनिया को उसने पहले कभी नहीं देखा था। कहने का तात्पर्य यह है कि यासुकी – चान कभी पेड़ पर नहीं चढ़ा था तो उसे नहीं पता था कि पेड़ के ऊपर से सारी दुनिया कैसी दिखती है , जिस कारण जब वह पेड़ पर चढ़ता है तो वह हैरानी से और ख़ुशी से बोल पड़ता है कि तो ऐसा होता है पेड़ पर चढ़ना। अर्थात वह पेड़ पर से अलग दुनिया देख कर बहुत हैरान था। लेखिका कहती हैं कि वे दोनों बड़ी देर तक पेड़ पर बैठे – बैठे इधर – उधर की गप्पें लड़ाते रहे। अर्थात – इधर उधर की बैफजूल बातें कर रहे थे। यासुकी – चान ख़ुशी से भरा हुआ था और तोत्तो – चान को बता रहा था कि उसकी बहन अमरीका में है , और उसने यासुकी – चान को बताया है कि वहाँ एक चीज होती है – टेलीविजन। टेलीविजन के बारे में वह कहती है कि जब टेलीविजन जापान में आ जाएगा तो सब घर बैठे – बैठे ही सूमो – कुश्ती देख सकेंगे। वह कहती है कि टेलीविजन एक डिब्बे जैसा होता है। तोत्तो – चान उस समय यह तो न समझ पाई कि यासुकी – चान के लिए , जो कहीं भी दूर तक चल नहीं सकता था , घर बैठे चीजों को देख लेने के क्या अर्थ होंगे ? कहने का तात्पर्य यह है कि तोत्तो – चान को यासुकी – चान की कोई भी बात समझ में नहीं आ रही थी क्योंकि यासुकी – चान जिस टेलीविजन के बारे में बता रहा था वह जापान में किसी ने नहीं देखा था। यासुकी – चान की बातें सुन कर वह तो यह ही सोचती रही कि कोई सूमो पहलवान घर में रखे किसी डिब्बे में कैसे समाजाएँगे ? क्योंकि सूमो पहलवान का आकार तो बड़ा होता है। परन्तु फिर भी उसे यासुकी – चान की बात बहुत मन मोहक लगी। उन दिनों जापान में टेलीविजन के बारे में कोई नहीं जानता था। सबसे पहले यासुकी – चान ही था जिसने तोत्तो – चान को टेलीविजन के बारे में बताया था। लेखिका कहती हैं कि उस समय ऐसा लग रहा था कि पेड़ मानो गीत गा रहे थे और दोनों ही बहुत ज्यादा खुश थे। क्योंकि उन्होंने कड़ी मेहनत के बाद अपने लक्ष्य को हासिल किया था। यासुकी – चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह पहला और अंतिम मौका था। कहने का तात्पर्य यह है कि यासुकी – चान का यह पहले मौका था जब वह पेड़ पर चढ़ा था और आखरी इसलिए क्योंकि उन दोनों को बहुत मेहनत करनी पड़ी थी और साथ – ही – साथ यह बहुत खतरे वाला काम भी था।
Apurv Anubhav Question Answer (अपूर्व अनुभव प्रश्न-अभ्यास)
प्रश्न 1 – यासुकी – चान को अपने पेड़ पर चढ़ाने के लिए तोत्तो – चान ने अथक प्रयास क्यों किया ? लिखिए।
उत्तर – यासुकी – चान तोत्तो – चान का एक बहुत अच्छा मित्र था। यासुकी – चान को पोलियो था , जिस कारण दूसरे बच्चों की तरह वह न तो किसी पेड़ पर चढ़ पाता था और न किसी पेड़ को निजी संपत्ति मानता था। इसका अर्थ यह हुआ कि यासुकी – चान का अपना कोई पेड़ नहीं था। जबकि जापान के शहर तोमोए में हर बच्चे का एक निजी पेड़ था , लेकिन यासुकी – चान ने शारीरिक अपंगता के कारण किसी पेड़ को निजी नहीं बनाया था। तोत्तो – चान की अपनी इच्छा थी कि वह यासुकी – चान को अपने पेड़ पर आमंत्रित कर एक नयी दुनिया दिखाए , जो यासुकी – चान में अब तक नहीं देखी थी। यही कारण था कि उसने यासुकी – चान को अपने पेड़ पर चढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया।
प्रश्न 2 – दृढ़ निश्चय और अथक परिश्रम से सफलता पाने के बाद तोत्तो – चान और यासुकी – चान को अपूर्व अनुभव मिला , इन दोनों के अपूर्व अनुभव कुछ अलग – अलग थे। दोनों में क्या अंतर रहे ? लिखिए।
उत्तर – दृढ़ निश्चय और अथक परिश्रम से पेड़ पर चढ़ने की सफलता पाने के बाद तोत्तो – चान और यासुकी – चान को अपूर्व अनुभव मिला। इन दोनों के अपूर्व अनुभव का अंतर निम्न रूप में कह सकते हैं –
तोत्तो – चान = तोत्तो – चान खुद तो रोज़ ही अपने निजी पेड़ पर चढ़ी हुई मिलती थी। लेकिन पेड़ की उस शाखा तक जहाँ से पेड़ की दो मोटी शाखाएँ मिलती थी और तोत्तो – चान जहाँ बैठ कर आनंद लेती थी , वहां पर यासुकी – छान को पहुँचाने से उसे अपूर्व आत्म – संतुष्टि व खुशी प्राप्त हुई क्योंकि उसके इस जोखिम भरे कार्य से यासुकी – चान को अत्यधिक प्रसन्नता मिल थी। मित्र को प्रसन्न करने में ही वह प्रसन्न थी। साथ – ही – साथ उसका अपने मित्र को पेड़ पर से दुनिया दिखने का लक्ष्य भी सफल हो गया था।
यासुकी – चान = यासुकी – चान को पेड़ पर चढ़कर अपूर्व खुशी मिली। तोत्तो – चान ने उसके मन की चाह पूरी कर दी थी। पेड़ पर चढ़ना तो दूर वह तो निजी पेड़ बनाने के लिए भी शारीरिक रूप से सक्षम नहीं था। उसे ऐसा सुख पहले कभी न मिला था। तभी तो जब वह पहली बार पेड़ पर चढ़ा तो उसके मुँह से निकला कि तो ऐसा होता है पेड़ पर चढ़ना।
प्रश्न 3 – पाठ में खोजकर देखिए – कब सूरज का ताप यासुकी – चान और तोत्तो – चान पर पड़ रहा था , वे दोनों पसीने से तरबतर हो रहे थे और कब बादल का एक टुकड़ा उन्हें छाया देकर कड़कती धूप से बचाने लगा था। आपके अनुसार , इस प्रकार परिस्थिति के बदलने का कारण क्या हो सकता है ?
उत्तर – पहली सीढ़ी से यासुकी – चान का पेड़ पर चढ़ने का प्रयास जब असफल हो जाता है तो तोत्तो – चान तिपाई – सीढी खींचकर ले आती है। वह किसी भी कीमत पर यासुकी – चान को अपने पेड़ पर चढ़ाना चाहती थी। अपने अथक प्रयास से उसे ऊपर चढ़ाने का प्रयास करने लगी तो दोनों तेज़ धूप में पसीने से पूरी तरह भीग गए थे। दोनों के इस अथक संघर्ष के बीच बादल का एक टुकड़ा उन्हें छाया कर उन्हें कड़कती धूप से बचाने लगा। शायद भगवान् भी उन दोनों की कड़ी मेहनत को देख कर खुश हो गए थे , इसीलिए उन्हें सूरज की कड़कड़ाती धूप से बचाने के लिए बादल का बड़ा सा टुकड़ा आसमान में भेज दिया था।
प्रश्न 4 – ‘ यासुकी – चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह ………अंतिम मौका था। ’ इस अधूरे वाक्य को पूरा कीजिए और लिखकर बताइए कि लेखिका ने ऐसा क्यों लिखा होगा ?
उत्तर – ‘ यासुकी – चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह अंतिम मौका था ’ लेखिका ने ऐसा इसलिए लिखा क्योंकि यासुकी – चान पोलियो ग्रस्त था। उसके लिए पेड़ पर चढ़ जाना असंभव था। यासुकी – चान का यह पहले मौका था जब वह पेड़ पर चढ़ा था और आखरी इसलिए क्योंकि उन दोनों को बहुत मेहनत करनी पड़ी थी और साथ – ही – साथ यह बहुत खतरे वाला काम भी था। तोत्तो – चान के अथक परिश्रम और साहस के बदौलत वह पहली बार पेड़ पर चढ़ पाया था। यह अवसर मिलना और कभी असंभव था। अगर उनके माता – पिता को इसकी जानकारी मिल जाती तो कभी यह काम करने नहीं देते। शायद दोबारा ऐसा कभी नहीं कर पाते।
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