नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़ कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए 

4

मुझे एक अफ़सोस है, वह अफ़सोस यह है कि मैं उन्हें पूरे अर्थों में शहीद क्यों नहीं कह पाता हु मरते सभी हैं, यहाँ बचना किसको है! आगे-पीछे सबको जाना है, पर मौत शहीद की ही सार्थक है क्योंकि वह जीवन की विजय को घोषित करती है| आज यही ग्लानि मन में घुट-घुटकर रह जाती है हो प्रेमचंद शहादत से क्‍यों वंचित रह गए? मैं मानता हूँ कि प्रेमचंद शहीद होने योग्य थे, उन्हें शहीद बनना था|

और यदि नहीं बन पाए हैं वे शहीद तो मेरा मन तो इसका दोष हिंदी संसार को भी देता है| मरने से एक-सवा महीने पहले की बात है, प्रेमचंद खाट पर पड़े थे| रोग बढ़ गया था, उठ-चल न सकते थे| देह पीली, पेट फूला, पर चेहरे पर शांति थी|

मैं तब उनकी खाट के पास बराबर काफ़ी-काफ़ी देर तक बैठा रहा हूँ| उनके मन के भीतर कोई खीझ, कोई कड़वाहट, कोई मैल उस समय करकराता मैंने नहीं देखा, देखते तो उस समय वह अपने समस्त अतीत जीवन पर भी होंगे और आगे अज्ञात में कुछ तो कल्पना बढ़ाकर देखते ही रहे होंगे लेकिन दोनों को देखते हुए वह संपूर्ण शांत भाव से खाट पर चुपचाप पड़े थे| शारीरिक व्यथा थी, पर मन निर्विकार था|

ऐसी अवस्था में भी उन्होंने कहा- जैनेन्द्र! लोग ऐसे समय याद किया करते हैं ईश्वर| मुझे भी याद दिलाई जाती है| पर अभी तक मुझे ईश्वर को कष्ट देने की जरुरत नहीं मालूम हुई है| शब्द हौले-हौले थिरता से कहे गए थे और मैं अत्यंत शांत नास्तिक संत की शक्ति पर विस्मित था| मौत से पहली रात को मैं उनकी खटिया के बराबर बैठा था| सबेरे सात बजे उन्हें इस दुनिया से आँख मीच लेनी थीं| उसी सबेरे तीन बजे मुझसे बातें होती थीं| चारों तरफ सन्नाटा था| कमरा छोटा और अंधेरा था| सब सोए पड़े थे| शब्द उनके मुँह से फुसफुसाहट में निकलकर खो जाते थे| उन्हें कान से अधिक मन से सुनना पड़ा था|

रात के बारह बजे ‘हंस’ की बात हो चुकी थी| अपनी आशाएँ, अपनी अभिलाषाएँ, कुछ शब्दों से और अधिक आँखों से वह मुझपर प्रकट कर चुके थे| ‘हंस’ की और ‘साहित्य’ की चिंता उन्हें तब भी दबाए थी| चिंता का केंद्र यही था कि ‘हंस’ कैसे चलेगा? नहीं चलेगा तो क्या होगा? ‘हंस’ के लिए जीने की चाह तब भी उनके मन में थी और ‘हंस’ न जिएगा, यह कल्पना उन्हें असहाय थी| हिंदी-संसार का अनुभव उन्हें आश्वस्त न करता| ‘हंस’ के लिए न जाने उस समय वे कितना झुककर गिरने को तैयार थे| अपने बच्चों का भविष्य भी उनकी चेतना पर दबाव डाले हुए था| मुझसे उन्हें कुछ ढॉढ्स था|

मुझे यह योग्य जान पड़ा कि कहूँ- ‘वह’ मरेगा नहीं! वह आपका अख़बार है, तब वह बिना झुके ही जिएगा| लेकिन मैं कुछ भी न कह सका और कोई आश्वासन उस साहित्य-सम्राट को आश्वस्त न कर सका|

निम्नलिखित में से निदेशानुसार सबसे उचित विकल्पों का चयन कीजिए:-

1. थिरता शब्द का अर्थ है
a.
b.
c.
d.

2. हंस नहीं जी पायेगा मैं 'हंस' क्या हो सकता है?
a.
b.
c.
d.

3. उन्हें कान से अधिक मन से सुनना पड़ा था|- प्रस्तुत पंक्ति से लेखक का क्या अभिप्राय है?
a.
b.
c.
d.

4. प्रेमचंद जी के व्यक्तित्व के विषय में कौन सा निष्कर्ष निश्चित रूप से निकाला जा सकता है?
a.
b.
c.
d.

5. प्रेमचंद को लेखक से क्या आशा थी?
a.
b.
c.
d.

6. गद्यांश के अनुसार प्रेमचंद अधूरे शहीद थे| ऐसा क्यों कहा गया है?
a.
b.
c.
d.

7. शारीरिक व्यथा थी, पर मन निरविकार था|- पंक्ति के सबसे उचित भाव का चयन कीजिए:-
a.
b.
c.
d.

8. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीरषक हो सकता है?
a.
b.
c.
d.

9. प्रेमचंद हिन्दी साहित्य संसार के शहीद नहीं बन पाए| लेखक का मन हिंदी संसार को इसका दोष क्यों देता है?
a.
b.
c.
d.

10. प्रेमचंद की चिंता का विषय क्या था?
a.
b.
c.
d.


 

Also Check out Related CUET Hindi Reading Comprehension Test Links

 

CUET Hindi Reading Comprehension Test 1

CUET Hindi Reading Comprehension Test 2

CUET Hindi Reading Comprehension Test 3

CUET Hindi Reading Comprehension Test 5

CUET Hindi Reading Comprehension Test 6

CUET Hindi Reading Comprehension Test 7

CUET Hindi Reading Comprehension Test 8

CUET Hindi Reading Comprehension Test 9

CUET Hindi Reading Comprehension Test 10

CUET Hindi Reading Comprehension Test 11

CUET Hindi Reading Comprehension Test 12

CUET Hindi Reading Comprehension Test 13

CUET Hindi Reading Comprehension Test 14

CUET Hindi Reading Comprehension Test 15