Arth ki drishti se vakya bhed Class 9 | Arth Ki Drishti Se Vakya Examples | Vakya Ke Anivaary Tatv | Hindi Vyakaran
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Arth Ki Drishti Se Vakya Bhed (अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेद) – जैसा की हम जानते हैं कि किसी भी भाषा को जानने / समझने से पहले हमें उस भाषा के व्याकरण को समझना होता है। इस लेख में हम हिंदी व्याकरण के तीन खंडों वर्ण विचार, शब्द विचार और वाक्य विचार में से तीसरे खंड वाक्य विचार के बारे में जानकारी प्रदान करने की पूरी कोशिश करेंगे। विस्तार पूर्वक वाक्य विचार में वाक्यों की रचना, उनके भेद, वाक्य बनाने, वाक्यों को अलग करने, विराम चिन्हों, पद परिचय, वाक्य निर्माण, गठन, प्रयोग, उनके प्रकार आदि का अध्ययन करवाया जाता है।
इस लेख में हम अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेदों के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे। अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेदों को समझने के लिए आपको वाक्य किसे कहते हैं? वाक्यांश किसे कहते हैं? वाक्य के अनिवार्य तत्व? वाक्य के कितने भाग होते हैं? वाक्य के कितने भेद हैं? इन सभी के बारे में ज्ञात होना चाहिए। तभी आप अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेद करने में सक्षम हो पाएँगे। आपके सभी प्रश्नों को सरल भाषा में विस्तार पूर्वक हम इस लेख में जानेंगे –
सबसे पहले आपको वाक्य की जानकारी होनी चाहिए। तो चलिए पहले वाक्य के बारे में संक्षिप्त रूप में सम्पूर्ण जानकारी ले लेते हैं –
वाक्य की परिभाषा –
सार्थक शब्दों का ऐसा व्यवस्थित समूह जो पूरा आशय प्रकट करता है, वाक्य कहलाता है। अर्थात् जिस शब्द समूह से वक्ता (बात कहने वाला) अपने भाव को पूर्ण रूप से श्रोता (बात सुनने वाला) या पाठक के समक्ष व्यक्त कर सके, उस शब्द समूह को वाक्य कहते हैं।
सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि वह शब्द समूह जिससे पूरी बात समझ में आ जाये, ‘वाक्य’ कहलाता है। अपने मन के भाव – विचार प्रकट करने के लिए हम भाषा का सहारा लेते हैं और वाक्यों के रूप में प्रकट करते हैं। वाक्य शब्दों के मेल से बनते हैं जो अपने में कुछ न कुछ अर्थ छिपाए रहते हैं। अर्थ को पूर्ण रूप से किसी को समझने के लिए इन शब्दों को एक व्यवस्थित क्रम में रखा जाता है।
उदाहरण के लिए –
सत्य की विजय होती है।
विजय खेल रहा है।
बालिका नाच रही है।
उपरोक्त उदाहरण, "सत्य की विजय होती है। विजय खेल रहा है। बालिका नाच रही है।" वाक्य कहे जाते हैं क्योंकि इनका पूरा-पूरा अर्थ निकल रहा है। किन्तु यदि इन्ही वाक्यों को ‘सत्य विजय होती।’ ‘विजय खेल’ ‘बालिका रही’ इस तरह कहा जाए तो इन्हें वाक्य नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इनका अर्थ नहीं निकलता है तथा वाक्य होने के लिए किसी भी बात का पूर्ण अर्थ निकलना आवश्यक है।
अतः जो सार्थक शब्द समूह पूर्ण रूप से भावों को समझने में सक्षम हो वह वाक्य है।
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अब बात करते हैं वाक्यांश की।
वाक्यांश –
शब्दों के ऐसे समूह को जिसका अर्थ तो निकलता है किन्तु पूरा – पूरा अर्थ नहीं निकलता, वाक्यांश कहते हैं।
सरल शब्दों में आप कह सकते हैं कि वाक्यों के मध्य का कुछ भाग जो कुछ हद तक अर्थ समझा दे वह वाक्यांश कहलाया जाता है।
उदाहरण –
‘दरवाजे पर’
‘कोने में’
‘वृक्ष के नीचे’
इन सभी का अर्थ तो निकलता है किन्तु पूरा – पूरा अर्थ नहीं निकलता इसलिए ये वाक्य न हो कर वाक्यांश कहलायेंगे। अतः वाक्य का अंश वाक्यांश।
वाक्य के अनिवार्य तत्व –
वाक्य में निम्नलिखित छः तत्व अनिवार्य है –
(1) सार्थकता
(2) योग्यता
(3) आकांक्षा
(4) निकटता
(5) पदक्रम
(6) अन्वय
(1) सार्थकता –
वाक्य में सार्थक पदों का प्रयोग होना चाहिए। निरर्थक शब्दों के प्रयोग से भावाभिव्यक्ति नहीं हो पाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर आप वाक्य में बिना अर्थ के शब्दों का प्रयोग करेंगे तो जो भाव आप किसी को बताना चाहते है वह दूसरे व्यक्ति को समझ नहीं आ पायेगा। बावजूद इसके कभी-कभी निरर्थक से लगने वाले पद भी भाव अभिव्यक्ति करने के कारण वाक्यों का गठन कर बैठते है।
जैसे –
तुम बहुत बक-बक कर रहे हो। चुप भी रहोगे या नहीं ?
इस वाक्य में ‘बक-बक’ निरर्थक-सा लगता है ; परन्तु अगले वाक्य से अर्थ समझ में आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है।
(2) योग्यता –
वाक्यों की पूर्णता के लिए उसके पदों, पात्रों, घटनाओं आदि का उनके अनुकूल ही होना चाहिए। अर्थात वाक्य लिखते या बोलते समय निम्नलिखित बातों पर निश्चित रूप से ध्यान देना चाहिए-
(i) पद प्रकृति-विरुद्ध नहीं होने चाहिए – हर एक पद की अपनी प्रकृति (स्वभाव/धर्म) होती है। यदि कोई कहे कि मैं आग खाता हूँ। हाथी ने दौड़ में घोड़े को पछाड़ दिया।
उक्त वाक्यों में पदों की प्रकृतिगत योग्यता की कमी है। आग खायी नहीं जाती। हाथी घोड़े से तेज नहीं दौड़ सकता।
इसी जगह पर यदि कहा जाए –
मैं आम खाता हूँ।
घोड़े ने दौड़ में हाथी को पछाड़ दिया।
तो दोनों वाक्यों में योग्यता आ जाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि आपको कभी भी कोई असंभव बात नहीं कहनी है क्योंकि किसी भी असंभव बात को वाक्य की श्रेणी में नहीं रखा जाता।
(ii) बात – समाज, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि विरुद्ध नहीं होनी चाहिए – वाक्य की बातें समाज, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि सम्मत होनी चाहिए; ऐसा नहीं कि जो बात हम कह रहे हैं, वह इतिहास आदि विरुद्ध है।
जैसे –
महाभारत 25 दिन तक चला।
भारत के उत्तर में श्रीलंका है।
उपरोक्त वाक्यों को वाक्य नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये इतिहास और भूगोल के विरुद्ध है।
(3) आकांक्षा –
आकांक्षा का अर्थ है – इच्छा। एक पद को सुनने के बाद दूसरे पद को जानने की इच्छा ही ‘आकांक्षा’ है। यदि वाक्य में आकांक्षा शेष रहा जाती है तो उसे अधूरा वाक्य माना जाता है; क्योंकि उससे अर्थ पूर्ण रूप से अभिव्यक्त नहीं हो पाता है।
जैसे – यदि कहा जाए। ‘खाता है’ तो स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि क्या कहा जा रहा है- किसी के भोजन करने की बात कही जा रही है या Bank के खाते के बारे में?
(4) निकटता –
बोलते तथा लिखते समय वाक्य के शब्दों में परस्पर निकटता का होना बहुत आवश्यक है, रूक-रूक कर बोले या लिखे गए शब्द वाक्य नहीं बनाते। अतः वाक्य के पद निरंतर प्रवाह में पास-पास बोले या लिखे जाने चाहिए।
जैसे –
(गंगा ……………….. पश्चिम ……………….. से …………………………………. पूरब ……………….. की ओर ……………….. बहती है।)
गंगा पश्चिम से पूरब की ओर बहती है।
घेरे के अन्दर पदों के बीच की दूरी और समयान्तराल असमान होने के कारण वे अर्थ-ग्रहण खो देते हैं; जबकि नीचे उन्हीं पदों को समान दूरी और प्रवाह में रखने के कारण वे पूर्ण अर्थ दे रहे हैं।
अतएव, वाक्य को स्वाभाविक एवं आवश्यक बलाघात आदि के साथ बोलना पूर्ण अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक है।
(5) पदक्रम –
वाक्य में पदों का एक निश्चित क्रम होना चाहिए। जैसे यदि कहा जाए – ‘सुहावनी है रात होती चाँदनी’ इसमें पदों का क्रम व्यवस्थित न होने से इसे वाक्य नहीं मानेंगे। इसे इस प्रकार होना चाहिए- ‘चाँदनी रात सुहावनी होती है’।
(6) अन्वय –
अन्वय का अर्थ है – मेल। वाक्य में लिंग, वचन, पुरुष, काल, कारक आदि का क्रिया के साथ ठीक-ठीक मेल होना चाहिए।
जैसे – ‘बालक और बालिकाएँ गई’, इसमें कर्ता क्रिया अन्वय ठीक नहीं है। अतः शुद्ध वाक्य होगा ‘बालक और बालिकाएँ गए’।
वाक्य के भाग –
वाक्य के दो भाग होते है –
(1) उद्देश्य
(2) विधेय
(1) उद्देश्य –
वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाए उसे उद्देश्य कहते हैं। सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि जिसके बारे में कुछ बताया जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं।
जैसे-
पूनम किताब पढ़ती है।
सचिन दौड़ता है।
इन वाक्यों में पूनम और सचिन के विषय में बताया गया है। अतः ये उद्देश्य है।
(2) विधेय –
उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते है।
जैसे-
पूनम किताब पढ़ती है।
इस वाक्य में ‘किताब पढ़ती’ है विधेय है क्योंकि पूनम (उद्देश्य) के विषय में कहा गया है।
सरल शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि वाक्य के कर्ता (उद्देश्य) को अलग करने के बाद वाक्य में जो कुछ भी शेष रह जाता है, वह विधेय कहलाता है। इसके अंतर्गत विधेय का विस्तार आता है।
विधेय के भाग-
विधेय के छः भाग होते है-
(i) क्रिया
(ii) क्रिया के विशेषण
(iii) कर्म
(iv) कर्म के विशेषण या कर्म से संबंधित शब्द
(v) पूरक
(vi) पूरक के विशेषण।
नीचे की तालिका से उद्देश्य तथा विधेय सरलता से समझा जा सकता है-
वाक्य |
उद्देश्य |
विधेय |
गाय घास खाती है |
गाय |
घास खाती है। |
सफेद गाय हरी घास खाती है। |
सफेद गाय |
हरी घास खाती है। |
सफेद – कर्ता विशेषण
गाय – कर्ता (उद्देश्य)
हरी – विशेषण कर्म
घास – कर्म (विधेय)
खाती है – क्रिया (विधेय)
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वाक्य के भेद –
वाक्य भेद दो प्रकार से किए जा सकते हैं –
1 – रचना के आधार पर वाक्य भेद
2 – अर्थ के आधार पर वाक्य भेद
रचना के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते है-1 – साधारण वाक्य या सरल वाक्य
2 – संयुक्त वाक्य
3 – मिश्र वाक्य
अर्थ के आधार पर वाक्य भेद –
अर्थ के आधार पर वाक्य मुख्य रूप से आठ प्रकार के होते है-
I. संदेह वाचक वाक्य
II. निषेधात्मक वाक्य
III. प्रश्न वाचक वाक्य
IV. आज्ञा वाचक वाक्य
V. संकेत वाचक वाक्य
VI. विस्मयादिबोधक वाक्य
VII. विधान वाचक वाक्य
VIII. इच्छा वाचक वाक्य
(i) संदेह वाचक वाक्य –
जिन वाक्यों में संदेह का बोध होता है, उन्हें संदेह वाचक वाक्य कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि ऐसे वाक्य जिनके शत – प्रतिशत होने पर कोई शक हो या जिन वाक्यों पर पूर्ण रूप से सही न कहा जाए, वह वाक्य संदेह वाचक वाक्य कहलाते हैं।
संदेह वाचक वाक्य के उदाहरण –
आज बहुत तेज़ बारिश हो सकती है।
ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसे कि आप देख सकते है की यहां हमें बारिश होने की संभावना का बोध हो रहा है। यहां हमें निश्चित नहीं पता है की बारिश आएगी या नहीं लेकिन हमें बस संभावना का बोध हो रहा है। अतः यह उदाहरण संदेह वाचक वाक्य के अंतर्गत आएगा।
संदेह वाचक वाक्य के कुछ अन्य उदाहरण –
शायद आज राम रावण का वध करेगा।
संभवतः वह सुधर गया।
शायद मोहन मान जाए।
शायद वह अभी तक नहीं पहुंचा है।
क्या वह यहाँ आ गया ?
क्या उसने काम कर लिया ?
(ii) निषेधात्मक वाक्य –
जिन वाक्यों में किसी काम के न होने या न करने का बोध हो उन्हें निषेधात्मक वाक्य कहते है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जिन वाक्यों से कार्य के निषेध का बोध होता है, वह वाक्य निषेध वाचक वाक्य कहलाते हैं।
निषेध वाचक वाक्य के उदाहरण –
मैं घर नहीं जाऊँगा।
ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं, यहां हमें किसी कार्य के ना होने का बोध हो रहा है। वक्ता किसी काम को करने से मना कर रहा है। अतः यह उदाहरण निषेध वाचक वाक्य के अंतर्गत आएगा।
निषेध वाचक वाक्य के कुछ अन्य उदाहरण –
मैं आज खाना नहीं खाऊंगा।
राम आज स्कूल नहीं जाएगा।
रमन आज खेलने नहीं आएगा।
राम आज रावण को नहीं मारेगा।
रावण आज सीता का अपहरण नहीं करेगा।
बसंती गब्बर के सामने नहीं नाचेगी।
आज वह फिल्म टीवी पे नहीं आएगी।
आज हम घूमने नहीं जायेंगे।
(iii) प्रश्नवाचक वाक्य –
इसके नाम से ही पता चल रहा है की यह प्रश्नों से सम्बंधित है। अतः जिन वाक्यों में कोई प्रश्न किया जाए या किसी से कोई बात पूछी जाए, उन्हें प्रश्न वाचक वाक्य कहते हैं। इन वाक्यों से किसी वास्तु या व्यक्ति के बारे में प्रश्न पूछकर उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की जाती है। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि प्रश्न वाचक वाक्य के बाद प्रश्न वाचक चिन्ह (?) लगता है। बिना प्रश्न वाचक चिन्ह के प्रश्न वाचक वाक्य पूर्ण या शुद्ध नहीं कहा जाता।
प्रश्न वाचक वाक्य के उदहारण –
तुम स्कूल कब जाओगे ?
जैसा की आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं की यहां स्कूल जाने के समय के बारे में पूछा जा रहा है। जैसा की हम जानते हैं की जब कोई भी प्रश्न पूछा जाता है तो वह वाक्य प्रश्न वाचक हो जाता है। अतः यह उदाहरण प्रश्न वाचक वाक्य के अंतर्गत आएगा।
प्रश्न वाचक वाक्यों के कुछ अन्य उदाहरण –
तुम कौन से देश में रहते हो ?
राम रावण का वध कब करेगा ?
बसंती कब नाचेगी ?
हनुमान भगवान संजीवनी लेने कब जाएंगे ?
यह फिल्म कब ख़त्म होगी ?
तुम क्या खाना पसंद करोगे ?
(iv) आज्ञा वाचक वाक्य –
जिन वाक्यों से आज्ञा, प्रार्थना, उपदेश आदि का ज्ञान होता है, उन्हें आज्ञा वाचक वाक्य कहते है। दूसरे शब्दों में ऐसे वाक्य जिनमें आदेश, आज्ञा या अनुमति का पता चले या बोध हो, वे वाक्य आज्ञा वाचक वाक्य कहलाते हैं।
आज्ञा वाचक वाक्य के उदाहरण –
यह पाठ तुम्हे पढ़ना होगा।
जैसा की आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं की यहां किसी व्यक्ति को पाठ पढ़ने का आदेश दिया जा रहा है। जैसा की हम जानते हैं की जब भी आदेश दिया जाता है, तो वह आज्ञा वाचक होता है। अतः यह उदाहरण आज्ञा वाचक वाक्य के अंतर्गत आयेगा।
आज्ञा वाचाक वाक्य के कुछ अन्य उदाहरण –
वहां जाकर बैठिये।
कृपया अपनी मदद स्वयं करिये।
कृपया शान्ति बनाये रखें।
कृपया बैठ जाइये।
कृपया शान्ति बनाये रखें।
तुम वहाँ जा सकते हो।
(v) संकेत वाचक वाक्य –
जिन वाक्यों से शर्त (संकेत) का बोध होता है यानी एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर होता है, उन्हें संकेत वाचक वाक्य कहते है। दूसरे शब्दों में वे वाक्य जिनसे हमें एक क्रिया का दूसरी क्रिया पर निर्भर होने का बोध हो, ऐसे वाक्य संकेत वाचक वाक्य कहलाते हैं।
संकेत वाचक वाक्य के उदाहरण –
अगर आज तुम जल्दी उठ जाते तो स्कूल के लिए लेट नहीं होते।
जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं की जल्दी उठने की क्रिया स्कूल समय से पहुँचने की और संकेत कर रही है। एक क्रिया को दूसरी करया पर निर्भर दिखाया जा रहा है। अतः यह उदाहरण संकेत वाचक वाक्य के अंतर्गत आएगा।
संकेत वाचक वाक्य के कुछ अन्य उदाहरण –
अगर हम थोड़ा ओर तेज़ चलते तो बस नहीं छूटती।
अगर तुम समय बर्बाद नहीं करते तो तुम्हारा ये हाल नहीं होता।
यदि परिश्रम करोगे तो अवश्य सफल होंगे।
पिताजी अभी आते तो अच्छा होता।
अगर तुम परिश्रम करते तो आज सफल हो जाते।
अगर बारिश अच्छी होती तो फसल भी अच्छी होती।
(vi) विस्मयादिबोधक वाक्य –
जिन वाक्यों में आश्चर्य, शोक, घृणा आदि का भाव ज्ञात हो उन्हें विस्मयादिबोधक वाक्य कहते है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि ऐसे वाक्य जिनमें हमें आश्चर्य, शोक, घृणा, अत्यधिक ख़ुशी, स्तब्धता आदि भावों का बोध हो, ऐसे वाक्य विस्मयादिबोधक वाक्य कहलाते हैं।
इन वाक्यों में जो शब्द विस्मय के होते हैं उनके पीछे विस्मयसूचक चिन्ह (!) लगता है। इस चिन्ह से हम इस वाक्य की पहचान कर सकते हैं।
विस्मयादिबोधक वाक्य के उदाहरण –
वह ! कितना सुन्दर बगीचा है।
जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं, यहां वक्ता बगीचे की सुंदरता से हैरान हो गया है। यह भाव भी विस्मयादिबोधक के अंतर्गत आएगा। इसकी पहचान भूम विस्मयसूचक चिन्ह से भी कर सकते हैं। अतः यह उदाहरण विस्मयबोधक वाक्य के अंतर्गत आएगा।
विस्मयादिबोधक वाक्य के कुछ अन्य उदाहरण –
ओह ! कितनी ठंडी रात है।
बल्ले ! हम जीत गए।
क्या ! भारत जीत गया।
अरे ! तुम लोग कब पहुंचे।
हे भगवान ! ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है।
हाय ! मैं तो लूट गया।
अरे ! तुम कब आये।
(vii) विधान वाचक वाक्य –
जिन वाक्यों में क्रिया के करने या होने की सूचना मिले, उन्हें विधान वाचक वाक्य कहते है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि ऐसे वाक्य जिनसे किसी काम के होने या किसी के अस्तित्व का बोध हो, वह वाक्य विधान वाचक वाक्य कहलाता है। विधान वाचक वाक्यों को विधि वाचक वाक्य भी कहा जाता है।
सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि जिस वाक्य के द्वारा किसी काम का करना या स्थिति का होना पाया जाए या एक सरल वाक्य , जिसमें कर्ता , कर्म और क्रिया हो उसे विधान वाचक वाक्य कहते है।
विधान वाचक वाक्य के उदाहरण –
हिमालय भारत के उत्तर में स्थित है।
जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं, हमें हिमालय पर्वत के भारत का उत्तर में स्थित होने का बोध हो रहा है। यानी यह हमें किसी चीज़ का अस्तित्व बता रहा है। अतः यह उदाहरण विधान वाचक वाक्य के अंतर्गत आएगा।
विधान वाचक वाक्य के कुछ अन्य उदाहरण –
ममता ने खाना खा लिया।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है।
भारत हमारा देश है।
राम ने खाना खा लिया।
राम के पिता का नाम दशरथ है।
राधा स्कूल चली गयी।
मनीष ने पानी पी लिया।
अयोध्या के राजा का नाम दशरथ है।
(viii) इच्छा वाचक वाक्य –
जिन वाक्यों से इच्छा, आशीष एवं शुभकामना आदि का ज्ञान होता है, उन्हें इच्छा वाचक वाक्य कहते है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि ऐसे वाक्य जिनसे हमें वक्ता की कोई इच्छा, कामना, आकांशा, आशीर्वाद आदि का बोध हो, वह वाक्य इच्छा वाचक वाक्य कहलाते हैं।
इच्छावाचक वाक्य के उदाहरण –
आज तो मैं केवल फल खाऊँगा।
जैसा की हम ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं, हमें वक्ता की इच्छा के बारे में पता चल रहा है। वह निश्चय कर रहा है की आज वह सिर्फ फल खायेगा। अतः यह उदाहरण इच्छा वाचक वाक्य के अंतर्गत आएगा।
इच्छा वाचक वाक्य के कुछ अन्य उदाहरण
ईश्वर करे सब कुशल लौटें।
भगवान तुम्हे दीर्घायु करें।
भगवान करे तुम एक दिन कुत्ते की मौत मरो।
दूधों नहाओ, पूतों फलो।
नववर्ष मंगलमय हो।
तुम्हारा कल्याण हो।
भगवान तुम्हें लंबी उमर दे।
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