CBSE Class 10 Hindi Chapter 7 “Atamtran”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Sparsh Bhag 2 Book
आत्मत्राण – Here is the CBSE Class 10 Hindi Sparsh Bhag 2 Chapter 7 Atamtran Summary with detailed explanation of the lesson ‘Atamtran’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary.
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- आत्मत्राण पाठ प्रवेश
- आत्मत्राण पाठ की व्याख्या
- आत्मत्राण पाठ सार
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कक्षा 10 हिंदी पाठ 7 आत्मत्राण (कविता)
कवि परिचय
कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जन्म – 6 मई 1861 ( बंगाल )
मृत्यु – 1941
आत्मत्राण पाठ प्रवेश
यदि कोई तैरना सीखना चाहता है तो कोई उसको पानी में उतरने में मदद तो कर सकता है ,उसको डूबने का डर ना रहे इसलिए उसके पास भी बना रह सकता है परन्तु जब तैरना सिखने वाला पानी में हाथ – पैर चलायेगा तभी वो तैराक बनेगा। परीक्षा जाते समय व्यक्ति बड़ों के आशीर्वाद की कामना करता ही है ,और बड़े आशीर्वाद देते भी हैं लेकिन परीक्षा तो उसे खुद ही देनी होती है। इसी तरह जब दो पहलवान कुश्ती लड़ते हैं तब उनका उत्साह तो सभी लोग बढ़ाते हैं जिससे उनका मनोबल अर्थात हौंसला बढ़ता है। मगर कुश्ती तो उन्हें खुद ही लड़नी पड़ती है।
Atamtran Class 10 Video Explanation
प्रस्तुत पाठ में कविगुरु मानते हैं कि प्रभु में सबकुछ संभव करने की ताकत है फिर भी वह बिलकुल नहीं चाहते की वही सब कुछ करे। कवि कामना करते हैं कि किसी भी आपदा या विपदा में ,किसी भी परेशानी का हल निकालने का संघर्ष वो स्वयं करे ,प्रभु को कुछ भी न करना पड़े। फिर आखिर वो अपने प्रभु से चाहते क्या हैं।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर की प्रस्तुत कविता का बंगला से हिंदी अनुवाद श्रद्धेय आचार्य हरी प्रसाद द्विवेदी ने किया है। द्विवेदी जी का हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में बहुत बड़ा योगदान है। यह अनुवाद बताता है कि अनुवाद कैसे मूल रचना की ‘आत्मा ‘ को ज्यों का त्यों बनाये रखने में सक्ष्म है।
आत्मत्राण पाठ सार
इस कविता के कवि ‘कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ‘ हैं। इस कविता का बंगला से हिंदी रूपांतरण आचार्य हरी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। इस कविता में कविगुरु ईश्वर से अपने दुःख दर्द कम न करने को कह रहे है। वे उनसे दुःख दर्दों को झेलने की शक्ति मांग रहे हैं। कविगुरु ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी भी परिस्थिति में मेरे मन में आपके प्रति संदेह न हो। कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु ! दुःख और कष्टों से मुझे बचा कर रखो में तुमसे ऐसी कोई भी प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं तो सिर्फ तुमसे ये चाहता हूँ कि तुम मुझे उन दुःख तकलीफों को झेलने की शक्ति दो। उन कष्टों के समय में मैं कभी ना डरूँ और उनका सामना करूँ। मुझमें इतना आत्मविश्वास भर दो कि मैं हर कष्ट पर जीत हासिल कर सकूँ। मेरे कष्टों के भार को भले ही कम ना करो और न ही मुझे तसल्ली दो। आपसे केवल इतनी प्रार्थना है की मेरे अंदर निर्भयता भरपूर डाल दें ताकि मैं सारी परेशानियों का डट कर सामना कर सकूँ। सुख के दिनों में भी मैं आपको एक क्षण के लिए भी ना भूलूँ अर्थात हर क्षण आपको याद करता रहूं। दुःख से भरी रात में भी अगर कोई मेरी मदद न करे तो भी मेरे प्रभु मेरे मन में आपके प्रति कोई संदेह न हो इतनी मुझे शक्ति देना।
आत्मत्राण की पाठ व्याख्या
काव्यांश 1
विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।
दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।।
शब्दार्थ
विपदा – विपत्ति ,मुसीबत
करुणामय – दूसरों पर दया करने वाला
दुःख-ताप – कष्ट की पीड़ा
व्यथित – दुःखी
चित्त – मन
सांत्वना – दिलासा
सहायक – मददगार
पौरुष – पराक्रम
वंचना – वंचित
क्षय – नाश
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘से ली गई हैं। इसके कवि ‘कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ‘ हैं। इन पंक्तियों का बंगला से हिंदी रूपांतरण आचार्य हरी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। इन पंक्तियों में कविगुरु ईश्वर से अपने दुःख दर्द कम न करने को कह रहे है वे उन दुःख दर्दों को झेलने की शक्ति मांग रहे हैं।
व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु ! दुःख और कष्टों से मुझे बचा कर रखो,मैं तुमसे ऐसी कोई भी प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं तो सिर्फ तुमसे ये चाहता हूँ कि तुम मुझे उन दुःख तकलीफों को झेलने की शक्ति दो। कष्टों के समय में मैं कभी ना डरूँ और उनका सामना करूँ। दुःख की पीड़ा से दुःखी मेरे मन को आप हौंसला मत दो परन्तु हे प्रभु ! मुझमें इतना आत्मविश्वास भर दो कि मैं हर कष्ट पर जीत हासिल कर सकूँ। कष्टों में कहीं कोई सहायता करने वाला भी ना मिले तो कोई बात नहीं परन्तु वैसी स्थिति में मेरा पराक्रम कम नहीं होना चाहिए। मुझे अगर इस संसार में हानि भी उठानी पड़े और लाभ से हमेशा वंचित ही रहना पड़े तो भी कोई बात नहीं पर मेरे मन की शक्ति का कभी नाश नहीं होना चाहिए अर्थात मेरा मन हर परिस्थिति में आत्मविश्वास से भरा रहना चाहिए।
काव्यांश 2
मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणायम)
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय-
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।
शब्दार्थ
त्राण – भय निवारण ,बचाव
अनुदिन – प्रतिदिन
तरने – पार करना
अनामय – रोग रहित
लघु – कम
सांत्वना – हौसला ,तसली देना
अनुनय- विनय
वहन – सामना करना
निर्भय – बिना डर के
नत शिर – सिर झुका कर
दुःख-रात्रि – दुःख से भरी रात
निखिल – सम्पूर्ण
संशय – संदेह
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘से ली गई हैं। इसके कवि ‘कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ‘ हैं। इन पंक्तियों का बंगला से हिंदी रूपांतरण आचार्य हरी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। इन पंक्तियों में कविगुरु ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी भी परिस्थिति में मेरे मन में आपके प्रति संदेह न हो।
व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु ! मेरी आपसे यह प्रार्थना नहीं है कि आप प्रतिदिन मुझे भय से दूर रखें। आप केवल मुझे निरोग अर्थात स्वस्थ रखें ताकि मैं अपनी शक्ति के सहारे इस संसार रूपी सागर को पार कर सकूँ। मेरे कष्टों के भार को भले ही कम ना करो और न ही मुझे तसली दो। आपसे केवल इतनी प्रार्थना है की मेरे अंदर निर्भयता भरपूर डाल दें ताकि मैं सारी परेशानियों का डट कर सामना कर सकूँ। सुख के दिनों में भी मैं आपको एक क्षण के लिए भी ना भूलूँ अर्थात हर क्षण आपको याद करता रहूं। दुःख से भरी रात में भी अगर कोई मेरी मदद न करे तो भी मेरे प्रभु मेरे मन में आपके प्रति कोई संदेह न हो इतनी मुझे शक्ति देना।
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