CBSE Class 10 Hindi Chapter 1 Mata ka Aanchal (माता का आँचल) Question Answers (Important) from Kritika Book
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Class 10 Hindi Mata Ka Aanchal Textbook Based Questions and Answers (पाठ्यपुस्तक पर आधारित प्रश्नोत्तर)
प्रश्न 1 – प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर – प्रस्तुत पाठ में बच्चे के पिता बच्चे के द्वारा खेले जाने वाले प्रत्येक खेल में शामिल होने का प्रयास करते थे। वे प्रयास करते थे कि किसी-न-किसी प्रकार अधिकांश समय वे अपने बच्चे के साथ रहे। अतः यह स्वाभाविक था कि बच्चे को अपने पिता से अधिक लगाव था। उसके पिता उसके संग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते थे। भोलानाथ अपने पिता से अपार स्नेह करता था पर जब उस पर विपदा आई तो उसे जो शांति व प्रेम की छाया अपनी माँ की गोद में जाकर मिली वह शायद उसे पिता से प्राप्त नहीं हो पाती। क्योंकि एक पिता चाहे अपनी संतान से कितना भी प्रेम करता हो पर जो आत्मीय सुख माँ की छाया अथवा गोद में प्राप्त होता है वह पिता से प्राप्त नहीं होता। माँ के आँचल में बच्चा स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। यही कारण था कि प्रस्तुत पाठ में बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव होने पर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है।
प्रश्न 2 -आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर – गुरू जी द्वारा गुस्सा करने व् पिटाई करने पर भोलानाथ अपने पिता की गोद में रोने-बिलखने लगता है परन्तु रस्ते में अपने मित्रों को मजा करते देख वह स्वयं को रोक नहीं पाता व् ज़िद्द करके उनके साथ खेलने चला जाता है। वह अपनी मार की पीड़ा खेल की क्रीड़ा के आगे भूल जाता है। इसका कारण यह है कि बच्चे अपनी स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रुचि रखते है। उनके साथ खेलना मस्ती करना उन्हें अच्छा लगता है। भोलानाथ को भी अपने साथियों के साथ खेलने-कूदने और अनेक प्रकार की शरारतें करने में बड़ा आनंद मिलता है। रास्ते में अपने बाल-सखाओं को सामने देखकर उसका मन उनके साथ मस्ती करने को मचलने लगता है। इसी कारण वह सिसकना भूलकर बाल-मण्डली में शामिल हो जाता है।
प्रश्न 3 – भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर – भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री से हमारे खेल और खेल सामग्रियों में बहुत अधिक अंतर आ गया है। भोलानाथ के समय में बच्चे आँगन व् खेत में पड़ी हुई किसी भी वस्तु को उठा कर उसे ही खेल का आधार बना लिया करते थे। वे खेत की मिट्टी, पत्थर, लकड़ी ,पेड़ों के पत्तों व् घर के टूटे-फूटे सामान से ही खेलते व् खुश हो जाते थे। पहले लोगों में भी दूर पड़ोस तक आत्मीय संबंध थे, जिससे बच्चों को दूर तक खेलने की स्वच्छंदता थी। खेल की सामग्रियाँ बच्चे खुद से तैयार करते थे।
परन्तु आज भोलानाथ के समय से बिलकुल भिन्न खेल और खेल सामग्री हैं और सबसे महत्वपूर्ण बच्चों की सुरक्षा हर समय अभिभावकों की चिंता का विषय है। आज खेल सामग्री का निर्माण बच्चे स्वयं नहीं करते बल्कि खिलौनों को बाज़ार से खरीद कर लाते है। बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए खेलने की समय-सीमा भी तय कर दी जाती है। अतः स्वच्छंदता नहीं होती है। अब की पीढ़ी खेलने के लिए वीडियो गेम, क्रिकेट, वॉलीबॉल, फुटबॉल, बैस बॉल जैसी आदि चीजों से खेलते हैं। ऐसा लगता है जैसे आज के बच्चों का धूल-मिट्टी से कोई सम्बन्ध ही नहीं रहा है।
प्रश्न 4 – पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर – प्रस्तुत पाठ में ऐसे बहुत से प्रसंग हैं जो हमारे दिल को खुश कर जाते हैं –
जैसे भोलनाथ जब अपने पिता की गोद में बैठा कर आईने में अपने प्रतिबिम्ब को देखकर खुश होता है। और जब पिता ने रामायण पाठ छोड़कर उसे देखा तो कैसे शर्माकर व मुस्कुराकर आईना रख देता है। यहाँ लेखक ने बच्चों का अपने अक्ष के प्रति जिज्ञासा भाव का और उसका शर्माकर आईना रखने का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है।
दूसरा प्रसंग जब बच्चों द्वारा बारात का नाटक रचते हुए बारात द्वारा एक कोने से दूसरे कोने तक दुल्हन को लिवा लाना व पिता द्वारा दुल्हन का घुघंट उटाने पर सब बच्चों का शर्माकर खिलखिला कर भाग जाने का वर्णन भी अत्यधिक मनोहर है।
तीसरा प्रसंग जब बच्चा अपने पिता के साथ कुश्ती लड़ रहा है। थक जाने पर बच्चे के बल को बढ़ावा देना और पछाड़ खा कर गिर जाना, एक पिता के प्रेम को दर्शाता है। बच्चे का अपने पिता की मूंछ खींचना और पिता का इसमें प्रसन्न होना। इस तरह की छोटी-छोटी परन्तु बहुत सी घटनाएँ आनन्दमयी है।
पाठ का सबसे रोमांचक प्रसंग वह है जब एक साँप सब बच्चों के पीछे पड़ जाता है। तब वे बच्चे किस प्रकार गिरते-पड़ते भागते हैं और बच्चा किस तरह अपनी माँ की गोद में छिपकर सहारा लेता हैं।
प्रस्तुत पाठ में बच्चे का पिता बच्चा बनकर बच्चों के सभी खेलों में शामिल हो जाता है। पिता का इस प्रकार बच्चा बन जाना और बच्चों को खुश करना बहुत सुखद अनुभव है जो हम सभी पाठकों को अत्यधिक आनंद देता है।
प्रश्न 5 – इस उपन्यास के अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।
उत्तर – इस उपन्यास के अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में हमें अनेक तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं –
तीस के दशक में समूह-संस्कृति, आत्मीय स्नेह और समूह में रहा करते थे।
आज घर-पड़ोसियों की सीमाएँ सिमट गई हैं। घरों के आगे चबूतरों का बनाया जाना लगभग समाप्त हो गया है।
आज परिवारों में एकल संस्कृति ने जन्म ले लिया, जिससे बच्चे अब समूह में खेलते हुए दिखाई नहीं देते।
आज बच्चों के खेलने की सामग्री और खेल बदल चुके हैं। खेल खर्चीले हो गए हैं। जो परिवार खर्च नहीं कर पाते हैं वे बच्चों को हीन-भावना से बचाने के लिए समूह में जाने से रोकते हैं।
आज की नई संस्कृति बच्चों को धूल-मिट्टी से बचना चाहती है। जिससे आज के बच्चे धूल-मिट्टी से परिचय खोते जा रहे हैं।
पहले लोग सीधा-साधा बनावट विहीन जीवन जीते थे आज बिलकुल विपरीत हैं।
तीस के दशक में लोग बीमारियों व् चोटों का घरेलु इलाज करते थे जिससे शरीर रसायनों से बचा रहता था।
आज के समय में किसानों की संख्या घटती जा रही है जिस कारण लोगों को साधारण चीजों के लिए भी दूसरों पर आश्रित होना पद रहा है।
प्रश्न 6 – यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य अक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – प्रस्तुत पाठ में भोलानाथ के पिता एक सजग व स्नेही पिता के रूप में हैं। उनके दिन का आरम्भ भोलानाथ के साथ शुरू होता है। उसे नहलाकर पुजा पाठ कराना, उसको अपने साथ कंधे पर बिठा कर घुमाने ले जाना, उसके व् उसके साथियों के साथ बच्चा बन कर खेलना व उसकी बालसुलभ क्रीड़ा से प्रसन्न होना, उनके स्नेह व प्रेम को व्यक्त करता है। बच्चे की ज़रा सी भी पीड़ा उनसे देखी नहीं जाती। गुरू जी द्वारा सजा दिए जाने पर वह उनसे माफी माँग कर अपने साथ ही ले आते हैं। इस तरह के व्यवहार से उनका भोलानाथ के लिए असीम प्रेम व सजगता झलकती है।
भोलानाथ की माता भी वात्सल्य व ममत्व से भरपूर है। भोलानाथ को भोजन कराने के लिए उनका तरह-तरह से स्वांग रचना एक स्नेही माता की ओर संकेत करता है। जो अपने पुत्र को भोजन कराने के लिए चिन्तित है। दूसरी ओर उसको लहुलुहान व भय से काँपता देखकर माँ भी स्वयं रोने व चिल्लाने लगती है। अपने पुत्र की ऐसी स्थिति देखकर माँ का ह्रदय भी दुख से भर जाता है। वह अपने सारे काम छोड़कर अपने पुत्र को अपनी बाँहों में भरकर उसको सात्वंना देने का प्रयास करती है। अपने आँचल से उसके शरीर को साफ करती है, इससे उनकी माँ का अपने पुत्र के प्रति असीम प्रेम, ममत्व व वात्सल्य का पता चलता है।
प्रश्न 7 – माँ का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर – इस पाठ के लिए ‘माँ का आँचल’ शीर्षक उपयुक्त है। क्योंकि इस पाठ में माँ के आँचल की महत्वता को दर्शाने का प्रयास किया गया है। पाठ में भले ही लेखक के पिता का लेखक के प्रति असीम प्रेम व् सजगता दिखाई गई है किन्तु भय व् डर की स्थिति में लेखक पिता के नहीं बल्कि माँ के आँचल में सुरक्षा पाता है। सामान्य तौर पर भी देखा जाता है कि पिता भले ही अपने बच्चे को हर मुसीबत से बचाता हो उसके साथ हर खेल में उसका हिस्सा बनता हो परन्तु एक माँ अपने बच्चे के दर्द में उससे भी अधिक दर्द महसूस करती है। वह अपने बच्चे को सांत्वना देने के लिए सारे काम छोड़ कर केवल बच्चे का ही ध्यान रखने लगती है। वह अपनी सुध-बुध खो बैठती है। माँ का यही व्यवहार बच्चे को पिता से अधिक आत्मीय सुख व् प्रेम का अनुभव कराता है। एक बच्चे के जीवन में माँ का स्नेह प्रधान होता है। अतः इस पाठ का एक अन्य शीर्षक ‘माँ का दुलार’ व् ‘माँ का स्नेह’ रखा जा सकता है।
प्रश्न 8 – बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर – बच्चे अपने माता−पिता के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति अपनी भिन्न-भिन्न प्रकार की हरकतों से करते हैं –
वे अपने माता−पिता से अपनी हट द्वारा अपनी इच्छाओं को पूरा कराते हैं और इच्छाएँ पूरी हो जाने पर तरह-तरह से प्यार जताते हैं।
माता-पिता के साथ अनेक-प्रकार के खेल खेलकर।
माता-पिता को अपने रोज़मर्रा के घटित बातों को बताकर।
माता-पिता की गोद में बैठकर या पीठ पर सवार होकर।
माता-पिता की गोद में जाने के लिए जिद्द उसका प्रेम ही होता है।
माता-पिता को अपने काल्पनिक संसार से अवगत करना।
माता-पिता को अपने काल्पनिक मित्रों व् खेलों से परिचित करवाना।
कहा जा सकता है कि माता-पिता के प्रति शिशु के प्रेम को शब्दों में व्यक्त करना कठिन होता है।
Class 10 Hindi Mata ka Aanchal Extra Question Answers (अतिरिक्त प्रश्न उत्तर)
प्रश्न 1 – भोलानाथ के बाबूजी का हर दिन कैसे शुरू होता था?
उत्तर – भोलानाथ के पिता सुबह के समय जल्दी उठकर, सुबह का अपना नित्य कर्म कर – नहाकर पूजा करने बैठ जाते थे। भोलानाथ बचपन से ही अपने पिता के साथ ही रहते थे। माता से केवल उनका नाता दूध् पीने तक का ही था। इसलिए भोलानाथ पिता के साथ ही घर के बाहर बैठने के कमरे में ही सोया करते थे। भोलानाथ के पिता जब सुबह स्वयं उठते तो भोलानाथ को भी अपने साथ ही उठाते और साथ ही नहला – धुलाकर पूजा करने बिठा लेते। भोलानाथ के बाबू जी रामायण का पाठ करते थे। भोलानाथ के पिता पूजा-पाठ करने के बाद राम-राम लिखने लगते थे। वे अपनी एक ‘ रामनामा बही ’ जो सिली हुई मोटी कॉपी जो हिसाब लिखने के काम आती है, उस पर हज़ार बार राम – नाम लिखकर, उसे पाठ करने की बड़ी पुस्तक के साथ बाँधकर रख देते थे। फिर पाँच सौ बार कागज़ के छोटे – छोटे टुकड़ों पर राम – नाम लिखकर आटे की गोलियों में लपेटते और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते थे। भोलानाथ उस समय बाबूजी के कंधे पर बैठे रहते थे। जब वह गंगा में एक – एक आटे की गोलियाँ फेंककर मछलियों को खिलाने लगते तब भी भोलानाथ उनके कंधे पर ही बैठे – बैठे हँसा करते थे। जब वह मछलियों को खाना खिलाकर घर की ओर लौटने लगते तब बीच रास्ते में झुके हुए पेड़ों की डालों पर लेखक को बिठाकर झूला झुलाते थे।
प्रश्न 2 – लेखक के बाबूजी लेखक को भोलानाथ क्यों पुकारते थे?
उत्तर – भोलानाथ के पिता जब सुबह स्वयं उठते तो भोलानाथ को भी अपने साथ ही उठाते और साथ ही नहला – धुलाकर पूजा करने बिठा लेते। भोलानाथ यज्ञ कुंड या धूनी की भस्म का तिलक लगा देने के लिए पिता जी को परेशान करने लगते थे। तब पिता जी भोलानाथ को कुछ हँसकर , कुछ क्रुद्ध और कुछ डाँटकर भोलानाथ के चौड़े मस्तक में तीन आड़ी या अर्धचंद्राकार रेखाएँ बनाकर तिलक कर देते थे। भोलानाथ के मस्तक पर वह तिलक खूब अच्छा लगता था। भोलानाथ छोटे थे इसलिए उनके सिर में लंबी – लंबी जटाएँ थीं। तिलक लगाने से भोलानाथ अच्छे खासे ‘ बम – भोला ’ बन जाते थे। इसी कारण उनके पिता जी उन्हें बड़े प्यार से ‘ भोलानाथ ’ कहकर पुकारा करते थे।
प्रश्न 3 – पिता के मुकाबले माता किस तरह बच्चे को भोजन खिलाती है? माता के आँचल पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर – भोलानाथ के बाबूजी भोलानाथ को अपने ही हाथ से , फूल के एक कटोरे में गोरस और भात मिलाकर खिलाते थे। जब भोलानाथ भर पेट से अधिक खा लेते तब मइयाँ थोड़ा और खिलाने के लिए ज़िद करती थी। वह भोलानाथ के बाबू जी से कहने लगती कि वे तो चार – चार दाने के निवाले बच्चे के मुँह में देते जाते हैं, इससे वह थोड़ा खाने पर भी समझ लेता है कि बहुत खा चुके, वे खिलाने का ढंग नहीं जानते – बच्चे को भर – मुँह कौर खिलाना चाहिए। और कहती – जब खाएगा बड़े – बड़े कौर , तब पाएगा दुनिया में ठौर अर्थात स्थान व् अवसर। भोलानाथ की माता भोलानाथ के पिता से कहती हैं कि पुरुष क्या जाने कि बच्चों को कैसे खाना खिलाना चाहिए , और माता के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भी भरता है। यह कह वह थाली में दही – भात मिलाकर और अलग – अलग तोता , मैना , कबूतर , हंस , मोर आदि के बनावटी नाम से निवाला बनाकर यह कहते हुए खिलाती जाती कि जल्दी खा लो , नहीं तो उड़ जाएँगे , पर भोलानाथ भी उन्हें इतनी जल्दी उड़ा जाते थे कि उड़ने का मौका ही नहीं मिलता था। अर्थात लेखक भी अपनी माता के कहे अनुसार जल्दी-जल्दी सारा खाना खा लेते थे।
प्रश्न 4 – भोलानाथ अपने बचपन में किस तरह के करतब अर्थात खेल खेलते थे?
उत्तर – भोलानाथ कोई आम खेल नहीं खेलते थे। वे तो तरह-तरह के नाटक करते थे। चबूतरे का एक कोना ही नाटक-घर बनता था। भोलानाथ के बाबू जी जिस छोटी चौकी पर बैठकर नहाते थे, वही भोलानाथ और उनके साथियों की रंगमंच बनती। उसी पर सरकंडे के खंभों पर कागज़ का छोटा शामियाना तानकर, मिठाइयों की दुकान लगाई जाती थी। उसमें चिलम के खोंचे पर कपड़े के थालों में ढेले के लड्डू, पत्तों की पूरी-कचौरियाँ, गीली मिट्टी की जलेबियाँ, फूटे घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जातीं। मिट्टी के टूटे-फूटे बरतन का टुकड़ा उनको तौलने के लिए और कुछ निश्चित मान या तौल का पत्थर उन मिठाइयों को तौलने के लिए और जस्ते के छोटे-छोटे टुकड़ों के पैसे बनते थे। भोलानाथ और उनके साथी ही खरीदार होते और वे लोग ही दुकानदार भी बनते थे। भोलानाथ के बाबू जी भी बच्चों के इस खेल में शामिल हो जाते। थोड़ी देर में जब लेखक और उनके साथी मिठाई की दुकानों से खेल कर थक जाते तो वे लोग घरौंदा बनाते थे। धूल की मेड़ दीवार बनती और तिनकों का छप्पर। दातून के खंभे, दियासलाई की पेटियों के दरवाजे , घड़े का ऊपरी हिस्सा चूल्हा-चक्की, दीए से छोटे आकार का कड़ाहा और बाबू जी की पूजा वाली आचमन करने का एक छोटा चम्मच, कलछी बनती थी। पानी के घी, धूल के पिसान और बालू की चीनी से भोलानाथ और उनके साथी भोज, दावत तैयार करते थे। भोलानाथ और उनके साथी ही भोज बनाते और भोलानाथ और उनके साथी ही भोज खाते। जब भोजन करने के लिए पंक्ति बैठ जाती थी तब बाबू जी भी धीरे-से आकर, पंक्ति के अंत में, भोजन करने के लिए बैठ जाते थे। उनको बैठते देखते ही भोलानाथ और उनके साथी हँसकर और घरौंदा बिगाड़कर भाग चलते थे।
प्रश्न 5 – भोलानाथ और उनके साथी किस तरह बारात का नाटक खेलते थे?
उत्तर – भोलानाथ और उनके साथी कभी-कभी बरात का भी जुलूस निकालते थे। टीन का बना हुआ चौकोर आकार का एक पात्र जिसमें घी, तेल, आटा आदि रखा जाता है, उसका तानपूरा बजता, आम के उगते हुए पौधे को घिसकर शहनाई बजायी जाती, टूटी चूहेदानी की पालकी बनती, भोलानाथ और उनके साथी समधी बनकर बकरे पर चढ़ लेते और चबूतरे के एक कोने से चलकर बरात दूसरे कोने में जाकर दरवाजे लगती थी। वहाँ काठ की पटरियों से घिरे, गोबर से लिपे, आम और केले की टहनियों से सजाए हुए छोटे आँगन में छोटा कुल्हड़ का पानी रखने का बड़ा घड़ा रखा रहता था। वहीं पहुँचकर बरात फिर लौट आती थी। लौटने के समय, छोटी चारपाई पर लाल परदे के लिए डाला हुआ कपड़ा डालकर, उसमें दुलहिन को चढ़ा लिया जाता था। लौट आने पर बाबू जी ज्यों ही परदे के लिए डाले हुए कपड़े को हटाकर दुलहिन का मुख निरखने लगते, त्यों ही भोलानाथ और उनके साथी हँसकर भाग जाते।
प्रश्न 6 – भोलानाथ और उनके साथी खेती का नाटक किस प्रकार रचते थे?
उत्तर – भोलानाथ और उनके साथी इकट्ठा होते ही खेती का खेल खेलने लगते। बस, चबूतरे के छोर पर चरखी गड़ जाती और उसके नीचे की गली कुआँ बन जाती थी। मूँज की बटी हुई पतली रस्सी में एक मिट्टी का पकाया गया छोटा बरतन जिसमें चाय, पानी आदि पिया जाता है, बाँध् कर गराड़ी पर चढ़ाकर लटका दिया जाता और दो लड़के बैल बनकर ‘मोट’ खींचने लग जाते। चबूतरा खेत बनता, कंकड़ बीज और अँगूठा हल। बड़ी ही मेहनत से खेत जोते जाते और बीज बोए जाते और पटाए जाते। फसल तैयार होते देर न लगती और भोलानाथ और उनके साथी हाथों हाथ फसल काट भी लेते थे। काटते समय अक्सर गाँव में गाय जाने वाला गीत गाते थे-
ऊंच नीच में बई कियारी, जो उपजी सो भई हमारी।
भोलानाथ और उनके साथी अपने बड़ों की नकल करते हुए फसल को एक जगह रखकर उसे पैरों से रौंद डालते थे। मिट्टी से बना छिछला कटोरे का सूप बनाकर ओसाते और मिट्टी की दीए के तराजू पर तौलकर राशि तैयार कर देते थे। बाबूजी द्वारा जैसे ही फसल के बारे में पूछा जाता वैसे ही भोलानाथ और उनके साथी ज्यों-का-त्यों खेत-खलिहान छोड़कर हँसते हुए भाग जाते थे।
प्रश्न 7 – मुसीबत के समय भोलानाथ पिता के पास न जा कर माँ के आँचल में क्यों छिप गया?
उत्तर – जब भोलानाथ और उनके साथी चूहों के बिल से पानी डालने लगे। तो उस बिल से साँप निकल आया। रोते-चिल्लाते भोलानाथ और उनके साथी बेतहाशा भाग चले! कोई औंध गिरा, कोई अंटाचिट। किसी का सिर फूटा, किसी के दाँत टूटे। सभी गिरते-पड़ते भागे। भोलानाथ का सारा शरीर लहूलुहान हो गया। पैरों के तलवे काँटों से छलनी हो गए। भोलानाथ एक सुर से दौड़े हुए आए और घर में घुस गए। उस समय भोलानाथ के बाबू जी बैठक के बरामदे में बैठकर हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। उन्होंने भोलानाथ को बहुत पुकारा पर उनकी अनसुनी करके भोलानाथ दौड़ते हुए मइयाँ के पास ही चले गए। जाकर उसी की गोद में शरण ली। भोलानाथ को डर से काँपते देखकर लेखक की माँ भी जोर से रो पड़ी और सब काम छोड़ बैठी। भोलानाथ को दर्द में देख वह भी दर्द से सहर गई। झटपट हल्दी पीसकर लेखक के घावों पर थोपी गई। घर में कुहराम मच गया। भोलानाथ केवल धीमे सुर से फ्साँ…स…साँय् कहते हुए मइयाँ के आँचल में लुके चले जाते थे। भोलानाथ के डर से काँपते हुए ओंठों को मइयाँ बार-बार देखकर रोती और बड़े लाड़ से भोलानाथ को गले लगा लेती थी। इसी समय बाबू जी दौड़े आए। बाबूजी आकर झट से भोलानाथ को मइयाँ की गोद से अपनी गोद में लेना चाहते थे। पर भोलानाथ ने मइयाँ के आँचल की-प्रेम और शांति के अनुभव की-छाया न छोड़ी…। क्योंकि एक बच्चे को माँ के आँचल से सुरक्षित और कोई स्थान नहीं लगता।
प्रश्न 8 – माता का आँचल पाठ में भोलानाथ का अपने माता-पिता से बहुत लगाव है। बचपन में कोई भी बच्चा एक भी पल के लिए अपने माता-पिता का साथ नहीं छोड़ना चाहता है। किन्तु माता-पिता के बूढ़े हो जाने पर इनमें से ही कुछ उन्हें साथ न रखकर वृद्धाश्रम पहुँचा देते हैं। ऐसे लोगों को आप किन शब्दों में समझाएंगे विचार करके लिखिए। (CBSE 2022)
उत्तर – माता का आँचल पाठ में भोलानाथ का अपने माता-पिता से बहुत लगाव है। बचपन में कोई भी बच्चा एक भी पल के लिए अपने माता-पिता का साथ नहीं छोड़ना चाहता है। जहाँ एक ओर ‘माता का अंचल’ पाठ में भोलानाथ का अधिकांश समय अपने पिता के साथ बीतता था। वह अपने पिता के साथ पूजा में शामिल होता था। साथ ही भोलानाथ के पिता जी भी उसके साथ खेलों में शामिल होते थे। इससे भोलानाथ में अपने माता-पिता से अत्यधिक लगाव, सहानुभूति, व् मिल-जुलकर साथ रहने की भावना जागृत हुई। परन्तु वर्तमान समय में एकल परिवार को प्राथमिकता देने के कारण माता-पिता के बूढ़े हो जाने पर यही बच्चे उन्हें साथ न रखकर वृद्धाश्रम पहुँचा देते हैं। अधिक से अधिक कमाने एवं सुख-सुविधाओं को पाने की चाहत ने मनुष्य को मशीन बनाकर रख दिया है। ऐसे में माता-पिता न तो अपनी संतान के पास बैठने का समय निकाल पते हैं और न ही उसके साथ खेलने और घूमने-फिरने का। इस कारण एक ओर माता-पिता बूढ़े होने पर उपेक्षा का शिकार होते हैं तो दूसरी ओर वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ रही है। वर्तमान समय में लोगों को भावनात्म तरिके से समझाने की आवश्यकता है। क्योंकि आज वे अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम भेज रहे हैं भविष्य में उनके बच्चे भी उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे।
प्रश्न 9 – माता का आँचल किसी और युग की कोई कहानी प्रतीत होती है। अपने वर्तमान से उसकी तुलना करते हुए इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी राय लिखिए। (CBSE 2020)
उत्तर – माता का आँचल किसी और युग की कोई कहानी प्रतीत होती है। ऐसा लगता है जैसे यह कहानी हमारे ही बचपन की है। परन्तु जब हम इस कहानी की तुलना अपने वर्तमान से करते हैं तो यह कहानी एक युग पीछे की ही प्रतीत होती है।
पक्ष – इस कहानी को पढ़ कर हम सिख ले सकते हैं कि कैसे बच्चों के साथ समय बिता कर हम उनकी अच्छी परवरिश कर सकते हैं। वर्तमान में बच्चों को सही सीख की आवश्यकता है क्योंकि आज के बच्चे केवल फ़ोन, टीवी इंटरनेट आदि पर ही लगे रहते हैं। लोगों के साथ उठने-बैठने व् प्रकृति के साथ खेलने की उनमें कमी होती जा रही है। इससे उनके संर्वांगीण विकास में भी बाधा आ रही है।
विपक्ष – आज के आधुनिक व् खर्चीले समय में इस कहानी की तरह व्यवहार करना संभव नहीं है। यदि माता-पिता बच्चों के आगे-पीछे घूमते रहेंगे तो वे बच्चों के मुताबिक़ सुख-सुविधाओं को उपलब्ध नहीं करवा पाएंगे।
प्रश्न 10 – माता का प्रेम पिता के प्रेम की अपेक्षा अधिक गहन होता है। “माता का आँचल” पाठ ले आधार पर स्पष्ट कीजिए। (CBSE 2023)
उत्तर – भोलानाथ के पिता भोलानाथ को हर समय अपने साथ रखते, घुमाते-फिराते, अपने कंधे पर बैठा कर गंगा जी ले जाते। वे भोलानाथ को अपने साथ चौके में बिठाकर खाना खिलाते थे। उनके हाथ से भोजनकर जब भोलानाथ का पेट भर जाता तब उनकी माँ थोड़ा और खिलाने का हठ करती। वे बाबू जी से पेट भर न खिलाने की शिकायत करती और कहती-देखिए मैं खिलाती हूँ। माँ के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भरता है। यह कहकर वह थाली में दही-भात मिलाती थी और अलग-अलग तोता-मैना, हंस-कबूतर आदि पक्षियों के बनावटी नाम लेकर भोजन का कौर बनाती तथा उसे खिलाते हुए यह कहती कि खालो नहीं तो ये पक्षी उड़ जाएँगे। इस तरह भोजन जल्दी से खा कर भोलानाथ भरपेट खा लिया करता था। डर की स्थिति में भी भोलानाथ सीधे माँ के आँचल में छिप जाता है क्योंकि लेखक को डर से काँपते देखकर लेखक की माँ भी जोर से रो पड़ी और सब काम छोड़ बैठी। कभी लेखक के अंग भरकर दबाती और कभी लेखक के अंगों को अपने आँचल से पोंछकर चूम लेती। झटपट हल्दी पीसकर लेखक के घावों पर थोपी गई। लेखक के डर से काँपते हुए ओंठों को मइयाँ बार-बार देखकर रोती और बड़े लाड़ से लेखक को गले लगा लेती थी। इसी समय बाबू जी दौड़े आए। बाबूजी ने भोलानाथ को अपनी गोद में लेना चाहा परन्तु डरे व घबराए हुए भोलानाथ को उस समय पिता के मजबूत बांहों के सहारे व दुलार के बजाय अपनी माँ का आंचल ज्यादा सुरक्षित व महफूज लगने लगा। इस प्रकार कहा जा सकता है कि माता का प्रेम पिता के प्रेम की अपेक्षा अधिक गहन होता है। क्योंकि एक बच्चा सबसे अधिक सुरक्षित अपनी माँ के आँचल में ही महसूस करता है।
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