CBSE Class 10 Hindi Chapter 10 “Tantara Vamiro Katha”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Sparsh Bhag 2 Book
तंतारा वामीरो कथा – Here is the CBSE Class 10 Hindi Sparsh Bhag 2 Chapter 10 Tantara Vamiro Katha Summary with detailed explanation of the lesson ‘Tantara Vamiro Katha’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary.
- तताँरा वामीरो कथा पाठ प्रवेश
- तताँरा वामीरो कथा पाठ की व्याख्या
- तताँरा वामीरो कथा पाठ सार
- See Video Explanation of Chapter 12 Tantara Vamiro Katha
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कक्षा 10 हिंदी पाठ 10 तताँरा वामीरो कथा
लेखक परिचय
लेखक – लीलाधर मंडलोई
जन्म – 1954 (छिंदवाड़ा -गुढ़ी)
तताँरा वामीरो कथा पाठ प्रवेश
जो सभ्यता जितनी अधिक पुरानी होगी उतनी ही अधिक किस्से -कहानियाँ उससे जुड़ी होती है जो हमें सुनने को मिलती हैं। जो किस्से – कहानियाँ हमें सुनने को मिलती हैं जरुरी नहीं कि वो उसी तरह घटित हुई हो जिस तरह वो हमें सुनाई जा रही हों।इतना जरूर होता है कि इन किस्सों और कहानियों में कोई न कोई सीख छुपी होती है। अंदमान निकोबार द्वीपसमूह में भी बहुत तरह के किस्से – कहानियाँ मशहूर हैं। इनमें से कुछ को लीलाधर मंडलोई ने लिखा है।
Tatara Vamiro Katha Class 10 Video Explanation
प्रस्तुत पाठ ‘तताँरा वामीरो कथा’ अंडमान निकोबार द्वीप समूह के एक छोटे से द्वीप पर केंद्रित है। उस द्वीप पर एक -दूसरे से शत्रुता का भाव अपनी अंतिम सीमा पर पहुँच चूका था। इस शत्रुता की भावना को जड़ से उखाड़ने के लिए एक जोड़े को आत्मबलिदान देना पड़ा था। उसी जोड़े के बलिदान का वर्णन लेखक ने प्रस्तुत पाठ में किया है।
प्यार सबको एक साथ लाता है और नफरत सब के बीच दूरियों को बढ़ाती है,इस बात से भला कौन इनकार कर सकता है। इसलिए जो कोई भी समाज के लिए अपने प्यार का ,अपने जीवन का बलिदान करता है ,समाज न केवल उसे याद रखता है बल्कि उसके द्वारा किये गए त्याग और बलिदान को बेकार नहीं जाने देता। यही वह कारण है जिसकी वजह से तत्कालीन समाज के सामने मिसाल कायम करने वाले इस जोड़े को आज भी इस द्वीप के निवासी गर्व और श्रद्धा से याद करते हैं।
तताँरा वामीरो कथा पाठ सार
प्रस्तुत पाठ ‘तताँरा वामीरो कथा’ अंडमान निकोबार द्वीप समूह के एक छोटे से द्वीप पर केंद्रित है। उस द्वीप पर एक -दूसरे से शत्रुता का भाव अपनी अंतिम सीमा पर पहुँच चूका था। इस शत्रुता की भावना को जड़ से उखाड़ने के लिए एक जोड़े को आत्मबलिदान देना पड़ा था। उसी जोड़े के बलिदान का वर्णन लेखक ने प्रस्तुत पाठ में किया है।
बहुत समय पहले ,जब लिटिल अंदमान और कार -निकोबार एक साथ जुड़े हुए थे ,तब वहाँ एक बहुत सुंदर गाँव हुआ करता था। उसी गाँव के पास में ही एक सुंदर और शक्तिशाली युवक रहा करता था। जिसका नाम तताँरा था। निकोबार के सभी व्यक्ति उससे बहुत प्यार करते थे। इसका एक कारण था कि तताँरा एक भला और सबकी मदद करने वाला व्यक्ति था।जब भी कोई मुसीबत में होता तो हर कोई उसी को याद करता था और वह भी भागा -भागा वहाँ उनकी मदद करने के लिए पहुँच जाता था।
तताँरा हमेशा अपनी पारम्परिक पोशाक ही पहनता था और हमेशा अपनी कमर में एक लकड़ी की तलवार को बाँधे रखता था। लोगों का मानना था कि उस तलवार में लकड़ी की होने के बावजूद भी अनोखी दैवीय शक्तियाँ हैं। तताँरा कभी भी अपनी तलवार को अपने से अलग नहीं करता था। वह दूसरों के सामने तलवार का प्रयोग भी नहीं करता था। तताँरा की तलवार जिज्ञासा पैदा करने वाला एक ऐसा राज था जिसको कोई नहीं जानता था।
एक शाम को तताँरा दिन भर की कठोर मेहनत करने के बाद समुद्र के किनारे घूमने के लिए चल पड़ा।समुद्र से ठंडी ठंडी हवाएँ आ रही थी। शाम के समय पक्षियों की जो चहचहाहटें होती हैं वे भी धीरे -धीरे शांत हो रही थी। अपने ही विचारों में खोया हुआ तताँरा समुद्री बालू पर बैठ कर सूरज की आखरी किरणों को समुद्र के पानी पर देख रहा था जो बहुत रंग -बिरंगी लग रही थी। तभी कहीं से उसे मधुर संगीत सुनाई दिया जो उसी के आस पास कोई गा रहा था।तताँरा बैचेन मन से उस दिशा की ओर बढ़ता गया। आखिरकार तताँरा की नज़र एक युवती पर पड़ी उस युवती को यह पता नहीं था कि कोई युवक उसे बिना कुछ बोले बस देखता जा रहा है। उसी समय अचानक एक ऊँची लहर उठी और उसको भिगो कर चली गई। इस तरह अचानक भीगने से वह युवती हड़बड़ा गई और अपना गाना भूल गई। तताँरा ने बहुत ही विनम्र तरीके से उस युवती से पूछा ‘तुमने अचानक इतना सुरीला और अच्छा गाना अधूरा ही क्यों छोड़ दिया ?’
अपने सामने एक सुंदर युवक को देख कर वह युवती आश्चर्यचकित हो गई।उसने नकली नाराजगी दिखाते हुए उत्तर दिया।
“पहले ये बताओ कि तुम कौन हो,मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो और इस तरह के अनुचित या बेकार के प्रश्न पूछने का क्या कारण है ?”
तताँरा बार- बार अपना प्रश्न दोहराता रहा। तताँरा के बार – बार एक ही प्रश्न को दोहराने के कारण युवती चिढ़ गई। युवती ने कहा -आखिर मैं गीत क्यों गाऊं अर्थात मैं तुम्हारी बात क्यों मानूं ?क्या उसे गाँव का नियम नहीं मालूम कि एक गाँव का व्यक्ति दूसरे गाँव के व्यक्ति से बात नहीं कर सकता ? इतना कह कर वह युवती जाने के लिए तेज़ी से मुड़ी। उसके मुड़ते ही मानो तताँरा को कुछ होश आया। अब उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था। तताँरा उस युवती के सामने चला गया और उसका रास्ता रोक कर लाचारी के साथ प्रार्थना करने लगा कि तुम बस अपना नाम बता दो मैं तुम्हें जाने दूंगा। तताँरा द्वारा नाम पूछे जाने पर युवती ने जवाब दिया ” वामीरो ” यह नाम सुनना तताँरा को ऐसा लगा जैसे उसके कानों में किसी ने रस घोल दिया हो। तताँरा ने वामीरो से कहा कि कल वह वही चट्टान पर उसकी प्रतीक्षा करेगा । वह वामीरो को जरूर आने के लिए कहता है।
वामीरो ने तताँरा के बारे में बहुत सी कहानियाँ सुनी थी। उसकी सोच में तताँरा एक बहुत ही शक्तिशाली युवक था। परन्तु वही तताँरा जब वामीरो के सामने आया तो बिलकुल अलग ही रूप में था। वह सुंदर और शक्तिशाली तो था ही साथ ही साथ वह बहुत शांत ,समझदार और सीधा साधा था। वह बिलकुल वैसा ही था जैसा वामीरो अपने जीवन साथी के बारे में सोचती थी। परन्तु दूसरे गाँव के युवक के साथ उसका सम्बन्ध रीति रिवाजों के विरुद्ध था। इसलिए वामीरो ने तताँरा को भूल जाना ही समझदारी समझा। परन्तु यह आसान नहीं लग रहा था क्योकि तताँरा बार -बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था जैसे वह बिना पलकों को झपकाए उसकी प्रतीक्षा कर रहा हो।
तताँरा दिन ढलने से बहुत पहले ही लपाती गाँव की उस समुद्री चट्टान पर पहुँच गया था जहाँ उसने वामीरो को आने के लिए कहा था। वामीरो के इन्तजार में उसे हर एक पल बहुत अधिक लम्बा लग रहा था। उसके अंदर एक शक भी पैदा हो गया था कि अगर वामीरो आई ही नहीं तो।उसके पास प्रतीक्षा करने के अलावा और कोई चारा नहीं था। वामीरो तताँरा से मिलने आए गई।
तताँरा और वामीरो अब हर रोज उसी जगह मिलने लगे। लपाती के कुछ युवकों को इस प्रेम के बारे में पता चल गया और ये खबर हवा की तरह हर जगह फैल गई। वामीरो लपाती गाँव की रहने वाली थी और तताँरा पासा गाँव का। दोनों का सम्बन्ध किसी भी तरह संभव नहीं था। क्योंकि रीतिरिवाज़ के अनुसार दोनों के सम्बन्ध के लिए दोनों का एक ही गाँव का होना जरुरी था।
कुछ समय के बाद पासा गाँव में ‘पशु पर्व ‘का आयोजन किया गया। पशु पर्व में हटे -कटे पशुओं के दिखावे के अलावा पशुओं से युवकों की शक्ति परखने की प्रतियोगितायें भी होती थी। तताँरा का मन इन में से किसी भी कार्यक्रम में नहीं लग रहा था। उसकी परेशान आँखे तो वामीरों को ढूंढने में व्यस्त थी।जब तताँरा ने वामीरो को देखा तो उसकी आँखें नमी से भरी थी और उसके होंठ डर कर काँप रहे थे। तताँरा को देखते ही वामीरो फुट -फुटकर रोने लगी। तताँरा इस तरह वामीरो को रोता देखकर भावुक हो गया। वामीरो के रोने की आवाज सुनकर वामीरो की माँ वहाँ आ गई और दोनों को एक साथ देख कर गुस्सा हो गई। उसने तताँरा को कई तरह से अपमानित करना शुरू कर दिया। गाँव वाले भी तताँरा के विरोध में बोलने लगे। लोगो की बातों को सुनना अब तताँरा के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो रहा था।अचानक उसका हाथ उसकी तलवार पर आकर टिक गया। गुस्से से उसने तलवार निकली। उसने अपने गुस्से को शांत करने के लिए अपनी पूरी शक्ति से तलवार को धरती में गाड़ दिया और अपनी पूरी ताकत से उसे खींचने लगा ।जो लकीर तताँरा ने खींची थी उस लकीर की सीध में धरती फटती जा रही थी।तताँरा द्वीप के एक ओर था और वामीरो दूसरी ओर। तताँरा को जैसे ही होश आया ,उसने देखा कि द्वीप के जिस ओर वह है वो टुकड़ा समुद्र में धँसने लगा है। अब वह तड़पने लगा, वह छलांग लगा कर दूसरी ओर जाना चाहता था परन्तु उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और वह निचे की ओर फिसलने लगा।वह उस कटे हुए द्वीप के उस आखरी भू -भाग पर बेहोश पड़ा हुआ था जो संयोगवश उस द्वीप से जुड़ा हुआ था। बहता हुआ तताँरा कहा गया ,उसके बाद उसका क्या हुआ ये कोई नहीं जान सका। इधर वामीरो तताँरा से अलग होने के कारण पागल हो गई। वह हर समय बस तताँरा को ही खोजती रहती और उसी जगह आकर घंटों बैठी रहती जहाँ वो तताँरा से मिलने आया करती थी। उसने खाना -पीना छोड़ दिया था। परिवार से वह कही अलग हो गई। लोगो ने उसे ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की परन्तु अब वामीरो का भी कोई सुराग नहीं मिला कि वह कहा गई।
आज ना तो तताँरा है और ना ही वामीरो है,परन्तु फिर भी आज उनकी प्रेमकथा हर घर में सुनाई जाती है। निकोबार के निवासियों का मानना है कि तताँरा की तलवार से कार -निकोबार के जो दो टुकड़े हुए, उसमे से दूसरा टुकड़ा आज लिटिल अंदमान के नाम से प्रसिद्ध है जो कार -निकोबार से 96 कि.मी. दूर स्थित है।निकोबार निवासीयों ने इस घटना के बाद अपनी परम्परा को बदला और दूसरे गाँव में भी विवाह सम्बन्ध बनने लगे। तताँरा – वामीरो की जो एक -दूसरे के लिए त्यागमयी मृत्यु थी वह शायद इसी सुखद बदलाव के लिए थी।
तताँरा वामीरो कथा पाठ व्याख्या
पाठ – अंदमान द्वीप समूह का अंतिम दक्षिणी द्वीप है लिटिल अंदमान। यह पोर्ट ब्लेयर से लगभग सौ किलोमीटर दूर स्थित है। इसके बाद निकोबार द्वीपसमूह की श्रृंखला आरम्भ होती है जो निकोबारी जनजाति की आदिम संस्कृति के केंद्र हैं। निकोबार द्वीपसमूह का पहला प्रमुख द्वीप है कार -निकोबार जो लिटिल अंदमान से 96 कि.मी. दूर है। निकोबारियों का विश्वास है कि प्राचीन काल में ये दोनों द्वीप एक ही थे। इनके विभक्त होने की एक लोककथा है,जो आज भी दोहराई जाती है।
शब्दार्थ –
अंतिम – आखरी
पोर्ट ब्लेयर – अंदमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी
श्रृंखला – सीमा
आदिम – प्राचीन
विभक्त – अलग -अलग
(लेखक अंदमान –निकोबार के बारे में जानकारी दे रहा है)
व्याख्या – अंदमान द्वीप समूह का आखरी द्वीप लिटिल अंदमान है जो अंदमान के दक्षिण में स्थित है। यह अंदमान निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से लगभग सौ किलोमीटर दूर है। इसके बाद ही निकोबार द्वीपसमूह की सीमा शुरू होती है। ये जगह निकोबारी जनजाति की प्राचीन संस्कृति का केंद्र मानी जाती है।निकोबार द्वीपसमूह का जो पहला द्वीप है उसे कार – निकोबार के नाम से जाना जाता है जो लिटिल अंदमान से लगभग 96 किलोमीटर दूर है। निकोबार के निवासियों का मानना है कि पुराने समय में ये दोनों द्वीप एक ही थे। इनके अलग -अलग होने के पीछे एक लोककथा बताई जाती है ,जिसका वर्णन आज भी वहाँ के लोग करते हैं।
पाठ – सदियों पूर्व ,जब लिटिल अंदमान और कार -निकोबार आपस में जुड़े हुए थे तब वहाँ एक सुंदर सा गाँव था। पास में एक सुंदर और शक्तिशाली युवक रहा करता था। उसका नाम था तताँरा। निकोबारी उससे बेहद प्रेम करते थे। तताँरा एक नेक और मददगार व्यक्ति था। सदैव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहता। अपने गाँव वालों को ही नहीं ,अपितु समूचे द्वीपवासियों की सेवा करना अपना परम कर्तव्य समझता था। उसके इस त्याग की वजह से वह चर्चित था। सभी उसका आदर करते। वक्त मुसीबत में उसे स्मरण करते और वह भागा -भागा वहाँ पहुँच जाता।
शब्दार्थ –
सदियों पूर्व – बहुत समय पहले
सदैव – हमेशा
तत्पर – तैयार
समूचे – सारे
स्मरण – याद
(लेखक ने कहानी की शुरुआत तताँरा के व्यवहार का वर्णन करने से की है)
व्याख्या – बहुत समय पहले ,जब लिटिल अंदमान और कार -निकोबार एक साथ जुड़े हुए थे ,तब वहाँ एक बहुत सुंदर गाँव हुआ करता था। उसी गाँव के पास में ही एक सुंदर और शक्तिशाली युवक रहा करता था। जिसका नाम तताँरा था। निकोबार के सभी व्यक्ति उससे बहुत प्यार करते थे। इसका एक कारण था कि तताँरा एक भला और सबकी मदद करने वाला व्यक्ति था। वह हमेशा ही दूसरों की सहायता के लिए तैयार रहता था। वह केवल अपने गाँव वालों की ही नहीं बल्कि पुरे द्वीपवासियों की सेवा या मदद करना अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझता था। उसके इसी त्याग भाव की वजह से लोग उसे जानते थे और सभी उसका आदर भी करते थे। जब भी कोई मुसीबत में होता तो हर कोई उसी को याद करता था और वह भी भागा -भागा वहाँ उनकी मदद करने के लिए पहुँच जाता था।
पाठ – दूसरे गाँव में भी पर्व -त्योहारों के समय उसे विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता। उसका व्यक्तित्व तो आकर्षक था ही ,साथ ही आत्मीय स्वभाव की वजह से लोग उसके करीब रहना चाहते। पारम्परिक पोशाक के साथ वह अपनी कमर में सदैव एक लकड़ी की तलवार बाँधे रहता। लोगों का मत था ,बावजूद लकड़ी की होने पर, उस तलवार में अद्भुत दैवीय शक्ति थी। तताँरा अपनी तलवार को कभी अलग न होने देता। उसका दूसरों के सामने उपयोग भी न करता। किन्तु उसके चर्चित साहसिक कारनामों के कारण लोग -बाग तलवार में अद्भुत शक्ति का होना मानते थे। तताँरा की तलवार एक विलक्षण रहस्य थी।
शब्दार्थ –
विशेष – मुख्य
आमंत्रित – बुलाना
आत्मीय – अपना
अद्भुत – अनोखी
साहसिक कारनामें – सहस से पूर्ण कार्य
विलक्षण – जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला
रहस्य – राज,जो कोई न जानता हो
(यहाँ लेखक तताँरा के व्यक्तित्व का वर्णन कर रहा है)
व्याख्या – दूसरे गाँव में भी जब कोई पर्व या त्यौहार होता तो तताँरा को उसमें मुख्य रूप से बुलाया जाता था। उसका व्यक्तित्व तो आकर्षक था ही उसके साथ ही साथ लोगों का उसके करीब रहने का एक सबसे बड़ा कारण था उसका सबको अपना मानने का स्वभाव। तताँरा हमेशा अपनी पारम्परिक पोशाक ही पहनता था और हमेशा अपनी कमर में एक लकड़ी की तलवार को बाँधे रखता था। लोगों का मानना था कि उस तलवार में लकड़ी के होने के बावजूद भी अनोखी दैवीय शक्तियाँ हैं। तताँरा कभी भी अपनी तलवार को अपने से अलग नहीं करता था। वह दूसरों के सामने तलवार का प्रयोग भी नहीं करता था। परन्तु उसके सहस से पूर्ण कार्यों के कारण लोगों का तलवार में अनोखी शक्ति होने पर विश्वास था। तताँरा की तलवार जिज्ञासा पैदा करने वाला एक ऐसा राज था जिसको कोई नहीं जानता था।
पाठ – एक शाम तताँरा दिन भर के अथक परिश्रम के बाद समुद्र किनारे टहलने निकल पड़ा। सूरज समुद्र से लगे क्षितिज तले डूबने को था। समुद्र से ठंडी बयारें आ रही थी। पक्षियों की सांयकालीन चहचहाहटें शनैः शनैः क्षीण होने को थीं। उसका मन शांत था। विचारमग्न तताँरा समुद्री बालू पर बैठ कर सूरज की अंतिम रंग -बिरंगी किरणों को समुद्र पर निहारने लगा। तभी कहीं पास से उसे मधुर गीत गूँजता सुनाई दिया। गीत मानों बहता हुआ उसकी तरफ़ आ रहा हो। बीच -बीच में लहरों का संगीत सुनाई देता।
शब्दार्थ –
अथक – कठोर
क्षितिज – जहाँ धरती और आसमान मिलते हुए प्रतीत हों
बयारें – हवाएँ
शनैः शनैः – धीरे धीरे
व्याख्या – एक शाम को तताँरा दिन भर की कठोर मेहनत करने के बाद समुद्र के किनारे घूमने के लिए चल पड़ा। समुद्र में जहाँ धरती और आसमान के मिलने का आभास हो रहा था, वहाँ सूरज डूबने वाला था। समुद्र से ठंडी ठंडी हवाएँ आ रही थी। शाम के समय पक्षियों की जो चहचहाहटें होती हैं वे भी धीरे -धीरे शांत हो रही थी। तताँरा का मन भी शांत था। अपने ही विचारों में खोया हुआ तताँरा समुद्री बालू पर बैठ कर सूरज की आखरी किरणों को समुद्र के पानी पर देख रहा था जो बहुत रंग -बिरंगी लग रही थी। तभी कहीं से उसे मधुर संगीत सुनाई दिया जो उसी के आस पास कोई गा रहा था। ऐसा लग रहा था कि गीत उसी के ओर बहता हुआ आ रहा हो। बीच -बीच में समुद्र की लहरों का संगीत भी सुनाई पड़ता था।
पाठ – गायन इतना प्रभावी था कि वह अपनी सुध बुध खोने लगा। लहरों के एक प्रबल वेग ने उसकी तन्द्रा भंग की। चैतन्य होते ही वह उधर बढ़ने को विवश हो उठा जिधर से अब भी गीत के स्वर बह रहे थे। वह विकल सा उस तरफ बढ़ता गया। अंततः उसकी नजर एक युवती पर पड़ी जो ढलती हुई शाम के सौंदर्य में बेसुध,एकटक समुद्र की देह पर डूबते आकर्षक रंगों को निहारते हुए गा रही थी। यह एक श्रृंगार गीत था।
शब्दार्थ –
गायन – गीत
सुध बुध – होश हवास
तन्द्रा – नींद आने से पहले की अवस्था
चैतन्य – होश में आना
विवश – मजबूर
विकल – बैचेन
बेसुध – जिसे कोई ख़बर न हो
व्याख्या – जो गीत तताँरा को सुनाई दे रहा था, वह इतना अधिक प्रभावी था कि तताँरा उस गीत को सुन कर अपना होश हवास खोने लगा था। गीत सुनते हुए तताँरा की अवस्था ऐसी हो गई थी जैसी अवस्था नींद आने से पहले होती है, इस अवस्था को लहरों की एक तेज़ लहर ने तोड़ा। होश में आते ही तताँरा उस दिशा में बढ़ने के लिए मजबूर हो गया जहाँ से वो गीत सुनाई दे रहा था। तताँरा बैचेन मन से उस दिशा की ओर बढ़ता गया। आखिरकार तताँरा की नज़र एक युवती पर पड़ी उस ढलती हुई शाम के सुंदर दृश्य को बिना किसी ख़बर के कि आस पास क्या हो रहा है, वह युवती एकटक नजर से समुद्र के ऊपर पड़ते हुए सूरज की किरणों के सुंदर रंगों को देख कर गाना गा रही थी। यह एक प्रेम भरा गीत था।
पाठ – उसे ज्ञात ही न हो सका कि कोई अजनबी युवक उसे निःशब्द ताके जा रहा है। एकाएक एक ऊँची लहर उठी और उसे भिगो गई। वह हड़बड़ाहट में गाना भूल गई। इसके पहले कि वह सामान्य हो पाती, उसने अपने कानों में गूँजती गंभीर आकर्षक आवाज़ सुनी।
तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया?” तताँरा ने विनम्रतापूर्वक कहा।
अपने सामने एक सुन्दर युवक को देखकर वह विस्मित हुई। उसके भीतर किसी कोमल भावना का संचार हुआ। किन्तु अपने को संयतकर उसने बेरुखी के साथ जवाब दिया।
“पहले बताओ!तुम कौन हो ,इस तरह मुझे घूरने और इस असंगत प्रश्न का कारण ? अपने गाँव के अलावा किसी और गाँव के युवक के प्रश्नों का उत्तर देने को मैं बाध्य नहीं। यह तुम भी जानते हो।”
शब्दार्थ –
निःशब्द – जो कुछ न बोल रहा हो
विस्मित – आश्चर्यचकित
बेरुखी – नाराजगी
असंगत – अनुचित
बाध्य – विवश
व्याख्या – उस युवती को यह पता नहीं था कि कोई युवक उसे बिना कुछ बोले बस देखता जा रहा है। उसी समय अचानक एक ऊँची लहर उठी और उसको भिगो कर चली गई। इस तरह अचानक भीगने से वह युवती हड़बड़ा गई और अपना गाना भूल गई। इससे पहले कि वो अपने आपको सम्भाल पाती उसे एक आकर्षक परन्तु भारी आवाज़ सुनाई दी।
तताँरा ने बहुत ही विनम्र तरीके से उस युवती से पूछा ‘तुमने अचानक इतना सुरीला और अच्छा गाना अधूरा ही क्यों छोड़ दिया ?’
अपने सामने एक सुंदर युवक को देख कर वह युवती आश्चर्यचकित हो गई। उसे ऐसा लगा जैसे उसके अंदर एक कोमल भाव बहने लगा हो। परन्तु अपने आपको सम्भालते हुए उसने नकली नाराजगी दिखाते हुए उत्तर दिया।
“पहले ये बताओ कि तुम कौन हो,मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो और इस तरह के अनुचित या बेकार के प्रश्न पूछने का क्या कारण है ?ये बात तुम भी जानते हो कि अपने गाँव के आलावा मैं किसी दूसरे गाँव के व्यक्ति के प्रश्नो के उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं हूँ।”
पाठ – तताँरा मानो सुध बुध खोए हुए था। जवाब देने के स्थान पर उसने पुनः अपना प्रश्न दोहराया। “तुमने गाना क्यों रोक दिया? गाओ, गीत पूरा करो। सचमुच तुमने बहुत सुरीला कण्ठ पाया है। ”
यह तो मेरे प्रश्न का उत्तर ना हुआ?” युवती ने कहा।
“सच बताओ तुम कौन हो?लपाती गाँव में तुम्हें कभी देखा नहीं। ”
तताँरा मानो सम्मोहित था। उसके कानों में युवती की आवाज़ ठीक से पहुँच न सकी। उसने पुनः विनय की ,”तुमने गाना क्यों रोक दिया ? गाओ न ?”
शब्दार्थ –
सम्मोहित – मुग्ध किया हुआ
विनय – प्रार्थना
(यहाँ लेखक वर्णन कर रहा है कि तताँरा किस तरह अपने होश हवास खोए हुए था)
व्याख्या – ऐसा लग रहा था मानो तताँरा अपने होश हवास में नहीं था। युवती के प्रश्न का जवाब देने की जगह वह अपने ही प्रश्न को दोहराए जा रहा था कि तुमने गाना क्यों रोक दिया ? गाओ न, अपना गीत पूरा करो। तुमने सच में बहुत सुरीला कण्ठ पाया है ,तुम बहुत अच्छा गाना गाती हो।
तताँरा के दूसरी बार वही प्रश्न दोहराने पर युवती ने कहा कि “ये तो मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं है। सच बताओ कि तुम कौन हो ? लपाती गाँव में तो तुम्हें कभी देखा नहीं। “
तताँरा तो मानो उस गीत को सुन कर मुग्ध हो रखा था। उसके कानों तक युवती की आवाज़ ठीक से पँहुची ही नहीं। वह फिर से युवती से प्रार्थना करने लगा कि “तुमने गाना क्यों रोक दिया ? गाओ न। “
पाठ – युवती झुँझला उठी। वह कुछ और सोचने लगी। अंततः उसने निश्चयपूर्वक एक बार पुनः लगभग विरोध करते हुए कड़े शब्दों में कहा।
“ढीठता की हद है। मैं जब से परिचय पूछ रही हूँ और तुम बस एक ही राग अलाप रहे हो। गीत गाओ – गीत गाओ ,आखिर क्यों ? क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम ?” इतना बोलकर वह जाने के लिए तेज़ी से मुड़ी। तताँरा को मानो कुछ होश आया। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। वह उसके सामने रास्ता रोक कर ,मानो गिड़गिड़ाने लगा।
“मुझे माफ़ कर दो। जीवन में पहली बार मैं इस तरह विचलित हुआ हूँ। तुम्हें देख कर मेरी चेतना लुप्त हो गई थी। मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूँगा। बस अपना नाम बता दो। ” तताँरा ने विवशता में आग्रह किया। उसकी आँखे युवती के चेहरे पर केंद्रित थीं। उसके चहरे पर सच्ची विनय थी।
शब्दार्थ –
झुँझला – चिढ़ना
ढीठता – दुःसाहस
विचलित – अस्थिर
विवशता – लाचारी
व्याख्या – तताँरा के बार – बार एक ही प्रश्न को दोहराने के कारण युवती चिढ़ गई। वह कुछ और सोचने लगी क्योंकि तताँरा कुछ सुन नहीं रहा था । वह बस एक ही प्रश्न को बार -बार दोहरा रहा था। युवती ने एक बार फिर विपरीत स्वभाव के साथ कठोर शब्दों में कहा कि दुःसाहस की भी एक सीमा होती है। क्योंकि युवती बार -बार तताँरा से उसका परिचय पूछ रही थी और तताँरा एक ही प्रश्न को बार -बार दोहरा रहा था कि गीत गाओ – गीत गाओ। युवती ने कहा -आखिर मैं गीत क्यों गाऊं अर्थात मैं तुम्हारी बात क्यों मानूं ?क्या उसे गाँव का नियम नहीं मालूम कि एक गाँव का व्यक्ति दूसरे गाँव के व्यक्ति से बात नहीं कर सकता ? इतना कह कर वह युवती जाने के लिए तेज़ी से मुड़ी। उसके मुड़ते ही मानो तताँरा को कुछ होश आया। अब उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था। तताँरा उस युवती के सामने चला गया और उसका रास्ता रोक कर मानो उससे विनती करने लगा कि वह उसे माफ़ कर दे क्योंकि जीवन में पहली बार वो इस तरह अस्थिर हुआ है जहाँ उसे कोई होश ही नहीं रहा। तताँरा को ऐसा लगता है कि उस युवती को देख कर ऐसा हुआ है। तताँरा लाचारी के साथ प्रार्थना करने लगा कि तुम बस अपना नाम बता दो मैं तुम्हें जाने दूंगा। तताँरा की आँखे युवती के चेहरे से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। प्रार्थना करते हुए तताँरा के चेहरे पर सच्चाई दिखाई दे रही थी।
पाठ – “वा…. मी….. रो…..” एक रस घोलती आवाज उसके कानों में पहुंची।
“वामीरो…. वा…. मी…. रो…. वाह कितना सुंदर नाम है। कल भी आओगी न यहाँ ?तताँरा ने याचना भरे स्वर में कहा।
“नहीं…. शायद…… कभी नहीं।” वामीरो ने अन्यमनस्कतापूर्वक कहा और झटके से लपाती की तरफ़ बेसुध सी दौड़ पड़ी। पीछे तताँरा के वाक्य गूँज रहे थे।
“वामीरो… मेरा नाम तताँरा है। कल मैं इसी चटान पर प्रतीक्षा करूँगा…..तुम्हारी बाट जोहूंगा…… जरूर आना…”
वामीरो रुकी नहीं ,भागती ही गई। तताँरा उसे जाते हुए निहारता रहा।
याचना – प्रार्थना
अन्यमनस्कतापूर्वक – बिना सोचे समझे
निहारना – देखना
व्याख्या – तताँरा द्वारा नाम पूछे जाने पर युवती ने जवाब दिया ” वामीरो ” यह नाम सुनना तताँरा को ऐसा लगा जैसे उसके कानों में किसी ने रस घोल दिया हो। तताँरा बार -बार नाम को दोहराने लगा “वामीरो…. वामीरो…. वाह कितना सुंदर नाम है। ” तताँरा प्रार्थना भरे शब्दों में पूछने लगा कि वह कल भी आएगी या नहीं। वामीरो ने बिना सोचे समझे ही कह दिया ” नहीं शायद कभी नहीं ” इतना कह कर वह झटके से अपने गाँव लपाती की ओर बिना किसी की परवाह किये दौड़ पड़ी। उसे पीछे तताँरा के वाक्य सुनाई पड़ रहे थे। तताँरा कह रहा था कि वामीरो…. उसका नाम तताँरा है। कल वह वही चट्टान पर उसकी प्रतीक्षा करेगा ,उसका रास्ता देखेगा। वह वामीरो को जरूर आने के लिए कहता है। वामीरो बिना रुके भागती रही। तताँरा उसे जाते हुए देखता ही रहा।
पाठ – वामीरो घर पहुँच कर भीतर ही भीतर कुछ बैचेनी महसूस करने लगी। उसके भीतर तताँरा से मुक्त होने की एक झूठी झटपटाहट थी। एक झल्लाहट में उसने दरवाजा बंद किया और मन को किसी और दिशा में ले जाने का प्रयास किया। बार -बार तताँरा का याचना भरा चेहरा उसकी आँखों में तैर जाता। उसने तताँरा के बारे में कई कहानियां सुन रखी थी। उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था। किन्तु वही तताँरा उसके सम्मुख एक अलग रूप में आया। सुंदर ,बलिष्ठ किन्तु बेहद शांत ,सभ्य और भोला। उसका व्यक्तित्व कदाचित वैसा ही था जैसा वह अपने जीवन साथी के बारे में सोचती रही थी। किन्तु एक दूसरे गाँव के युवक के साथ यह सम्बन्ध परम्परा के विरुद्ध था। अतएव उसने उसे भूल जाना ही श्रेयस्कर समझा। किन्तु यह असंभव जान पड़ा। तताँरा बार -बार उसकी आँखों के सामने था। निर्निमेष याचक की तरह प्रतीक्षा में डूबा हुआ।
शब्दार्थ –
झल्लाहट – बौखलाहट
सम्मुख – सामने
बलिष्ठ – बलवान
परम्परा – रीति रिवाज
श्रेयस्कर – कल्याणकर
निर्निमेष – बिना पालक झपकाए
(यहाँ लेखक ने तताँरा से मिलने के बाद वामीरो की स्थिति का वर्णन किया है )
व्याख्या – जब वामीरो अपने घर पहुँची तो अपने अंदर कुछ बैचेनी का अनुभव करने लगी। उसके अंदर तताँरा से पीछा छुड़ाने की जो ख़ुशी थी वह झूठी थी। बौखलाहट में उसने दरवाजा बंद किया और अपने मन को तताँरा की ओर जाने से रोकने के लिए किसी और दिशा में ले जाने की कोशिश की। परन्तु बार -बार कोशिश करने के बाद भी तताँरा का प्रार्थना से भरा हुआ चेहरा उसकी आँखों के सामने आ जाता था। उसने तताँरा के बारे में बहुत सी कहानियाँ सुनी थी।
उसकी सोच में तताँरा एक बहुत ही अधिक शक्तिशाली युवक था। परन्तु वही तताँरा जब वामीरो के सामने आया तो बिलकुल अलग ही रूप में था। वह सुंदर और शक्तिशाली तो था ही साथ ही साथ वह बहुत शांत ,समझदार और सीधा साधा था। वह बिलकुल वैसा ही था जैसा वामीरो अपने जीवन साथी के बारे में सोचती थी। परन्तु दूसरे गाँव के युवक के साथ उसका सम्बन्ध रीति रिवाजों के विरुद्ध था। इसलिए वामीरो ने तताँरा को भूल जाना ही समझदारी समझा। परन्तु यह आसान नहीं लग रहा था क्योकि तताँरा बार -बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था जैसे वह बिना पलकों को झपकाए उसकी प्रतीक्षा कर रहा हो।
पाठ – किसी तरह रात बीती। दोनों के ह्रदय व्यथित थे। किसी तरह आँचरहित एक ठंडा और ऊबाऊ दिन गुजरने लगा। शाम की प्रतीक्षा थी। तताँरा के लिए मानो पुरे जीवन की अकेली प्रतीक्षा थी। उसके गंभीर और शांत जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था। वह अचंभित था ,साथ ही रोमांचित भी। दिन ढलने के काफ़ी पहले वह लपाती की उस समुद्री चट्टान पर पहुँच गया। वामीरो की प्रतीक्षा में एक -एक पल पहाड़ की तरह भारी था। उसके भीतर एक आशंका भी दौड़ रही थी। अगर वामीरो न आई तो ?वह कुछ निर्णय नहीं कर पा रहा था। सिर्फ़ प्रतीक्षारत था। बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी।
शब्दार्थ –
व्यथित – अप्रसन्न
आँचरहित – बिना गर्मी का
ऊबाऊ – बेकार
अचंभित – आश्चर्यचकित
आशंका – शक
आस – उम्मीद
व्याख्या – तताँरा और वामीरो दोनों ने दुखी मन से किसी तरह रात गुजारी। किसी तरह गर्मी से रहित ठण्डा और बेकार सा दिन गुजरने लगा। दोनों को ही शाम का इंतज़ार था। तताँरा के लिए तो मानो ये उसकी पूरी ज़िन्दगी की पहली और अकेली प्रतीक्षा थी। उसके गहरे और शांत जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था जब उसे बैचेनी से किसी का इंतज़ार था। वह आश्चर्यचकित तो था परन्तु साथ ही साथ उत्सुक भी था। वह दिन ढलने से बहुत पहले ही लपाती गाँव की उस समुद्री चट्टान पर पहुँच गया था जहाँ उसने वामीरो को आने के लिए कहा था। वामीरो के इन्तजार में उसे हर एक पल बहुत अधिक लम्बा लग रहा था। उसके अंदर एक शक भी पैदा हो गया था कि अगर वामीरो आई ही नहीं तो। वह इस बारे में कुछ सोच नहीं पा रहा था। उसके पास प्रतीक्षा करने के अलावा और कोई चारा नहीं था। उसे सिर्फ उम्मीद की एक किरण नजर आ रही थी और वो भी समय बीतने के साथ -साथ समुद्र के शरीर पर जैसे किरणे डूब रही थी उसी प्रकार कभी भी डूब सकती थी।
पाठ – वह बार -बार लपाती के रास्ते पर नजर दौड़ाता। सहसा नारियल के झुरमुटों में उसे एक आकृति कुछ साफ़ हुई….. कुछ और…. कुछ और। उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। सचमुच वह वामीरो थी। लगा जैसे वह घबराहट में थी। वह अपने को छुपाते हुए बढ़ रही थी। बीच -बीच में इधर उधर दृष्टि दौड़ाना नहीं भूलती। फिर तेज़ क़दमों से चलती हुई तताँरा के सामने आकर ठिठक गई। दोनों शब्दहीन थे। कुछ था जो दोनों के भीतर बह रहा था। एकटक निहारते हुए वे जाने कब तक खड़े रहे। सूरज समुद्र लहरों में कहीं खो गया था।
अँधेरा बढ़ रहा था। अचानक वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ दौड़ पड़ी। तताँरा अभी भी वहीँ खड़ा था…… निश्चल….. शब्दहीन…..।
शब्दार्थ –
सहसा – अचानक
निहारना – देखना
सचेत – होश में आना
निश्चल – जो अपने स्थान से हटे नहीं
शब्दहीन – जो कुछ न बोल सके
व्याख्या – तताँरा बार – बार लपाती गाँव के रास्तों पर वामीरो के इंतजार में नजरे गाड़ कर खड़ा था। तभी अचानक नारियल के पेड़ों में से कोई एक आकृति सी दिखाई दी ,वो आकृति जैसे -जैसे नजदीक आ रही थी वैसे -वैसे साफ दिखाई देने लगी। उसे देखते ही तताँरा बहुत खुश हो गया क्योंकि वह सचमुच वामीरो ही थी। ऐसा लग रहा था कि वह घबरा रही थी या डरी हुई थी। वह अपने आप को छुपा कर आगे बढ़ रही थी। बीच -बीच में वह डर कर इधर उधर नज़रे घुमा रही थी कि कही कोई उसे देख ना ले। फिर तेज़ क़दमों के साथ आ कर तताँरा के सामने आकर रुक गई।दोनों कुछ बोल नहीं रहे थे। कुछ था जो दोनों के अंदर किसी भावना का संचार कर रहा था।ना जाने कब तक बिना पलक झपकाए दोनों एक दूसरे को देखते रहे। सूरज समुद्र में कहीं डूब गया था अर्थात शाम हो गई थी। अब अँधेरा बढ़ रहा था। अचानक वामीरो को होश आया और वह अपने घर की ओर दौड़ पड़ी। तताँरा अभी ही उसी जगह खड़ा था ,अपनी जगह से बिलकुल भी नहीं हटा और कोई एक शब्द भी नहीं कहा।
पाठ – दोनों रोज उसी जगह पहुँचते और मूर्तिवत एक दूसरे को निर्निमेष ताकते रहते। बस भीतर समर्पण था जो अनवरत गहरा रहा था। लपाती के कुछ युवकों ने इस मूक प्रेम को भाँप लिया और खबर हवा की तरह बह उठी। वामीरो लपाती ग्राम की थी और तताँरा पासा का। दोनों का सम्बन्ध संभव न था। रीति के अनुसार दोनों को एक ही गाँव का होना आवश्यक था। वामीरो और तताँरा को समझाने-बुझाने के कई प्रयास हुए किन्तु दोनों अडिग रहे। वे नियमतः लपाती के उसी समुद्री किनारे पर मिलते रहे। अफ़वाहें फैलती रहीं।
शब्दार्थ –
मूर्तिवत – मूर्ति की तरह
निर्निमेष – एकटक
अनवरत – जिसे रोका न जा सके
अडिग – डटे रहना
नियमतः – नियम के अनुसार
व्याख्या – तताँरा और वामीरो हर रोज उसी जगह मिलने लगे और दोनों एक दूसरे को एकटक नजरों से मूर्ति की तरह देखते रहते। केवल उनके भीतर एक दूसरे के लिए त्याग की वो भावना थी जिसे कोई रोक नहीं सकता था और वो हर समय बढ़ता ही जा रहा था। लपाती के कुछ युवकों को इस प्रेम के बारे में पता चल गया और ये खबर हवा की तरह हर जगह फैल गई। वामीरो लपाती गाँव की रहने वाली थी और तताँरा पासा गाँव का। दोनों का सम्बन्ध किसी भी तरह संभव नहीं था। क्योंकि रीतिरिवाज़ के अनुसार दोनों के सम्बन्ध के लिए दोनों का एक ही गाँव का होना जरुरी था। सभी ने वामीरो और तताँरा को समझाने -बुझाने के बहुत प्रयास किये परन्तु दोनों ने किसी की भी बात नहीं मानी। वे अपने नियम के अनुसार हमेशा लपाती के उसी समुद्री किनारे पर मिलते रहे। और लोगो ने दोनों के बारे में बाते फैलानी जारी रखी।
पाठ – कुछ समय बाद पासा गाँव में ‘पशु पर्व ‘का आयोजन हुआ। पशु पर्व में हष्ट पुष्ट पशुओं के प्रदर्शन के अतिरिक्त पशुओं से युवकों की शक्ति परीक्षा प्रतियोगिता भी होती है। वर्ष में एक बार सभी गाँव के लोग हिस्सा लेते हैं। बाद में नृत्य -संगीत और भोजन का भी आयोजन होता है। शाम को सभी लोग पासा में एकत्रित होने लगे। धीरे -धीरे विभिन्न कार्यक्रम शुरू हुए। तताँरा का मन इन कार्यक्रमों में तनिक न था। उसकी व्याकुल आँखे वामीरों को ढूंढने में व्यस्त थीं। नारियल के झुण्ड के एक पेड़ के पीछे से उसे जैसे कोई झांकता दिखा। उसने थोड़ा और करीब जा कर पहचानने की चेष्टा की। वह वामीरो थी जो भयवश सामने आने से झिझक रही थी।
शब्दार्थ –
हष्ट पुष्ट – हटे कटे
प्रदर्शन – दिखाना
व्याकुल – परेशान
चेष्टा – कोशिश
व्याख्या – कुछ समय के बाद पासा गाँव में ‘पशु पर्व ‘का आयोजन किया गया। पशु पर्व में हट्टे कट्टे पशुओं के दिखावे के अलावा पशुओं से युवकों की शक्ति परखने की प्रतियोगितायें भी होती थी। साल में एक बार मेला लगता था और सभी गाँव के लोग इसमें भाग लेने आते थे। प्रतियोगिता के बाद नाच -गाना और फिर भोजन सब का प्रबंध किया जाता था। शाम के समय सभी लोग पासा गाँव में इकठ्ठे होने लगे। धीरे -धीरे कई तरह के कार्यक्रम शुरू हुए। तताँरा का मन इन में से किसी भी कार्यक्रम में नहीं लग रहा था। उसकी परेशान आँखे तो वामीरों को ढूंढने में व्यस्त थी। तभी उसे नारियल के पेड़ों के झुण्ड में से एक पेड़ के पीछे से कोई झांकता हुआ दिखाई दिया। उसने थोड़ा और पास में जा कर उसे पहचानने की कोशिश की। वह वामीरो थी जो डर के मारे किसी के भी सामने आने से परेशान हो रही थी।
पाठ – उसकी आँखे तरल थी। होंठ काँप रहे थे। तताँरा को देखते ही वह फुटकर रोने लगी। तताँरा विह्वल गया। उससे कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था। रोने की आवाज लगातार ऊँची होती जा रही थी। तताँरा किंकर्तव्यविमूढ़ था। वामीरो के रुदन स्वरों को सुन कर उसकी माँ वहाँ पहुँची और दोनों को देखकर आग बबूला हो उठी। सारे गाँव वालों की उपस्थिति में यह दृश्य उसे अपमान जनक लगा। इस बीच गाँव के कुछ लोग भी वहाँ पहुँच गए। वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। उसने तताँरा को तरह -तरह से अपमानित किया। गाँव के लोग भी तताँरा के विरोध में आवाजें उठाने लगे।
शब्दार्थ –
विह्वल – भावुक
किंकर्तव्यविमूढ़ – हका बका होना
व्याख्या – जब तताँरा ने वामीरो को देखा तो उसकी आँखें नमी से भरी थी और उसके होंठ डर कर काँप रहे थे। तताँरा को देखते ही वामीरो फुट -फुटकर रोने लगी। तताँरा इस तरह वामीरो को रोता देखकर भावुक हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले। वामीरो के रोने की आवाज लगातार बढ़ती जा रही थी। तताँरा हकाबका हो गया था उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वामीरो के रोने की आवाज सुनकर वामीरो की माँ वहाँ आ गई और दोनों को एक साथ देख कर गुस्सा हो गई। उसे सभी गाँव वालों के सामने अपमानित महसूस हो रहा था। इस बीच गाँव के लोग भी वहाँ आ गए। वामीरो की माँ को और भी ज़्यादा गुस्सा आ गया। उसने वामीरो को कई तरह से अपमानित करना शुरू कर दिया। गाँव वाले भी तताँरा के विरोध में बोलने लगे।
पाठ – यह तताँरा के लिए असहनीय था। वामीरो अब भी रोए जा रही थी। तताँरा भी गुस्से से भर उठा। उसे जहाँ विवाह की निषेध परम्परा पर क्षोभ था वहीँ अपनी असहायता पर खीझ। वामीरो का दुःख उसे और गहरा कर रहा था। उसे मालूम न था कि क्या कदम उठाना चाहिए ?अनायास उसका हाथ तलवार की मूठ पर जा टिका। क्रोध में उसने तलवार निकली और कुछ विचार करता रहा। क्रोध लगातार अग्नि की तरह बढ़ रहा था। लोग सहम उठे। एक सन्नाटा सा खींच गया। जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसने शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा। वह पसीने से नहा उठा। सब घबराए हुए थे।
शब्दार्थ –
असहनीय- जो सहन न हो सके
निषेध – जो न किया जा सके
क्षोभ – बहुत अधिक गुस्सा
खीझ – चीड़
अनायास – अचानक
शमन – शांत
व्याख्या – लोगो की बातों को सुनना अब तताँरा के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो रहा था। वामीरो का रोना अब भी शांत नहीं हुआ था। अब तताँरा भी गुस्से में आ गया। पहली बात पर तो उसे गुस्सा इस बात का था की गाँव की परम्पराओं के कारण उसका और वामीरो का विवाह नहीं हो सकता था और दूसरा इस समय वह कुछ नहीं कर पा रहा था। वामीरो का दुखी होना उसके गुस्से को और अधिक बड़ा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना चहिए । अचानक उसका हाथ उसकी तलवार पर आकर टिक गया। गुस्से से उसने तलवार निकली और कुछ सोचने लगा। उसका गुस्सा लगातार आग की तरह बढ़ता ही जा रहा था। लोगों में डर बैठ गया। हर जगह सन्नाटा सा छा गया। जब तताँरा को कोई रास्ता दिखाई न दिया तो उसने अपने गुस्से को शांत करने के लिए अपनी पूरी शक्ति से तलवार को धरती में गाढ़ दिया और अपनी पूरी ताकत से उसे खींचने लगा। वह पसीना -पसीना हो गया। सभी डरे हुए थे कि अब क्या होगा।
पाठ – वह तलवार को अपनी तरफ खींचते -खींचते दूर तक पहुँच गया। वह हाँफ रहा था। अचानक जहाँ तक लकीर खिंच गई थी ,वहाँ एक दरार होने लगी। मानो धरती दो टुकड़ों में बांटने वाली हो। एक गड़गड़ाहट -सी गूँजने लगी और लकीर की सीध में धरती फटती ही जा रही थी। द्वीप के अंतिम सिरे तक तताँरा धरती को मानो क्रोध में काटता जा रहा था। सभी भयाकुल हो उठे। लोगों ने ऐसे दृश्य की कल्पना न की थी ,वे सिहर उठे। उधर वामीरो फटती हुई धरती के किनारे चीखती हुई दौड़ रही थी -तताँरा……तताँरा…..तताँरा उसकी करुण चीख मानो गड़गड़ाहट में डूब गई।
(यहाँ लेखक ने तताँरा के क्रोध का वर्णन किया है)
व्याख्या – तताँरा ने जो तलवार गुस्से से धरती में गाड़ दी थी वह उस तलवार को अपनी ओर खींचता हुआ बहुत दूर तक पहुँच गया था। अब वह थक कर हाँफ रहा था। अचानक जहाँ तक तताँरा ने लकीर खिंच ली थी ,वहाँ पर दरार होने लगी। ऐसा लग रहा था मानो धरती के दो टुकड़े होने वाले हैं। एक गरजन सी होने लगी और जो लकीर तताँरा ने खींची थी उस लकीर की सीध में धरती फटती जा रही थी। ऐसा लग रहा था कि तताँरा द्वीप को क्रोध में काटता जा रहा था। सभी लोग डर कर काँपने लगे। किसी ने भी ये नहीं सोचा था कि इस तरह कुछ होगा ,वे सभी लोग सहम गए। उधर वामीरो फटती हुई धरती के किनारे चीखते हुए दौड़ रही थी -तताँरा……तताँरा…..तताँरा परन्तु उसकी ये चीखें मानो उस गरजना में कहीं खो गई थी अर्थात तताँरा को उसकी चीखें सुनाई नहीं दी।
पाठ – तताँरा दुर्भाग्यवंश दूसरी तरफ था। द्वीप के अंतिम सिरे तक धरती को चीरता वह जैसे ही अंतिम छोर तक पहुँचा ,द्वीप दो टुकड़ों में विभक्त हो चूका था। एक तरफ तताँरा था दूसरी तरफ वामीरो। तताँरा को जैसे ही होश आया ,उसने देखा उसकी तरफ का द्वीप समुद्र में धँसने लगा है। वह छटपटाने लगा उसने छलांग लगा कर दूसरा सिरा थामना चाहा किन्तु पकड़ ढीली पड़ गई। वह निचे की तरफ फिसलने लगा। वह लगातार समुद्र की सतह की तरफ फिसल रहा था। उसके मुँह से सिर्फ एक ही चीख उभर कर डूब रही थी ,वामीरो……. वामीरो……. वामीरो……. वामीरो……. ” उधर वामीरो भी “तताँरा तताँरा ता…. ताँ…. रा …. ” पुकार रही थी।
शब्दार्थ –
दुर्भाग्यवंश – बदकिस्मती
विभक्त – अलग
छटपटाने – तड़फने
व्याख्या – जब धरती दो टुकड़ों में बांटने लगी तो सबसे बड़ी बदकिस्मती ये थी कि तताँरा दूसरी तरफ था। जब तताँरा द्वीप के आखरी सिरे तक धरती को चीरता हुआ पहुँचा ,तब तक द्वीप के दो टुकड़े हो चुके थे। तताँरा द्वीप के एक ओर था और वामीरो दूसरी ओर। तताँरा को जैसे ही होश आया ,उसने देखा कि द्वीप के जिस ओर वह है वो टुकड़ा समुद्र में धँसने लगा है। अब वह तड़पने लगा ,वह छलांग लगा कर दूसरी ओर जाना चाहता था परन्तु उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और वह निचे की ओर फिसलने लगा। वह लगातार समुद्र की तरफ फिसल रहा था। उसके मुँह से सिर्फ एक ही चीख निकल रही थी वामीरो…….वामीरो…….वामीरो…….वामीरो……., लेकिन ये चीख कहीं डूबती हुई सी लग रही थी। उधर वामीरो भी लगातार तताँरा को पुकारती जा रही थी।
पाठ – तताँरा लहूलुहान हो चूका था… वह अचेत होने लगा और कुछ देर बाद उसे कोई होश नहीं रहा। वह कटे हुए द्वीप के अंतिम भूखंड पर पड़ा हुआ था जो की दूसरे हिस्से से संयोगवंश जुड़ा था। बहता हुआ तताँरा कहाँ पहुँचा,बाद में उसका क्या हुआ कोई नहीं जानता। इधर वामीरो पागल हो उठी। वह हर समय तताँरा को खोजती हुई उसी जगह पहुँचती और घण्टों बैठी रहती। उसने खाना पीना छोड़ दिया। परिवार से वह एक तरह विलग हो गई। लोगो ने उसे ढूंढने की बहुत कोशिश की किन्तु कोई सुराग नहीं मिला।
शब्दार्थ –
अचेत – बेहोश
भूखंड – भूमि का टुकड़ा
विलग – अलग
(यहाँ लेखक ने तताँरा से बिछड़ कर वामीरो के हाल का वर्णन किया है )
व्याख्या – दूसरी ओर आने की कोशिश करते -करते तताँरा लहूलुहान हो गया था। अब उसमे शक्ति नहीं बची थी वह बेहोश होने लगा था और थोड़ी देर बाद उसे कोई होश नहीं रहा। अब वह उस कटे हुए द्वीप के उस आखरी भू -भाग पर बेहोश पड़ा हुआ था जो संयोगवश उस द्वीप से जुड़ा हुआ था। बहता हुआ तताँरा कहाँ गया ,उसके बाद उसका क्या हुआ ये कोई नहीं जान सका। इधर वामीरो तताँरा से अलग होने के कारण पागल हो गई। वह हर समय बस तताँरा को ही खोजती रहती और उसी जगह आकर घंटों बैठी रहती जहाँ वो तताँरा से मिलने आया करती थी। उसने खाना -पीना छोड़ दिया था। परिवार से वह कही अलग हो गई। लोगो ने उसे ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की परन्तु अब वामीरो का भी कोई सुराग नहीं मिला कि वह कहाँ गई।
पाठ – आज न तताँरा है और न वामीरो किन्तु उनकी यह प्रेमकथा घर -घर में सुनाई जाता है। निकोबारियों का मत है कि तताँरा की तलवार से कार -निकोबार के जो टुकड़े हुए ,उसमें दूसरा लिटिल अंदमान है जो कार निकोबार से आज 96 कि.मी. दूर स्थित है। निकोबारी इस घटना के बाद दूसरे गाँवों में भी आपसी वैवाहिक सम्बन्ध करने लगे। तताँरा- वामीरो की त्यागमयी मृत्यु शायद इसी सुखद परिवर्तन के लिए थी।
व्याख्या – आज ना तो तताँरा है और ना ही वामीरो है,परन्तु फिर भी आज उनकी प्रेमकथा हर घर में सुनाई जाती है। निकोबार के निवासियों का मानना है कि तताँरा की तलवार से कार -निकोबार के जो दो टुकड़े हुए, उसमे से दूसरा टुकड़ा आज लिटिल अंदमान के नाम से प्रसिद्ध है जो कार -निकोबार से 96 कि.मी. दूर स्थित है।निकोबार निवासीयों ने इस घटना के बाद अपनी परम्परा को बदला और दूसरे गाँव में भी विवाह सम्बन्ध बनने लगे। तताँरा – वामीरो की जो एक -दूसरे के लिए त्यागमयी मृत्यु थी वह शायद इसी सुखद बदलाव के लिए थी।
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