NCERT Class 7 Hindi Chapter 12 Kancha Summary, Explanation with Video and Question Answers from Vasant Bhag 2 Book
Kancha Summary – NCERT Solution for Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 book Chapter 12 Kancha Summary and detailed explanation of lesson “Kancha” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with all the exercises, Questions and Answers are given at the back of the lesson. Take Free Online MCQs Test for Class 7.
इस लेख में हम हिंदी कक्षा 7 ” वसंत भाग – 2 ” के पाठ – 12 ” कंचा ” पाठ के पाठ – प्रवेश , पाठ – सार , पाठ – व्याख्या , कठिन – शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर , इन सभी के बारे में चर्चा करेंगे –
कक्षा – 7 पाठ 12 ” कंचा”
- कंचा पाठ प्रवेश
- कंचा पाठ सार
- कंचा पाठ की व्याख्या
- कंचा प्रश्न – अभ्यास
- Class 7 Hindi Chapter 12 Kancha MCQs
- कंचा Question Answers, Class 7 Chapter 12 NCERT Solutions
- Class 7 Hindi Chapter Wise Word Meanings
लेखक परिचय –
कंचा पाठ प्रवेश
प्रस्तुत ‘कंचा’ पाठ में लेखक टी. पद्मनाभन ने बच्चों के बालमन की सहजता और कल्पना के रूपों का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। कैसे एक बालक अपने खेलने के सामान को अन्य सभी चीजों से ज्यादा महत्त्व देता है। कैसे वह हर कीमत पर अपने खिलौनों या खेलने के सामान को संभाल कर रखता है। इस कहानी में लेखक ने भी अप्पू के माध्यम से बच्चों के स्वभाव को दिखाने का प्रयास किया है। जैसे अप्पू को अपने समय पर स्कूल पहुँचाने से ज्यादा कंचों को निहारना ज्यादा सही लगा , जैसे कक्षा में पाठ पर ध्यान न दे कर अपनी कल्पना में खोया रहना ज्यादा सही लगा , जैसे अपनी फीस के पैसों से फीस न दे कर उससे कंचे खरीदना ज्यादा सही लगा और अपनी पुस्तकों के बेग में पुस्तकों से ज्यादा कंचे रखना सही लगा। इसके साथ – ही – साथ जब अप्पू से सारे कंचे सड़क पर बिखर गए थे तो वह उन्हें इकठ्ठा करने में इतना व्यस्त हो गया कि उसे अपनी जान की परवाह भी नहीं थी कि कहीं कोई गाड़ी उसे नुक्सान न पहुँचा दे। अंत में लेखक ने बच्चों की मासूमियत को भी दर्शाया है। जहाँ अप्पू अपनी माँ के आँसू देख केर समझता है कि उसे अप्पू के कंचे पसंद नहीं आए , जिस कारण अप्पू अपनी माँ को खुश करने के लिए कह देता है कि उसे भी कंचे अच्छे नहीं लग रहे हैं। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बच्चों के अलग – अलग भावनाओं को अत्यधिक सुंदरता से दर्शाने का प्रयास किया है।
कंचा पाठ सार
प्रस्तुत ‘कंचा’ पाठ में लेखक टी. पद्मनाभन ने बच्चों के बालमन की सहजता और कल्पना के रूपों का और बच्चों की अलग – अलग भावनाओं को अत्यधिक सुंदरता से दर्शाने का प्रयास किया है। लेखक कहते हैं कि वह लड़का नीम के पेड़ों की घनी छाँव से होता हुआ घर से स्कूल जा रहा था और साथ – ही – साथ सियार की कहानी का मज़ा भी ले रहा था। जब वह चलते हुए हिलता – डुलता था तो उसका बेग दोनों तरफ झूमता था और बेग में रखी पुस्तकें और दूसरा सामान आपस में टकराते थे जिससे आवाजे हो रही थी। उसका पूरा ध्यान तो कहानी पर ही लगा हुआ था। उसे वह कहानी बहुत ही मज़ेदार लग रही थी। वह कहानी थी – कौए और सियार की। सियार और कौए की कहानी का मजा लेते हुए वह लड़का चलते – चलते एक दुकान के सामने पहुँचा गया। वहाँ उस दुकान में अलमारी में काँच के बड़े – बड़े जार पंक्ति में रखे थे। वहाँ पर रखे गए एक नए जार ने उसका ध्यान अपनी ओर खिंचा। उस पूरे जार में कंचे थे। उस जार के कंचे हरी लकीर वाले बढ़िया सफ़ेद गोल थे। उनका आकार किसी बड़े आँवले जैसा था। लड़का उन कंचों को देखे जा रहा था और उसके देखते – देखते ही वह अपनी कल्पना में चला जाता है और उसे वह जार अपने आप ही बड़ा होता दिखाई देता है। उसकी कल्पना में ही जब वह जार आसमान के बराबर बड़ा हो गया तो वह लड़का भी उस जार के अंदर आ गया। वहाँ पर उसके अलावा और कोई लड़का नहीं था। फिर भी उसे वही कंचे खेलना पसंद था। लेखक यहाँ बताते हैं कि उसकी एक छोटी बहन भी थी , परन्तु उसकी छोटी बहन की किसी कारण वश मृत्यु हो गई थी जिस वजह से वह हमेशा अकेले ही खेला करता था। लेखक बताता है कि वह लड़का उसकी कल्पना में कंचे के जार के अंदर कंचों के बीच पहुँच गया था। उस जार के अंदर वह कंचे चारों तरफ बिखेरता हुआ मजे में खेल रहा था। तभी उसे एक आवाज सुनाई दी जो उससे कह रही थी कि लड़के , तू उस जार को नीचे गिरा देगा। उस आवाज को सुन कर वह चौंक गया। उसी आवाज के कारण अब वह लड़का अपनी कल्पना से बाहर आ रहा था। उस लड़के ने देखा कि वहाँ पर सिर्फ दो ही लोग थे। वह और एक बूढ़ा दुकानदार। उस दुकानदार ने उस लड़के से कहा कि वह जो भी चाहता है क्या वह उसे उस चीज़ को निकालकर दे सकता है। वह लड़का उदास हो कर जार से अलग खड़ा रहा। वह कुछ न बोला। उसे चुप देख कर दुकानदार ने उस से कहा कि क्या उसे कंचा चाहिए ? यह कह कर दुकानदार ने जार का ढक्कन खोलना शुरू किया। परन्तु लड़के ने उस दुकानदार को मना करते हुए अपना सिर हिलाया। तभी उसे उसके स्कूल की घंटी सुनाई पड़ी , स्कूल की घंटी सुनकर वह अपना बेग थामे हुए दूकान पर से स्कूल की ओर दौड़ पड़ा।लेखक कहता है कि वह लड़का अपने स्कूल की घंटी सुन कर इसलिए दौड़ पड़ा था क्योंकि कक्षा में देर से पहुँचने वाले लड़कों को कक्षा में सबसे पीछे बैठना पड़ता था। उस लड़के को जॉर्ज कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। लेखक बताता है कि सभी लड़कों के बीच जॉर्ज ही सबसे अच्छा कंचे का खिलाड़ी था। कितना भी बड़ा लड़का उसके साथ में कंचे क्यों न खेले , वह अवश्य ही जॉर्ज से हार जाता था। लेखक यहाँ पर हारने वाले को मिलने वाली सजा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जॉर्ज उससे हारने वाले को ऐसे ही नहीं जाने देता था। हारे हुए खिलाड़ी को अपनी बंद मुट्ठी जमीन पर रखनी पड़ती थी। तब जॉर्ज कंचे से बंद मुट्ठी के जोड़ों की हड्डी पर वार करता था। लड़का सोचने लगा कि आज जॉर्ज स्कूल क्यों नहीं आया है ? फिर उसे याद आता है कि जॉर्ज को तो बुखार है। लेखक उस लड़के का नाम बताते है कि उसका नाम अप्पू है और वह कक्षा की तरफ ध्यान नहीं दे रहा था। क्योंकि उसका सारा ध्यान कंचों और जॉर्ज की और था। लेखक बताते हैं कि जिस समय अप्पू जॉर्ज और कंचों के बारे में सोच रहा था उसी समय मास्टर जी कक्षा में आ गए और मास्टर जी को देख कर अप्पू ने जल्दबाज़ी में अपनी पुस्तक खोलकर अपने सामने रख ली। उन दौरान मास्टर जी कक्षा को रेलगाड़ी का पाठ पढ़ा रहे थे। अप्पू ने मास्टर जी की पूरी बात पर गौर नहीं किया था क्योंकि उसका ध्यान काँच के जार पर था। उसमें हरी लकीर वाले सफेद गोल कंचे वो भी बड़े आँवले जैसे। जॉर्ज जब अच्छा होकर स्कूल आ जाएगा , तब वह उससे यह सब कहेगा। उस समय जॉर्ज कितना खुश हो जाएगा। सिर्फ वे दोनों खेलेंगे। और किसी को साथ में खेलने नहीं देंगे। अप्पू इसी तरह अपनी सोच में डूबा हुआ था कि तभी उसके चेहरे पर चॉक का टुकड़ा आ गिरा। तजुर्बा होने के कारण वह उठकर खड़ा हो गया। कहने का तात्पर्य यह है कि अप्पू अक्सर हमेशा ही कक्षा में अपने ही खयालो में डूबा रहता था जिस कारण मास्टर जी लगभग हमेशा ही अप्पू को चॉक से मार कर उसकी सोच की दुनिया से उसे बाहर निकालते थे। आज भी जब मास्टर जी ने देखा की आज फिर अप्पू कहीं खोया हुआ है , उसका ध्यान कक्षा में नहीं है तो उन्होंने अप्पू को चॉक से मारा। जब अप्पू खड़ा हुआ तो उसने देखा कि मास्टर जी बहुत गुस्से में थे। वे गुस्से में अप्पू से पूछते हैं कि वह कक्षा में क्या कर रहा है ? मास्टर जी का सवाल पूछने पर अप्पू का डर के मारे दम घुट रहा था। लेकिन वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। मास्टर जी के जोर देने पर भी वह चुप – चाप खड़ा रहा। अप्पू के इस तरह मास्टर जी के बार – बार बोलने पर भी कुछ न बोलने से मास्टर जी और ज्यादा गुस्सा हो कर अप्पू के पास पहुँच गए। एक अच्छे अध्यापक को यह अच्छे से पता रहता है कि उसकी कक्षा में किस छात्र का ध्यान कहाँ है। इसी कारण मास्टर जी को अप्पू का चेहरा देखकर ही समझ आ गया था कि उसके मन में कुछ और ही चल रहा है। अप्पू ने डर के साथ काँपते हुए जवाब दिया कि मास्टर जी कंचे के बारे में पढ़ा रहे थे। अप्पू की बात सुन कर मास्टर जी चौंक गए और दुविधा में पड़ गए। ऐसा लग रहा था जैसे अप्पू का जवाब सुन कर कक्षा में भूचाल आ गया था। मास्टर साहब को बहुत अधिक गुस्सा आ गया था इसलिए उन्होंने अप्पू को बैंच पर खड़े होने की सजा सुना दी। कक्षा के सभी बच्चे उसकी तरफ देख – देखकर उसकी हँसी उड़ा रहे हैं। बेंच पर खड़े – खड़े अप्पू ने सोचा कि वह सब को दिखा देगा अर्थात वह सब बच्चों से उस पर हँसने का बदला लेगा। वह सोच रहा था कि एक बार बस जॉर्ज को आने दो। जॉर्ज जब आएगा तो वह जॉर्ज के आने पर कंचे खरीदेगा। और वह कक्षा में मौजूद किसी भी बच्चे को अपने साथ कंचे खेलने नहीं बुलाएगा। उसके मन में तरह – तरह के प्रश्न उठने लगे जैसे कि उसे कंचा मिलेगा कैसे ? अगर वह दुकानदार से माँगेगा तो क्या दुकानदार उसे कंचे दे देगा ? अगर वह जॉर्ज को साथ लेकर पूछें तो क्या दुकानदार उसे कंचे देगा , अगर दुकानदार ने उसे कंचे नहीं दिए तो ? कहने का तात्पर्य यह है कि अप्पू को सजा मिलने के बाद भी वह कंचों से अपने मन को नहीं हटा पा रहा था। अप्पू को अब भी कुछ सोच में डूबा हुआ देख कर मास्टर जी ने उससे पूछा कि वह क्या सोच रहा है ? अप्पू को फिर भी चुप देख कर मास्टर जी ने उससे कहा कि अगर उसे भी कोई प्रश्न पूछना है तो वह पूछ सकता है। अप्पू के मन में प्रश्न तो जरूर था। लेकिन पाठ के सम्बन्ध में नहीं बल्कि वह सोच रहा था कि क्या जॉर्ज को साथ ले चलने पर दुकानदार उसे बिना पैसे के ही कंचे देगा ? अगर बिना पैसे के नहीं देगा , तो कितने पैसे लगेंगे ? क्या पाँच पैसे में कांचा मिलेगा , या दस पैसे में ? अप्पू को अब भी सोच में डूबा हुआ देख कर मास्टर जी ने अप्पू से फिर से पूछ कि वह क्या सोच रहा है ? अप्पू ने अब जवाब दे दिया कि वह पैसे के बारे में सोच रहा है। मास्टर जी अप्पू का जवाब सुन कर हैरान हो गए और उन्होंने अप्पू से पूछा कि उसे कितने पैसे चाहिए और किस चीज के लिए चाहिए ? अब अप्पू फिर से चुप हो गया और वह कुछ नहीं बोला। उसकी सोच में वे हरी लकीर वाले सफेद गोल कंचे उसके सामने से फिसलते जा रहे थे। मास्टर जी ने फिर से उससे पूछा कि क्या उसे पैसे रेलगाड़ी के लिए चाहिए ? अप्पू ने सिर हिलाया। मास्टर जी अप्पू पर गुस्सा हो गए और बोले नासमझ रेलगाड़ी को पैसे से खरीद नहीं सकते। अगर मिले भी तो उसे लेकर वह क्या करेगा ? अप्पू मास्टर जी की बात सुन कर मन ही मन में कहने लगा कि वह खेलेगा। जॉर्ज के साथ खेलेगा। लेकिन रेलगाड़ी नहीं , वह कंचा खेलेगा। इसी बीच चपरासी एक नोटिस ले कर कक्षा में आया। नोटिस को पढ़ कर मास्टर जी ने बच्चों से कहा कि जो फीस लाए हैं , वे ऑफिस जाकर जमा कर दें। मास्टर जी की बात सुन कर बहुत से बच्चे फीस जमा करने ऑफिस चले गए।लेखक कहते हैं कि जब सभी बच्चे फीस जमा करवाने ऑफिस जा रहे थे तब राजन ने जाते – जाते अप्पू के पैर में चुटकी काट ली। जैसे ही राजन ने अप्पू के पैर पर चुटकी काटी अप्पू ने अपना पैर खींच लिया। उसे याद आया कि उसे भी फीस जमा करनी है। आज ही उसके पिता जी ने उसे डेढ़ रुपया फीस जमा करने के लिए दिया था। फीस जमा कराने के लिए जैसे ही वह बेंच से निचे उतरा मास्टर जी ने उससे पूछा की वह किधर जाने के लिए उत्तर रहा है ? मास्टर जी के पूछने पर अप्पू बहुत खुश हो गया और खुश होते हुए मास्टर जी से कहने लगा कि उसे भी फीस देनी है। ( यहाँ अप्पू इसलिए खुश हो रहा था क्योंकि मास्टर जी ने उसे सजा के तौर पर बैंच पर खड़ा किया था और अप्पू को लगा कि फीस देने के बहाने वह सजा से बच जाएगा। ) अप्पू की बात सुन कर मास्टर जी अप्पू से बोले की वह फीस नहीं देगा। मास्टर जी की बात सुन कर अप्पू संकोच करता रहा। अर्थात वह वहीँ खड़ा रहा और उसे खड़ा देख कर मास्टर जी ने फिर से उसे बैंच पर खड़ा होने को कहा। अप्पू फिर से बैंच पर चढ़ गया और बेंच पर चढ़कर रोने लगा। उसे देख कर मास्टर जी ने उस से पूछा क्या वह भविष्य में कक्षा में ध्यान से पढ़ेगा ? मास्टर जी के प्रश्न पर अप्पू ने डरते हुए जवाब दिया कि वह आगे से कक्षा में हमेशा ध्यान देगा। फिर अप्पू भी फीस जमा कराने दफ़्तर चला गया। तभी स्कूल की घंटी बजी और घंटी बजने पर फीस जमा किए हुए सभी बच्चे ऑफिस से कक्षा की ओर चल पड़े। अप्पू भी उनके साथ वहाँ से कक्षा की चल पड़ा , मानो वह नींद से जागकर चल रहा हो। कहने का तात्पर्य यह है कि अप्पू का ध्यान कंचों के साथ खेलने में ही लगा हुआ था , जिस कारण उसे अपने आस – पास क्या हो रहा है इस बारे में कुछ भी पता नहीं चल रहा था। जब सभी अपनी कक्षा में पहुँच गए तो मास्टर जी ने उन से पूछा कि क्या सब फीस जमा कर चुके ? परन्तु अप्पू ने फीस जमा नहीं की थी पर वह नहीं उठा। उसका ध्यान अभी भी मास्टर जी की बातों में नहीं था। लेखक कहता है कि स्कूल से आते हुए शाम को थोड़ी देर तक अप्पू इधर – उधर टहलता रहा। स्कूल के मैदान में लड़के गीली मिट्टी में छोटे गड्डे खोदकर कंचे खेल रहे थे। परन्तु वह उनके पास खेलने नहीं गया। स्कूल के बड़े दरवाजे की लोहे की लंबी – मोटी छड़ को पकड़े हुए उसने सड़क की तरफ देखा। वहाँ उसे मोड़ पर वह दुकान दिख रही थी जहाँ पर उसने अलमारी में कांच के जार के अंदर कंचे रखे हुए थे। दूकान के पास पहुँच कर वह उसी अलमारी के सामने खड़ा हो गया जिसमें कंचों से भरा जार था। अप्पू को देख कर दुकानदार हँस पड़ा। दुकानदार के हँसने से उसे मालूम हुआ कि दुकानदार उसके इंतजार में है। क्योंकि स्कूल जाने से पहले भी वह वहीं उस अलमारी के पास खड़ा हुआ था। दुकानदार को हँसता हुआ देख कर वह भी हँस पड़ा। दुकानदार ने अप्पू से पूछा कि उसे कंचा चाहिए , है न ? अप्पू ने भी हाँ में सिर हिलाया। दुकानदार ने पूछा उसे कितने कंचे चाहिए ? अप्पू ने अपनी जेब में हाथ डाला और जो पैसे उसे फीस के लिए दिए गए थे उसी एक रुपया और पचास पैसे को उसने दुकानदार को निकालकर दिखाया। दुकानदार इतने पैसे देख कर सहसा घबरा गया और वह अप्पू से बोल पड़ा कि क्या उसे इन सभी पैसों के कंचे खरीदने हैं क्योंकि एक रुपया और पचास पैसा कंचे खरीदने के लिए बहुत अधिक था। जब अप्पू ने दुकानदार को नहीं बताया कि वह बहुत सारे कंचे क्यों खरीद रहा है तो दुकानदार उसके बिना बताए ही सब कुछ समझ गया था। क्योंकि वह भी किसी जमाने में बच्चा रहा था। उसने भी कई बार बहुत सारे कंचे एक साथ ख़रीदे थे , और दुकानदार को लगा था कि अप्पू और उसके साथी मिलकर कंचे खरीद रहे होंगे। दुकानदार ने एक कागज़ की छोटी थैली में अप्पू को उसके पैसों के बदले कंचे भर कर दे दिए। अप्पू कागज की छोटी थैली को अपनी छाती से सटा कर नीम के पेड़ों की छाँव में चलने लगा। जब अप्पू ने दुकानदार द्वारा दी गई कंचों से भरी छोटी थैली को हिलाकर देखा तो अचानक उसे कुछ संदेह हुआ कि क्या दूकान द्वारा दिए गए सब कंचों में लकीर होगी या नहीं ? अपने संदेह को दूर करने के लिए उसने उस कंचों से भरी थैली को खोलकर देखने का संकल्प किया। जैसे ही अप्पू ने उस कंचे की छोटी थैली को खोला उस थैली के सारे कंचे बिखर गए और अप्पू ने देखा कि वे सब सड़क के बीचों – बीच पहुँच रहे हैं। पल भर असमंजस में पड़ने के बाद वह उन्हें उठाने लगा। थोड़ी ही देर में अप्पू की छोटी सी हथेली कंचों से भर गई। अब उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसके द्वारा उठाए गए कंचे कहाँ रखे ? अप्पू को एक तरकीब सूजी , उसने स्लेट और किताब अपने बेग से बाहर रखने के बाद कंचे बेग में डालने लगा। वह साथ – ही – साथ कंचों को गिन भी रहा था। जब अप्पू कंचे उठा रहा था तो वह सड़क के बीचों बीच था जिस वजह से एक कार सड़क पर ब्रेक लगा रही थी। परन्तु अप्पू उस पर ध्यान नहीं दे रहा था वह उस वक्त भी कंचे उठाने में व्यस्त था। अप्पू को इस तरह देख कर कार के ड्राइवर को बहुत गुस्सा आ गया था , उससे ऐसी इच्छा हो रही थी कि वह उस लड़के को यानि अप्पू को मार ही डाले। जब ड्राइवर ने अप्पू को हटाने के लिए हॉर्न बजाया तो हॉर्न की आवाज सुन कर कंचे उठाते हुए अप्पू ने बीच में सिर उठाकर सामने देखा। अप्पू ने सोचा कि क्या ड्राइवर को भी कंचे अच्छे लग रहे हैं ? शायद इसीलिए वह भी उन कंचों को देखकर मजा ले रहा है। इस लिए अप्पू ने एक कंचा उठाकर उस ड्राइवर को दिखाया और हँसते हुए कहा कि वह कांचा बहुत अच्छा है न ! अप्पू की ऐसी मासूमियत को देखकर ड्राइवर का सारा गुस्सा धीरे – धीरे चला गया और वह भी हँस पड़ा। घर पहुँचते ही अप्पू ने बरामदे की बेंच पर स्लेट व किताबें फेंक दी और वह दौड़कर अपनी माँ के गले लग गया। आज अप्पू को स्कूल से लौटने में देर हो गई थी जिस कारण उसकी माँ घबराई हुई थी। अप्पू ने अपना स्कूल बेग जोर से हिलाकर अपनी माँ को दिखाया। माँ ने अप्पू को पुचकारते हुए कहा कि क्या वह उससे नहीं कहेगा ? अप्पू ने अपनी माँ से कहा कि वह उससे जरूर कहेगा। लेकिन पहले उसने अपनी माँ को आँखें बंद कर लेने को कहा। अप्पू की बात मानते हुए उसकी माँ ने आँखें बंद कर लीं। अब अप्पू ने गिना , वन , टू , थ्री .. और उसकी माँ ने आँखें खोलकर देखा। अप्पू के स्कूल बेग में कंचे – ही – कंचे थे। उन्हें देख कर वह कुछ और हैरान हुई। क्योंकि अप्पू के इस तरह व्यवहार से वह पहले ही हैरान हो गई थी। उन कंचों को देख कर उसने अप्पू से पूछा कि वह इतने सारे कंचे कहाँ से लाया है ? अप्पू ने भी जवाब दिया कि उसने सब के सब खरीदे हैं। उसकी माँ ने फिर पूछा कि उसके पास पैसे कहाँ से आए ? अप्पू ने भी मासूमियत के साथ अपने पिता जी की तसवीर की ओर इशारा करते हुए अपनी माँ से कहा कि दोपहर को ही तो उसे उसके पिता दिए थे। यह बात सुनकर अप्पू की माँ और ज्यादा हैरान हो गई क्योंकि उसे पता था कि अप्पू के पिता ने उसे पैसे फीस जमा करने के लिए दिए थे न की खर्च करने के लिए। फिर अप्पू की माँ ने उससे पूछा कि इतने सारे कंचे उसने किस लिए ख़रीदे हैं ? आखिर वह खेलेगा किसके साथ ? क्योंकि उस घर में सिर्फ वही एक बच्चा था। उसके बाद एक मुन्नी हुई तो थी। उसकी छोटी बहन। मगर … ( कहानी की शुरुआत में ही लेखक ने हमें बताया था कि किसी कारण वश अप्पू की छोटी बहन का देहांत हो गया था ) यही कारण था कि अप्पू कि माँ यह सोच कर परेशान हो रही थी कि अप्पू इतने सरे कंचों से किसके साथ खेलेगा। अपनी बेटी को याद करने अप्पू की माँ की पलकें भीग गईं। उसकी माँ रो रही थी। अप्पू अभी छोटा था उसे समझ नहीं आ सका था कि उसकी माँ क्यों रो रही थी। उसे संदेह हुआ कि क्या उसकी माँ उसके द्वारा कंचा खरीदने से रो रही है ? परन्तु फिर उसने सोचा कि ऐसा तो नहीं हो सकता। तो फिर उसकी माँ क्यों रो रही होगी ? उसे लग रहा था कि वे सब तो कंचे पसंद करते हैं। सिर्फ माँ को कंचे क्यों पसंद नहीं आए ? अब अप्पू को लगने लगा कि शायद कंचे अच्छे नहीं हैं। अपनी माँ को चुप कराने के लिए अप्पू ने कहा कि ये कंचे अच्छे नहीं हैं , हैं न ? अप्पू की माँ ने कहा कि नहीं , वे अच्छे हैं। अब अप्पू ने फिर से कहा कि देखने में ये कंचे बहुत अच्छे लगते हैं न ? अप्पू की माँ भी अप्पू की ख़ुशी में शामिल होते हुए उसकी बातों को दोहराने लगी थी और कंचों के देखते हुए कहती है कि बहुत अच्छे लगते हैं। अब अप्पू खुश हो गया और वह हँस पड़ा। उसकी माँ भी हँस पड़ी। आँसू से गीले माँ के गाल पर अप्पू ने अपना गाल सटा दिया। अब उसके दिल से खुशी छलक रही थी। कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चों की मासूमियत बड़ों का गुस्सा और दर्द सब दूर कर देती है। इस कहानी में भी यही सब देखने को मिलता है।
कंचा पाठ व्याख्या
पाठ – वह नीम के पेड़ों की घनी छाँव से होता हुआ सियार की कहानी का मज़ा लेता आ रहा था। हिलते – डुलते उसका बस्ता दोनों तरफ झूमता – खनकता था। स्लेट कभी छोटी शीशी से टकराती तो कभी पेंसिल से। यों वे सब उस बस्ते के अंदर टकरा रहे थे। मगर वह न कुछ सुन रहा था , न कुछ देख रहा था। उसका पूरा ध्यान कहानी पर केंद्रित था। कैसा मज़ेदार कहानी ! कौए और सियार की।
सियार कौए से बोला – ” प्यारे कौए , एक गाना गाओ न , तुम्हारा गाना सुनने के लिए तरस रहा हूँ। ”
कौए ने गाने के लिए मुँह खोला तो रोटी का टुकड़ा जमीन पर गिर पड़ा। सियार उसे उठाकर नौ दो ग्यारह हो गया।
वह शोर से हँसा। बुद्धू कौआ।
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखक एक बच्चे का जिक्र कर रहे हैं जो स्कूल जा रहा है और साथ – ही – साथ वह सियार की कहानी का मज़ा ले रहा है।
शब्दार्थ
बस्ता – बेग , पुस्तकें रखने का थैला
खनकना – धातुओं या बरतनों के आपस में टकराने से होने वाली ध्वनि
स्लेट – एक भूगर्भीय शैल या चट्टान , पत्थर या लकड़ी का तराशा हुआ चौड़ा टुकड़ा
यों – इस प्रकार से , साधारण रूप में
नौ दो ग्यारह होना ( मुहावरे का अर्थ ) – भाग जाना
बुद्धू – मूर्ख , गँवार , निर्बुद्धि
व्याख्या – लेखक कहते हैं कि वह लड़का नीम के पेड़ों की घनी छाँव से होता हुआ घर से स्कूल जा रहा था और साथ – ही – साथ सियार की कहानी का मज़ा भी ले रहा था। जब वह चलते हुए हिलता – डुलता था तो उसका बेग दोनों तरफ झूमता था और बेग में रखी पुस्तकें और दूसरा सामान आपस में टकराते थे जिससे आवाजे हो रही थी। कभी बेग में रखा हुआ उसका लकड़ी का तराशा हुआ चौड़ा टुकड़ा स्याही की छोटी शीशी से टकराता था , तो कभी पेंसिल से। इस प्रकार से वे सब उस बेग के अंदर टकरा रहे थे। परन्तु इतनी आवाजे होने पर भी वह लड़का न कुछ सुन रहा था , न कुछ देख रहा था। क्योंकि उसका पूरा ध्यान तो कहानी पर ही लगा हुआ था। उसे वह कहानी बहुत ही मज़ेदार लग रही थी। वह कहानी थी – कौए और सियार की। उस कहानी में सियार कौए से बोला कि प्यारे कौए , एक गाना गाओ न , उसका गाना सुनने के लिए वह तरस रहा है। कौए ने गाने के लिए जैसे ही अपना मुँह खोला तो जो रोटी का टुकड़ा उसके मुँह में था वह रोटी का टुकड़ा जमीन पर गिर पड़ा। सियार उसे उठाकर वहाँ से भाग गया। और वह शोर से हँस पड़ा और बोला मुर्ख कौआ।
पाठ – वह चलते – चलते दुकान के सामने पहुँचा। वहाँ अलमारी में काँच के बड़े – बड़े जार कतार में रखे थे। उनमें चॉकलेट , पिपरमेंट और बिस्कुट थे। उसकी नजर उनमें से किसी पर नहीं पड़ी। क्यों देखे ? उसके पिता जी उसे ये चीजें बराबर ला देते हैं।
फिर भी एक नए जार ने उसका ध्यान आकृष्ट किया। वह कंधे से लटकते बस्ते का फीता एक तरफ हटाकर , उस जार के सामने खड़ा टुकर – टुकर ताकता रहा। नया – नया लाकर रखा गया है। उससे पहले उसने वह चीज यहाँ नहीं देखी है। पूरे जार में कंचे हैं। हरी लकीर वाले बढ़िया सफ़ेद गोल कंचे। बड़े आँवले जैसे। कितने खूबसूरत हैं ! अब तक ये कहाँ थे ? शायद दुकान के अंदर। अब दुकानदार ने दिखाने के लिए बाहर रखा होगा। उसके देखते – देखते जार बड़ा होने लगा। वह आसमान – सा बड़ा हो गया तो वह भी उसके भीतर आ गया। वहाँ और कोई लड़का तो नहीं था। फिर भी उसे वही पसंद था। छोटी बहन के हमेशा के लिए चले जाने के बाद वह अकेले ही खेलता था।
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखक लड़के के कंचों के प्रति उसके प्यार और लड़के की अद्भुत कल्पना का वर्णन कर रहा है।
शब्दार्थ
क़तार – पंक्ति , क्रम , सिलसिला
आकृष्ट – खिंचा हुआ , आकर्षित , सम्मोहित हुआ
टुकर – टुकर – एकटक , नज़रें गड़ाकर अथवा टकटकी लगाकर ललचाई हुई दृष्टि से या मज़बूरी के साथ देखना
व्याख्या – लेखक कहता है कि सियार और कौए की कहानी का मजा लेते हुए वह लड़का चलते – चलते एक दुकान के सामने पहुँचा गया। वहाँ उस दूकान में अलमारी में काँच के बड़े – बड़े जार पंक्ति में रखे थे। उनमें चॉकलेट , पिपरमेंट और बिस्कुट रखे गए थे। उस लड़के की नजर उनमें से किसी पर नहीं पड़ी। क्योंकि उसे उन चीजों का कोई लालच नहीं था , उसके पिता जी उसे ये सारी चीजें समय – समय पर ला देते थे। फिर भी वहाँ पर रखे गए एक नए जार ने उसका ध्यान अपनी ओर खिंचा। उस लड़के ने कंधे से लटकते हुए अपने बेग का फीता एक तरफ हटाया और उस जार के सामने खड़ा होकर उसे टकटकी लगाकर ललचाई हुई दृष्टि से देखने लगा। वह जार नया – नया लाकर वहाँ पर रखा गया था। उससे पहले उस लड़के ने वह चीज जो जार में थी उस दूकान पर नहीं देखी थी। उस पूरे जार में कंचे थे। उस जार के कंचे हरी लकीर वाले बढ़िया सफ़ेद गोल थे। उनका आकार किसी बड़े आँवले जैसा था। उन कंचों को देख कर वह लड़का सोचने लगा की वे कंचे कितने खूबसूरत हैं और अब तक ये कहाँ थे ? अपने सवालों का जवाब भी वह खुद से ही देता है कि शायद आज तक ये कंचे दुकान के अंदर ही कहीं रखे गए होंगे। अब दुकानदार ने दिखाने के लिए इन्हे बाहर रखा होगा। आप लड़का उन कंचों को देखे जा रहा था और उसके देखते – देखते ही वह अपनी कल्पना में चला जाता है और उसे वह जार अपने आप ही बड़ा होता दिखाई देता है। उसकी कल्पना में ही जब वह जार आसमान के बराबर बड़ा हो गया तो वह लड़का भी उस जार के अंदर आ गया। वहाँ पर उसके अलावा और कोई लड़का नहीं था। फिर भी उसे वही कंचे खेलना पसंद था। लेखक यहाँ बताते हैं कि उसकी एक छोटी बहन भी थी , परन्तु उसकी छोटी बहन की किसी कारण वश मृत्यु हो गई थी जिस वजह से वह हमेशा अकेले ही खेला करता था।
पाठ – वह कंचे चारों तरफ बिखेरता मजे में खेलता रहा।
तभी एक आवाज आई।
” लड़के , तू उस जार को नीचे गिरा देगा। ”
वह चौंक उठा।
जार अब छोटा बनता जा रहा था। छोटे जार में हरी लकीर वाले सफ़ेद गोल कंचे। छोटे आँवले जैसे।
सिर्फ दो जने वहाँ हैं। वह और बूढ़ा दुकानदार। दुकानदार के चेहरे पर कुछ चिड़चिड़ाहट थी।
” मैंने कहा न ! जो चाहते हो वह मैं निकालकर दूँ। ”
वह उदास हो अलग खड़ा रहा।
” क्या कंचा चाहिए ? ”
दुकानदार ने जार का ढक्कन खोलना शुरू किया। उसने निषेध् में सिर हिलाया।
” तो फिर ? ”
सवाल खूब रहा। क्या उसे कंचा चाहिए ? क्या चाहिए ? उसे खुद मालूम नहीं है। जो भी हो , उसने कंचे को छूकर देखा। जार को छूने पर कंचे का स्पर्श करने का अहसास हुआ। अगर वह चाहता तो कंचा ले सकता था।
लिया होता तो ?
स्कूल की घंटी सुनकर वह बस्ता थामे हुए दौड़ पड़ा।
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखक ने उस लड़के के उसकी कल्पना में कंचों से खेलने और दुकानदार की आवाज पर अपनी कल्पना से बाहर आने का वर्णन किया गया है।
शब्दार्थ
चौंक – चौंकने की क्रिया
जन – लोग , आदमी
निषेध – मना करना , रोक , बाधा
स्पर्श – छूना , संपर्क ज्ञान
व्याख्या – लेखक बताता है कि वह लड़का उसकी कल्पना में कंचे के जार के अंदर कंचों के बीच पहुँच गया था। उस जार के अंदर वह कंचे चारों तरफ बिखेरता हुआ मजे में खेल रहा था। तभी उसे एक आवाज सुनाई दी जो उससे कह रही थी कि लड़के , तू उस जार को नीचे गिरा देगा। उस आवाज को सुन कर वह चौंक गया। उसी आवाज के कारण अब वह लड़का अपनी कल्पना से बाहर आ रहा था और जार अब छोटा बनता जा रहा था। छोटे जार में हरी लकीर वाले सफ़ेद गोल कंचे भी अब छोटे आँवले जैसे हो गए थे और अब वह लड़का भी जार से बाहर दूकान के सामने उस जार को देखे जा रहा था। उस लड़के ने देखा कि वहाँ पर सिर्फ दो ही लोग थे। वह और एक बूढ़ा दुकानदार। उस दुकानदार के चेहरे पर लड़के ने कुछ चिड़चिड़ाहट देखी। क्योंकि वह लड़का उसके कंचे के जार को गिराने ही वाला था क्योंकि वह लड़का अपनी कल्पना में कंचों के साथ खेल रहा था तो हकीकत में भी उसने जार को पकड़ रखा था। जिस कारण वह बूढ़ा दुकानदार चीड़ गया था। उस दुकानदार ने उस लड़के से कहा कि वह जो भी चाहता है क्या वह उसे उस चीज़ को निकालकर दे सकता है। वह लड़का उदास हो कर जार से अलग खड़ा रहा। वह कुछ न बोला। उसे चुप देख कर दुकानदार ने उस से कहा कि क्या उसे कंचा चाहिए ? यह कह कर दुकानदार ने जार का ढक्कन खोलना शुरू किया। परन्तु लड़के ने उस दुकानदार को मना करते हुए अपना सिर हिलाया। लड़को को मना करते हुए देख कर दुकानदार ने फिर लड़के से पूछा कि अगर उसे कंचे नहीं चाहिए तो फिर उसे क्या चाहिए ? दुकानदार के सवाल बहुत सही थे। कि क्या उसे कंचा चाहिए ? कंचा नहीं चाहिए तो और क्या चाहिए ? उस लड़के को खुद भी मालूम नहीं था कि उसे क्या चाहिए। लेखक कहते हैं कि जो भी हो चाहे उसे मालुम नहीं था कि उसे क्या चाहिए फिर भी उसने कंचे को छूकर देखा था। असल में नहीं अपनी कल्पना में , परन्तु असल में जार को छूने पर कंचे को छू लेने का अहसास उसे हुआ था। लेखक बताते हैं कि अगर वह चाहता तो वह कंचा ले सकता था। परन्तु उसने नहीं लिया। लेखक यहाँ यह भी कहते हैं कि अगर उसने कंचा ले भी लिया होता तो क्या हो जाता ? ( इस प्रश्न का जवाब आगे कहानी में मिलेगा , यहाँ लेखक ने हमें प्रश्न के साथ ही छोड़ दिया है ) उस लड़के के मन में काई तरह के सवाल उठ रहे थे , तभी उसे उसके स्कूल की घंटी सुनाई पड़ी , स्कूल की घंटी सुनकर वह अपना बेग थामे हुए दूकान पर से स्कूल की ओर दौड़ पड़ा।
पाठ – देर से पहुँचने वाले लड़कों को पीछे बैठना पड़ता है। उस दिन वही सबके बाद पहुँचा था। इसलिए वह चुपचाप पीछे की बेंच पर बैठ गया।
सब अपनी – अपनी जगह पर हैं। रामन अगली बेंच पर है। वह रोज समय पर आता है। तीसरी बेंच के आखिर में मल्लिका के बाद अम्मु बैठी है।
जॉर्ज दिखाई नहीं पड़ता।
लड़कों के बीच जॉर्ज ही सबसे अच्छा कंचे का खिलाड़ी है। कितना भी बड़ा लड़का उसके साथ खेले , जॉर्ज से मात खाएगा। हारने पर यों ही विदा नहीं हो सकता। हारे हुए को अपनी बंद मुट्ठी जमीन पर रखनी होगी। तब जॉर्ज कंचा चलाकर बंद मुट्ठी के जोड़ों की हड्डी तोड़ेगा।
जॉर्ज क्यों नहीं आया?
अरे हाँ ! जॉर्ज को बुखार है न ! उसे रामन ने यह सूचना दी थी। उसने मल्लिका को सब बताया था। जॉर्ज का घर रामन के घर के रास्ते में पड़ता है। अप्पू कक्षा की तरफ ध्यान नहीं दे रहा है।
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखक जॉर्ज नामक लड़के के बारे में वर्णन कर रहा है कि जॉर्ज कंचे खेलने में उस्ताद है। कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता।
शब्दार्थ
मात – मरा हुआ , हारा हुआ , पराजित , शतरंज के खेल में बादशाह को मिलनेवाली शह , पराजय
यों ही – ऐसे ही
विदा – प्रस्थान , रवाना होना
व्याख्या – लेखक कहता है कि वह लड़का अपने स्कूल की घंटी सुन कर इसलिए दौड़ पड़ा था क्योंकि कक्षा में देर से पहुँचने वाले लड़कों को कक्षा में सबसे पीछे बैठना पड़ता था। उस दिन वही सबके बाद पहुँचा था। इसलिए वह चुपचाप कक्षा में पीछे की बेंच पर बैठ गया था। कक्षा में सब अपनी – अपनी जगह पर बैठे हुए थे। रामन सबसे अगली बेंच पर बैठा हुआ था। क्योंकि वह रोज समय पर आता था इसलिए वही हमेशा सबसे आगे बैठता था। तीसरी बेंच के आखिर में मल्लिका के बाद अम्मु बैठी हुई थी। उस लड़के को जॉर्ज कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। लेखक बताता है कि सभी लड़कों के बीच जॉर्ज ही सबसे अच्छा कंचे का खिलाड़ी था। कितना भी बड़ा लड़का उसके साथ में कंचे क्यों न खेले , वह अवश्य ही जॉर्ज से हार जाता था। लेखक यहाँ पर हारने वाले को मिलने वाली सजा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जॉर्ज उससे हारने वाले को ऐसे ही नहीं जाने देता था। हारे हुए खिलाड़ी को अपनी बंद मुट्ठी जमीन पर रखनी पड़ती थी। तब जॉर्ज कंचे से बंद मुट्ठी के जोड़ों की हड्डी पर वार करता था। वह लड़का सोचने लगा कि आज जॉर्ज स्कूल क्यों नहीं आया है ? फिर उसे याद आता है कि जॉर्ज को तो बुखार है। उसे उसकी कक्षा में ही पढ़ने वाले रामन ने यह सूचना दी थी। उसने यह बात मल्लिका को भी बताई थी। जॉर्ज का घर रामन के घर के रास्ते में पड़ता था। तभी रामन को पता था। अब लेखक उस लड़के का नाम बताते है कि उसका नाम अप्पू है और वह कक्षा की तरफ ध्यान नहीं दे रहा था। क्योंकि उसका सारा ध्यान कंचों और जॉर्ज की और था।
पाठ – मास्टर जी !
उसने हड़बड़ी में पुस्तक खोलकर सामने रख ली। रेलगाड़ी का सबक था। रेलगाड़ी … रेलगाड़ी। पृष्ठ सैंतीस। घर पर उसने यह पाठ पढ़ लिया है। मास्टर जी बीच – बीच में बेंत से मेज ठोकते हुए ऊँची आवाज में कह रहे थे – बच्चों ! तुममें से कई ने रेलगाड़ी देखी होगी। उसे भाप की गाड़ी भी कहते हैं क्योंकि उसका यंत्र भाप की शक्ति से ही चलता है। भाप का मतलब पानी से निकलती भाप से है। तुम लोगों के घरों के चूल्हे में भी …। ”
अप्पू ने भी सोचा – रेलगाड़ी ! उसने रेलगाड़ी देखी है। छुक – छुक … यही रेलगाड़ी है। वह भाप की भी गाड़ी का मतलब …।
मास्टर जी की आवाज अब कम ऊँची थी। वे रेलगाड़ी के हर एक हिस्से के बारे में समझा रहे थे।
” पानी रखने के लिए खास जगह है। इसे अंग्रेजी में बॉयलर कहते हैं। यह लोहे का बड़ा पीपा है। ”
लोहे का एक बड़ा काँच का जार। उसमें हरी लकीर वाले सफेद गोल कंचे। बड़े आँवले जैसे। जॉर्ज जब अच्छा होकर आ जाएगा , तब उससे कहेगा। उस समय जॉर्ज कितना खुश होगा ! सिर्फ वे दोनों खेलेंगे। और किसी को साथ खेलने नहीं देंगे।
उसके चेहरे पर चॉक का टुकड़ा आ गिरा। अनुभव के कारण वह उठकर खड़ा हो गया। मास्टर जी गुस्से में हैं।
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखक अप्पू के बारे में बता रहे हैं कि अप्पू का ध्यान कक्षा में बिलकुल भी नहीं है , वह जॉर्ज के साथ कंचे खेलने के बारे में ही सोच रहा है। अप्पू को इस तरह देख कर मास्टर जी को गुस्सा आ जाता है और वे अप्पू को चॉक से मारते हैं।
शब्दार्थ
हड़बड़ी – जल्द , शीघ्रता , उतावलापन , जल्दबाज़ी , उतावली , आतुरता
सबक़ – पाठ , शिक्षा , नसीहत
पृष्ठ – पन्ना
सैंतीस – तीस और सात , ‘ 37 ’
बेंत – मज़बूत और लचीले डंठलवाली लता , बेंत की छड़ी
पीपा – काठ , लोहे का ढोल के आकार का बना हुआ बड़ा पात्र
अनुभव – प्रत्यक्षज्ञान , काम की जानकारी , तजुर्बा
व्याख्या – लेखक बताते हैं कि जिस समय अप्पू जॉर्ज और कंचों के बारे में सोच रहा था उसी समय मास्टर जी कक्षा में आ गए और मास्टर जी को देख कर अप्पू ने जल्दबाज़ी में अपनी पुस्तक खोलकर अपने सामने रख ली। उन दौरान मास्टर जी कक्षा को रेलगाड़ी का पाठ पढ़ा रहे थे। मास्टर जी बच्चो को रेलगाड़ी के बारे में पढ़ाने के लिए सभी को उनकी पुस्तक का सैंतीस (37) पृष्ट खोलने को कहते हैं। लेखक बताते हैं कि अप्पू ने घर पर पहले ही यह रेलगाड़ी वाला पाठ पढ़ लिया था। जब मास्टर जी बच्चों को पढ़ा रहे थे तो वे बीच – बीच में बेंत की छड़ी से मेज को ठोकते थे और ऊँची आवाज में बच्चों से कह रहे थे कि उन में से कई ने रेलगाड़ी देखी होगी। उसे भाप की गाड़ी भी कहा जाता हैं क्योंकि उसका यंत्र भाप की शक्ति से ही चलता है। फिर भाप के बारे में समझते हुए मास्टर जी कहते हैं कि भाप का मतलब पानी से निकलती भाप से है। उन लोगों के घरों के चूल्हे में भी …। अप्पू ने मास्टर जी की केवल इतनी ही बातें सुनी और अब वह अपनी ही सोच में डूब गया। वह सोचने लगा कि रेलगाड़ी को तो उसने भी देखा है। जो छुक – छुक करती है वही रेलगाड़ी है। अप्पू ने मास्टर जी की पूरी बात पर गौर नहीं किया था जिस कारण उसे वह समझ नहीं आ रहा था कि मास्टर जी ने रेलगाड़ी को वह भाप की भी गाड़ी क्यों कहा ? अब मास्टर जी की आवाज भी कुछ कम ऊँची थी। क्योंकि वे अब रेलगाड़ी के हर एक हिस्से के बारे में बच्चों को समझा रहे थे। मास्टर जी बच्चों को समझाते हुए कह रहे थे कि रेलगाड़ी में पानी रखने के लिए खास जगह होती है। इसे अंग्रेजी में बॉयलर कहते हैं। यह लोहे का ढोल के आकार का बना हुआ बड़ा पात्र होता है। अप्पू लोहा सुनते ही फिर अपने ख्यालों में खो गया। वह सोचने लगा कि लोहे का एक बड़ा काँच का जार। उसमें हरी लकीर वाले सफेद गोल कंचे वो भी बड़े आँवले जैसे।जॉर्ज जब अच्छा होकर स्कूल आ जाएगा , तब वह उससे यह सब कहेगा। उस समय जॉर्ज कितना खुश हो जाएगा। सिर्फ वे दोनों खेलेंगे। और किसी को साथ में खेलने नहीं देंगे। अप्पू इसी तरह अपनी सोच में डूबा हुआ था कि तभी उसके चेहरे पर चॉक का टुकड़ा आ गिरा। तजुर्बा होने के कारण वह उठकर खड़ा हो गया। कहने का तात्पर्य यह है कि अप्पू अक्सर हमेशा ही कक्षा में अपने ही खयालो में डूबा रहता था जिस कारण मास्टर जी लगभग हमेशा ही अप्पू को चॉक से मार कर उसकी सोच की दुनिया से उसे बाहर निकालते थे। आज भी जब मास्टर जी ने देखा की आज फिर अप्पू कहीं खोया हुआ है , उसका ध्यान कक्षा में नहीं है तो उन्होंने अप्पू को चॉक से मारा। जब अप्पू खड़ा हुआ तो उसने देखा कि मास्टर जी बहुत गुस्से में थे।
पाठ – ” अरे , तू उधर क्या कर रहा है ? ”
उसका दम घुट रहा था।
” बोल। ”
वह खामोश खड़ा रहा।
” क्या नहीं बोलेगा ? ”
वे अप्पू के पास पहुँचे।
सारी कक्षा साँस रोके हुए उसी तरफ देख रही है।
उसकी घबराहट बढ़ गई।
” मैं अभी किसके बारे में बता रहा था ? ”
कर्मठ मास्टर जी उस लड़के का चेहरा देखकर समझ गए कि उसके मन में और कुछ है। शायद उसने पाठ पर ध्यान दिया भी हो। अगर दिया है तो उसका जवाब उसके मन से बाहर ले आना है। इसी में उनकी सफलता है।
” हाँ , हाँ , बता। डरना मत। ”
मास्टर जी ने देखा , अप्पू की जबान पर जवाब था।
” हाँ , हाँ …। ”
वह काँपते हुए बोला – ” कंचा। ”
” कंचा … ! ”
वे सकपका गए।
कक्षा में भूचाल आ गया।
” स्टैंड अप ! ”
मास्टर साहब की आँखों में चिनगारियाँ सुलग रही थीं।
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखक उस समय का वर्णन कर रहे हैं जब अप्पू के द्वारा कक्षा में ध्यान न देने के कारण मास्टर जी के पूछने पर कि वे क्या पढ़ा रहे थे वह गलत जवाब दे देता है।
शब्दार्थ
ख़ामोश – चुप , मौन ,शांत
कर्मठ – काम में कुशल , अच्छी तरह काम करने वाला
सकपकाना – चकित होना , असमंजस में पड़ना , दुविधाग्रस्त होना , घबराना , सकुचाना
आँखों में चिंगारियां सुलगना – (मुहावरे का अर्थ ) – बहुत गुस्सा आना
व्याख्या – अप्पू के द्वारा कक्षा में ध्यान न देने के कारण जब मास्टर जी गुस्से में अप्पू को चॉक से मारते हैं तो वे गुस्से में अप्पू से पूछते हैं कि वह कक्षा में क्या कर रहा है ? मास्टर जी का सवाल पूछने पर अप्पू का डर के मारे दम घुट रहा था। लेकिन वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। मास्टर जी के जोर देने पर भी वह चुप – चाप खड़ा रहा। अप्पू के इस तरह मास्टर जी के बार – बार बोलने पर भी कुछ न बोलने से मास्टर जी और ज्यादा गुस्सा हो कर अप्पू के पास पहुँच गए। लेखक बताते हैं कि जब मास्टर जी गुस्से से अप्पू के पास गए तो पूरी कक्षा के बच्चे साँस रोक कर अर्थात डर कर उन्ही की और देख रहे थे। जब मास्टर जी गुस्से से अप्पू के पास पहुँच गए तो उस की घबराहट बढ़ गई। मास्टर जी ने अप्पू से पूछा कि वे कक्षा में अभी किसके बारे में बता रहे थे ? मास्टर जी अपने काम में कुशल थे अर्थात एक अच्छे अध्यापक को यह अच्छे से पता रहता है कि उसकी कक्षा में किस छात्र का ध्यान कहाँ है। इसी कारण मास्टर जी को अप्पू का चेहरा देखकर ही समझ आ गया था कि उसके मन में कुछ और ही चल रहा है। परन्तु कहीं न कहीं मास्टर जी को लग रहा था कि शायद अप्पू ने उनके द्वारा पढ़ाए गए पाठ पर ध्यान दिया भी हो। और अगर अप्पू ने पाठ पर ध्यान दिया है तो उन्हें उसका जवाब उसके मन से बाहर ले आना है। इसी में उनकी सफलता है। कहने का तात्पर्य यह है कि एक अध्यापक तभी अपने आप को सफल कह सकता है जब उसके द्वारा पढ़ाए जा रहे पाठ या सीख को उसके बच्चे बिना डरे सबके सामने खुल कर कहने से न झिझकें। इसी वजह से मास्टर जी अप्पू पर दबाव डालते हुए कहते हैं कि वह बिना डरे उनके प्रश्न का उत्तर दे सकता है। मास्टर जी को अप्पू की जबान पर उनके प्रश्न का जवाब दिखाई दे रहा था। अर्थात मास्टर जी को कहीं न कहीं लगता था कि अप्पू उनके द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर जानता है। इसलिए वे बार – बार अप्पू पर दवाब डाल रहे थे। अप्पू ने भी डर के साथ काँपते हुए जवाब दिया कि मास्टर जी कंचे के बारे में पढ़ा रहे थे। अप्पू की बात सुन कर मास्टर जी चौंक गए और दुविधा में पद गए। ऐसा लग रहा था जैसे अप्पू का जवाब सुन कर कक्षा में भूचाल आ गया था। मास्टर साहब को बहुत अधिक गुस्सा आ गया था इसलिए उन्होंने अप्पू को बैंच पर खड़े होने की सजा सुना दी।
पाठ – अप्पू रोता हुआ बेंच पर चढ़ा।
पड़ोसी कक्षा की टीचर ने दरवाजे से झाँककर देखा।
फिर सम्मिलित हँसी।
रोकने की पूरी कोशिश करने पर भी वह अपना दुख रोक नहीं सका।
सुबकता रहा।
रोते – रोते उसका दुख बढ़ता ही गया। सब उसकी तरफ देख – देखकर उसकी हँसी उड़ा रहे हैं। रामन , मल्लिका … सब।
बेंच पर खड़े – खड़े उसने सोचा , दिखा दूँगा सबको। जॉर्ज को आने दो। जॉर्ज जब आए … जॉर्ज के आने पर वह कंचे खरीदेगा। इनमें से किसी को वह खेलने नहीं बुलाएगा। कंचे को देख ये ललचाएँगे। इतना खूबसूरत कंचा है।
हरी लकीर वाले सफ़ेद गोल कंचे। बड़े आँवले जैसे।
तब…
शक हुआ। कंचा मिले कैसे ? क्या माँगने पर दुकानदार देगा ? जॉर्ज को साथ लेकर पूछें तो , नहीं दे तो ?
” किसी को शक हो तो पूछ लो। ”
मास्टर जी ने उस घंटे का सबक समाप्त किया।
” क्या किसी को कोई शक नहीं ? ”
अप्पू की शंका अभी दूर नहीं हुई थी। वह सोच रहा था – क्या जॉर्ज को साथ ले चलने पर दुकानदार कंचा नहीं देगा ? अगर खरीदना ही पड़े तो कितने पैसे लगेंगे ?
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखक वर्णन कर रहे हैं कि मास्टर जी के द्वारा सजा देने पर अप्पू बहुत दुखी हो गया था लेकिन अब भी उसका मन कंचों और जॉर्ज पर से नहीं हट पा रहा था।
शब्दार्थ
सम्मिलित – मिलाया हुआ , सामूहिक
सुबकना – हिचकियाँ लेते हुए रोना
शंका – आशंका , भय , संशय
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब मास्टर जी ने अप्पू को सजा के तौर पर बैंच पर खड़ा होने को कहा तो अप्पू रोता हुआ बेंच पर चढ़ गया। दूसरी कक्षा के अध्यापक ने यह सब दरवाजे से झाँककर देखा। फिर सभी सामूहिक अर्थात मिल कर अप्पू पर हँसने लगे। अप्पू अपने दुःख को रोकने की पूरी कोशिश करने लगा परन्तु वह अपना दुख रोक नहीं पाया। वह चुप – चाप हिचकियाँ लेते हुए रोने लगा। रोते – रोते उसका दुख बढ़ता ही जा रहा था। कक्षा के सभी बच्चे उसकी तरफ देख – देखकर उसकी हँसी उड़ा रहे हैं। बेंच पर खड़े – खड़े अप्पू ने सोचा कि वह सब को दिखा देगा अर्थात वह सब बच्चों से उस पर हँसने का बदला लेगा। वह सोच रहा था कि एक बार बस जॉर्ज को आने दो। जॉर्ज जब आएगा तो वह जॉर्ज के आने पर कंचे खरीदेगा। और वह कक्षा में मौजूद किसी भी बच्चे को अपने साथ कंचे खेलने नहीं बुलाएगा। ये सब बच्चे उसके कंचे को देख कर ललचाएँगे और देखेंगे कि उसके कंचे कितने खूबसूरत होंगे। हरी लकीर वाले सफ़ेद गोल कंचे , वो भी बड़े आँवले जैसे बड़े – बड़े। इतना सोचने के बाद अब अप्पू को कुछ शक हुआ। उसके मन में तरह – तरह के प्रश्न उठने लगे जैसे कि उसे कंचा मिलेगा कैसे ? अगर वह दुकानदार से माँगेगा तो क्या दुकानदार उसे कंचे दे देगा ? अगर वह जॉर्ज को साथ लेकर पूछें तो क्या दुकानदार उसे कंचे देगा , अगर दुकानदार ने उसे कंचे नहीं दिए तो ? इस तरह जब अप्पू अपने ख्यालों में डूबा हुआ था तो उसी समय मास्टर जी की आवाज उसके कानो पर पड़ी , मास्टर जी बच्चो से कह रहे थे कि किसी को आज के पढ़ाए गए पाठ में कुछ शक हो तो वह पूछ सकता है। मास्टर जी ने आज के पाठ को पढ़ा कर समाप्त कर लिया था। जब किसी ने कोई प्रश्न नहीं पूछा तो मास्टर जी ने हैरानी के साथ पूछा कि क्या किसी को कोई संदेह नहीं है ? जहाँ एक और मास्टर जी बच्चों से आज के पाठ के बारे में पूछ रहे थे वहीँ अप्पू अभी भी अपनी सोच में खोया हुआ था और उसकी आशंका अभी दूर नहीं हुई थी। वह सोच रहा था कि क्या जॉर्ज को साथ ले चलने पर दुकानदार कंचा नहीं देगा ? अगर उसे कंचे खरीदने ही पड़े तो कितने पैसे लगेंगे ? कहने का तात्पर्य यह है कि अप्पू को सजा मिलने के बाद भी वह कंचों से अपने मन को नहीं हटा पा रहा था। वह कंचों से खेलने के सपने देख रहा था।
पाठ – रामन ने मास्टर जी से सवाल किया और उसे सवाल का जवाब मिला।
अम्मिणि ने शंका का समाधन कराया।
कई छात्रों ने यह दुहराया।
” अप्पू , क्या सोच रहे हो ? ”
मास्टर जी ने पूछा।
” हूँ , पूछ लो न ? शंका क्या है ? ”
शंका जरूर है।
क्या जॉर्ज को साथ ले चलने पर दुकानदार कंचे देगा ? नहीं तो कितने पैसे लगेंगे ? क्या पाँच पैसे में मिलेगा , दस पैसे में ?
” क्या सोच रहे हो ? ”
” पैसे ? ”
” क्या ? ”
” कितने पैसे चाहिए ! ”
” किसके लिए ? ”
वह कुछ नहीं बोला।
हरी लकीर वाले सफेद गोल कंचे उसके सामने से फिसलते गए।
मास्टर जी ने पूछा।
” क्या रेलगाड़ी के लिए ? ”
उसने सिर हिलाया।
” बेवकूफ ! रेलगाड़ी को पैसे से खरीद नहीं सकते। अगर मिले तो उसे लेकर क्या करेगा ? ”
वह खेलेगा। जॉर्ज के साथ खेलेगा।
रेलगाड़ी नहीं , कंचा।
चपरासी एक नोटिस लाया।
मास्टर जी ने कहा , ” जो फीस लाए हैं , वे ऑफिस जाकर जमा कर दें। ”
बहुत से छात्र गए।
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखक उस दृश्य का वर्णन कर रहे हैं जहाँ कक्षा के सभी बच्चे पाठ के सम्बन्ध के अपनी परेशानियों के बारे में मास्टर जी को बता रहे थे और मास्टर जी उनकी परेशानियों के हल बता रहे थे। किन्तु यहाँ पर भी अप्पू अपने ही ख्यालों में होने के कारण फिर से मास्टर जी से डाँट खाता है।
शब्दार्थ
बेवकूफ – नासमझ , निर्बुद्धि
व्याख्या – लेखक कहता है कि रामन ने मास्टर जी से पाठ से सम्बंधित अपना सवाल किया और उसे उसके सवाल का जवाब मिला। अम्मिणि ने भी अपनी परेशानी समाधन कराया। कहने का तात्पर्य यह है कि कई छात्रों ने इसी तरह अपने प्रश्नो को मास्टर जी से पूछा और उन्हें उनके सभी प्रश्नों के उत्तर मास्टर जी ने दिए। अप्पू को अब भी कुछ सोच में डूबा हुआ देख कर मास्टर जी ने उससे पूछा कि वह क्या सोच रहा है ? अप्पू को फिर भी चुप देख कर मास्टर जी ने उससे कहा कि अगर उसे भी कोई प्रश्न पूछना है तो वह पूछ सकता है। अप्पू के मन में प्रश्न तो जरूर था। लेकिन पाठ के सम्बन्ध में नहीं बल्कि वह सोच रहा था कि क्या जॉर्ज को साथ ले चलने पर दुकानदार उसे बिना पैसे के ही कंचे देगा ? अगर बिना पैसे के नहीं देगा , तो कितने पैसे लगेंगे ? क्या पाँच पैसे में कांचा मिलेगा , या दस पैसे में ? अप्पू को अब भी सोच में डूबा हुआ देख कर मास्टर जी ने अप्पू से फिर से पूछ कि वह क्या सोच रहा है ? अप्पू ने अब जवाब दे दिया कि वह पैसे के बारे में सोच रहा है। मास्टर जी अप्पू का जवाब सुन कर हैरान हो गए और उन्होंने अप्पू से पूछा कि उसे कितने पैसे चाहिए और किस चीज के लिए चाहिए ? अब अप्पू फिर से चुप हो गया और वह कुछ नहीं बोला। उसकी सोच में वे हरी लकीर वाले सफेद गोल कंचे उसके सामने से फिसलते जा रहे थे। मास्टर जी ने फिर से उससे पूछा कि क्या उसे पैसे रेलगाड़ी के लिए चाहिए ? अप्पू ने सिर हिलाया। मास्टर जी अप्पू पर गुस्सा हो गए और बोले नासमझ रेलगाड़ी को पैसे से खरीद नहीं सकते। अगर मिले भी तो उसे लेकर वह क्या करेगा ? अप्पू मास्टर जी की बात सुन कर मन ही मन में कहने लगा कि वह खेलेगा। जॉर्ज के साथ खेलेगा। लेकिन रेलगाड़ी नहीं , वह कंचा खेलेगा। इसी बीच चपरासी एक नोटिस ले कर कक्षा में आया। नोटिस को पढ़ कर मास्टर जी ने बच्चों से कहा कि जो फीस लाए हैं , वे ऑफिस जाकर जमा कर दें। मास्टर जी की बात सुन कर बहुत से बच्चे फीस जमा करने ऑफिस चले गए।
पाठ – राजन ने जाते – जाते अप्पू के पैर में चिकोटी काट ली।
उसने पैर खींच लिया।
उसे याद आया। उसे भी फीस जमा करनी है। पिता जी ने उसे डेढ़ रुपया इसके लिए दिया है।
उसने अपनी जेब टटोलकर देखा –
एक रुपये का नोट और पचास पैसे का सिक्का।
वह बेंच से उतरा।
” किधर ? ” मास्टर जी ने पूछा।
उसके कंठ से खुशी के बुलबुले उठे।
” फीस देनी है। ”
” फीस मत देना। ” मास्टर ने कहा।
वह झिझकता रहा।
” ऑन दि बेंच। ”
वह बेंच पर चढ़कर रोने लगा।
” क्या भविष्य में कक्षा में ध्यान से पढ़ेगा ? ”
” ध्या … ध्यान दूँगा। ”
वह दफ़्तर गया।
नोट – कहानी के इस भाग में लेखक अप्पू के द्वारा मास्टर जी को आगे से कक्षा में ध्यान देने के वचन देने का वर्णन कर रहा है।
शब्दार्थ
चिकोटी – चुटकी
डेढ़ – पूरा एक और आधा , जो गिनती में 1½ हो
कंठ – गला
खुशी के बुलबुले उठना – बहुत खुश होना
झिझकना – संकोच करना
व्याख्या – लेखक कहते हैं कि जब सभी बच्चे फीस जमा करवाने ऑफिस जा रहे थे तब राजन ने जाते – जाते अप्पू के पैर में चुटकी काट ली। जैसे ही राजन ने अप्पू के पैर पर चुटकी काटी अप्पू ने अपना पैर खींच लिया। उसे याद आया कि उसे भी फीस जमा करनी है। आज ही उसके पिता जी ने उसे डेढ़ रुपया फीस जमा करने के लिए दिया था। फीस के बारे में याद करके अप्पू ने अपनी जेब टटोलकर देखा तो उसमें से उसने एक रुपये का नोट और पचास पैसे का सिक्का निकाला। फीस जमा कराने के लिए जैसे ही वह बेंच से निचे उतरा मास्टर जी ने उससे पूछा की वह किधर जाने के लिए उत्तर रहा है ? मास्टर जी के पूछने पर अप्पू बहुत खुश हो गया और खुश होते हुए मास्टर जी से कहने लगा कि उसे भी फीस देनी है। ( यहाँ अप्पू इसलिए खुश हो रहा था क्योंकि मास्टर जी ने उसे सजा के तौर पर बैंच पर खड़ा किया था और अप्पू को लगा कि फीस देने के बहाने वह सजा से बच जाएगा। ) अप्पू की बात सुन कर मास्टर जी अप्पू से बोले की वह फीस नहीं देगा। मास्टर जी की बात सुन कर अप्पू संकोच करता रहा। अर्थात वह वहीँ खड़ा रहा और उसे खड़ा देख कर मास्टर जी ने फिर से उसे बैंच पर खड़ा होने को कहा। अप्पू फिर से बैंच पर चढ़ गया और बेंच पर चढ़कर रोने लगा। उसे देख कर मास्टर जी ने उस से पूछा क्या वह भविष्य में कक्षा में ध्यान से पढ़ेगा ? मास्टर जी के प्रश्न पर अप्पू ने डरते हुए जवाब दिया कि वह आगे से कक्षा में हमेशा ध्यान देगा। फिर अप्पू भी फीस जमा कराने दफ़्तर चला गया।
पाठ – दफ़्तर में बड़ी भीड़ थी।
बच्चो , एक – एक करके आओ। क्लर्क बाबू बता रहे हैं।
पहले मैं आया हूँ।
हूँ … मैं ही आया हूँ।
मेरे बाकी पैसे ?
इस शोरगुल से अप्पू दूर खड़ा रहा।
रामन ने फीस जमा की। मल्लिका ने जमा की। अब थोड़े से लड़के ही बचे हैं।
वह सोच रहा था – जॉर्ज को साथ लेकर चलूँ तो देगा न ? शायद दे। नहीं तो कितने पैसे लगेंगे ? पाँच पैसे – दस पैसे।
हरी लकीरों वाले गोल सफ़ेद कंचे।
घंटी बजने पर फीस जमा किए हुए सभी बच्चे उधर से चले।
वह भी चला , मानो नींद से जागकर चल रहा हो।
” क्या सब फीस जमा कर चुके ? ”
कक्षा छोड़ने के पहले मास्टर जी ने पूछा। वह नहीं उठा।
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखक अप्पू के द्वारा फीस जमा न करने का वर्णन कर रहे हैं।
शब्दार्थ
शोरगुल – हल्ला
व्याख्या – लेखक कहते हैं कि जब अप्पू फीस जमा करने ऑफिस में पहुँचा तो उसने देखा कि दफ़्तर में बड़ी भीड़ थी। क्लर्क बाबू वहाँ मौजूद सभी बच्चों से कह रहे थे कि बच्चो , एक – एक करके आओ। बच्चे बहुत शोर मचा रहे थे , कोई कह रहा था कि वह पहले आया है। कोई दूसरा कह रहा था कि वह पहले आया है। कोई अपने बचे हुए बाकी के पैसे क्लर्क बाबू से माँग रहा था। इस शोरगुल यानि हल्ले से अप्पू दूर खड़ा हुआ था। अप्पू की कक्षा के रामन ने फीस जमा कर दी थी। मल्लिका ने भी फीस जमा कर दी थी। अब उसकी कक्षा के थोड़े से लड़के बचे हुए थे। लेकिन अब भी वह उसी सोच में डूबा हुआ था कि जॉर्ज को साथ लेकर जाएगा तो क्या दुकानदार बिना पैसे के कंचे देगा ? शायद वह दे देगा। अगर नहीं देगा तो कंचे खरीदने में कितने पैसे लगेंगे ? पाँच पैसे या दस पैसे। अप्पू का ध्यान अब भी उन हरी लकीरों वाले गोल सफ़ेद कंचों पर ही टिका हुआ था। तभी स्कूल की घंटी बजी और घंटी बजने पर फीस जमा किए हुए सभी बच्चे ऑफिस से कक्षा की ओर चल पड़े। अप्पू भी उनके साथ वहाँ से कक्षा की चल पड़ा , मानो वह नींद से जागकर चल रहा हो। कहने का तात्पर्य यह है कि अप्पू का ध्यान कंचों के साथ खेलने में ही लगा हुआ था , जिस कारण उसे अपने आस – पास क्या हो रहा है इस बारे में कुछ भी पता नहीं चल रहा था। जब सभी अपनी कक्षा में पहुँच गए तो मास्टर जी ने उन से पूछा कि क्या सब फीस जमा कर चुके ? परन्तु अप्पू ने फीस जमा नहीं की थी पर वह नहीं उठा। उसका ध्यान अभी भी मास्टर जी की बातों में नहीं था।
पाठ – शाम को थोड़ी देर इधर – उधर टहलता रहा। लड़के गीली मिट्टी में छोटे गड्डे खोदकर कंचे खेल रहे थे। वह उनके पास नहीं गया।
फाटक के सींखचे थामे , उसने सड़क की तरफ देखा। वहाँ उस मोड़ पर दुकान है। दुकान में अलमारी। बाहर खड़े – खड़े छू सकेगा। अलमारी में शीशे के जार हैं। उनमें एक जार में पूरा …
बस्ता कंधे पर लटकाए वह चलने लगा।
दुकान नजदीक आ रही है।
उसकी चाल की तेजी बढ़ी।
वह अलमारी के सामने खड़ा हो गया।
दुकानदार हँसा।
उसे मालूम हुआ कि दुकानदार उसके इंतजार में है।
वह भी हँसा।
” कंचा चाहिए , है न ? ”
उसने सिर हिलाया।
दुकानदार जार का ढक्कन जब खोलने लगा तब अप्पू ने पूछा – ” अच्छे कंचे हैं न ? ”
” बढ़िया , फर्स्ट क्लास कंचे। तुम्हें कितने कंचे चाहिए ? ”
कितने कंचे चाहिए , कितने चाहिए , कितने ? उसने जेब में हाथ डाला। एक रुपया और पचास पैसे हैं।
उसने वह निकालकर दिखाया।
दुकानदार चौंका – ” इतने सारे पैसों के ? ”
” सबके। ”
पहले कभी किसी लड़के ने इतनी बड़ी रकम से कंचे नहीं खरीदे थे।
” इतने कंचों की जरूरत क्या है ? ”
” वह मैं नहीं बताऊँगा। ”
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखक अप्पू द्वारा उसको दिए गए फीस के सारे पैसों के कंचे खरीदने का वर्णन कर रहा है।
शब्दार्थ
फाटक – बड़ा दरवाज़ा , सिंहद्वार , मवेशीख़ाना , काँजीहौस
सींखचे – लोहे या इस्पात की लंबी – मोटी छड़ , छोटी सलाख़ , सरिया
थामना – पकड़ना
चौंकना – यकायक उत्तेजित एवं विकल हो उठना , सहसा घबरा जाना
रक़म – संपत्ति , दौलत , रुपया , पैसा
व्याख्या – लेखक कहता है कि स्कूल से आते हुए शाम को थोड़ी देर तक अप्पू इधर – उधर टहलता रहा। स्कूल के मैदान में लड़के गीली मिट्टी में छोटे गड्डे खोदकर कंचे खेल रहे थे। परन्तु वह उनके पास खेलने नहीं गया। स्कूल के बड़े दरवाजे की लोहे की लंबी – मोटी छड़ को पकड़े हुए उसने सड़क की तरफ देखा। वहाँ उसे मोड़ पर वह दुकान दिख रही थी जहाँ पर उसने अलमारी में कांच के जार के अंदर कंचे रखे हुए थे। अप्पू अपने आप में सोचता हुआ पुस्तकों से भरा बेग कंधे पर लटकाए हुए दूकान की और चलने लगा , वह सोच रहा था कि दुकान में अलमारी है और क्या वह बाहर खड़े – खड़े ही उस कंचों से भरे जार को छू सकेगा। वह पूरी अलमारी शीशे के जारों से भरी पड़ी हैं और उनमें से एक जार में पूरा … अभी अप्पू ने इतना ही सोचा था कि उसने देखा कि दुकान नजदीक आ रही है। दूकान को नजदीक देख कर उसकी चाल की तेजी बढ़ गई। दूकान के पास पहुँच कर वह उसी अलमारी के सामने खड़ा हो गया जिसमें कंचों से भरा जार था। अप्पू को देख कर दुकानदार हँस पड़ा। दुकानदार के हँसने से उसे मालूम हुआ कि दुकानदार उसके इंतजार में है। क्योंकि स्कूल जाने से पहले भी वह वहीं उस अलमारी के पास खड़ा हुआ था। दुकानदार को हँसता हुआ देख कर वह भी हँस पड़ा। दुकानदार ने अप्पू से पूछा कि उसे कंचा चाहिए , है न ? अप्पू ने भी हाँ में सिर हिलाया। जब दुकानदार ने कंचे देने के लिए जार का ढक्कन खोलने लगा तब अप्पू ने दुकानदार से पूछा कि वे कंचे अच्छे तो हैं न ? दुकानदार ने भी उत्तर देते हुए कहा कि उसके द्वारा रखे गए कंचे बहुत बढ़िया और फर्स्ट क्लास हैं। उसे कितने कंचे चाहिए ? दुकानदार की बातें सुनकर अप्पू फिर अपनी सोच में खो गया और उसके मन में दुकानदार के आखरी शब्द गूँजने लगे कि उसे कितने कंचे चाहिए , कितने चाहिए , कितने ? अप्पू ने अपनी जेब में हाथ डाला और जो पैसे उसे फीस के लिए दिए गए थे उसी एक रुपया और पचास पैसे को उसने दुकानदार को निकालकर दिखाया। दुकानदार इतने पैसे देख कर सहसा घबरा गया और वह अप्पू से बोल पड़ा कि क्या उसे इन सभी पैसों के कंचे खरीदने हैं क्योंकि एक रुपया और पचास पैसा कंचे खरीदने के लिए बहुत अधिक था। दुकानदार इसलिए भी हैरान हो गया था क्योंकि पहले कभी किसी दूसरे लड़के ने इतने सारे पैसों के कंचे नहीं खरीदे थे। दुकानदार ने फिर अप्पू से पूछा कि उसे इतने सारे कंचों की क्या जरूरत है ? अप्पू ने दुकानदार को यह बताने से इंकार कर दिया क्योंकि वह किसी को भी नहीं बताना चाहता था कि वह केवल जॉर्ज के साथ खेलना चाहता था और वह अपनी फीस के पैसों से कंचे खरीद रहा था जिस कारण उसे डर था कि कहीं उसे कोई यह सब करने के लिए डाँट न दे।
पाठ – दुकानदार समझ गया। वह भी किसी जमाने में बच्चा रहा था। उसके साथी मिलकर खरीद रहे होंगे। यही उनके लिए खरीदने आया होगा।
वह कंचे खरीदने की बात जॉर्ज के सिवा और किसी को बताना नहीं चाहता था।
दुकानदार ने पूछा – ” क्या तुम्हें कंचा खेलना आता है ? ”
वह नहीं जानता था।
” तो फिर ? ”
कैसे – कैसे सवाल पूछ रहा है। उसका धीरज जवाब दे रहा था।
उसने हाथ फैलाया।
” दे दो। ”
दुकानदार हँस पड़ा।
वह भी हँस पड़ा।
कागज की पोटली छाती से चिपटाए वह नीम के पेड़ों की छाँव में चलने लगा।
कंचे अब उसकी हथेली में हैं। जब चाहे बाहर निकाल ले।
उसने पोटली हिलाकर देखा।
वह हँस रहा था।
उसका जी चाहता था – काश ! पूरा जार उसे मिल जाता। जार मिलता तो उसके छूने से ही कंचे को छूने का अहसास होता।
नोट – कहानी के इस गद्यांश में लेखक अप्पू के द्वारा फीस के सारे पैसों के कंचे खरीदने का वर्णन कर रहा है।
शब्दार्थ
सिवा – अलावा , अतिरिक्त
धीरज – धैर्य , संयम
पोटली – छोटी गठरी , छोटी थैली
चिपटना – चिपकना , सटना , चिमटना
व्याख्या – जब अप्पू ने दुकानदार को नहीं बताया कि वह बहुत सारे कंचे क्यों खरीद रहा है तो दुकानदार उसके बिना बताए ही सब कुछ समझ गया था। क्योंकि वह भी किसी जमाने में बच्चा रहा था। उसने भी कई बार बहुत सारे कंचे एक साथ ख़रीदे थे , और दुकानदार को लगा था कि अप्पू और उसके साथी मिलकर कंचे खरीद रहे होंगे। और अप्पू ही उनके लिए खरीदने आया होगा। और उसे लग रहा होगा कि कहीं दुकानदार यह न समझ ले कि अप्पू से ही उसके दोस्त सारा काम करवाते हैं इसलिए वह दुकानदार को नहीं बताना चाहता कि वह बहुत सारे कंचे क्यों खरीद रहा है ? लेकिन सच तो यह था कि अप्पू इतने सारे कंचे खरीदने की बात जॉर्ज के अलावा और किसी को बताना नहीं चाहता था। दुकानदार ने अप्पू को चिढ़ाते हुए पूछा कि क्या उसे कंचा खेलना आता भी है ? अप्पू असल में कंचे खेलना नहीं जानता था। लेकिन वह दुकानदार के सामने नहीं जताना चाहता था इसलिए उसने कहा कि वह कंचे खेलना जानता है। साथ – ही – साथ अप्पू को दुकानदार के इस तरह बार – बार उससे सवाल पूछने पर उसे गुस्सा आ रहा था। उसका धैर्य अब जवाब दे रहा था। इसलिए उसने कंचे लेने के लिए दुकानदार के सामने हाथ फैलाया और कहा कि वह उसे कंचे दे दें। दुकानदार अप्पू के इस तरह व्यवहार करने के कारण हँस पड़ा। और दुकानदार को हँसता देख अप्पू भी हँस पड़ा। ( दुकानदार ने एक कागज़ की छोटी थैली में अप्पू को उसके पैसों के बदले कंचे भर कर दे दिए। ) अप्पू कागज की छोटी थैली को अपनी छाती से सटा कर नीम के पेड़ों की छाँव में चलने लगा। अब कंचे उसकी हथेली में थे। अब जब भी उसका जी चाहे वह उन्हें बाहर निकाल सकता था क्योंकि अब उसने उन्हें खरीद लिया था और अब वे सारे कंचे उसके थे। उसने कंचों से भरी अपनी उस छोटी थैली को हिलाकर देखा। उसे बहुत खुशी हो रही थी और वह हँस रहा था। उसका जी तो चाह रहा था कि काश ! उसे कंचों से भरा वह पूरा जार मिल जाता। अगर उसे वह जार मिलता तो उस जार को केवल छूने से ही उसे कंचे को छूने का अहसास हो जाता।
पाठ – एकाएक उसे शक हुआ।
क्या सब कंचों में लकीर होगी ?
उसने पोटली खोलकर देखने का निश्चय किया। बस्ता नीचे रखकर वह धीरे से पोटली खोलने लगा। पोटली खुली और सारे कंचे बिखर गए। वे सड़क के बीचों – बीच पहुँच रहे हैं।
क्षणभर सकपकाने के बाद वह उन्हें चुनने लगा। हथेली भर गई। वह चुने हुए कंचे कहाँ रखे ?
स्लेट और किताब बस्ते से बाहर रखने के बाद कंचे बस्ते में डालने लगा।
एक , दो , तीन , चार …
एक कार सड़क पर ब्रेक लगा रही थी।
वह उस वक्त भी कंचे चुनने में मग्न था।
ड्राइवर को इतना गुस्सा आया कि उस लड़के को कच्चा खा जाने की इच्छा हुई। उसने बाहर झाँककर देखा , वह लड़का क्या कर रहा है ?
हॉर्न की आवाज सुन कंचे चुनते अप्पू ने बीच में सिर उठाकर देखा। सामने एक मोटर है और उसके भीतर ड्राइवर। उसने सोचा – क्या कंचे उसे भी अच्छे लग रहे हैं ? शायद वह भी मजा ले रहा है।
एक कंचा उठाकर उसे दिखाया और हँसा – ” बहुत अच्छा है न ! ”
ड्राइवर का गुस्सा हवा हो गया। वह हँस पड़ा।
बस्ता कंधे पर लटकाए , स्लेट , किताब , शीशी , पेंसिल – सब छाती से चिपकाए वह घर आया।
उसकी माँ शाम की चाय तैयार कर उसकी राह देख रही थी।
नोट – कहानी के इस भाग में लेखक अप्पू के द्वारा कंचों को सड़क पर गिरा देने और उन्हें इकठ्ठा करते हुए अप्पू की ख़ुशी का वर्णन कर रहा है।
शब्दार्थ
एकाएक – अचानक , एकदम
शक – शंका , आशंका , संदेह , भ्रम
निश्चय – संकल्प करना , प्रस्ताव , रिजोल्यूशन , निश्चित रूप से , अवश्य
क्षणभर – पलभर , संकाय
सकपकाना – चकित होना , चकपकाना , हिचकना , चकित करना , असमंजस में डालना
मग्न – डूबा हुआ , तन्मय , लीन
कच्चा खा जाना (मुहावरा ) – मार ड़ालना , नष्ट करना
गुस्सा हवा हो जाना ( लोकोक्ति – मुहावरा ) – क्रोध जाता रहना
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब अप्पू ने दुकानदार द्वारा दी गई कंचों से भरी छोटी थैली को हिलाकर देखा तो अचानक उसे कुछ संदेह हुआ कि क्या दूकान द्वारा दिए गए सब कंचों में लकीर होगी या नहीं ? अपने संदेह को दूर करने के लिए उसने उस कंचों से भरी थैली को खोलकर देखने का संकल्प किया। अपने स्कूल के बेग को नीचे रखकर वह धीरे से उस छोटी थैली को खोलने लगा। जैसे ही अप्पू ने उस कंचे की छोटी थैली को खोला उस थैली के सारे कंचे बिखर गए और अप्पू ने देखा कि वे सब सड़क के बीचों – बीच पहुँच रहे हैं। पल भर असमंजस में पड़ने के बाद वह उन्हें उठाने लगा। थोड़ी ही देर में अप्पू की छोटी सी हथेली कंचों से भर गई। अब उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसके द्वारा उठाए गए कंचे कहाँ रखे ? क्योंकि अभी भी बहुत सारे कंचे सड़क पर बिखरे हुए थे। अप्पू को एक तरकीब सूजी , उसने स्लेट और किताब अपने बेग से बाहर रखने के बाद कंचे बेग में डालने लगा। वह साथ – ही – साथ कंचों को गिन भी रहा था। जब अप्पू कंचे उठा रहा था तो वह सड़क के बीचों बीच था जिस वजह से एक कार सड़क पर ब्रेक लगा रही थी। परन्तु अप्पू उस पर ध्यान नहीं दे रहा था वह उस वक्त भी कंचे उठाने में व्यस्त था। अप्पू को इस तरह देख कर कार के ड्राइवर को बहुत गुस्सा आ गया था , उससे ऐसी इच्छा हो रही थी कि वह उस लड़के को यानि अप्पू को मार ही डाले। उस ड्राइवर ने कार से बाहर झाँककर देखा कि आखिर अप्पू सड़क के बीचों – बीच क्या कर रहा है ? जब ड्राइवर ने अप्पू को हटाने के लिए हॉर्न बजाया तो हॉर्न की आवाज सुन कर कंचे उठाते हुए अप्पू ने बीच में सिर उठाकर सामने देखा। अप्पू ने देखा कि उसके सामने एक मोटर है और उसके भीतर एक ड्राइवर है। अप्पू ने सोचा कि क्या ड्राइवर को भी कंचे अच्छे लग रहे हैं ? शायद इसीलिए वह भी उन कंचों को देखकर मजा ले रहा है। इस लिए अप्पू ने एक कंचा उठाकर उस ड्राइवर को दिखाया और हँसते हुए कहा कि वह कांचा बहुत अच्छा है न ! अप्पू की ऐसी मासूमियत को देखकर ड्राइवर का सारा गुस्सा धीरे – धीरे चला गया और वह भी हँस पड़ा। कंचे उठा लेने के बाद बेग को अपने कंधे पर लटका कर , स्लेट , किताब , शीशी , पेंसिल – सब छाती से चिपका कर अप्पू अपने घर आया। घर में उसकी माँ शाम की चाय तैयार कर के उसका ही इंतज़ार कर रही थी। क्योंकि आज उसे आने में बहुत देर हो गई थी।
पाठ – बरामदे की बेंच पर स्लेट व किताबें फेंककर वह दौड़कर माँ के गले लग गया। उसके लौटने में देर होते देख माँ घबराई हुई थी।
उसने बस्ता जोर से हिलाकर दिखाया।
” अरे ! यह क्या है ? ” माँ ने पूछा।
” मैं नहीं बताऊँगा। ” वह बोला।
” मुझसे नहीं कहेगा ? ”
” कहूँगा। माँ , आँखें बंद कर लो। ”
माँ ने आँखें बंद कर लीं।
उसने गिना , वन , टू , थ्री …
माँ ने आँखें खोलकर देखा। बस्ते में कंचे – ही – कंचे थे। वह कुछ और हैरान हुई।
” इतने सारे कंचे कहाँ से लाया ? ”
” खरीदे हैं। ”
” पैसे ? ”
पिता जी की तसवीर की ओर इशारा करते हुए उसने कहा – ” दोपहर को दिए थे न ? ”
माँ ने दाँतों तले उँगली दबाई। फीस के पैसे ? इतने सारे कंचे काहे को लिए ?
आखिर खेलोगे किसके साथ ? उस घर में सिर्फ वही है। उसके बाद एक मुन्नी हुई थी। उसकी छोटी बहन। मगर …
माँ की पलकें भीग गईं।
उसकी माँ रो रही है।
अप्पू नहीं जान सका कि माँ क्यों रो रही है। क्या कंचा खरीदने से ? ऐसा तो नहीं हो सकता। तो फिर ?
उसकी आँखों के सामने बूढ़ा दुकानदार और कार का ड्राइवर खड़े – खड़े हँस रहे थे। वे सब पसंद करते हैं। सिर्फ माँ को कंचे क्यों पसंद नहीं आए ?
शायद कंचे अच्छे नहीं हैं।
बस्ते से आँवले जैसे कंचे निकालते हुए उसने कहा – ” बुरे कंचे हैं , हैं न ? ”
” नहीं , अच्छे हैं। ”
” देखने में बहुत अच्छे लगते हैं न ? ”
” बहुत अच्छे लगते हैं। ”
वह हँस पड़ा।
उसकी माँ भी हँस पड़ी।
आँसू से गीले माँ के गाल पर उसने अपना गाल सटा दिया।
अब उसके दिल से खुशी छलक रही थी।
नोट – कहानी के इस अंतिम गद्यांश में लेखक अप्पू और उसकी माँ के वार्तालाप का वर्णन कर रहा है।
शब्दार्थ
दाँतों तले उँगली दबाना ( मुहावरा ) – दग रह जाना या हैरान हो जाना
व्याख्या – लेखक कहता है कि घर पहुँचते ही अप्पू ने बरामदे की बेंच पर स्लेट व किताबें फेंक दी और वह दौड़कर अपनी माँ के गले लग गया। आज अप्पू को स्कूल से लौटने में देर हो गई थी जिस कारण उसकी माँ घबराई हुई थी। अप्पू ने अपना स्कूल बेग जोर से हिलाकर अपनी माँ को दिखाया। स्कूल बेग से आवाजें आ रही थी जिस कारण उसकी माँ ने उससे पूछा कि यह क्या है ? अप्पू ने बताने से मना कर दिया। माँ ने अप्पू को पुचकारते हुए कहा कि क्या वह उससे नहीं कहेगा ? अप्पू ने अपनी माँ से कहा कि वह उससे जरूर कहेगा। लेकिन पहले उसने अपनी माँ को आँखें बंद कर लेने को कहा। अप्पू की बात मानते हुए उसकी माँ ने आँखें बंद कर लीं। अब अप्पू ने गिना , वन , टू , थ्री .. और उसकी माँ ने आँखें खोलकर देखा। अप्पू के स्कूल बेग में कंचे – ही – कंचे थे। उन्हें देख कर वह कुछ और हैरान हुई। क्योंकि अप्पू के इस तरह व्यवहार से वह पहले ही हैरान हो गई थी। उन कंचों को देख कर उसने अप्पू से पूछा कि वह इतने सारे कंचे कहाँ से लाया है ? अप्पू ने भी जवाब दिया कि उसने सब के सब खरीदे हैं। उसकी माँ ने फिर पूछा कि उसके पास पैसे कहाँ से आए ? अप्पू ने भी मासूमियत के साथ अपने पिता जी की तसवीर की ओर इशारा करते हुए अपनी माँ से कहा कि दोपहर को ही तो उसे उसके पिता दिए थे। यह बात सुनकर अप्पू की माँ और ज्यादा हैरान हो गई क्योंकि उसे पता था कि अप्पू के पिता ने उसे पैसे फीस जमा करने के लिए दिए थे न की खर्च करने के लिए। फिर अप्पू की माँ ने उससे पूछा कि इतने सारे कंचे उसने किस लिए ख़रीदे हैं ? आखिर वह खेलेगा किसके साथ ? क्योंकि उस घर में सिर्फ वही एक बच्चा था। उसके बाद एक मुन्नी हुई तो थी। उसकी छोटी बहन। मगर … ( कहानी की शुरुआत में ही लेखक ने हमें बताया था कि किसी कारण वश अप्पू की छोटी बहन का देहांत हो गया था ) यही कारण था कि अप्पू कि माँ यह सोच कर परेशान हो रही थी कि अप्पू इतने सरे कंचों से किसके साथ खेलेगा। अपनी बेटी को याद करने अप्पू की माँ की पलकें भीग गईं। उसकी माँ रो रही थी। अप्पू अभी छोटा था उसे समझ नहीं आ सका था कि उसकी माँ क्यों रो रही थी। उसे संदेह हुआ कि क्या उसकी माँ उसके द्वारा कंचा खरीदने से रो रही है ? परन्तु फिर उसने सोचा कि ऐसा तो नहीं हो सकता। तो फिर उसकी माँ क्यों रो रही होगी ? अब उसकी आँखों के सामने वह बूढ़ा दुकानदार और कार का ड्राइवर खड़े – खड़े हँस रहे थे। उसे लग रहा था कि वे सब तो कंचे पसंद करते हैं। सिर्फ माँ को कंचे क्यों पसंद नहीं आए ? अब अप्पू को लगने लगा कि शायद कंचे अच्छे नहीं हैं। अपने स्कूल बेग से आँवले जैसे कंचे निकालते हुए उसने अपनी माँ को चुप कराने के लिए कहा कि ये कंचे अच्छे नहीं हैं , हैं न ? अप्पू की माँ ने कहा कि नहीं , वे अच्छे हैं। अब अप्पू ने फिर से कहा कि देखने में ये कंचे बहुत अच्छे लगते हैं न ? अप्पू की माँ भी अप्पू की ख़ुशी में शामिल होते हुए उसकी बातों को दोहराने लगी थी और कंचों के देखते हुए कहती है कि बहुत अच्छे लगते हैं। अब अप्पू खुश हो गया और वह हँस पड़ा। उसकी माँ भी हँस पड़ी। आँसू से गीले माँ के गाल पर अप्पू ने अपना गाल सटा दिया। अब उसके दिल से खुशी छलक रही थी। कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चों की मासूमियत बड़ों का गुस्सा और दर्द सब दूर कर देती है। इस कहानी में भी यही सब देखने को मिलता है।
Kancha Question Answer (कंचा प्रश्न अभ्यास)
प्रश्न 1 – कंचे जब ज़ार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं , तब क्या होता है ?
उत्तर – कंचे जब ज़ार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं , तब वह जार और कंचों के अलावा और कुछ नहीं सोचता है। अप्पू को अपनी कल्पना की दुनिया में लगता है कि जैसे कंचों का ज़ार बड़ा होकर आसमान जैसा बड़ा हो गया है और वह उसके अंदर समा गयाहै। उसके आलावा उसे उस जार के अंदर कोई और नजर नहीं आता। वह अकेला ही कंचे चारों ओर बिखेरता हुआ मज़े से खेल रहा था। उसे कंचे आँवले जितने बड़े – बड़े और गोल लग रहे थे। हरी लकीर वाले सफ़ेद गोल कंचे उसके दिमाग में पूरी तरह छा गए थे। कंचे अप्पू के मन की कल्पना में इतने समा चुके थे कि जब मास्टर जी कक्षा में पाठ में ‘ रेलगाड़ी ’ के बारे में पढ़ा रहे थे , तब भी उसका ध्यान पढ़ाई में नहीं था। वह तो केवल कंचों के बारे में सोच रहा था , इसके लिए उसने मास्टर जी से डाँट भी खाई थी और उसे सज़ा भी मिली थी।
प्रश्न 2 – दुकानदार और ड्राइवर के सामने अप्पू की क्या स्थिति है ? वे दोनों उसको देखकर पहले परेशान होते हैं , फिर हँसते हैं। कारण बताइए।
उत्तर – दुकानदार व ड्राइवर के सामने अप्पू एक छोटा बच्चा है जो अपनी ही दुनिया में मस्त है। दुकानदार उसे देखकर पहले परेशान होता है क्योंकि वह कंचे देख तो रहा था लेकिन खरीद नहीं रहा था। फिर जैसे ही अप्पू ने अपनी पूरी फीस के पैसों के कंचे खरीदे तो दुकानदार ने उससे इतने सारे कंचे खरीदने का कारण जब पूछा तो अप्पू ने बताने से इंकार कर दिया , जिस कारण दुकानदार को अपना बचपन याद आ गया और वह हँस दिया। ऐसे ही जब अप्पू कंचे देखने के लिए थैली से निकालता है तो वे सब सड़क में बिखर जाते हैं और तेज़ रफ़्तार से आती कार का ड्राइवर यह देखकर परेशान हो जाता है कि वह दुर्घटना की परवाह किए बिना , सड़क पर कंचे उठाने में व्यस्त है। लेकिन जैसे ही अप्पू उसे इशारा करके अपना कंचा दिखाता है और उस ड्राइवर से पूछता है कि कंचे अच्छे है न ? तो वह अप्पू की बचपन की शरारत और मासूमियत को समझकर हँसने लगता है।
प्रश्न 3 – मास्टर जी की आवाज़ अब कम ऊँची थी। वे रेलगाड़ी के बारे में बता रहे थे। मास्टर जी की आवाज़ धीमी क्यों हो गई होगी ? लिखिए।
उत्तर – जब मास्टर जी ने कक्षा के बच्चों को रेलगाड़ी का पाठ पढ़ाना शुरू किया था , तब उनकी आवाज ऊँची थी क्योंकि वे सभी बच्चों का ध्यान आकर्षित करना चाहते थे ताकि वे सभी बच्चे ध्यानपूर्वक पाठ को सुन सकें। जब पाठ शुरू हो गया तब बच्चे ध्यानपूर्वक उनकी बातें सुनने लगे , लेकिन अप्पू का ध्यान पाठ से हट कर कंचों की ओर चला गया था जिस कारण उसे अब मास्टर जी की आवाज कम सुनाई दे रही थी और कहानी में लेखक अप्पू के दृष्टिकोण से हमें कहानी सुना रहा है इस लिए लेखक ने कहा है कि मास्टर जी की आवाज़ अब कम ऊँची थी।
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