छाया मत छूना पाठ के पाठ सार, पाठ-व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की Hindi Course A  पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर

Chaya Mat Chuna Summary of CBSE Class 10 Hindi (Course A) Kshitij Bhag-2 Chapter and detailed explanation of the lesson along with meanings of difficult words. Here is the complete explanation of the lesson, along with all the exercises, Questions and Answers given at the back of the lesson.

 
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 10 हिंदी कोर्स ए क्षितिज भाग 2 के पाठ छाया मत छूना पाठ के पाठ प्रवेश , पाठ सार , पाठ व्याख्या , कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें।  चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 छाया मत छूना पाठ  पाठ के बारे में जानते हैं। 

 

 

कवि परिचय-

कवि-“ गिरिजा कुमार माथुर ” जी

छाया मत छूना पाठ प्रवेश

“ छाया मत छूना ” कविता के कवि “ गिरिजा कुमार माथुर ” जी हैं। इस कविता में कवि ने बीते हुए समय की सुखद यादों को “ छाया ” का नाम दिया है। इसके पीछे वजह यह है कि बीते हुए समय की यादों को केवल याद करके भावविभोर हो सकते हैं उनकों अपने वर्तमान में वापिस नहीं लाया जा सकता। इंसान को कभी न कभी अपने जीवन में अपने अतीत की खुशनुमा यादें याद आ ही जाती हैं और उनको याद कर के व्यक्ति को अच्छा महसूस भी होने लगता है। हालाँकि वो मधुर स्मृतियाँ अब आपका वर्तमान नहीं बन सकती हैं क्योंकि बीता वक्त कभी वापस नहीं आ सकता। इसीलिए कवि कहते हैं कि परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हो वर्तमान में जियो , फिर चाहे आपके जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ , परेशानियाँ या निराशा ही क्यों न हो। जो भी हैं उसका सामना करो , तभी तुम खुश रह पाओगे।

प्रस्तुत कविता ” छाया मत छूना ” के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि हमारे जीवन में सुख और दुख दोनों ही रहते हैं। बीते हुए समय के सुख को याद कर , अपने वर्तमान के दुख को और अधिक गहरा करना किसी भी तरह से बुद्धिमानी नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि अपने बीते हुए अच्छे समय की तुलना अपने दुखी वर्तमान जीवन से करना आपकी कठिनाइयों को कम करने के बजाए और अधिक बड़ा देता है। कवि के शब्दों में इससे दुख और ज्यादा दोगुना हो जाता है। बीते हुए समय की सुखद अवास्तविकता से चिपके रहकर अपने वर्तमान से कहीं दूर भाग जाने की अपेक्षा , अपने जीवन में आए कठिन समय से रू – ब –  रू होना ही जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए। अर्थात वर्तमान में आई परेशानियों का सामना करने की हिम्मत रखनी चाहिए न की समय को कोसना चाहिए।

प्रस्तुत कविता भी बीते हुए समय की यादों को भूल कर , वर्तमान में आई परेशानियों का सामना कर के अपने आने वाले भविष्य को स्वीकार करने का संदेश देती है। यह कविता हमें बताती है कि जीवन के सत्य को छोड़कर उसकी छायाओं से भ्रमित रहना , जीवन की कठोर वास्तविकता से अपने आपको दूर रखना है। प्रस्तुत कविता में कवि द्वारा प्रयुक्त रोमानी भावबोध की अभिव्यक्ति देखी जा सकती है।

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छाया मत छूना पाठ सार

छाया मत छूना“ छाया मत छूना ” कविता के कवि “ गिरिजा कुमार माथुर ” जी हैं।  ” छाया मत छूना ” कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं  कि हमारे जीवन में सुख और दुख दोनों ही रहते हैं। बीते हुए समय के सुख को याद कर , अपने वर्तमान के दुख को और अधिक गहरा करना किसी भी तरह से बुद्धिमानी नहीं है। कविता में कवि कहते हैं कि अतीत की सुखद बातों को याद नहीं करना चाहिए। क्योंकि उनको याद करने से वर्तमान के दुःख से मन और अधिक निराश और दुखी हो जाता है। जब हम बीते दिनों की याद करते हैं तो उस समय की अनेक रंग – बिरंगी यादें हमें मन को लुभाने वाली और सुहावनी लगती हैं। और उस समय की हर सुखद धटना एक – एक कर चलचित्र की तरह हमारे आँखों के सामने आने लगती है। उन सुखद यादों के सहारे ही मनुष्य अपना पूरा जीवन बिता देना चाहता है। जबकि वह जानता है कि जो बीत गया , वह कभी वापस नहीं आएगा। कवि जब अपनी प्रेयसी के लम्बे बालों में लगे फूलों को याद करते हैं तो उन भूली – बिसरी यादों के स्पर्श से कवि को अपने जीवन में पल भर की शीतलता का आभास होता है। बीते वक्त का हर क्षण जब आँखों के सामने साकार होता है तो मन को और अधिक दुख पहुँचता है। इसीलिए पुरानी सुखद स्मृतियों से दूर रहना ही अच्छा है। हमें अपने भूतकाल को पकड़ कर नहीं रखना चाहिए , चाहे उसकी यादें कितनी भी सुहानी क्यों न हो। जीवन में ऐसी कितनी सुहानी यादें रह जाती हैं। जीवन का हर क्षण किसी भूली सी छुअन की तरह रह जाता है। कुछ भी स्थाई नहीं रहता है। जब मनुष्य के मन में दुविधा या असमंजस की स्थिति पैदा होती है तो मनुष्य का किसी भी कार्य को करने का साहस टूट जाता है। उसका विवेक अर्थात उसकी बुद्धि काम नहीं करती है। उसके सोचने – समझने की शक्ति खत्म हो जाती है यानि उसको कोई भी रास्ता नहीं सूझता है। भले ही मनुष्य का तन स्वस्थ हो , तब भी व्यक्ति का मन के दुःख का कोई अंत नहीं होता हैं क्योंकि मनुष्य कभी अपने पास उपलब्ध चीजों से संतुष्ट नहीं होता है।  जब हमें हमारी मन चाही वस्तु ठीक समय पर नहीं मिलती है तो उसका दुःख हमें जीवन भर रहना स्वाभाविक है। वैसे तो बसंत ऋतु में सभी फूल खिल जाते हैं। मगर कवि कहते हैं कि अगर कोई फूल बसंत ऋतु के जाने के बाद खिलता है तो क्या फर्क पड़ गया अर्थात यदि तुम्हें तुम्हारी मन चाही वस्तु तय समय के निकल जाने के बाद मिलती हैं , तो भी तुम संतुष्ट हो जाओ। और तुम्हें जो नहीं मिला , उसका दुःख मनाने के बजाय , उसे भूलकर आगे बढ़ने की तैयारी करो। मनुष्य को जो उसके पास उपलब्ध है या जो उसे मिला है उसी में संतुष्ट होना सीखना चाहिए क्योंकि मन की इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होती और न ही हमेशा हमें वह मिल पता है जो हमें चाहिए। अतः सुखद भविष्य के लिए जो नहीं मिला उसका दुःख मनाना छोड़ कर , जो मिला है उसकी खुशी मनानी चाहिए और सुखद भविष्य की तैयारी में जुट जाना चाहिए।

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छाया मत छूना पाठ व्याख्या  

काव्यांश 1 –
छाया मत छूना
मन , होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र – गंध फैली मनभावनी  ;
तन – सुगंध शेंष रही , बीत गई यामिनी ,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
छाया मत छूना
मन , होगा दुख दूना।

 शब्दार्थ –
छाया – किसी प्रकाश स्रोत के मार्ग में किसी वस्तु या आड़ से होने वाला अंधकार , परछाईं , छाँव , अँधेरा
दूना – दुगना
सुरंग – रंग – बिरंगी , जिसका रंग सुंदर हो
सुधियाँ – यादें , स्मृतियाँ
सुहावनी – सुंदर और सुखद
छवि – आभामंडल , प्रभाव , स्वरूप ( व्यक्तित्व ) , सौंदर्य – चित्र , सुंदरता
चित्र – गंध – हरताल
मनभावनी – मन को लुभावने वाली
तन – शरीर
सुगंध – सुवास , ख़ुशबू , प्रिय या अच्छी गंध
शेंष रही – बाकी रहना
यामिनी – रात , रात्रि , निशा , तारों भरी चाँदनी रात
कुंतल –  केश , सिर के बाल , जुल्फ़ , हल , बहुरूपिया
छुअन – छूना , स्पर्श
जीवित – जिन्दा
क्षण – पल ,अवसर , मौक़ा

नोट – उपरोक्त पंक्तियों में कवि हमें सन्देश देना चाहते हैं कि बीती हुई सुखद यादों को याद करके अपने वर्तमान के दुखों को कम नहीं किया जा सकता बल्कि  वर्तमान का दुःख दुगना हो जाता है। अतः बीते हुए समय को भूल कर , वर्तमान पर ध्यान दे कर , हमें अपने भविष्य को सवारना चाहिए।

व्याख्या – कविता की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि अतीत की सुखद बातों को याद नहीं करना चाहिए। क्योंकि उनको याद करने से वर्तमान के दुःख से मन और अधिक निराश और दुखी हो जाता है। जब हम बीते दिनों की याद करते हैं तो उस समय की अनेक रंग – बिरंगी यादें हमें मन को लुभाने वाली और सुहावनी लगती हैं। और उस समय की हर सुखद धटना एक – एक कर चलचित्र की तरह हमारे आँखों के सामने आने लगती है।  कहने का तात्पर्य यह है कि उन सुखद यादों के सहारे ही मनुष्य अपना पूरा जीवन बिता देना चाहता है। जबकि वह जानता है कि जो बीत गया , वह कभी वापस नहीं आएंगा। कवि आगे कहते हैं कि वह यामिनी यानि तारों भरी सुहावनी चांदनी रात अब नहीं हैं , जो उन्होंने अपनी प्रेयसी के साथ बिताई थी। मगर अब केवल उनकी प्रेयसी के तन की सुगंध ही उनके मन में बसी है। जो उन्हें पल भर का सुख प्रदान करती है। और कवि जब अपनी प्रेयसी के लम्बे बालों में लगे फूलों को याद करते हैं तो उन भूली – बिसरी यादों के स्पर्श से कवि को अपने जीवन में पल भर की शीतलता का आभास होता है। बीते वक्त का हर क्षण जब आँखों के सामने साकार होता है तो मन को और अधिक दुख पहुँचता है। इसीलिए पुरानी सुखद स्मृतियों से दूर रहना ही अच्छा हैं।

 भावार्थ – इस काव्यांश में कवि ने बताया है कि हमें अपने भूतकाल को पकड़ कर नहीं रखना चाहिए , चाहे उसकी यादें कितनी भी सुहानी क्यों न हो। जीवन में ऐसी कितनी सुहानी यादें रह जाती हैं। आँखों के सामने भूतकाल के कितने ही मोहक चित्र तैरने लगते हैं। प्रेयसी के साथ रात बिताने के बाद केवल उसके तन की सुगंध ही शेष रह जाती है। जीवन का हर क्षण किसी भूली सी छुअन की तरह रह जाता है। कुछ भी स्थाई नहीं रहता है। इसलिए हमें अपने भूतकाल को कभी भी पकड़ कर नहीं रखना चाहिए।

 काव्यांश 2.
यश है या न वैभव है , मान है न सरमाया ;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया ।
प्रभुता का शरण बिंब केवल मृगतृष्णा है ,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है ।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन –
छाया मत छूना
मन , होगा दुख दूना।

शब्दार्थ –
यश – प्रसिद्धि , कीर्ति , नाम , सुख्याति
वैभव – संपदा , समृद्धि , धन – दौलत , ऐश्वर्य
मान – आदर , इज़्ज़त , सम्मान
सरमाया – मूल-धन , पूँजी , संपत्ति , धन – दौलत
भरमाया – भ्रमित करना , भ्रम में डालना
प्रभुता – प्रभु होने की अवस्था या भाव , प्रभुत्व , स्वामित्व , अधिकार , बड़प्पन , महत्व
शरण – आश्रय , पनाह , रक्षित स्थान , रक्षा का भाव
बिंब – अक्स , परछाँई , ( इमेज )
मृगतृष्णा – मृग – मरीचिका , तेज़ धूप और गरमी में रेगिस्तानी क्षेत्र में जलधारा या पानी दिखने का भ्रम
चंद्रिका – चाँदनी
कृष्णा – काला
यथार्थ – उचित , सत्य , जैसा होना चाहिए , ठीक वैसा

 नोट – प्रस्तुत काव्यांश में कवि बता रहे हैं कि मनुष्य की इच्छाएँ कभी ख़त्म नहीं होती और न ही मनुष्य कभी संतुष्ट होता है। मनुष्य के दुखों का यही कारण है। इसलिए कवि यहाँ सीख दे रहे हैं कि मनुष्य जितना भौतिक सुख – सुविधाओं के पीछे भागेगा उतना ही अधिक उसका दुःख बढ़ता जाएगा अतः बीती हुई बातों को याद करने से केवल दुःख हो सकता है इसलिए बीती हुई बातों को भूल जाना ही अच्छा है।

 व्याख्या – कवि ने इस काव्यांश में मनुष्य की कभी न खत्म होने वाली इच्छाओं को ही उसके कष्ट का कारण माना हैं। क्योंकि मनुष्य कितना भी प्राप्त कर ले , वह कभी संतुष्ट नहीं हो सकता हैं। कवि कहते हैं कि मनुष्य अपना पूरा जीवन प्रसिद्धि , यश , धन , वैभव , मान – सम्मान कमाने में लगा देता हैं। जबकि ये सब धोखे के सिवाय और कुछ नही है। जितना अधिक मनुष्य इन भौतिक सुखों के पीछे भागता है , ये भौतिक सुख उसे उतना ही अधिक भ्रमित करते हैं। मनुष्य जो अपने आप को महान या बड़ा समझता है , यह ठीक ऐसा ही हैं जैसे रेगिस्तान की रेत पर सूर्य की किरणों के पड़ने से पानी होने का आभास होता हैं लेकिन हिरण उसे पानी समझ कर उसके पीछे भागता रहता हैं ( मृगतृष्णा ) मगर पास पहुंचने पर उसे सिर्फ धोखा ही मिलता हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि भौतिक सुख केवल मृगतृष्णा भर ही है। जिस तरह हर पूर्णिमा (चांदनी रात) के बाद अमावस्या (काली अंधेरी रात) अवश्य आती आती है। उसी तरह जीवन में सुख के बाद दुख , दुख के बाद सुख अवश्य आता है। यहीे प्रकृति का नियम है। इसीलिए जो आज की सच्चाई हैं उसे प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि बीती बातों को याद करने से दुःख के सिवाय और कुछ नहीं मिलेगा। केवल दुःख दुगना ही होगा।

 भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि प्रसिद्धि , यश , धन , वैभव और दुनिया की सभी भौतिक सुख सुविधाएँ सब छलावा मात्र है जितना मनुष्य इनके पीछे भागेगा , ये उतना ही उसे छलेंगी। मनुष्य जो अपने आप को बहुत महान या बड़ा समझता है यानि मनुष्य के अंदर बड़प्पन का जो एहसास है यह भी केवल मृगतृष्णा भर ही है। मनुष्य को हमेशा याद रखना चाहिए कि जिस तरह हर पूर्णिमा के बाद अमावस्या अवश्य आती आती है। उसी तरह जीवन में सुख के बाद दुख , दुख के बाद सुख अवश्य आता है। यह प्रकृति का नियम है और मनुष्य इस नियम के साथ बंधा हुआ है।

 काव्यांश 3 –
दुविधा हत साहस है , दिखता है पंथ नहीं ,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं ।
दुख है न चाँद खिला शरद – रात आने पर ,
क्या हुआ जो खिला फूल रस – बसंत जाने पर ?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण ,
छाया मत छूना
मन , होगा दुख दूना।

शब्दार्थ –
दुविधा – अनिश्चय की मनःस्थिति , मन की अस्थिरता , द्वंद्व , असमंजस , संदेह , आशंका , खटका
हत – जो मार डाला गया हो , वध किया हुआ , ताड़ित , जिसपर आघात हुआ हो , आहत
साहस –  मन की दृढ़ इच्छा जो बड़े से बड़ा काम करने को प्रवृत्त करती है , हिम्मत
पंथ – पथ , राह , रास्ता , मार्ग
देह – शरीर , काया , तन
शरद – एक ऋतु , जो अश्विन ( क्वार ) और कार्तिक मास में मानी जाती है
रस – बसंत – रस से भरपूर मतवाली बसंत ऋतु
वरण – अपनी इच्छा से किया जाने वाला चयन , स्वीकार

 नोट – इस काव्यांश में कवि मनुष्य को समझाते हुए बता रहे हैं कि असमंजस की स्थिति में हिम्मत साथ छोड़ देती है। अतः अपने मन को हमेशा असमंजस की स्थिति से दूर रखना चाहिए। यदि मनुष्य का मन खुश नहीं है तो वह अपनी किसी भी उपलब्धि से संतुष्ट नहीं हो सकता। यही कारण है कि मनुष्य हमेशा दुःख की स्थिति में रहता है। इसलिए कवि कहते हैं कि तुम्हें जो नहीं मिला , उसका दुःख मनाने के बजाय , उसे भूलकर आगे बढ़ने की तैयारी करो। अर्थात जो मिला उसी से संतुष्ट हो कर वर्तमान में जीना सीखो। और अपने सुखद भविष्य की तैयारी में जुट जाओ।

 व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब मनुष्य के मन में दुविधा या असमंजस की स्थिति पैदा होती हैं तो मनुष्य का किसी भी कार्य को करने का साहस टूट जाता हैं। उसका विवेक अर्थात उसकी बुद्धि काम नहीं करती हैं। उसके सोचने – समझने की शक्ति खत्म हो जाती हैं यानि उसको कोई भी रास्ता नहीं सूझता हैं। भले ही मनुष्य का तन स्वस्थ हो , तब भी व्यक्ति का मन के दुःख का कोई अंत नहीं होता हैं क्योंकि मनुष्य कभी अपने पास उपलब्ध चीजों से संतुष्ट नहीं होता हैं।  कवि कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात जब पूरा चाँद अपनी 16 कलाओं के साथ चमकता हैं। अगर उस रात चाँद ही नहीं दिखे , तो दुःख अवश्य ही होगा अर्थात जब हमें हमारी मन चाही वस्तु ठीक समय पर नहीं मिलती हैं तो उसका दुःख हमें जीवन भर रहना स्वाभाविक हैं। वैसे तो बसंत ऋतु में सभी फूल खिल जाते हैं। मगर कवि कहते हैं कि अगर कोई फूल बसंत ऋतु के जाने के बाद खिलता हैं तो क्या फर्क पड़ गया अर्थात यदि तुम्हें तुम्हारी मन चाही वस्तु तय समय के निकल जाने के बाद मिलती हैं , तो भी तुम संतुष्ट हो जाओ। और तुम्हें जो नहीं मिला , उसका दुःख मनाने के बजाय , उसे भूलकर आगे बढ़ने की तैयारी करो। अर्थात जो मिला उसी से संतुष्ट हो कर वर्तमान में जीना सीखो। और अपने सुखद भविष्य की तैयारी में जुट जाओ।  क्योंकि जो नहीं मिला उसका दुःख मनाते रहने से भी वह तुम्हें नहीं मिलेगा और तुम्हारा दुःख दुगना ही होता जाएगा।

 भावार्थ – प्रस्तुत काव्यांश में कवि मनुष्य को सीख देना चाहते हैं कि मनुष्य को जो उसके पास उपलब्ध है या जो उसे मिला है उसी में संतुष्ट होना सीखना चाहिए क्योंकि मन की इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होती और न ही हमेशा हमें वह मिल पता है जो हमें चाहिए। अतः सुखद भविष्य के लिए जो नहीं मिला उसका दुःख मनाना छोड़ कर , जो मिला है उसकी खुशी मनानी चाहिए और सुखद भविष्य की तैयारी में जुट जाना चाहिए।

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छाया मत छूना प्रश्न – अभ्यास 

प्रश्न 1 – कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है ?

उत्तर – कवि कहते हैं कि मनुष्य की इच्छाएँ कभी ख़त्म नहीं होती और न ही मनुष्य कभी संतुष्ट होता है। मनुष्य के दुखों का यही कारण है। मनुष्य जितना भौतिक सुख – सुविधाओं के पीछे भागेगा उतना ही अधिक उसका दुःख बढ़ता जाएगा अतः बीती हुई बातों को याद करने से केवल दुःख हो सकता है इसलिए बीती हुई बातों को भूल जाना ही अच्छा है। मनुष्य का अतीत चाहे कितना भी सुंदर क्यों न रहा हो। फिर भी उसे याद करने से सिर्फ दुख ही मिलता है। जबकि वर्तमान में आपके जीवन में जो भी परिस्थितियाँ हैं। उनको हिम्मत के साथ यथावत सहर्ष स्वीकार करने से ही मनुष्य प्रसन्न रह सकता है और एक सुंदर भविष्य के लिए तैयार हो सकता है। इसलिए मनुष्य को अपने वर्तमान की सच्चाई को ईमानदारी से स्वीकार कर उसका सामना करना चाहिए।

 

प्रश्न 2 – भाव स्पष्ट कीजिए –

“ प्रभुता का शरण – बिंब केवल मृगतृष्णा है ,

हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है । ”

उत्तर – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि प्रसिद्धि , यश , धन , वैभव और दुनिया की सभी भौतिक सुख सुविधाएँ सब छलावा मात्र है। तुम जितना इनके पीछे भगोगे , ये उतना ही तुम्हें छलेंगी। और जीवन में बड़प्पन या प्रभुता की अनुभूति भी एक भ्रम या छलावा ही है। लोग बड़प्पन या प्रभुता को ही सुख मानते हैं किन्तु इसमें सुख के बजाय दुःख छिपा हैं। जिस तरह हर पूर्णिमा अर्थात चांदनी रात के बाद अमावस्या अर्थात काली अंधेरी रात अवश्य आती है। उसी तरह जीवन में सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख अवश्य आता है। यहीे प्रकृति का नियम भी है। इसीलिए जो आज की सच्चाई हैं उसे प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि बीती बातों को याद करने से दुःख के सिवाय और कुछ नहीं मिलेगा।

 

प्रश्न 3 – “ छाया ” शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है ? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ?

उत्तर – इस कविता में कवि ने अतीत की मधुर स्मृतियों को “ छाया ” का नाम दिया है। इंसान को कभी न कभी अपने जीवन में अतीत की मधुर स्मृतियाँ याद आ ही जाती हैं और उनको याद कर व्यक्ति अच्छा महसूस भी करने लगता है। लेकिन अतीत के सुखों की स्मृतियों में डूबे रहने से जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति वर्तमान का सामना नहीं कर पाता है। बीते सुखों की याद केवल दुख देती है और जीवन में आगे बढ़ने से रोकती है। इससे प्रगति का मार्ग भी अवरुद्ध हो जाता है। अतीत की सुखद स्मृतियाँ वर्तमान जीवन के दुखों को दोगुना कर देती हैं। इसीलिए कवि ने उसे छूने से मना किया है। अर्थात उन यादों को याद करने से मना किया है।

 

प्रश्न 4 – कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है , जैसे कठिन यथार्थ।

कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई ?

उत्तर – सुरंग सुधियाँ सुहावनी – यहाँ “ सुरंग ’’ ( विशेषण ) शब्द के द्वारा यादों के रंग – बिरंगा अर्थात बीती हुई यादों का सुख से भरपूर होने को दर्शाया गया हैं ।

जीवित क्षण – यहाँ “ जीवित ” ( विशेषण ) शब्द के द्वारा पल भर के समय की सजीवता प्रकट की गई हैं।

दुख दूना – यहाँ दूना ( विशेषण ) शब्द दुख की अधिकता को प्रकट करता है।

रस बसंत – यहाँ “ रस ” ( विशेषण ) शब्द बसंत को और अधिक रसीला व मोहक बना रहा हैं। बसंत की सुंदरता को अतुल्य दर्शा रहा है।

शरद रात – यहाँ “ शरद ” ( विशेषण ) शब्द रात की शीतलता व मनमोहकता को दर्शाता हैं। जिसमें चाँद पूर्ण रूप से अपनी सुंदरता बिखेर रहा हो।

एक रात कृष्णा – यहाँ “ कृष्णा ” ( विशेषण ) शब्द से रात की कालिमा अर्थात अंधकार को प्रकट किया गया हैं। यहाँ अमावस्या की ओर भी संकेत किया गया है।

 

प्रश्न 5 – “ मृगतृष्णा ” किसे कहते हैं ? कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है ?

उत्तर – गर्मी के दिनों में प्यास से व्याकुल हिरण जब रेगिस्तान में पानी की तलाश में भटकता है तब रेगिस्तान में चमकती रेत उसे पानी होने का एहसास देती है और वह उसी भ्रम को वास्तविक पानी समझकर उसे पाने के लिए उसके पीछे भागता रहता है।  प्रकृति के इस मिथ्या भ्रम या छलावे को “ मृगतृष्णा ” कहा जाता है।

कविता में “ मृगतृष्णा ” शब्द के द्वारा कहा गया है कि जीवन में बड़प्पन या प्रभुता की अनुभूति भी एक भ्रम या छलावा ही है। लोग बड़प्पन या प्रभुता को ही सुख मानते हैं। किन्तु इसमें सुख के बजाय दुःख छिपा हैं। 

 

प्रश्न 6 – “ बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले ” यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है ?

उत्तर – यह भाव कविता की निम्न पंक्ति में झलकता है।

“ क्या हुआ जो खिला फूल रस – बसंत जाने पर ?

जो न मिला भूल उसे ,  कर तू भविष्य वरण ”।

 

प्रश्न 7 – कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – इस कविता में कवि का मानना है कि मनुष्य की इच्छाएँ कभी ख़त्म नहीं होती और न ही मनुष्य कभी संतुष्ट होता है। मनुष्य के दुखों का यही कारण है। इसलिए कवि यहाँ सीख दे रहे हैं कि मनुष्य जितना भौतिक सुख – सुविधाओं के पीछे भागेगा उतना ही अधिक उसका दुःख बढ़ता जाएगा अतः बीती हुई बातों को याद करने से केवल दुःख हो सकता है इसलिए बीती हुई बातों को भूल जाना ही अच्छा है। मनुष्य अपना पूरा जीवन प्रसिद्धि , यश , धन , वैभव और दुनिया की सभी भौतिक सुख सुविधाएँ सब छलावा मात्र है जितना मनुष्य इनके पीछे भागेगा , ये उतना ही उसे छलेंगी। मनुष्य जो अपने आप को बहुत महान या बड़ा समझता है यानि मनुष्य के अंदर बड़प्पन का जो एहसास है यह भी केवल मृगतृष्णा भर ही है। मनुष्य को हमेशा याद रखना चाहिए कि जिस तरह हर पूर्णिमा के बाद अमावस्या अवश्य आती आती है। उसी तरह जीवन में सुख के बाद दुख , दुख के बाद सुख अवश्य आता है। यह प्रकृति का नियम है और मनुष्य इस नियम के साथ बंधा हुआ है। असमंजस की स्थिति में हिम्मत साथ छोड़ देती है। उसके सोचने – समझने की शक्ति खत्म कर देती हैं। अतः अपने मन को हमेशा असमंजस की स्थिति से दूर रखना चाहिए। यदि मनुष्य का मन खुश नहीं है तो वह अपनी किसी भी उपलब्धि से संतुष्ट नहीं हो सकता। यही कारण है कि मनुष्य हमेशा दुःख की स्थिति में रहता है।

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