Naubatkhane Mein Ibadat Question Answers

 

CBSE Class 10 Hindi Chapter 11 Naubatkhane Mein Ibadat (नौबतखाने में इबादत ) Question Answers (Important) from Kshitij Book

 

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Naubatkhane Mein Ibadat NCERT Solution

प्रश्न 1 – शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है ?
उत्तर – शहनाई की दुनिया में डुमराँव को याद किए जाने के मुख्यतया दो कारण हैं –
शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड , नरकट जो की एक घास है जिसके पौधे का तना खोखला गाँठ वाला होता है , उससे बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इस रीड के बिना शहनाई बजना मुश्किल है।
शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मस्थली डुमराँव ही है। 

प्रश्न 2 – बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक क्यों कहा गया है ?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि शहनाई की ध्वनि मंगलदायी मानी जाती है। इसका वादन मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। अर्थात शहनाई को केवल शुभ कार्य या कल्याण अवसरों पर ही बजाय जाता है। बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष की आयु तक शहनाई बजाते रहे। उनकी गणना भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक के रूप में की जाती है। उन्होंने शहनाई को भारत ही नहीं विश्व में लोकप्रिय बनाया। इसलिए बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक कहा गया है।

प्रश्न 3 – सुषिर – वाद्यों से क्या अभिप्राय है ? शहनाई को ‘ सुषिर वाद्यों में शाह ’ की उपाधि क्यों दी गई होगी ?
उत्तर – संगीत शास्त्रों के अनुसार ‘ सुषिर – वाद्यों ’ अर्थात संगीत में वह यंत्र जो वायु के जोर से बजता है , शहनाई को भी इसमें गिना जाता है। शहनाई, बाँसुरी, श्रृंगी आदि सुषिर वाद्य के अंतर्गत आते हैं। अरब देश में फूँककर बजाए जाने वाले वाद्य जिसमें नाड़ी अर्थात नरकट या रीड होती है , को ‘ नय ’ बोलते हैं और शहनाई को ‘ शाहेनय ’ अर्थात् ‘ सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि् दी गई है।  शहनाई सबसे सुरीली और कर्ण प्रिय आवाज वाली होती है , इसलिए उसे ‘ सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई। 

प्रश्न 4 – आशय स्पष्ट कीजिए –
( क ) ‘ फटा सुर न बख़्शे। लुंगिया का क्या है , आज फटी है , तो कल सी जाएगी। ‘
उत्तर –  बिस्मिल्ला खाँ को दुनिया उनकी शहनाई के कारण जानती है , लुंगी के कारण नहीं। वे खुदा से हमेशा सुरों का वरदान माँगते रहे हैं। उन्हें लगता है कि अभी वे सुरों को बरतने के मामले में पूर्ण नहीं हो पाए हैं। यदि खुदा ने उन्हें ऐसा सुर और कला न दी होती तो वे प्रसिद्ध न हो पाते। उनके मुताबिक़ फटे सुर को ठीक करना असंभव है पर फटे कपड़े आज नहीं तो कल सिल ही जाएँगे।

( ख ) ‘ मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ। ’
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ महान कलाकार हैं। उन्हें अभिमान छू भी न पाया है। सफलता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी वे खुदा से ऐसा सुर माँगते हैं जिसे सुनकर लोग आनंदित हो उठे। इस आनंद से उनका रोम – रोम भीग जाए और उनकी आँखों से आनंद के आँसू बह निकले।

 प्रश्न 5 – काशी में हो रहे कौन – से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे ?
उत्तर – समय के साथ – साथ काशी में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं जो बिस्मिल्ला खाँ को दुखी करते हैं , जैसे –

  • पक्का महाल से मलाई बरफ़ वाले गायब हो रहे हैं।
  • कुलसुम की कचौड़ियाँ और जलेबियाँ अब नहीं मिलती हैं।
  • संगीत और साहित्य के प्रति लोगों में वैसा मान – सम्मान नहीं रहा।
  • गायकों के मन में संगतकारों के प्रति सम्मान भाव नहीं रहा।
  • हिंदू – मुसलमानों में सांप्रदायिक सद्भाव में कमी आ गई है। 


प्रश्न 6 – पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि
( क ) बिस्मिल्ला खाँ मिली – जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म अर्थात् मुस्लिम धर्म के प्रति समर्पित इंसान थे। वे नमाज़ पढ़ते , सिजदा करते और खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगते थे। इसके अलावा वे हज़रत इमाम हुसैन की शहादत पर दस दिनों तक शोक प्रकट करते थे तथा आठ किलोमीटर पैदल चलते हुए रोते हुए नौहा बजाया करते थे। इसी तरह वे काशी में रहते हुए गंगामैया , बालाजी और बाबा विश्वनाथ के प्रति असीम आस्था रखते थे। वे हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित शास्त्रीय गायन में भी उपस्थित रहते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली – जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

( ख ) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ हिंदू – मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उन्हें धार्मिक कट्टरता छू भी न गई थी। वे खुदा और हज़रत इमाम हुसैन के प्रति जैसी आस्था एवं श्रद्धा रखते थे। वैसी ही श्रद्धा एवं आस्था गंगामैया , बालाजी , बाबा विश्वनाथ के प्रति भी रखते थे। वे काशी की गंगा – जमुनी संस्कृति में विश्वास रखते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ सच्चे इंसान थे।

 प्रश्न 7 – बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया ?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ की संगीत साधना को समृद्ध करने वाले व्यक्ति और घटनाएँ निम्नलिखित हैं –

  • बिस्मिल्ला खाँ अपने नाना को बचपन से मीठी शहनाई बजाते देखा करते थे। उनके चले जाने के बाद बालक अमीरुद्दीन उसी शहनाई को ढूँढ़ता।
  • अपने मामूजान के सम पर आने पर अमीरुद्दीन पत्थर फेंककर दाद दिया करता था।
  • बिस्मिल्ला खाँ रसूलनबाई और बतूलनबाई का गायन सुनकर इतने प्रभावित हुए कि संगीत सीखने की दिशा में दृढ़ कदम उठा लिया।
  • बिस्मिल्ला खाँ कुलसुम हलवाइन के कचौड़ियाँ तलने में संगीत की अनुभूति करते थे।

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Class 10 Hindi Naubatkhane Mein Ibadat Lesson 11– Extract Based Questions (पठित गद्यांश)

1 –
अमीरुद्दीन अभी सिर्फ छः साल का है और बड़ा भाई शम्सुद्दीन नौ साल का। अमीरुद्दीन को पता नहीं है कि राग किस चिड़िया को कहते हैं। और ये लोग हैं मामूजान वगैरह जो बात – बात पर भीमपलासी और मुलतानी कहते रहते हैं। क्या वाज़िब मतलब हो सकता है इन शब्दों का , इस लिहाज से अभी उम्र नहीं है अमीरुद्दीन की , जान सके इन भारी शब्दों का वजन कितना होगा। गोया , इतना ज़रूर है कि अमीरुद्दीन व शम्सुद्दीन के मामाद्वय सादिक हुसैन तथा अलीबख्श देश के जाने – माने शहनाई वादक हैं। विभिन्न रियासतों के दरबार में बजाने जाते रहते हैं। रोज़नामचे में बालाजी का मंदिर सबसे ऊपर आता है। हर दिन की शुरुआत वहीं ड्योढ़ी पर होती है। मंदिर के विग्रहों को पता नहीं कितनी समझ है , जो रोज़ बदल – बदलकर मुलतानी , कल्याण , ललित और कभी भैरव रागों को सुनते रहते हैं। ये खानदानी पेशा है अलीबख्श के घर का। उनके अब्बाजान भी यहीं ड्योढ़ी पर शहनाई बजाते रहते हैं। अमीरुद्दीन का जन्म डुमराँव , बिहार के एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ है। 5 – 6 वर्ष डुमराँव में बिताकर वह नाना के घर , ननिहाल काशी में आ गया है। डुमराँव का इतिहास में कोई स्थान बनता हो , ऐसा नहीं लगा कभी भी। पर यह ज़रूर है कि शहनाई और डुमराँव एक – दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड , नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इतनी ही महत्ता है इस समय डुमराँव की जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजता है।

प्रश्न 1 – अमीरुद्दीन और उनके बड़ा भाई शम्सुद्दीन में कितनी साल का फर्क है?
(क) छः
(ख) नौ
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर – (ग) तीन

प्रश्न 2 – छोटी उम्र में अमीरुद्दीन को किस चीज़ का ज्ञान नहीं है?
(क) राग
(ख) संगीत
(ग) शहनाई
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 3 – देश के जाने-माने शहनाई वादक कौन हैं?
(क) अमीरुद्दीन के भाई
(ख) अमीरुद्दीन के पिता
(ग) अमीरुद्दीन के मामा
(घ) अमीरुद्दीन के चाचा
उत्तर – (ग) अमीरुद्दीन के मामा

प्रश्न 4 – अमीरुद्दीन के मामा के परिवार के लिए रोज़नामचे में सबसे ऊपर क्या आता है?
(क) संगीत कार्यक्रम
(ख) बालाजी का मंदिर
(ग) शहनाई बजाना
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ख) बालाजी का मंदिर

प्रश्न 5 – शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए क्यों उपयोगी हैं?
(क) शहनाई बजाने वाले सबसे बड़े उस्ताद डुमराँव में की मुख्यतः सोन नदी के किनारे पर रहते हैं
(ख) शहनाई बजाने के लिए जिस रीड का प्रयोग होता है वह डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है
(ग) शहनाई बजाने के लिए जिस धातु का प्रयोग होता है वह डुमराँव में ही पाई जाती है
(घ) शहनाई बजाने के लिए जिस लकड़ी का प्रयोग होता है वह डुमराँव के जंगलों में पाई जाती है
उत्तर – (ख) शहनाई बजाने के लिए जिस रीड का प्रयोग होता है वह डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है

2 –
वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसे संगीत शास्त्रांतर्गत ‘ सुषिर – वाद्यों ’ में गिना जाता है। अरब देश में फूँककर बजाए जाने वाले वाद्य जिसमें नाड़ी होती है , को ‘ नय ’ बोलते हैं। शहनाई को ‘ शाहेनय ’ अर्थात् ‘ सुषिर वाद्यों में शाह ’ की उपाधि् दी गई है। सोलहवीं शताब्दी के उत्तराद्ध में तानसेन के द्वारा रची बंदिश, जो संगीत राग कल्पद्रुम से प्राप्त होती है , में शहनाई , मुरली , वंशी , शृंगी एवं मुरछंग आदि का वर्णन आया है। अवधी पारंपरिक लोकगीतों एवं चैती में शहनाई का उल्लेख बार – बार मिलता है। मंगल का परिवेश प्रतिष्ठित करने वाला यह वाद्य इन जगहों पर मांगलिक विधि् – विधनों के अवसर पर ही प्रयुक्त हुआ है। दक्षिण भारत के मंगल वाद्य ‘ नागस्वरम् ’ की तरह शहनाई , प्रभाती की मंगलध्वनि का संपूरक है। शहनाई के इसी मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमत। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज़ इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सज़दे , इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते हैं – ‘ मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ। ’

प्रश्न 1 – शहनाई को शास्त्रांतर्गत किस वाद्यों में गिना जाता है?
(क) सुषिर-वाद्यों
(ख) सुमिर-वाद्यों
(ग) कर्ण-वाद्यों
(घ) शिषिर-वाद्यों
उत्तर – (क) सुषिर-वाद्यों

प्रश्न 2 – प्रभाती क्या है?
(क) एक प्रकार का वाद्य जो प्रातःकाल बजाया जाता है
(ख) एक प्रकार का संगीत जो प्रातःकाल समाप्ति पर गया जाता है
(ग) एक प्रकार का गीत जो प्रातःकाल गाया जाता है
(घ) एक प्रकार का गीत जो प्रातःकाल समाप्ति पर गया जाता है
उत्तर – (ग) एक प्रकार का गीत जो प्रातःकाल गाया जाता है

प्रश्न 3 – शहनाई के मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब कितने बरस से सुर माँग रहे हैं?
(क) सत्तर बरस से
(ख) अठ्ठासी बरस से
(ग) नवासी बरस से
(घ) अस्सी बरस से
उत्तर – (घ) अस्सी बरस से

प्रश्न 4 – बिस्मिल्ला खाँ साहब की अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज़ किसमें खर्च हो जाती है?
(क) शान्ति को पाने की प्रार्थना में
(ख) सुर को पाने की प्रार्थना में
(ग) यश को पाने की प्रार्थना में
(घ) शहनाई को पाने की प्रार्थना में
उत्तर – (ख) सुर को पाने की प्रार्थना में

प्रश्न 5 – बिस्मिल्ला खाँ साहब नमाज़ के बाद सज़दे में क्या गिड़गिड़ाते हैं?
(क) मेरे मालिक एक सुर बख्श दे
(ख) मेरे मालिक सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ
(ग) मेरे मालिक एक सुर में आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ
(घ) मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ
उत्तर – (घ) मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ

3 –
बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई के साथ जिस एक मुस्लिम पर्व का नाम जुड़ा हुआ है , वह मुहर्रम है। मुहर्रम का महीना वह होता है जिसमें शिया मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति अज़ादारी मनाते हैं। पूरे दस दिनों का शोक। वे बताते हैं कि उनके खानदान का कोई व्यक्ति मुहर्रम के दिनों में न तो शहनाई बजाता है , न ही किसी संगीत के कार्यक्रम में शिरकत ही करता है। आठवीं तारीख उनके लिए खास महत्त्व की है। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं व दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए , नौहा बजाते जाते हैं। इस दिन कोई राग नहीं बजता। राग – रागिनियों की अदायगी का निषेध् है इस दिन। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती हैं। अज़ादारी होती है। हज़ारों आँखें नम। हज़ार बरस की परंपरा पुनर्जीवित। मुहर्रम संपन्न होता है। एक बड़े कलाकार का सहज मानवीय रूप ऐसे अवसर पर आसानी से दिख जाता है।

प्रश्न 2 – बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई के साथ जिस एक मुस्लिम पर्व का नाम जुड़ा हुआ है , वह कौन सा है?
(क) मुहर्रम
(ख) ईद
(ग) बकरीद
(घ) निगाह
उत्तर – (क) मुहर्रम

प्रश्न 2 – अज़ादारी का क्या अर्थ है?
(क) ख़ुशी मनाना
(ख) शोक मनाना
(ग) त्यौहार मनाना
(घ) शादी का त्यौहार
उत्तर – (ख) शोक मनाना

प्रश्न 3 – मुहर्रम में कितने दिनों का शोक मनाया जाता है?
(क) आठ
(ख) सात
(ग) दस
(घ) बीस
उत्तर – (ग) दस

प्रश्न 4 – मुहर्रम की आठवीं तारीख में खाँ साहब क्या करते है?
(क) इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं
(ख) इस दिन खाँ साहब दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए जाते हैं
(ग) इस दिन खाँ साहब नौहा बजाते जाते हैं
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 5 – मुहर्रम की आठवीं तारीख को किस तरह शोक मनाया जाता है?
(क) इस दिन कोई राग नहीं बजता
(ख) राग – रागिनियों की अदायगी का निषेध् है इस दिन
(ग) आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती हैं
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी 

 

 4 –
अमीरुद्दीन तब सिर्फ चार साल का रहा होगा। छुपकर नाना को शहनाई बजाते हुए सुनता था , रियाज़ के बाद जब अपनी जगह से उठकर चले जाएँ तब जाकर ढेरों छोटी – बड़ी शहनाइयों की भीड़ से अपने नाना वाली शहनाई ढूँढ़ता और एक – एक शहनाई को फ़ेंक कर खारिज़ करता जाता , सोचता – ‘ लगता है मीठी वाली शहनाई दादा कहीं और रखते हैं। ’ जब मामू अलीबख्श खाँ ( जो उस्ताद भी थे ) शहनाई बजाते हुए सम पर आएँ , तब धड़ से एक पत्थर ज़मीन पर मारता था। सम पर आने की तमीज़ उन्हें बचपन में ही आ गई थी , मगर बच्चे को यह नहीं मालूम था कि दाद वाह करके दी जाती है , सिर हिलाकर दी जाती है , पत्थर पटक कर नहीं। और बचपन के समय फिल्मों के बुखार के बारे में तो पूछना ही क्या ? उस समय थर्ड क्लास के लिए छः पैसे का टिकट मिलता था। अमीरुद्दीन दो पैसे मामू से , दो पैसे मौसी से और दो पैसे नानी से लेता था फिर घंटों लाइन में लगकर टिकट हासिल करता था। इधर सुलोचना की नयी फ़िल्म सिनेमाहाल में आई और उधर अमीरुद्दीन अपनी कमाई लेकर चला फ़िल्म देखने जो बालाजी मंदिर पर रोज़ शहनाई बजाने से उसे मिलती थी। एक अठन्नी मेहनताना। उस पर यह शौक ज़बरदस्त कि सुलोचना की कोई नयी फ़िल्म न छूटे और कुलसुम की देशी घी वाली दुकान। वहाँ की संगीतमय कचौड़ी। संगीतमय कचौड़ी इस तरह क्योंकि कुलसुम जब कलकलाते घी में कचौड़ी डालती थी , उस समय छन्न से उठने वाली आवाज़ में उन्हें सारे आरोह – अवरोह दिख जाते थे।

प्रश्न 1 – छोटा अमीरुद्दीन छुपकर किसको शहनाई बजाते हुए सुनता था?
(क) नाना को
(ख) मामा को
(ग) चाचा को
(घ) पिता को
उत्तर – (क) नाना को

प्रश्न 2 – मेहनताना का क्या अर्थ है?
(क) मेहनती व्यक्ति
(ख) परिश्रम
(ग) पारिश्रमिक
(घ) मजदूर
उत्तर – (ग) पारिश्रमिक

प्रश्न 3 – छोटे अमरुद्दीन को जब अपने नाना की तरह अच्छे से शहनाई बजानी नहीं आती थी तो वह क्या सोचता था?
(क) लगता है मीठी वाली शहनाई कहीं खो गई है
(ख) लगता है मीठी वाली शहनाई दादा कहीं और रखते हैं
(ग) लगता है मीठी वाली शहनाई दादा ने मामा को दे दी हैं
(घ) लगता है मीठी वाली शहनाई टूट गई हैं
उत्तर – (ख) लगता है मीठी वाली शहनाई दादा कहीं और रखते हैं

प्रश्न 4 – छोटे अमरुद्दीन किस तरह अपने मामा की शहनाई बजाने पर दाद देते थे?
(क) वाह करके
(ख) सिर हिलाकर
(ग) पत्थर पटक कर
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) पत्थर पटक कर

प्रश्न 5 – कचौड़ी को बिस्मिल्ला खाँ ने ‘संगीतमय कचौड़ी’ क्यों कहा है?
(क) क्योंकि बिस्मिल्ला खाँ संगीत सुनते हुए कचौड़ी खाया करते थे
(ख) क्योंकि कुलसुम जब कलकलाते घी में कचौड़ी डालती थी, उस समय छन्न से उठने वाली आवाज़ में उन्हें सारे आरोह – अवरोह दिख जाते थे
(ग) क्योंकि बिस्मिल्ला खाँ कलकलाते घी में कचौड़ी डालते थे तो कचौड़ी भी मानो संगीत गुनगुनाती थी
(घ) क्योंकि बिस्मिल्ला खाँ को कलकलाते घी में कचौड़ी डालते हुए शहनाई बजाना पसंद था
उत्तर – (ख) क्योंकि कुलसुम जब कलकलाते घी में कचौड़ी डालती थी, उस समय छन्न से उठने वाली आवाज़ में उन्हें सारे आरोह – अवरोह दिख जाते थे

 

5 –
अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते हैं , थोड़ी देर ही सही , मगर  उसी ओर शहनाई का प्याला घुमा दिया जाता है और भीतर की आस्था रीड के माध्यम से बजती है। खाँ साहब की एक रीड 15 से 20 मिनट के  अंदर गीली हो जाती है तब वे  दूसरी रीड का इस्तेमाल कर लिया करते हैं। अक्सर कहते हैं – ‘ क्या करें मियाँ , ई काशी छोड़कर कहाँ जाएँ , गंगा मइया यहाँ , बाबा विश्वनाथ यहाँ , बालाजी का मंदिर यहाँ , यहाँ हमारे खानदान की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है , हमारे नाना तो वहीं बालाजी मंदिर में बड़े प्रतिष्ठित शहनाईवाश रह चुके हैं। अब हम क्या करें , मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी। जिस ज़मीन ने हमें तालीम दी , जहाँ से अदब पाई , वो कहाँ और मिलेगी ? शहनाई और काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं इस धरती पर हमारे लिए। ’ काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में आनंदकानन के नाम से प्रतिष्ठित। काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य – विश्वनाथ हैं। काशी में बिस्मिल्ला खाँ हैं। काशी में हज़ारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं , विद्याधरी हैं , बड़े रामदास जी हैं , मौजुद्दीन खाँ हैं व इन रसिकों से उपकृत होने वाला अपार जन – समूह है। यह एक अलग काशी है जिसकी अलग तहज़ीब है , अपनी बोली और अपने विशिष्ट लोग हैं। इनके अपने उत्सव हैं , अपना गम। अपना सेहरा – बन्ना और अपना नौहा। आप यहाँ संगीत को भक्ति से , भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से , कजरी को चैती से , विश्वनाथ को विशालाक्षी से , बिस्मिल्ला खाँ को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते। 

प्रश्न 1 – इस गद्यांश में लेखक क्या दर्शा रहे हैं?
(क) बिस्मिल्ला खाँ का शहनाई के प्रति प्रेम
(ख) बिस्मिल्ला खाँ का काशी के प्रति प्रेम
(ग) बिस्मिल्ला खाँ का शहनाई और काशी के प्रति प्रेम
(घ) बिस्मिल्ला खाँ का संगीत के प्रति प्रेम
उत्तर – (ग) बिस्मिल्ला खाँ का शहनाई और काशी के प्रति प्रेम

प्रश्न 2 – अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा किसके प्रति अपार है?
(क) काशी विश्वनाथ जी के प्रति
(ख) काशी के प्रति
(ग) शहनाई के प्रति
(घ) बाला जी के प्रति
उत्तर – (क) काशी विश्वनाथ जी के प्रति

प्रश्न 3 – खाँ साहब की एक रीड कितने मिनट के अंदर गीली हो जाती है?
(क) 15  मिनट के  अंदर
(ख) 20 मिनट के  अंदर
(ग) 10 से 15 मिनट के  अंदर
(घ) 15 से 20 मिनट के  अंदर
उत्तर – (घ) 15 से 20 मिनट के  अंदर

प्रश्न 4 – खाँ साहब अक्सर क्या कहते हैं?
(क) शहनाई और काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं इस धरती पर हमारे लिए
(ख) क्या करें मियाँ , ई काशी छोड़कर कहाँ जाएँ , गंगा मइया यहाँ , बाबा विश्वनाथ यहाँ , बालाजी का मंदिर यहाँ, यहाँ हमारे खानदान की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है , हमारे नाना तो वहीं बालाजी मंदिर में बड़े प्रतिष्ठित शहनाईवाश रह चुके हैं
(ग) अब हम क्या करें , मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी। जिस ज़मीन ने हमें तालीम दी , जहाँ से अदब पाई , वो कहाँ और मिलेगी
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 5 – कहाँ पर संगीत को भक्ति से , भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से , कजरी को चैती से , विश्वनाथ को विशालाक्षी से , बिस्मिल्ला खाँ को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते?
(क) बाला जी में
(ख) काशी में
(ग) काशी विश्वनाथ में
(घ) प्राचीन भारत में
उत्तर – (ख) काशी में

 

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Class 10 Hindi Naubatkhane Mein Ibadat Extra Question Answers (अतिरिक्त प्रश्न उत्तर)

 

प्रश्न 1 – अमीरुद्दीन के मामा संगीत की अच्छी समझ रखते थे। स्पष्ट कीजिए?
उत्तर – अमीरुद्दीन जब छः वर्ष के थे तो इस उम्र में अमीरुद्दीन को पता नहीं था कि राग किस चिड़िया को कहते हैं। अर्थात अमीरुद्दीन को सगीत के बारे में कुछ भी पता नहीं है। और अमीरुद्दीन के मामूजान वगैरह थे जो बात – बात पर भीमपलासी और मुलतानी कहते रहते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि अमीरुद्दीन के मामा आदि संगीत की अच्छी समझ रखते हैं। अमीरुद्दीन के दोनों मामा सादिक हुसैन तथा अलीबख्श देश के जाने – माने शहनाई वादक थे। अर्थात वे बहुत ही अच्छी शहनाई बजाते थे और देश भर में प्रसिद्ध थे। वे विभिन्न रियासतों अर्थात हुकूमत के दरबार में बजाने जाते रहते थे। उनकी आजीविका के लिए बाला जी मंदिर उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है। हर दिन की शुरुआत उसी मंदिर की दहलीज़ पर होती है। अमीरुद्दीन के दोनों मामा उस मंदिर में हर रोज अलग – अलग राग सुनाते रहते हैं , इससे यह भी समझ आता है कि अमीरुद्दीन के दोनों मामा संगीत की बहुत अच्छी समझ रखते हैं। ये अलीबख्श के घर का अर्थात अमीरुद्दीन के मामा के घर का वश परपरागत या पैतृक काम था।

प्रश्न 2 – लेखक ने शहनाई और डुमराँव के एक – दूसरे के लिए उपयोगी होने का क्या कारण दिया है?
उत्तर – जैसे किसी जगह का अपना कोई न कोई इतिहास होता है लेखक को ऐसा कभी भी नहीं लगा की डुमराँव का इतिहास में कोई स्थान बनता हो। पर यह ज़रूर है कि शहनाई और डुमराँव एक – दूसरे के लिए उपयोगी हैं। इसका कारण बताते हुए लेखक कहते हैं कि , शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड , नरकट जो की एक घास है जिसके पौधे का तना खोखला गाँठ वाला होता है , उससे बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इसलिए इस समय डुमराँव की इतनी ही उपयोगिता है , जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजता है।

प्रश्न 3 – संगीत का अभ्यास करने के लिए रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के पास से होकर जाने वाला रास्ता अमीरुद्दीन को क्यों पसंद था?
उत्तर – बालाजी मंदिर में बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने अपने संगीत के अभ्यास के लिए जाना पड़ता था। मगर बालाजी मंदिर तक जाने का एक रास्ता था , यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के पास से होकर जाता था। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता था। इसका कारण यह था कि इस रास्ते से न जाने कितने तरह के बोल – बनाव कभी ठुमरी , कभी टप्पे , कभी दादरा के द्वारा मंदिर के दरवाजे तक पहुँचते रहते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर से भी हमेशा कोई न कोई संगीत सुनाई पड़ता रहता था और रसूलन और बतूलन जब गाती थी तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती थी। एक प्रकार से यह कहा जा सकता है कि उनकी कच्ची या कम उम्र में जो प्रत्यक्ष ज्ञान या तज़ुर्बा या एक्सपीरिएंस की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने ही नक्काशी करके बनाई थी। कहने का तात्पर्य यह है कि अमीरुद्दीन अथवा बिस्मिल्ला खाँ के अनुसार रसूलनबाई और बतूलनबाई के द्वारा ही उन्हें संगीत का आरंभिक ज्ञान प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 4 – बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी वर्ष के हो जाने पर भी स्वर की माँग कर रहे थे, आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – शहनाई की ध्वनि को कल्याण की ध्वनि कहा जाता है और शहनाई के इसी मंगलध्वनि के नायक अथवा प्रधान बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी वर्ष के हो जाने पर भी स्वर की माँग कर रहे थे। कहने का तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी वर्ष के होने पर भी यह मानते हैं कि उनको अभी भी संगीत की पूर्ण जानकारी नहीं है। वे ईश्वर से अपने संगीत की समृद्धि के लिए वरदान मांगते रहते थे। अस्सी वर्ष में भी पाँचों वक्त वाली नमाज़ इसी संगीत को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती थी। लाखों बार ईश्वर के समक्ष इसी प्रार्थना में झुकते थे , इसी एक सच्चे सुर की आराधना में ईश्वर के आगे झुकते रहते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ ने अपनी पूरी जिंदगी में ईश्वर से अपने संगीत की समृद्धि के अलावा कुछ नहीं माँगा। वे हमेशा नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते थे कि मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह गुण व् योग्यता पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह लगातार आँसू निकल आएँ। बिस्मिल्ला खाँ को यह भरोसा है कि कभी न कभी ईश्वर उन पर यूँ ही दयालु व् दयावान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर बिस्मिल्ला खाँ की ओर उछालेगा , और फिर कहेगा कि ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी इच्छा को पूरी।

प्रश्न 5 – मुहर्रम क्या है और बिस्मिल्ला खाँ इसे कैसे निभाते थे?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई के साथ जिस एक मुस्लिम पर्व का नाम जुड़ा हुआ है , वह है मुहर्रम। मुहर्रम का महीना वह होता है जिसमें शिया मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति अपना शोक दर्शाते हैं। यह शोक कोई एक दिन का नहीं होता बल्कि पूरे दस दिनों का शोक होता है। बिस्मिल्ला खाँ बताते हैं कि उनके खानदान का कोई व्यक्ति मुहर्रम के दिनों में न तो शहनाई बजाता है , न ही किसी संगीत के कार्यक्रम में शामिल भी होता है। आठवीं तारीख उनके लिए खास महत्त्व की है। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं व दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए , मृतक के लिए शोक मनाते हुए जाते हैं। इस दिन कोई राग नहीं बजता। राग – रागिनियों को अदा करना या बजाने का इस दिन निषेध् होता है। सभी शिया मुसलमानों की आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों के शहीद होने पर नम रहती हैं। इन दस दिनों में मातम या शोक मनाया जाता है। हज़ारों आँखें नम होती है। हज़ार वर्ष की परंपरा फिर से जीवित होती है। मुहर्रम समाप्त होता है। एक बड़े कलाकार का साधारण मानवीय रूप ऐसे अवसर पर आसानी से दिख जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ जैसे बड़े कलाकार भी अपने रीती – रिवाजों को शिदद्त से निभाते हैं।

प्रश्न 6 – बिस्मिल्ला खाँ ज्यादा क्या याद करते हैं?
उत्तर – मुहर्रम के दुखी व् गमगीन वातावरण से अलग , कभी – कभी आराम व् शान्ति के पलों में बिस्मिल्ला खाँ अपनी जवानी के दिनों को याद करते हैं। वे अपने संगीत के रियाज़ को कम , बचपन के उन दिनों के अपने पागलपन या लगन अधिक याद करते हैं। वे अपने अब्बाजान और उस्ताद को कम , बल्कि उनसे कहीं अधिक पक्का महाल की कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी वाली दुकान व गीताबाली और सुलोचना को ज्यादा याद करते हैं।

प्रश्न 7 – छोटा अमीरुद्दीन अपने नाना के शहनाई बजाने पर क्या प्रतिक्रिया करता था?
उत्तर – अमीरुद्दीन जब सिर्फ चार साल का रहा होगा तब वह छुपकर अपने नाना को शहनाई बजाते हुए सुनता था , रियाज़ के बाद जब उसके नाना अपनी जगह से उठकर चले जाते थे तब अमीरुद्दीन नाना की जगह पर जाकर उनकी ढेरों छोटी – बड़ी शहनाइयों की भीड़ से अपने नाना वाली शहनाई ढूँढ़ता अर्थात जिस शहनाई को उसके नाना बजा रहे थे , अमीरुद्दीन उसी शहनाई को खोजता था और उन ढेरों छोटी – बड़ी शहनाइयों की भीड़ से एक – एक शहनाई को बजाता और फ़ेंक कर खारिज़ करता जाता था , क्योंकि उसे कोई भी शहनाई उस तरह बजती हुई प्रतीत नहीं होती थी जैसे उसके नाना बजाते थे और वह सोचता था कि लगता है मीठी वाली शहनाई दादा कहीं और रखते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि बचपन में अमीरुद्दीन को लगता था कि शहनाई अपने आप मीठी बजती हैं।

प्रश्न 8 – अमीरुद्दीन की कमाई कितनी थी और उनके क्या शौक थे?
उत्तर – अमीरुद्दीन को बालाजी मंदिर पर रोज़ शहनाई बजाने से कमाई होती थी। और उसकी कमाई थी – एक अठन्नी पारिश्रमिक अथवा मज़दूरी। इतनी कम कमाई होने पर भी अमीरुद्दीन को ज़बरदस्त शौक चढ़ा हुआ था कि सुलोचना की कोई नयी फ़िल्म नहीं छूटनी चाहिए और कुलसुम की देशी घी वाली दुकान भी अमीरुद्दीन की पसंदीदा जगह थी। वहाँ की संगीतमय कचौड़ी उसकी पसंदीदा थी। संगीतमय कचौड़ी इस लिए कहा गया है क्योंकि कुलसुम जब कलकलाते घी में कचौड़ी डालती थी , उस समय छन्न से उठने वाली आवाज़ में उन्हें संगीत के सारे उतार – चढ़ाव दिख जाते थे।

प्रश्न 9 – अपने मजहब के प्रति सबसे अधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अनंत अथवा बहुत अधिक है, स्पष्ट कीजिए?
उत्तर – अपने मजहब के प्रति सबसे अधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अनंत अथवा बहुत अधिक है। इसका परिचय इस घटना से मिल जाता है कि वे जब भी काशी से बाहर रहते थे तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे भले ही थोड़ी देर के लिए ही सही , मगर विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर शहनाई का प्याला घुमा दिया जाता था अर्थात वे अपना रोज का रियाज़ विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके ही करते थे। और उनके अंदर की आस्था रीड के माध्यम से बजती थी। बिस्मिल्ला खाँ साहब की एक रीड 15 से 20 मिनट के अंदर गीली हो जाती है तब वे दूसरी रीड का इस्तेमाल कर लिया करते थे। वे अक्सर कहते थे कि ‘ क्या करें मियाँ , ई काशी छोड़कर कहाँ जाएँ , गंगा मइया यहाँ , बाबा विश्वनाथ यहाँ , बालाजी का मंदिर यहाँ , यहाँ हमारे खानदान की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है , हमारे नाना तो वहीं बालाजी मंदिर में बड़े प्रतिष्ठित शहनाईवाश रह चुके हैं। अब हम क्या करें , मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी। जिस ज़मीन ने हमें शिक्षा – दीक्षा , ज्ञान व् उपदेश दिया , जहाँ से अदब अर्थात शिष्टाचार , बड़ों का आदर – सम्मान , उनके प्रति विनीत व्यवहार का कायदा पाया , वो कहाँ और मिलेगी ? शहनाई और काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं इस धरती पर हमारे लिए। ’ कहने का तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब का काशी से दिल का रिश्ता था जो उनके अनुसार जीते – जी कभी समाप्त नहीं हो सकता था। उनके लिए काशी किसी स्वर्ग से कम नहीं थी।

प्रश्न 10 – लेखक द्वारा काशी का अद्धभुत वर्णन किस प्रकार किया गया है?
उत्तर – लेखक कहते हैं कि काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में काशी आनंदकानन के नाम से सम्मानित है। काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य – विश्वनाथ हैं। काशी में बिस्मिल्ला खाँ हैं। काशी में हज़ारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं , विद्याधरी हैं , बड़े रामदास जी हैं , मौजुद्दीन खाँ हैं व इन सब के जिनके हृदय में सौंदर्य – प्रेम – भक्ति – कला आदि के प्रति अनुराग है , उनसे कृतज्ञ अथवा अहसानमंद होने वाला अनगिनत जन – समूह है। यह एक अलग काशी है जिसका अपना अलग शिष्टाचार है , अपनी बोली और अपने विशेष व् प्रसिद्ध लोग हैं। इनके अपने उत्सव हैं , अपना गम है। अपना सेहरा – बन्ना और अपना नौहा। कहने का तात्पर्य यह है कि लेखक ने बिस्मिल्ला खाँ की दृष्टि से कशी को सबसे अलग दर्शाया है। लेखक कहते हैं कि आप काशी में संगीत को भक्ति से , भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से , कजरी को चैती से , विश्वनाथ को विशालाक्षी से , बिस्मिल्ला खाँ को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते। कहने का अभिप्राय यह है कि काशी हर तरह से अलग है , काशी की अपनी ही अलग पहचान है जिसको आप बदल कर नहीं देख सकते क्योंकि काशी की हर एक चीज़ किसी न किसी से जुड़ी हुई है।

प्रश्न 11 – बिस्मिल्ला खाँ के एक शिष्य ने उन्हें किस बात पर टोका और बिस्मिल्ला खाँ के दिए उत्तर से उनके व्यक्तित्व के बारे  चलता है?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ के एक शिष्य ने डरते – डरते बिस्मिल्ला खाँ साहब को टोका कि बाबा ! आप यह क्या करते हैं , इतनी प्रतिष्ठा है आपकी , कितना मान – सम्मान है। अब तो आपको भारत सरकार का सर्वोच्च सम्मान अर्थात भारतरत्न भी मिल चुका है , यह फटी धोती न पहना करें। अच्छा नहीं लगता , जब भी कोई आता है आप इसी फटी धोती में सबसे मिलते हैं। ” उस शिष्य की बात सुनकर बिस्मिल्ला खाँ साहब मुसकराए। दुलार व् वात्सल्य से भरकर उस शिष्य से बोले कि ये जो भारतरत्न उनको मिला है न यह शहनाई पर मिला है , उनकी लंगोटी पर नहीं। अगर वे भी सब लोगों की तरह बनावटी शृंगार देखते रहते , तो पूरी उमर ही बीत जाती , और शहनाई की तो फिर बात ही छोड़ो। तब क्या वे खाक रियाज़ कर पाते। कहने का तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब बहुत ही सीधे – साढ़े व्यक्ति थे। वे कोई भी दिखावा करना सही नहीं समझते थे। वे केवल अपने रियाज़ को ही महत्वपूर्ण मानते थे।

प्रश्न 12 – काशी कैसे किसी को भी हैरान कर सकती है?
उत्तर –  काशी एक ऐसी जगह है जो सचमुच किसी को भी हैरान कर सकती है – पक्का महाल से जैसे मलाई बरफ गायब हो गया , संगीत , साहित्य और अदब की बहुत सारी परंपराएँ भी गायब हो गईं। अर्थात बहुत सी ऐसी चीज़े हैं जो प्राचीन काशी से आते – आते गायब हो गई हैं और एक सच्चे सुर के योगी अथवा तपस्वी और सामाजिक की भाँति बिस्मिल्ला खाँ साहब को इन सबकी बहुत कमी खलती है। काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ और बिस्मिला खाँ एक – दूसरे के पूरक रहे हैं , उसी तरह मुहर्रम – ताजिया और होली – अबीर , गुलाल की गंगा  –  जमुनी संस्कृति भी एक दूसरे के पूरक रहे हैं। अर्थात काशी को आप किसी मजहब , रंग , खान – पान , त्योहारों आदि के आधार पर नहीं बाँट सकते। अभी जल्दी ही बहुत कुछ इतिहास बन चुका है। अभी आगे बहुत कुछ इतिहास बन जाएगा। फिर भी अब तक जो सिर्फ काशी में बचा हुआ है , वह है – काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती है और ढोलक , तबले , मृदंग आदि बजाते समय उस पर हथेली से किया जाने वाला आघात पर सोती है। अर्थात काशी में मृत्यु को भी शुभ माना गया है। काशी आनंदकानन है। सबसे बड़ी बात यह है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर की तमीज सिखाने वाला कीमती  हीरा रहा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा है।

 

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Class 10 Hindi A Kshitij Lesson 11 Naubatkhane Mein Ibadat Multiple Choice Questions (बहुविकल्पीय प्रश्न)

 

प्रश्न 1 – काशी का एक प्रसिद्ध घाट जो मान्यतानुसार पाँच नदियों का संगमस्थान है उसे किस नाम से जाना जाता है?
(क) पंचनदी
(ख) पंचगंगा
(ग) पंचसंगम
(घ) पंचनध्य
उत्तर – (ख) पंचगंगा

प्रश्न 2 – अमीरुद्दीन के मामा के घर का वश परपरागत या पैतृक काम क्या था?
(क) पूजा-पाठ करना
(ख) संगीत बजाना
(ग) शहनाई बजाना
(घ) मंदिर की सफाई करना
उत्तर – (ग) शहनाई बजाना

प्रश्न 3 – अमीरुद्दीन का परिवार कैसा था?
(क) मुस्लिम परिवार
(ख) तबला वादक परिवार
(ग) शहनाई प्रेमी परिवार
(घ) संगीत प्रेमी परिवार
उत्तर – (घ) संगीत प्रेमी परिवार

प्रश्न 4 – शहनाई और डुमराँव के एक – दूसरे के लिए उपयोगी होने का क्या कारण दिया है
(क) शहनाई बजाने वाले सबसे बड़े उस्ताद डुमराँव में की मुख्यतः सोन नदी के किनारे पर रहते हैं
(ख) शहनाई बजाने के लिए जिस रीड का प्रयोग होता है वह डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है
(ग) शहनाई बजाने के लिए जिस धातु का प्रयोग होता है वह डुमराँव में ही पाई जाती है
(घ) शहनाई बजाने के लिए जिस लकड़ी का प्रयोग होता है वह डुमराँव के जंगलों में पाई जाती है
उत्तर – (ख) शहनाई बजाने के लिए जिस रीड का प्रयोग होता है वह डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है

प्रश्न 5 – अमीरुद्दीन को हम किस नाम से जानते हैं?
(क) उस्ताद मिट्ठन खाँ
(ख) उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ
(ग) उस्ताद सलार हुसैन खाँ
(घ) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ
उत्तर – (घ) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ

प्रश्न 6 – बिस्मिल्ला खाँ के अनुसार किसके द्वारा उन्हें संगीत का आरंभिक ज्ञान प्राप्त हुआ है?
(क) उस्ताद सलार हुसैन खाँ के द्वारा
(ख) रसूलनबाई और बतूलनबाई के द्वारा
(ग) उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ के द्वारा
(घ) उस्ताद मिट्ठन खाँ के द्वारा
उत्तर – (ख) रसूलनबाई और बतूलनबाई के द्वारा

प्रश्न 7 – सुषिर-वाद्यों का क्या अर्थात है?
(क) संगीत में वह यंत्र जो वायु के जोर से बजता है
(ख) संगीत में वह यंत्र जो हाथो के जोर से बजता है
(ग) संगीत में वह यंत्र जो पैरों के जोर से बजता है
(घ) संगीत में वह यंत्र जो आजाज़ के जोर से बजता है
उत्तर – (क) संगीत में वह यंत्र जो वायु के जोर से बजता है

प्रश्न 8 – शहनाई को किसकी उपाधि् दी गई है?
(क) सुधीर वाद्यों में शाह
(ख) सुमीर वाद्यों में शाह
(ग) सुषिर वाद्यों में शाह
(घ) सभी वाद्यों में शाह
उत्तर – (ग) सुषिर वाद्यों में शाह

प्रश्न 9 – शहनाई को किन अवसरों पर बजाय जाता है?
(क) केवल संगीत अवसरों पर
(ख) केवल शुभ कार्य या कल्याण अवसरों पर
(ग) केवल आध्यात्मिक अवसरों पर
(घ) केवल सांस्कृतिक अवसरों पर
उत्तर – (ख) केवल शुभ कार्य या कल्याण अवसरों पर

प्रश्न 10 – बिस्मिल्ला खाँ ने अपनी पूरी जिंदगी में ईश्वर से क्या माँगा?
(क) अपने जीवन की समृद्धि
(ख) अपने परिवार की समृद्धि
(ग) अपनी शहनाई की समृद्धि
(घ) अपने संगीत की समृद्धि
उत्तर – (घ) अपने संगीत की समृद्धि

प्रश्न 11 – लेखक उस हिरन के बारे में बताते हैं जो अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी महक व् सुगंध उसी में समाई होती है। यह उदहारण लेखक किसके लिए दे रहे हैं?
(क) मंदिर प्रशासन के लिए
(ख) बिस्मिल्ला खाँ के लिए
(ग) बिस्मिल्ला खाँ के परिवार के लिए
(घ) बिस्मिल्ला खाँ के मामा के लिए
उत्तर – (ख) बिस्मिल्ला खाँ के लिए

प्रश्न 12 – बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई के साथ जिस एक मुस्लिम पर्व का नाम जुड़ा हुआ है , वह कौन सा है?
(क) मुहर्रम
(ख) ईद
(ग) बकरीद
(घ) निगाह
उत्तर – (क) मुहर्रम

प्रश्न 13 – राग-रागिनियों को अदा करना या बजाना किस दिन निषेध् होता है?
(क) मुहर्रम की आठवीं तारीख को
(ख) मुहर्रम की दसवीं तारीख को
(ग) मुहर्रम की छठी तारीख को
(घ) मुहर्रम की तीसरी तारीख को
उत्तर – (क) मुहर्रम की आठवीं तारीख को

प्रश्न 14 – अमीरुद्दीन बच्चपन में किस तरह दाद देते थे?
(क) वाह करके
(ख) सिर हिलाकर
(ग) पत्थर पटक कर
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) पत्थर पटक कर

प्रश्न 15 – अमीरुद्दीन की पसंदीदा हीरोइन कौन थी?
(क) सुलोचना
(ख) सुगन्धा
(ग) स्वर्णप्रिया
(घ) सवर्णाक्षी
उत्तर – (क) सुलोचना

प्रश्न 16 – काशी एक ऐसा शहर है जहाँ —————- की एक प्राचीन एवं अद्धभुत परंपरा है?
(क) नृत्य कार्यक्रमों
(ख) चित्रकला कार्यक्रमों
(ग) संगीत कार्यक्रमों
(घ) वाध्ययंत्र कार्यक्रमों
उत्तर – (ग) संगीत कार्यक्रमों

प्रश्न 17 – बिस्मिल्ला खाँ का परिचय किससे है?
(क) उनकी वेश-भूषा
(ख) उनकी गायकी
(ग) उनकी नृत्यकला
(घ) उनकी शहनाई
उत्तर – (घ) उनकी शहनाई

प्रश्न 18 – शहनाई में किनते सुरों का समूह भरा है?
(क) पाँच सुरों का
(ख) सात सुरों का
(ग) नौ सुरों का
(घ) अठारह सुरों का
उत्तर – (ख) सात सुरों का

प्रश्न 19 – बिस्मिल्ला खाँ के शिष्य ने किस बात के लिए टोका?
(क) फटी धोती पहनने के लिए
(ख) शहनाई बजाने के लिए
(ग) संगीत गाने के लिए
(घ) चमकीले कपड़े पहनने के लिए
उत्तर – (क) फटी धोती पहनने के लिए

प्रश्न 20 – काशी की सुबह व् शाम कैसे होती है?
(क) नृत्य से
(ख) शहनाई से
(ग) संगीत से
(घ) भजन से
उत्तर – (ग) संगीत से 

 

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CBSE Class 10 Hindi Kshitij and Kritika Chapter-wise Question Answers

 

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