जनसंख्या वृद्धि पर निबंध

 

Hindi Essay Writing – जनसंख्या वृद्धि (Population Growth) 

 

जनसंख्या वृद्धि पर निबंध इस लेख हम जनसंख्या वृद्धि का अर्थ क्या है? जनसंख्या वृद्धि के कारण, दुष्प्रभाव, जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय आदि के बारे में जानेगे |

 

 
 

प्रस्तावना‌‌

 

भारत एक विकासशील देश है और यहां की जनसंख्या भी तेजी से विकास कर रही है । जनसंख्या वृद्धि के मामले में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है । पहले पायदान पर चीन है किंतु विशेषज्ञों का मानना है कि भारत शीघ्र ही चीन को पछाड़कर विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा किंतु यह जनसंख्या वृद्धि ठीक नहीं । इसके भयंकर दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। सीमित प्राकृतिक संसाधन और मनुष्य की असीमित आवश्यकताओं से असंतुलन का खतरा बढ़ रहा हैं।
 

 
 

जनसंख्या वृद्धि का अर्थ

 

जनसंख्या वृद्धि का अर्थ है किसी विशेष समय अंतराल में, जैसे 10 वर्षों के भीतर किसी देश या राज्य के निवासियों की संख्या में होने वाला परिवर्तन। इस प्रकार के परिवर्तन को दो प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है। पहला, सापेक्ष वृद्धि तथा दूसरा प्रति वर्ष होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के द्वारा।

यदि हम 2001 की जनगणना को, 2011 की जनगणना से घटाते हैं तो जो अंतर प्राप्त होता है, उसे निरपेक्ष वृद्धि कहते हैं। 

भारत में हर 10 वर्षों के अंतराल में जनगणना की जाती है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी। जो कि विश्व की कुल जनसंख्या का 17.5% है। जबकि दशकीय वृद्धि 17.7% है।

भारत में जनगणना की शुरुआत 1872 में लॉर्ड मेयो के कार्यकाल में हुई थी। भारत में नियमित जनगणना की शुरुआत 1881 में लॉर्ड रिपन के कार्यकाल में हुई थी।
 

 
 

विश्व में जनसंख्या की स्थिति

 

हम अभूतपूर्व जनसंख्या वृध्दि के युग में रह रहे हैं | बीसवीं सदी के मध्य में, संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के पाँच साल बाद, दुनिया की आबादी लगभग 2.5 अरब थी | तब से, विश्व की जनसँख्या के आकार में तीन गुना से भी ज्यादा वृध्दि हुई हैं, जो 2021 में लगभग 7.7 अरब हो चुकी है। इतना ही नहीं, अगले 30 वर्षों में दुनिया की जनसँख्या में 2 अरब लोगों की वृध्दि होने की उम्मीद है, जो वर्तमान में 7.7 अरब से बढ़कर 2050 में 9.7 अरब हो जाएगी | और 2100 के आसपास लगभग 11 अरब के शिखर पर पहुँच सकती हैं | इस साल जनसँख्या 8 अरब तक पहुँच जाएगी, जो कि एक चौंकाने वाली स्थिति होगी | 
 

 
 

जनसंख्या वृद्धि के कारण

 

  • जागरूकता में कमी – लोगों में इस बात की जागरूकता की कमी है कि जनसंख्या वृद्धि के क्या क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। कई रूढ़िवादी  परंपराओं और मान्यताओं के चलते लोग अपने परिवार को बढ़ाते जाते हैं और फलस्वरुप जनसंख्या में लगातार वृद्धि होती है। 
  • अशिक्षा – भारत की साक्षरता दर 73% है । इसमें भी पुरुष साक्षरता 80% जबकि महिला साक्षरता 64% है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में अभी भी अशिक्षा व्याप्त है और कई ग्रामीण इलाके ऐसे हैं जहां लोगों के पास शिक्षा प्राप्ति का कोई स्त्रोत ही नहीं है। इस वजह से भी आम नागरिकों में इस बात की जागरूकता का अभाव है कि बढ़ती जनसंख्या हमें कितने संकट में डाल सकती है या कितनी परेशानियां उत्पन्न कर सकती है।
  • ग़रीबी – गरीबी भी जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारणों में से एक है । एक गरीब,  अशिक्षित व्यक्ति की मानसिकता होती है – केवल अपना पेट भरना, दो वक्त की रोटी का गुजारा करना । इस कार्य के लिए उसे दो हाथ और मिल जाए तो इसमें बुराई क्या है? यही ओछी सोच जनसंख्या में वृद्धि का कारण बन जाती है। गरीब, भिखारी इसीलिए ज्यादा ‌बच्चे पैदा करते हैं ताकि उनसे भीख मंगवा सके और अपना पेट भर सके।
  • वंश वृद्धि – हम तेजी से आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, प्रतिदिन तकनीक में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं, किंतु इन सबके बावजूद कुछ मानसिकताएं ऐसी हैं जो आज भी 50 साल पुरानी ही है – बेटे की चाहत। हर परिवार के मुखिया को अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए वंश वृद्धि के लिए लड़के की कामना होती हैं। कुछ लोगों की सोच कभी नहीं बदलती और यही सोच वो अपनी अगली पीढ़ी को देते हैं। ज्यादातर लोगों का यह मानना होता है कि लड़की तो शादी के बाद दूसरे घर चली जाएगी, तो उनका वंश आगे कौन बढ़ाएगा इसीलिए भी ज्यादातर भारतीय घरों में देखा गया है कि बड़ी लड़कियां होने के बाद एक लड़का होता है। 
  • घटती मृत्यु दर – वर्तमान में विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि आज हर असंभव से असंभव बीमारी के इलाज को संभव कर दिखाया है। एक्स-रे, लेजर तकनीक के आ जाने से बड़े से बड़े ऑपरेशन आसानी से हो जाते हैं । भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का तेजी से विकास हुआ है और कई सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के चलते लोगों को निशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं, जिससे मृत्यु दर में कमी आई है । इस प्रकार यदि एक ओर अधिक उम्र वाले लोगों की मृत्यु नहीं हो रही तो दूसरी ओर लोग परिवार बढ़ाते जा रहे हैं तो फलस्वरुप जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। 

 

 
 

जनसंख्या वृद्धि के दुष्प्रभाव

 

  • संसाधनों में कमी– जनसंख्या के पालन पोषण के लिए प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है । किंतु प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा में है। इसी वजह से सरकारों को देश की जनता के कल्याण के लिए जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है उनकी पूर्ति नहीं हो पा रही है। इतनी तेजी से बढ़ती जनसंख्या को रहने के लिए आवास और खाने के लिए भोजन उपलब्ध करवाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
  • पर्यावरण पर प्रभाव – तेजी से जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण में परिवर्तन होते हैं। मनुष्य अपनी सुविधाओं के लिए पर्यावरण के संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग करता हैं। खेती करने के लिए जंगलों का नाश करता हैं और उद्योगों की स्थापना करता है। पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे पहाड़ी क्षेत्रों, उष्णकटिबंधीय जंगलों इत्यादि को कृषि कार्यों के लिये काटा जाता है। बढ़ती जनसंख्या वृद्धि से औद्योगीकरण के साथ बड़ी संख्या में शहरी क्षेत्रों का प्रवास/विकास होता है जिससे बड़े शहरों एवं कस्बों में प्रदूषित हवा, पानी, शोर इत्यादि में वृद्धि होती है।
  • बेरोज़गारी में वृद्धि 

बीते वर्षों में बेरोज़गार पुरुषों एवं महिलाओं की संख्या में तीव्र वृद्धि हुई है। क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में मौजूद युवाओं को रोजगार देने के लिए सरकार के पास पर्याप्त उपाय नहीं है। देश में हर साल लाखों की संख्या में बच्चे ग्रेजुएट होते हैं, किंतु इतनी ही संख्या में रोजगार के अवसरों का सृजन नहीं हो पा रहा हैं। 

  • खद्दानों पर प्रभाव – तेज़ी से बढ़ी हुई जनसंख्या के कारण भोजन एवं खाद्यानों के उपलब्ध स्टॉक पर दबाव बनता है। तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या वाले अल्प विकसित देशों को आम तौर पर भोजन की कमी की समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • सामाजिक प्रभाव– तीव्र जनसंख्या वृद्धि का मतलब श्रम बाजार में आने वाले व्यक्तियों की एक बड़ी संख्या से है। ऐसी स्थिति में बेरोज़गारी की समस्या और अधिक उत्पन्न हो सकती है। बेरोज़गारी के चलते व्यक्तियों के जीवन स्तर में गिरावट आएगी। जनसंख्या वृद्धि के कारण शिक्षा, आवास और चिकित्सा सहायता जैसी बुनियादी सुविधाओं पर और अधिक बोझ उत्पन्न होगा। 

 

 
 

जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय

 

जनसंख्या में कमी, अधिकतम समानता, बेहतर पोषण, सार्वभौमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे सभी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सरकारों और मज़बूत नागरिक सामाजिक संस्थाओं के बीच बेहतर सामंजस्य की आवश्यकता है।

महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार तथा उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना तथा अधिक बच्चों के जन्म देने के दृष्टिकोण को परिवर्तित करना। इत्यादि कुछ ऐसे उपाय है जिनके माध्यम से जनसंख्या वृद्धि की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। 

 

    • जागरूकता – कुछ सामाजिक कार्यक्रम जैसे नुक्कड़ नाटक सांस्कृतिक कार्यक्रम तरह-तरह की प्रतियोगिताओं के माध्यम से भी लोगों को जनसंख्या वृद्धि के कारण होने वाली समस्याओं की जानकारी देकर इसमें कमी लाई जा सकती है।
    • परिवार नियोजन कार्यक्रम –  परिवार नियोजन के उपायों को लोगों तक पहुंचाने के लिए इसका प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए। जिससे लोगों में जागरूकता की भावना उत्पन्न हो क्योंकि यह जनसंख्या वृद्धि के नियंत्रण एवं निवारण के लिए आवश्यक है। परिवार नियोजन संबंधित शिक्षा कापर-टी, नसबंदी गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन आदि की जानकारी देकर तथा इसका प्रचार करके जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण पाया जा सकता है। 
  • यौन शिक्षा – हम भले ही कितने आधुनिक होने का दिखावा करते किंतु हमारे समाज की सोच आज भी रूढ़ीवादी है। यौन शिक्षा यानि यौन संबंध किस तरह से बनाने चाहिए, क्या सावधानियां रखनी चाहिए, हम इस तरह की बातें करने में झिझकते हैं । लोग इस विषय पर खुलकर बात करने से कतराते हैं। इसी वजह से सही जानकारी के अभाव में असमय तथा अत्यधिक संख्या में बच्चे पैदा होते हैं । अतः ऐसी जानकारियों का प्रचार प्रसार कर जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • विवाह की उम्र बढ़ाना – भारत में तेजी से बढ़ती जनसंख्या का सबसे प्रमुख कारण है कम उम्र में विवाह होना। जल्दी विवाह होने से लड़कियां कम उम्र में ही मां बन जाती हैं और अधिक संख्या में संतानोत्पत्ति करती है। भारत में ऐसे कई इलाके हैं जहां बाल विवाह होता है अतः प्रशासन को बाल विवाह पर रोक लगानी चाहिए। साथ ही लड़के लड़कियों के विवाह की उम्र में वृद्धि करनी चाहिए। ताकि वे मानसिक रूप से परिपक्व हो और छोटे परिवार के महत्व को समझे।
  • महिलाओं को शिक्षित करना – 

हमारे देश में आज भी महिलाओं में जागरूकता की कमी है । महिलाओं को जागरूक व शिक्षित कर जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है। हमें स्त्रियों के आर्थिक स्वावलम्बन पर जोर देना होगा, उन्हें शिक्षित करना होगा‌। एक शिक्षित स्त्री ही जनसंख्या वृद्धि से होने वाले दुष्परिणामों को समझ सकती है और उन्हें नियंत्रित करने में अपना योगदान दे सकती है।
 

 
 

जनसंख्या और विकास

 

जनसंख्या और स्वास्थ्य किसी भी राष्ट्र की विकास प्रक्रिया की जड़ होते हैं और परिवार नियोजन एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्धारक के रूप में कार्य करता है | परिवार नियोजन के लाभ केवल जनसँख्या स्थिरीकरण तक सीमित नहीं हैं; बल्कि इनका महिलाओं, परिवारों और समुदायों के लिए अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने में प्रमुख योगदान हैं।  निरंतर तेजी से होने वाली जनसँख्या वृध्दि, सामाजिक और आर्थिक विकास को हासिल करने की चुनौती को बढ़ाती है और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक निवेश और प्रयास के पैमाने को बढ़ाती है कि कोई भी पीछे ना रहे | तीव्र जनसँख्या वृध्दि निम्न माध्यम आय वाले देशों के लिए प्रति व्यक्ति आधार पर सार्वजानिक व्यय में वृध्दि को और अधिक कठिन बना देती हैं, जो गरीबी उन्मूलन, भूख और कुपोषण को समाप्त करने और स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अन्य आवश्यक सेवाओं के लिए सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं। गरीबी और भूख को समाप्त करने, स्वास्थ्य, शिक्षा और अच्छे कार्य तक पहुँच से सम्बंधित सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और पर्यावरण चुनौतियों का समाधान करने की क्षमता का निर्माण करने के लिए, निम्न आय और निम्न मध्यम आय वाले देशों की अर्थव्यवस्थाओ को उनकी तुलना में कहीं अधिक तेजी से बढ़ने की आवश्यकता हैं । आबादी, बुनियादी ढांचे में अत्यधिक विस्तारित निवेश के साथ-साथ सभी क्षेत्रों में किफायती ऊर्जा और आधुनिक प्रोद्योगिकी तक पहुँच में वृध्दि की आवश्यकता हैं ।
 

 
 

विश्व जनसंख्या दिवस

 

हर वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। दरअसल इस दिन की स्थापना 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल द्वारा की गई थी। जब विश्व की आबादी 5 अरब तक पहुंची थी, इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से चिंता प्रकट की गई और तब बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने और परिवार नियोजन को लेकर लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए 11 जुलाई 1987 को “पाँच अरब दिवस” मनाने का फैसला किया गया और तभी से हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जा रहा है।
 

 
 

उपसंहार

 

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी 121 करोड़ थी तथा अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्तमान में यह 130 करोड़ को भी पार कर चुकी है, साथ ही वर्ष 2030 तक भारत की आबादी चीन से भी ज़्यादा होने का अनुमान है। ऐसे में भारत के समक्ष तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की वृद्धि सीमित है। इस स्थिति में जनसांख्यिकीय लाभांश जनसांख्यिकीय अभिशाप में बदलता जा रहा है। इसी स्थिति को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इस समस्या को दोहराया है। हालाँकि जनसंख्या वृद्धि ने कई चुनौतियों को जन्म दिया है किंतु इसके नियंत्रण के लिये क़ानूनी तरीका एक उपयुक्त कदम नहीं माना जा सकता। भारत की स्थिति चीन से पृथक है तथा चीन के विपरीत भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ हर किसी को अपने व्यक्तिगत जीवन के विषय में निर्णय लेने का अधिकार है। भारत में कानून का सहारा लेने के बजाय जागरूकता अभियान, शिक्षा के स्तर को बढ़ाकर तथा गरीबी को समाप्त करने जैसे उपाय करके जनसंख्या नियंत्रण के लिये प्रयास करने चाहिये। परिवार नियोजन से जुड़े परिवारों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये तथा ऐसे परिवार जिन्होंने परिवार नियोजन को नहीं अपनाया है उन्हें विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से परिवार नियोजन हेतु प्रेरित करना चाहिये।
 

 

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