NCERT Class 7 Hindi Chapter 5 Mithaiwala Summary, Explanation and Question Answers
Mithaiwala – NCERT Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 book Chapter 5 Mithaiwala Summary and detailed explanation of lesson “Mithaiwala” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with a summary and all the exercises, Questions and Answers given at the back of the lesson. Take Free Online MCQs Test for Class 7
इस लेख में हम हिंदी कक्षा 7 ” वसंत भाग – 2 ” के पाठ – 5 ” मिठाईवाला ” पाठ के पाठ – प्रवेश , पाठ – सार , पाठ – व्याख्या , कठिन – शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर , इन सभी के बारे में चर्चा करेंगे –
कक्षा – 7 पाठ 5 मिठाईवाला
- मिठाईवाला पाठ प्रवेश
- मिठाईवाला पाठ सार
- मिठाईवाला पाठ की व्याख्या
- मिठाईवाला प्रश्न-अभ्यास
- Class 7 Hindi Chapter 5 Mithaiwala MCQs
- मिठाईवाला Question Answers, Class 7 Chapter 5 NCERT Solutions
- Class 7 Hindi Chapter Wise Word Meanings
लेखक परिचय –
लेखक – भगवती प्रसाद वाजपेयी
मिठाईवाला पाठ प्रवेश
हमारे आस पास जिस भी व्यक्ति को देखते हैं , जरुरी नहीं कि हम उस व्यक्ति के बारे में सब कुछ जानते हों। हम नहीं जान सकते कि किसके मन में क्या है , जब तक वह व्यक्ति हमें खुद अपने बारे में न बता दे। हम नहीं जान सकते कि कौन – सा व्यक्ति कोई काम किस वजह से कर रहा है।
जैसे प्रस्तुत पाठ ” मिठाई वाला ” में मिठाई बेचने वाला अपना व्यापार बार – बार बदल – बदल कर बच्चों की मन पसंद चीजों को बेचने आता है। कभी वह खिलौने बेचने वाला बन कर आता है , तो कभी मुरली बेचने वाला बन कर और अंत में मिठाई बेचने वाला बन कर आता है। परन्तु उस मिठाई बेचने वाले की एक ख़ास बात थी कि वह बहुत ही कम दाम पर चीजे बेचता था और बच्चों से बहुत ही प्यार से बात करता था। यही ख़ास बात बच्चों के साथ – साथ बड़ों को भी उसके पास खींच कर ले आती थी। जब तक रोहिणी ने मिठाई बेचने वाले से नहीं पूछा था कि वह इतने कम दामों में चीजे क्यों बेचता है , तब तक वह नहीं जान पाई थी कि वह अपने बच्चों और पत्नी को खो चूका है और इन बच्चों की ख़ुशी में ही वह अपने बच्चों की ख़ुशी की झलक देखता है।
असल में लेखक ने इस पाठ में एक पिता का बच्चों के प्रति प्रेमभाव दर्शाया है। और हमे सीख देने की कोशिश कि है कि हमें भी दूसरों से बिना उनके बताए कभी -कभी उनके हाल के बारे में पूछ लेना चाहिए। क्या पता किसी को हमारी पूछी हुई बात से अपनेपन का अहसास हो जाए और वह थोड़ा अच्छा महसूस करे।
मिठाईवाला पाठ सार
प्रस्तुत पाठ में लेखक भगवती प्रसाद वाजपेयी ने एक पिता का बच्चों के प्रति प्रेमभाव दर्शाया है। किस तरह से एक पिता अपने बच्चों को खोने के बाद अन्य बच्चों में उनकी झलक देखता है। सबसे पहले वह खिलौने बेचने वाले के रूप में आता है। वह खिलौने बेचने वाला गलियों में खिलौने बेचने के लिए घूमता है तो वह बहुत ही मीठे स्वरों के साथ कहता है कि बच्चों को बहलाने वाला , खिलौने वाला। वह इस अधूरे वाक्य को इतने अनोखे , किन्तु बहुत ही नशीले और मधुर ढंग से गाकर कहता है कि जो कोई उसको सुनता है वह एक बार डाँवाँ डोल हो जाता था। छोटे – छोटे बच्चों को अपनी गोद में लिए महिलाएँ अपने घूँघटों को उठाकर छत के आगे वाले भाग पर से नीचे झाँकने लगती थी। गलियों में और उनके बीच में फैले हुए छोटे – छोटे बागों में खेलते और नखरे करते हुए बच्चों का झुंड उस खिलौने बेचने वाले को घेर लेता और तब वह खिलौने वाला वहीं बैठकर खिलौने की पेटी खोल देता था। वे हर्ष आदि से गद्गद् या रोमांचित हो उठते हैं । वे पैसे लाकर खिलौने का सौदा तय करने लगते हैं। उस खिलौने बेचने वाले से एक दिन राय विजयबहादुर के बच्चे भी खिलौने खरीद कर घर लेकर आए। राय विजयबहादुर के दो बच्चे थे – चुन्नू और मुन्नू ! दोनों बच्चों की माँ रोहिणी कुछ तक खड़े – खडे़ ही उनका खेल ध्यानपूर्वक देखती रही। अंत में दोनों बच्चों को बुलाकर उसने उनसे पूछा कि अरे ओ चुन्नू – मुन्नू , ये खिलौने तुमने कितने में लिए हैं ? अपनी माँ प्रश्न का उत्तर देते हुए मुन्नू बोला कि उन्होंने ये खिलौने दो पैसे में लिए हैं। उन्हें ये खिलौने , खिलौने वाला दे गया है। मुन्नू की बात सुनकर रोहिणी सोचने लगी की इतने सस्ते में खिलौने वाला उन्हें खिलौने कैसे दे गया है ? उसे ये बात समझ में नहीं आ रही थी कि इतने सस्ते में खिलौने कैसे दे गया है , यह तो वही खिलौने बेचने वाला जाने। खिलौने बेचने वाले व्यक्ति के द्वारा राय विजयबहादुर के दोनों बच्चों को कम दाम में खिलौने बेचने के छह महीने बीत जाने के बाद की एक और घटना का जिक्र करते हुए लेखक कहता है कि पुरे नगर में दो – चार दिनों से एक मुरली वाले के आने का समाचार फैल गया था। उस मुरली बेचने वाले के बारे में लोग कहने लगे थे कि वह मुरली बेचने वाला मुरली बजाने में भी एक प्रवीण या माहिर व्यक्ति है। लोगो बता रहे थे कि वह मुरली बजाकर , गाना सुनाकर मुरली बेचता भी है , वह भी केवल दो – दो पैसे में। सभी परेशान थे कि भला दो – दो पैसे में मुरली बेच कर उसे क्या मिलता होगा ? इतने में तो उसकी मेहनत का पैसा भी उसे नहीं मिलता होगा। हर दिन नगर की प्रत्येक गली में उसका वह नशीला , मन को मोहने वाला , कोमल स्वर सुनाई पड़ता था कि बच्चों को बहलाने वाला , मुरलियावाला। रोहिणी ने भी मुरली वाले का यह स्वर सुना। और सुनते ही तुरंत उसे उस खिलौने बेचने वाले की याद आ गई और उसने मन – ही – मन अपने आप से कहा कि वह खिलौने बेचने वाला भी इसी तरह गा – गाकर खिलौने बेचा करता था। रोहिणी उठी और अपने पति विजय बाबू के पास गई और उनसे कहा कि जरा उस मुरली वाले को बुलाओ , वह चुन्नू – मुन्नू के लिए मुरली लेना चाहती थी। मुरली वाले की आवाज सुन कर बच्चों का झुंड हड़बड़ाहट से , जल्दबाजी में भागते हुए ऐसे आए कि किसी की टोपी गली में गिर पड़ी। किसी का जूता पार्क में ही छूट गया , और किसी की सोथनी यानि पाजामा ही ढीला होकर लटक आया था। लेकिन किसी भी बच्चे को कोई परवाह नहीं थी , वे इसी तरह दौड़ते – हाँफते हुए मुरली बेचने वाले के पास पहुँच गए थे। वह बच्चों को समझते हुए बोला कि अभी इतनी जल्दी वह कहीं लौट कर नहीं जाएगा। वह मुरलियों को बेचने ही तो आया है और इस समय उसके पास एक – दो नहीं बल्कि पूरी सत्तावन मुरलियाँ हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि उसने इसलिए बच्चों को यह सब कहा ताकि बच्चे भगदड़ न मचाएँ और आराम से सभी मुरली ले लें। बच्चों को शांत करने के बाद मुरली बेचने वाले ने विजय बाबू से कहा कि हाँ , बाबू जी , क्या पूछा था आपने , कि कितने में दी मुरली ! उसने विजय बाबू को उत्तर देते हुए कहा कि वैसे तो तीन – तीन पैसे के हिसाब से हैं , पर आपको दो – दो पैसे में ही दे दूँगा। जब मुरली बेचने वाले ने विजय बाबू को कहा कि वह तीन – तीन पैसे के हिसाब से नहीं बल्कि विजय बाबू को दो – दो पैसे में ही मुरली दे देगा , तो विजय बाबू भीतर – बाहर दोनों रूपों में मुसकरा दिए और वे मन – ही – मन अपने आप से कहने लगे कि यह मुरली बेचने वाला कैसा व्यक्ति है क्योंकि विजय बाबू को लग रहा था कि वह मुरली वाला दो – दो पैसे में ही सबको मुरली बेचता है , परन्तु विजय बाबू को उसका ऐसा कहना कि वह तीन पैसे की जगह दो पैसे में ही उनको मुरली दे देगा , विजय बाबू को लग रहा था कि जैसे वह मुरली बेचने वाला उन पर एहसान कर रहा है। विजय बाबू फिर से उस मुरली बेचने वाले से बोले कि उन लोगों की झूठ बोलने की आदत होती है। क्योंकि वह मुरली बेचने वाला वैसे तो सभी को दो – दो पैसे में ही मुरली देता होगा और तीन की जगह दो पैसे में विजय बाबू को दे कर वह इस बात के एहसान का बोझा विजय बाबू पर ही लाद रहा है। विजय बाबू की बातों को सुन कर वह मुरली बेचने वाला एकदम से उदास हो गया। उदास हो कर वह विजय बाबू से बोला कि आप लोगों को क्या पता बाबू जी कि इनकी असली कीमत क्या है ! कहने का तात्पर्य यह है कि जब भी कोई चीज आप बाजार से लेते हैं तो उसका वही मूल्य नहीं होता जो उस चीज का निर्माण करने वाले ने तय किया हो क्योंकि उस चीज को दुकानदार तक पहुँचने तक कई जगहायों से गुजरना पड़ता है और दुकानदार उस चीज के निर्माण जगह से दूकान तक के सफर का खर्चा भी उसी चीज में जोड़ कर ग्राहकों को बेचता हैं। मुरली बेचने वाला विजय बाबू से कहता है कि यह तो ग्राहकों का नियम ही होता है कि दुकानदार चाहे हानि उठाकर ही अपनी कोई चीज़ क्यों न बेच रहा हो , पर ग्राहक यही समझते हैं कि दुकानदार उन्हें लूट ही रहा है। मुरली वाला विजय बाबू को यह सब समझा रहा था लेकिन विजय बाबू उससे बोले कि ठीक है उनके पास ज्यादा वक्त नहीं है , जल्दी से दो मुरलियाँ निकाल कर दे दो। विजय बाबू के दो मुरलियाँ मांगने पर मुरली बेचने वाले ने उन्हें दो मुरलियाँ दे दी। विजय बाबू उन दो मुरलियाँ को लेकर फिर अपने मकान के अंदर पहुँच गए। बच्चों को मुरलियाँ बेचने के बाद मुरली बेचने वाले ने एक बार फिर बच्चों के झुंड से पूछा कि अब तो किसी को नहीं लेना है ? सब ले चुके ? उन में से जब किसी बच्चे ने कहा कि उसकी माँ के पास पैसे नहीं हैं ? तो मुरली बेचने वाले ने उसे बिना पैसे के ही मुरली दे दी। सबको मुरली बेचने के बाद उस मुरली बेचने वाले ने उन बच्चों से विदा ले ली। इस तरह मुरली वाला फिर आगे बढ़ गया। कहने का तात्पर्य यह है कि मुरली बेचने वाला अपने मुनाफे के लिए नहीं बल्कि बच्चों की ख़ुशी के लिए मुरलियाँ बेचता था। अपने मकान में बैठी हुई रोहिणी मुरली बेचने वाले की सारी बातें सुनती रही। मुरली बेचने वाले का व्यवहार बहुत ही अच्छा था उसके इस वयवहार को देखते हुए रोहिणी को उसका इस तरह छोटी – छोटी चीज़े बेच कर वो भी कम दाम में , बुरा लग रहा था। कुछ दिन बीत जाने के बाद रोहिणी भी मुरली बेचने वाले को भूल गई थी। मुरली बेचने वाले को रोहिणी के मुहल्ले में आए अब आठ महीने बीत गए थे। अब सरदी के दिन आ गए थे। रोहिणी स्नान करके अपने मकान की छत पर चढ़कर अपने घुटनों तक लंबें बालों को सुखा रही थी। उसी समय नीचे की गली से रोहिणी को किसी के शब्द सुनाई पड़े कि बच्चों को बहलाने वाला , मिठाई वाला। मिठाई बेचने वाले के वो शब्द रोहिणी के लिए जाने – पहचने थे , उन शब्दों को सुन कर झट से रोहिणी छत से नीचे उतर आई। उस समय रोहिणी के पति विजय बाबू मकान में नहीं थे। केवल उनकी बूढ़ी दादी और रोहिणी ही घर पर थे। रोहिणी दादी माँ के पास आकर बोली कि दादी , चुन्नू – मुन्नू के लिए मिठाई लेनी है। जरा उस मिठाई बेचने वाले को बुला कर कमरे में चलकर ठहराओ। क्योंकि वह उधर नहीं जा सकती , उसे डर था कहीं कोई आ न जाए। रोहिणी ने दादी माँ से कहा कि वह जरा हटकर ऐसी वस्तु के पीछे छिप जाएगी की सामने मिठाई वाला उसे देख नहीं सकेगा। ( यहाँ हमें उस दौर में पर्दा प्रथा का प्रचलन स्पष्ट दिखाई दे रहा है क्योंकि जब रोहिणी मिठाई वाले से चुन्नू – मुन्नू के लिए मिठाइयाँ लेना चाहती थी तो वह स्वयं न जा कर दादी माँ को मिठाई वाले के सामने भेजती है और खुद छिप कर देखती रहती है क्योंकि मिठाई बेचने वाला अनजान आदमी था और अपने पति आलावा किसी अन्य आदमी के सामने न जाना पर्दा प्रथा को ही दर्शाता है। ) लेखक कहता है कि रोहिणी की बात सुन कर दादी माँ उठकर कमरे में आकर बोली कि ए मिठाई वाले , इधर आना। मिठाई वाला दादी माँ के निकट आ गया और अपनी मिठाइयों के बारे में बताता हुआ बोला कि कितनी मिठाई दूँ माँ ? पैसे की सोलह देता हूँ। दादी माँ मिठाई बेचने वाले से बोलीं कि एक पैसे की सोलह तो बहुत कम होती हैं , कम से कम पचीस मिठाइयाँ तो देते। दादी माँ की बातों को सुन कर मिठाई बेचने वाला दादी माँ से बोला कि नहीं दादी माँ इससे ज्यादा वह नहीं दे सकता। रोहिणी दादी माँ के पास में ही छुप कर खड़ी हुई थी वह मिठाई बेचने वाले की बातों को सुन कर दादी माँ से बोली कि दादी माँ यह मिठाई बेचने वाला फिर भी काफी सस्ता दे रहा है। चार पैसे की ले लो। यह कह कर वह दादी माँ को पैसे दे देती है। रोहिणी ने दादी माँ से कहा कि दादी , इस मिठाई बेचने वाले से पूछो कि क्या वह इस शहर में और कभी भी आया था या इस बार पहली बार आया है ? क्योंकी वह यहाँ का रहने वाला तो नहीं लग रहा है। ऐसा रोहिणी ने इस लिए पूछने के लिए कहा क्योंकी उसको इस मिठाई बेचने वाले की आवाज कुछ जानी – पहचानी लग रही थी और वह जानना चाहती थी क्या उसका संदेह सही है या नहीं ? मिठाई बेचने वाला रोहिणी की बात सुन कर ख़ुशी , संदेह और आश्चर्य में डूब गया क्योंकि उसे नहीं लगा था कि कोई भी उसे पहचान लेगा। वह रोहिणी से बोला कि मिठाई बेचने से पहले वह मुरली लेकर आया था और उससे भी पहले खिलौने लेकर वह रोहिणी के मोहल्ले में आया था। रोहिणी को पता था कि वह व्यक्ति जो भी चीज बेचता है बहुत ही कम दाम पर बेचता है। रोहिणी को यह पता करना था कि वह व्यक्ति ऐसा क्यों करता है और ऐसा करने से उसका घर कैसे चलता है। रोहिणी मिठाई बेचने वाले से पूछने लगी कि वह जो भी व्यापार करता है उससे भला उसे क्या मिलता होगा ? रोहिणी की बात सुन कर मिठाई बेचने वाला रोहिणी से बोला कि उसे ज्यादा कुछ तो नहीं मिलता बस खाने का इंतजाम हो जाता है। लेकिन कभी कबार खाना – खाने का इंतजाम भी नहीं हो पता है। लेकिन मिठाई बेचने वाला यह भी कहता है कि खाना – खाने का इंतजाम हो या न हो प्रसन्नता , धैर्य और कभी – कभी बे हिसाब सुख भी जरूर मिलता है और वह भी यही चाहता है। उस मिठाई बेचने वाले की ऐसी अनोखी बातों को सुन कर रोहिणी और ज्यादा उत्सुक हो कर पूछती है कि उसे प्रसन्नता , धैर्य और कभी – कभी बे हिसाब सुख कैसे मिल जाता है ? वह रोहिणी से उन सब बातों को न करने को कहता है। क्योंकि उसे लगता था कि रोहिणी उन बातों को सुनकर दुखी हो जाएगी। लेकिन रोहिणी उससे जिद करती है और कहती है कि जब उसने इतना बता ही दिया है , तब और भी बता दो। वह पूरी बात सुनने के लिए बहुत बैचेन है। रोहिणी के जिद करने पर मिठाई बेचने वाला अपने बारे में रोहिणी और दादी माँ को बहुत अधिक भारीपन के साथ बताने लगता है कि वह भी अपने नगर का एक सम्मान प्राप्त आदमी था। उसके पास भी मकान था , अपना व्यापार था , गाड़ी – घोडे़ थे , नौकर – चाकर सभी कुछ था। उसकी पत्नी थी , उसके छोटे – छोटे दो बच्चे भी थे। मिठाई बेचने वाला कहता है कि उसका वह छोटा सा परिवार उसे सोने का संसार लगता था। उसके पास जहाँ बाहर संपत्ति की शान-शौक़त थी , वहीं भीतर परिवार में पुरे संसार का सुख था। मिठाई वाला रोहिणी और दादी माँ को बताता है कि उसकी पत्नी एक बहुत ही सुंदर स्त्री थी , उसमें उस मिठाई बेचने वाले के प्राण बसते थे। उसके बच्चे भी इतने सुंदर थे। समय की गति और विधाता की लीला को कोई नहीं जान सकता। ऐसा मिठाई बेचने वाले ने इसलिए कहा क्योंकि अब उसके परिवार में कोई नहीं रहा। वह अपने उन बच्चों की खोज में निकला हुआ है। मिठाई बेचने वाला विशवास करता है कि जो मरता है वह दुबारा जन्म लेता है , इसी लिए वह घूमता रहता है कि शायद कभी न कभी , कहीं न कहीं उसको अपना कोई मिल जाएगा। मिठाई बेचने वाला कहता है कि इस तरह के जीवन में यानि गली – गली घूम – घूम कर , कभी – कभी उसे अपने उन बच्चों की एक झलक – सी मिल जाती है। उसे ऐसा एहसास होता है कि जैसे उसके दोनों बच्चे इन्हीं बच्चों में उछल – उछलकर हँस – खेल रहे हैं। मिठाई बेचने वाला रोहिणी और दादी माँ को बताता है कि उसके पास पैसों की कोई कमी नही है। और जो चीज उसके पास नहीं है , उसे वह इस तरह बच्चों को खुश रख कर वह अपनी ख़ुशी उसी को पा जाता है। मिठाई बेचने वाले के जीवन का रहस्य कोई नहीं जानता था लेकिन जब उसने अपने जीवन की सारी गाथा दादी और रोहिणी को बताई। उसी समय रोहिणी के छोटे – छोटे बच्चे चुन्नू – मुन्नू आकर मिठाई माँगने लगते हैं। वह दोनों को मिठाई से भरी एक – एक पुडिया देता है। रोहिणी पैसे देती है तो उसका यह कहना कि अब इस बार ये पैसे न लँगा। इस बात को दर्शाता है कि उसका मन भर आया और ये बच्चे उसे अपने बच्चे ही लगे। हम यह भी कह सकते हैं कि शायद बहुत समय बाद किसी ने उस मिठाई बेचने वाले से उसके बारे में कुछ पूछा था और इस संसार में कोई भी नहीं था जो उसके साथ उसका दुःख साँझा करता। रोहिणी और दादी माँ से बात करके आज उसे बहुत अच्छा लगा था , इसी कारण उस मिठाई बेचने वाले ने चुन्नू – मुन्नू को दी मिठाइयों के पैसे नहीं लिए।
पाठ व्याख्या ( मिठाईवाला )
पाठ – बहुत ही मीठे स्वरों के साथ वह गलियों में घूमता हुआ कहता – “बच्चों को बहलाने वाला , खिलौने वाला। ” इस अधूरे वाक्य को वह ऐसे विचित्र , किन्तु मादक – मधुर ढंग से गाकर कहता कि सुनने वाले एक बार अस्थिर हो उठते। उसके स्नेहाभिषिक्त कंठ से फूटा हुआ गान सुनकर निकट के मकानों में हलचल मच जाती। छोटे – छोटे बच्चों को अपनी गोद में लिए युवतियाँ चिकों को उठाकर छज्जों पर नीचे झाँकने लगतीं। गलियों और उनके अंतर्व्यापी छोटे – छोटे उद्यानों में खेलते और इठलाते हुए बच्चों का झुंड उसे घेर लेता और तब वह खिलौने वाला वहीं बैठकर खिलौने की पेटी खोल देता।
कठिन शब्द –
विचित्र – रंग बिरंगा , अजीब , अनोखा
मादक – नशीला , नशा उत्पन्न करने वाला पदार्थ
अस्थिर – जो स्थिर न हो , डाँवाँ डोल , चंचल , अनिश्चित , बे भरोसे का
स्नेहाभिषिक्त – प्रेम में डूबा हुआ
कंठ – गला
युवतियाँ – महिलाएँ
चिक – घूँघट
छज्जा – छत का आगे वाला भाग
अंतर्व्यापी – बीच में फैला हुआ
उद्यान – बाग़ , बग़ीचा
इठलाना – इतराना , ऐंठ दिखाना , ठसक दिखाना , मटक – मटक कर चलना , अदा या नाज़-नखरा करना
नोट – इस गद्यांश में लेखक खिलौने बेचने वाले के बारे में बता रहा है कि वह किस तरह बच्चों को आकर्षित करता था।
व्याख्या – लेखक खिलौने बेचने वाले के बारे में बताता हुआ कहता है कि जब खिलौने बेचने वाला गलियों में खिलौने बेचने के लिए घूमता है तो वह बहुत ही मीठे स्वरों के साथ कहता है कि बच्चों को बहलाने वाला , खिलौने वाला। लेखक कहता है कि वह खिलौने बेचने वाला इसी अधूरे वाक्य को कहता हुआ चलता जाता है किन्तु वह इस अधूरे वाक्य को इतने अनोखे , किन्तु बहुत ही नशीले और मधुर ढंग से गाकर कहता है कि जो कोई उसको सुनता है वह एक बार डाँवाँ डोल हो जाता था। कहने का अभिप्राय यह है कि जो भी उस खिलौने बेचने वाले की मधुर आवाज को सुनता था वह अपने काम को कुछ समय के लिए छोड़ सा देता था। लेखक बताते हैं कि उसके प्रेम में डूबे हुए गले से फूटा हुआ गाना सुनकर नजदीक के मकानों में हलचल मच जाती थी। छोटे – छोटे बच्चों को अपनी गोद में लिए महिलाएँ अपने घूँघटों को उठाकर छत के आगे वाले भाग पर से नीचे झाँकने लगती थी। लेखक कहता है कि गलियों में और उनके बीच में फैले हुए छोटे – छोटे बागों में खेलते और नखरे करते हुए बच्चों का झुंड उस खिलौने बेचने वाले को घेर लेता और तब वह खिलौने वाला वहीं बैठकर खिलौने की पेटी खोल देता था।
पाठ – बच्चे खिलौने देखकर पुलकित हो उठते। वे पैसे लाकर खिलौने का मोलभाव करने लगते। पूछते – “इछका दाम क्या है ? औल इछका ? औल इछका ?” खिलौने वाला बच्चों को देखता और उनकी नन्हीं – नन्हीं उँगलियों से पैसे ले लेता और बच्चों की इच्छानुसार उन्हें खिलौने दे देता। खिलौने लेकर फिर बच्चे उछलने – कूदने लगते और तब फिर खिलौने वाला उसी प्रकार गाकर कहता – ” बच्चों को बहलाने वाला , खिलौने वाला। ” सागर की हिलोर की भाँति उसका यह मादक गान गलीभर के मकानों में इस ओर से उस ओर तक , लहराता हुआ पहुँचता और खिलौने वाला आगे बढ़ जाता।
कठिन शब्द –
पुलकित – प्रेम , हर्ष आदि से गद्गद् रोमांचित
मोलभाव – सौदा तय करना
हिलोर – तरंग , जल में उठने वाली तरंग या लहर
नोट – इस गद्यांश में लेखक खिलौने बेचने वाले से बच्चों द्वारा मोलभाव करने और खिलौने खरीदने का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब बच्चे खिलौने बेचने वाले के पास जा कर खिलौने देखते हैं तो वे हर्ष आदि से गद्गद् या रोमांचित हो उठते हैं । वे पैसे लाकर खिलौने का सौदा तय करने लगते हैं। लेखक कहता है कि बच्चे खिलौने बेचने वाले से अपनी तोतली जुबान से , इछका दाम क्या है ? औल इछका ? औल इछका ? इस तरह से सभी खिलौनों के दाम पूछते है। खिलौने वाला बच्चों को देखता और उनकी नन्हीं – नन्हीं उँगलियों से पैसे ले लेता और बच्चों को जो खिलौना पसंद आता , उन्हें खिलौने दे देता। खिलौने लेकर फिर बच्चे उछलने – कूदने लगते और खिलौने वाला उसी प्रकार गाकर कहता हुआ कि बच्चों को बहलाने वाला , खिलौने वाला , वहाँ से चला जाता। समुद्र के जल में उठने वाली तरंग या लहर की तरह उस खिलौने बेचने वाले का यह नशे से भरा गाना गली भर के मकानों में इस ओर से उस ओर तक , लहराता हुआ पहुँचता और खिलौने वाला आगे बढ़ जाता। कहने का तात्पर्य यह है कि खिलौने वाला आवाजें लगता हुआ आगे बढ़ता जाता है।
पाठ – राय विजयबहादुर के बच्चे भी एक दिन खिलौने लेकर घर आए। वे दो बच्चे थे – चुन्नू और मुन्नू ! चुन्नू जब खिलौने ले आया तो बोला – ” मेला घोला कैछा छुंदल ऐ ! ”
मुन्नू बोला – ” औल देखो , मेला कैछा छुंदल ऐ !
दोनों अपने हाथी – घोड़े लेकर घरभर में उछलने लगे। इन बच्चों की माँ रोहिणी कुछ तक खड़े – खडे़ उनका खेल निरखती रही। अंत में दोनों बच्चों को बुलाकर उसने पूछा – ” अरे ओ चुन्नू – मुन्नू , ये खिलौने तुमने कितने में लिए हैं ? ”
मुन्नू बोला – ” दो पैछे में। खिलौने वाला दे गया ऐ। ”
रोहिणी सोचने लगी – इतने सस्ते कैसे दे गया है ? कैसे दे गया है , यह तो वही जाने। लेकिन दे तो गया ही है , इतना तो निश्चय है !
एक जरा सी बात ठहरी। रोहिणी अपने काम में लग गई। फिर कभी उसे इस पर विचार करने की आवश्यकता भी भला क्यों पड़ती !
कठिन शब्द –
मेला घोला कैछा छुंदल ऐ – मेरा घोड़ा कैसा सुंदर है
औल देखो , मेला कैछा छुंदल ऐ – और देखो मेरा कैसा सुंदर है
निरखना – ध्यानपूर्वक देखना , निरीक्षण हेतु देखना
पैछे – पैसे
जरा सी बात – छोटी सी बात
नोट – इस गद्यांश में लेखक खिलौने वाले का कम दाम में खिलौने बेचने का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि उस खिलौने बेचने वाले से एक दिन राय विजयबहादुर के बच्चे भी खिलौने खरीद कर घर लेकर आए। राय विजयबहादुर के दो बच्चे थे – चुन्नू और मुन्नू ! लेखक बताता है कि चुन्नू जब खिलौने ले कर घर आया तो अपनी तोतली जुबान से बोला कि मेला घोला कैछा छुंदल ऐ। अर्थात वह कहने लगा कि उसका घोड़ा बहुत सुंदर है। चुन्नू की बात सुनकर मुन्नू भी तोतली जुबान से बोल पड़ा कि औल देखो , मेला कैछा छुंदल ऐ ! अर्थात और देखो मेरा कैसा सुंदर है। दोनों ही बच्चे अपने – अपने हाथी – घोड़े लेकर यानि खिलौने लेकर पुरे घर में उछलने लगे। लेखक कहता है कि इन दोनों बच्चों की माँ रोहिणी कुछ तक खड़े – खडे़ ही उनका खेल ध्यानपूर्वक देखती रही। अंत में दोनों बच्चों को बुलाकर उसने उनसे पूछा कि अरे ओ चुन्नू – मुन्नू , ये खिलौने तुमने कितने में लिए हैं ? अपनी माँ प्रश्न का उत्तर देते हुए मुन्नू बोला कि उन्होंने ये खिलौने दो पैसे में लिए हैं। उन्हें ये खिलौने , खिलौने वाला दे गया है। मुन्नू की बात सुनकर रोहिणी सोचने लगी की इतने सस्ते में खिलौने वाला उन्हें खिलौने कैसे दे गया है ? उसे ये बात समझ में नहीं आ रही थी कि इतने सस्ते में खिलौने कैसे दे गया है , यह तो वही खिलौने बेचने वाला जाने। लेकिन इतना तो रोहणी को निश्चय था कि दे तो गया ही है। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर खिलौने बेचने वाला और पैसे लेना चाहता तो अब तक रोहणी से माँग लेता परन्तु वह तो दो पैसे में ही दे कर चला गया है इसीलिए रोहणी निश्चित थी कि वह खिलौने वाला सस्ते में ही खिलौने बेच कर चला गया है। यह बात रोहणी को छोटी सी लगी इसी लिए रोहिणी ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लग गई। लेखक कहता है की फिर कभी उसे इस बात पर विचार करने की आवश्यकता भी भला क्यों पड़ती क्योंकि यह बात एक तो रोहणी को छोटी सी लगी और दूसरा इसमें उसका ही फायदा हुआ था।
2
पाठ – छह महीने बाद –
नगरभर में दो – चार दिनों से एक मुरलीवाले के आने का समाचार फैल गया। लोग कहने लगे – ” भाई वाह ! मुरली बजाने में वह एक ही उस्ताद है। मुरली बजाकर , गाना सुनाकर वह मुरली बेचता भी है , सो भी दो – दो पैसे में। भला , इसमें उसे क्या मिलता होगा ? मेहनत भी तो न आती होगी ! ”
एक व्यक्ति ने पूछ लिया – ” कैसा है वह मुरली वाला , मैंने तो उसे नहीं देखा ! ”
उत्तर मिला – ” उम्र तो उसकी अभी अधिक न होगी , यही तीस – बत्तीस का होगा। दुबला – पतला गोरा युवक है , बीकानेरी रंगीन साफा बाँधता है। ”
” वही तो नहीं ; जो पहले खिलौने बेचा करता था ? ”
” क्या वह पहले खिलौने भी बेचा करता था ? “
कठिन शब्द –
उस्ताद – गुरु , शिक्षक , प्रवीण , विज्ञ
बीकानेर – राजस्थान के दर्शनीय शहरों में से बीकानेर एक है
साफ़ा – पगड़ी
नोट – इस गद्यांश में लेखक मुरली बेचने वाले के बारे में बात करते हुए लोगों के बारे में वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – लेखक खिलौने बेचने वाले व्यक्ति के द्वारा राय विजयबहादुर के दोनों बच्चों को कम दाम में खिलौने बेचने के छह महीने बीत जाने के बाद की एक और घटना का जिक्र करते हुए कहता है कि पुरे नगर में दो – चार दिनों से एक मुरली वाले के आने का समाचार फैल गया था। उस मुरली बेचने वाले के बारे में लोग कहने लगे थे कि वह मुरली बेचने वाला मुरली बजाने में भी एक प्रवीण या माहिर व्यक्ति है। लोगो बता रहे थे कि वह मुरली बजाकर , गाना सुनाकर मुरली बेचता भी है , वह भी केवल दो – दो पैसे में। सभी परेशान थे कि भला दो – दो पैसे में मुरली बेच कर उसे क्या मिलता होगा ? इतने में तो उसकी मेहनत का पैसा भी उसे नहीं मिलता होगा। लोगो की बातें सुनते हुए एक व्यक्ति ने पूछ लिया कि वह मुरली वाला कैसा है , क्योंकि उस ने तो अभी तक उसे नहीं देखा है। उसको बताते हुए दूसरे व्यक्ति ने उत्तर दिया कि उस मुरली बेचने वाले व्यक्ति की उम्र तो अभी अधिक नहीं होगी , यही तीस – बत्तीस वर्ष का होगा। वह दुबला – पतला गोरा युवक है और राजस्थान के दर्शनीय शहरों में से बीकानेर का प्रसिद्ध बीकानेरी रंगीन पगड़ी बाँधता है। उस मुरली बेचने वाले के बारे में सुनकर पहले व्यक्ति ने कहा कि कहीं यह मुरली बेचने वाला वही तो नहीं है जो पहले खिलौने बेचा करता था ? उसकी बात सुन कर दूसरे व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा कि क्या वह पहले खिलौने भी बेचा करता था ?
पाठ – ” हाँ , जो आकार – प्रकार तुमने बतलाया , उसी प्रकार का वह भी था। ”
” तो वही होगा। पर भई , है वह एक उस्ताद। ”
प्रतिदिन इसी प्रकार उस मुरली वाले की चर्चा होती। प्रतिदिन नगर की प्रत्येक गली में उसका मादक , मृदुल स्वर सुनाई पड़ता – ” बच्चों को बहलाने वाला ,
मुरलियावाला। ”
रोहिणी ने भी मुरली वाले का यह स्वर सुना। तुरंत ही उसे खिलौने वाले का स्मरण हो आया। उसने मन-ही-मन कहाµखिलौनेवाला भी इसी तरह गा-गाकर
खिलौने बेचा करता था। रोहिणी उठकर अपने पति विजय बाबू के पास गई – ” जरा उस मुरली वाले को बुलाओ तो , चुन्नू – मुन्नू के लिए ले लूँ। क्या पता यह
फिर इधर आए , न आए। वे भी , जान पड़ता है , पार्क में खेलने निकल गए हैं। “
कठिन शब्द –
मृदुल – कोमल , मुलायम , दयालु
स्मरण – याद , स्मृति
नोट – इस गद्यांश में लेखक लोगो द्वारा मुरली बेचने वाले और खिलौने बेचने वाले को एक व्यक्ति कह कर अंदाजा लगते हुए और उसकी प्रशंसा करते लोगो का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब लोग उस मुरली वाले की कद – काठी को खिलौने बेचने वाले के जैसा बता रहे थे तो एक आदमी ने कहा कि जो आकार – प्रकार दूसरे आदमी ने उसे मुरली वाले का बताया है , उसी प्रकार का आकार – प्रकार उस खिलौने बेचने वाले का भी था। इस पर पहले व्यक्ति ने कहा कि तो यह मुरली बेचने वाला ही वह खिलौने बेचने वाला होगा। पर वह साथ ही साथ यह भी कहता है कि वह मुरली बजाने में एक निपूर्ण व्यक्ति है। लेखक कहता है कि हर दिन इसी प्रकार उस मुरली वाले की चर्चा हर जगह होती थी। हर दिन नगर की प्रत्येक गली में उसका वह नशीला , मन को मोहने वाला , कोमल स्वर सुनाई पड़ता था कि बच्चों को बहलाने वाला , मुरलियावाला। लेखक बताता है कि रोहिणी ने भी मुरली वाले का यह स्वर सुना। और सुनते ही तुरंत उसे उस खिलौने बेचने वाले की याद आ गई और उसने मन – ही – मन अपने आप से कहा कि वह खिलौने बेचने वाला भी इसी तरह गा – गाकर खिलौने बेचा करता था। रोहिणी उठी और अपने पति विजय बाबू के पास गई और उनसे कहा कि जरा उस मुरली वाले को बुलाओ , वह चुन्नू – मुन्नू के लिए मुरली लेना चाहती थी। उसने विजय बाबू से कहा कि क्या पता यह मुरली बेचने वाला फिर उनकी गली में आएगा या नहीं आएगा। और रोहणी ने अंदाजा लगाया कि चुन्नू और मुन्नू भी शायद पार्क में खेलने निकल गए हैं। क्योंकि अगर वे दोनों आस – पास होते तो अब तक खुद से ही मुरली खरीदने की जिद कर दी होती।
पाठ – विजय बाबू एक समाचार – पत्र पढ़ रहे थे। उसी तरह उसे लिए हुए वे दरवाजे पर आकर मुरली वाले से बोले – ” क्यों भई , किस तरह देते हो मुरली ? ”
किसी की टोपी गली में गिर पड़ी। किसी का जूता पार्क में ही छूट गया , और किसी की सोथनी ( पाजामा ) ही ढीली होकर लटक आई है। इस तरह दौड़ते – हाँफते हुए बच्चों का झुंड आ पहुँचा। एक स्वर से सब बोल उठे – ” अम बी लेंदे मुल्ली और अम वी लेंदे मुल्ली। ”
मुरली वाला हर्ष – गद्गद हो उठा। बोला – ” सबको देंगे भैया ! लेकिन जरा रुको , ठहरो , एक – एक को देने दो। अभी इतनी जल्दी हम कहीं लौट थोड़े ही जाएँगे। बेचने तो आए ही हैं और हैं भी इस समय मेरे पास एक – दो नहीं , पूरी सत्तावन।
… हाँ , बाबू जी , क्या पूछा था आपने , कितने में दीं ! … दीं तो वैसे तीन – तीन पैसे के हिसाब से हैं , पर आपको दो – दो पैसे में ही दे दूँगा। “
कठिन शब्द –
हर्ष – गद्गद – बहुत अधिक प्रेम
नोट – इस गद्यांश में लेखक मुरली बेचने वाले का बच्चों के प्रति प्रेम को दर्शा रहा हैं।
व्याख्या – लेखक कहते हैं कि जब रोहणी ने विजय बाबू को मुरली बेचने वाले को बुलाने के लिए कहा तो उस समय विजय बाबू एक समाचार – पत्र पढ़ रहे थे। रोहणी की बात सुन कर वे उसी तरह समाचार – पत्र लिए हुए दरवाजे पर आकर मुरली वाले आवाज देते हुए बोले कि क्यों भई , किस तरह देते हो मुरली ? लेखक बताते हैं कि मुरली वाले की आवाज सुन कर बच्चों का झुंड हड़बड़ाहट से , जल्दबाजी में भागते हुए ऐसे आए कि किसी की टोपी गली में गिर पड़ी। किसी का जूता पार्क में ही छूट गया , और किसी की सोथनी यानि पाजामा ही ढीला होकर लटक आया था। लेकिन किसी भी बच्चे को कोई परवाह नहीं थी , वे इसी तरह दौड़ते – हाँफते हुए मुरली बेचने वाले के पास पहुँच गए थे। वहाँ पहुँचते ही सभी बच्चे एक ही स्वर से एक साथ अपनी तोतली जुबान से बोल उठे कि अम बी लेंदे मुल्ली और अम वी लेंदे मुल्ली। अर्थात हम भी लेंगे मुरली और हम भी लेंगे मुरली। लेखक कहता है कि उन मासूम और छोटे बच्चों की बातों को सुन कर वह मुरली वाला बहुत अधिक प्रेम और श्रद्धा से खुश हो उठा। वह उन बच्चों से बोला क़ी वह उन सबको मुरली देगा , लेकिन थोड़ा रुको , ठहरो और सभी को एक – एक कर आने दो। वह बच्चों को समझते हुए बोला कि अभी इतनी जल्दी वह कहीं लौट कर नहीं जाएगा। वह मुरलियों को बेचने ही तो आया है और इस समय उसके पास एक – दो नहीं बल्कि पूरी सत्तावन मुरलियाँ हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि उसने इसलिए बच्चों को यह सब कहा ताकि बच्चे भगदड़ न मचाएँ और आराम से सभी मुरली ले लें। बच्चों को शांत करने के बाद मुरली बेचने वाले ने विजय बाबू से कहा कि हाँ , बाबू जी , क्या पूछा था आपने , कि कितने में दी मुरली ! उसने विजय बाबू को उत्तर देते हुए कहा कि वैसे तो तीन – तीन पैसे के हिसाब से हैं , पर आपको दो – दो पैसे में ही दे दूँगा।
पाठ – विजय बाबू भीतर – बाहर दोनों रूपों में मुसकरा दिए। मन – ही – मन कहने लगे – कैसा है ! देता तो सबको इसी भाव से है , पर मुझ पर उलटा एहसान लाद रहा है। फिर बोले – ” तुम लोगों की झूठ बोलने की आदत होती है। देते होगे सभी को दो – दो पैसे में , पर एहसान का बोझा मेरे ही ऊपर लाद रहे हो। ”
मुरली वाला एकदम अप्रतिभ हो उठा। बोला – ” आपको क्या पता बाबू जी कि इनकी असली लागत क्या है ! यह तो ग्राहकों का दस्तूर होता है कि दुकानदार चाहे हानि उठाकर चीज़ क्यों न बेचे , पर ग्राहक यही समझते हैं – दुकानदार मुझे लूट रहा है। आप भला काहे को विश्वास करेंगे ? लेकिन सच पूछिए तो बाबू जी , असली दाम दो ही पैसा है। आप कहीं से दो पैसे में ये मुरली नहीं पा सकते। मैंने तो पूरी एक हजार बनवाई थीं , तब मुझे इस भाव पड़ी हैं। ”
विजय बाबू बोले – ” अच्छा , मुझे ज्यादा वक्त नहीं , जल्दी से दो ठो निकाल दो। “
कठिन शब्द –
भाव – मूल्य
अप्रतिभ – प्रतिभाहीन , उदास
लागत – व्यय , विक्रय हेतु बनाई गई वस्तु पर पड़ा व्यय
दस्तूर – प्रथा , रीति , कायदा , नियम , विधि
नोट – इस गद्यांश में लेखक मुरली बेचने वाले और विजय बाबू के बिच हुई बहस का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब मुरली बेचने वाले ने विजय बाबू को कहा कि वह तीन – तीन पैसे के हिसाब से नहीं बल्कि विजय बाबू को दो – दो पैसे में ही मुरली दे देगा , तो विजय बाबू भीतर – बाहर दोनों रूपों में मुसकरा दिए और वे मन – ही – मन अपने आप से कहने लगे कि यह मुरली बेचने वाला कैसा व्यक्ति है क्योंकि विजय बाबू को लग रहा था कि वह मुरली वाला दो – दो पैसे में ही सबको मुरली बेचता है , परन्तु विजय बाबू को उसका ऐसा कहना कि वह तीन पैसे की जगह दो पैसे में ही उनको मुरली दे देगा , विजय बाबू को लग रहा था कि जैसे वह मुरली बेचने वाला उन पर एहसान कर रहा है। विजय बाबू फिर से उस मुरली बेचने वाले से बोले कि उन लोगों की झूठ बोलने की आदत होती है। क्योंकि वह मुरली बेचने वाला वैसे तो सभी को दो – दो पैसे में ही मुरली देता होगा और तीन की जगह दो पैसे में विजय बाबू को दे कर वह इस बात के एहसान का बोझा विजय बाबू पर ही लाद रहा है। विजय बाबू की बातों को सुन कर वह मुरली बेचने वाला एकदम से उदास हो गया। उदास हो कर वह विजय बाबू से बोला कि आप लोगों को क्या पता बाबू जी कि इनकी असली कीमत क्या है ! कहने का तात्पर्य यह है कि जब भी कोई चीज आप बाजार से लेते हैं तो उसका वही मूल्य नहीं होता जो उस चीज का निर्माण करने वाले ने तय किया हो क्योंकि उस चीज को दुकानदार तक पहुँचने तक कई जगहायों से गुजरना पड़ता है और दुकानदार उस चीज के निर्माण जगह से दूकान तक के सफर का खर्चा भी उसी चीज में जोड़ कर ग्राहकों को बेचता हैं। मुरली बेचने वाला विजय बाबू से कहता है कि यह तो ग्राहकों का नियम ही होता है कि दुकानदार चाहे हानि उठाकर ही अपनी कोई चीज़ क्यों न बेच रहा हो , पर ग्राहक यही समझते हैं कि दुकानदार उन्हें लूट ही रहा है। मुरली बेचने वाला विजय बाबू से यह भी कहता है कि वे भला क्यों उसका विश्वास करेंगे ? ऐसा मुरली बेचने वाले ने इसलिए कहा क्योंकि उसे पता था कि दूसरे कई दुकानदार ग्राहकों को लूटने का ही काम करते हैं और विजय बाबू भी उन दुकानदारों द्वारा लुटे गए होंगे , जिस कारण विजय बाबू मुरली बेचने वाले पर भी संदेह कर रहे हैं। लेकिन मुरली बेचने वाला विजय बाबू को विश्वास दिलाते हुए कहता है कि सच पूछिए तो बाबू जी , इन मुरलियों का असली दाम दो ही पैसा है। लेकिन फिर भी आप कहीं से दो पैसे में ये मुरली नहीं खरीद सकते। ऐसा मुरली बेचने वाले ने इसलिए कहा क्योंकि उसने तो पूरी एक हजार मुरलियाँ बनवाई थीं , तब जा कर उसे दो पैसे में एक मुरली पड़ी हैं थी। मुरली वाला विजय बाबू को यह सब समझा रहा था लेकिन विजय बाबू उससे बोले कि ठीक है उनके पास ज्यादा वक्त नहीं है , जल्दी से दो मुरलियाँ निकाल कर दे दो।
पाठ – यहाँ पर हमें लगता है कि विजय बाबू मुरली बेचने वाले की बात से सहमत तो थे पर वे मुरली बेचने वाले को जताना नहीं चाहते थे , इसी कारण वे मुरली बेचने वाले की बात को बीच में ही काट कर जल्दी ख़त्म करना चाह रहे थे।
दो मुरलियाँ लेकर विजय बाबू फिर मकान के भीतर पहुँच गए। मुरली वाला देर तक उन बच्चों के झुंड में मुरलियाँ बेचता रहा ! उसके पास कई रंग की मुरलियाँ थीं। बच्चे जो रंग पसंद करते , मुरली वाला उसी रंग की मुरली निकाल देता।
” यह बड़ी अच्छी मुरली है। तुम यही ले लो बाबू , राजा बाबू तुम्हारे लायक तो बस यह है। हाँ भैये , तुमको वही देंगे। ये लो। … तुमको वैसी न चाहिए , यह नारंगी रंग की , अच्छा , वही लो। … ले आए पैसे ? अच्छा , ये लो तुम्हारे लिए मैंने पहले ही से यह निकाल रखी थी … ! तुमको पैसे नहीं मिले। तुमने अम्मा से ठीक तरह माँगे न होंगे। धोती पकड़कर पैरों में लिपट कर , अम्मा से पैसे माँगे जाते हैं बाबू ! हाँ , फिर जाओ। अबकी बार मिल जाएँगे … । दुअन्नी है ? तो क्या हुआ , ये लो पैसे वापस लो। ठीक हो गया न हिसाब ? … मिल गए पैसे ? देखो , मैंने तरकीब बताई ! अच्छा अब तो किसी को नहीं लेना है ? सब ले चुके ? तुम्हारी माँ के पास पैसे नहीं हैं ? अच्छा , तुम भी यह लो। अच्छा , तो अब मैं चलता हूँ। ”
इस तरह मुरली वाला फिर आगे बढ़ गया।
कठिन शब्द –
तरक़ीब – उपाय , युक्ति , ढंग , तरीका
नोट – इस गद्यांश में लेखक ने मुरली बेचने वाले और मुरली खरीदने वाले छोटे – छोटे बच्चों के बीच होने वाली सुंदर बात – चीत का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि विजय बाबू के दो मुरलियाँ मांगने पर मुरली बेचने वाले ने उन्हें दो मुरलियाँ दे दी। विजय बाबू उन दो मुरलियाँ को लेकर फिर अपने मकान के अंदर पहुँच गए। लेखक बताता है कि वह मुरली बेचने वाला बहुत देर तक उन बच्चों के झुंड में मुरलियाँ बेचता रहा जो उसके आस – पास इकठ्ठे हुए थे। उस मुरली बेचने वाले के पास कई रंग की मुरलियाँ थी। उन रंग – बिरंगी मुरलियों में से बच्चे जिस भी रंग की मुरली पसंद करते , मुरली बेचने वाला उन्हें उसी रंग की मुरली निकाल कर दे रहा था। एक बच्चे ने एक मुरली की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह बड़ी अच्छी मुरली है। इस पर मुरली बेचने वाले ने उस बच्चे को वही मुरली लेने को कहा , किसी बच्चे को राजा बाबू कह कर किसी मुरली को उसके लायक बता कर उसे मुरली दे देता। जब बच्चे किसी मुरली के लिए जिद्द करते तो मुरली बेचने वाला उन्हें वही मुरली देता जो उन बच्चों ने पसंद की हो। मुरली बेचने वाला एक – एक बच्चे को मुरली देता। किसी बच्चे को यदि मुरली बेचने वाले के द्वारा दी गई मुरली पसंद नहीं आती और वह वापिस करने लगता तब भी मुरली बेचने वाला बिलकुल गुस्सा नहीं करता , वह बड़े ही प्यार से उस बच्चे से पूछता कि क्या तुमको वैसी मुरली नहीं चाहिए , क्या तुम्हें यह नारंगी रंग की मुरली चाहिए , अच्छा ठीक है , वही ले लो। कहने का तात्पर्य यह है कि मुरली बेचने वाला सभी बच्चों से बहुत ही प्यार से बात करता था। एक बच्चे से मुरली बेचने वाले ने पूछा कि क्या वह मुरली खरीदने के लिए पैसे ले आया है ? क्योंकि मुरली बेचने वाले ने उस बच्चे के लिए पहले ही से एक सुंदर मुरली निकाल कर रखी हुई थी ! लेकिन जब बच्चे ने कहा की उसको पैसे नहीं मिले। तो मुरली बेचने वाले ने उससे कहा कि उसने अपनी अम्मा से ठीक तरह से पैसे नहीं माँगे होंगे। फिर मुरली बेचने ने बच्चे को पैसे किस तरह मांगनें होते है यह सिखाते हुए कहा कि धोती पकड़कर पैरों में लिपट कर , अम्मा से पैसे माँगे जाते हैं बाबू ! फिर से जाओ और देखना अबकी बार पैसे मिल जाएँगे । एक बच्चे ने कहा कि उसके पास दुअन्नी है ? तो वाले ने उस से कि तो क्या हुआ , ये बाकि के बचे हुए पैसे वापस ले लो। ठीक हो गया न हिसाब ? इतने में वह बच्चा वापिस आ गया जिसको मुरली बेचने वाले ने माँ से पैसे लेने की तरकीब बताई थी , उस बच्चे को देख कर मुरली बेचने वाले ने पूछा कि मिल गए पैसे ? मुरली बेचने वाले का बताया हुआ उपाए उस बच्चे के काम आ गया। अब बच्चों को मुरलियाँ बेचने के बाद मुरली बेचने वाले ने एक बार फिर बच्चों के झुंड से पूछा कि अब तो किसी को नहीं लेना है ? सब ले चुके ? उन में से जब किसी बच्चे ने कहा कि उसकी माँ के पास पैसे नहीं हैं ? तो मुरली बेचने वाले ने उसे बिना पैसे के ही मुरली दे दी। सबको मुरली बेचने के बाद उस मुरली बेचने वाले ने उन बच्चों से विदा ले ली। इस तरह मुरली वाला फिर आगे बढ़ गया। कहने का तात्पर्य यह है कि मुरली बेचने वाला अपने मुनाफे के लिए नहीं बल्कि बच्चों की ख़ुशी के लिए मुरलियाँ बेचता था।
3
पाठ – आज अपने मकान में बैठी हुई रोहिणी मुरली वाले की सारी बातें सुनती रही। आज भी उसने अनुभव किया , बच्चों के साथ इतने प्यार से बातें करने वाला फेरी वाला पहले कभी नहीं आया। फिर वह सौदा भी कैसा सस्ता बेचता है ! भला आदमी जान पड़ता है। समय की बात है , जो बेचारा इस तरह मारा – मारा फिरता है। पेट जो न कराए , सो थोड़ा !
इसी समय मुरली वाले का क्षीण स्वर दूसरी निकट की गली से सुनाई पड़ा – ” बच्चों को बहलाने वाला , मुरलियावाला ! ”
रोहिणी इसे सुनकर मन – ही – मन कहने लगी – और स्वर कैसा मीठा है इसका !
बहुत दिनों तक रोहिणी को मुरली वाले का वह मीठा स्वर और उसकी बच्चों के प्रति वे स्नेहसिक्त बातें याद आती रहीं। महीने – के – महीने आए और चले गए। फिर मुरली वाला न आया। धीरे – धीरे उसकी स्मृति भी क्षीण हो गई।
कठिन शब्द –
अनुभव – प्रत्यक्षज्ञान , काम की जानकारी , तजुर्बा
क्षीण – जिसका क्षय हुआ हो , कमज़ोर , निर्बल
स्नेहसिक्त – प्रेम से सिंचित , प्रेम से आप्लावित , स्नेह सिक्त वाणी , स्नेह सिक्त स्वर में कहना
नोट – इस गद्यांश में लेखक रोहणी का मुरली वाले के प्रति दृष्टिकोण का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब मुरली बेचने वाला बच्चों को मुरलियाँ बेच रहा था और उनसे बातें कर रहा था तो अपने मकान में बैठी हुई रोहिणी मुरली बेचने वाले की सारी बातें सुनती रही। मुरली बेचने वाले की बातों से उसने अपने पुरे तजुर्बे से अहसास किया कि बच्चों के साथ इतने प्यार से बातें करने वाला फेरी वाला पहले कभी उनके मोहल्ले में नहीं आया था। और वह अपना लाया हुआ सामान भी बहुत सस्ता बेचता है। रोहिणी को वह मुरली बेचने भला आदमी जान पड़ रहा था। रोहिणी सोच रही थी कि यह सब समय की बात है , जो बेचारा इस तरह मारा – मारा फिर रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि मुरली बेचने वाले का व्यवहार बहुत ही अच्छा था उसके इस वयवहार को देखते हुए रोहिणी को उसका इस तरह छोटी – छोटी चीज़े बेच कर वो भी कम दाम में , बुरा लग रहा था। परन्तु वह यह भी समझती थी कि पेट के लिए जितना किया जाए कम ही लगता है। जब रोहिणी अपने विचारों में खोई हुई थी तभी उसे मुरली बेचने वाले की कमजोर आवाज दूसरी निकट की गली से सुनाई पड़ी कि बच्चों को बहलाने वाला , मुरलियावाला ! रोहिणी उसकी आवाज को सुनकर फिर से मन – ही – मन कहने लगी कि इस मुरली बेचने वाले की आवाज कितनी मीठी है। बहुत दिन बीत जाने पर भी रोहिणी को मुरली बेचने वाले की वह मीठी आवाज और उसका बच्चों के लिए कोमल व्यवहार , उसकी बच्चों के प्रति वे प्यार से भरी हुई बातें याद आती रहीं। लेखक कहता है कि महीने – के – महीने आए और चले गए। परन्तु फिर मुरली बेचने वाला दुबारा नहीं आया। धीरे – धीरे रोहिणी की यादें भी कमजोर हो गई। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ दिन बीत जाने के बाद रोहिणी भी मुरली बेचने वाले को भूल गई थी।
4
पाठ – आठ मास बाद –
सरदी के दिन थे। रोहिणी स्नान करके मकान की छत पर चढ़कर आजानुलंबित केश – राशि सुखा रही थी। इस समय नीचे की गली में सुनाई पड़ा – ” बच्चों को बहलाने वाला , मिठाई वाला। मिठाई वाले का स्वर उसके लिए परिचित था , झट से रोहिणी नीचे उतर आई।
उस समय उसके पति मकान में नहीं थे। हाँ, उनकी वृद्ध दादी थीं। रोहिणी उनके निकट आकर बोली – ” दादी , चुन्नू – मुन्नू के लिए मिठाई लेनी है। जरा कमरे में चलकर ठहराओ। मैं उधर कैसे जाऊँ , कोई आता न हो। जरा हटकर मैं भी चिक की ओट में बैठी रहूँगी। ”
दादी उठकर कमरे में आकर बोलीं – ” ए मिठाई वाले , इधर आना। ”
मिठाई वाला निकट आ गया। बोला – ” कितनी मिठाई दूँ माँ ? ये नए तरह की मिठाइयाँ हैं – रंग – बिरंगी , कुछ – कुछ खट्टी , कुछ – कुछ मीठी , जायकेदार , बड़ी देर तक मुँह में टिकती हैं। जल्दी नहीं घुलतीं। बच्चे बड़े चाव से चूसते हैं। इन गुणों के सिवा ये खाँसी भी दूर करती हैं ! कितनी दूँ ? चपटी , गोल , पहलदार गोलियाँ हैं। पैसे की सोलह देता हूँ। “
कठिन शब्द –
मास – महीना
आजानुलंबित केश – राशि – घुटनों तक लंबें बाल
परिचित – जिसकी जानकारी हो चुकी हो , जाना – बूझा , जिससे मेल – जोल हो
चिक की ओट – ऐसी आड़ या रोक जिसके पीछे कोई छिप सके या ऐसी वस्तु जिसके पीछे छिपने से सामने वाला व्यक्ति देख न सके
ज़ायक़ेदार – स्वादयुक्त , स्वादिष्ट
चाव – शौक , इच्छा
नोट – इस गद्यांश में लेखक पर्दा प्रथा का एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है क्योंकि जब रोहिणी मिठाई वाले से चुन्नू – मुन्नू के लिए मिठाइयाँ लेना चाहती थी तो वह स्वयं न जा कर दादी माँ को मिठाई वाले के सामने भेजती है और खुद छिप कर देखती रहती है क्योंकि मिठाई बेचने वाला अनजान आदमी था और अपने पति आलावा किसी अन्य आदमी के सामने न जाना पर्दा प्रथा को ही दर्शाता है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि मुरली बेचने वाले को रोहिणी के मुहल्ले में आए अब आठ महीने बीत गए थे। लेखक बताते हैं कि अब सरदी के दिन आ गए थे। रोहिणी स्नान करके अपने मकान की छत पर चढ़कर अपने घुटनों तक लंबें बालों को सुखा रही थी। उसी समय नीचे की गली से रोहिणी को किसी के शब्द सुनाई पड़े कि बच्चों को बहलाने वाला , मिठाई वाला। मिठाई बेचने वाले के वो शब्द रोहिणी के लिए जाने – पहचने थे , उन शब्दों को सुन कर झट से रोहिणी छत से नीचे उतर आई। उस समय रोहिणी के पति विजय बाबू मकान में नहीं थे। केवल उनकी बूढ़ी दादी और रोहिणी ही घर पर थे। रोहिणी दादी माँ के पास आकर बोली कि दादी , चुन्नू – मुन्नू के लिए मिठाई लेनी है। जरा उस मिठाई बेचने वाले को बुला कर कमरे में चलकर ठहराओ। क्योंकि वह उधर नहीं जा सकती , उसे डर था कहीं कोई आ न जाए। रोहिणी ने दादी माँ से कहा कि वह जरा हटकर ऐसी वस्तु के पीछे छिप जाएगी की सामने मिठाई वाला उसे देख नहीं सकेगा। ( यहाँ हमें उस दौर में पर्दा प्रथा का प्रचलन स्पष्ट दिखाई दे रहा है क्योंकि जब रोहिणी मिठाई वाले से चुन्नू – मुन्नू के लिए मिठाइयाँ लेना चाहती थी तो वह स्वयं न जा कर दादी माँ को मिठाई वाले के सामने भेजती है और खुद छिप कर देखती रहती है क्योंकि मिठाई बेचने वाला अनजान आदमी था और अपने पति आलावा किसी अन्य आदमी के सामने न जाना पर्दा प्रथा को ही दर्शाता है। ) लेखक कहता है कि रोहिणी की बात सुन कर दादी माँ उठकर कमरे में आकर बोली कि ए मिठाई वाले , इधर आना। मिठाई वाला दादी माँ के निकट आ गया और अपनी मिठाइयों के बारे में बताता हुआ बोला कि कितनी मिठाई दूँ माँ ? ये नए तरह की मिठाइयाँ हैं – रंग – बिरंगी , कुछ – कुछ खट्टी , कुछ – कुछ मीठी , स्वादिष्ट , बड़ी देर तक मुँह में टिकती हैं। जल्दी नहीं घुलतीं। बच्चे बड़े शौक से इन मिठाइयों को चूसते हैं। इन गुणों के साथ – साथ ये मिठाइयाँ खाँसी को भी दूर करती हैं ! कितनी दूँ ? चपटी , गोल , पहलदार गोलियाँ हैं। पैसे की सोलह देता हूँ।
पाठ – दादी बोलीं – ” सोलह तो बहुत कम होती हैं , भला पचीस तो देते। ”
मिठाई वाला – ” नहीं दादी , अधिक नहीं दे सकता। इतना भी देता हूँ , यह अब मैं तुम्हें क्या … खैर , मैं अधिक न दे सकूँगा। ”
रोहिणी दादी के पास ही थी। बोली – ” दादी , फिर भी काफी सस्ता दे रहा है। चार पैसे की ले लो। यह पैसे रहे। ”
मिठाई वाला मिठाइयाँ गिनने लगा।
” तो चार की दे दो। अच्छा , पच्चीस नहीं सही , बीस ही दो। अरे हाँ , मैं बूढ़ी हुई मोलभाव अब मुझे ज्यादा करना आता भी नहीं। ”
कहते हुए दादी के पोपले मुँह से जरा सी मुसकराहट फूट निकली।
रोहिणी ने दादी से कहा – ” दादी , इससे पूछो , तुम इस शहर में और कभी भी आए थे या पहली बार आए हो ? यहाँ के निवासी तो तुम हो नहीं। ”
दादी ने इस कथन को दोहराने की चेष्टा की ही थी कि मिठाई वाले ने उत्तर दिया – ” पहली बार नहीं और भी कई बार आ चुका हूँ। ”
रोहिणी चिक की आड़ ही से बोली – ” पहले यही मिठाई बेचते हुए आए थे या और कोई चीज लेकर ? ”
मिठाई वाला हर्ष , संशय और विस्मयादि भावों में डूबकर बोला – ” इससे पहले मुरली लेकर आया था और उससे भी पहले खिलौने लेकर। “
कठिन शब्द –
मोलभाव – सौदा तय करना
पोपले मुँह – जिसके अंदर के दाँत टूट या निकल गये हों और इसी लिए अंदर से पोला हो गया हो
चेष्टा – कोशिश , प्रयत्न , मनोभाव सूचित करने वाली शारीरिक चंचलता, अंगभंगिमा
हर्ष – ख़ुशी
संशय – संदेह
विस्मय – आश्चर्य , ताज़्ज़ुब , अचंभा , चमत्कारिक या आश्चर्यजनक वस्तु को देखकर उत्पन्न होने वाला भाव
नोट – इस गद्यांश में लेखक दादी , रोहिणी और मिठाई बेचने वाले के बीच हुई बात – चीत का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब मिठाई बेचने वाले ने दादी माँ से कहा कि वह एक पैसे की सोलह मिठाइयाँ देता है तो दादी माँ मिठाई बेचने वाले से बोलीं कि एक पैसे की सोलह तो बहुत कम होती हैं , कम से कम पचीस मिठाइयाँ तो देते। दादी माँ की बातों को सुन कर मिठाई बेचने वाला दादी माँ से बोला कि नहीं दादी माँ इससे ज्यादा वह नहीं दे सकता। मिठाई बेचने वाला दादी माँ को समझने की कोशिश करता है कि कम से कम वह इतना भी दे रहा है क्योंकि कहीं पर भी कोई भी एक पैसे में सोलह मिठाइयाँ नहीं देता है , पर वह अपनी बात पूरी तरह नहीं समझा पता और अंत में केवल इतना ही कहता है कि वह इससे ज्यादा नहीं दे सकेगा। लेखक कहता है कि रोहिणी दादी माँ के पास में ही छुप कर खड़ी हुई थी वह मिठाई बेचने वाले की बातों को सुन कर दादी माँ से बोली कि दादी माँ यह मिठाई बेचने वाला फिर भी काफी सस्ता दे रहा है। चार पैसे की ले लो। यह कह कर वह दादी माँ को पैसे दे देती है। मिठाई बेचने वाला दादी माँ को चार पैसे की मिठाइयाँ देने के लिए मिठाइयाँ गिनने लगता है। दादी माँ मिठाई बेचने वाले से मजाक करते हुए कहती हैं कि तो चार पैसे की मिठाइयाँ दे दो। पर ठीक है अगर तुम पच्चीस नहीं दे सकते तो एक पैसे की बीस मिठाइयाँ ही दे दो। और वैसे भी मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ , अब मुझे ज्यादा सौदा तो तय करना आता भी नहीं। लेखक कहता है कि ऐसा कहते हुए दादी माँ के मुँह , जिसके अंदर के सारे दाँत टूट गए थे और मुँह खाली हो गया था , से जरा सी मुसकराहट फूट कर निकली आई। कहने का तात्पर्य यह है कि दादी माँ मिठाई बेचने वाले के साथ मजाक कर रही थी। रोहिणी ने दादी माँ से कहा कि दादी , इस मिठाई बेचने वाले से पूछो कि क्या वह इस शहर में और कभी भी आया था या इस बार पहली बार आया है ? क्योंकी वह यहाँ का रहने वाला तो नहीं लग रहा है। ऐसा रोहिणी ने इस लिए पूछने के लिए कहा क्योंकी उसको इस मिठाई बेचने वाले की आवाज कुछ जानी – पहचानी लग रही थी और वह जानना चाहती थी क्या उसका संदेह सही है या नहीं ? दादी माँ ने रोहिणी की बात को दोहराने की कोशिश की ही थी कि मिठाई बेचने वाले ने पहले ही उत्तर दे दिया क्योंकि उसे भी रोहिणी की बात सुनाई पड़ गई थी , उसने कहा कि वह पहली बार उनके मोहल्ले में नहीं आया है और भी कई बार वह आ चुका है। रोहिणी ने वही छिप कर ही उस मिठाई बेचने वाले से कहा कि पहले भी क्या वह यही मिठाई बेचते हुए वहाँ आया था या और कोई चीज बेचने के लिए लेकर आया था ? मिठाई बेचने वाला रोहिणी की बात सुन कर ख़ुशी , संदेह और आश्चर्य में डूब गया क्योंकि उसे नहीं लगा था कि कोई भी उसे पहचान लेगा। वह रोहिणी से बोला कि मिठाई बेचने से पहले वह मुरली लेकर आया था और उससे भी पहले खिलौने लेकर वह रोहिणी के मोहल्ले में आया था।
पाठ – रोहिणी का अनुमान ठीक निकला। अब तो वह उससे और भी कुछ बातें पूछने के लिए अस्थिर हो उठी। वह बोली – इन व्यवसायों में भला तुम्हें क्या मिलता होगा ? ”
वह बोला , ” मिलता भला क्या है ! यही खानेभर को मिल जाता है। कभी नहीं भी मिलता है। पर हाँ ; संतोष , धीरज और कभी – कभी असीम सुख जरूर मिलता है और यही मैं चाहता भी हूँ। ”
” सो कैसे ? वह भी बताओ। ”
” अब व्यर्थ उन बातों की क्यों चर्चा करूँ ? उन्हें आप जाने ही दें। उन बातों को सुनकर आपको दुख ही होगा। ”
” जब इतना बताया है , तब और भी बता दो। मैं बहुत उत्सुक हूँ। तुम्हारा हरजा न होगा। मिठाई मैं और भी ले लूँगी। “
कठिन शब्द –
अनुमान – अटकल , अंदाज़ा , प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष का ज्ञान
अस्थिर – जो स्थिर न हो , डाँवाँ डोल , चंचल , अनिश्चित , बे भरोसे का
व्यवसाय – काम धंधा , पेशा , व्यापार , रोज़गार
संतोष – तृप्ति , प्रसन्नता , हर्ष
धीरज – धैर्य
असीम – जिसकी सीमा न हो , बेहद , बे हिसाब , अपार
व्यर्थ – बेकार में ही
उत्सुक – अत्यधिक इच्छुक , बेचैन
हरजा – नुकसान , हरजाना
नोट – इस गद्यांश में लेखक रोहिणी और मिठाई बेचने वाले के बीच हुए वार्तालाप को दर्शा रहा है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब मिठाई बेचने वाले ने कहा कि वह पहले भी उनके मोहल्ले में आया है तो रोहिणी को उसका अंदाज़ा सही लगा। अब तो रोहिणी उस मिठाई बेचने वाले से और भी कुछ बातें पूछने के लिए चंचल हो उठी थी। कहने का तात्पर्य यह है कि रोहिणी को पता था कि वह व्यक्ति जो भी चीज बेचता है बहुत ही कम दाम पर बेचता है। रोहिणी को यह पता करना था कि वह व्यक्ति ऐसा क्यों करता है और ऐसा करने से उसका घर कैसे चलता है। रोहिणी मिठाई बेचने वाले से पूछने लगी कि वह जो भी व्यापार करता है उससे भला उसे क्या मिलता होगा ? रोहिणी की बात सुन कर मिठाई बेचने वाला रोहिणी से बोला कि उसे ज्यादा कुछ तो नहीं मिलता बस खाने का इंतजाम हो जाता है। लेकिन कभी कबार खाना – खाने का इंतजाम भी नहीं हो पता है। लेकिन मिठाई बेचने वाला यह भी कहता है कि खाना – खाने का इंतजाम हो या न हो प्रसन्नता , धैर्य और कभी – कभी बे हिसाब सुख भी जरूर मिलता है और वह भी यही चाहता है। उस मिठाई बेचने वाले की ऐसी अनोखी बातों को सुन कर रोहिणी और ज्यादा उत्सुक हो कर पूछती है कि उसे प्रसन्नता , धैर्य और कभी – कभी बे हिसाब सुख कैसे मिल जाता है ? रोहिणी मिठाई बेचने वाले से यह भी बताने को कहती है। रोहिणी की बात सुन कर मिठाई बेचने वाला रोहिणी से कहता है कि अब बेकार में ही उन बातों की क्यों चर्चा करें ? वह रोहिणी से उन सब बातों को न करने को कहता है। क्योंकि उसे लगता था कि रोहिणी उन बातों को सुनकर दुखी हो जाएगी। लेकिन रोहिणी उससे जिद करती है और कहती है कि जब उसने इतना बता ही दिया है , तब और भी बता दो। वह पूरी बात सुनने के लिए बहुत बैचेन है। रोहिणी मिठाई बेचने वाले को यह भी कहती है कि पूरी बात सुनाने में उसका कोई नुक्सान नहीं होगा। रोहिणी उस मिठाई बेचने वाले की पूरी कहानी सुनने के लिए इतनी बैचेन थी कि वह उस से पूरी बात के बदले में और भी मिठाइयाँ लेने के लिए तैयार थी। कहने का तात्पर्य यह है कि रोहिणी किसी भी कीमत पर उस मिठाई बेचने वाले की पूरी बात पता करना चाहती थी।
पाठ – अतिशय गंभीरता के साथ मिठाई वाले ने कहा – ” मैं भी अपने नगर का एक प्रतिष्ठित आदमी था। मकान , व्यवसाय , गाड़ी – घोडे़ , नौकर – चाकर सभी कुछ था। स्त्री थी , छोटे – छोटे दो बच्चे भी थे। मेरा वह सोने का संसार था। बाहर संपत्ति का वैभव था , भीतर सांसारिक सुख था। स्त्री सुंदरी थी , मेरी प्राण थी। बच्चे ऐसे सुंदर थे , जैसे सोने के सजीव खिलौने। उनकी अठखेलियों के मारे घर में कोलाहल मचा रहता था। समय की गति ! विधाता की लीला। अब कोई नहीं है। दादी , प्राण निकाले नहीं निकले। इसलिए अपने उन बच्चों की खोज में निकला हूँ। वे सब अंत में होंगे , तो यहीं कहीं। आखिर , कहीं न जनमे ही होंगे। उस तरह रहता , घुल – घुलकर मरता। इस तरह सुख – संतोष के साथ मरूँ गा। इस तरह के जीवन में कभी – कभी अपने उन बच्चों की एक झलक – सी मिल जाती है। ऐसा जान पड़ता है , जैसे वे इन्हीं में उछल – उछलकर हँस – खेल रहे हैं। पैसों की कमी थोड़े ही है , आपकी दया से पैसे तो काफी हैं। जो नहीं है , इस तरह उसी को पा जाता हूँ। “
कठिन शब्द –
अतिशय – अत्यधिक , अधिकता , श्रेष्ठता
गंभीरता – गहराई , ऊँचाई एवं भारीपन
प्रतिष्ठित – सम्मान प्राप्त , आदर प्राप्त , स्थापित
वैभव – ऐश्वर्य , धन–दौलत , सुख–शांति , शान-शौक़त
सजीव – जीव युक्त , जीवित , प्राणी , जीवधारी
अठखेलियाँ – किलोल , इतराकर नाज़ के साथ चलना , अल्हड़पन ,मस्ती और विनोद से भरी चंचलता
कोलाहल – शोर , हल्ला
नोट – इस गद्यांश में लेखक मिठाई बेचने वाले के जीवन में घटी घटना का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि रोहिणी के जिद करने पर मिठाई बेचने वाला अपने बारे में रोहिणी और दादी माँ को बहुत अधिक भारीपन के साथ बताने लगता है कि वह भी अपने नगर का एक सम्मान प्राप्त आदमी था। अर्थात उसके नगर में उसका बहुत आदर व् सम्मान किया जाता था। उसके पास भी मकान था , अपना व्यापार था , गाड़ी – घोडे़ थे , नौकर – चाकर सभी कुछ था। उसकी पत्नी थी , उसके छोटे – छोटे दो बच्चे भी थे। मिठाई बेचने वाला कहता है कि उसका वह छोटा सा परिवार उसे सोने का संसार लगता था। उसके पास जहाँ बाहर संपत्ति की शान-शौक़त थी , वहीं भीतर परिवार में पुरे संसार का सुख था। मिठाई वाला रोहिणी और दादी माँ को बताता है कि उसकी पत्नी एक बहुत ही सुंदर स्त्री थी , उसमें उस मिठाई बेचने वाले के प्राण बसते थे। उसके बच्चे भी इतने सुंदर थे कि उनको देखने पर लगता था जैसे कोई सोने के खिलौने हों जिनमें प्राण भरे गए हों। उन बच्चों की शरारतों के कारण उस मिठाई बेचने वाले के घर में शोर मचा रहता था। मिठाई बेचने वाला आगे बताता है कि समय की गति और विधाता की लीला को कोई नहीं जान सकता। ऐसा मिठाई बेचने वाले ने इसलिए कहा क्योंकि अब उसके परिवार में कोई नहीं रहा। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी कारण वश मिठाई बेचने वाले के परिवार के सभी सदस्यों की मृत्यु हो गई थी केवल वह मिठाई बेचने वाला व्यक्ति ही अकेला रह गया था। मिठाई बेचने वाला दादी माँ से यहाँ तक कहता है कि उसके प्राण हैं कि निकलते ही नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि वह मिठाई बेचने वाला भी अपने प्राण त्यागना चाहता है लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा। इसलिए वह कहता है कि वह अपने उन बच्चों की खोज में निकला हुआ है। क्योंकि उसे उम्मीद है कि वे सब अंत में उसे यहीं कहीं मिल जाएँगे आखिर , कहीं तो उन्होंने जन्म लिया ही होंगा। कहने का तात्पर्य यह है कि मिठाई बेचने वाला विशवास करता है कि जो मरता है वह दुबारा जन्म लेता है , इसी लिए वह घूमता रहता है कि शायद कभी न कभी , कहीं न कहीं उसको अपना कोई मिल जाएगा। मिठाई बेचने वाला रोहिणी और दादी माँ से कहता है कि उसके परिवार के सभी सदस्यों को खोने के बाद अगर वह उस तरह रहता यानि उन्हीं की यादों में रहता तो घुल – घुलकर मर जाता। इस तरह कोशिश कर के सुख – संतोष के साथ मरूँ गा। मिठाई बेचने वाला कहता है कि इस तरह के जीवन में यानि गली – गली घूम – घूम कर , कभी – कभी उसे अपने उन बच्चों की एक झलक – सी मिल जाती है। उसे ऐसा एहसास होता है कि जैसे उसके दोनों बच्चे इन्हीं बच्चों में उछल – उछलकर हँस – खेल रहे हैं। मिठाई बेचने वाला रोहिणी और दादी माँ को बताता है कि उअके पास पैसों की कोई कमी नही है , आपकी दया से पैसे तो काफी हैं। और जो चीज उसके पास नहीं है , उसे वह इस तरह बच्चों को खुश रख कर वह अपनी ख़ुशी उसी को पा जाता है।
पाठ – रोहिणी ने अब मिठाई वाले की ओर देखा – उसकी आँखें आँसुओं से तर हैं। इसी समय चुन्नू – मुन्नू आ गए। रोहिणी से लिपटकर , उसका आँचल पकड़कर बोले – ” अम्मा , मिठाई ! ”
” मुझसे लो। ” यह कहकर , तत्काल कागज़ की दो पुड़ियाँ , मिठाइयों से भरी , मिठाई वाले ने चुन्नू – मून्नू को दे दीं।
रोहिणी ने भीतर से पैसे फैंक दिए।
मिठाई वाले ने पेटी उठाई और कहा – ” अब इस बार ये पैसे न लूँगा। ”
दादी बोली – ” अरे – अरे , न न अपने पैसे लिए जा भाई! ”
तब तक आगे फिर सुनाई पड़ा उसी प्रकार मादक – मृदुल स्वर में – ” बच्चों को बहलाने वाला मिठाई वाला। “
कठिन शब्द –
तत्काल – तुरंत ही
नोट – इस गद्यांश में लेखक मिठाई बेचने वाले के जीवन की गाथा सुन कर रोहिणी की प्रतिक्रिया का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब मिठाई बेचने वाले ने अपनी पूरी कहानी रोहिणी और दादी माँ को सूना दी तो रोहिणी ने मिठाई वाले की ओर देखा और उसने पाया कि अपनी बीती जिंदगी को याद करके उस मिठाई बेचने वाले की की आँखें अब आँसुओं से तर हो चुकी हैं। उसी समय रोहिणी के दोनों बच्चे चुन्नू – मुन्नू भी आ गए। वे दोनों रोहिणी से लिपट गए और उसका आँचल पकड़कर बोले कि उन्हें मिठाई दिला दें। मिठाई बेचने वाले ने चुन्नू – मुन्नू से कहा कि वे दोनों मिठाई उससे ले। यह कहकर मिठाई बेचने वाले ने तुरंत ही कागज़ की दो पुड़ियाँ ली , उसमे मिठाइयों को भरा और मिठाइयाँ चुन्नू – मून्नू को दे दीं।
रोहिणी ने अंदर से ही मिठाई के पैसे मिठाई बेचने वाले की और फैंक दिए। लेकिन मिठाई बेचने वाले ने अपनी मिठाई की पेटी उठाई और कहा कि अब इस बार वह रोहिणी से उन मिठाइयों के पैसे नहीं लेगा। दादी माँ भी मिठाई बेचने वाले से कहने लगी कि अरे – अरे , नहीं – नहीं अपने पैसे लेते जाओ। लेकिन तब तक कुछ आगे फिर सुनाई पड़ा उसी प्रकार नशीले – कोमल शब्दों में कि बच्चों को बहलाने वाला मिठाई वाला। यानि मिठाई वाला रोहिणी के घर से बिना मिठाइयों के पैसे लिए ही चला गया था। कहने का तात्पर्य यह है कि शायद बहुत समय बाद किसी ने उस मिठाई बेचने वाले से उसके बारे में कुछ पूछा था और इस संसार में कोई भी नहीं था जो उसके साथ उसका दुःख साँझा करता। रोहिणी और दादी माँ से बात करके आज उसे बहुत अच्छा लगा था , इसी कारण उस मिठाई बेचने वाले ने चुन्नू – मुन्नू को दी मिठाइयों के पैसे नहीं लिए।
Mithaiwala Question Answers (मिठाईवाला – प्रश्न अभ्यास )
प्रश्न 1 – मिठाईवाला अलग – अलग चीजें क्यों बेचता था और वह महीनों बाद क्यों आता था ?|
उत्तर – मिठाईवाला अलग – अलग चीजें इसलिए बेचता था , क्योंकि वह बच्चों का प्यार प्राप्त करना चाहता था। उसके बच्चों एवं पत्नी की असमय ही मृत्यु हो गई थी। वह अपने बच्चों और अपनी पत्नी को बहुत याद करता था और वह अपने बच्चों की झलक गली – मुहल्लों के बच्चों में देखता था। यही कारण था कि वह बच्चों की रुचि के अनुसार ही बेचने के लिए चीजें लाया करता था। बच्चों को भी पता था कि वह जब भी आएगा बदल – बदल कर चीजें लाएगा , इसलिए उसके आते ही बच्चे भी उसे घेर लिया करते थे। वह भी बच्चों को खूब प्यार करता था और बच्चों की सारी फरमाइशें पूरी करता रहता था। कभी कबार यदि किसी बच्चे के पास पैसे नहीं होते थे तो वह बिना पैसों के ही बच्चे को चीजें दे दिया करता था। वह कई महीनों के बाद इसलिए आता था क्योंकि उसे पैसों का कोई लालच नहीं था। वह एक समृद्ध परिवार से तलूक रखता था। इसके अलावा वह अलग – अलग चीज़ों को तैयार करवाता था क्योंकि वह बच्चों की उत्सुकता को बनाए रखना चाहता था। ताकि बच्चे उससे हमेशा प्यार करते रहें। इसके साथ ही साथ वह बहुत ही कम दाम पर चीजें बेचता था जिस कारण बच्चे उससे और भी अधिक प्यार किया करते थे और यही वह मिठाई बेचने वाला चाहता था।
प्रश्न 2 – मिठाईवाले में वे कौन से गुण थे जिनकी वजह से बच्चे तो बच्चे , बड़े भी उसकी ओर खिंचे चले आते थे ?
उत्तर – मिठाई बेचने वाले बहुत ही मधुर आवाज में गा – गाकर अपनी चीजों की विशेषताएँ बताता था। जिससे सबका ध्यान उसकी और खिंचा चला जाता था। वह हमेशा ही बच्चों की मनपसंद चीजें लाया करता था , जिस कारण बच्चे उसके आते ही उसे घेर लेते थे। वह जो भी चीजें लाता था उनको बहुत ही कम दामों में बेचता था जिस वजह से बच्चों के माता – पिता भी उसकी ओर खिंचे चले आते थे। वह बच्चों से बहुत भी अच्छे से अपनत्व की भावना के साथ बात करता था , जो सभी को अच्छा लगता था। ऐसी बहुत सी विशेषताएँ थीं जिस के कारण बच्चे तो बच्चे बड़े भी उसकी ओर खिंचे चले आते थे।
प्रश्न 3 – विजय बाबू एक ग्राहक थे और मुरलीवाला एक विक्रेता। दोनों अपने – अपने पक्ष के समर्थन में क्या तर्क पेश करते हैं ?
उत्तर – विजय बाबू एक ग्राहक थे जबकि मुरलीवाला एक विक्रेता। जब मुरली बेचने वाले ने यह कहा कि वैसे तो एक मुरली की कीमत तीन पैसे है लेकिन वह विजय बाबू को दो पैसे में दे देगा तो इस बात पर दोनों ने मोल – भाव के लिए अपने – अपने तर्क दिए। विजय बाबू ने अपने पक्ष में तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि सभी फेरीवालों की झूठ बोलने की आदत होती है। जैसे वह मुरली बेचने वाला मुरलियाँ देता तो सभी को दो – दो पैसे में ही होगा , पर उसे दो पैसे में दे कर उस पर अहसान का बोझ लाद रहा है।
इसके विपरीत मुरली बेचने वाले ने अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि ग्राहकों को वस्तुओं की लागत का कुछ पता नहीं होता कि बेचने वाले को वस्तु किस कीमत में पड़ी है , ग्राहकों का तो दस्तूर ही होता है कि दुकानदार चाहे हानि उठाकर वस्तु क्यों न बेच रहा हो , पर ग्राहक यही समझते हैं कि दुकानदार उन्हें लूट रहा है।
प्रश्न 4 – खिलौने वाले के आने पर बच्चों की क्या प्रतिक्रिया होती थी ?
उत्तर – खिलौने बेचने वाले के आने पर बच्चे बहुत ज्यादा खुश हो जाते थे। बच्चे बहुत उत्साहित हो जाते थे क्योंकि खिलौने बेचने वाला उनके मनपसंद खिलौने ले कर आता था। जब भी खिलौने बेचने वाला आता था बच्चे खेलकूद भूलकर अपने सारा सामान जैसे जूते – चप्पल आदि को बाग़ – बगीचों में ही छोड़ कर खुद दौड़ कर खिलौने बेचने वाले को घेर लेते थे। बच्चे अपने – अपने घर से पैसे लाकर खिलौने का मोल – भाव करने लग जाते थे। खिलौने बेचने वाला भी सभी बच्चों को उनका मन चाहा खिलौने दे देता था और बच्चे उन्हें लेकर काफ़ी खुश हो जाते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि खिलौने बेचने वाले के आने पर बच्चे खुशी से पागल हो जाते थे।
प्रश्न 5 – रोहिणी को मुरली वाले के स्वर से खिलौने वाले का स्मरण क्यों हो आया ?
उत्तर – रोहिणी को मुरली बेचने वाले के स्वर से खिलौने बेचने वाले का स्मरण इसलिए हो आया क्योंकि खिलौने बेचने वाला जिस तरह के मीठे व् मधुर स्वर में गा – गाकर खिलौने बेचा करता था। मुरली बेचने वाला भी ठीक उसी तरह ही मीठे स्वर में गा – गाकर मुरलियाँ बेच रहा था। रोहिणी को दोनों के स्वर एक सामान लग रहे थे।
प्रश्न 6 – किसकी बात सुनकर मिठाईवाला भावुक हो गया था ? उसने इन व्यवसायों को अपनाने का क्या कारण बताया ?
उत्तर – रोहिणी की बात सुनकर मिठाई बेचने वाला भावुक हो गया था। उसने अपने सभी व्यवसायों को अपनाने का कारण भावुक होते हुए बताया कि वह भी अपने नगर का एक सम्मान प्राप्त व्यापारी था।अर्थात उसके नगर में उसका बहुत आदर व् सम्मान किया जाता था। उसके पास भी मकान था , अपना व्यापार था , गाड़ी – घोडे़ थे , नौकर – चाकर सभी कुछ था। उसकी पत्नी थी , उसके छोटे – छोटे दो बच्चे भी थे। उसका वह छोटा सा परिवार उसे सोने का संसार लगता था। उसके पास जहाँ बाहर संपत्ति की शान-शौक़त थी , वहीं भीतर परिवार में पुरे संसार का सुख था। समय की गति और विधाता की लीला को कोई नहीं जान सकता। क्योंकि अब उसके परिवार में कोई नहीं रहा। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी कारण वश मिठाई बेचने वाले के परिवार के सभी सदस्यों की मृत्यु हो गई थी केवल वह मिठाई बेचने वाला व्यक्ति ही अकेला रह गया था।
उसने इन व्यवसायों को अपनाने के निम्नलिखित कारण बताएँ-
वह अपने उन बच्चों की खोज में निकला हुआ है। क्योंकि उसे उम्मीद है कि वे सब अंत में उसे यहीं कहीं मिल जाएँगे आखिर , कहीं तो उन्होंने जन्म लिया ही होंगा। कहने का तात्पर्य यह है कि मिठाई बेचने वाला विशवास करता है कि जो मरता है वह दुबारा जन्म लेता है , इसी लिए वह घूमता रहता है कि शायद कभी न कभी , कहीं न कहीं उसको अपना कोई मिल जाएगा। उसे ऐसा एहसास होता है कि जैसे उसके दोनों बच्चे इन्हीं बच्चों में उछल – उछलकर हँस – खेल रहे हैं। मिठाई बेचने वाला रोहिणी और दादी माँ को बताता है कि उअके पास पैसों की कोई कमी नही है , उनकी दया से पैसे तो काफी हैं। और जो चीज उसके पास नहीं है , उसे वह इस तरह बच्चों को खुश रख कर वह अपनी ख़ुशी उसी को पा जाता है।
प्रश्न 7 – ‘ अब इस बार ये पैसे न लँगा ’ – कहानी के अंत में मिठाईवाले ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर – मिठाई बेचने वाले के जीवन का रहस्य कोई नहीं जानता था लेकिन जब उसने अपने जीवन की सारी गाथा दादी और रोहिणी को बताई। उसी समय रोहिणी के छोटे – छोटे बच्चे चुन्नू – मुन्नू आकर मिठाई माँगने लगते हैं। वह दोनों को मिठाई से भरी एक – एक पुडिया देता है। रोहिणी पैसे देती है तो उसका यह कहना कि अब इस बार ये पैसे न लँगा। इस बात को दर्शाता है कि उसका मन भर आया और ये बच्चे उसे अपने बच्चे ही लगे। हम यह भी कह सकते हैं कि शायद बहुत समय बाद किसी ने उस मिठाई बेचने वाले से उसके बारे में कुछ पूछा था और इस संसार में कोई भी नहीं था जो उसके साथ उसका दुःख साँझा करता। रोहिणी और दादी माँ से बात करके आज उसे बहुत अच्छा लगा था , इसी कारण उस मिठाई बेचने वाले ने चुन्नू – मुन्नू को दी मिठाइयों के पैसे नहीं लिए।
प्रश्न 8 – इस कहानी में रोहिणी चिक के पीछे से बात करती है। क्या आज भी औरतें चिक के पीछे से बात करती हैं ? यदि करती हैं तो क्यों ? आपकी राय में क्या यह सही है ?
उत्तर – जब रोहिणी मिठाई वाले से चुन्नू – मुन्नू के लिए मिठाइयाँ लेना चाहती थी तो वह स्वयं न जा कर दादी माँ को मिठाई बेचने वाले के सामने भेजती है और खुद छिप कर देखती रहती है क्योंकि मिठाई बेचने वाला अनजान आदमी था और अपने पति आलावा किसी अन्य आदमी के सामने न जाना पर्दा प्रथा को दर्शाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान ने स्त्री – पुरुष को समान अधिकार दिए हैं और आज शिक्षा के प्रसार व आधुनिकीकरण से भी समाज में बहुत अधिक बदलाव देखने को मिला है। आज स्त्रियाँ पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। लेकिन भारत के कुछ पिछड़े गाँव व स्थान ऐसे भी हैं जहाँ स्त्रियों को आज भी पर्दे में रहना पड़ता है। ऐसे में वे चिक के पीछे बात करने को मजबूर होती हैं। हमारी राय में यह पूर्णतया गलत है क्योंकि स्त्री – पुरुष दोनों समाज के आधार हैं। दोनों को समान दर्जा मिलना चाहिए। इन पिछड़े वर्गों में जागृति लाने हेतु सरकार व युवावर्ग को आगे आना होगा और लोगों की सोच बदलनी होगी जिससे साक्षर राष्ट्र का निर्माण किया जा सके।
Top
Also See :
- Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke Class 7 Hindi Chapter 1 Summary Explanation, Question Answers
- Dadi Maa Class 7 Hindi Chapter 2 Summary Explanation, Question Answers
- Himalaya ki Betiyan Class 7 Hindi Chapter 3 Summary, Explanation, Question Answers
- Kathputli Class 7 Hindi Chapter 4 Summary, Explanation, and Question Answers
- Mithaiwala Class 7 Hindi Chapter 5 Summary, Explanation, and Question Answers
- Rakt Aur Hamara Sharir Class 7 Hindi Chapter 6 Summary, Explanation, Question Answers
- Papa Kho Gaye Class 7 Hindi Chapter 7 Summary, Explanation, Question Answers
- Shyam Ek Kisan Class 7 Hindi Chapter 8 Summary, Explanation, Question Answers
- Chidiya ki Bacchi Class 7 Hindi Chapter 9 Summary, Explanation, Question Answers
- Apurv Anubhav Class 7 Hindi Chapter 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Rahim Ke Dohe Class 7 Hindi Chapter 11 Summary, Explanation, Question Answers
- Kancha Class 7 Hindi Chapter 12 Summary, Explanation, Question Answers
- Ek Tinka Class 7 Hindi Chapter 13 Summary, Explanation, Question Answers
- Khanpan Ki Badalti Tasveer Class 7 Hindi Chapter 14 Summary, Explanation, Question Answers
- Neelkanth Class 7 Hindi Chapter 15 Summary, Explanation, Question Answers
- Bhore or Barkha Class 7 Hindi Chapter 16 Summary, Explanation, Question Answers
- Veer Kunwar Singh Class 7 Hindi Chapter 17 Summary, Explanation, Question Answers
- Dhanraj Class 7 Hindi Chapter 18 Summary, Explanation, Question Answers
- Ashram ka Anumanit Vyay Class 7 Hindi Chapter 19 Summary, Explanation, Question Answers