Bade Bhai Sahab (बड़े भाई साहब) Summary, Explanation, Word meanings Class 10

 
Bade Bhai Sahab Summary
 

CBSE Class 10 Hindi Chapter 8 “Bade Bhai Sahab”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Sparsh Bhag 2 Book

बड़े भाई साहब Here is the CBSE Class 10 Hindi Sparsh Bhag 2 Chapter 8 Bade Bhai Sahab Summary with detailed explanation of the lesson ‘Bade Bhai Sahab’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary.

 

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Bade Bhai Sahab Class 10 Hindi Chapter 8

कक्षा 10 हिंदी पाठ 8 बड़े भाई साहब

bade bhai sahab

 

लेखक परिचय

लेखक – प्रेमचंद
जन्म – 13 जुलाई 1880 ( बनारस – लमही गांव )
मृत्यु – 8 अक्टूबर 1936

बड़े भाई साहब पाठ प्रवेश

atamtran

अभी तुम छोटे हो इसलिए इस काम में हाथ मत डालो अर्थात यह काम मत करो। ऐसा सुनते ही बच्चों के मन में आता है कि काश हम बड़े होते,तो कोई हमें इस तरह नहीं टोकता। लेकिन आप ये मत सोच लेना कि बड़े होने से आपको कुछ भी करने का अधिकार मिल जाता है। घर के बड़े को कई बार वो काम करने से भी पीछे हटना पड़ता है जो उसकी उम्र के दूसरे लड़के बिना सोचे समझे करते हैं क्योंकि वो अपने घर में बड़े नहीं होते।

प्रस्तुत पाठ में भी एक बड़े भाई साहब हैं जो हैं तो छोटे ही परन्तु उनसे छोटा भी एक भाई है। वे उससे कुछ ही साल बड़े हैं परन्तु उनसे बड़ी बड़ी आशाएं की जाती हैं। बड़े होने के कारण वे खुद भी यही चाहते हैं कि वे जो भी करें छोटे भाई के लिए प्रेरणा दायक हो। इस आदर्श स्थिति को बनाये रखने के कारण बड़े भाई साहब का बचपन अदृश्य अर्थात नष्ट हो गया।

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Bade Bhai Sahab Class 10 Video Explanation

 

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बड़े भाई साहब पाठ सार

प्रस्तुत पाठ में एक बड़े भाई साहब हैं जो हैं तो छोटे ही परन्तु उनसे छोटा भी एक भाई है। वे उससे कुछ ही साल बड़े हैं परन्तु उनसे बड़ी – बड़ी आशाएं की जाती हैं। बड़े होने के कारण वे खुद भी यही चाहते हैं कि वे जो भी करें छोटे भाई के लिए प्रेरणा दायक हो। भाई साहब उससे पाँच साल बड़े हैं, परन्तु तीन ही कक्षा आगे पढ़ते हैं। वे अपनी शिक्षा की नींव मज़बूती से डालना चाहते थे ताकि वे  आगे चल कर अच्छा मुकाम हासिल कर सकें। वे हर कक्षा में एक साल की जगह दो साल लगाते थे और कभी- कभी तो तीन साल भी लगा देते थे।वे हर वक्त किताब खोल कर बैठे रहते थे ।

लेखक का मन पढ़ाई में बिलकुल भी नहीं लगता था। अगर एक घंटे भी किताब ले कर बैठना पड़ता तो यह उसके लिए किसी पहाड़ को चढ़ने जितना ही मुश्किल काम था। जैसे ही उसे ज़रा सा मौका मिलता वह खेलने के लिए मैदान में पहुँच जाता था। लेकिन जैसे ही खेल ख़त्म कर कमरे में आता तो भाई साहब का वो गुस्से वाला रूप देखा कर उसे बहुत डर लगता था।बड़े भाई साहब छोटे भाई को डाँटते हुए कहते हैं कि वह इतना सुस्त है कि बड़े भाई को देख कर कुछ नहीं सीखता । अगर लेखक अपनी उम्र इसी तरह गवाना चाहता है तो उसे घर चले जाना चाहिए  और वहां मजे से गुल्ली – डंडा खेलना चाहिए । कम से कम दादा की मेहनत की कमाई तो ख़राब नहीं होगी।

भाई साहब उपदेश बहुत अच्छा देते थे। ऐसी-ऐसी बाते करते थे जो सीधे दिल में लगती थी लेकिन भाई साहब की डाँट – फटकार का असर एक दो घंटे तक ही रहता था और वह इरादा कर लेता था कि आगे से खूब मन लगाकर पढ़ाई करेगा। यही सोच कर जल्दी जल्दी एक समय सारणी बना देता।परन्तु समय सारणी बनाना अलग बात होती है और उसका पालन करना अलग बात होती है।

वार्षिक परीक्षा हुई। भाई साहब फेल हो गए और लेखक पास हो गया और लेखक अपनी कक्षा में प्रथम आया। अब लेखक और भाई साहब के बीच केवल दो साल का ही अंतर रह गया था। इस बात से उसे अपने ऊपर घमण्ड हो गया था और उसके अंदर आत्मसम्मान भी बड़ गया था। बड़े भाई साहब लेखक को कहते हैं कि वे ये मत सोचो कि वे फेल हो गए हैं, जब वह उनकी कक्षा में आएगा, तब उसे पता चलेगा कि कितनी मेहनत करनी पड़ती है। जब अलजेबरा और जामेट्री करते हुए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा और इंग्लिस्तान का इतिहास याद करना पड़ेगा तब उसे  पता चलेगा। बादशाहों के नाम याद रखने में ही कितनी परेशानी होती है। परीक्षा में कहा जाता है कि -‘समय की पाबंदी’ पर निबंध लिखो, जो चार पन्नों से कम नहीं होना चाहिए।

अब आप अपनी कॉपी सामने रख कर अपनी कलम हाथ में लेकर सोच-सोच कर पागल होते रहो। लेखक सोच रहा था कि अगर पास होने पर इतनी बेज्जती हो रही है तो अगर वह फेल हो गया होता तो पता नहीं भाई साहब क्या करते, शायद उसके प्राण ही ले लेते। लेकिन इतनी बेज्जती होने के बाद भी पुस्तकों के प्रति उसकी कोई रूचि नहीं हुई। खेल-कूद का जो भी अवसर मिलता वह हाथ से नहीं जाने देता। पढ़ता भी था, लेकिन बहुत कम। बस इतना पढ़ता था की कक्षा में बेज्ज़ती न हो।

फिर से सालाना परीक्षा हुई और कुछ ऐसा इतिफाक हुआ कि लेखक फिर से पास हो गया और भाई साहब इस बार फिर फेल हो गए।जब परीक्षा का परिणाम सुनाया गया तो भाई साहब रोने लगे और लेखक भी रोने लगा। अब भाई साहब का स्वभाव कुछ नरम हो गया था। कई बार लेखक को डाँटने का अवसर होने पर भी वे लेखक को नहीं डाँटते थे ,शायद उन्हें खुद ही लग रहा था कि अब उनके पास लेखक को डाँटने का अधिकार नहीं है और अगर है भी तो बहुत कम। अब लेखक की स्वतंत्रता और भी बड़ गई थी। वह भाई साहब की सहनशीलता का गलत उपयोग कर रहा था। उसके अंदर एक ऐसी धारणा ने जन्म ले लिया था कि वह चाहे पढ़े या न पढ़े, वह तो पास हो ही जायेगा । उसकी किस्मत बहुत अच्छी  है इसीलिए भाई साहब के डर से जो थोड़ा बहुत पढ़ लिया करता था, वह भी बंद हो गया। अब लेखक को पतंगबाज़ी का नया शौक हो गया था और अब उसका सारा समय पतंगबाज़ी में ही गुजरता था। फिर भी, वह भाई साहब की इज्जत करता था और उनकी नजरों से छिप कर ही पतंग उडाता था। एक दिन शाम के समय ,हॉस्टल से दूर लेखक एक पतंग को पकड़ने के लिए बिना किसी की परवाह किए दौड़ा जा रहा था।

अचानक भाई साहब से उसका आमना -सामना हुआ, वे शायद बाजार से घर लौट रहे थे। उन्होंने बाजार में ही उसका हाथ पकड़ लिया और बड़े क्रोधित भाव से बोले ‘इन बेकार के लड़कों के साथ तुम्हें बेकार के पतंग को पकड़ने के लिए दौड़ते हुए शर्म नहीं आती ? तुम्हे इसका भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि अब तुम छोटी कक्षा में नहीं हो ,बल्कि अब तुम आठवीं कक्षा में हो गए हो और मुझसे सिर्फ एक कक्षा पीछे पढ़ते हो। आखिर आदमी को थोड़ा तो अपनी पदवी के बारे में सोचना चाहिए। समझ किताबें पढ़ लेने से नहीं आती, बल्कि दुनिया देखने से आती है। बड़े भाई साहब लेखक को कहते हैं कि यह घमंड जो अपने दिल में पाल रखा है कि बिना पढ़े भी पास हो सकते हो और उन्हें लेखक को डाँटने और समझने का कोई अधिकार नहीं रहा, इसे निकाल डालो। बड़े भाई साहब के रहते लेखक कभी गलत रस्ते पर नहीं जा सकता। बड़े भाई साहब लेखक से कहते हैं कि अगर लेखक नहीं मानेगा तो भाई साहब थप्पड़ का प्रयोग भी कर सकते हैं और उसको उनकी बात अच्छी नहीं लग रही होगी।

लेखक भाई साहब की इस समझाने की नई योजना के कारण उनके सामने सर झुका कर खड़ा था। आज लेखक को सचमुच अपने छोटे होने का एहसास हो रहा था न केवल उम्र से बल्कि मन से भी और भाई साहब के लिए उसके मन में इज़्ज़त और भी बड़ गई। लेखक ने उनके प्रश्नो का उत्तर नम आँखों से दिया कि भाई साहब जो कुछ कह रहे है वो बिलकुल सही है और उनको ये सब कहने का अधिकार भी है।

भाई साहब ने लेखक को गले लगा दिया और कहा कि वे लेखक को पतंग उड़ाने से मना नहीं करते हैं। उनका भी मन करता है कि वे भी पतंग उड़ाएँ। लेकिन अगर वे ही सही रास्ते से भटक जायेंगें तो लेखक की रक्षा कैसे करेंगे ? बड़ा भाई होने के नाते यह भी तो उनका ही कर्तव्य है।

इतिफाक से उस समय एक कटी हुई पतंग लेखक  के ऊपर से गुज़री। उसकी डोर कटी हुई थी और लटक रही थी। लड़कों का एक झुण्ड उसके पीछे-पीछे दौड़ रहा था। भाई साहब लम्बे तो थे ही, उन्होंने उछाल कर डोर पकड़ ली और बिना सोचे समझे हॉस्टल की और दौड़े और लेखक भी उनके पीछे -पीछे दौड़ रहा था।

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बड़े भाई साहब पाठ की व्याख्या

पाठ – मेरे भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े ,लेकिन केवल तीन दर्जे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढ़ना शुरू किया था ,जब मैने शुरू किया लेकिन तालीम जैसे महत्त्व के मामले में वह जल्दबाज़ी से काम लेना पसन्द ना करते थे। इस भवन की बुनियाद बहुत मजबूत डालना चाहते थे ,जिस पर आलीशान महल बन सके।एक साल का काम दो साल में करते थे। कभी कभी तीन साल भी लग जाते थे बुनियाद ही पुख्ता न हो,तो मकान कैसे पायेदार बने।

(लेखक अपने बड़े भाई साहब के बारे  में बता रहा है कि वे पढ़ाई को कितना अधिक महत्व देते थे)

शब्दार्थ
दर्जा – कक्षा
तालीम –
शिक्षा
बुनियाद –
नींव
आलीशान –
बहुत सुन्दर
पुख्ता –
सही
पायेदार –
ऐसी वस्तु जिसके पैर हो ,मज़बूत

bade

व्याख्या – लेखक कह रहा है कि उसके भाई साहब उससे पाँच साल बड़े हैं ,परन्तु तीन ही कक्षा आगे पढ़ते हैं। पढ़ाई करना उन्होंने भी उसी उम्र में शुरू किया था जिस उम्र में लेखक ने किया था। परन्तु शिक्षा जैसे कार्य में बड़े भाई साहब कोई जल्दबाज़ी नहीं करना चाहते थे। वे अपनी शिक्षा की नींव मज़बूती से डालना चाहते थे ताकि वे  आगे चल कर अच्छा मुकाम हासिल कर सकें। वे हर कक्षा में एक साल की जगह दो साल लगाते थे और कभी कभी तो तीन साल भी लगा देते थे। उनका मानना था की अगर हम घर की नींव ही सही नहीं डालेंगे तो मजबूत मकान कैसे बनेगा। अर्थात अगर हम शिक्षा के पहलुओं को अच्छे से नहीं समझेंगे तो अपना भविष्य सुन्दर कैसे बनाएंगे।

पाठ – मैं छोटा था ,वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी और वह चौदह साल के थे। उन्हें मेरी तम्बीह और निगरानी का पूरा और जन्मसिद्ध अधिकार था और मेरी शालीनता इसी में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ।

शब्दार्थ
तम्बीह – डाँट -डपट
निगरानी –
देखरेख
जन्मसिद्ध –
जन्म से ही प्राप्त
शालीनता –
समझदारी
हुक्म –
आज्ञा,आदेश

व्याख्या – लेखक कह रहा है की भाई साहब बड़े थे और वह छोटा था।उसकी उम्र नौ साल की थी और भाई साहब चौदह साल के थे।बड़े होने के कारण उनके पास उसे डाँटने -फटकारने और उसकी देखभाल करने का अधिकार जन्म से ही प्राप्त था। लेखक की समझदारी इसी में थी कि वह उनके हर आदेश को कानून समझें और हर आज्ञा का पालन करें ।

पाठ – वह स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर ,किताब के हाशियों पर चिड़ियों ,कुत्तों ,बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस -बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार बार सुन्दर अक्षरों में नक़ल करते। कभी ऐसी शब्द -रचना करते, जिसमे न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य।

शब्दार्थ
अध्ययनशील –
पढ़ाई को महत्त्व देने वाला
हाशियों –
किनारों
सामंजस्य –
ताल मेल

व्याख्या – लेखक बता रहा है कि उसके बड़े भाई साहब पढ़ाई को महत्त्व देने वाले थे। वे हर वक्त किताब खोल कर बैठे रहते थे और शायद जब वे पढ़ कर थक जाते थे तब  किताबों और कॉपियों के किनारों पर कुत्तों, बिल्लियों और चिड़ियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी – कभी तो एक ही नाम को ,शब्दों को और वाक्यों को दस – बीस बार लिख देते थे। कभी एक ही शेर को बार – बार सुन्दर अक्षरों में लिखते रहते थे। कभी तो ऐसे शब्दों की रचना करते थे जिनका कोई अर्थ ही नहीं होता और न ही उन शब्दों का आपस में कोई ताल मेल होता।

पाठ – मसलन एक बार उनकी कॉपी पर मैंने यह इबारत देखी – स्पेशल ,अमीना ,भाइयों – भाइयों ,दरअसर ,भाई – भाई। राधेश्याम ,श्रीयुत राधेश्याम ,एक घंटे तक – इसके बाद एक आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई अर्थ निकालूँ , लेकिन असफल रहा। और उनसे पूछने का सहस न हुआ। वह नौवीं जमात में थे ,मैं पाँचवी में। उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटी मुँह बड़ी बात थी।

शब्दार्थ
मसलन – उदाहरणतः
इबारत –
लेख
चेष्टा –
कोशिश
जमात –
कक्षा

व्याख्या – लेखक उदाहरण देते हुए कहता है कि एक बार उसने बड़े भाई साहब की कॉपी में यह लेख देखा जिसकी शब्द – रचना इस तरह से थी – स्पेशल ,अमीना ,भाइयों -भाइयों ,दरअसल ,भाई – भाई। राधे श्याम ,श्रीयुत राधेश्याम ,एक घंटे तक – और उसके बाद एक आदमी का चेहरा बना हुआ था। लेखक ने बहुत कोशिश की कि वह बड़े भाई साहब के द्वारा लिखे गए इन शब्दों या पहेली को सुलझा सके या इनका कुछ अर्थ निकल सके । लेकिन वह हर तरह से असफल रहा। और भाई साहब से पूछने की हिम्मत नहीं हुई। अब भाई साहब नौवीं कक्षा में थे और वह पाँचवी कक्षा में था। उनके शब्दों का अर्थ जानना या उनकी की गई रचनाओं को समझना उसके लिए आसान बात नहीं थी।

पाठ – मेरा जी पढ़ने में बिलकुल न लगता था। एक घण्टा भी किताब लेकर बैठना पहाड़ था। मौका पाते ही होस्टल से निकलकर मैदान में आ जाता था और कभी कंकरियाँ उछलता , कभी कागज़ की तितलियाँ उड़ाता और कहीं कोई साथी मिल गया ,तो पूछना ही क्या। कभी चारदीवारी पर चढ़ कर निचे कूद रहे हैं। कभी फाटक पर सवार,उसे आगे पीछे चलाते हुए मोटरकार का आनन्द उठा रहे हैं ,लेकिन कमरे में आते ही भाई साहब का वह रूद्र रूप देख कर प्राण सूख जाते।

 

शब्दार्थ
कंकरियाँ – पत्थर के छोटे टुकड़े
रूद्र रूप –
भयानक या घुसे वाला रूप
प्राण सूख जाना –
बुरी तरह डर जाना

व्याख्या – लेखक कहता है कि पढ़ाई में उसका मन बिलकुल भी नहीं लगता था। अगर एक घंटे भी किताब ले कर बैठना पड़ता तो यह उसके लिए किसी पहाड़ को चढ़ने जितना ही मुश्किल काम था। जैसे ही उसे ज़रा सा मौका मिलता वह खेलने के लिए मैदान में पहुँच जाता था। कभी वहाँ पत्थरों के छोटे- छोटे टुकड़ों को उछालता ,कभी कागज़ की तितलियाँ बना कर उड़ाता और अगर कोई मित्र या साथी साथ में खेलने के लिए मिल जाये तो बात ही कुछ और होती। साथी के साथ मिल कर कभी चारदीवारी पर चढ़ कर कूदते, कभी फाटक पर चढ़ कर उसे आगे पीछे करके मोटरकार का आनंद लेते । लेकिन जैसे ही खेल ख़त्म कर कमरे में आता तो भाई साहब का वो गुस्से वाला रूप देखा कर उसे बहुत डर लगता था।

पाठ – उनका पहला सवाल यह होता -‘कहाँ थे’? हमेशा यही सवाल ,इसी ध्वनि में हमेशा पूछा जाता और इसका जवाब मेरे पास केवल मौन था। न जाने मेरे मुँह से यह बात क्यों नहीं निकलती कि जरा बाहर खेल रहा था। मेरा मौन कह देता था कि मुझे मेरा अपराध स्वीकार है और भाई साहब के लिए उसके सिवा और कोई इलाज न था कि स्नेह और रोष के मिले हुए शब्दों में मेरा सत्कार करे।

शब्दार्थ
मौन –
चुप
स्नेह –
प्रेम
रोष –
गुस्सा
सत्कार –
स्वागत
अपराध –
गलती

व्याख्या –  लेखक कहता है कि जब भी वह खेल कर आता तो भाई साहब हमेशा एक ही सवाल,एक ही अंदाज से पूछते थे – ‘कहाँ थे ‘?और इसके जवाब में वह हमेशा चुप रह जाता था। पता नहीं क्यों वह कभी भाई साहब को ये जवाब नहीं दे पता था कि वह जरा बाहर खेल रहा था।उसके  चुप रहने से भाई साहब समझ जाते थे कि वह अपनी गलती मानता है और भाई साहब लेखक से प्यार करते थे इसलिए थोड़ा गुस्सा और प्यार के मिले जुले शब्दों में उसका स्वागत करते थे।

पाठ – “इस तरह अंग्रेजी पढ़ोगे, तो ज़िंदगी भर पढ़ते रहोगे और एक हर्फ़ न आएगा। अंग्रेजी पढ़ना कोई हँसी खेल नहीं है कि जो चाहे, पढ़ ले, नहीं ऐरा – गैरा नत्थू-खैरा सभी अंग्रेजी के विद्वान हो जाते। यहाँ रात – दिन आँखें फोड़नी पड़ती है और खून जलाना पड़ता है, तब कही यह विद्या आती है। आती क्या है, हाँ कहने को आ जाती है। बड़े -बड़े विद्वान भी शुद्ध अंग्रेजी नहीं लिख सकते, बोलना तो दूर रहा। और मैं कहता हूँ, तुम कितने घोंघा हो, कि मुझे देख कर भी सबक नहीं लेते। मैं कितनी मेहनत करता हूँ, यह तुम अपनी आँखों से देखते हो, अगर नहीं देखते, तो यह तुम्हारी आँखों का कसूर है, तुम्हारी बुद्धि का कसूर है।

 

शब्दार्थ
हर्फ़ – अक्षर
ऐरा –
गैरा नत्थू -खैरा  – बेकार आदमी
खून जलाना –
कड़ी मेहनत करना
घोंघा –
आलसी जीव
सबक –
सीखना
कसूर –
गलती

(यहाँ लेखक भाई साहब के द्वारा उसे कैसे समझाया जाता था इसका वर्णन कर रहा है )

व्याख्या –  लेखक कहता है कि बड़े भाई साहब हमेशा कहते थे कि ” अगर वह इसी तरह अंग्रेजी पढ़ेगा  तो अपनी पूरी ज़िंदगी में उसे एक भी अक्षर नहीं आएगा । अंग्रेजी पढ़ना कोई आसान काम नहीं है कि जो भी चाहे पढ़ सकता है, अगर ऐसा होता तो बेकार आदमी आज अंग्रेजी का विद्वान होता। अंग्रेजी सीखना के लिए रात दिन किताबें पढ़नी पड़ती है और दिन रात मेहनत करनी पड़ती है, तब जाकर कही अंग्रेजी आती है। आती क्या है, हाँ कहने को आ जाता है कि हमें अंग्रेजी आती है। बड़े बड़े विद्वान भी सही अंग्रेजी नहीं लिख पाते बोलना तो दूर की बात हैं। और बड़े भाई साहब छोटे भाई को डाँटते हुए कहते हैं कि लेखक इतना सुस्त है कि बड़े भाई को देख कर कुछ नहीं सीखता । बड़ा भाई कितनी  मेहनत करता है ये तो लेखक अपनी आँखों से देखता ही है लेकिन अगर नहीं देखता तो ये लेखक की आँखों और बुद्धि की गलती है।

पाठ – इतने मेले -तमाशे होते हैं, मुझे तुमने कभी देखने जाते देखा है ? रोज ही क्रिकेट और हॉकी मैच होते हैं। मैं पास नहीं भटकता। हमेशा पढ़ता रहता हूँ। उस पर भी एक – एक दरजे में दो -दो तीन – तीन साल पड़ा रहता हूँ, फिर भी तुम कैसे आशा करते हो कि तुम यों खेल कूद में वक्त गवाकर पास हो जाओगे? मुझे तो दो ही तीन साल लगते हैं, तुम उम्र भर इसी दरजे में पड़े सड़ते रहोगे? अगर तुमने इस तरह उम्र गँवानी है, तो बेहतर है घर चले जाओ और मज़े से गुल्ली-डंडा खेलो। दादा की गाढ़ी कमाई के रुपयों को क्यों ख़राब करते हो।

bade

शब्दार्थ
दरजा –
कक्षा
गाढ़ी कमाई –
मेहनत की कमाई

(बड़ा भाई किस तरह अपनी इच्छाओं को दबाता है यहाँ इसका वर्णन है)

व्याख्या – बड़े भाई साहब छोटे भाई को कहते हैं कि इतने सारे मेले – तमाशे होते है,क्या उसने कभी भाई को उनमें जाते देखा है ? हर रोज़ कितने ही क्रिकेट और हॉकी के मैच होते हैं।बड़े भाई साहब कभी उनके आस पास भी नहीं भटकते। हमेशा ही पढ़ते रहते हैं। इतना सब कुछ करने के बाद भी बड़े भाई साहब को एक ही कक्षा में दो या तीन साल लग जाते हैं,फिर भी लेखक ऐसा कैसे सोच सकता है कि वह इस तरह खेल कूद कर या वक्त गवाकर भी पास हो जायेगा ? बड़े भाई साहब को तो एक कक्षा में दो या तीन ही साल लगते हैं,अगर लेखक इसी तरह समय बर्बाद करता रहा तो अपनी पूरी जिंदगी एक ही कक्षा में लगा देगा । अगर लेखक अपनी उम्र इसी तरह गवाना चाहता है तो उसे घर चले जाना चाहिए और वहां मजे से गुल्ली – डंडा खेलना चाहिए।  कम से कम दादा की मेहनत की कमाई तो ख़राब नहीं होगी।

पाठ – मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता। जवाब ही क्या था। अपराध तो मैने किया, लताड़ कौन सहे ? भाई साहब उपदेश की कला में निपूर्ण थे। ऐसी – ऐसी लगती बाते कहते, ऐसे – ऐसे सूक्ति-बाण चलाते कि मेरे जिगर के टुकड़े हो जाते और हिम्मत टूट जाती। इस तरह जान तोड़ कर मेहनत करने की शक्ति मैं अपने में ना पाता था और उस निराशा में ज़रा देर के लिए मैं सोचने लगता -“क्यों ना घर चला जाऊँ। जो काम मेरे बूते के बाहर है, उसमे हाथ डाल कर क्यों अपनी जिंदगी ख़राब करूँ।”

शब्दार्थ
लताड़ – डाँट फटकार
निपूर्ण –
बहुत अच्छे
सूक्ति-बाण –
व्यंग्यात्मक कथन, चुभती बातें
जिगर –
हृदय,दिल
निराशा –
दुःख
बूते –
बस

(लेखक बड़े भाई की डाँट का अपने ऊपर होने वाले असर का वर्णन कर रहा है)

 

व्याख्या – भाई साहब की डाँट – फटकार सुनकर लेखक की आँखों से आँसू बहने लगते। लेखक के पास उनकी बातों का कोई जवाब ही नहीं होता था। गलती तो लेखक ने की थी, परन्तु डाँट -फटकार सुनना किसे पसंद होता है? भाई साहब उपदेश बहुत अच्छा देते थे। ऐसी -ऐसी बाते करते थे जो सीधे दिल में लगती थी, ऐसी-ऐसी चुभती बाते करते कि लेखक के दिल के टुकड़े – टुकड़े हो जाते, और लेखक की बाते सुनने की हिम्मत टूट जाती। भाई साहब की तरह कड़ी मेहनत वह नहीं कर सकता था और दुखी होकर कुछ देर के लिए वह सोचने लगता कि “क्यों ना वह घर ही चला जाए। जो काम उसके बस से बाहर है वह वो काम करके अपनी जिंदगी और समय क्यों बर्बाद करे। “

पाठ – मुझे अपना मुर्ख रहना मंज़ूर था,लेकिन उतनी मेहनत से मुझे तो चक्कर आ जाता था। लेकिन घंटे-दो घंटे के बाद निराशा के बादल फट जाते और मैं इरादा करता कि आगे से खूब जी लगाकर पढ़ूँगा। चटपट एक टाइम टेबल बना डालता। बिना पहले से नक्शा बनाए बिना कोई स्कीम तैयार किये काम कैसे शुरू करूँ। टाइम टेबिल में खेल – कूद की मद बिलकुल उड़ जाती।

शब्दार्थ
मंज़ूर –
स्वीकार
टाइम टेबल –
समय सारणी
स्कीम –
योजना

व्याख्या –  लेखक कहता है कि उसे अपने आप को मुर्ख कहना स्वीकार था ,लेकिन भाई साहब के बराबर मेहनत करने की सोचने पर भी उसे चक्कर आ जाता था। लेकिन भाई साहब की डाँट – फटकार का असर एक दो घंटे तक ही रहता था और वह इरादा कर लेता था कि आगे से खूब मन लगाकर पढ़ाई करेगा। यही सोच कर जल्दी जल्दी एक समय सारणी बना देता। समय सारणी बनाने से पहले वह न तो कोई नक्शा तैयार करता था और न ही कोई योजना बनाता था कि किस तरह से काम शुरू किया जाये। समय सारणी में खेल कूद के लिए कोई समय ही नहीं दिया जाता था।

पाठ – प्रातः काल छः बजे उठना, मुँह हाथ धो ,नाश्ता कर ,पढ़ने बैठ जाना। छः से आठ तक अंग्रेजी, आठ से नौ तक हिसाब, नौ से साढ़े नौ तक इतिहास, फिर भोजन और स्कूल। साढ़े तीन बजे स्कूल से वापिस होकर आधा घंटा आराम, चार से पांच तक भूगोल, पांच से छः तक ग्रामर, आधा घंटा हॉस्टल के सामने ही टहलना,साढ़े छः से सात तक अंग्रेजी कम्पोज़िशन, फिर भोजन करके आठ से नौ तक अनुवाद, नौ से दस तक हिंदी, दस से ग्यारह तक विविध विषय, फिर विश्राम।

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शब्दार्थ

प्रातः काल – सुबह का समय
टहलना –
घूमना

(यहाँ पर लेखक की समय सारणी का वर्णन किया गया है)

व्याख्या – सुबह छः बजे उठना,फिर मुँह हाथ धो कर नाश्ता करके सीधे पढ़ने बैठ जाना। छः से आठ बजे तक अंग्रेजी पढ़ने का समय रखा गया, आठ से नौ बजे का समय गणित के लिए ,नौ से साढ़े नौ का समय इतिहास के लिए रखा गया, फिर भोजन करने के बाद स्कूल। साढ़े तीन बजे स्कूल से वापिस आकर सिर्फ आधा घंटा आराम के लिए रखा गया, चार से पांच बजे का समय भूगोल के लिए निर्धारित किया गया, पांच से छः बजे का समय ग्रामर, उसके बाद आधा घंटा केवल हॉस्टल के बाहर ही घूमने के लिए रखा गया, साढ़े छः से सात बजे तक अंग्रेजी कंपोजिशन, फिर भोजन करके आठ से नौ तक अनुवाद, नौ से दस तक हिंदी, दस से ग्यारह बजे का समय अलग अलग विषयों के लिए रख दिया गया और अंत में आराम।

पाठ – लेकिन टाइम टेबिल बना लेना अलग बात है ,उस पर  अमल करना दूसरी बात। पहले ही दिन उसकी अवहेलना शुरू हो जाती। मैदान की वह सुखद हरियाली, हवा के हलके हलके झोंके, फूटबाल की वह उछल कूद, कबड्डी के वह दाँव घात, वॉलीबाल की वह तेज़ी और फुरति, मुझे अज्ञात और अनिवार्य रूप से खींच ले जाती और वहां जा कर में सब कुछ भूल जाता। वह जानलेवा टाइम टेबिल, वह आँखफोड़ पुस्तकें, किसी की याद ना रहती और भाई साहब को नसीहत और फ़जीहत का अवसर मिल जाता।

शब्दार्थ
अमल करना – पालन करना
अवहेलना –
तिरस्कार
अज्ञात –
जिसे जानते न हो
अनिवार्य –
जरुरी
जानलेवा –
जान के लिए खतरा
नसीहत –
सलाह
फ़जीहत –
अपमान

(यहाँ लेखक टाइम टेबिल का पालन क्यों नहीं कर पाया इसका वर्णन है)

व्याख्या –  लेखक ने टाइम टेबिल तो बना दिया था परन्तु समय सारणी बनाना अलग बात होती है और उसका पालन करना अलग बात होती है। लेखक कहता है कि पहले दिन भी समय सारणी का पालन करने में उसे कठिनाई का अनुभव महसूस होता और पहले दिन से ही टाइम टेबिल को नजरंदाज करने लगता। मैदान की वह सुख देने वाली हरियाली, धीरे – धीरे चलने वाली हवा के वो हल्के हल्के झोंके ,फूटबाल की वह उछल कूद ,कबड्डी का वह खेल और दाव घात, वालीबाल की वह तेज़ी और फुरती ये सब ऐसी चीज़े थी जो उसे न जाने किस कारण से ऐसे बाहर मैदान में खींच ले जाते जैसे कोई बहुत जरुरी काम हो और वहां जा कर वह सब कुछ भूल जाता। वो उसकी जान के लिए खतरा समय सारणी, वह दिन रात पुस्तकों में आँखे लगा कर बैठना उसे किसी बात का ध्यान नहीं रहता और वह सब कुछ भूल जाता। इस पर भाई साहब को उसे सलाह देने का अवसर मिल जाता और साथ ही वह उसका अपमान करना भी नहीं भूलते।

(लेखक भाई साहब की डाँट को गलत समझ लेता है और सोचता है कि वे सिर्फ उसे सलाह दे रहे हैं और उसका अपमान कर रहे हैं)

पाठ – मैं उनके साये से भागता, उनकी आँखों से दूर रहने की चेष्टा करता ,कमरे में इस तरह दबे पाँव आता कि उन्हें खबर न हो। उनकी नज़र मेरी ओर उठी और मेरे प्राण निकले। हमेशा सर पर एक नंगी तलवार – सी लटकती मालूम होती। फिर भी मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेलकूद का तिरस्कार न कर सकता था।

शब्दार्थ
चेष्टा – कोशिश
दबे पाँव –
बिना आवाज़ के
विपत्ति –
मुसीबत
फटकार –
डाँट
घुड़कियाँ –
गुस्से से भरी बातें सुनना
तिरस्कार –
अपमान

(टाइम टेबिल का पालन न करने पर क्या हरकत करता यहाँ इसका वर्णन है)

व्याख्या – जब लेखक समय सारणी का अनुसरण न करके खेल कर मैदान से वापिस आता तो लेखक भाई साहब की परछाइ से भी डर कर भाग जाता ,कोशिश करता कि उनकी नजरे उस पर ना पड़े, कमरे में बिना आवाज किये इस तरह आता कि भाई साहब को कोई खबर न लगे कि वह आया है। जब भाई साहब उसे आते हुए देख लेते तो उसकी तो मानो जान ही चली जाती। उसे हमेशा लगता था कि उसके सर पर कोई तलवार लटक रही है जो कभी भी उसके टुकड़े कर सकती है। फिर भी जिस तरह मौत और मुसीबत के बीच फ़सा आदमी मोह-माया को छोड़ने में नाकाम रहता है उसी तरह वह  भी भाई साहब की डाँट और गुस्से से भरी बातों पर ध्यान दे कर खेलकूद का अपमान नहीं कर सकता था अर्थात खेलकूद नहीं छोड़ सकता था।

पाठ – सालाना इम्तिहान हुआ। भाई साहब फेल हो गए और मैं पास हो गया और दरजे में प्रथम आया। मेरे और उनके बीच केवल दो साल का अंतर रह गया। जी में आया, भाई साहब को आड़े हाथों लूँ ‘आपकी वह घोर तपस्या कहाँ गई ? मुझे देखिये मज़े से खेलता भी रहा और दरजे में अव्वल भी हूँ। ‘ लेकिन वह इतने दुखी और उदास थे कि मुझे उनसे दिली हमदर्दी हुई और उनके घाव पर नमक छिड़कने का विचार ही लज्जास्पद जान पड़ा। हाँ,अब मुझे अपने ऊपर कुछ अभिमान हुआ और आत्मसम्मान भी बड़ा।

 

शब्दार्थ
सालाना –
वार्षिक
इम्तिहान –
परीक्षा
अव्वल –
प्रथम
लज्जास्पद –
शर्मनाक
अभिमान –
घमण्ड

व्याख्या –  वार्षिक परीक्षा हुई। भाई साहब फेल हो गए और लेखक पास हो गया और लेखक अपनी कक्षा में प्रथम आया। अब लेखक और भाई साहब के बीच केवल दो साल का ही अंतर रह गया था। लेखक के मन में तो आया कि वह भाई साहब को सीधे जा कर पूछ ले कि कहाँ गई उनकी  घोर तपस्या अर्थात क्या फायदा हुआ उनका इतनी मेहनत करने का।लेखक को देखिये वह सारा साल मज़े से अपने खेल का आनन्द भी लेता रहा और अपनी कक्षा में प्रथम भी आ गया। लेकिन भाई साहब इतने उदास और दुखी थे कि लेखक को उनसे दिल से हमदर्दी हो रही थी और उनके दुःख पर उनका मज़ाक बनाना उसे बहुत  शर्मनाक लगा। लेकिन इस बात से उसे अपने ऊपर घमण्ड हो गया था और उसके अंदर आत्मसम्मान भी बड़ गया था।

पाठ – भाई साहब का वह रौब मुझ पर न रहा। आज़ादी से खेलकूद में शरीक होने लगा। दिल मजबूत था। अगर उन्होंने फिर मेरी फ़जीहत की,तो साफ कह दूँगा -‘आपने अपना खून जलाकर कौन सा तीर मार लिया। मैं तो खेलते – कूदते दरजे में अव्वल आ गया। ‘ज़बान से यह हेकड़ी जताने का सहस न होने पर भी मेरे रंग – ढंग से साफ़ ज़ाहिर होता था की भाई साहब का वह आंतक मुझ पर नहीं था।

bade

शब्दार्थ
रौब –
डर
शरीक –
शामिल
हेकड़ी –
घमण्ड
ज़ाहिर –
स्पष्ट
आंतक –
भय

(भाई साहब के फेल होने की वजह से लेखक के व्यवहार में क्या अंतर आया यहाँ इसका वर्णन किया गया है)

व्याख्या –  भाई साहब का लेखक पर अब कोई डर नहीं रहा लेखक जब चाहता जितना चाहता खेलकूद में उतना शामिल होने लगा। मन में यह ठान रखी थी कि अगर उन्होंने फिर से उसकी बेज्जती की या फिर से उसे कोई सलाह दी तो  वह उनसे साफ कह देगा – ‘आपने इतनी कड़ी मेहनत कर के कौन सा तीर मार लिया ,मुझे देखो मैं खेलता कूदता भी रहा और अपनी कक्षा में प्रथम भी आ गया। लेखक को अपने ऊपर इतना घमंड होने के बाद भी जुबान में इतनी हिम्मत नहीं हुई कि ये सब भाई साहब से कह सके परन्तु लेखक के व्यवहार से यह साफ़ पता चलता था कि उस पर अब भाई साहब का वह पहले जैसा डर नहीं रहा था।

पाठ – भाई साहब ने इसे भाँप लिया, उनकी सहज बुद्धि बड़ी तीव्र थी और एक दिन जब मैं भोर का सारा समय गुल्ली – डंडे की भेंट करके ठीक भोजन के समय लौटा, तो भाई साहब ने मानो तलवार खींच ली और मुझ पर टूट पड़े-देखता हूँ, इस साल पास हो गए और दरजे में अव्वल आ गए, तो तुम्हे दिमाग हो गया है ,मगर भाईजान घमण्ड तो बड़े – बड़े का नहीं रहा, तुम्हारी क्या हस्ती है?

शब्दार्थ
भाँप लिया –
जान लिया
सहज बुद्धि –
सामान्य बुद्धि
हस्ती –
अस्तित्व

व्याख्या – भाई साहब इस बात को समझ गए थे कि छोटा भाई अब उनसे नहीं डरता क्योंकि भाई साहब की सामान्य बुद्धि बहुत अधिक तेज़ थी। एक दिन जब लेखक सुबह का सारा समय गुल्ली डंडा खेल कर ठीक भोजन के समय कमरे में लौटा तो भाई साहब के क्रोध की कोई सीमा नहीं थी वे उसे बुरी तरह डांटने लगे कि वे भी देखेंगे कि इस साल तो लेखक पास हो गया और अपनी कक्षा में प्रथम भी आ गया, तो लेखक अपने आप को दिमाग वाला समझने लगा है, परन्तु भाईजान घमण्ड ने बड़े बड़ों को झुका दिया तो लेखक का  अभी अस्तित्व ही क्या है?

bade

पाठ – इतिहास में रावण का हल तो पढ़ा ही होगा। उसके चरित्र से तुमने कौन सा सन्देश लिया ? या यों ही पढ़ गए ? महज़ इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास। जो कुछ पढ़ो उसका अभिप्राय समझो। रावण भूमण्डल का स्वामी था। ऐसे राजाओं को चक्रवर्ती कहते हैं। आजकल अंग्रेजों के राज्यों का विस्तार बहुत बड़ा हुआ है पर इन्हें चक्रवर्ती नहीं कह सकते। संसार में अनेक राष्ट्र अंग्रेजों का आधिपत्य स्वीकार नहीं करते, बिलकुल स्वाधीन हैं।

शब्दार्थ
चरित्र –
व्यवहार
महज़ –
सिर्फ
भूमण्डल –
पूरी धरती
आधिपत्य –
गुलामी
स्वाधीन
– स्वतंत्र

व्याख्या – बड़े भाई साहब डांटते हुए कह रहे थे कि इतिहास में लेखक ने  रावण के बारे में तो पढ़ा ही होगा। उसके व्यवहार से लेखक ने क्या सीखा? कुछ सीखा भी या ऐसे ही पढ़ लिया। सिर्फ़ परीक्षा ही पास कर लेने से कुछ नहीं होता, बुद्धि का विकास सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। बड़े भाई साहब लेखक  से कहते है कि जो कुछ वह पढता है उसे समझ कर पढ़ा करे ऐसे ही न पढ़ ले रावण पूरी धरती का स्वामी था। ऐसे राजाओं को चक्रवर्ती कहते हैं क्योंकि उनसे सभी डरते थे। आजकल अंग्रेजों का राज्य भी बहुत बड़ा हुआ है परन्तु उनको चक्रवर्ती नहीं कहा जा सकता क्योंकि संसार के बहुत से राष्ट्र हैं जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी को स्वीकार नहीं किया है और स्वतंत्रता से रह रहे हैं।

पाठ – रावण चक्रवर्ती राजा था। संसार के सभी महीप उसे कर देते थे। बड़े – बड़े देवता उसकी गुलामी करते थे। आग और पानी के देवता भी उसके दास थे, मगर उसका अंत क्या हुआ ? घमण्ड ने उसका नाम निशान तक मिटा दिया, कोई उसे एक चुल्लू पानी देने वाला भी नहीं बचा आदमी और जो कुकर्म चाहे करे, पर अभिमान ना करे, इतराये नहीं। अभिमान किया और दीन दुनिया दोनों से गया।

bade

शब्दार्थ
महीप –
राजा
कुकर्म –
बुरा काम
अभिमान –
घमण्ड

(यहाँ पर बड़े भाई साहब छोटे भाई को घमंड करने के नुक्सान बता रहें हैं। )

व्याख्या – रावण एक चक्रवर्ती राजा था अर्थात वह पुरे संसार का राजा था। संसार के दूसरे राजा उसके दास थे और उसको कर (टेक्स) देते थे। बड़े -बड़े देवता उसकी गुलामी करते थे। आग और पानी के देवता भी उसके दास थे। परन्तु इतना सब कुछ होने के बाद भी उसका अंत क्या हुआ ? घमंड ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। उसके घमंड के कारण उसके परिवार का भी नाश हो गया कोई उसे अंत में पानी तक पिलाने वाला नहीं बचा। इंसान चाहे कोई भी बुरा काम कर ले परन्तु उसे घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड करने वाला व्यक्ति परिवार और दुनिया दोनों में से कहीं रहने लायक नहीं रहता।

पाठ – शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा।उसे भी अभिमान हुआ था ईश्वर का उससे बढ़ कर  सच्चा भक्त कोई है ही नहीं। अंत में यह हुआ कि स्वर्ग से नर्क में ढ़केल दिया गया। शाहेरूम ने भी एक बार अहंकार किया था। भीख मांग – मांगकर मर गया। तुमने तो केवल एक दर्जा पास किया है और अभी से तुम्हारा सर फिर गया, तब तो तुम आगे पढ़ चुके।

शब्दार्थ
सर फिर गया –
लापरवाह होना

(यहाँ भाई साहब घमंडियों के उदाहरण दे रहे हैं )

व्याख्या – लेखक ने शैतान के बारे में तो पढ़ा ही होगा कि किस तरह उसे घमंड हो गया था कि ईश्वर का उससे अधिक सच्चा भक्त कोई है ही नहीं। और इस घमंड के कारण ऊपर स्वर्ग से सीधे नर्क में फेंक दिया गया था। शाहेरूम ने भी एक बार घमंड किया था और फिर पूरी जिंदगी भीख मांग – मांग कर खाना पड़ा और अंत में उसी तरह मर गया।लेखक ने तो केवल अभी पहली कक्षा ही पास की है और लेखक अभी से लापरवाह हो गया है। इस कारण लेखक का  आगे पढ़ना मुश्किल लग रहा है।

पाठ – यह समझ लो कि तुम अपनी मेहनत से नहीं पास हुए, अंधे के हाथ बटेर लग गई। मगर बटेर केवल एक बार हाथ लग सकती है, बार – बार नहीं लग सकती। कभी कभी गुल्ली – डंडे में भी अँधा चोट निशाना पड़ जाता है। इससे कोई सफल खिलाडी नहीं हो जाता। सफल खिलाडी वो है जिसका कोई निशाना खाली न जाये।

शब्दार्थ
अंधे के हाथ बटेर लगना  –
बिना प्रयास बड़ी चीज पा लेना
अँधा चोट निशाना –
अनजाने में सही निशाना लगाना

व्याख्या –  बड़े भाई साहब कहते है कि लेखक को भी यह पता है कि वह कोई अपनी मेहनत से पास नहीं हुआ है, उसे बिना प्रयास के ही सफलता मिली है। बिना प्रयास के सफलता एक बार मिल सकती है बार – बार नहीं यह लेखक अच्छी तरह जनता है। कभी – कभी अगर गुल्ली – डंडे में भी अनजाने में सही निशाना लग जाये तो इससे हम उस निशाने लगाने वाले को सफल खिलाडी नहीं मान सकते। सफल खिलाडी उसी को कहा जा सकता है जिसका एक भी निशाना खाली ना जाये।

पाठ – मेरे फेल होने पर मत जाओ, मेरे दरजे में आओगे, तो दाँतों पसीना आ जायेगा,जब अलजबरा और जामेट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे और इंग्लिस्तान का इतिहास पढ़ना पड़ेगा। बादशाहों के नाम याद रखना कोई आसान नहीं। आठ – आठ हेनरी हो गुजरें हैं। कौन सा कांड किस हेनरी के समय में हुआ, क्या यह याद कर लेना आसान समझते हो ?

bade

शब्दार्थ
दाँतों पसीना आ जाना –
बहुत मेहनत करना
लोहे के चने चबाना –
कठोर परिश्रम करना
कांड –
घटना

(यहाँ भाई साहब अपनी कक्षा की कठिन पढाई का वर्णन कर रहे हैं )

व्याख्या –  बड़े भाई साहब लेखक को कहते हैं कि वे ये मत सोचो कि वे फेल हो गए हैं, बड़े भाई साहब लेखक को कहते हैं कि जब जब वह उनकी कक्षा में आएगा, तब उसे पता चलेगा कि कितनी मेहनत करनी पड़ती है। जब अलजेबरा और जामेट्री करते हुए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा और इंग्लिस्तान का इतिहास याद करना पड़ेगा तब उसे  पता चलेगा। बादशाहों के नाम याद रखने में ही कितनी परेशानी होती है। हेनरी नाम के ही आठ – आठ बादशाह हुए हैं। कौन सी घटना किस हेनरी के समय में हुई है क्या लेखक इसको याद करना इतना आसान समझता है ?

पाठ – हेनरी सातवें की जगह हेनरी आठवाँ लिखा और सब नंबर गायब। सफ़ाचट। सिफ़र भी ना मिलेगा, सिफ़र भी। हो किस खयाल में। दरजनों तो जेम्स हुए हैं, दरजनों विलियम, कोड़ियों चार्ल्स। दिमाग चक्कर खाने लगता है। आंधी रोग हो जाता है। इन अभागों को नाम भी ना जुड़ते थे। एक ही नाम के पीछे दोयम, सोयम, चाहरूम, पंचुम लगाते चले गए। मुझसे पूछते तो दस लाख नाम बता देता।

शब्दार्थ
सफ़ाचट –
बिलकुल साफ़
सिफ़र –
शून्य

व्याख्या – अगर हेनरी सातवें की जगह गलती से हेनरी आठवाँ लिख दिया तो समझो सारे नंबर गायब। बिलकुल साफ़। समझ लो शून्य भी नहीं मिलेगा। लेखक को लगता है कि वह किस्मत से पास हो जाएगा। दरजनों के हिसाब से जेम्स, विलियम और चार्ल्स हुए हैं। दिमाग काम करना बंद कर देता है । आँखों से दिखना बंद हो जाता है। ऐसा लगता है बेचारों को नाम रखने भी नहीं आते थे। एक ही नाम के पीछे दोयम, सोयम, चाहरूम, पंचुम लगा कर काम चलाते थे। बड़े भाई साहब कहते हैं कि अगर उनसे नाम पूछते तो दस लाख नाम बता देते।

पाठ – और जामेट्री तो बस, खुदा की पनाह। अ ब ज की जगह अ ज ब लिख दिया और सारे नंबर कट गए। कोई इन निर्दयी मुमतहिनों से नहीं पूछता कि आखिर अ ब ज और अ ज ब में क्या फ़र्क है, और व्यर्थ की बात के लिए क्यों छात्रों का खून करते हो। दाल – भात – रोटी खाई या भात – दाल -रोटी खाई इसमें क्या रखा है, मगर इन परीक्षकों को क्या परवाह। वह तो वही देखते हैं जो पुस्तकों में लिखा है। चाहते हैं की लड़के अक्षर – अक्षर रट डालें। और इसी रटंत का नाम शिक्षा रख छोड़ा है और आखिर इन बे-सिर-पैर की बातों के पढ़ने से फ़ायदा ?

शब्दार्थ
पनाह –
शरण
निर्दयी –
जिसमें दया न हो
मुमतहिनों –
परीक्षक
बे -सिर -पैर –
बिना अर्थ का

(यहाँ पर भाई साहब शिक्षा प्रणाली पर व्यंग्य कर रहे हैं )

व्याख्या – जामेट्री समझने के लिए तो ईश्वर की शरण लेनी पड़ती है। अ ब ज की जगह अ ज ब लिख दिया तो समझो सरे नंबर कट जायेंगे। कोई भी ऐसा नहीं है जो इन परीक्षकों से पूछे की अ ब ज और अ ज ब में आखिर क्या अंतर है। दाल-भात-रोटी खाएं या भात -दाल -रोटी इसमें क्या फर्क है। मगर परीक्षकों को इससे क्या मतलब। वो तो सिर्फ वही सही मानते हैं जो पुस्तकों में लिखा होता है। वे तो बस यही चाहते हैं की लड़के एक -एक अक्षर रट लें। और इसी रटत प्रणाली को शिक्षा का नाम दे रखा है और इन बिना अर्थ की बातों को पढ़ने से आखिर फ़ायदा है क्या ?

पाठ – इस रेखा पर यह लंब गिरा दो, तो आधार लंब से दुगुना होगा। पूछिए, इससे प्रयोजन? दुगुना नहीं, चौगुना हो जाये, या आधा ही रहे मेरी बला से, लेकिन परीक्षा में पास होना है, तो यह खुराफ़ात याद करनी पड़ेगी।

शब्दार्थ

प्रयोजन – उद्देश्य
खुराफ़ात –
व्यर्थ की बातें

(यहाँ भाई साहब गणित की बात कर रहे हैं )

व्याख्या – इस रेखा पर यह लंब गिरा दो, तो आधार लंब दुगुना हो जायेगा। ये गणित के सूत्रों से संभव है। लेकिन इनका उद्देश्य क्या है ,कोई यह भी तो बताओ ? दुगुना न हो कर चौगुना हो जाये या आधा ही रहे बड़े भाई साहब कहते हैं कि इससे उन्हें क्या । लेकिन अगर परीक्षा में पास होना है तो जो किताबों में लिखा है उससे वैसे ही लिखना पड़ेगा और ये व्यर्थ की बाते याद करनी पड़ेगी जिनका कोई काम नहीं।

पाठ – कह दिया – ‘समय की पाबंदी ‘पर एक निबंध लिखो,जो चार पन्नों से कम ना हो। अब आप कॉपी सामने खोले, कलम हाथ में लिए उसके नाम को रोइए। कौन नहीं जानता की समय की पाबंदी बहुत अच्छी बात है। इससे आदमी के जीवन में संयम आ जाता है, दूसरों का उस पर स्नेह होने लगता है और उसके कारोबार में उन्नति होती है, लेकिन इस ज़रा-सी बात पर चार पन्नें कैसे लिखें ? जो बात एक वाक्य में कही जा सके, उसे चार पन्नों में लिखने की जरुरत? मैं तो इसे हिमाकत कहता हूँ। यह तो समय की किफ़ायत नहीं, बल्कि उसका दुरूपयोग है कि व्यर्थ में किसी बात को ठूँस दिया जाए।

bade

शब्दार्थ
हिमाकत –
बेवकूफ़ी
किफ़ायत –
बचत से
दुरूपयोग –
अनुचित उपयोग

(यहाँ भाई साहब समय के दुरूपयोग की बात कर रहे हैं )

व्याख्या – परीक्षा में कहा जाता है कि -‘समय की पाबंदी’ पर निबंध लिखो, जो चार पन्नों से कम नहीं होना चाहिए। अब आप अपनी कॉपी सामने रख कर अपनी कलम हाथ में लेकर सोच-सोच कर पागल होते रहो। समय की पाबंदी बहुत अच्छी बात है ये कौन नहीं जानता। समय की कदर करने से आदमी का जीवन अच्छे से चलता है, दूसरे उससे प्यार करते हैं और उसका काम भी कभी ख़राब नहीं होता वो हमेशा आगे बढ़ता जाता है, लेकिन इतनी सी बात के लिए कोई चार पन्नें कैसे लिख सकते हैं? जो बात आप एक वाक्य में कह सकते हैं, उसके लिए चार पन्नें लिखने की क्या जरुरत ? बड़े भाई साहब तो इसे बेवकूफ़ी मानते हैं । यह तो समय की बचत नहीं, बल्कि उसका अनुचित उपयोग है कि व्यर्थ में ही आप किसी बात को ठूँस-ठूँस कर लिखो जिसकी जरुरत ही नहीं है।

पाठ – हम चाहते हैं, आदमी को जो कुछ कहना हो, चटपट कह दे और अपनी राह ले। मगर नहीं, आपको चार पन्नें रंगने पड़ेंगे ,चाहे जैसे लिखिए और पन्ने भी पुरे फुलस्केप आकर के। यह छात्रों पर अत्याचार नहीं, तो और क्या है? अनर्थ तो यह है कि कहा जाता है कि संक्षेप में लिखो। समय की पाबन्दी पर एक निबंध लिखो, जो चार पन्नों से काम ना हो। ठीक। संक्षेप में तो चार पन्ने हुए, नहीं शायद सौ-दो-सौ पन्ने लिखवाते।

शब्दार्थ
चटपट –
फटाफट
अनर्थ –
अर्थहीन

व्याख्या – भाई साहब चाहते हैं कि आदमी जो कुछ भी कहना चाहता हो, फटाफट कह दे और अपने काम से काम रखे। लेकिन नहीं, चाहे जो हो जाये आपको चार पन्ने लिखने ही पड़ेंगे, आप जैसे मर्जी लिखो और पन्ने भी पुरे बड़े आकर के। इसको आप छात्रों पर अत्याचार नहीं कहोगे तो और क्या कहोगे? अर्थहीन बात तो ये हो जाती है कि कहा जाता है संक्षेप में लिखो। अब आप ही कहो एक निबंध लिखना है वो भी संक्षेप में फिर भी चार पन्नों का होना चाहिए। समझे। संक्षेप में चार पन्ने लिखने को कहा जाता है, नहीं तो शायद सौ-दो-सौ पन्ने लिखवाते।

पाठ – तेज़ भी दौड़िए और धीरे-धीरे भी। है उलटी बात, है या नहीं? बालक भी इतनी सी बात समझ सकता है, लेकिन इन अध्यापकों को इतनी तमीज़ भी नहीं। उस पर दावा है कि हम अध्यापक हैं। मेरे दरजे में आओगे लाला, तो ये सारे पापड बेलने पड़ेंगे और तब आटे-दाल का भाव मालूम होगा। इस दरजे में अव्वल आ गए हो, तो जमीन पर पाँव नहीं रखते। इसलिए मेरा कहना मानिए। लाख फेल हो गया हूँ, लेकिन तुमसे बड़ा हूँ, संसार का मुझे तुमसे ज्यादा अनुभव है। जो कुछ कहता हूँ उसे गिरह बाँधिए, नहीं पछताइएगा।

Important Questions and Answers

शब्दार्थ
तमीज़ –
अच्छे -बुरे की पहचान
पापड बेलना –
कठिन काम
आटे -दाल का भाव –
सारी बाते पता चलना

(यहाँ भाई साहब छोटे भाई को अपनी बात मानने को कह रहे हैं )

व्याख्या – भाई साहब का मानना था कि यह शिक्षा प्रणाली बच्चों को तेज़ दौड़ने को भी कहती है और धीरे भी। अब ऐसी अजीब बात कैसे हो सकती है? छोटा बच्चा भी ये बात समझ सकता है लेकिन इन अध्यापकों को इतनी भी सही गलत की पहचान नहीं है और ऊपर से दावा करते हैं कि वे अध्यापक हैं। भाई साहब छोटे भाई से कहते हैं कि वह उनकी कक्षा में आएगा तब उसे इन कठिनाइयों का पता चलेगा और इन सारी बातों का पता चलेगा। लेखक अपनी कक्षा में प्रथम आ गया है, तो इतना घमंड आ गया है। इसलिए बड़े भाई साहब कहते हैं कि उनका कहना माने । वे बहुत बार फेल हुए हैं लेकिन लेखक से बड़े हैं और संसार का लेखक से ज्यादा अनुभव है। बड़े भाई साहब कहते हैं कि  वे जो कुछ समझा रहे हैं उन्हें समझ जाना चाहिए नहीं तो वे पछताएँगे ।

पाठ – स्कूल का समय निकट था, नहीं ईश्वर जाने यह उपदेश-माला कब समाप्त होती। भोजन आज मुझे निःस्वाद-सा लग रहा था। जब पास होने पर यह तिरस्कार हो रहा है, तो फेल हो जाने पर तो शायद प्राण ही ले लिए जाएँ। भाई साहब ने अपने दरजे की पढ़ाई का जो भयंकर चित्र खींचा था, उसने मुझे भयभीत कर दिया। स्कूल छोड़ कर घर नहीं भागा, यही ताज्जुब है, लेकिन इतने तिरस्कार पर भी पुस्तकों में मेरी अरुचि ज्यों की त्यों बनी रही। खेल-कूद का कोई अवसर हाथ से ना जाने देता। पढता भी, लेकिन बहुत कम। बस, इतना कि रोज टास्क पूरा हो जाये और  दरजे में जलील न होना पड़े। अपने ऊपर जो विश्वास पैदा हुआ था, वह फिर लुप्त हो गया और फिर चोरों का-सा जीवन काटने लगा।

शब्दार्थ
निःस्वाद –
बिना स्वाद का
ताज्जुब –
आश्चर्य
ज्यों की त्यों –
जैसे की तैसी
जलील –
बेशर्म
लुप्त –
गायब

(यहाँ भाई साहब की डांट के बाद छोटे भाई की प्रतिक्रिया दिखाई गई है )

व्याख्या – स्कूल जाने का समय हो रहा था, पता नहीं भाई साहब का ये समझाना कब ख़त्म होगा। आज लेखक को भोजन में कोई स्वाद नहीं लग रहा था। लेखक सोच रहा था कि अगर पास होने पर इतनी बेज्जती हो रही है तो अगर वह फेल हो गया होता तो पता नहीं भाई साहब क्या करते, शायद उसके प्राण ही ले लेते। भाई साहब ने अपनी कक्षा की पढाई का जो खतरनाक रूप दिखाया था उसको जान कर तो लेखक डर सा गया। हैरानी इस बात की है कि लेखक ये सब जान कर घर नहीं भागा। लेकिन इतनी बेज्जती होने के बाद भी पुस्तकों के प्रति उसकी कोई रूचि नहीं हुई। खेल-कूद का जो भी अवसर मिलता वह हाथ से नहीं जाने देता। पढ़ता भी था, लेकिन बहुत कम। बस इतना पढ़ता था की कक्षा में बेज्ज़ती न हो। अपने ऊपर जो विश्वास पैदा हुआ था कि वह बिना पढ़े भी पास हो सकता है, वो कहीं गायब हो गया और फिर से वह भाई साहब से छुप छुप कर जीने लगा।

पाठ – फिर सालाना इम्तिहान हुआ और कुछ ऐसा संयोग हुआ कि मैं फिर पास हुआ और भाई साहब फिर फेल हो गए। मैंने बहुत मेहनत नहीं की, पर न जाने कैसे दरजे में अव्वल आ गया। मुझे खुद अचरज हुआ। भाई साहब ने प्राणांतक परिश्रम किया। कोर्स का एक-एक शब्द चाट गए थे, दस बजे रात तक इधर, चार बजे भोर से उधर, छः से साढ़े नौ तक स्कूल जाने के पहले। मुद्रा कांतिहीन हो गई थी, मगर बेचारे फेल हो गए। मुझे इन पर दया आती थी। नतीजा सुनाया गया, तो वह रो पड़े और मैं भी रोने लगा। अपने पास होने की ख़ुशी आधी हो गई। मैं भी फेल हो गया होता, तो भाई साहब को इतना दुःख न होता, लेकिन विधि की बात कौन टालें !

bade

शब्दार्थ
अचरज –
हैरानी
प्राणांतक – बहुत अधिक कठिन परिश्रम
कांतिहीन – बिना किसी चमक के
विधि – किस्मत

व्याख्या – फिर से सालाना परीक्षा हुई और कुछ ऐसा इतिफाक हुआ कि लेखक फिर से पास हो गया और भाई साहब इस बार फिर फेल हो गए। लेखक ने बहुत अधिक मेहनत नहीं की थी लेकिन ना जाने कैसे वह इस बार भी अपनी कक्षा में प्रथम आ गया। लेखक को बहुत हैरानी हुई। भाई साहब ने बहुत अधिक कठोर परिश्रम किया था। अपनी पुस्तकों का एक -एक शब्द रट लिया था, रात के दस बजे तक यहाँ, सुबह चार बजे तक वहां, छः से साढ़े नौ तक स्कूल जाने से पहले तक लगातार पढ़ाई में व्यस्त रहते थे। चेहरे में कोई चमक बाकि नहीं रह गई थी, लेकिन बेचारे फेल हो गए। लेखक को इन पर दया आती थी। जब परीक्षा का परिणाम सुनाया गया तो भाई साहब रोने लगे और लेखक भी रोने लगा। लेखक की पास होने की ख़ुशी आधी रह गई थी। लेखक सोच रहा था कि वह भी फेल हो गया होता तो भाई साहब को इतना दुःख नहीं होता, लेकिन किस्मत को कौन टाल सकता है।

पाठ – मेरे और भाई साहब के बीच में अब केवल एक दरजे का और अंतर रह गया। मेरे मन में एक कुटिल भावना उदय हुई कि कहीं भाई साहब एक और साल फेल हो जाएँ, तो मैं उनके बराबर हो जाऊँ, फिर वह किस आधार पर मेरी फ़ज़ीहत कर सकेंगे, लेकिन मैने इस विचार को अपने मन से बल पूर्वक निकल डाला। आखिर वह मुझे मेरे हित के विचार से ही तो डांटते हैं। मुझे इस वक्त अप्रिय लगता है अवश्य, मगर यह शायद उनके उपदेशों का असर है कि मैं दनादन पास हो जाता हूँ और इतने अच्छे नंबरों से।

शब्दार्थ
कुटिल भावना –
बुरा विचार
फ़ज़ीहत –
बेज्ज़ती

व्याख्या – लेखक और भाई साहब के बीच अब केवल एक ही कक्षा का अंतर रह गया था। उसके मन में एक बुरा विचार आया कि अगर भाई साहब एक और बार इसी कक्षा में फेल हो जाएँ तो वह और भाई साहब एक ही कक्षा में होंगे। तब तो वो उसे किसी भी आधार पर नहीं डांट सकते और न ही उसकी बेज्ज़ती कर सकते हैं। लेकिन लेखक ने इस बुरे विचार को अपने मन से बलपूर्वक निकाल दिया। क्योंकि लेखक को भी यह पता था कि भाई साहब उसे उसकी ही भलाई के लिए डाँटते हैं। उस समय उसे जरूर बुरा लगता है लेकिन वह जनता है कि यह उनके ही उपदेशों और डाँट का नतीजा है कि वह फटाफट पास हो रहा है वो भी इतने अच्छे नंबरों से।

bade

पाठ – अब भाई साहब बहुत कुछ नरम पड़ गए थे। कई बार मुझे डाँटने का अवसर पाकर भी उन्होंने धीरज से काम लिया। शायद वे खुद समझने लगे थे कि मुझे डाँटने का अधिकार उन्हें नहीं रहा, या रहा भी, तो बहुत कम। मेरी स्वच्छंदता भी बड़ी। मैं उनकी सहिष्णुता का अनुचित लाभ उठाने लगा। मुझे कुछ ऐसी धारणा हुई कि मैं पास ही हो जाऊंगा, पढ़ूँ या ना पढ़ूँ, मेरी तक़दीर बलवान है, इसलिए भाई साहब के डर से जो-थोड़ा बहुत पढ़  लिया करता था, वह भी बंद हुआ। मुझे कनकौए उड़ाने का नया शौक पैदा हो गया था और अब सारा समय पतंगबाज़ी की ही भेंट होता था, फिर भी मैं भाई साहब का अदब करता था और उनकी नजर बचाकर कनकौए उडाता था। मांझा देना, कन्ने बाँधना, पतंग टूर्नामेंट की तैयारियाँ आदि समस्याएँ सब गुप्त रूप से हल की जाती थी। मैं भाई साहब को यह संदेह नहीं होने देना चाहता था की उनका सम्मान और लिहाज़ मेरी नजरों में कम हो गया है।

शब्दार्थ
स्वच्छंदता –
स्वतंत्रता
सहिष्णुता –
सहनशीलता
अनुचित –
गलत
कनकौए –
पतंग
अदब –
इज्जत

(यहाँ छोटे भाई का परीक्षा परिणाम के बाद का व्यवहार प्रस्तुत किया गया है )

व्याख्या – अब भाई साहब का स्वभाव कुछ नरम हो गया था। कई बार लेखक को डाँटने का अवसर होने पर भी वे लेखक को नहीं डाँटते थे, शायद उन्हें खुद ही लग रहा था कि अब उनके पास लेखक को डाँटने का अधिकार नहीं है और अगर है भी तो बहुत कम। अब लेखक की स्वतंत्रता और भी बड़ गई थी। वह भाई साहब की सहनशीलता का गलत उपयोग कर रहा था। उसके अंदर एक ऐसी धारणा ने जन्म ले लिया था कि वह चाहे पढ़े या न पढ़े, वह तो पास हो ही जायेगा । उसकी किस्मत बहुत अच्छी है इसीलिए भाई साहब के डर से जो थोड़ा बहुत पढ़ लिया करता था ,वह भी बंद हो गया। अब लेखक को पतंगबाज़ी का नया शौक हो गया था और अब उसका सारा समय पतंगबाज़ी में ही गुजरता था। फिर भी ,वह भाई साहब की इज्जत करता था और उनकी नजरों से छिप कर ही पतंग उडाता था। मांझा देना ,कन्ने बाँधना, पतंग टूर्नामेंट की तैयारियाँ ये सब काम भाई साहब से छुप कर किया जाता था,वह भाई साहब को ये नहीं लगने देना चाहता था कि उनका सम्मान और इज्जत उसकी नजरों में कम हो गई है।

पाठ – एक दिन संध्या समय, हॉस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला जा रहा था ,मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकल कर विरक्त मन से नए संस्करण ग्रहण करने जा रही हो। बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी। किसी को अपने आगे पीछे की ख़बर ना थी। सभी मनो उस पतंग के साथ ही आकाश में उड़ रहे थे, जहाँ सबकुछ समतल है, न मोटरकारें हैं, न ट्राम, न गाड़ियां।

शब्दार्थ
संध्या –
शाम का समय
बेतहाशा –
जिसे किसी की खबर न हो

व्याख्या – एक दिन शाम के समय, हॉस्टल से दूर लेखक  एक पतंग को पकड़ने के लिए बिना किसी की परवाह किये दौड़ा जा रहा था। आँखे आसमान की ओर थी और मन उस आकाश में उड़ने वाले पतंग की ओर था ,जो धीरे धीरे झूमता हुआ अपने अंत की और आ रहा था ,वो इस तरह लग रहा था मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकाल कर साफ़ मन से नए शरीर को धारण करने जा रही हो। बालकों की पूरी सेना झाड़दार बाँस के डंडे लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही हो। किसी को अपने आगे पीछे किसी चीज़ की परवाह नहीं थी। ऐसा लग रहा था मानो सभी बच्चे पतंग के साथ ही आकाश में उड़ रहे हों, जहाँ सब कुछ सीधा है, कोई मोटरकारें नहीं, कोई ट्राम नहीं और न ही कोई गाड़ियाँ।

पाठ – सहसा भाई साहब से मेरी मुठभेड़ हो गई, जो शायद बाजार से लौट रहे थे। उन्होंने वहीँ हाथ पकड़ लिया और उग्र भाव से बोले -‘इन बाजारी लौडों के  साथ धेले के कनकौए के लिए दौड़ते तुम्हें शर्म नहीं आती ? तुम्हें इसका भी कोई लिहाज नहीं कि अब नीची जमात में नहीं हो, बल्कि आठवीं जमात में आ गए हो और मुझसे केवल एक दरजा निचे हो। आखिर आदमी को कुछ तो अपनी पोज़िशन का ख्याल करना चाहिए।

शब्दार्थ
मुठभेड़ –
आमना -सामना
उग्र –
क्रोध
लिहाज –
शर्म
जमात –
कक्षा
पोज़िशन –
पदवी

व्याख्या – अचानक भाई साहब से उसका आमना -सामना हुआ, वे शायद बाजार से घर लौट रहे थे। उन्होंने बाजार में ही उसका हाथ पकड़ लिया और बड़े क्रोधित भाव से बोले ‘इन बेकार के लड़कों के साथ तुम्हें बेकार के पतंग को पकड़ने के लिए दौड़ते हुए शर्म नहीं आती ? तुम्हे इसका भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि अब तुम छोटी कक्षा में नहीं हो, बल्कि अब तुम आठवीं कक्षा में हो गए हो और मुझसे सिर्फ एक कक्षा पीछे पढ़ते हो। आखिर आदमी को थोड़ा तो अपनी पदवी के बारे में सोचना चाहिए।

पाठ – एक जमाना था कि लोग आठवाँ दरजा पास करके नायब तहसीलदार हो जाते थे। मैं कितने ही मिडिलचियों को जनता हूँ, जो आज अव्वल दर्जे के मैजिस्ट्रेट या सुपरिटेंडेंट हैं। कितने ही आठवीं जमात वाले हमारे लीडर या समाचार पत्रों के संपादक हैं। बड़े -बड़े विद्वान उनकी मातहती में काम करते हैं और तुम उसी आठवें दरजे में आकर बाज़ारी लौंडों के साथ कनकौए के लिए दौड़ रहे हो। मुझे तुम्हारी इस कम अक़्ली पर दुःख होता है। तुम ज़हीन हो, इसमें शक नहीं, लेकिन यह ज़ेहन किस काम का जो हमारे आत्मगौरव की हत्या कर डाले।

शब्दार्थ
मिडिलचियों –
दसवीं पास
मातहती –
कहे अनुसार
ज़हीन –
प्रतिभावान

(यहाँ भाई साहब छोटे भाई के पतंग के पीछे भागने को बेवकूफी बता रहे है )

व्याख्या –  एक समय था जब लोग आठवीं पास करके नायब तहसीलदार लग जाते थे। बड़े भाई साहब कितने ही दसवीं पास लोगों को जानते हैं जो आज बड़े दर्जे के मैजिस्ट्रेट या सुपरिटेंडेंट हैं। ना जाने कितने आठवीं कक्षा पास वाले हमारे नेता या समाचार पत्रों के संपादक हैं। बड़े -बड़े विद्वान् लोग उनके अनुसार काम करते हैं और लेखक  उसी आठवीं कक्षा में आकर भी इन निकम्मे बाजारी लड़कों के साथ पतंग के लिए दौड़ रहा है । भाई साहब को लेखक की कम अक्ल पर दुःख होता है।  लेखक में प्रतिभा थी पर जो प्रतिभा लाज शर्म न सिखाए वो व्यर्थ है।

पाठ – तुम अपने दिल में समझते होंगें, मैं भाई साहब से महज़ एक दरजा निचे हूँ और अब उन्हें मुझे कुछ कहने का हक नहीं है, लेकिन यह तुम्हारी गलती है। मैं तुमसे पांच साल बड़ा हूँ और चाहे आज तुम मेरी ज़मात में आ जाओ  और परीक्षकों का यही हाल है, तो निःसंदेह अगले साल तुम मेरे समकक्ष हो जाओगे और शायद एक साल बाद मुझसे आगे भी निकल जाओ, लेकिन मुझमे और तुममे जो पांच साल का अंतर है,उसे तुम क्या, खुदा भी नहीं मिटा सकता। मैं तुमसे पांच साल बड़ा हूँ और हमेशा रहूँगा। मुझे दुनिया का और जिंदगी का जो तजुरबा है, तुम उसकी बराबरी नहीं कर सकते, चाहे तुम एम.ए. और डी.फील और डी.लिट् ही क्यों न हो जाओ।

शब्दार्थ
महज़ –
सिर्फ
समकक्ष –
एक ही कक्षा में
तजुरबा –
अनुभव

( यहाँ भाई साहब अपने बड़े होने का अधिकार समझा रहे हैं )

bade

व्याख्या – बड़े भाई साहब लेखक से कहते हैं कि लेखक को लगता होगा कि वह भाई साहब से सिर्फ एक ही कक्षा पीछे रह गया है और अब उन्हें लेखक को डाँटने या कुछ कहने का कोई हक नहीं है, लेकिन ये सोचना लेखक की गलती है।बड़े भाई साहब लेखक से पांच साल  बड़े हैं और हमेशा रहेंगे और चाहे लेखक कल बड़े भाई साहब की ही कक्षा में क्यों न आ जाए और शायद एक साल बाद बड़े भाई साहब से आगे भी निकल जाये, लेकिन जो अंतर लेखक की और बड़े भाई साहब की उम्र में है उस अंतर को लेखक क्या खुदा भी नहीं मिटा सकता।बड़े भाई साहब लेखक से पांच साल बड़े हैं और हमेशा रहेंगे। बड़े भाई साहब को  दुनिया और जिंदगी का जो अनुभव है, उसकी बराबरी लेखक कभी नहीं कर सकता, लेखक चाहे एम.ए. हो जाए या डी.फील या डी.लिट्, बड़े भाई साहब का तजुरबा हमेशा लेखक से अधिक ही रहेगा।

पाठ – समझ किताबें पढ़ने से नहीं आती, दुनिया देखने से आती है। हमारी अम्माँ ने कोई दरजा नहीं पास किया और दादा भी शायद पांचवी -छठी जमात से आगे नहीं गए, लेकिन हम दोनों चाहे साड़ी दुनिया की विद्या पढ़ लें, अम्माँ और दादा को हमें समझने और सुधरने का अधिकार हमेशा रहेगा। केवल इसलिए नहीं कि वे हमारे जन्मदाता हैं, बल्कि इसलिए कि उन्हें दुनिया का हमसे ज्यादा तजुरबा है और रहेगा। अमेरिका में किस तरह की राज -व्यवस्था है, और आठवें हेनरी ने कितने ब्याह किये और आकाश में कितने नक्षत्र है ,यह बातें चाहे उन्हें ना मालुम हों, लेकिन हजारों ऐसी बातें हैं, जिनका ज्ञान उन्हें हमसे और तुमसे ज्यादा है।

शब्दार्थ
जन्मदाता –
जन्म देने वाले

(यहाँ भाई साहब किताबी ज्ञान से ज्यादा तजुरबे को महत्त्व दे रहे हैं )

व्याख्या – समझ किताबें पढ़ लेने से नहीं आती, बल्कि दुनिया देखने से आती है।लेखक की और बड़े भाई साहब की अम्मा ने कोई कक्षा नहीं पढ़ी और दादा भी शायद पांचवी या छठी तक ही पढ़े होंगे। लेकिन वे दोनों चाहे दुनिया का सारा ज्ञान इकठ्ठा कर लें परन्तु अम्माँ और दादा को जो अधिकार उन्हें सुधारने और समझाने का है, यह हमेशा ही रहेगा। सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने लेखक और बड़े भाई साहब को जन्म दिया है, बल्कि इसलिए कि उन्हें लेखक और बड़े भाई साहब से ज्यादा दुनिया और जिंदगी का तजुरबा है। अमेरिका में किस तरह की राज – व्यवस्था है और आठवें हेनरी ने कितने ब्याह किये और आकाश में कितने नक्षत्र है, ये किताबी ज्ञान चाहे उन्हें पता न हो परन्तु ऐसी हजारों बातें हैं, जिनका ज्ञान उन्हें उन से ज्यादा है।

पाठ – दैव न करे, आज मैं बीमार हो जाऊँ, तो तुम्हारे हाथ-पाँव फूल जायेंगे। दादा को तार देने के सिवा तुम्हें और कुछ न सूझेगा, लेकिन तुम्हारी जगह दादा हो, तो किसी को तार ना दें, न घबराएं, न बदहवास हों। पहले खुद मरज़ पहचान कर इलाज करेंगे, उसमें सफल न हुए तो किसी डॉक्टर को बुलाएँगे। बिमारी तो ख़ैर बड़ी चीज़ है। हम तुम तो इतना भी नहीं जानते कि महीने भर का खर्च महीना भर कैसे चले। जो कुछ दादा भेजते हैं, उसे हम बीस-बाइस तक खर्च कर डालते हैं और फिर पैसे-पैसे को मुहताज हो जाते हैं। नाश्ता बंद हो जाता है, धोबी और नाई से मुँह चुराने लगते हैं, लेकिन जितना आज हम और तुम खर्च कर रहे हैं, उसके आधे में दादा ने अपनी उम्र का बड़ा भाग इज्जत और नेकनामी के साथ निभाया है और कुटुम्ब का पालन किया है, जिसमे सब मिलाकर नौ आदमी थे।

शब्दार्थ
हाथ -पाँव फूल जाना –
परेशान हो जाना
बदहवास –
बोखलाना
मरज़ –
बीमारी
मुहताज –
दूसरों पर आश्रित
कुटुम्ब –
परिवार

(यहाँ भाई साहब तजुरबे के महत्त्व को समझा रहे हैं )

व्याख्या – बड़े भाई साहब लेखक को कहते हैं कि अगर बड़े भाई साहब बीमार हो जाएँ  ,तो लेखक तो परेशान हो जायेगा । दादा को तार लिखने के अलावा लेखक को और कुछ समझ नहीं आयेगा, लेकिन अगर लेखक की जगह दादा हों तो वे न तो किसी को तार भेजेंगे, न घबराएंगे और न ही बोखलायेंगे। पहले खुद बिमारी को पहचान कर इलाज करेंगे, अगर ठीक न हुए तो किसी डॉक्टर को बुलाएँगे। बिमारी तो बहुत बड़ी चीज़ है। बड़े भाई साहब और लेखक तो इतना भी नहीं जानते कि जो उन्हें महीने का खर्च मिलता है उसे महीने -भर कैसे चलाना है। जो कुछ भी दादा भेजते है वो तो वे बीस – बाइस दिनों में ही ख़त्म कर देते हैं और फिर पैसे – पैसे को दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है। सुबह का नाश्ता बंद हो जाता है, धोबी और नाइ से छुपना पड़ता है, लेकिन जितना बड़े भाई साहब और लेखक आज खर्च कर रहे है उतने में तो दादा ने अपनी उम्र का बड़ा हिस्सा इज्जत और अच्छे कामों को करते हुए जिया है और परिवार का  पालन किया है, जिसमें नौ व्यक्ति हुआ करते थे।

पाठ – अपने हेडमास्टर साहब ही को देखो। एम.ए है की नहीं और यहाँ के एम.ए.नहीं ,आक्सफोर्ड के। एक हजार रूपए पते हैं; लेकिन उनके घर का इंतजाम कौन करता है ? उनकी बूढ़ी माँ। हेडमास्टर साहब की डिग्री यहाँ बेकार हो गई। पहले खुद घर का इंतजाम करते थे। खर्च पूरा न पड़ता था। कर्जदार रहते थे। जब से उनकी माता जी ने प्रबंध अपने हाथ में लिया है, जैसे घर में लक्ष्मी आ गई है। तो, भाई जान यह गरूर दिल से निकल डालो की तुम मेरे समीप आ गए हो और अब स्वतन्त्र हो। मेरे देखते तुम बेराह न चलने पाओगे। अगर तुम यों न मानोगे तो मैं (थप्पड़ दिखाकर )इसका प्रयोग भी कर सकता हूँ। मैं जनता हूँ तुम्हे मेरी बातें ज़हर लग रही होगी।

शब्दार्थ
गरूर –
घमंड
बेराह – रास्ते से भटकना

व्याख्या –  बड़े भाई साहब लेखक को उदाहरण देते हुए कहते हैं कि अपने हेडमास्टर साहब को ही देखो। उन्होंने एम.ए. की हुई है वो भी ऑक्सफोर्ड से। यहाँ प्रति महीना एक हजार रूपए कमाते है; लेकिन उनके घर का इंतजाम कौन करता है ? उनकी बूढ़ी माँ। यहाँ पर हेडमास्टर साहब की डिग्री तजुरबे के आगे बेकार हो गई। पहले खुद घर का खर्च चलाते थे। खर्च पूरा नहीं पड़ता था और हमेशा कर्ज़दार रहते थे। जबसे उनकी माता जी ने घर का खर्च अपने हाथ में लिया है मानो  लक्ष्मी आ गई हो। बड़े भाई साहब लेखक को कहते हैं कि यह घमंड जो अपने दिल में पाल रखा है कि बिना पढ़े भी पास हो सकते हो और भाई साहब को लेखक को डाँटने और समझने का कोई अधिकार नहीं रहा ,इसे निकाल डालो। बड़े भाई साहब के रहते लेखक कभी गलत रस्ते पर नहीं जा सकता। बड़े भाई साहब लेखक से कहते हैं कि अगर लेखक नहीं मानेगा तो भाई साहब थप्पड़ का प्रयोग भी कर सकते हैं और बड़े भाई साहब लेखक को कहते हैं कि उसको उनकी बात अच्छी नहीं लग रही होगी।

पाठ – मैं उनकी इस नई युक्ति से नत मस्तक हो गया। मुझे आज सचमुच अपनी लघुता का अनुभव हुआ और भाई साहब के प्रति मेरे मन में और श्रद्धा उत्पन्न हुई। मैनें सजल आँखों से कहा-हरगिज नहीं, आप जो कुछ फ़रमा रहे हैं, वह बिलकुल सच है और आपको उसके कहने का अधिकार है।
भाई साहब ने मुझे गले लगा लिया और बोले -मैं कनकौए उड़ने से मना नहीं करता। मेरा भी जी ललचाता है; लेकिन करूँ क्या, खुद बेराह चलूँ, तो तुम्हारी रक्षा कैसे करूँ? यह कर्तव्य भी तो मेरे सर है।
संयोग से उसी वक्त एक कटा हुआ कनकौआ मेरे ऊपर से गुजरा। उसकी डोर लटक रही थी। लड़कों का एक गोल पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था। भाई साहब लम्बे हैं ही। उछल कर उसकी डोर पकड़ ली और बेतहाशा हॉस्टल की और दौड़े। मैं पीछे – पीछे दौड़ रहा था।

शब्दार्थ
युक्ति –
योजना
सजल –
नमी वाली
बेतहाशा-
बिना सोचे समझे

(यहाँ पर बड़े भाई द्वारा किस तरह इच्छाओं को दबाना पडा इसका वर्णन है )

व्याख्या – लेखक भाई साहब की इस समझाने की नई योजना के कारण उनके सामने सर झुका कर खड़ा था। आज लेखक को सचमुच अपने छोटे होने का एहसास हो रहा था न केवल उम्र से बल्कि मन से भी और भाई साहब के लिए उसके मन में इज़्ज़त और भी बड़ गई। लेखक ने उनके प्रश्नो का उत्तर नम आँखों से दिया कि भाई साहब जो कुछ कह रहे है वो बिलकुल सही है और उनको ये सब कहने का अधिकार भी है।
भाई साहब ने लेखक को गले लगा दिया और कहा कि वे लेखक को पतंग उड़ाने से मना नहीं करते हैं। उनका भी मन करता है कि वे भी पतंग उड़ाएँ। लेकिन अगर वे ही सही रास्ते से भटक जायेंगें तो लेखक की रक्षा कैसे करेंगे ? बड़ा भाई होने के नाते यह भी तो उनका ही कर्तव्य है।
इतिफाक से उस समय एक कटी हुई पतंग लेखक  के ऊपर से गुज़री। उसकी डोर कटी हुई थी और लटक रही थी। लड़कों का एक झुण्ड उसके पीछे -पीछे दौड़ रहा था। भाई साहब लम्बे तो थे ही, उन्होंने उछाल कर डोर पकड़ ली और बिना सोचे समझे हॉस्टल की और दौड़े और लेखक भी उनके पीछे-पीछे दौड़ रहा था।

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CBSE Class 10 Hindi Lessons

Chapter 1 Saakhi Chapter 2 Meera ke Pad Chapter 3 Manushyata
Chapter 4 Parvat Pravesh Mein Pavas Chapter 5 TOP Chapter 6 Kar Chale Hum Fida
Chapter 7 Atamtran Chapter 8 Bade Bhai Sahab Chapter 9 Diary ka Ek Panna
Chapter 10 Tantara Vamiro Katha Chapter 11 Teesri Kasam ka Shilpkaar Chapter 12 Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale
Chapter 13 Patjhar Me Tuti Pattiyan Chapter 14 Kartoos Chapter 1 Harihar Kaka (Sanchayan)
Chapter 2 Sapno Ke Se Din (Sanchayan) Chapter 3 Topi Shukla (Sanchayan)

 

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