बिहारी के दोहे – Bihari Ke Dohe Class 10, Explanation, Summary, Difficult words meaning of Dohe (Bihari ke Dohe) Class 10
बिहारी के दोहे CBSE Class 10 Hindi Lesson summary with a detailed explanation of the lesson ‘Dohe‘ by Bihari along with meanings of difficult words.
Given here is the complete explanation of the lesson Bihari Ke Dohe Class 10, along with a summary and all the exercises, Question and Answers given at the back of the lesson
Class 10 Hindi Chapter 3 Bihari Ke Dohe
कक्षा 10 हिंदी पाठ 3 बिहारी के दोहे
- See Video Explanation of Hindi Chapter 3 Dohe – Bihari ke Dohe
- दोहे पाठ प्रवेश (Dohe Introduction)
- दोहे पाठ की व्याख्या
- बिहारी के दोहे पाठ सार
- बिहारी के दोहे NCERT Solutions (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )
- Bihari ke Dohe Question Answers with Extra Questions
- Bihari ke Dohe MCQ Questions with Answers
कवि परिचय
कवि – बिहारी
जन्म – 1595 (ग्वालियर )
मृत्यु – 1663
Bihari Dohe Class 10 Video Explanation
बिहारी के दोहे पाठ प्रवेश
मांजी,पौंछी,चमकाइ ,युत -प्रतिभा जतन अनेक।
दीरघ जीवन ,विविध सुख ,रची ‘सतसई ‘ एक।।
अर्थात मांज कर ,पौंछ कर और चमका कर अनेक प्रयास करने के बाद ऐसी प्रतिभा सामने आइ हैं ,लंबा जीवन, अनेक सुख वाले बिहारी ने एक ग्रंथ ‘बिहारी सतसई ‘की रचना की। ‘बिहारी सतसई ‘में सात सौ दोहे हैं। दोहा जैसे छोटे से छंद में गहरे अर्थों को कहने के कारण कहा जाता है कि बिहारी थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहने में माहिर थे। उनके दोहों के अर्थों की गंभीरता को देखकर कहा जाता है कि
सतसैया के दोहरे ,ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगै ,घाव करें गंभीर।।
अर्थात सतसई के दोहे ऐसे हैं जैसे किसी मधुमक्खी का डंक ,जो देखने में तो छोटा लगता है लेकिन घाव बहुत गहरा देता है।
बिहारी की भाषा ब्रज भाषा है। सतसई में मुख्यतः प्रेम और भक्ति को दर्शाने वाले दोहे हैं। बिहारी मुख्य रूप से श्रृंगार रस के लिए जाने जाते हैं। इस पाठ में बिहारी के कुछ दोहे दिए जा रहे हैं। इन दोहों में श्रृंगार के साथ – साथ लोक – व्यवहार , नीति ज्ञान आदि विषयों का वर्णन भी किया गया है। इन दोहों से आपको भी ज्ञात होगा कि बिहारी कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ भरने की कला भली भांति जानते हैं।
बिहारी के दोहे पाठ सार
प्रस्तुत दोहे कविवर बिहारी द्वारा रचित ग्रन्थ ‘बिहारी सतसई ‘से लिए गए हैं। इसमें कवि ने भक्ति ,नीति व् श्रृंगार भाव का सुन्दर मेल प्रस्तुत किया है। पहले दोहे में कवि कहते हैं कि श्री कृष्ण के नीलमणि रूपी साँवले शरीर पर पीले वस्त्र रूपी धूप अत्यधिक शोभित हो रही है। दूसरे दोहे में कवि भयंकर गर्मी का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गर्मी के कारण जंगल तपोवन बन गया है जहाँ सभी जानवर आपसी द्वेष भुलाकर एक साथ बैठे हैं। तीसरे दोहे में कवि गोपियों की श्री कृष्ण के साथ बात करने की उत्सुकता को प्रकट करते हैं और कहते हैं कि गोपियों ने श्री कृष्ण की बाँसुरी को चुरा लिया है। चौथे दोहे में कवि नायक और नायिका द्वारा भीड़ में भी किस तरह आँखों ही आँखों में बात की जाती है इस बात का वर्णन करते हैं। पांचवें दोहे में कवि जून के महीने की भीषण गर्मी का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गर्मी इतनी अधिक बढ़ गई है कि छाया भी छाया ढूंढ़ने के लिए घने जंगलों व घरों में छिप गई है। छठे दोहे में कवि कहते हैं कि नायिका नायक को सन्देश भेजना चाहती है परन्तु अपनी विरह दशा का वर्णन कागज़ पर नहीं कर पा रही है न ही किसी को बता पा रही है वह चाहती है कि नायक उसकी विरह दशा का अनुमान स्वयं लगाए। सातवे दोहे में कवि श्री कृष्ण से कहते हैं कि आप चन्द्रवंश में पैदा हुए हो और स्वयं ब्रज आये हो। कवि श्री कृष्ण की तुलना अपने पिता से कर रहे हैं और कहते हैं कि आप मेरे पिता के समान हैं ,अतः मेरे सारे कष्ट नष्ट कर दो। अन्तिम दोहे में कवि आडम्बर से बचने व ईश्वर की सच्ची भक्ति करने को कहते हैं और बताते हैं कि सच्ची भक्ति से ही ईश्वर प्रसन्न होते हैं।
बिहारी के दोहे पाठ की व्याख्या
काव्यांश 1)
सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम ,सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि -सैल पर आतपु परयौ प्रभात।।
शब्दार्थ
सोहत – अच्छा लगना
ओढ़ैं – ओढ़ कर
पितु – पीला
पटु – कपड़ा
गात – शरीर
नीलमनि -सैल — नीलमणि का पर्वत
आतपु – धूप
प्रभात- सुबह
प्रसंग –: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘ से लिया गया है। इसमें कवि ने श्री कृष्ण के रूप सौन्दर्य का वर्णन किया है।
व्याख्या –: इस दोहे में कवि ने श्री कृष्ण के साँवले शरीर की सुंदरता का बखान किया है। कवि कहते हैं कि श्री कृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र बहुत अच्छे लग रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे नीलमणि पर्वत पर प्रातः काल की धूप पड़ रही हो। यहाँ पर श्री कृष्ण के साँवले शरीर को नीलमणि पर्वत तथा पीले वस्त्र ,सूर्य की धूप को कहा गया है।
काव्यांश 2)
कहलाने एकत बसत अहि मयूर ,मृग बाघ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ -दाघ निदाघ।।
शब्दार्थ
अहि – साँप
एकत – इकठ्ठे
बसत – रहते हैं
मृग – हिरण
तपोबन – वह वन जहाँ तपस्वी रहते हैं
दीरघ – दाघ — भयंकर गर्मी
निदाघ – ग्रीष्म
प्रसंग –: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘ से लिया गया है। इसमें कवि ग्रीष्म ऋतु का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या –: इस दोहे में कवि कहते हैं कि भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और साँप एक साथ बैठे हैं,हिरण और शेर एक साथ बैठे हैं। कवि कहते हैं की गर्मी के कारण जंगल तपोवन की तरह हो गया है जैसे तपोवन में सारे लोग आपसी द्वेष भुला कर एक साथ रहते हैं उसी तरह गर्मी से बेहाल ये जानवर भी आपसी द्वेष को भुला कर एक साथ बैठे हैं।
काव्यांश 3)
बतरस -लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै ,दैन कहैं नटि जाइ।।
शब्दार्थ
बतरस – बातचीत का आनंद
लाल – श्री कृष्ण
मुरली – बाँसुरी
लुकाइ – छुपाना
सौंह – शपथ
भौंहनु – भौंह से
नटि जाइ – मना कर देना
प्रसंग –: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘ से लिया गया है इसमें कवि कहते हैं कि गोपियों ने श्री कृष्ण से बात करने के लिए उनकी मुरली चुरा ली है।
व्याख्या –: इसमें कवि गोपियों द्वारा श्री कृष्ण की बाँसुरी चुराए जाने का वर्णन करते हैं। कवि कहते हैं कि गोपियों ने श्री कृष्ण से बात करने के लालच में उनकी बाँसुरी को चुरा लिया है। गोपियाँ कसम भी खाती हैं कि उन्होंने बाँसुरी नहीं चुराई है लेकिन बाद में भोंहे घुमाकर हंसने लगती हैं और बाँसुरी देने से मना कर रही हैं।
काव्यांश 4)
कहत ,नटत ,रीझत ,खीझत ,मिलत ,खिलत ,लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।।
शब्दार्थ
कहत – कहना ,बात करना
नटत – इंकार करना
रीझत – मोहित होना
खीझत – बनावटी गुस्सा करना
मिलत – मिलना
खिलत – प्रसन्न होना
लजियात – शर्माना
भौन – भवन
नैननु – नेत्रों से
प्रसंग-: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘से लिया गया है। इसमें कवि ने नायक – नायिका की आँखों – आँखों में चलने वाली बातचीत का सुन्दर वर्णन किया है।
व्याख्या –: इस दोहे में कवि कहते हैं कि नायक और नायिका एक दूसरे से आँखों ही आँखों में बातचीत करते हैं। नायक की बातों का उत्तर कभी नायिका इंकार से देती है,कभी उसकी बातों पर मोहित हो जाती है ,कभी बनावटी गुस्सा दिखाती है और जब उनकी आँखे फिर से मिलती हैं तो वे दोनों खुश हो जाते हैं और कभी – कभी शर्मा भी जाते हैं।कवि कहते हैं कि इस तरह वे भीड़ में भी एक दूसरे से बात करते हैं और किसी को ज्ञात भी नहीं होता।
काव्यांश 5)
बैठि रही अति सघन बन ,पैठि सदन – तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।
शब्दार्थ
सघन – घना
बन – जंगल
पैठि – घुसना
सदन-तन — भवन में
जेठ – जून का महीना
छाँहौं – छाया भी
संग –: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘से लिया गया है। इसमें कवि जून महीने की गर्मी का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या –: कवि कहते हैं कि जून महीने की गर्मी इतनी अधिक हो रही है कि छाया भी छाया ढूँढ रही है अर्थात वह भी गर्मी से बचने के लिए जगह तलाश कर रही है। वह या तो किसी घने जंगल में मिलेगी या किसी घर के अंदर।
काव्यांश 6)
कागद पर लिखत न बनत ,कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ ,मेरे हिय की बात।।
शब्दार्थ
कागद – कागज़
लिखत न बनत – लिखा नहीं जाता
सँदेसु – सन्देश
लजात – लज्जा आना
कहिहै – कह देगा
हिय – ह्रदय
प्रसंग –: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘ से लिया गया है। इसमें कवि ने एक नायिका की विरह दशा का वर्णन किया है।
व्याख्या –: कवि कहते हैं कि नायिका अपनी विरह की पीड़ा को कागज़ पर नहीं लिख पा रही है और कह कर सन्देश भेजने में उसे शर्म आ रही है वह नायक से कहती है कि तुम आपने ह्रदय से पूछ लो वह मेरे हृदय की बात जनता है अर्थात तुम मेरी विरह दशा से भली भांति परिचित होंगे।
काव्यांश 7)
प्रगट भय द्विजराज – कुल ,सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब ,केसव केसवराइ।।
शब्दार्थ
द्विजराज – 1 ) चन्द्रमा 2 )ब्राह्मण
सुबस – अपनी इच्छा से
केसव – श्री कृष्ण
केसवराइ – बिहारी कवि के पिता
प्रसंग-: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इसके कवि। वह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘से लिया गया है।इसमें कवि श्री कृष्ण से उनके कष्ट देय करने की प्रार्थना करते हैं।
व्याख्या –: कवि कहते हैं कि हे !श्री कृष्ण आपने चंद्र वंश में जन्म लिया और स्वयं ही ब्रज में आकर बस गए। बिहारी जी के पिता का नाम केशवराय है और श्री कृष्ण का एक नाम केशव है ,इसलिए कवि कहते हैं कि आप मेरे पिता के सामान हैं अतः मेरे सरे कष्टों का नाश कर दीजिये।
काव्यांश 8)
जपमाला ,छापैं ,तिलक सरै न एकौ कामु।
मन – काँचै नाचै बृथा साँचै राँचै रामु।।
शब्दार्थ
जपमाला – जपने की माला
छापैं – छापा
सरै – पूरा होना
मन काँचै – कच्चा मन ,बिना सच्ची भक्ति वाला
नाचै – नाचना
बृथा – बेकार में
सांचै – सच्ची भक्ति वाला
रांचै – प्रसन्न होना
प्रसंग-: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘से लिया गया है। इसमें कवि ने बहरी ढोंग के स्थान पर सच्चे मन से ईश्वर भक्ति को महत्त्व दिया है।
व्याख्या –:कवि कहते हैं कि केवल ईश्वर के नाम की माला जपने से ,ईश्वर नाम लिख लेने से तथा तिलक करने से ईश्वर भक्ति का कार्य पूरा नहीं होता। यदि मन में ईश्वर के लिए विश्वास न हो तो उसकी भक्ति में नाचना भी व्यर्थ है। इसके विपरीत जो सच्चे मन से ईश्वर भक्ति करते हैं, ईश्वर उन्ही पर प्रसन्न होते हैं।
बिहारी के दोहे प्रश्न अभ्यास (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )
बिहारी के दोहे NCERT Solutions (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )
क ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्न 1 -: छाया भी कब छाया ढूंढ़ने लगती है ?
उत्तर -: कवि कहता है कि जून के महीने में गर्मी इतनी अधिक बढ़ जाती है कि छाया भी छाया की तलाश करने के लिए घने जंगलों व घरों के अंदर चली जाती है अर्थात छाया भी गर्मी से परेशान हो कर छाया की तलाश करती है।
प्रश्न 2 -: बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है कि ‘कहि है सबु तेरौ हियौ ,मेरे हिय की बात ‘- स्पष्ट कीजिये।
उत्तर -: नायिका परदेस गए हुए नायक को पत्र लिखना चाहती है पर अपनी विरह दशा को पत्र में लिखने में अपने आप को असमर्थ पाती है और न ही वह किसी को बता पाती है क्योंकि उसे लज्जा आती है। नायिका नायक से सच्चा प्रेम करती है और कहती है कि यदि नायक भी उससे सच्चा प्रेम करता है तो नायक का ह्रदय नायक को नायिका के ह्रदय की विरह दशा का आभास करा देगा।
प्रश्न 3 -: सच्चे मन में राम बसते हैं न- दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिये।
उत्तर -: कवि का मानना है कि आडंबरों से ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। ना ही मानकों को गिनने ,तिलक लगाने व राम नाम लिखने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। सच्चे मन से ईश्वर पर विश्वास व ईश्वर की भक्ति करने से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है।
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प्रश्न 4 -: गोपियाँ श्री कृष्ण की बाँसुरी क्यों छुपा लेती है ?
उत्तर -: गोपियों को सदा से ही श्री कृष्ण की बांसुरी से ईर्ष्या भाव रहा है। वे जानती है कि एक बार जब कृष्ण बांसुरी बजाने में मस्त हो जाते हैं तो वे दुनिया को भूल जाते हैं। गोपियाँ जानती हैं की अगर वे बंसरी को छुपा देंगी तो कृष्ण अवश्य ही इस बारे में पूछेंगे। श्री कृष्ण से बातचीत करने के लिए ही गोपियाँ श्री कृष्ण की बांसुरी को छुपा देती है।
प्रश्न 5 -: बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है ,इसका वर्णन किस प्रकार किया है?अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर -: बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी आँखों -ही- आँखों में बातचीत करने का सूंदर वर्णन किया है। नायक आँखों -ही -आँखों में नायिका से कुछ कहता है ,नायिका आँखों ही आँखों में कभी इंकार करती है कभी बनावटी गुस्सा दिखती है और फिर एक बार दोबारा जब उनकी आँखे मिलती हैं तो वे खुश हो जाते है और कभी -कभी शर्मा भी जाते हैं। इस प्रकार वे आँखों ही आँखों में बात भी कर लेते है और किसी को पता ही नहीं चलता।
ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
1) मनौ नीलमनि -सैल पर आतपु परयौ प्रभात।
उत्तर -: कवि ने श्री कृष्ण के रूप सौन्दर्य का सुन्दर वर्णन किया है। श्री कृष्ण के नीले शरीर पर पीले वस्त्र की कल्पना नीलमणि पर्वत पर सुबह के समय सूर्य की किरणों से करने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है। ब्रज भाषा का उपयोग किया गया है तथा श्रृंगार रस प्रधान है।
2) जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ – दाघ निदाघ।
उत्तर –: कवि ने यहाँ जंगल का गर्मी के कारण तपोवन में बदल जाने का वर्णन किया है। ब्रज भाषा का उपयोग किया गया है यहाँ उपमा और अनुप्रास अलंकार का सुन्दर मेल है।
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3) जपमाला। छापैं ,तिलक सरैं न एकौ कामु।
मन – काँचै नाचै बृथा ,सांचै राँचै रामु।।
उत्तर -: इन पंक्तियों में कवि ने बाह्य आडंबरों से बचने व सच्चे मन से ईश्वर भक्ति करने पर बल दिया है। यहाँ ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है, अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है तथा यहाँ शांत रस प्रधान है।
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