अव्यय किसे कहते हैं, अव्यय की परिभाषा, भेद और उदाहरण

Avyay definition, Types of Indeclinable words, Indeclinable words examples – अव्यय की परिभाषा, अव्यय के भेद और उदाहरण

Ayyay in Hindi, Avyay (अव्यय): इस लेख में हम अव्यय की परिभाषा, भेद और उदाहरण को जानेंगे। अव्यय किसे कहते हैं ? अव्यय के कितने भेद हैं? इन प्रश्नों की सम्पूर्ण जानकारी बहुत ही सरल भाषा में इस लेख में दी गई है –

अव्यय किसे कहते हैं – अव्यय की परिभाषा – Definition

अव्यय का शाब्दिक अर्थ होता है – जो व्यय न हो। जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नही होता है, उन्हें अव्यय (अ + व्यय) या अविकारी शब्द कहते है।

साधारण भाषा में हम कह सकते हैं – ‘अव्यय’ ऐसे शब्द को कहते हैं, जिसके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पन्न नहीं होता। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते हैं। चूँकि अव्यय का रूपान्तर नहीं होता, इसलिए ऐसे शब्द अविकारी होते हैं। इनका व्यय नहीं होता, अतः ये अव्यय हैं।

जैसे – जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य, अर्थात इत्यादि।

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अव्यय के भेद

क्रिया-विशेषण अव्यय

जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता का पता चलता है, उसे क्रिया-विशेषण कहते हैं। जहाँ पर यहाँ, तेज, अब, रात, धीरे-धीरे, प्रतिदिन, सुंदर, वहाँ, तक, जल्दी, अभी, बहुत आदि आते हैं, वहाँ पर क्रियाविशेषण अव्यय होता है।

जैसे –
राम धीरे-धीरे टहलता है।
राम वहाँ टहलता है।
राम अभी टहलता है।

इन वाक्यों में ‘धीरे-धीरे’, ‘वहाँ’ और ‘अभी’ राम के ‘टहलने’ (क्रिया) की विशेषता बतलाते हैं। ये क्रिया-विशेषण अविकारी विशेषण भी कहलाते हैं।

इसके अतिरिक्त, क्रिया-विशेषण दूसरे क्रिया-विशेषण की भी विशेषता बताता हैं।
जैसे –
वह बहुत धीरे चलता है।

इस वाक्य में ‘बहुत’ क्रिया-विशेषण है, क्योंकि यह दूसरे क्रिया-विशेषण ‘धीरे’ की विशेषता बतलाता है।

क्रिया-विशेषण अव्यय के भेद

1. कालवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
2. स्थानवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
3. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
4. रीतिवाचक क्रियाविशेषण अव्यय

कालवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय

जो शब्द क्रिया के समय से सम्बद्ध विशेषता बताएँ, उन्हें कालवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।

दूसरे शब्दों में – वे क्रिया-विशेषण शब्द जो क्रिया के घटने के समय/काल की सूचना देते हैं, वे कालवाचक क्रिया-विशेषण होते हैं।

जहाँ पर आजकल, जब, तब, हमेशा, तभी, तत्काल, निरंतर, शीघ्र, पूर्व, बाद, पीछे, घड़ी-घड़ी, अब, कल, फिर, कभी, प्रतिदिन, दिनभर, आज आदि आते है, वहाँ पर कालवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय होता है।

जैसे –
(i) वह नित्य टहलता है।
(ii) वे कब गए।
(iii) सीता कल जाएगी।

स्थानवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय

जो शब्द क्रिया के स्थान से सम्बद्ध विशेषता बताते हैं, उन्हें स्थानवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।

दूसरे शब्दों में – जिन अव्यय शब्दों से कार्य के व्यापार के होने के स्थान का पता चले, उन्हें स्थानवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय कहते हैं।

जहाँ पर यहाँ, वहाँ, भीतर, बाहर, इधर, उधर, दाएँ, बाएँ, कहाँ, किधर, जहाँ, पास, दूर, अन्यत्र, इस ओर, उस ओर, ऊपर, नीचे, सामने, आगे, पीछे आदि आते है, वहाँ पर स्थानवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय होता है।

जैसे –
(i) मैं कहाँ हूँ?
(ii) तारा यहाँ आ रही है।
(iii) सुनील नीचे बैठा है।

परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय

जो शब्द क्रिया के परिमाण (मात्रा) से सम्बद्ध विशेषता प्रकट करें, उन्हें ‘परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण’ कहते हैं।

दूसरे शब्दों में – जिन अव्यय शब्दों से कार्य के व्यापार के परिणाम का पता चलता है या जिन अव्यय शब्दों से नाप-तोल का पता चलता है। उसे परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय कहते हैं।

जहाँ पर थोडा, काफी, ठीक, ठाक, बहुत, कम, थोडा-थोडा, कुछ, पर्याप्त, केवल, प्राय:, उतना, जितना, खूब, तेज, अति, जरा, कितना, बड़ा, भारी, अत्यंत, लगभग, बस, इतना, क्रमश: आदि आते हैं, वहाँ पर परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय कहते हैं।

जैसे –
(i) मैं बहुत घबरा रहा हूँ।
(ii) वह थोड़ा-थोड़ा खा रहा है।
(iii) उतना बोलो जितना जरूरी हो।

रीतिवाचक क्रियाविशेषण अव्यय

जिन अव्यय शब्दों से कार्य के व्यापार की रीति या विधि का पता चलता है, उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं।

जहाँ पर ऐसे, वैसे, अचानक, इसलिए, धीरे, सहसा, यथा, ठीक, सचमुच, अवश्य, वास्तव में, निस्संदेह, बेशक, शायद, संभव है, हाँ, सच, कभी नहीं, कदापि नहीं, फटाफट, शीघ्रता, भली-भांति, ऐसे, तेज, कैसे, ज्यों, त्यों आदि आते हैं, वहाँ पर रीतिवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय कहते हैं।

जैसे –
(i) जरा, सहज एवं धीरे चलिए।
(ii) हमारे सामने शेर अचानक आ गया।
(iii) कपिल ने अपना कार्य शीघ्रता से कर दिया।

संबंधबोधक अव्यय

जिन अव्यय शब्दों के कारण संज्ञा के बाद आने पर दूसरे शब्दों से उसका संबंध बताते हैं, उन शब्दों को संबंधबोधक शब्द कहते हैं। ये शब्द संज्ञा से पहले भी आ जाते हैं।

दूसरे शब्दों में- जो अव्यय किसी संज्ञा के बाद आकर उस संज्ञा का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाते है, उसे ‘सम्बन्धबोधक अव्यय’ कहते हैं। यदि यह संज्ञा न हो, तो वही अव्यय क्रिया-विशेषण कहलायेगा।

जहाँ पर बाद, भर, के ऊपर, की ओर, कारण, ऊपर, नीचे, बाहर, भीतर, बिना, सहित, पीछे, से पहले, से लेकर, तक, के अनुसार, की खातिर, के लिए आदि आते हैं, वहाँ पर संबंधबोधक अव्यय होता है।

जैसे –
(i) मैं विद्यालय तक गया।
(ii) स्कूल के समीप मैदान है।
(iii) धन के बिना व्यवसाय चलाना कठिन है।

सम्बन्धबोधक के भेद

प्रयोग, अर्थ और व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक अव्यय के निम्नलिखित भेद है –

(1) प्रयोग के अनुसार-
(i) सम्बद्ध (ii) अनुबद्ध

(2) अर्थ के अनुसार-
(i) कालवाचक (ii) स्थानवाचक (iii) दिशावाचक (iv) साधनवाचक (v) हेतुवाचक (vi) विषयवाचक (vii) व्यतिरेकवाचक (viii) विनिमयवाचक (ix) सादृश्यवाचक (x) विरोधवाचक (xi) सहचरवाचक (xii) संग्रहवाचक (xiii) तुलनावाचक

(3) व्युत्पत्ति के अनुसार-
(i) मूल सम्बन्धबोधक (ii) यौगिक सम्बन्धबोधक

प्रयोग के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद

(i) सम्बद्ध सम्बन्धबोधक – ऐसे सम्बन्धबोधक शब्द संज्ञा की विभक्तियों के पीछे आते हैं।
जैसे- धन के बिना, नर की नाई।

(ii) अनुबद्ध सम्बन्धबोधक- ऐसे सम्बन्धबोधक अव्यय संज्ञा के विकृत रूप के बाद आते हैं।
जैसे- किनारे तक, सखियों सहित, कटोरे भर, पुत्रों समेत।

अर्थ के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद

(i) कालवाचक-
आगे, पीछे, बाद, पहले, पूर्व, पश्र्चात्, उपरान्त, लगभग।

(ii) स्थानवाचक-
आगे, पीछे, नीचे, सामने, पास, निकट, भीतर, समीप, नजदीक, यहाँ, बीच, बाहर, परे, दूर।

(iii) दिशावाचक-
ओर, तरफ, पार, आरपार, आसपास, प्रति।

(iv) साधनवाचक-
द्वारा, जरिए, हाथ, बल, कर, सहारे।

(v) हेतुवाचक-
लिए, निमित्त, वास्ते, हेतु, खातिर, कारण, मारे, चलते।

(vi) विषयवाचक-
विषय, नाम, जान, भरोसे।

(vii) व्यतिरेकवाचक-
अलावा, बिना, बगैर, अतिरिक्त, रहित।

(viii) विनिमयवाचक-
पलटे, बदले, जगह।

(ix) सादृश्यवाचक-
समान, तरह, भाँति, बराबर, तुल्य, योग्य, लायक, सदृश, अनुसार, अनुकूल, देखादेखी, सा, ऐसा, जैसा, मुताबिक।

(x) विरोधवाचक-
विरुद्ध, विपरीत।

(xi) सहचरवाचक-
संग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, वश।

(xii) संग्रहवाचक-
तक, पर्यन्त, भर, मात्र।

(xiii) तुलनावाचक-
अपेक्षा, आगे, सामने।

व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद

(i) मूल सम्बन्धबोधक-
बिना, पर्यन्त, पूर्वक इत्यादि।

(ii) यौगिक सम्बन्धबोधक-

संज्ञा से – पलटे, लेखे, अपेक्षा, मारफत।

विशेषण से – तुल्य, समान, ऐसा, योग्य।

क्रियाविशेषण से – ऊपर, भीतर, यहाँ, बाहर, पास, परे, पीछे।

क्रिया से – लिए, मारे, चलते, कर, जाने।

समुच्चयबोधक अव्यय

जो शब्द दो शब्दों, वाक्यों और वाक्यांशों को जोड़ते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। इन्हें योजक भी कहा जाता है। ये शब्द दो वाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं।

सरल शब्दो में – दो वाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले शब्द समुच्चयबोधक अव्यय कहे जाते है।
जैसे – यद्यपि, चूँकि, परन्तु, और किन्तु आदि।

जहाँ पर और, तथा, लेकिन, मगर, व, किन्तु, परन्तु, इसलिए, इस कारण, अत:, क्योंकि, ताकि, या, अथवा, चाहे, यदि, कि, मानो, यानि, तथापि आदि आते हैं, वहाँ पर समुच्चयबोधक अव्यय होता है।

जैसे –
(i) सूरज निकला और पक्षी बोलने लगे।
(ii) छुट्टी हुई और बच्चे भागने लगे।
(iii) किरन और मधु पढ़ने चली गई।

समुच्चयबोधक के दो मुख्य भेद हैं

(1) समानाधिकरण समुच्चयबोधक

(2) व्यधिकरण समुच्चयबोधक

समानाधिकरण समुच्चयबोधक

जिन पदों या अव्ययों द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते है, उन्हें ‘समानाधिकरण समुच्चयबोधक’ कहते है।

दूसरे शब्दों में – समान स्थिति वाले दो या दो से अधिक शब्दों, पदबंधों या उपवाक्यों को जोड़ने वाले शब्दों को समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

जैसे –
(i) कविता और गीता एक कक्षा में पढ़ते हैं।
(ii) मैं और मेरी पुत्री एवं मेरे साथी सभी साथ थे।

व्यधिकरण समुच्चयबोधक

जिन पदों या अव्ययों के मेल से एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते है, उन्हें ‘व्यधिकरण समुच्चयबोधक’ कहते हैं।

सरल शब्दों में – एक या एक से अधिक उपवाक्यों को मुख्य उपवाक्य से जोड़ने वाले अव्यय को व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

जैसे –
(i) मोहन बीमार है इसलिए वह आज नहीं आएगा।
(ii) यदि तुम अपनी भलाई चाहते हो तो यहाँ से चले जाओ।

विस्मयादिबोधक अव्यय

जिन अव्यय शब्दों से हर्ष, शोक, विस्मय, ग्लानी, लज्जा, घर्णा, दुःख, आश्चर्य आदि के भाव का पता चलता है, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं। इनका संबंध किसी पद से नहीं होता है। इसे घोतक भी कहा जाता है। विस्मयादिबोधक अव्यय में (!) चिन्ह लगाया जाता है।

जैसे –
(i) वाह! क्या बात है?
(ii) हाय! वह चल बसा।
(iii) आह! क्या स्वाद है?
(iv) अरे! तुम यहाँ कैसे?
(v) छि:छि:! यह गंदगी।

विस्मयादिबोधक अव्यय है, जिनका अपने वाक्य या किसी पद से कोई सम्बन्ध नहीं। व्याकरण में विस्मयादिबोधक अव्ययों का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। इनसे शब्दों या वाक्यों के निर्माण में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में प्रकट करने के लिए होता है।

जैसे –
‘अब मैं क्या करूँ? इस वाक्य के पहले ‘हाय!’ जोड़ा जा सकता है।

विस्मयादिबोधक के निम्नलिखित भेद हैं –

(i) हर्षबोधक-
अहा!, वाह-वाह!, धन्य-धन्य, शाबाश!, जय, खूब आदि।

(ii) शोकबोधक-
अहा!, उफ, हा-हा!, आह, हाय, त्राहि-त्राहि आदि।

(iii) आश्चर्यबोधक-
वाह!, हैं!, ऐ!, क्या!, ओहो, अरे, आदि।

(iv) क्रोधबोधक-
हट, दूर हो, चुप आदि।

(v) स्वीकारबोधक-
हाँ!, जी हाँ, अच्छा, जी!, ठीक!, बहुत अच्छा! आदि।

(vi) सम्बोधनबोधक-
अरे!, अजी!, लो, रे, हे आदि।

(vii) भयबोधक-
अरे, बचाओ-बचाओ आदि।

निपात अव्यय

जो वाक्य में नवीनता या चमत्कार उत्पन्न करते हैं, उन्हें निपात अव्यय कहते हैं। जो अव्यय शब्द किसी शब्द या पद के पीछे लगकर उसके अर्थ में विशेष बल लाते हैं, उन्हें निपात अव्यय कहते हैं। इसे अवधारक शब्द भी कहते हैं। जहाँ पर ही, भी, तो, तक, मात्र, भर, मत, सा, जी, केवल आदि आते हैं, वहाँ पर निपात अव्यय होता है।

जैसे –
(i) यह काम प्रशांत को ही करना होगा।
(ii) सुहाना भी जाएगी।
(iii) तुम तो डूबोगे ही, सब को डुबाओगे।

निपात के नौ प्रकार या वर्ग हैं-

(1) स्वीकार्य निपात-
हाँ, जी, जी हाँ।

(2) नकरार्थक निपात-
नहीं, जी नहीं।

(3) निषेधात्मक निपात-
मत।

(4) पश्रबोधक-
क्या? न।

(5) विस्मयादिबोधक निपात-
क्या, काश, काश कि।

(6) बलदायक या सीमाबोधक निपात-
तो, ही, तक, पर सिर्फ, केवल।

(7) तुलनबोधक निपात-
सा।

(8) अवधारणबोधक निपात-
ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन।

(9) आदरबोधक निपात-
जी।

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