संधि और संधि-विच्छेद की परिभाषा, संधि के भेद और उदाहरण (Sandhi ki Paribhasha, Bhed and examples)
संधि और संधि-विच्छेद – इस लेख में संधि और संधि-विच्छेद और संधि के भेदों के साथ-साथ उदाहरण भी दिए जा रहे हैं। संधि किसे कहते हैं? संधि-विच्छेद किसे कहते हैं? संधि के कितने भेद हैं? इन सभी प्रश्नों को उदाहरणों की सहायता से इस लेख में बहुत ही सरल भाषा में विस्तार पूर्वक बताया गया है।
संधि की परिभाषा – Definition
संधि संस्कृत का शब्द है। दो वर्णों (स्वर या व्यंजन) के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं। संधि निरथर्क अक्षरों से मिलकर सार्थक शब्द बनाती है। संधि में प्रायः शब्द का रूप छोटा हो जाता है।
दूसरे अर्थ में – संधि का सामान्य अर्थ है – मेल। इसमें दो अक्षर मिलने से तीसरे शब्द की रचना होती है, इसी को संधि कहते है।
सरल शब्दों में- दो शब्दों या शब्दांशों के मिलने से नया शब्द बनने पर उनके निकटवर्ती वर्णों में होने वाले परिवर्तन या विकार को संधि कहते हैं।
संधि दो शब्दों से मिलकर बना है – सम् + धि। संधि का शाब्दिक अर्थ है – मेल या समझौता। जब दो वर्णों का मिलन अत्यन्त निकटता के कारण होता है, तब उनमें कोई-न-कोई परिवर्तन होता है और वही परिवर्तन संधि के नाम से जाना जाता है। जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं, उसे संधि कहते हैं। अथार्त जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनाते हैं, तब जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं।
संधि विच्छेद
किसी पद को उसके मूल रूप से पृथक कर देना संधि-विच्छेद है। अथार्त संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है।
जैसे –
हिम + आलय = हिमालय (यह संधि है)
अत्यधिक = अति + अधिक (यह संधि-विच्छेद है)
संधि के भेद
संधि तीन प्रकार की होती है –
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
स्वर संधि
जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है, तब जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह होती है। जब दो स्वर मिलते हैं और उससे जो तीसरा स्वर बनता है, उसे स्वर संधि कहते हैं।
दूसरे शब्दों में – ”स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे ‘स्वर संधि’ कहते हैं।”
जैसे –
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
सूर्य + उदय = सूर्योदय
मुनि + इंद्र = मुनीन्द्र
कवि + ईश्वर = कवीश्वर
महा + ईश = महेश
स्वर संधि के पाँच भेद होते है
(i) दीर्घ संधि
(ii) गुण संधि
(iii) वृद्धि संधि
(iv) यण संधि
(v) अयादी संधि
(i) दीर्घ संधि
जब दो सवर्ण, ह्रस्व या दीर्घ, स्वरों का मेल होता है, तो वे दीर्घ सवर्ण स्वर बन जाते हैं। इसे दीर्घ स्वर-संधि कहते हैं।
नियम –
दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते है। यदि ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद वे ही ह्स्व या दीर्घ स्वर आये, तो दोनों मिलकर क्रमशः ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’, ‘ऋ’ हो जाते है।
जैसे –
(क) अ/आ + अ/आ = आ
अ + अ = आ
अत्र + अभाव = अत्राभाव
कोण + अर्क = कोणार्क
मत + अनुसार = मतानुसार
सत्य + अर्थी = सत्यार्थी
धर्म + अर्थ = धमार्थ
उत्तम + अंग = उत्तमांग
अद्य + अवधि = अद्यावधि
देह + अंत = देहांत
शरण + अर्थी = शरणार्थी
अधिक + अधिक = अधिकाधिक
अधि + अंश = अधिकांश
पर + अधीन = पराधीन
परम + अर्थ = परमार्थ
अन्य + अन्य = अन्यान्य
धन + अर्थी = धनार्थी
सूर्य + अस्त = सूर्यास्त
देव + अर्चन = देवार्चन
स्वर + अर्थी = स्वार्थी
राम + अवतार = रामावतार
दैत्य + अरि = दैत्यारि
वेद + अंत = वेदांत
परम + अणु = परमाणु
वीर + अंगना = वीरांगना
स्व + अर्थ = स्वार्थ
शास्त्र + अर्थ = शास्त्रार्थ
अर्ध + अंगिनी = अर्धागिनी
कृष्ण + अवतार = कृष्णावतार
शस्त्र + अस्त्र = शस्त्रास्त्र
अ + आ = आ
शिव + आलय = शिवालय
भोजन + आलय = भोजनालय
शुभ + आरंभ = शुभारंभ
हिम + आलय = हिमालय
सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
आयत + आकार = आयताकार
स + आकार = साकार
मरण + आसन्न = मरणासन्न
धर्म + आत्मा = धर्मात्मा
प्राण + आयाम = प्राणायाम
रत्न + आकार = रत्नाकर
नील + आकाश = नीलाकाश
न्याय + आलय = न्यायालय
स + आनंद = सानंद
विस्मय + आदि = विस्मयादि
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
कुश + आसन = कुशासन
देव + आलय = देवालय
आ + अ = आ
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
लज्जा + अभाव = लज्जाभाव
दीक्षा + अंत = दीक्षांत
विद्या + अनुराग = विद्यानुराग
कदा + अपि = कदापि
माया + अधीन = मायाधीन
वर्षा + अंत = वर्षांत
व्यवस्था + अनुसार = व्यवस्थानुसार
सीमा + अंकित = सीमांकित
यथा + अर्थ = यथार्थ
रेखा + अंकित = रेखांकित
शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी
आज्ञा + अनुपालन = आज्ञानुपालन
सीमा + अंत = सीमांत
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
आ + आ = आ
विद्या + आलय = विद्यालय
महा + आशय = महाशय
आत्मा + आनंद = आत्मानंद
वार्ता + आलाप = वार्तालाप
दया + आनंद = दयानंद
श्रद्धा + आनंद = श्रद्धानंद
महा + आनंद = महानंद
गदा + आघात = गदाघात
महा + आत्मा = महात्मा
(ख) इ और ई की संधि
इ + इ = ई
गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र
कवि + इंद्र = कवीन्द्र
मुनि + इंद्र = मुनींद्र
अभि + इष्ट = अभीष्ट
अति + इव = अतीव
रवि + इंद्र = रविन्द्र
क्षिति + इंद = क्षितिन्द्र
हरि + इच्छा = हरीच्छा
कपि + इंद्र = कपीन्द्र
प्रति + इति = प्रतीति
इ + ई = ई
गिरि + ईश = गिरीश
अधि + ईश्वर = अधीश्वर
कवि + ईश = कवीश
कवि + ईश्वर = कविश्वर
परि + ईक्षा = परीक्षा
हरि + ईश = हरीश
कपि + ईश = कपीश
वारि + ईश = वारीश
मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर
ई + इ = ई
मही + इन्द्र = महीन्द्र
नारी + इंद्र = नारीन्द्र
पत्नी + इच्छा = पत्नीच्छा
सती + इच्छा = सतीच्छा
नदी + इद्र = नदीन्द्र
लक्ष्मी + इच्छा = लक्ष्मीच्छा
शती + इंद्र = शचीन्द्र
नारी + इच्छा = नारीच्छा
महती + इच्छा = महतीच्छा
देवी + इच्छा = देवीच्छा
ई + ई = ई
पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश
रजनी + ईश = रजनीश
जानकी + ईश = जानकीश
सती + ईश = सतीश
पृथ्वी + ईश्वर = पृथ्वीश्वर
नारी + ईश्वर = नारीश्वर
नदी + ईश = नदीश (समुन्द्र)
श्री + ईश = श्रीश
गौरी + ईश = गौरीश
मही + ईश = महीश
पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश
लक्ष्मी + ईश = लक्ष्मीश
(ग) उ और ऊ की संधि
उ + उ = ऊ
भानु + उदय = भानूदय
गुरु + उपदेश = गुरुपदेश
लघु + उत्तर = लघूत्तर
सु + उक्ति = सुक्ति
विधु + उदय = विधूद्य
उ + ऊ = ऊ
लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
बहु + ऊर्ध्व = बहूर्ध्व
धातु + ऊष्मा = धतूष्मा
अंबु + ऊर्मि = अबूंर्मि
सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
भानु + ऊर्ध्व = भानूवर्ध्व
ऊ + उ = ऊ
स्वयंभू + उदय = स्वयंभूदय
भू + ऊर्जा = भूर्जा
भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग
भू + उद्धार = भूद्धार
भू + उद्रार = भूद्रार
भू + उर्ध्व = भूर्ध्व
चमू + उत्त्म = चमूत्तम
वधू + उत्सव = वधूत्सव
वधू + ऊर्मि = वधूर्मि
वधू + उपालंभ = वधूपालंभ
वधू + उपकार = वधूपकार
साधु + उत्सव = साधूत्सव
ऊ + ऊ = ऊ
भू + उर्जा = भूर्जा
वधू + ऊर्मि = वधूर्मि
भ्रू + ऊर्ध्व = भ्रूर्ध्व
सरयू + ऊर्मि = सरयूर्मि
भू + ऊष्मा = भूष्मा
ऋ + ऋ = ऋ
पितृ + ऋण = पितृण
मातृ + तृण = मातृण
भ्रात् + रिद्वि = भ्रातृद्वि
(ii) गुण संधि –
जब (अ, आ) के साथ (इ, ई) हो तो ‘ए’ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (उ, ऊ) हो तो ‘ओ’ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (ऋ) हो तो ‘अर’ बनता है। उसे गुण संधि कहते हैं।
जैसे-
अ + इ = ए
देव + इन्द्र = देवेंद्र
नर + इंद्र = नरेंन्द्र
सुर + इंद = सुरेंन्द्र
पुष्प + इंद्र = पुष्पेंद्र
सत्य + इंद्र = सत्येंद्र
भारत + इंदु = भारतेंदु
राज + इंद्र = राजेंद्र
वीर + इंद्र = वीरेंद्र
धर्म + इंद्र = धर्मेंद्र
उप + इंद्र = उपेंद्र
स्व + इच्छा = स्वेच्छा
शुभ + इच्छा = शुभेच्छा
अ + ई = ए
देव + ईश = देवेश
परम + ईश्वर = परमेश्वर
नर = ईश = नरेश
सुर + ईश = सुरेश
सोम + ईश = सोमेश
गण + ईश = गणेश
दिन + ईश = दिनेश
कमल + ईश = कमलेश
सर्व + ईश्वर = सर्वेश्वर
आ + इ = ए
महा + इन्द्र = महेन्द्र
रमा + इंद्र = रमेन्द्र
यथा + इष्ट = यथेष्ट
राजा + इंद्र = राजेन्द्र
आ + ई = ए
रमा + ईश = रमेश
लंका + ईश = लंकेश
महा + ईश = महेश
महा + ईश्वर = महेश्वर
उमा + ईश = उमेश
राका + ईश = राकेश
राजा + ईश = राजेश
अ + उ = ओ
चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
सूर्य + उदय = सूर्योदय
सर्व + उदय = सर्वोदय
पूर्व + उदय = पूर्वोदय
बंसत + उत्सव = बसंतोत्सव
विवाह + उत्सव = विवाहोत्सव
वार्षिक + उत्सव = वार्षिकोत्सव
महा + उत्सव = महोत्सव
नील + उत्पल = नीलोत्पल
पर + उपकार = परोपकार
देश + उपकार = देशोपकार
रोग + उपचार = रोगोपचार
लोक + उपचार = लोकोपचार
वीर + उचित = वीरोचित
हित + उपदेश = हितोपदेश
लोक + उक्ति = लोकोक्ति
नर + उत्तम = नरोत्तम
अ + ऊ = ओ
समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
उच्च + ऊर्ध्व = उच्चोर्ध्व
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
सूर्य + ऊर्जा = सूर्योर्जा
जल + ऊर्मि = जलोर्मि
आ + उ = ओ
महा + उत्सव = महोत्सव
महा + उपकार = महोपकार
महा + उष्ण = महोष्ण
विद्या + उन्नति = विद्योन्नति
महा + उदय = महोदय
महा + उद्यम = महोद्यम
महा + उदधि = महोदधि
गंगा + उदक = गंगोदक
आ + ऊ = ओ
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
महा + ऊर्जा = महोर्जा
महा + ऊर्मि = महोर्मि
महा + ऊष्मा = महोष्मा
महा + ऊर्ध्व = महोर्ध्व
दया + ऊर्मि = द्योर्मि
अ + ऋ = अर्
देव + ऋषि = देवर्षि
ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि
राजा + ऋषि = राजर्षि
(iii) वृद्धि संधि –
जब (अ, आ) के साथ (ए, ऐ) हो तो ‘ऐ’ बनता है और जब (अ, आ) के साथ (ओ, औ) हो तो ‘औ’ बनता है। उसे वृधि संधि कहते हैं।
जैसे –
(क) अ + ए = ऐ
एक + एक = एकैक ;
वित + एषणा = वितैषणा
लोक + एषणा = लोकैषणा
अ + ऐ = ऐ
मत + ऐक्य = मतैक्य
नव + ऐश्वर्य = नवैश्वर्य
भाव + ऐक्य = भवैक्य
आ + ए = ऐ
सदा + एव = सदैव
तथा + एव = तथैव
आ + ऐ = ऐ
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
(ख) अ + ओ = औ
वन + औषधि = वनौषधि
परम + ओजस्वी = परमौजस्वी
परम + ओज = परमौज
जल + ओघ = जलौघ
दंत + ओष्ठ = दंतौष्ठ
आ + ओ = औ
महा + औषधि = महौषधि
महा + ओजस्वी = महौजस्वी
महा + ओज = महौज
अ + औ = औ
परम + औषध = परमौषध
देव + औदार्य = देवौदार्य
परम + औदार्य = परमौदार्य
आ + औ = औ
महा + औषध = महौषध
महा + औषधि = महौषधि
महा + औत्सुक्य = महोत्सुक्य
महा + औदार्य = महौदार्य
महा + औघ = महौघ
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(iv) यण संधि –
(क) इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य’हो जाता है।
(ख) उ, ऊ के आगे किसी विजातीय (असमान) स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व’हो जाता है।
(ग) ऋ के आगे किसी विजातीय (असमान) स्वर के आने पर ऋ को ‘र’हो जाता है।
इन्हें यण-संधि कहते हैं।
(क) इ + अ = य
यदि + अपि = यद्यपि
अति + अधिक = अत्यधिक
अति + अन्त = अत्यन्त
अति + अल्प = अत्यल्प
इ + आ= या
अति + आवश्यक = अत्यावश्यक
इति + आदि = इत्यादि
अति + आनंद = अत्यानंद
अति + आचार = अत्याचार
वि + आप्त = व्याप्त
परि + आवरण = पर्यावरण
अभि + आगत = अभ्यागत
ई + अ = य
नदी + अम्बु = नद्यम्बु
ई + आ = या
सखी + आगमन = सख्यागमन
देवी + आगम = देव्यागम
नदी + आगम = नद्यागम
नदी + आमुख = नद्यामुख
इ + उ = यु
अति + उत्तम = अत्युत्तम
उपरि + युक्त = उपर्युक्त
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
इ + ऊ = यू
अति + ऊष्म = अत्यूष्म
अति + ऊर्ध्व = अत्युर्ध्व
नि + ऊन = न्यून
वि + ऊह = व्यूह
ई + उ = यु
स्त्री + उपयोगी = स्त्रीयुपयोगी
ई + ऊ = यू
नदी + ऊर्मि = नद्यूर्मि
इ + ए = ये
प्रति + एक = प्रत्येक
अधि + एषणा = अध्येषणा
इ + ऐ = यै
अति + एश्वर्य = अत्यैश्वर्य
ई + ऐ = यै
सखी + ऐक्य = सख्यैक्य
देवी + ऐश्वर्य = देव्यैश्वर्य
नदी + ऐश्वर्य = नद्यैश्वर्य
इ + ओ = यो
अति + ओज = अत्योज
दधि + ओदन = दध्योदन
इ + औ = यौ
अति + औदार्य = अत्यौदार्य
अति + औचित्य = अत्यौचित्य
ई + औ = यौ
वाणी + औचित्य = वाण्यौचित्य
(ख) उ + अ = व
अनु + अय = अन्वय
मनु + अंतर = मवंतर
सु + अच्छ = स्वच्छ
मधु + अरि = मध्वरि
सु + अल्प = स्वल्प
उ + आ = वा
मधु + आलय = मध्वालय
मधु + आलय = मध्वालय
लघु + आदि = लघ्वादि
सु + आगत = स्वागत
उ + इ = वि
अनु + इत = अन्वित
अनु + इति = अन्विति
उ + ई = वी
अनु + ईषण = अन्वीक्षण
उ + ए = वे
अनु + एषण = अन्वेषण
प्रभु + एषणा = प्रभ्वेषणा
उ + ऐ = वै
अल्प + ऐश्वर्य = अल्पेश्वर्य
उ + ओ = वो
गुरु + ओदन = गुरुदन
लघु + ओष्ठ = लघ्वोष्ठ
उ + औ = वौ
गुरु + औदार्य = गुर्वोदार्य
ऊ + आ = वा
वधू + आगम = वध्यागम
(ग) ऋ + अ = र
पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
धातृ + अंश = धात्रांश
ऋ + आ = रा
पितृ + आदेश = पित्रादेश
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
मातृ + आनंद = मात्रानंद
ऋ + इ = रि
पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा
मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
ऋ + उ = रु
मातृ + उपदेश = मात्रुपदेश
(v) अयादि संधि –
ए, ऐ और ओ, औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय, आय, अव और आव हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैं।
(क) ए + अ = अय
ने + अन = नयन
शे + अन = शयन
चे + अन = चयन
(ख) ऐ + अ = आय
गै + अक = गायक
नै + अक = नायक
(ग) ओ + अ = अव
पो + अन = पवन
भो + अन = भवन
श्रो + अन = श्रावण
(घ) औ + अ = आव
पौ + अक = पावक
पौ + अन = पावन
(ड) औ + इ = आवि
नौ + इक = नाविक
पौ + इत्र = पवित्र
(च) औ + उ = आवु
भौ + उक = भावुक
व्यंजन संधि
व्यंजन का व्यंजन से अथवा किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
दूसरे शब्दों में – एक व्यंजन के दूसरे व्यंजन या स्वर से मेल को व्यंजन-संधि कहते हैं।
जैसे –
शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र।
नियम –
(1) किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो क् को ग् च् को ज्, ट् को ड् और प् को ब् हो जाता है।
जैसे –
क् + ग = ग्
दिक् + गज = दिग्गज।
क् + ई = गी
वाक + ईश = वागीश
च् + अ = ज्
अच् + अंत = अजंत
ट् + आ = डा
षट् + आनन = षडानन
प + ज + ब्ज
अप् + ज = अब्ज
(2) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है।
जैसे –
क् + म = ङ
वाक + मय = वाङ्मय
च् + न = ञ
अच् + नाश = अंनाश
ट् + म = ण्
षट् + मास = षण्मास
त् + न = न्
उत् + नयन = उन्नयन
प् + म् = म्
अप् + मय = अम्मय
(3) त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है।
जैसे –
त् + भ = द्भ
सत् + भावना = सद्भावना
त् + ई = दी
जगत् + ईश = जगदीश
त् + भ = द्भ
भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
त् + र = द्र
तत् + रूप = तद्रूप
त् + ध = द्ध
सत् + धर्म = सद्धर्म
(4) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् हो जाता है।
जैसे –
त् + च = च्च
उत् + चारण = उच्चारण
त् + ज = ज्ज
सत् + जन = सज्जन
त् + झ = ज्झ
उत् + झटिका = उज्झटिका
त् + ट = ट्ट
तत् + टीका = तट्टीका
त् + ड = ड्ड
उत् + डयन = उड्डयन
त् + ल = ल्ल
उत् + लास = उल्लास
(5) त् का मेल यदि श् से हो तो त् को च् और श् का छ् बन जाता है।
जैसे –
त् + श् = च्छ
उत् + श्वास = उच्छ्वास
त् + श = च्छ
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
त् + श = च्छ
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
(6) त् का मेल यदि ह् से हो तो त् का द् और ह् का ध् हो जाता है।
जैसे –
त् + ह = द्ध
उत् + हार = उद्धार
त् + ह = द्ध
उत् + हरण = उद्धरण
त् + ह = द्ध
तत् + हित = तद्धित
(7) स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है।
जैसे –
अ + छ = अच्छ
स्व + छंद = स्वच्छंद
आ + छ = आच्छ
आ + छादन = आच्छादन
इ + छ = इच्छ
संधि + छेद = संधिच्छेद
उ + छ = उच्छ
अनु + छेद = अनुच्छेद
(8) यदि म् के बाद क् से म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है।
जैसे –
म् + च् = ं
किम् + चित = किंचित
म् + क = ं
किम् + कर = किंकर
म् + क = ं
सम् + कल्प = संकल्प
म् + च = ं
सम् + चय = संचय
म् + त = ं
सम् + तोष = संतोष
म् + ब = ं
सम् + बंध = संबंध
म् + प = ं
सम् + पूर्ण = संपूर्ण
(9) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है।
जैसे –
म् + म = म्म
सम् + मति = सम्मति
म् + म = म्म
सम् + मान = सम्मान
(10) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन होने पर म् का अनुस्वार हो जाता है।
जैसे –
म् + य = ं
सम् + योग = संयोग
म् + र = ं
सम् + रक्षण = संरक्षण
म् + व = ं
सम् + विधान = संविधान
म् + व = ं
सम् + वाद = संवाद
म् + श = ं
सम् + शय = संशय
म् + ल = ं
सम् + लग्न = संलग्न
म् + स = ं
सम् + सार = संसार
(11) ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता।
जैसे –
र् + न = ण
परि + नाम = परिणाम
र् + म = ण
प्र + मान = प्रमाण
(12) स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष हो जाता है।
जैसे –
भ् + स् = ष
अभि + सेक = अभिषेक
न् + स् = ष
नि + सिद्ध = निषिद्ध
व् + स् = ष
वि + सम + विषम
विसर्ग संधि
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन मेल से जो विकार होता है, उसे ‘विसर्ग संधि’ कहते है।
दूसरे शब्दों में- स्वर और व्यंजन के मेल से विसर्ग में जो परिवर्तन होता है, उसे ‘विसर्ग संधि’ कहते है।
इसे हम ऐसे भी कह सकते हैं – विसर्ग (:) के साथ जब किसी स्वर अथवा व्यंजन का मेल होता है, तो उसे विसर्ग-संधि कहते हैं।
नियम –
(1) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ आये और उसके बाद वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण आये या य, र, ल, व, ह रहे तो विसर्ग का ‘उ’ हो जाता है और यह ‘उ’ पूर्ववर्ती ‘अ’ से मिलकर गुणसन्धि द्वारा ‘ओ’ हो जाता है।
जैसे-
मनः + रथ = मनोरथ
सरः + ज = सरोज
मनः + भाव = मनोभाव
पयः + द = पयोद
मनः + विकार = मनोविकार
पयः + धर = पयोधर
मनः + हर = मनोहर
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
यशः + धरा = यशोधरा
सरः + वर = सरोवर
तेजः + मय = तेजोमय
यशः + दा = यशोदा
पुरः + हित = पुरोहित
मनः + योग = मनोयोग
(2) यदि विसर्ग के पहले इ या उ आये और विसर्ग के बाद का वर्ण क, ख, प, फ हो, तो विसर्ग ‘ष्’ में बदल जाता है।
जैसे-
निः + कपट = निष्कपट
निः + फल = निष्फल
निः + पाप = निष्पाप
दुः + कर = दुष्कर
(3) विसर्ग से पूर्व अ, आ तथा बाद में क, ख या प, फ हो तो कोई परिवर्तन नहीं होता।
जैसे-
प्रातः + काल = प्रातःकाल
पयः + पान = पयःपान
अन्तः + करण = अन्तःकरण
अंतः + पुर = अंतःपुर
(4) यदि ‘इ’ – ‘उ’ के बाद विसर्ग हो और इसके बाद ‘र’ आये, तो ‘इ’ – ‘उ’ का ‘ई’ – ‘ऊ’ हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है।
जैसे-
निः + रव =नीरव
निः + रस =नीरस
निः + रोग =नीरोग
दुः + राज =दूराज
(5) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ और ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो या य, र, ल, व, ह हो, तो विसर्ग के स्थान में ‘र्’ हो जाता है।
जैसे-
निः + उपाय = निरुपाय
निः + झर = निर्झर
निः + जल = निर्जल
निः + धन = निर्धन
दुः + गन्ध = दुर्गन्ध
निः + गुण = निर्गुण
निः + विकार = निर्विकार
दुः + आत्मा = दुरात्मा
दुः + नीति = दुर्नीति
निः + मल = निर्मल
(6) यदि विसर्ग के बाद ‘च-छ-श’ हो तो विसर्ग का ‘श्’, ‘ट-ठ-ष’ हो तो ‘ष्’ और ‘त-थ-स’ हो तो ‘स्’ हो जाता है।
जैसे-
निः + चय = निश्चय
निः + छल = निश्छल
निः + तार = निस्तार
निः + सार = निस्सार
निः + शेष = निश्शेष
निः + ष्ठीव = निष्ष्ठीव
(7) यदि विसर्ग के आगे-पीछे ‘अ’ हो तो पहला ‘अ’ और विसर्ग मिलकर ‘ओ’ हो जाता है और
विसर्ग के बादवाले ‘अ’ का लोप होता है तथा उसके स्थान पर लुप्ताकार का चिह्न (ऽ) लगा दिया जाता है।
जैसे-
प्रथमः + अध्याय = प्रथमोऽध्याय
मनः + अभिलाषित = मनोऽभिलाषित
यशः + अभिलाषी = यशोऽभिलाषी
(8) विसर्ग से पहले आ को छोड़कर किसी अन्य स्वर के होने पर और विसर्ग के बाद र रहने पर विसर्ग लुप्त हो जाता है और यदि उससे पहले ह्रस्व स्वर हो तो वह दीर्घ हो जाता है।
जैसे-
नि: + रस = नीरस
नि: + रोग = नीरोग
(9) विसर्ग के बाद श, ष, स होने पर या तो विसर्ग यथावत् रहता है या अपने से आगे वाला वर्ण हो जाता है।
जैसे-
नि: + संदेह = निःसंदेह अथवा निस्संदेह
नि: + सहाय = निःसहाय अथवा निस्सहाय
संधि से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 – संधि किसे कहते हैं?
उत्तर: संधि का अर्थ है – मेल। दो वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है, उसे “संधि” कहते हैं।
जैसे :
सूर्य + उदय = सूर्योदय (यहाँ अ का उ से मेल होने से ओ बना है)
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय (यहाँ अ का आ से मेल होने से आ बना है)
उपर्युक्त उदाहरणों में पहले शब्द के अंतिम वर्ण तथा दूसरे शब्द के पहले वर्ण के परस्पर मेल से विकार उत्पन्न हुआ है। यही परिवर्तन / विकार संधि है।
प्रश्न 2 – संधि विच्छेद को परिभाषित कीजिए।
उत्तर : संधि का अर्थ है – मिलना, विच्छेद का अर्थ है – अलग होना। दो वर्णों के मेल से बने नए शब्द को वापस पहले की स्थिति में लाना संधि विच्छेद कहलाता है।
जैसे :
विद्यालय = विद्या + आलय
सूर्योदय = सूर्य + उदय
प्रश्न 3 – स्वर संधि किसे कहते हैं?
उत्तर : स्वर संधि यानी स्वरों का मेल। दो स्वरों के मेल से होने वाले परिवर्तन को स्वर संधि कहते हैं।
जैसे :
महा + आत्मा = महात्मा (आ + आ = आ)
हिम + आलय = हिमालय (अ + आ = आ)
पर + उपकार = परोपकार (अ + उ = ओ)
देव + इंद्र = देवेंद्र (अ + इ = ए)
प्रश्न 4 – व्यंजन संधि को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : व्यंजन का व्यंजन से अथवा किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, वह व्यंजन संधि कहलाता है।
जैसे :
सम + कल्प = संकल्प
जगत + ईश = जगदीश
उत् + चारण = उच्चारण
प्रश्न 5 – विसर्ग संधि किसे कहते हैं?
उत्तर : विसर्ग का किसी स्वर या व्यंजन से मेल होने पर जो विकार (परिवर्तन) होता है वह विसर्ग संधि कहलाता है।
जैसे :
मनः + रंजन = मनोरंजन
दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
अतः + एव = अतएव
प्रातः + काल = प्रातःकाल
संधि से सम्बंधित महत्वपूर्ण MCQs प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 – संधि कैसे होती है?
(क) दो शब्दों के परस्पर मेल से
(ख) दो वाक्यों के परस्पर मेल से
(ग) दो वर्णों के परस्पर मेल से
(घ) दो वर्णों के परस्पर विच्छेद से
उत्तर : (ग) दो वर्णों के परस्पर मेल से
प्रश्न 2 – संधि के कितने भेद हैं?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) छः
उत्तर : (ख) तीन
प्रश्न 3 – ‘महात्मा’ शब्द में कौन सी संधि है?
(क) यण संधि
(ख) गुण संधि
(ग) वृद्धि संधि
(घ) दीर्घ संधि
उत्तर : (घ) दीर्घ संधि
प्रश्न 4 – ‘नरेश’ में कौन सी संधि है?
(क) यण संधि
(ख) दीर्घ संधि
(ग) गुण संधि
(घ) वृद्धि संधि
उत्तर : (ग) गुण संधि
प्रश्न 5 – निम्नलिखित में से कौन-सा भेद संधि का नहीं है?
(क) विसर्ग संधि
(ख) व्यंजन संधि
(ग) लघु संधि
(घ) स्वर संधि
उत्तर : (ग) लघु संधि
प्रश्न 6 – ‘महोत्सव’ का सही संधिविच्छेद क्या होगा?
(क) महा + उत्सव
(ख) महो + उत्सव
(ग) महा + त्सव
(घ) महो + त्सव
उत्तर : (क) महा + उत्सव
प्रश्न 7 – स्वर संधि के कितने भेद होते हैं –
(क) चार
(ख) पाँच
(ग) सात
(घ) तीन
उत्तर : (ख) पाँच
प्रश्न 8 – ‘वागीश’ का संधि विग्रह होगा –
(क) वाक् + इश
(ख) वागी + श
(ग) वाक् + ईश
(घ) वाग + ईश
उत्तर : (ग) वाक् + ईश
प्रश्न 9 – ‘जगदीश’ का विग्रह होगा –
(क) जगदी + ईश
(ख) जगद + ईश
(ग) जगत् + ईश
(घ) जगती + ईश
उत्तर : (ग) जगत् + ईश
प्रश्न 10 – ‘वाङ्मय’ का विग्रह होगा –
(क) वाक् + मय
(ख) वाङ्ग + मय
(ग) वाङ + मय
(घ) वाग + मय
उत्तर : (क) वाक् + मय
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