Hindi Essay Writing – गणतंत्र दिवस (Republic Day)
गणतंत्र दिवस पर निबंध – गणतंत्र क्या हैं, गणतंत्र दिवस की शुरुआत, गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में क्या मनाया जाता है इस के बारे में जानेगे |
- गणतंत्र क्या हैं
- गणतंत्र दिवस की शुरुआत
- 26 जनवरी ही क्यों
- संविधान की प्रस्तावना
- संविधान का महत्व
- संविधान का निर्माण
- राष्ट्रीय पर्व –
- संविधान के मुख्य तथ्य
- उपसंहार
गणतंत्र क्या हैं
गणतंत्र दो शब्दों से मिलकर बना है गण+तंत्र – गण का अर्थ है जनता और तंत्र का अर्थ है शासन करना। इस प्रकार गणतंत्र का अर्थ हुआ जनता द्वारा शासन। भारत संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य है। यहॉं की जनता को अपना शासक मनोनीत करने और मतदान का अधिकार प्राप्त है और यही इस लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता है।
संप्रभु: ‘संप्रभु’ का तात्पर्य है कि भारत न तो किसी अन्य राष्ट्र पर निर्भर है, बल्कि एक स्वतंत्र राज्य है। इसके ऊपर किसी का कोई अधिकार नहीं है, यह अपने मामलों का संचालन करने हेतु स्वतंत्र है।
लोकतांत्रिक: यह ‘लोकप्रिय संप्रभुता’ के सिद्धांत पर आधारित है, अर्थात सर्वोच्च शक्ति का अधिकार आम लोगों के पास होता है।
गणतंत्र: प्रस्तावना इंगित करती है कि भारत में एक निर्वाचित प्रमुख होता है ,जिसे राष्ट्रपति कहा जाता है। वह अप्रत्यक्ष रूप से पाँच वर्ष की निश्चित अवधि के लिये चुना जाता है।
अब्राहम लिंकन का एक कथन है-
“लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन।”
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गणतंत्र दिवस की शुरुआत
जैसा कि सभी जानते हैं कि हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। दरअसल इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है उस दिन को याद करना जब हमारे देश का संविधान लागू हुआ था। 26 जनवरी 1950 को इसी दिन भारतीय संविधान पूरे देश में लागू हुआ था। संविधान में 395 अनुच्छेद , 8 अनुसूचियां और 22 भाग थे। 26 नवंबर 1949 को हमारा संविधान बनकर तैयार हो गया था और उसी दिन कुल 15 अनुच्छेदों को पारित भी कर दिया गया था जबकि शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।
इसी दिन भारत ने औपनिवेशिक व्यवस्था को समाप्त किया और एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनकर एक नई सुबह की शुरुआत की।
यह दिन हमारे समाज और हमारे सभी नागरिकों के बीच स्वतंत्रता, बंधुत्व एवं समानता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिये हमारे लोकतंत्र और गणतंत्र के मूल्यों को मनाने का अवसर है।
यह दिन एक विशाल राष्ट्र की इच्छा का जश्न मनाता है जो भारत की विविधता में एकता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए एकल संविधान के माध्यम से शासित होना चाहता है।
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26 जनवरी ही क्यों
26 नवंबर 1949 को संविधान बनकर तैयार हो गया था फिर भी संविधान उसी तारीख को लागू ना करके 26 जनवरी को ही संविधान लागू क्यों किया गया ? इसके पीछे एक ऐतिहासिक कारण है । साल 1930 कांग्रेस के एक अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। यह अधिवेशन लाहौर में आयोजित किया गया था और इसी अधिवेशन में 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की गई थी। क्योंकि उस वक्त तक अंग्रेजों का जुल्म अपने चरम पर पहुंच चुका था । भारतीय एकजुट हो चुके थे और उनके नेतृत्व के लिए महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, राम प्रसाद बिस्मिल , अशफाक उल्ला खान , भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी तैयार थे। और इन्हीं के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ी गई और अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में उभर कर सामने आया।
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संविधान की प्रस्तावना
प्रस्तावना मोटे तौर पर एक व्यापक बयान है जो संविधान के प्रमुख सिद्धांतों को प्रस्तुत करती है। पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुत किया गया उसे ही संविधान की उद्देशिका अथवा प्रस्तावना में शामिल कर लिया गया संविधान के 42 वें संशोधन 1976 द्वारा संशोधित यह प्रस्तावना इस प्रकार है –
हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता,
प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की
एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949, (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत दो हजार छह विक्रमी ) को दत्त द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मा समर्पित करते हैं।
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संविधान का महत्व
संविधान किसी भी देश का सर्वोच्च कानून होता है और वहां के नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे संविधान में वर्णित नियमों और कानूनों का पालन करें। संविधान का आदर करें और इसकी गरिमा बनाए रखें।
भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित एवं सर्वाधिक व्यापक संविधान है । यह अंशतः कठोर और अंशतः लचीला है अर्थात समय-समय पर इसमें वर्णित कानूनों में आवश्यकता अनुसार संशोधन किए जा सकते है। और जरूरत पड़ने पर नए कानूनों का निर्माण भी किया जा सकता है और संविधान को विस्तारित किया जा सकता है भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में संविधान सर्वोच्च है भारत का संविधान अपना प्राधिकार भारत की जनता से प्राप्त करता है। भारत सरकार अधिनियम 1935 वह संवैधानिक दस्तावेज है जिसका भारतीय संविधान तैयार करने में गहरा प्रभाव पड़ा है इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारे संविधान में कई सारे अनुच्छेद, भारत सरकार अधिनियम 1935 से लिए गए हैं।
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संविधान का निर्माण
भारत के स्वतंत्र होने के बाद इसका अपना कोई संविधान नहीं था। जो कानून उस समय विद्यमान थे, वे एक सामान्य कानून प्रणाली और “भारत सरकार अधिनियम, 1935” के एक संशोधित संस्करण पर आधारित थे, जिसे ब्रिटिश सरकार द्वारा लाया गया था। लगभग दो सप्ताह बाद डॉ. बी. आर. अंबेडकर की अध्यक्षता में भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने हेतु एक मसौदा समिति नियुक्त की गई और अंततः भारतीय संविधान 26 नवंबर, 1949 (संविधान दिवस) को तैयार हुआ और इसे स्वीकार किया गया। दो महीने बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ।
19 दिसंबर, 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में “पूर्ण स्वराज” या पूर्ण स्वशासन का एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया।
कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा यह घोषणा की गई थी कि 26 जनवरी, 1930 को भारतीयों द्वारा “स्वतंत्रता दिवस” के रूप में मनाया जाएगा।
कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर में रावी नदी के तट पर तिरंगा फहराया। इस दिन को अगले 17 वर्षों तक पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है।
इस प्रकार जब 26 नवंबर, 1949 को भारत के संविधान को अपनाया गया, और कई लोगों ने राष्ट्रीय गौरव से जुड़े इस दिन (26 जनवरी) पर कानूनी दस्तावेज़ को स्वीकार करना और लागू करना आवश्यक समझा। हम प्रतिवर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाते हैं।
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राष्ट्रीय पर्व –
हमारे देश में कई राष्ट्रीय पर्व मनाया जाते हैं- पहला 15 अगस्त जब हमारा देश आजाद हुआ था। दूसरा 26 जनवरी जब हमारे देश का संविधान लागू हुआ था । तीसरा 2 अक्टूबर गांधी जयंती, जब हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का जन्म हुआ था। इसके अलावा 14 नवंबर को हम बाल दिवस मनाते हैं भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के जन्मदिवस पर । इसी प्रकार 23 जनवरी को 2020 से पराक्रम दिवस मनाने की शुरुआत की गई , इस दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था। 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है, इस दिन भारत के आयरन मैन या लौह पुरुष कहलाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म हुआ था।
इसी प्रकार ऐसे अनेक शूरवीर, क्रांतिकारी, महापुरुष हुए हैं जिन्होंने इस देश को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने के लिए कई कुर्बानियां दी और डटकर हर कठिनाई का सामना किया। जिस वजह से आज हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं । इन्हीं की याद में, श्रद्धांजलि स्वरुप हम हर वर्ष अपने राष्ट्रीय त्योहारों को बड़े धूमधाम से मनाते हैं ।
26 जनवरी गणतंत्र दिवस का दिन भी पूरे भारत में देशभक्ति से पूरे जोश के साथ मनाया जाता है। देश की राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट के पास सैनिक परेड का आयोजन होता है । जिसमें थल सेना , जल सेना और वायु सेना की टुकड़ी परेड करती है। आकाश में वायु सेना अनेक करतब दिखाते हुए अपने साहस का परिचय देती हैं । यह नजारा अद्भुत होता है, जब पूरे भारत से हर राज्य से, एक झांकी इस परेड में अपने राज्य की विशेषता को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करती हैं। इस दिन हम भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हैं और देश को आजाद कराने वाले वीरों के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करते हैं। इस दिन हर शासकीय कार्यालयों, स्कूल-कॉलेजों में झंडा फहराया जाता है और राष्ट्रगान गाया जाता है । स्कूलों में रंगारंग कार्यक्रम होते हैं जिससे कि बच्चों में देशभक्ति की भावना का विकास हो और वे सदा देश की आजादी में शामिल उन क्रांतिकारियों, महापुरुषों के बलिदान को याद रखें और और देश की तरक्की में अपना योगदान दें।
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संविधान के मुख्य तथ्य
भारत के संविधान के निर्माण में कई देशों के संविधान से सहायता ली गई है। जिस प्रकार मधुमक्खी अनेक फूलों से रस चूस कर शहद बनाती है, उसी प्रकार हमारे संविधान निर्माताओं ने कई देशों के उपयोगी कानूनों और नियमों को संकलित कर हमारा संविधान तैयार किया।
- संयुक्त राज्य अमेरिका से प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायपालिका, हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के संचालन की प्रक्रिया ली गई।
- ब्रिटेन से एकल नागरिकता का प्रावधान लिया गया, संसदात्मक शासन प्रणाली ली गई और कानून निर्माण की प्रक्रिया भी ब्रिटेन से ली गई है।
- आयरलैंड से नीति निर्देशक सिद्धांतों को लिया गया है, इन सिद्धांतों के बारे में कहा जाता है कि यह किसी भी कल्याणकारी राज्य की नींव के परिचायक होते हैं यानी सामाजिक और आर्थिक प्रजातंत्र की स्थापना के उद्देश्य से इन्हें संविधान में स्थान दिया गया है।
- जर्मनी से आपातकालीन शक्तियां ली गई है। यानि देश में धन संकट उत्पन्न होने, आतंकवादी हमला या किसी भी अन्य प्रकार की प्रशासनिक समस्या होने पर राष्ट्रपति आपातकाल घोषित कर सकते हैं।
- कनाडा से संघात्मक शासन व्यवस्था की विशेषताएं ली गई है जिसके आधार पर हर राज्य का एक मुख्यमंत्री होता है और पूरे देश का एक प्रधानमंत्री होता है।
- दक्षिण अफ्रीका से संविधान संशोधन की प्रक्रिया का प्रावधान लिया गया है, ताकि भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर नए नियम और कानूनों को संविधान में जोड़ा जा सके।
- रूस से मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान शामिल किया गया है, जिस प्रकार नागरिकों को संविधान द्वारा अधिकार दिए गए हैं उसी प्रकार नागरिकों को कुछ कर्तव्य भी दिए गए हैं ।
लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां
कहने को भले ही भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है लेकिन इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में सरकार चलाने के लिए जनता की सहभागिता सुनिश्चित की जानी चाहिए और हर क्षेत्र में अवसर की क्षमता होनी चाहिए ऐसी कई बातें हमारे संविधान में वर्णित है, किंतु इन सबके बावजूद हमारा लोकतंत्र गत 75 वर्षों से अनेकों चुनौतियों का सामना कर रहा है-
चुनाव, जो कि लोकतंत्र की सबसे स्पष्ट अभिव्यक्ति के रूप में काम करते हैं, राजनेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा धन एवं बाहुबल के दुरुपयोग से प्रभावित हो रहे हैं।
अधिकांश राजनेताओं के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं; वहीं चुनाव के लिये धन का स्रोत संदिग्ध बना हुआ है।
चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवारों में भाई-भतीजावाद, परिवारवाद स्पष्ट देखने को मिल जाता है जिस वजह से योग्य व्यक्ति को मौका नहीं मिल पाता।
सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरवाद ने भारत में एक बहुत ही खतरनाक रूप और भयानक अनुपात हासिल कर लिया है। यह भारत की राष्ट्रवादी पहचान का अपमान है तथा इसकी उभरती धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के लिये दुखद है।
गरीबी वर्तमान भारत की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है, अधिकांश लोग गरीबी रेखा के नीचे अमीर एवं गरीब के बीच एक विशाल विभाजन के साथ जीवन यापन कर रहे हैं।
भारत, क्षेत्रवाद की चुनौतयों का सामना कर रहा है जो मुख्य रूप से क्षेत्रीय असमानताओं और विकास में असंतुलन का परिणाम है।
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उपसंहार
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में भारत ने दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में अपनी एक जगह बनाई है, लेकिन यह विकास के नाम पर बहुत पीछे छूट जाता है।
अत्याधिक जेंडर गैप, आर्थिक अवसरों में कमी तथा मज़दूरी में असमानता, हिंसा, कुपोषण आदि के साथ लैंगिक भेदभाव सभी स्तरों पर बना हुआ है। राज्य स्तर पर और राज्य के भीतर निरंतर असमानता के कारण उपेक्षा, अभाव और भेदभाव की भावना पैदा होती है।
हमारे गणतंत्र ने एक लंबा सफर तय किया है और हमें इस बात की सराहना करनी चाहिये कि नई पीढ़ियाँ इस गणतंत्र को कितनी दूर ले आई हैं।मात्रा से गुणवत्ता तक- उपलब्धि और सफलता के हमारे मानदंड को फिर से जाँचने की आवश्यकता है; ताकि इसे एक साक्षर समाज से एक ज्ञानी समाज की ओर ले जाया जा सके।
समावेश की भावना को अपनाए बिना भारत के विकास की कोई भी अवधारणा पूरी नहीं हो सकती है। भारत का बहुलवाद इसकी सबसे बड़ी ताकत है और दुनिया के लिये यह सबसे बड़ा उदाहरण है।
कहते हैं –
“अनेकता में एकता भारत की विशेषता।”
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