Parvat Pravesh Mein Pavas (पर्वत प्रदेश में पावस) Summary, Explanation, Word meanings Class 10

 
Parvat Pravesh Mein Pavas Summary
 

CBSE Class 10 Hindi Chapter 4 “Parvat Pravesh Mein Pavas”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Sparsh Bhag 2 Book

 
पर्वत प्रदेश में पावस Here is the CBSE Class 10 Hindi Sparsh Bhag 2 Chapter 4 Parvat Pravesh Mein Pavas Summary with detailed explanation of the lesson ‘Parvat Pravesh Mein Pavas’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary.

 

Parvat Pradesh Mein Paavas Class 10 Hindi Chapter 4

 

parvat

 

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कवि परिचय

कवि – सुमित्रानंदन पंत
जन्म -20 मई 1900 ( उत्तराखंड – कौसानी अलमोड़ा )
मृत्यु – 28 दिसम्बर 1977

Parvat Pradesh Mein Paavas Class 10 Video Explanation

 

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पर्वत प्रदेश में पावस पाठ प्रदेश (Introduction)

भला ऐसा भी कोई इंसान हो सकता है जो पहाड़ों पर ना जाना चाहता हो। जिन लोगों को दूर हिमालय पर जाने का मौका नहीं मिल पाता  वो लोग अपने आसपास के पहाड़ी इलाकों में जाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। जब आप पहाड़ों को याद कर रहें हों और ऐसे में किसी कवि की कविता अगर कक्षा में बैठे बैठे ही आपको ऐसा एहसास करवा दे की आप अभी अभी पहाड़ों से घूम कर आ रहे हों तो बात ही  अलग होती है।
प्रस्तुत कविता भी इसी तरह के रोमांच और प्रकृति के सुन्दर वर्णन से भरी है जिससे आपकी आंखों और मन दोनों को आनंद आएगा। यही नहीं सुमित्रानंदन पंत की बहुत सारी कविताओं को पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे आपके चारों ओर की दीवारे कहीं गायब हो गई हों और आप किसी सुन्दर पर्वतीय जगह पर पहुँच गए हों। जहाँ दूर दूर तक पहाड़ ही पहाड़ हों और झरने बह रहे हों और आप बस वहीं रहना चाह रहे हों।
महाप्राण निराला जी ने भी पंत जी के बारे में कहा था कि उनकी सबसे बड़ी प्रतिभा यह है कि वे अपनी कृतियों को अधिक से अधिक सुन्दर बना देते हैं जिसे पढ़ कर या सुन कर बहुत आनंद आता है।

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पर्वत प्रदेश में पावस पाठ सार (Summary)

कवि ने इस कविता में प्रकृति का ऐसा वर्णन किया है कि लग रहा है कि प्रकृति सजीव हो उठी है। कवि कहता है कि वर्षा ऋतु में प्रकृति का रूप हर पल बदल  रहा है कभी वर्षा होती है तो कभी धूप निकल आती है। पर्वतों पर उगे हजारों फूल ऐसे लग रहे है जैसे पर्वतों की आँखे हो और वो इन आँखों के सहारे अपने आपको अपने चरणों ने फैले दर्पण रूपी तालाब में देख रहे हों। पर्वतो से गिरते हुए झरने कल कल की मधुर आवाज कर रहे हैं जो नस नस को प्रसन्नता से भर रहे हैं। पर्वतों पर उगे हुए पेड़ शांत आकाश को ऐसे देख रहे हैं जैसे वो उसे छूना चाह रहे हों।  बारिश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों,चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है।

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पर्वत प्रदेश में पावस पाठ की व्याख्या

काव्यांश 1
पावस ऋतु थी ,पर्वत प्रवेश ,
पल पल परिवर्तित प्रकृति -वेश।

शब्दार्थ
पावस ऋतु
– वर्षा ऋतु
परिवर्तित – बदलना
प्रकृति -वेश — प्रकृति का रूप

प्रसंग -: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श – भाग 2’ से लिया गया है। इसके कवि ‘सुमित्रानंदन पंत जी ‘हैं। इसमें कवि ने वर्षा ऋतु का सुंदर वर्णन किया है।

व्याख्या -: कवि कहता है कि पर्वतीय क्षेत्र में वर्षा ऋतु का प्रवेश हो गया है। जिसकी वजह से प्रकृति के रूप में बार बार बदलाव आ रहा है अर्थात कभी बारिश होती है तो कभी धूप निकल आती है।

काव्यांश 2
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग- सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार बार ,
नीचे जल ने निज महाकार ,
-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल !

शब्दार्थ
मेखलाकार
– करघनी के आकर की पहाड़ की ढाल
सहस्र – हज़ार
दृग -सुमन – पुष्प रूपी आँखे
अवलोक – देखना
महाकार – विशाल आकार
ताल – तालाब
दर्पण – आईना

प्रसंग -: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श – भाग 2’ से लिया गया है। इसके कवि ‘सुमित्रानंदन पंत जी ‘हैं। इसमें कवि ने पर्वतों का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या -: इस पद्यांश में कवि ने पहाड़ों के आकार की तुलना करघनी अर्थात कमर में बांधने वाले आभूषण से की है । कवि कहता है कि करघनी के आकर वाले पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आंखें फाड़ कर नीचे जल में अपने विशाल आकार को देख रहे हैं।ऐसा लग रहा है कि पहाड़ ने जिस तालाब को अपने चरणों में पाला है वह तालाब पहाड़ के लिए विशाल आईने का काम कर रहा है।

काव्यांश 3
गिरि का गौरव गाकर झर- झर
मद में नस -नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों- से सुन्दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर !
गिरिवर के उर से उठ -उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
है झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष ,अटल कुछ चिंतापर।

शब्दार्थ
गिरि –
पहाड़
मद – मस्ती
झग – फेन
उर – हृदय
उच्चांकाक्षा – ऊँच्चा उठने की कामना
तरुवर –पेड़
नीरव नभ शांत – शांत आकाश
अनिमेष – एक टक

प्रसंग -: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श – भाग 2’ से लिया गया है। इसके कवि ‘सुमित्रानंदन पंत जी ‘हैं। इसमें कवि ने झरनों की सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या -: इस पद्यांश में कवि कहता है कि मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर झरने झर झर की आवाज करते हुए बह रहे हैं ,ऐसा लग रहा है की वे पहाड़ों का गुणगान कर रहे हों। उनकी करतल ध्वनि नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है।
पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँच्चा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं, मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों। अर्थात वे हमें निरन्तर ऊँच्चा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।

काव्यांश 4
उड़ गया ,अचानक लो ,भूधर
फड़का अपार पारद *  के पर !
रव -शेष रह गए हैं निर्झर !
है टूट पड़ा भू पर अम्बर !
धँस गए धारा में सभय शाल !
उठ रहा धुआँ  ,जल गया ताल !
-यों जलद -यान में विचर -विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

शब्दार्थ
भूधर –
पहाड़
पारद *  के पर–  पारे के समान धवल एवं चमकीले पंख
रव -शेष – केवल आवाज का रह जाना
सभय – भय के साथ
शाल- एक वृक्ष का नाम
जलद -यान – बादल रूपी विमान
विचर- घूमना
इंद्रजाल – जादूगरी

प्रसंग :- प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श – भाग 2’ से लिया गया है। इसके कवि ‘सुमित्रानंदन पंत जी ‘हैं। इसमें कवि ने बारिश के कारण प्रकृति का बिल्कुल बदला हुआ रूप दर्शाया है।

व्याख्या :- इस पद्यांश में कवि कहता है कि तेज बारिश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है कि पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो केवल झरने की आवाज़ ही सुनाई दे रही है। प्रकृति का ऐसा भयानक रूप देख कर शाल के पेड़ डर कर धरती के अंदर धंस गए हैं। चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है।

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CBSE Class 10 Hindi Sparsh and Sanchayan Lessons Explanation

Chapter 1 Saakhi Chapter 2 Meera ke Pad Chapter 3 Manushyata
Chapter 4 Parvat Pravesh Mein Pavas Chapter 5 TOP Chapter 6 Kar Chale Hum Fida
Chapter 7 Atamtran Chapter 8 Bade Bhai Sahab Chapter 9 Diary ka Ek Panna
Chapter 10 Tantara Vamiro Katha Chapter 11 Teesri Kasam ka Shilpkaar Chapter 12 Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale
Chapter 13 Patjhar Me Tuti Pattiyan Chapter 14 Kartoos Chapter 1 Harihar Kaka (Sanchayan)
Chapter 2 Sapno Ke Se Din (Sanchayan) Chapter 3 Topi Shukla (Sanchayan)

 

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