Main Kyon Likhta Hun Question Answers

 

CBSE Class 10 Hindi Chapter 3 Main Kyon Likhta Hun (मैं क्यों लिखता हूँ) Question Answers (Important) from Kritika Book

Class 10 Hindi Main Kyon Likhta Hun Question Answers – Looking for Main Kyon Likhta Hun question answers for CBSE Class 10 Hindi A Kritika Bhag 2 Book Chapter 3? Look no further! Our comprehensive compilation of important question answers will help you brush up on your subject knowledge.

सीबीएसई कक्षा 10 हिंदी कोर्स ए कृतिका भाग 2 के पाठ 3 मैं क्यों लिखता हूँ प्रश्न उत्तर खोज रहे हैं? आगे कोई तलाश नहीं करें! महत्वपूर्ण प्रश्नों का हमारा व्यापक संकलन आपको अपने विषय ज्ञान को बढ़ाने में मदद करेगा। कक्षा 10 के हिंदी प्रश्न उत्तर का अभ्यास करने से बोर्ड परीक्षा में आपके प्रदर्शन में काफी सुधार हो सकता है। हमारे समाधान इस बारे में एक स्पष्ट विचार प्रदान करते हैं कि उत्तरों को प्रभावी ढंग से कैसे लिखा जाए। हमारे मैं क्यों लिखता हूँ प्रश्न उत्तरों को अभी एक्सप्लोर करें उच्च अंक प्राप्त करने के अवसरों में सुधार करें।

The questions listed below are based on the latest CBSE exam pattern, wherein we have given NCERT solutions to the chapter’s extract based questions, multiple choice questions, short answer questions, and long answer questions.

Also, practicing with different kinds of questions can help students learn new ways to solve problems that they may not have seen before. This can ultimately lead to a deeper understanding of the subject matter and better performance on exams.

Related:

 

Class 10 Hindi Main Kyon Likhta Hun Textbook Based Questions and Answers (पाठ्यपुस्तक पर आधारित प्रश्नोत्तर) 

प्रश्न 1 – लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों?
उत्तर – लेखक  के अनुसार सच्चा लेखन भीतरी लाचारी से पैदा होता है। यह लाचारी मन के अंदर उत्पन्न हुई अनुभूति से जागती है, बाहर की घटनाओं को देखकर नहीं। जब तक लेखक का हृदय किसी अनुभव के कारण पूरी तरह उस घटना से सहानुभूति नहीं रखता और उसमें अभिव्यक्त होने की पीड़ा नहीं जागती, तब तक वह कुछ नहीं लिख पाता। लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव वह होता है, जिसे रचनाकार घटित होते हुए देखता हैं। प्रत्यक्ष अनुभव के माध्यम से रचनाकार अनुभूति, संवेदना और कल्पना को सरलता से आत्मसात कर लेते हैं। प्रत्यक्ष अनुभव वास्तव में रचनाकार के साथ घटित नहीं होता है। वह आँखों के आगे नहीं आया होता। तभी तो अनुभव की तुलना में अनुभव को महसूस करने की क्षमता लेखक के हृदय के सारे भावों को बाहर निकालने में उसकी सहायता करती है। जब तक हृदय में अनुभव को महसूस करने की क्षमता न जागे लेखन का कार्य करना संभव नहीं है क्योंकि यही हृदय में संवेदना जगाती है और लेखन के लिए मजबूर करती है। यही कारण है कि लेखक लेखन के लिए अनुभव की अपेक्षा अनुभूति को अधिक महत्व देता है।

प्रश्न 2 – लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?
उत्तर – लेखक हिरोशिमा के बम विस्फोट के परिणामों की ख़बरों को विस्तारपूर्वक अखबारों में पढ़ चुका था। जापान जाकर लेखक ने हिरोशिमा के अस्पतालों में घायल लोगों को भी देखा था। अणु-बम के प्रभाव का लेखक ने प्रत्यक्ष अनुभव किया था। एक दिन घूमते-घूमते सड़क पर एक जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया देखी। उसे देखकर विज्ञान की अपनी जानकारी के माध्यम से लेखक सोचने लगा कि विस्फोट के समय कोई वहाँ खड़ा रहा होगा और विस्फोट से बिखरे हुए रेडियोधर्मी पदार्थ की किरणें उसमें रुक गई होंगी और बाकि आसपास से आगे बढ़ गईं होगी जिसने पत्थर को झुलसा दिया, अवरुद्ध किरणों ने आदमी को भाप बनाकर उड़ा दिया होगा। इस प्रकार पूरी दुखद घटना जैसे पत्थर पर लिखी गई है। इस प्रकार लेखक अपने आप को हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता महसूस करने लगा।

प्रश्न 3 – मैं क्यों लिखता हूँ? के आधार पर बताइए कि-
लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं?
किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं?
उत्तर – लेखक को लगता है कि वह, यह जानने के लिए लिखने के लिए प्रेरित होता है कि वह आखिर लिखता क्यों है। क्योंकि लेखक के मुताबिक़ जब तक वह कुछ लिखेगा नहीं वह नहीं जान पाएगा कि लिखने के लिए उसकी क्या प्रेरणा है। स्पष्ट रूप से समझना हो तो लेखक दो कारणों से लिखता है – भीतरी लाचारी से। कभी-कभी कवि के मन में ऐसे अनुभव जाग उठते है कि वह उसे अभिव्यक्त करने के लिए व्याकुल हो उठता है।
कभी-कभी वह संपादकों के आग्रह से, प्रकाशक की माँगों से तथा आर्थिक सुविधाओं के लिए भी लिखता है। परंतु दूसरा कारण उसके लिए जरूरी नहीं है। पहला कारण अर्थात् मन की व्याकुलता ही उसके लेखन का मूल कारण बनती है।

प्रश्न 4 – कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति/स्वयं के अनुभव के साथ-साथ बाह्य दबाव भी महत्त्वपूर्ण होता है। ये बाह्य दबाव कौन-कौन से हो सकते हैं?
उत्तर – कुछ रचनाकारों की रचनाओं में स्वयं की अनुभूति से उत्पन्न विचार और कुछ अनुभवों से प्राप्त विचारों को लिखा जाता है। इसके साथ कुछ बाह्य दबाव भी उपस्थित हो जाते हैं जिससे लेखक लिखने के लिए प्रेरित हो उठता है। ये बाह्य-दबाव निम्नलिखित हैं-
संपादकों के आग्रह
प्रकाशक की माँगें
सामाजिक परिस्थितियाँ
आर्थिक सुविधा की आकांक्षा
विशिष्ट के पक्ष में विचारों को प्रस्तुत करने का दबाव

प्रश्न 5 – क्या बाह्य दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे?
उत्तर – बाह्य दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि बाहरी दबाव सभी प्रकार के कलाकारों को प्रेरित करते हैं। उदाहरण स्वरूप अधिकतर अभिनेता, गायक, नर्तक, कलाकार अपने दर्शकों, आयोजकों, श्रोताओं की माँग पर कला-प्रदर्शन करते हैं। बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशक यदि उम्रदराज़ अभिनेताओं को अभिनय करने का अनुरोध न करें तो शायद उम्र हो जाने के साथ वे आराम करना चाहें। गायक, नर्तक आदि कलाकारों को भी यदि
बाह्य दबाव न हों तो शायद ही वे 50-60 की उम्र के बाद काम करना चाहें। 

प्रश्न 6 – हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंतः व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है, यह आप कैसे कह सकते हैं?
उत्तर – हिरोशिमा पर लिखी कविता, लेखक के हृदय के अनुभव से प्रस्फुटित हुए भावों और शब्दों में मानों जीवित हो उठी है। कवि ने हिरोशिमा के कारण हुए भयंकर परिणामों को अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देखा था, घायल हुए लोगों को देखा था। उसे देखकर लेखक के मन में उनके प्रति सहानुभूति तो उत्पन्न हुई होगी। किंतु वह लेखक की व्यक्तिगत त्रासदी नहीं बनी। जब लेखक ने पत्थर पर मनुष्य की काली छाया को देखा तो अणु-बम के विस्फोट का भयंकर प्रतिरूप त्रासदी बनकर मन में समाने लगा। वही त्रासदी जीवंत होकर कविता में परिवर्तित हो गई। इस तरह हिरोशिमा पर लिखी कविता अंतः व् बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है।

प्रश्न 7 – हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ किस तरह से हो रहा है।
उत्तर – आजकल विज्ञान का उपयोग कम बल्कि उसका दुरुपयोग अनेक जानलेवा कामों के लिए किया जा रहा है। आज विज्ञान का गलत फायदा उठाकर आतंकवादी संसार-भर में विस्फोट कर रहे हैं। कहीं बड़ी-बड़ी इमारतों को गिराया जा रहा है। कहीं भीड़ से भारे स्थानों पर बम-विस्फोट किए जा रहे हैं। कहीं गाड़ियों में आग लगाई जा रही है। कहीं शक्तिशाली देश दूसरे देशों को दबाने के लिए उन पर आक्रमण कर रहे हैं।
विज्ञान के दुरुपयोग से ही चिकित्सक बच्चों का गर्भ में भ्रूण-परीक्षण कर रहे हैं। इससे जनसंख्या का संतुलन बिगड़ रहा है। विज्ञान के दुरुपयोग से ही किसान अपनी फसलों को बढ़ाने के लिए कीटनाशक और जहरीले रसायन छिड़ककर भूमि प्रदुषण फैला रहे हैं। इससे लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। विज्ञान के उपकरणों के गलत उपयोग के कारण ही वातावरण में गर्मी बढ़ रही है, हर प्रकार का प्रदूषण बढ़ रहा है, बर्फ पिघलने का खतरा बढ़ रहा है तथा रोज-रोज भयंकर दुर्घटनाएँ हो रही हैं। 

प्रश्न 8 – एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है?
उत्तर – एक संवेदनशील युवा नागरिक होने के कारण विज्ञान का दुरुपयोग रोकने के लिए हमारी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए निम्नलिखित कार्य करते हुए हम अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं –
प्रदूषण फैलाने तथा बढ़ाने वाले जितने भी कारण है जैसे – प्लास्टिक, कूड़ा-कचरा आदि के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए कार्यक्रम किए जा सकते हैं।
लोगों से अनुरोध किया जा सकता है कि पर्यावरण के लिए प्लास्टिक जैसी हानिकारक वस्तुओं का उपयोग न करें ।
विज्ञान के बनाए हथियारों का प्रयोग यथासंभव मानवता की भलाई के लिए ही करें, मनुष्यों के विनाश के लिए नहीं।
विज्ञान की चिकित्सीय खोज का दुरुपयोग न करें।
सामाजिक विषमता तथा लिंगानुपात में असमानता के बारे में आम जनता का जागरूक करने का प्रयास किया जा सकता है।
टी.वी. पर प्रसारित अश्लील कार्यक्रमों का खुलकर विरोध करना चाहिए। धार्मिक व् आध्यात्मिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए।
समाज के लिए उपयोगी कार्यक्रमों के प्रसारण करना चाहिए।
विज्ञान के दुरुपयोग के परिणामों को बताकर लोगों को जागरूक बनाने में योगदान देना चाहिए। 

Top

 

Class 10 Hindi Main Kyon Likhta Hun Extra Question Answers (अतिरिक्त प्रश्न उत्तर)

 

प्रश्न 1 – लेखक के प्रश्न – मैं क्यों लिखता हूँ? का उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – लेखक कहते हैं कि ‘मैं क्यों लिखता हूँ? ‘ यह प्रश्न देखने में तो बड़ा सरल लगता है परन्तु यह बहुत कठिन भी है। क्योंकि इसका सच्चा उत्तर लेखक के भीतरी जीवन के स्तरों से संबंध् रखता है। लेखक के अंदर क्या-क्या स्तर हैं जिससे वह लिखने की प्रेरणा लेता है, इसे किसी के सामने व्यक्त करना बिलकुल भी आसान नहीं है। इस प्रश्न का एक उत्तर तो यह है कि लेखक इसीलिए लिखता है कि वह खुद को जानना चाहता हूँ कि लेखक क्यों लिखता है – क्योंकि लिखे बिना इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सकता। लेखक को वास्तव में सच्चा उत्तर यही लगता है। परन्तु लेखन के लिए अंदरूनी व् बाह्य दोनों ही दबाव महत्वपूर्ण होते हैं। 

प्रश्न 2 – लेखक के अनुसार बाहर का दबाव असल में दबाव नहीं रहता। क्यों?
उत्तर – लेखक के अनुसार बाहर का दबाव असल में दबाव नहीं रहता, वह मानो लेखक के भीतरी प्रकाश का कारण बन जाता है। यहाँ पर रचनाकार के स्वभाव और आत्मानुशासन का महत्त्व बहुत होता है। क्योंकि कुछ ऐसे आलसी जीव होते हैं कि बिना इस बाहरी दबाव के लिख ही नहीं पाते अर्थात कुछ लेखकों को बाहरी दबाव से ही प्रेरणा मिलती है – इसी के सहारे उनके भीतर की लाचारी स्पष्ट होती है-यह कुछ वैसा ही है जैसे प्रातःकाल नींद खुल जाने पर कोई बिस्तर पर तब तक पड़ा रहे जब तक घड़ी का एलार्म न बज जाए। इस प्रकार वास्तव में लेखक बाहर के दबाव के प्रति समर्पित नहीं हो जाता है, उसे केवल एक सहायक यंत्र की तरह काम में लाता है जिससे भौतिक यथार्थ के साथ उसका संबंध् बना रहे।

प्रश्न 3 – अंदरूनी लचरता क्या होती है?
उत्तर – अंदरूनी लचरता का वर्णन करना बड़ा कठिन है। क्या अंदरूनी लचरता नहीं होती यह बताना शायद कम कठिन होता है। या शायद यही कहना अधिक उपयोगी होगा कि उसका उदाहरण दिया जा सकता है। लेखक अपनी एक कविता के बारे में बता कर इस बात को स्पष्ट करने का प्रसास करते हैं।
लेखक बताते हैं कि वे विज्ञान के विद्यार्थी रहे हैं, उनकी निश्चित शिक्षा इसी विषय में हुई है। अणु क्या होता है, कैसे हम रेडियम-धर्मी तत्वों का अध्ययन करते हुए विज्ञान की उस सीढ़ी तक पहुँचे जहाँ अणु को तोड़ना संभव हुआ, रेडियम-धर्मिता के क्या प्रभाव होते हैं-इन सभी प्रश्नो का पुस्तकीय या सैद्धांतिक ज्ञान तो लेखक को था। फिर जब हिरोशिमा में अणु-बम गिरा, तब उसके समाचार लेखक ने पढ़े; और उस घटना के बाद वाहन होने वाले परिवर्तनों का भी विस्तारपूर्वक वर्णन  लेखक पढ़ता रहा। इस प्रकार उसके प्रभावों का ऐतिहासिक प्रमाण भी सामने आ गया। विज्ञान के इस बेकार उपयोग के प्रति किसी भी बुद्धि का विद्रोह स्वाभाविक था, लेखक ने इस पर कुछ लेख आदि में कुछ लिखा भी पर अनुभव के स्तर पर जो लाचारी होती है वह बौद्धिक पकड़ से आगे की बात है और उसकी तर्क संगति भी अपनी अलग होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि अनुभव के आधार पर दिए गए तर्क, केवल बौद्धिक स्तर पर दिए गए तर्क से अलग व् असरदार होते हैं। इसलिए बिना अनुभव के लेखक ने इस विषय पर कविता नहीं लिखी। 

प्रश्न 4 – जापान जा कर हिरोशिमा पर गिरे अणु-बम का कैसा प्रत्यक्ष अनुभव हुआ?
उत्तर – जब लेखक को जापान जाने का मौका मिला, तब वे हिरोशिमा के साथ-साथ उस अस्पताल में भी गए, जहाँ रेडियम-पदार्थ से घायल लोग वर्षों से कष्ट में जी रहे थे। इस प्रकार लेखक को अणु-बम के विस्फोट से हुए परिवर्तनों का प्रत्यक्ष अनुभव भी हुआ-परन्तु अनुभव से ऐहसास ज्यादा मायने रखता है, कम-से-कम लेखक के लिए तो इस घटना का एहसास अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अनुभव किसी घटित हुई घटना का होता है, पर एहसास संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात् कर लेती है जो वास्तव में लेखक या रचनाकार के साथ घटित नहीं हुआ है। जो घटना कभी आँखों के सामने नहीं घटी, जो घटना किसी ऐसे  व्यक्ति के अनुभव में नहीं आई, जो उस घटना में शामिल हो, वही घटना जब आत्मा के सामने, चमकते हुए प्रकाश के रूप में आ जाती है, तब वह घटना उस व्यक्ति के लिए अनुभूति-प्रत्यक्ष हो जाती है। अर्थात जब कोई ऐसी घटना जो आंखों के सामने न हुई हो, उस घटना का एहसास जब अनुभव रूप में हो जाता है तब अनुभव प्रत्यक्ष हो जाता है। 

प्रश्न 5 – लेखक ने हिरोशिमा पर हुए अणु-बम विस्फोट पर तुरंत कविता क्यों नहीं लिखी?
उत्तर – लेखक बताते है कि उन्होंने हिरोशिमा में सब देखकर भी तुरंत उसी समय कुछ नहीं लिखा, क्योंकि अभी उन्हें अपने सामने अनुभव की कमी थी। एक दिन वहीं सड़क पर घूमते हुए लेखक ने देखा कि एक जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया है जिसे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे विस्फोट के समय कोई वहाँ खड़ा रहा होगा और विस्फोट से बिखरे हुए रेडियम-धर्मी पदार्थ की किरणें उसमें बंद हो होंगी। लेखक ने उस पत्थर पर पड़े किसी व्यक्ति के जलने के निशान से हिरोशिमा ने हुए रेडियम-धर्मी विस्फोट की पूरी दुखांत घटना का विवरण सनझ लिया। उस क्षण में अणु-विस्फोट लेखक के प्रत्यक्ष अनुभव में आ गया। एक अर्थ में लेखक स्वयं हिरोशिमा के विस्फोट को भोगने वाला बन गया। अर्थात सब कुछ अपनी आँखों से देखने पर लेखक को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह भी अणु-विस्फोट के शिकार हुए व्यक्तियों में से एक है। इसी अनुभव में से लेखक में वह लाचारी जागी। लेखक के भीतर की बेचैनी बुद्धि के क्षेत्र से बढ़कर अब संवेदना के क्षेत्र में आ गई थी। फिर धीरे-धीरे लेखक उससे अपने को अलग कर सका और अचानक एक दिन लेखक ने हिरोशिमा पर कविता लिखी। यह कविता लेखक ने जापान में नहीं लिखी बल्कि जब वे भारत लौट आए थे तब रेलगाड़ी में बैठे-बैठे उन्होंने वह कविता लिखी थी। लेखक कहते हैं कि उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि उनकी यह कविता अच्छी है या बुरी है। यह कविता लेखक के मन के बेहद निकट है, क्योंकि वह लेखक के अनुभव से उत्पन्न हुई है।

Top

CBSE Class 10 Hindi Kshitij and Kritika Chapter-wise Question Answers

 

 

Also See: