Hindi Essay and Paragraph Writing – Mother Teresa (मदर टेरेसा) for all classes from 1 to 12
मदर टेरेसा पर निबंध – इस लेख में हम नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मदर टेरेसा के बारे में जानेंगे | मदर टेरेसा एक ऐसी महान आत्मा थीं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन लोगों की सेवा और भलाई में लगा दिया। सम्पूर्ण विश्व में फैले उनके मानवीय कार्यों के कारण मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। अक्सर स्टूडेंट्स से असाइनमेंट के तौर या परीक्षाओं में मदर टेरेसा पर निबंध पूछ लिया जाता है। इस पोस्ट में मदर टेरेसा पर कक्षा 1 से 12 के स्टूडेंट्स के लिए 100, 150, 200, 250 और 350 शब्दों में संक्षिप्त निबंध/अनुच्छेद दिए गए हैं।
- मदर टेरेसा जी पर 10 लाइन 10 lines
- मदर टेरेसा जी पर अनुच्छेद 1, 2, 3 के छात्रों के लिए 100 शब्दों में
- मदर टेरेसा जी पर अनुच्छेद 4 और 5 के छात्रों के लिए 150 शब्दों में
- मदर टेरेसा जी पर अनुच्छेद 6, 7 और 8 के छात्रों के लिए 200 शब्दों में
- मदर टेरेसा जी पर अनुच्छेद 9, 10, 11, 12 के छात्रों के लिए 250 से 300 शब्दों में
मदर टेरेसा जी पर 10 लाइन 10 lines on Mother Teresa in Hindi
- मदर टेरेसा एक ऐसी महान महिला थी, जो अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्ध थी।
- मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे (अब मैसेडोनिया) के एक अल्बेनीयाई परिवार में हुआ था।
- मदर टेरेसा का वास्तविक नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था।
- मदर टेरेसा का पिता का नाम निकोला बोयाजू और माता का नाम द्राना बोयाजू था।
- मदर टेरेसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी।
- मदर टेरेसा ने गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों के मदद करने के उद्देश्य से 1950 में कोलकाता में ‘मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की थी।
- मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया था।
- मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 में दिल के दौरे के कारण हुई थी।
- मदर टेरेसा की मृत्यु के बाद इन्हें पोप जॉन पॉल द्वितीय ने धन्य घोषित किया और इन्हें कोलकाता की धन्य की उपाधि प्रदान की।
- पोप फ्रांसिस ने 09 सितंबर 2016 को वेटिकन सिटी में मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया।
Short Essay on Mother Teresa in Hindi मदर टेरेसा पर अनुच्छेद कक्षा 1 to 12 के छात्रों के लिए 100, 150, 200, 250 से 300 शब्दों में
मदर टेरेसा पर निबंध – मानवतावादी सेवा के क्षेत्र की एक प्रसिद्ध हस्ती मदर टेरेसा का नाम आते ही मन में मातृ स्नेह की गहरी भावना जागृत हो जाती है। वह दूसरों, विशेषकर निराश्रितों की सेवा में अपने समर्पित कार्य के माध्यम से मानवता के सार का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। मदर टेरेसा उन महान व्यक्तियों में से हैं जिन्होंने दूसरों की भलाई को सर्वोपरि प्राथमिकता दी और अपना पूरा जीवन उनकी सेवा और कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। दुनिया को ऐसे महान व्यक्तियों की जरूरत है जो मानवीय सेवा को सर्वोच्च धर्म मानते हो।
मदर टेरेसा पर निबंध कक्षा 1, 2, 3 के छात्रों के लिए 100 शब्दों में
मदर टेरेसा एक ऐसी महान महिला थी, जिन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और भलाई में लगा दिया। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसिडोनिया की राजधानी स्कोप्जे शहर में हुआ था। मदर टेरेसा जब मात्र 8 साल की थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी माता ने किया। छोटी उम्र से ही मदर टेरेसा एक बहुत मेहनती लड़की थी। पढ़ाई के साथ-साथ, गाना उन्हें बेहद पसंद था। ऐसा कहा जाता है कि जब वह 12 साल की थीं तभी उन्हें अनुभव हो गया था कि वो अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगाएंगी। भारत आने के बाद उन्होंने 1950 में, गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए व्यक्तियों की देखभाल और सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से कोलकाता में ‘मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की। मदर टेरेसा के परोपकारी कार्यों से प्रभावित होकर 1980 में भारत सरकार ने उन्हें देश का सबसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया। 5 सितंबर 1997 को दिल का दौरा पड़ने से मदर टेरेसा का निधन हो गया।
मदर टेरेसा पर निबंध कक्षा 4, 5 के छात्रों के लिए 150 शब्दों में
अपने मानवतावादी कार्यों के लिए प्रसिद्ध मदर टेरेसा एक महान महिला थी। उनका का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कोप्जे (अब मैसेडोनिया में) में एक अल्बानियाई परिवार में हुआ था तथा उनका असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू और माता का नाम द्राना बोयाजू था। बचपन से ही मेहनती लड़की रहीं मदर टेरेसा को पढ़ाई के साथ-साथ गाने का भी शौक था। 12 साल की उम्र में, एक धार्मिक यात्रा के दौरान उनका दृष्टिकोण बदल गया और उन्होंने आजीवन सेवा का संकल्प अपना लिया और भारत आने के बाद, पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली बॉर्डर वाली साड़ी पहनने का फैसला किया। असहाय लोगों के सेवा के उद्देश्य से 1950 में कोलकाता में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की, और खुद को लोगों की निस्वार्थ सेवा करने के लिए समर्पित कर दिया। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में अपनी स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। मदर टेरेसा जीवन के अंत तक लोगो को सेवा करती रही। उनके निस्वार्थ सेवा को देखकर उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। दुर्भाग्य से मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हो गई।
मदर टेरेसा पर निबंध कक्षा 6, 7, 8 के छात्रों के लिए 200 शब्दों में
मदर टेरेसा, जिनका असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था, का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कोप्जे (अब मैसेडोनिया में) में हुआ था। वह एक रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। सन् 1949 में मदर टेरेसा ने गरीब, असहाय व अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की, जिसे 7 अक्टूबर, 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। इसी के साथ ही उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनने का फैसला किया। मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले, जिनमें वे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं। जिन्हें समाज ने बाहर निकाल दिया हो, ऐसे लोगों पर इस महिला ने अपनी ममता व प्रेम लुटा कर सेवा भावना का परिचय दिया और साल 1970 तक वे अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्ध हो गईं। भारत सरकार ने उनकी समाज सेवा और जन कल्याण की भावना की कद्र करते हुए 1962 में उन्हें ‘पद्मश्री’ और 1980 में ‘भारत रत्न’ से नवाजा तथा विश्व भर में फैले उनके मिशनरी के कार्यों के लिए 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
सरकारों और संस्थाओं से प्रशंसा पाने के बावजूद मदर टेरेसा को आलोचना का भी सामना करना पड़ा। उन पर कई गंभीर आरोप लगाकर, उनकी निंदा की गई। लेकिन कहते हैं ना जहां सफलता होती है वहां आलोचना तो होती ही है। 1983 में, 73 वर्ष की आयु में, मदर टेरेसा पोप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए रोम गईं, जहाँ उन्हें पहला दिल का दौरा पड़ा। इसके बाद, 1989 में उन्हें दूसरा दिल का दौरा पड़ा। बुढ़ापे के कारण बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण 05 सितंबर, 1997 को मदर टेरेसा का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद, पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें धन्य घोषित किया और उन्हें कोलकाता की धन्य की उपाधि दी।
मदर टेरेसा पर निबंध कक्षा 9, 10, 11, 12 के छात्रों के लिए 250 से 300 शब्दों में
अपने मानवीय कार्यों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कोप्जे (अब मैसेडोनिया में) में हुआ था। वह एक अल्बानियाई परिवार से थी। उनका असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी इनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद उनका लालन-पालन उनकी माता द्राना बोयाजू ने की। बचपन से ही मेहनती लड़की रहीं मदर टेरेसा को पढ़ाई के साथ-साथ गाने का भी शौक था। वह और उनकी बहन घर के पास के गिरजाघर में मुख्य गायिकाएँ थीं। मदर टेरेसा जब बारह साल की थी तभी उन्होंने अपना सारा जीवन जनसेवा में लगाने का मन बना चुकी थी। अठारह साल की उम्र में, वह ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल हो गई। तत्पश्चात वह आयरलैंड गयी और वहाँ अंग्रेजी भाषा सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरुरी था क्योंकि ‘लोरेटो’ की सिस्टर्स इसी माध्यम में बच्चों को भारत में पढ़ाती थी। उसके बाद मदर टेरेसा 6 जनवरी, 1929 को आयरलैंड से कोलकाता के ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पहुंचीं। उन्हें मिशनरी स्कूल में पढ़ाने का काम दिया गया। इसके बाद, उन्होंने सेंट मैरी स्कूल की स्थापना की, जिसे डबलिन की सिस्टर लोरेटो ने चलाया था, जहाँ गरीब बच्चे पढ़ते थे। मदर टेरेसा को बंगाली और हिंदी दोनों भाषाओं का अच्छा ज्ञान था और वह छात्रों को इतिहास और भूगोल का पाठ पढ़ाती थीं। कई वर्षों तक उन्होंने इस काम को पूरी निष्ठा और लगन से करती रही।
इन्ही वर्षों के दौरान कोलकाता में रहते हुए मदर टेरेसा ने वहाँ की गरीबी, बीमारियों की फैलाव, लाचारी और अज्ञानता को करीब से देखा और इन सब से उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसके बाद उन्हें एक ऐसा काम करने की इच्छा हुई, जिससे वे लोगों की मदद कर सकें, उनके दर्द कम कर सकें। इसलिए उन्होंने अध्यापक के काम को छोड़कर लोगों के सेवा का संकल्प लिया। इसके बाद पटना के होली फैमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिंग की ट्रेनिंग पुरी की और कोलकाता वापस आ गई। 1948 में मदर टेरेसा ने भारतीय नागरिकता ले ली। सन् 1949 में मदर टेरेसा ने असहाय लोगों की सेवा के उद्देश्य से ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की, जिसे 7 अक्टूबर, 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। इस मिशन के तहत, मदर टेरेसा ने व्यक्तिगत रूप से प्लेग और कुष्ठ रोग जैसी विभिन्न बीमारियों से पीड़ित लोगों के घावों की देखभाल की, साथ ही निराश्रित, भूखे और अनाथों की निस्वार्थ सेवा की और इस तरह कुछ सालों में मदर टेरेसा सभी गरीब, असहाय लोगों के लिए मसीहा बन गई। 1965 में, मदर टेरेसा ने रोम के पोप जॉन पॉल से अपनी मिशनरियों को दुनियाभर में फैलाने की अनुमति प्राप्त की। परिणामस्वरूप, भारत के बाहर पहला मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी संस्थान वेनेजुएला में स्थापित किया गया। और कुछ सालों में पूरी दुनिया में उनके मिशनरियों के तहत गरीब, भूखे, असहाय लोगों की सहायता की जाने लगी।
मदर टेरेसा को विश्व भर में फैले उनके मिशनरी के कार्यों के लिए 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया और भारत सरकार ने उन्हें 1962 में ‘पद्मश्री’ और 1980 में ‘भारत रत्न’ से नवाजा। इतना सम्मान मिलने के बावजूद, उन्हें कई आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। फिर भी वह अपना काम करती रही। 1983 में 73 वर्ष की आयु में पोप जॉन-2 से मिलने रोम गई थी, वहीं उनको पहला दिल का दौरा पड़ा। फिर 1989 में दूसरा दिल का दौरा पड़ने से उनका स्वास्थ्य और खराब हो गया जिसके चलते 3 मार्च 1997 को उन्होंने “मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के मुखिया का पद छोड़ दिया और 5 सितंबर 1997 को फिर से दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई।
Hindi Essay Writing Topic – मदर टेरेसा (Mother Teresa)
प्रस्तावना
मदर टेरसा 20वीं सदी की महानतम शख्सियतों में से एक मानी जाती हैं | मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। इन्होंने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की। इन्होंने अपने जीवन के 45 सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ लोगों की मदद की और साथ ही मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया। इन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा, कलकत्ता की संत टेरेसा नाम से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपना पूरा जीवन बीमारों और गरीबों की देखभाल के लिए समर्पित कर दिया।
प्रारंभिक जीवन
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे (अब मेसीडोनिया में) में हुआ था। इनके पिता निकोला बोयाजू एक साधारण व्यवसायी थे। मदर टेरेसा का वास्तविक नाम “एग्नेस गोंझा बोयाजिजू” था। उनके पिता एक उद्यमी थे, जो एक निर्माण ठेकेदार और दवाओं व अन्य सामानों के व्यापारी के रूप में काम करते थे। जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी इनके पिता का निधन हो गया था। जिसके बाद इनके लालन-पालन की सारी जिम्मेदारी इनकी माता द्राना बोयाजू के ऊपर आ गयी। उन्होंने अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगाया और 18 साल की उम्र में इन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला ले लिया। तत्पश्चात यह आयरलैंड चली गयी | जहाँ इन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरुरी था क्योंकि ‘लोरेटो’ की सिस्टर्स इसी माध्यम में, बच्चों को भारत में पढ़ाती थीं। 1981 में, इन्होने अपना नाम बदलकर टेरेसा रख लिया और उन्होने आजीवन मानव सेवा का संकल्प लिया।
पुरस्कार व सम्मान
मदर टेरेसा को 1931 मे पोप तेइसवें का शांति पुरस्कार और धर्म की प्रगति के लिए टेम्पेलटन फाउण्डेशन पुरस्कार प्रदान किया गया। भारत सरकार द्वारा मदर टेरेसा को 1962 में ‘पद्म श्री’ की उपाधि मिली। 1988 में ब्रिटेन द्वारा ‘आईर ओफ द ब्रिटिश इम्पायर’ की उपाधि प्रदान की गयी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने उन्हें डी-लिट की उपाधि से विभूषित किया। 19 दिसंबर 1979 को मदर टेरेसा को मानव-कल्याण कार्यों के हेतु नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया।
1979 में, मदर टेरेसा को उनके मानवीय कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला। सितंबर 1997 में उनकी मृत्यु हो गई और अक्टूबर 2003 में उन्हें संत घोषित कर दिया गया। दिसंबर 2015 में, पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा के लिए जिम्मेदार एक दूसरे चमत्कार को मान्यता दी, जिससे 4 सितंबर, 2016 को उनके संत होने का रास्ता साफ हो गया। उन्हें 2016 में कलकत्ता की सेंट टेरेसा के रूप में मान्यता दी गई | मदर टेरेसा गरीबों की मदद करने के लिए, समर्पित महिलाओं की एक रोमन कैथोलिक मण्डली, ऑर्डर ऑफ द मिशनरीज ऑफ चैरिटी की संस्थापक रही थीं।
शिक्षा और नन
एग्नेस ने एक कॉन्वेंट द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालय और फिर एक राज्य द्वारा संचालित माध्यमिक विद्यालय में भाग लिया। एक लड़की के रूप में, वह स्थानीय सेक्रेड हार्ट गाना बजाने वालों में गाती थी और अक्सर उन्हें एकल गाने के लिए कहा जाता था। मण्डली ने लेटनिस में चर्च ऑफ़ द ब्लैक मैडोना की वार्षिक तीर्थयात्रा की, और वे 12 साल की उम्र में ऐसी ही एक यात्रा पर थी कि जहाँ पहली बार धार्मिक जीवन के लिए एक आह्वान महसूस किया।
छह साल बाद, 1928 में, एक 18 वर्षीय एग्नेस बोजाक्सीहु ने नन बनने का फैसला किया और डबलिन में सिस्टर्स ऑफ लोरेटो में शामिल होने के लिए आयरलैंड के लिए रवाना हो गए। यह वहाँ था कि उसने लिसिएक्स के सेंट थेरेसे के बाद सिस्टर मैरी टेरेसा नाम लिया। एक साल बाद, सिस्टर मैरी टेरेसा ने नई अवधि के लिए दार्जिलिंग, भारत की यात्रा की; मई 1931 में, उन्होंने प्रतिज्ञा का अपना पहला पेशा बनाया। बाद में, उन्हें कलकत्ता भेजा गया, जहाँ उन्हें सेंट मैरी हाई स्कूल फॉर गर्ल्स में पढ़ाने के लिए नियुक्त किया गया, जो लोरेटो सिस्टर्स द्वारा संचालित एक स्कूल है और शहर के सबसे गरीब बंगाली परिवारों की लड़कियों को पढ़ाने के लिए समर्पित है। सिस्टर टेरेसा ने धाराप्रवाह बंगाली और हिंदी दोनों बोलना सीखा क्योंकि उन्होंने भूगोल और इतिहास पढ़ाया और शिक्षा के माध्यम से लड़कियों की गरीबी को कम करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया।
24 मई, 1937 को, उन्होंने अपनी अंतिम प्रतिज्ञाओं को गरीबी, शुद्धता और आज्ञाकारिता के जीवन में ले लिया। जैसा कि लोरेटो नन के लिए प्रथा थी, उसने अपनी अंतिम प्रतिज्ञा करने पर “मदर” की उपाधि धारण की और इस तरह मदर टेरेसा के रूप में जानी जाने लगी। मदर टेरेसा ने सेंट मैरी में पढ़ाना जारी रखा और 1944 में वह स्कूल की प्रिंसिपल बनीं। अपनी दयालुता, उदारता और अपने छात्रों की शिक्षा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के माध्यम से, उन्होंने उन्हें मसीह के प्रति समर्पण के जीवन की ओर ले जाने की कोशिश की। उसने प्रार्थना में लिखा, “मुझे हमेशा उनके जीवन का प्रकाश बनने की शक्ति दो, ताकि मैं उन्हें आपके पास ले जा सकूं।”
10 सितंबर, 1946 को, मदर टेरेसा ने दूसरी पुकार का अनुभव किया, “कॉल के भीतर कॉल” जो उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल देगी। वह एक वापसी के लिए कलकत्ता से हिमालय की तलहटी के लिए एक ट्रेन में सवार हो रही थी, जब उसने कहा कि क्राइस्ट ने उससे बात की और उसे शहर के सबसे गरीब और बीमार लोगों की सहायता के लिए कलकत्ता की झुग्गियों में काम करने के लिए शिक्षण छोड़ने के लिए कहा।
चूंकि मदर टेरेसा ने आज्ञाकारिता की शपथ ली थी, इसलिए वह आधिकारिक अनुमति के बिना अपने कॉन्वेंट को नहीं छोड़ सकती थीं। लगभग डेढ़ साल की पैरवी के बाद, जनवरी 1948 में उन्हें आखिरकार इस नई कॉलिंग को आगे बढ़ाने की मंजूरी मिल गई। उस अगस्त में, वह नीली और सफेद साड़ी पहनकर, जिसे वह जीवन भर सार्वजनिक रूप से पहनेगी, उसने लोरेटो कॉन्वेंट छोड़ दिया और शहर में घूम गई। छह महीने के बुनियादी चिकित्सा प्रशिक्षण के बाद, उन्होंने पहली बार कलकत्ता की मलिन बस्तियों में यात्रा की, जिसमें “अवांछित, अप्रसन्न, बेपरवाह” की सहायता करने के अलावा और कोई विशिष्ट लक्ष्य नहीं था। मदर टेरेसा ने शहर के गरीबों की मदद के लिए अपने आह्वान को तुरंत ठोस कार्रवाई में बदल दिया। उसने एक ओपन-एयर स्कूल शुरू किया और एक जीर्ण-शीर्ण इमारत में मरने वाले निराश्रितों के लिए एक घर की स्थापना की, उसने शहर की सरकार को उसके लिए दान करने के लिए मना लिया। अक्टूबर 1950 में, उन्होंने एक नई कलीसिया, मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के लिए विहित मान्यता प्राप्त की, जिसे उन्होंने केवल कुछ मुट्ठी भर सदस्यों के साथ स्थापित किया- उनमें से अधिकांश पूर्व शिक्षक या सेंट मैरी स्कूल के छात्र थे। जैसे-जैसे उनकी मण्डली की संख्या बढ़ती गई और भारत और दुनिया भर से दानों की भरमार होती गई, मदर टेरेसा की धर्मार्थ गतिविधियों का दायरा तेजी से बढ़ा। उन्होंने एक कोढ़ी कॉलोनी, एक अनाथालय, एक नर्सिंग होम, एक पारिवारिक क्लिनिक और मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिकों की एक श्रृंखला की स्थापना की।
1971 में, मदर टेरेसा ने अपना पहला अमेरिकी-आधारित चैरिटी हाउस खोलने के लिए न्यूयॉर्क शहर की यात्रा की, और 1982 की गर्मियों में, वह गुप्त रूप से बेरूत, लेबनान चली गईं, जहां उन्होंने बच्चों की सहायता के लिए क्रिश्चियन ईस्ट बेरूत और मुस्लिम वेस्ट बेरूत के बीच पार किया। 1985 में, मदर टेरेसा न्यूयॉर्क लौट आईं और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा की 40वीं वर्षगांठ पर भाषण दिया। वहाँ रहते हुए, उन्होंने गिफ़्ट ऑफ़ लव भी खोला, जो एचआईवी/एड्स से संक्रमित लोगों की देखभाल के लिए एक घर है।
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