CBSE Class 10 Hindi (Course A) Chapter-wise Previous Years Questions (2020) with Solution

 

Class 10 Hindi (Course B) Question Paper (2020) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 10th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 10 Hindi (Course A) question paper (2020).

 

 

 Kshitij Bhag 2 

 

Chapter 1 – Surdas Ke Pad (लगभग 25-30 शब्दों में )

 

प्रश्न 1 – ‘हरि हैं राजनीति पढ़ि आए’ – में राजनीति से कृष्ण की किस नीति की ओर गोपियों ने व्यंग्य किया है और क्यों ? (30-40 शब्दों में)

उत्तर – सूरदास के ‘पद’ के अनुसार गोपियों को ऐसा लगता है कि कृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है क्योंकि वे उद्धव के द्वारा सब समाचार प्राप्त कर लेते हैं और उन्हीं को माध्यम बनाकर संदेश वापिस भी भेज देते हैं। गोपियाँ मानती हैं श्री कृष्ण पहले से ही बहुत चतुर चालाक थे, अब मथुरा पहुँचकर शायद उन्होंने राजनीति शास्त्र भी पढ़ लिया है, जिस के कारण वे और अधिक बुद्धिमान हो गए हैं, जो उन्होंने उद्धव के द्वारा जोग (योग) का संदेश भेजा है। क्योंकि अगर श्रीकृष्ण स्वयं आते तो गोपियाँ उन्हें कभी वापिस नहीं जाने देतीं।

 

प्रश्न 2 – गोपियों के मन की व्यथा क्या है ? वह मन में ही क्यों रह गई ? (30-40 शब्दों में)

उत्तर – जब श्री कृष्ण के मथुरा वापस नहीं आने का संदेश गोपियाँ सुनती हैं तो गोपियाँ उद्धव से अपनी पीड़ा बताते हुए कह रही हैं कि हमारे मन की इच्छाएँ हमारे मन में ही रह गईं , क्योंकि हम श्री कृष्ण से यह कह नहीं पाईं कि हम उनसे प्रेम करती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि श्री कृष्ण के गोकुल छोड़ कर चले जाने के उपरांत, उनके मन में स्थित श्री कृष्ण के प्रति प्रेम-भावना मन में ही रह गई है। जब उन्हें श्री कृष्ण का जोग अर्थात् योग-संदेश मिला, जिसमें उन्हें पता चला कि वे अब लौटकर नहीं आएंगे, तो इस संदेश को सुनकर गोपियाँ टूट-सी गईं, जिस कारण उनकी विरह की व्यथा और बढ़ गई।

 

प्रश्न 3 – गोपियों के माध्यम से सूरदास ने निर्गुण भक्ति पर कृष्ण-भक्ति को बेहतर साबित किया है – इस पर टिप्पणी कीजिए । (30-40 शब्दों में)

उत्तर – गोपियों के माध्यम से सूरदास ने निर्गुण भक्ति पर कृष्ण-भक्ति को बेहतर साबित किया है। उनके अनुसार गोपियों का श्री कृष्ण जी के प्रति अनन्य प्रेम है। गोपियों के हृदय में श्री कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम है , जो कि किसी योग – संदेश द्वारा कम होने वाला नहीं है। बल्कि इससे उनका प्रेम और भी दृढ़ हो जाता है। सूरदास ने निर्गुण भक्ति को कड़वी ककड़ी जैसा बताकर कृष्ण-भक्ति को एकनिष्ठ प्रेम में दृढ़ विश्वास प्रकट करने वाला माना है।

 

प्रश्न 4 – ‘धो तुम हो अति बड़भागी’ – में उद्धव को बड़भागी कहने का क्या तात्पर्य है ? गोपियाँ ख़ुद को उद्धव से कैसे अलग मानती हैं ? (30-40 शब्दों में)

उत्तर – गोपियों ने उद्धव को इसलिए बड़भागी कहा है क्योंकि उद्धव श्रीकृष्ण के प्रेम से दूर हैं। वे श्री कृष्ण के सानिध्य में रहते हुए भी श्री कृष्ण के प्रेम का अनुभव नहीं कर सके। न तो वे श्री कृष्ण के हो सके, न श्री कृष्ण को अपना बना सके। क्योंकि जो कोई भी श्री कृष्ण के साथ एक क्षण भी व्यतीत कर लेता है वह कृष्णमय हो जाता है। उन्हें कृष्ण का प्रेम अपने बंधन में न बाँध सका। जबकि गोपियाँ श्री कृष्ण के मोहजाल में ऐसी फस गई हैं जैसे चींटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं। वे खुद को अभागिन अबला नारी समझती हैं, जिस प्रकार चींटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं, ठीक उसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण के प्रेम में उलझ गई हैं, उनके मोहपाश में लिपट गई हैं। वे श्रीकृष्ण के प्रेम से खुद को दूर नहीं रख पा रही है।

 

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Chapter 2 – Ram Lakshman Parshuram Samvad (लगभग 30-40 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – परशुराम के प्रति लक्ष्मण के व्यवहार पर अपने विचार लिखिए। (30-40 शब्दों में)

उत्तर – लक्ष्मण एक परम वीर योद्धा हैं पर परशुराम भी अत्यधिक बलशाली हैं। वीर लोग निडर होते हैं, परन्तु वीरता का अर्थ उग्र होना नहीं है। एक वीर योद्धा हमेशा अन्याय के खिलाफ आवाज उठाता है। परन्तु परशुराम और लक्ष्मण के मध्य वाद-विवाद में परशुराम का अत्यधिक क्रोधित होना तथा लक्ष्मण जी का अत्यधिक उग्र होना, दोनों ही बातें सही नहीं हैं। क्योंकि हर चीज़ की अति बुरी होती है। हमारे विचार से लक्ष्मण जी को क्रोध की सीमा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए था क्योंकि हमारे संस्कारों में हमेशा बड़ों का सम्मान करना सिखाया गया है।

 

प्रश्न 2 – परशुराम विश्वामित्र से लक्ष्मण की शिकायत किन शब्दों में करते हैं ? (30-40 शब्दों में)

उत्तर – लक्ष्मण जी की व्यंग्य भरी बातों को सुनकर परशुराम जी को और क्रोध आ गया और वह विश्वामित्र से बोले कि हे विश्वामित्र ! यह बालक (लक्ष्मण) बहुत कुबुद्धि और कुटिल लगता है और यह काल (मृत्यु) के वश में होकर अपने ही कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवंशी बालक चंद्रमा पर लगे हुए कलंक के समान है।  यह बालक मूर्ख, उदंण्ड, निडर है और इसे भविष्य का भान तक नहीं है। अभी यह क्षणभर में काल का ग्रास हो जाएगा अर्थात् मैं क्षणभर में इसे मार डालूँगा। मैं अभी से यह बात कह रहा हूँ , बाद में मुझे दोष मत दीजिएगा। यदि तुम इस बालक को बचाना चाहते हो तो, इसे मेरे प्रताप, बल और क्रोध के बारे में बता कर अधिक बोलने से मना कर दीजिए।

 

प्रश्न 3 – लक्ष्मण ने अपने कुल की किस विशेषता का उल्लेख किया है ? क्यों ? (30-40 शब्दों में)

उत्तर –  लक्ष्मण अपने कुल की विशेषता का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि उनके कुल की परंपरा है कि वे देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय, इन सभी पर वीरता नहीं दिखाया करते, क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपकीर्ति अथवा अपयश (बदनामी) होता है। इसीलिए आप मारें तो भी, हमें आपके पैर पकड़ने चाहिए।

 

प्रश्न 4 – “अल्पवयस बालक बुज़ुर्गों को छेड़कर आनंदित होते हैं” – ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (30-40 शब्दों में)

उत्तर – “अल्पवयस बालक बुज़ुर्गों को छेड़कर आनंदित होते हैं” – ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ के आधार पर स्पष्ट होता है क्योंकि लक्ष्मण भी परशुराम जी को छेड़ते हुए उनपर व्यग्यात्मक बातों की बौछार करते हैं। परशुराम जी की हर बात को लक्ष्मण जी मजाक में उड़ाते हैं और उनके क्रोध को व्यर्थ बतलाते हैं। बात-बात पर परशुराम जी को कायर कहकर चिढ़ाते हैं।

 

प्रश्न 5 – ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ में संवाद लक्ष्मण और परशुराम के बीच चल रहा था जबकि राम मूकदर्शी थे । राम का मौन उनके स्वभाव की कौन-सी विशेषताओं को उजागर करता है ? (30-40 शब्दों में)

उत्तर – ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ में संवाद लक्ष्मण और परशुराम के बीच चल रहा था जबकि राम मूकदर्शी थे। लक्ष्मण जी के उत्तरों ने, परशुराम जी के क्रोध रूपी अग्नि में आहुति का काम किया। जिससे उनका क्रोध अत्यधिक बढ़ गया। जब श्री राम ने देखा कि परशुराम जी का क्रोध अत्यधिक बढ़ चुका है। अग्नि को शांत करने के लिए जैसे जल की आवश्यकता होती है। वैसे ही क्रोध रूपी अग्नि को शांत करने के लिए मीठे वचनों की आवश्यकता होती है। श्री राम ने भी वही किया। श्री राम ने अपने मीठे वचनों से परशुराम जी का क्रोध शांत करने का प्रयास किया। भाव यह है कि जितने क्रोधित स्वभाव के लक्ष्मण जी थे उसके बिलकुल विपरीत श्री राम का स्वभाव अत्यंत शांत था। इन सभी बातों से श्री राम के कोमल व् विनम्र स्वभाव का पता चलता है।

 

प्रश्न 6 – लक्ष्मण ने ‘कुम्हड़ बतिया’ का दृष्टांत क्यों दिया है ? इसके द्वारा वे मुनि और सभा को क्या संदेश देना चाहते हैं ? (30-40 शब्दों में)

उत्तर – लक्ष्मण ने ‘कुम्हड़बतिया’ का दृष्टांत तब दिया जब परशुराम लक्ष्मण को तुक्छ समझ कर बार-बार उँगली दिखा रहे थे। लक्ष्मण जी ने परशुराम जी को ‘कुम्हड़बतिया’ का उदाहरण तब दिया जब वे उन्हें बार-बार अपने क्रोध, पराक्रम और प्रतिष्ठा के विषय में बताते हुये उन्हें अपने फरसे की तीक्ष्णता से भी अवगत करा रहे थे जिसे बार-बार सुन कर लक्ष्मण जी अपना नियंत्रण खो बैठे और प्र्त्युत्तर में बोले कि बार-बार ये फरसा दिखा कर आप मानो फूँक से पहाड़ उड़ाना चाहते हो तो यहाँ कोई कुम्हड बतिया अर्थात कमजोर नहीं हैं जो आपकी तर्जनी देख कर डर जाए। इस उदाहरण के द्वारा लक्ष्मण जी परशुराम जी को सचेत करना चाहते है कि उनकी बातों से वे थोड़ा सा भी नहीं डरे है, लक्ष्मण जी को अपनी शक्ति और क्षमता पर पूरा विश्वास है और वे परशुराम जी का घमंड तोड़ने का पूरा साहस रखते हैं। वे तो उन्हें एक ऋषि, महात्मा समझ कर छोड़ रहे थे। और रघुकुल वीर ब्राह्मण और ऋषि, महात्माओं के साथ युद्ध नहीं करते।

 

प्रश्न 7 – परशुराम का क्रोध अकारण नहीं था, न ही निरर्थक था – क्यों और कैसे ? स्पष्ट कीजिए । (30-40 शब्दों में)

उत्तर – परशुराम का क्रोध अकारण नहीं था, न ही निरर्थक था क्योंकि श्री राम के द्वारा शिव धनुष को तोड़ देने पर परशुराम जी क्रोधित हो जाते हैं। परशुराम जी इतने क्रोधित हो जाते हैं कि धनुष तोड़ने वाले को अपना शत्रु तक मान लेते हैं। परशुराम जी को इतना अधिक क्रोध करता देख कर अनजाने में ही लक्ष्मण जी उनका उपहास करने लगते हैं। जिस पर परशुराम जी और अधिक क्रोधित हो जाते हैं। लक्ष्मण जी परशुराम जी के क्रोध को बेमतलब का मान रहे थे क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि उस धनुष के साथ परशुराम जी के क्या भाव जुड़े थे।

 

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Chapter 4 – Utsah Aur At Nahi Rahi Hai (लगभग 25-30 शब्दों में )

 

प्रश्न 1 – ‘अट नहीं रही है’ कविता में ‘उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो’ के आलोक में बताइए कि फागुन लोगों के मन को किस तरह प्रभावित करता है? 

उत्तर – फागुन के समय प्रकृति अपने चरम सौंदर्य पर होती है और मस्ती से इठलाती है। फागुन के समय पेड़ हरियाली से भर जाते हैं और उन पर रंग-बिरंगे सुगन्धित फूल उग जाते हैं। इसी कारण जब हवा चलती है, तो फूलों की नशीली ख़ुशबू उसमें घुल जाती है। इस हवा में सारे लोगों पर भी मस्ती छा जाती है, वो काबू में नहीं कर पाते और मस्ती में झूमने लगते हैं।

 

प्रश्न 2 – ‘उत्साह’ कविता में कवि ने बादल के किन रूपों की चर्चा की है ? स्पष्ट करके लिखिए ।

उत्तर – कविता ‘उत्साह’ में कवि ने बादलों के विविध रूपों का सुंदर चित्रण किया है। कहीं कवि ने बादलों को घोर गगन में लहराते और गरजते हुए दिखाया है। तो कहीं बादलों की ललित और काले घुँघराले बालों के रूप में वर्णित किया हैं। कवि ने बादलों को “नवजीवन वाले” भी कहा है, क्योंकि वे तपती धरती को ठंडक और शीतलता प्रदान करने धरती को नया जीवन प्रदान करते हैं। कवि ने बादलों को जीवन के नूतन स्रोत के रूप में भी चित्रित किया है।

 

प्रश्न 3 – प्रकृति की शोभा-श्री फागुन में कैसे अपना रंग-रूप बदलती है ? ‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर लिखिए ।

उत्तर – कवि की आँख फागुन की सुंदरता से हट नहीं रही है, क्योंकि फागुन के महीने में प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फागुन बहुत मतवाला, मस्त और शोभाशाली है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। पेड़ों की डालियाँ पत्तों से भरी हुई हैं , पेड़ों पर फूल आ जाने से पेड़ कहीं हरे और कहीं लाल दिखाई दे रहे हैं , उनको देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने अपने हृदय पर फूलों की माला पहन रखी हो। फूलों की खुशबू भी पूरे वातावरण में फैल गई है। इसलिए कवि की आँखें फागुन की सुन्दरता से मंत्रमुग्ध होकर उससे हटाने से भी नहीं हटती।

 

प्रश्न 4 – ‘उत्साह’ कविता का शीर्षक सार्थक है – सहमति में तर्क लिखिए ।

उत्तर – बादल भयंकर गर्जना के साथ जब बरसते हैं, तो धरती के सभी प्राणियों में एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। लोगों का मन एक बार फिर से नए जोश व उत्साह से भर जाता है। कवि भी बादलों के माध्यम से लोगों में उत्साह का संचार करना चाहते हैं और समाज में एक नई क्रांति लाने के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहते हैं। एक ओर बादलों के गर्जन में उत्साह समाया है, तो दूसरी ओर कवि लोगों में उत्साह का संचार करके क्रांति के लिए तैयार करना चाहते हैं। इसलिए इस कविता का शीर्षक “ उत्साह ” रखा गया है।

 

प्रश्न 5 – ‘उत्साह’ कविता में कवि का कोमल हृदय और क्रांतिकारी रूप दोनों दिखते हैं, यह कैसे कहा जा सकता है ?

उत्तर – ‘उत्साह’ कविता में कवि का कोमल हृदय और क्रांतिकारी रूप दोनों दिखते हैं, क्योंकि कविता में बादल एक तरफ पीड़ित – प्यासे लोगों की इच्छायों को पूरा करने वाला है , तो दूसरी तरफ वही बादल नयी कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस , विप्लव और क्रांति चेतना को संभव करने वाला भी है। कवि जीवन को विस्तृत और संपूर्ण दृष्टि से देखता है। कविता में सुंदर कल्पना और क्रांति – चेतना दोनों हैं। सामाजिक क्रांति या बदलाव में साहित्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है , निराला इसे ‘ नवजीवन ’ और ‘ नूतन कविता ’ के संदर्भों में देखते हैं।

 

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Chapter 5 – Yah Danturit Muskan Aur Fasal (लगभग 30-40 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – ‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में ‘बाँस और बबूल’ किसके प्रतीक हैं ?

उत्तर – यह दंतुरित मुसकान कविता में ‘बाँस और बबूल’ कठोर और निष्ठुर हृदय वाले लोगों का प्रतीक है। परन्तु छोटे से बच्चे के निश्छल चेहरे में वह जादू है कि उसको छू लेने से बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल गिरने लगते हैं। अर्थात बच्चे की मधुर मुस्कराहट को देखकर उनका मन अथवा स्वभाव भी पिघल कर शेफालिका के फूलों की भाँति सरस और सुंदर हो जाता है।

 

प्रश्न 2 – शिशु के धूलि-धूसरित शरीर को देखकर कवि नागार्जुन ने क्या कल्पना की?

उत्तर – कवि जब बच्चे के धूल से सने हुए नन्हें तन को देखता है तो ऐसा लगता है कि मानों कमल के फूल तालाब को छोड़कर कवि की झोंपड़ी में खिल उठते हो। कहने का आशय यह है कि बच्चे के धूल से सने नन्हे से तन को निहारने पर कवि का मन कमल के फूल के समान खिल उठा है अर्थात् प्रसन्न हो गया है।

ऐसा लगता है कि किसी प्राणवान का स्पर्श पाकर ये कठोर चट्टानें पिघलकर जल बन गई होगी। कहने का आशय यह है कि बच्चे की मधुर मुस्कान देख कर पत्थर जैसे कठोर हृदय वाले मनुष्य का मन भी पिघलाकर अति कोमल हो जाता है।

 

प्रश्न 3 – ‘शेफालिका के फूल झरने’ का भाव ‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – कवि को ऐसा लगता है कि उनके उस छोटे से बच्चे के निश्छल चेहरे में वह जादू है कि उसको छू लेने से बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल गिरने लगते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन की विपरीत परिस्थितियों के कारण कवि का मन बाँस और बबूल की भाँति शुष्क और कठोर हो गया था। बच्चे की मधुर मुस्कुराहट को देखकर उसका मन अथवा स्वभाव भी पिघल कर शेफालिका के फूलों की भाँति सरस और सुंदर हो गया है।

 

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Chapter 6 – Sangatkar (लगभग 30-40 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – ‘संगतकार’ कविता में कवि ने आम लोगों से क्या अपेक्षा की है?

उत्तर – कवि संगतकार की उन और अधिक बातों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं जिनके बारे में हम अनजान हैं। कवि बताना चाहते हैं कि संगतकार हर मुश्किल घडी में मुख्य गायक का साथ देता है और उसे हर मुसीबत से बाहर निकालता है। जब कभी मुख्य गायक संगीत शास्त्र से संबंधित विधा का प्रयोग करके ऊंचे स्वर में गाता है तो उसका गला बैठने लगता है। उससे सुर सँभलते नहीं हैं। तब गायक को ऐसा लगने लगता है जैसे कि अब उससे आगे गाया नहीं जाएगा। उसके भीतर निराशा छाने लगती है। उसका मनोबल खत्म होने लगता है। उस समय मुख्य गायक का हौसला बढ़ाने वाला व उसके अंदर उत्साह जगाने वाला संगतकार का मधुर स्वर सुनाई देता हैं। कवि आम लोगों से अपेक्षा करता है कि वे संगतकार के त्याग को समझें।

 

प्रश्न 2 – संगतकार की आवाज़ में हिचक क्यों सुनाई देती है ?

उत्तर – जब भी संगतकार मुख्य गायक के स्वर में अपना स्वर मिलाता है यानि उसके साथ गाना गाता है तो उसकी आवाज में एक संकोच साफ सुनाई देता है। और उसकी हमेशा यही कोशिश रहती है कि उसकी आवाज मुख्य गायक की आवाज से धीमी रहे। अर्थात उसका स्वर भूल कर भी मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा न हो जाए इसका ध्यान वह बहुत अच्छे से रखता है।

 

प्रश्न 3 – ‘संगतकार’ कविता में संगतकार त्याग की मूर्ति है, कैसे?

उत्तर – अपना स्वर ऊँचा कर वह मुख्य गायक के सम्मान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता है। संगतकार जान – बूझकर अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा नहीं होने देते हैं। यह संगतकार द्वारा अपनी प्रतिभा का त्याग है जो योग्यता और सामर्थ्य होने पर भी मुख्य गायक की सफलता में बाधक नहीं बनता है और मानवता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है।

 

प्रश्न 4 – ‘संगतकार’ कविता में मुख्य गायक के संदर्भ में ‘नौसिखिया’ का प्रयोग क्यों हुआ है ? स्पष्ट करके लिखिए ।

उत्तर – संगतकार, सुर से भटके हुए मुख्य गायक को वापस सुर पकड़ने में मदद करता है। उस समय ऐसा लगता है मानो जैसे कि वह संगतकार मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान समेटते हुए उसके साथ आगे बढ़ रहा है। उस समय उस मुख्य गायक को अपना बचपन याद आ जाता है जब वह नया – नया गाना सीखता था या नौसिखिया था। और उसका गुरु उसको सुरों से भटकने न दे कर सही सुरों पर बने रहने में उसकी मदद करता था।

 

प्रश्न 5 – “ ‘संगतकार की मनुष्यता उसका निर्धारित कर्तव्य ही है, न कि कोई महानता” – इससे सहमत या असहमत होते हुए तर्क सहित अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर – संगतकार में योग्यता, प्रतिभा, क्षमता और अवसर होने पर भी वह अपनी आवाज़ को मुख्य गायक की आवाज़ से ऊँचा नहीं उठाता है तथा कभी भी अपनी गायिकी को मुख्य गायक के गायन से बेहतर सिद्ध करने का प्रयास नहीं करता है। इसे संगतकार की मनुष्यता कहा गया है। वह यह मनुष्यता मुख्य गायक को सम्मान देते हुए बनाए रखता है।

 

प्रश्न 6 – ‘संगतकार’ मुख्य गायक को किस प्रकार सँभालता है ? वह गायक को किसकी याद दिलाता है ? 

उत्तर – संगतकार हमेशा मूल स्वरों को ही दोहराता रहता हैं। जब मुख्य गायक गीत गाते हुए सुरों की दुनिया में खो जाता हैं और अंतरे के सुर – तान की बारीकियों में उलझकर बिखरने लगता हैं व मुख्य सुरों को भूल जाता हैं । तब वह संगतकार के गाने को सुनकर वापस मुख्य सुर से जुड़ जाता हैं। अर्थात संगतकार, सुर से भटके हुए मुख्य गायक को वापस सुर पकड़ने में मदद करता है।

 

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Chapter 7 – Netaji ka Chashma (लगभग 30-40 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – ‘पानवाला एक हँसमुख स्वभाव वाला व्यक्ति है, परंतु उसके हृदय में संवेदना भी है ।’ इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए ।

उत्तर – ‘पानवाला एक हँसमुख स्वभाव वाला व्यक्ति है, परंतु उसके हृदय में संवेदना भी है ।’ पान वाला जब भी हालदार साहब से कोई बात करता तो वह हमेशा हँसता रहता था। परन्तु जब कैप्टन चश्मे वाले की मृत्यु का समाचार उसने हालदार साहब को दिया तो उसकी आँखे नम हो गई जो दर्शाता है कि उसके हृदय में संवेदना भी है।

 

प्रश्न 2 – “सरकंडे का चश्मा, चश्मा भर नहीं था बल्कि हालदार साहब के लिए उसके कई अर्थ थे,” उन अर्थों को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – सरकंडे से बने चश्मे को नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आंखों पर देख कर हवलदार साहब का भावुक होना यह दर्शाता है कि देश – भक्ति उम्र की मोहताज नहीं होती। हवलदार साहब को लगा था कि कैप्टन के जाने के बाद शायद ही कोई नेता जी के चश्मे का मूल्य जान पाए लेकिन जब बच्चों ने नेता जी के चश्मे का मूल्य जाना तो हवालदार साहब भावुक हो गए क्योंकि अभी इस पीढ़ी में भी देश भक्ति जिन्दा है और हमें भी अपनी आने वाली पीढ़ी को आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व त्यागने वाले वीरों की गाथाएँ सुनानी चाहिए और उनका सम्मान करना भी सिखाना चाहिए।

 

प्रश्न 3 – हालदार साहब और कैप्टेन के चरित्र की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर – हालदार साहब एक जिज्ञासु और देशभक्त व्यक्ति हैं। हालदार साहब संवेदनशील भी हैं। जब पान वाले ने चश्मे वाले कैप्टन के प्रति उपेक्षा पूर्ण व्यवहार प्रकट किया तब उन्हें यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।
कैप्टन शारीरिक रूप से कमज़ोर था और वह फौज में भी नहीं जा सकता था, परंतु उनके मन में देशभक्ति की भावना थी। कैप्टन एक अच्छा नेतृत्व कर सकता था। क्योंकि उसकी देखा-देखी में छोटे बच्चे नहीं उसका अनुसरण करते हुए देशभक्ति की राह पर चल पड़े थे।

 

प्रश्न 4 – “इतनी-सी बात पर उनकी आँखें भर आईं” – ऐसा विशेष क्या था जिससे हालदार साहब की आँखें नम हो उठी ?

उत्तर – हालदार साहब सोच रहे थे कि कैप्टन के न रहने से नेताजी की मूर्ति चश्माविहीन होगी परंतु जब यह देखा कि मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ है तो उनकी निराशा आशा में बदल गई। उन्होंने समझ लिया कि युवा पीढ़ी में देशप्रेम और देशभक्ति की भावना है जो देश के लिए शुभ संकेत है। यह बात सोचकर वे भावुक हो गए।

 

प्रश्न 5 – हालदार साहब द्वारा ड्राइवर को चौराहे पर न रुकने का निर्देश कब और किस विचार के कारण दिया गया था ?

उत्तर – हालदार साहब द्वारा ड्राइवर को चौराहे पर न रुकने का निर्देश दिया , क्योंकि वे सोचते थे कि कस्बे के बीचों बीच में नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति अवश्य ही विद्यमान होगी , लेकिन उन की आँखों पर चश्मा नहीं होगा। क्योंकि जब मास्टर ने मूर्ति बनाई तब वह चश्मा बनाना भूल गया। और उसकी इस कमी को कैप्टन पूरी करता था लेकिन अब तो कैप्टन भी मर गया। देशभक्त हालदार साहब को नेताजी की चश्माविहीन मूर्ति उदास कर देती थी।

 

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Chapter 8 – Balgobin Bhagat (लगभग 30-40 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – “बालगोबिन भगत गृहस्थ जीवन में भी संन्यासी थे ।” सोदाहरण टिप्पणी कीजिए ।

उत्तर – बालगोबिन भगत बेटा – पतोहू से युक्त परिवार, खेतीबारी और साफ़ – सुथरा मकान रखने वाले गृहस्थ थे, फिर भी उनका आचरण साधुओं जैसा था। वह सदैव खरी – खरी बातें कहते थे। वे झूठ नहीं बोलते थे। वे किसी की वस्तु को बिना पूछे प्रयोग नहीं करते थे। वे खामखाह किसी से झगड़ा नहीं करते थे। वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में रहते थे। वे अपनी उपज को कबीरपंथी मठ पर चढ़ावा के रूप में दे देते थे। वहाँ से जो कुछ प्रसाद रूप में मिलता था उसी में परिवार का निर्वाह करते थे।

 

प्रश्न 2 – ‘बालगोबिन भगत’ पाठ के आधार पर धान की रोपनी के दृश्य का वर्णन कीजिए ।

उत्तर – बालगोबिन भगत का पूरा शरीर कीचड़ में लिपटा हुआ है और वे भी अपने खेत में धान के पौधों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखने का काम कर रहे हैं। उनकी अँगुली एक – एक धान के पौधे को , एक सीध में , खेत में बिठा रही है। उनका गला संगीत के एक – एक शब्द को जुबान पर चढ़ाकर कुछ शब्दों को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर भेज रहा है ! अर्थात बालगोबिन भगत के संगीत के स्वर चारों ओर गूँज रहे हैं। बच्चे खेलते हुए जब बालगोबिन भगत का संगीत सुनते हैं तो वे झूम उठते हैं; खेतों के किनारे पर खड़ी औरतों के होंठ भी काँप उठते हैं, अर्थात वे भी बालगोबिन भगत के स्वरों के साथ गुनगुनाने लगती हैं; हल चलाने वाले लोगों के पैर भी उन स्वरों के ताल से उठने लगते हैं; धान के पौधों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखने का काम करने वालों की अँगुलियाँ भी एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं।

 

प्रश्न 3 – ‘बालगोबिन भगत’ पाठ के आधार पर पुष्टि कीजिए कि भगत सच्चे कबीर पंथी थे ।

उत्तर – बालगोबिन सदैव खरी – खरी बातें कहते थे। वे झूठ नहीं बोलते थे। वे किसी की वस्तु को बिना पूछे प्रयोग नहीं करते थे। वे खामखाह किसी से झगड़ा नहीं करते थे। वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में रहते थे। वे अपनी उपज को कबीरपंथी मठ पर चढ़ावा के रूप में दे देते थे। वहाँ से जो कुछ प्रसाद रूप में मिलता था उसी में परिवार का निर्वाह करते थे।

 

प्रश्न 4 – “भगत की पुत्रवधू और भगत दोनों एक-दूसरे की हित-चिंता में ज़िद्द पर अड़े थे” – पुष्टि कीजिए ।

उत्तर – भगत की पुत्रवधू भी उनकी उतनी ही चिंता करती थी जितनी भगत उसकी करते थे। वह उन्हें इसलिए अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि भगत के इकलौते पुत्र और उसके पति की मृत्यु के बाद भगत अकेले पड़ गए थे। वह वृद्धावस्था में अकेले पड़े भगत की सेवा करना चाहती थी और उनकी सेवा करके अपना जीवन बिताना चाहती थी। परन्तु भगत भी जानते थे कि उनकी पतोहू का अभी पूरा जीवन पड़ा है वह नया घर बसा कर खुश रह सकती है इसलिए उन्होंने उसे उसके भाई के साथ भेज दिया और उसकी दूसरी शादी करवाने का आदेश दिया ताकि वह बाकि का जीवन सुख से जी सके। इस प्रकार कहा जा सकता है कि दुःख की घड़ी में भगत की पुत्रवधू और भगत दोनों एक-दूसरे की हित-चिंता में ज़िद्द पर अड़े थे।

 

प्रश्न 5 – बालगोबिन भगत के गीतों का खेतों में काम करते हुए और आते-जाते नर-नारियों पर क्या प्रभाव पड़ता था?

उत्तर – बालगोबिन भगत के संगीत के स्वर चारों ओर गूँज रहे हैं। बच्चे खेलते हुए जब बालगोबिन भगत का संगीत सुनते हैं तो वे झूम उठते हैं; खेतों के किनारे पर खड़ी औरतों के होंठ भी काँप उठते हैं, अर्थात वे भी बालगोबिन भगत के स्वरों के साथ गुनगुनाने लगती हैं ; हल चलाने वाले लोगों के पैर भी उन स्वरों के ताल से उठने लगते हैं ; धान के पौधों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखने का काम करने वालों की अँगुलियाँ भी एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं।

 

प्रश्न 6 – गर्मियों की उमस भरी शाम को भी बालगोबिन भगत किस प्रकार शीतल और मनमोहक बना देते थे ?

उत्तर – गर्मियों की उमसभरी शाम में बालगोबिन भगत अपने घर के आँगन में आसन जमा बैठते। गाँव के उनके कुछ प्रेमी भी जुट जाते। खँजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। एक पद बालगोबिन भगत कह जाते, उनकी प्रेमी-मंडली उसे दुहराती, तिहराती। धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता-एक निश्चित ताल, एक निश्चित गति से। धीरे-धीरे मन तन पर हावी हो जाता। होते-होते, एक क्षण ऐसा आता कि बीच में खँजड़ी लिए बालगोबिन भगत नाच उठते थे और उनके साथ ही सबके तन और मन नृत्यशील हो उठते थे। सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत हो जाता था।

 

प्रश्न 7 – “ ‘बालगोबिन भगत’ अपनी सब चीज़ें साहब की मानते थे”, उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – “ ‘बालगोबिन भगत’ अपनी सब चीज़ें साहब की मानते थे”, उदाहरण के लिए – बालगोबिन भगत सदैव खरी – खरी बातें कहते थे। वे झूठ नहीं बोलते थे। वे किसी की वस्तु को बिना पूछे प्रयोग नहीं करते थे। वे खामखाह किसी से झगड़ा नहीं करते थे। वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में रहते थे। वे अपनी उपज को कबीरपंथी मठ पर चढ़ावा के रूप में दे देते थे। वहाँ से जो कुछ प्रसाद रूप में मिलता था उसी में परिवार का निर्वाह करते थे।

 

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Chapter 9 – Lakhnavi Andaz (लगभग 30-40 शब्दों में )

 

प्रश्न 1 – ‘लखनवी अंदाज़’ रचना में नवाब साहब की सनक को आप कहाँ तक उचित ठहराएँगे? क्यों ?

उत्तर – ‘लखनवी अंदाज’ रचना में नवाब साहब की सनक को काफी हद तक सकारात्मक कहा जा सकता है। आप सनक को किस रूप से लेते हैं यह जरूरी है क्योंकि सनक अंदाज की हो या बलिदान की वह सकारात्मक और नकारात्मक हमारी सोच पर निर्भर करती है। देशभक्ति रखने वाला देश भक्त, संत, महात्माओं की भक्ति और परोपकार की सनक महापुरुषों की नव निर्माण की सनक सकारात्मक है, तो नवाब साहब की सनक भी सकारात्मक है, अर्थात‌ उचित है। क्योंकि वे भी अपने नवाबी अंदाज को बरकरार रखना चाह रहे थे।

 

प्रश्न 2 – नवाब साहब द्वारा लेखक से बातचीत की उत्सुकता न दिखाने पर लेखक ने क्या किया ?

उत्तर – जब लेखक डिब्बे में आया तब नवाब साहब ने लेखक से बातचीत की उत्सुकता नहीं दिखायी। लेखक ने नवाब साहब की इस उपेक्षा का बदला उपेक्षा से ही दिया। उसने भी नवाब साहब से बातचीत की उत्सुकता नहीं दिखाई और नवाब साहब के सामने बैठकर भी उनसे आँखें फेर ली। ऐसा लेखक ने इसलिए किया क्योंकि यह लेखक के स्वाभिमान का प्रश्न था, जिसे वह बनाए रखना चाहता था।

 

प्रश्न 3 – नवाब साहब किस वर्ग के प्रतीक हैं ? उनके प्रति आपकी राय क्या है ? ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर – ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में नवाब साहब सामंती वर्ग के प्रतीक हैं। नवाब साहब के माध्यम से लेखक ने समाज के उस सामंती वर्ग पर व्यंग्य किया है, जो वास्तविकता से दूर एक बनावटी जीवन जीने का आदी है। उनके प्रति हमारी राय केवल इतनी है कि बनावटी दुनिया से हट कर उन्हें वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए। आज भी समाज में ऐसी दिखावटी संस्कृति दिखाई देती हैं जिनके अधीन लोग वास्तविकता से दूर केवल दिखावे के लिए अपने सनकी व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं।

 

प्रश्न 4 – ‘लखनवी अंदाज़’ के लेखक ने नवाब साहब के सामने बैठ आँखें क्‍यों चुरा लीं?

उत्तर – ‘लखनवी अंदाज़’ के लेखक ने नवाब साहब के सामने बैठ आँखें चुरा लीं क्योंकि जब लेखक डिब्बे में आया तब नवाब साहब ने लेखक से बातचीत की उत्सुकता नहीं दिखायी। लेखक ने नवाब साहब की इस उपेक्षा का बदला उपेक्षा से ही दिया। उसने भी नवाब साहब से बातचीत की उत्सुकता नहीं दिखाई और नवाब साहब के सामने बैठकर भी उनसे आँखें फेर ली। कहा जा सकता है कि लेखक ने अपने आत्मसम्मान में आँखें चुरा लीं थी।

 

प्रश्न 5 – नवाब साहब की नवाबी प्रकृति को स्पष्ट करते हुए लिखिए कि उन्होंने खीरा खाना उचित क्यों नहीं समझा।

उत्तर – नवाब लोग अपनी नवाबी को कायम रखने के लिए दिखावे का सहारे लेते हैं। जब लेखक अचानक नवाब साहब वाले डब्बे में आया तो उस समय नवाब साहब खीरे खाने की तैयारी में थे। परन्तु लेखक जैसे आम आदमी के समक्ष खीरे जैसी तुच्छ चीज खाना नवाब साहब को अपनी हैसियत के विपरीत लगा। इसी वजह से उन्होंने खीरा खाना उचित नहीं समझा।

 

प्रश्न 6 – “पतनशील सामंती समाज झूठी शान के लिए जीता है” – ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – “पतनशील सामंती समाज झूठी शान के लिए जीता है” – ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर यह बात स्पष्ट की गई है। क्योंकि जब लेखक अचानक नवाब साहब वाले डब्बे में आया तो उस समय नवाब साहब खीरे खाने की तैयारी में थे। परन्तु लेखक जैसे आम आदमी के समक्ष खीरे जैसी तुच्छ चीज खाना नवाब साहब को अपनी हैसियत के विपरीत लगा। जिस कारण खीरा पसंद होते हुए भी नवाब साहब ने खीरा खाने की पूरी प्रक्रिया की और खीरा खाने के स्थान पर फेंक दिया।

 

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Chapter 10 – Ek Kahani Yeh Bhi (लगभग 30-40 शब्दों में )

 

प्रश्न 1 – ‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर लेखिका के पिताजी के सकारात्मक और नकारात्मक गुणों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर – अजमेर से पहले उनके पिता जी इंदौर में थे जहाँ उनका बहुत अधिक सम्मान और इज़्ज़त की जाती थी , उनकी बहुत प्रतिष्ठा थी और उनका नाम था। उनके पिता जी केवल शिक्षा के उपदेश ही नहीं देते थे , बल्कि उन दिनों वे आठ – आठ, दस – दस विद्यार्थियों को अपने घर रखकर पढ़ाया करते थे, और उन विद्यार्थियों में से कई तो बाद में ऊँचे – ऊँचे पदों पर पहुँचे। लेखिका अपने पिता जी के दो व्यक्तित्व हमें बताती हैं। वे कहती हैं कि एक ओर तो उनके पिता जी बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे तो दूसरी ओर बेहद क्रोधी और स्वयं को दूसरों से बढ़कर समझने वाले अर्थात घमंडी व्यक्ति थे।

 

प्रश्न 2 – मन्नू भंडारी के पिता ने अपनी आर्थिक विवशताएँ कभी बच्चों को क्यों नहीं बताईं होंगी ?

उत्तर – मन्नू भंडारी के पिता ने अपनी आर्थिक विवशताएँ कभी बच्चों को नहीं बताईं क्योंकि लेखिका के पिता ने शुरूआती दिनों में बहुत वैभवशाली दिन देखे थे। वे बहुत अहंकारी थे। बिगड़ती अर्थिक स्थिति के कारण उनका अहं और बढ़ गया था, शायद इसीलिए उन्होंने अपनी अर्थिक विवशताएँ कभी बच्चों को भी नहीं बताईं।

 

प्रश्न 3 – मन्नू भंडारी की ऐसी कौन-सी खुशी थी जो प्रथम स्वतंत्रता दिवस की खुशी में समाकर रह गई ?

उत्तर – सन् 1947 के मई महीने में शीला अग्रवाल जी को कॉलिज वालों ने लड़कियों को भड़काने और कॉलिज का अनुशासन बिगाड़ने के आरोप में नोटिस थमा दिया। इस बात को लेकर कोई हुड़दंग न मचे , इसलिए जुलाई में थर्ड इयर की क्लासेज़ बंद करके लेखिका और उनकी साथी छात्राओं का कॉलेज में प्रवेश करना बंद कर दिया। परन्तु लेखिका और उनकी साथियों ने हुड़दंग तो बाहर रहकर भी इतना मचाया कि कॉलिज वालों को अगस्त में आखिर थर्ड इयर खोलना पड़ा। लेखिका और बाकी साथियों को जीत की खुशी तो थी , पर उनके सामने इससे भी खड़ी बहुत – बहुत बड़ी खुशी थी जिसके सामने यह खुशी कम पड़ गई और वह ख़ुशी थी शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि 15 अगस्त 1947 अर्थात आज़ादी की खुशी।

 

प्रश्न 4 – “विद्यार्थी जीवन में योग्य शिक्षक सही दिशा दिखाने वाले मार्गदर्शक होते हैं” – ‘एक कहानी यह भी’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – “विद्यार्थी जीवन में योग्य शिक्षक सही दिशा दिखाने वाले मार्गदर्शक होते हैं” – ‘एक कहानी यह भी’ के आधार पर यह कथन स्पष्ट होता है। लेखिका को भी उनके विद्यार्थी जीवन में शीला अग्रवाल जैसी अच्छी शिक्षिका मिली जिन्होंने लेखिका को न केवल साहित्य में आगे बढ़ने में सहायता की बल्कि उन्होंने लेखिका का स्वतंत्रता संग्राम में भी आगे रहने में मार्गदर्शन किया। उनके मार्गदर्शन के द्वारा ही लेखिका में आत्मविश्वास जागा और उन्होंने कई सफलताएँ प्राप्त की।

 

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Chapter 11 – Naubatkhane Mein Ibadat (30-40 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – ‘नौबतख़ाने में इबादत’ के आलोक में लिखिए कि समय के साथ काशी की संस्कृति किस प्रकार बदल गई।

उत्तर – काशी एक ऐसी जगह है जो सचमुच किसी को भी हैरान कर सकती है – पक्का महाल से जैसे मलाई बरफ गायब हो गया , संगीत , साहित्य और अदब की बहुत सारी परंपराएँ भी गायब हो गईं। अर्थात बहुत सी ऐसी चीज़े हैं जो प्राचीन काशी से आते – आते गायब हो गई हैं और एक सच्चे सुर के योगी अथवा तपस्वी और सामाजिक की भाँति बिस्मिल्ला खाँ साहब को इन सबकी बहुत कमी खलती है।

 

प्रश्न 2 – बिस्मिल्ला खाँ जीवनभर ईश्वर से क्या माँगते रहे और क्यों ? इससे उनकी किस विशेषता का पता चलता है?

उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ ने अपनी पूरी जिंदगी में ईश्वर से अपने संगीत की समृद्धि के अलावा कुछ नहीं माँगा। वे हमेशा नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते थे कि मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह गुण व् योग्यता पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह लगातार आँसू निकल आएँ। बिस्मिल्ला खाँ को यह भरोसा है कि कभी न कभी ईश्वर उन पर यूँ ही दयालु व् दयावान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर बिस्मिल्ला खाँ की ओर उछालेगा, और फिर कहेगा कि ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी इच्छा को पूरी। इससे बिस्मिल्ला खाँ के बारे में पता चलता है कि उन्हें अपनी शहनाई बजाने में किसी प्रकार का घमंड नहीं था बल्कि वे तो सारा दिन रियास करते रहते थे। वे एक सच्चे संगीतज्ञ थे।

 

प्रश्न 3 – बिस्मिल्ला खाँ की तुलना कस्तूरी मृग से क्यों की गई है?

उत्तर – दोनों के गुण समान होने के कारण बिस्मिल्ला खाँ की तुलना कस्तूरी मृग से की गई है। जिस प्रकार कस्तूरी अपनी खुशबू में पागल रहता है, उसी प्रकार बिस्मिल्ला खाँ भी अपने संगीत के प्रति पागल थे। जिस प्रकार कस्तूरी की खुशबू चारों ओर फैलती है, उसी प्रकार बिस्मिल्ला खाँ के संगीत की महक चारों ओर फैल गई और यह महक आजतक हमारे चारों ओर फैली हुई है।

 

प्रश्न 4 – बिस्मिल्ला खाँ शहनाई का घंटों रियाज़ करते थे । इससे विद्यार्थियों को क्या सीख ग्रहण करनी चाहिए और क्यों ?

उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ शहनाई का घंटों रियाज़ करते थे। इससे विद्यार्थियों को सीख ग्रहण करनी चाहिए क्योंकि ऐसा नहीं था कि बिस्मिल्ला खाँ केवल शुरू में शहनाई सीखते हुए शहनाई का घंटों रियाज़ करते थे, बल्कि वे तो अस्सी वर्ष के होने पर भी, यहाँ तक की भारत रत्न मिलने के बाद भी शहनाई का घंटों रियाज़ करते थे। इससे विद्यार्थियों को सीख ग्रहण करनी चाहिए कि किसी भी कार्य में निपुण होने का अर्थ यह नहीं है कि आप उसका रियास करना छोड़ दें। अपने कार्य से प्रेम करना व् सम्मान करना ही सबसे बड़ी सीख है।

 

प्रश्न 5 – बिस्मिल्ला खाँ के उदाहरण से यह स्पष्ट कीजिए कि अपने मज़हब से सच्चा प्यार करने वाला दूसरे का भी सम्मान करता है ।

उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ जाति से मुसलमान थे और धर्म की दृष्टि से इस्लाम धर्म को भजने वाले तथा पाँच वक्त नमाज़ पढ़ने वाले मुसलमान थे। मुहर्रम से उनका विशिष्ट जुड़ाव था। धर्म एवं जातिभेद उनके मन में दूर-दूर तक न था। वे बिना किसी भेदभाव के हिंदू एवं मुसलमान दोनों के उत्सवों में मंगल ध्वनि बजाते थे। उनके मन में बालाजी के प्रति विशेष श्रद्धा थी। वे काशी से बाहर होने पर भी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते और शहनाई बजाते थे। इस प्रकार वह आपसी भाईचारे के साथ देशवासियों को एक साथ मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा देते थे। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अपने मज़हब से सच्चा प्यार करने वाला दूसरे का भी सम्मान करता है ।

 

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Kritika Bhag 2 

 

Chapter 1 – Mata Ka Aanchal ( लगभग 50-60 शब्दों में )

 

प्रश्न 1 -‘माता का आँचल’ किसी और युग की कोई कहानी प्रतीत होती है – अपने वर्तमान से उसकी तुलना करते हुए इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी राय लिखिए।

उत्तर – माता का आँचल किसी और युग की कोई कहानी प्रतीत होती है। ऐसा लगता है जैसे यह कहानी हमारे ही बचपन की है। परन्तु जब हम इस कहानी की तुलना अपने वर्तमान से करते हैं तो यह कहानी एक युग पीछे की ही प्रतीत होती है।

पक्ष – इस कहानी को पढ़ कर हम सीख ले सकते हैं कि कैसे बच्चों के साथ समय बिता कर हम उनकी अच्छी परवरिश कर सकते हैं। वर्तमान में बच्चों को सही सीख की आवश्यकता है क्योंकि आज के बच्चे केवल फ़ोन, टीवी इंटरनेट आदि पर ही लगे रहते हैं। लोगों के साथ उठने-बैठने व् प्रकृति के साथ खेलने की उनमें कमी होती जा रही है। इससे उनके संर्वांगीण विकास में भी बाधा आ रही है।

विपक्ष – आज के आधुनिक व् खर्चीले समय में इस कहानी की तरह व्यवहार करना संभव नहीं है। यदि माता-पिता बच्चों के आगे-पीछे घूमते रहेंगे तो वे बच्चों के मुताबिक़ सुख-सुविधाओं को उपलब्ध नहीं करवा पाएंगे।

 

प्रश्न 2 – ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर बाल-मनोविज्ञान पर टिप्पणी कीजिए ।

उत्तर – ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर यदि बाल-मनोविज्ञान की बात की जाए तो बालक का जुड़ाव माता से अधिक होता है। माता से बच्चे का ममत्व का रिश्ता होता है। बालक चाहे अपने पिता से कितना प्रेम करता हो या पिता अपने बच्चे को कितना भी प्रेम देता हो पर जो आत्मीय सुख माँ के आँचल में प्राप्त होता है वह कभी पिता से प्राप्त नहीं होता।​ विपत्ति आने पर बच्चा पिता को नहीं बल्कि माँ के आँचल को ही ढूंढता है।

 

प्रश्न 3 – ‘माता का आँचल’ पाठ के लेखक के बचपन की स्मृतियों से अपने बचपन की यादों की तुलना करते हुए लिखिए कि आपका बचपन भी आज कितना बदल गया है।

उत्तर – ‘माता का आँचल’ पाठ के लेखक के बचपन की स्मृतियों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि हमारा बचपन आज बहुत बदल गया है। लेखक जहाँ अपने मित्रों के साथ मिट्टी में स्वच्छंदता से खेलता था, जिस तरह उनके पिता उनके हर खेल में शामिल होते थे। आज न तो हम मिट्टी में खेल सकते हैं और न ही हमारे माता – पिता के पास इतना समय होता है कि वे हमारे हर खेल में अपना समय दे सकें। पहले के खेल प्रकृति की गोद में खेले जाते थे परन्तु आज सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए घर के अंदर ही मनोरंजन के साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं।

 

प्रश्न 4 – ‘माता का आँचल’ पाठ में ग्रामीण जीवन की झाँकी है – सोदाहरण स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – ‘माता का आँचल’ पाठ में ग्रामीण जीवन की झाँकी है। कहीं बच्चों का स्वछंदता से खेलना व् कहीं पिता का पुत्र को कंधे पर बिठा कर मच्छलियों को खाना खिलाने ले जाना और कहीं आम की फसल के दौरान आँधी चलने से गिरे हुए आमों को बच्चे द्वारा उठाने के लिया भागना। ये सारी चीज़ें गाँव में ही हो सकती हैं।

 

प्रश्न 5 – ‘माता का आँचल’ पाठ में वर्णित खेलों से आज के खेल कितने अलग हैं, इसका तुलनात्मक वर्णन कीजिए।

उत्तर – भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री से हमारे खेल और खेल सामग्रियों में बहुत अधिक अंतर आ गया है। भोलानाथ के समय में बच्चे आँगन व् खेत में पड़ी हुई किसी भी वस्तु को उठा कर उसे ही खेल का आधार बना लिया करते थे। वे खेत की मिट्टी, पत्थर, लकड़ी ,पेड़ों के पत्तों व् घर के टूटे-फूटे सामान से ही खेलते व् खुश हो जाते थे। पहले लोगों में भी दूर पड़ोस तक आत्मीय संबंध थे, जिससे बच्चों को दूर तक खेलने की स्वच्छंदता थी। खेल की सामग्रियाँ बच्चे खुद से तैयार करते थे।

परन्तु आज भोलानाथ के समय से बिल्कुल भिन्न खेल और खेल सामग्री हैं और सबसे महत्वपूर्ण बच्चों की सुरक्षा हर समय अभिभावकों की चिंता का विषय है। आज खेल सामग्री का निर्माण बच्चे स्वयं नहीं करते बल्कि खिलौनों को बाज़ार से खरीद कर लाते है। बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए खेलने की समय-सीमा भी तय कर दी जाती है। अतः स्वच्छंदता नहीं होती है। अब की पीढ़ी खेलने के लिए वीडियो गेम, क्रिकेट, वॉलीबॉल, फुटबॉल, बेसबॉल जैसी आदि चीजों से खेलते हैं। ऐसा लगता है जैसे आज के बच्चों का धूल-मिट्टी से कोई सम्बन्ध ही नहीं रहा है।

 

प्रश्न 6 – “बच्चा चाहे किसी के साथ कितना भी घुल-मिलकर रहे पर भय और दुख की घड़ी में माँ की गोद में ही सुरक्षित महसूस करता है ।” ‘माता का आँचल’ पाठ के संदर्भ में इस पर टिप्पणी कीजिए ।

उत्तर – बच्चे के पिता बच्चे के द्वारा खेले जाने वाले प्रत्येक खेल में शामिल होने का प्रयास करते थे। वे प्रयास करते थे कि किसी-न-किसी प्रकार अधिकांश समय वे अपने बच्चे के साथ रहे। अतः यह स्वाभाविक था कि बच्चे को अपने पिता से अधिक लगाव था। उसके पिता उसके संग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते थे। भोलानाथ अपने पिता से अपार स्नेह करता था पर जब उस पर विपदा आई तो उसे जो शांति व प्रेम की छाया अपनी माँ की गोद में जाकर मिली वह शायद उसे पिता से प्राप्त नहीं हो पाती। क्योंकि एक पिता चाहे अपनी संतान से कितना भी प्रेम करता हो पर जो आत्मीय सुख माँ की छाया अथवा गोद में प्राप्त होता है वह पिता से प्राप्त नहीं होता। माँ के आँचल में बच्चा स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। यही कारण था कि प्रस्तुत पाठ में बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव होने पर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है।

 

प्रश्न 7 – ‘माता का आँचल’ पाठ के शीर्षक की सार्थकता इस पाठ की किस घटना में निहित है ?

उत्तर – इस पाठ के लिए ‘माँ का आँचल’ शीर्षक उपयुक्त है। क्योंकि इस पाठ में माँ के आँचल की महत्वता को दर्शाने का प्रयास किया गया है। पाठ में भले ही लेखक के पिता का लेखक के प्रति असीम प्रेम व् सजगता दिखाई गई है किन्तु भय व् डर की स्थिति में लेखक पिता के नहीं बल्कि माँ के आँचल में सुरक्षा पाता है। सामान्य तौर पर भी देखा जाता है कि पिता भले ही अपने बच्चे को हर मुसीबत से बचाता हो उसके साथ हर खेल में उसका हिस्सा बनता हो परन्तु एक माँ अपने बच्चे के दर्द में उससे भी अधिक दर्द महसूस करती है। वह अपने बच्चे को सांत्वना देने के लिए सारे काम छोड़ कर केवल बच्चे का ही ध्यान रखने लगती है। वह अपनी सुध-बुध खो बैठती है। माँ का यही व्यवहार बच्चे को पिता से अधिक आत्मीय सुख व् प्रेम का अनुभव कराता है।

 

प्रश्न 8 – भोलानाथ संकट के समय में अपने पिता के पास न जाकर माता के पास क्यों जाता है ? ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – भोलानाथ संकट के समय में अपने पिता के पास न जाकर माता के पास इसलिए जाता है क्योंकि एक पिता चाहे अपनी संतान से कितना भी प्रेम करता हो पर जो आत्मीय सुख माँ की छाया अथवा गोद में प्राप्त होता है वह पिता से प्राप्त नहीं होता। माँ के आँचल में बच्चा स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। यही कारण था कि ‘माता का आँचल’ पाठ में बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव होने पर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है।

 

प्रश्न 9 – ‘बच्चे रोना-धोना, पीड़ा, आपसी झगड़े ज्यादा देर तक अपने साथ नहीं रख सकते हैं।’ ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर इस कथन को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘बच्चे रोना-धोना, पीड़ा, आपसी झगड़े ज्यादा देर तक अपने साथ नहीं रख सकते हैं’ ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर यह कथन स्पष्ट होता है। उदाहरण के लिए जब गुरू जी द्वारा गुस्सा करने व् पिटाई करने पर भोलानाथ अपने पिता की गोद में रोने-बिलखने लगता है परन्तु रस्ते में अपने मित्रों को मजा करते देख वह स्वयं को रोक नहीं पाता व् ज़िद्द करके उनके साथ खेलने चला जाता है। वह अपनी मार की पीड़ा खेल की क्रीड़ा के आगे भूल जाता है। इसका कारण यह है कि बच्चे अपनी स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रुचि रखते है। उनके साथ खेलना मस्ती करना उन्हें अच्छा लगता है।

 

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Chapter 2 – Saana Saana Hath Jodi ( लगभग 50-60 शब्दों में )

 

प्रश्न 1 – पहाड़ी लोगों का जीवन मैदानी जीवन से अधिक संघर्षपूर्ण होता है । ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – पहाड़ी लोगों का जीवन मैदानी जीवन से अधिक संघर्षपूर्ण होता है । ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर यह स्पष्ट किया गया है। प्राकृतिक सौंदर्य में डूबी लेखिका ने देखा कि प्रकृति के अद्वितीय सौंदर्य से बिलकुल अलग कुछ पहाड़ी औरतें पत्थरों पर बैठीं पत्थर तोड़ रही थीं। गुँथे आटे के समान कोमल शरीर और हाथों में कुदाल और हथौड़े। कई औरतों की पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे हुए थे। कुछ औरतें कुदाल को अपनी पूरी ताकत के साथ ज़मीन पर मार रही थीं। इतने सुंदर स्वर्ग के समान सौंदर्य, नदी, फूलों, वादियों और झरनों के बीच भूख, मौत, दैन्य और जिन्दा रहने की यह जंग देखकर लेखिका आश्चर्यचकित थी। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि पहाड़ी लोगों का जीवन मैदानी जीवन से अधिक संघर्षपूर्ण होता है ।

 

प्रश्न 2 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर लायुँग की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन कीजिए और यह भी बताइए कि यह सुंदरता कैसे बची हुई है ।

उत्तर – यूमथांग पहुँचने के लिए लेखिका को रात भर लायुंग में डेरा डालना था। आसमान को छूने वाले पहाड़ों के नीचे समतल जगह में साँस लेती एक छोटी-सी शांत बस्ती थी – लायुंग। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सारी दौड़-धूप से दूर जिंदगी जहाँ निश्चिन्त होकर सो रही थी। लेखिका और उनके साथी लायुंग में ही ठहरे थे। तिस्ता नदी के किनारे पर बसे लकड़ी के एक छोटे-से घर में लेखिका और उनके साथी ठहरे हुए थे। लेखिका मुँह-हाथ धोकर तुरंत ही तिस्ता नदी के किनारे बिखरे पत्थरों पर बैठ गई थी। उसके सामने बहुत ऊपर से बहता झरना नीचे कल-कल बहती तिस्ता नदी में मिल रहा था। धीमी, हलकी हवा बह रही थी। पेड़-पौधे झूम रहे थे। चाँद को गहरे बादलों की परत ने ढक रखा था। बाहर से पक्षी और लोग अपने घरों को लौट रहे थे। वातावरण में अद्भुत शांति फैली हुई थी। मंदिर की घंटियों की ध्वनि ऐसी लग रही थी जैसे घुँघरुओं की रुनझुनाहट हो रही हो। ऐसा मनमोहक दृश्य देखकर लेखिका की आँखें स्वतः ही भर आईं थी। लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे उनके अंदर ज्ञान का नन्हा-सा बोधिसत्व उगने लगा हो। वहाँ लेखिका को सुख शांति और सुकून मिल रहा था।

 

प्रश्न 3 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ में प्रदूषण के कारण पहाड़ों पर आए किन परिवर्तनों की बात की गई है ? पहाड़ पर यात्रा के दौरान हम प्रदूषण न फैलाने में कैसे योगदान दे सकते हैं ?

उत्तर – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ में प्रदूषण के कारण पहाड़ों पर आए अनेक परिवर्तनों की बात की गई है। जैसे – लेखिका को उम्मीद थी कि उसे लायुंग में बर्फ देखने को मिल जाएगी, लेकिन एक सिक्कमी युवक ने बताया कि प्रदूषण के कारण स्नोफॉल कम हो गया है; अतः उन्हें 500 मीटर ऊपर कटाओ’ में ही बर्फ देखने को मिल सकेगी। प्रदूषण के कारण पर्यावरण में अनेक परिवर्तन आ रहे हैं। स्नोफॉल की कमी के कारण नदियों में जल-प्रवाह की मात्रा भी दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। परिणामस्वरूप पीने योग्य जल में भी कमी दर्ज की गई है। प्रदूषण के कारण ही वायु, भूमि भी प्रदूषित हो रही है।

पहाड़ पर यात्रा के दौरान हम प्रदूषण न फैलाने में अपना योगदान दे सकते हैं जैसे – हम अपने साथ अगर कुछ खाने का सामान लाए हैं तो हमें उससे फैलने वाला कचरा अपने साथ वापिस लाना चाहिए। या वही जलाना या दफनाना चाहिए। 

 

प्रश्न 4 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ की लेखिका को पहाड़ के सौंदर्य के किन दृश्यों ने चौंका दिया ? उन दृश्यों से उन्हें और क्या-क्या याद आने लगा ?

उत्तर – सफ़र में लेखिका की आँखों और आत्मा को सुख देने वाले अनेक नज़ारे दिखे। कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े, तो कहीं हलका पीलापन लिए, तो कहीं पलस्तर उखड़ी दीवार की तरह पथरीला और देखते ही देखते चारों ओर दिखने वाले मनमोहक दृश्य ऐसे छू-मंतर हो गए जैसे किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो। सब पर बादलों की एक मोटी चादर छा गई। सब जगह केवल बादल ही बादल। उन पर्वत, झरने, फूलों, घाटियों और वादियों के दुर्लभ नजारे देख कर लग रहा था जैसे वे अपने आप को समर्पित किए हुए हो। वहीं पर कहीं श्लोगन लिखा था ‘थिंक ग्रीन।’ लेखिका को सोच कर आश्चर्य हो रहा था कि पलभर में ब्रह्मांड में कितना कुछ घटित हो रहा था। हर पल बहने वाले झरने, नीचे वेग से बहती तिस्ता नदी। सामने उठती धुंध। ऊपर मँडराते आवारा बादल। धीरे-धीरे हवा में हिलोरे लेते प्रियुता और रूडोडेंड्रो के फूल। सब अपनी-अपनी लय तान और प्रवाह में बहते हुए। लेखिका को पहली बार अहसास हुआ कि जीवन का आनंद इसी हमेशा चलते रहने वाले सौंदर्य में है।

 

प्रश्न 5 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ में बाह्य जगत की यात्रा के साथ-साथ आंतरिक यात्रा का चित्र भी प्रस्तुत किया गया है, कैसे ? विवरण सहित लिखिए ।

उत्तर – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ में बाह्य जगत की यात्रा के साथ-साथ आंतरिक यात्रा का चित्र भी प्रस्तुत किया गया है। क्योंकि बाह्य जगत की यात्रा के साथ-साथ लेखिका उन विशालकाय पर्वतों के बीच और घाटियों के ऊपर बने तंग कच्चे-पक्के रास्तों से गुज़रते हुए महसूस कर करि थी जैसे वे किसी घनी हरियाली वाली गुफा के बीच हिलते-ढुलते निकल रहे हों। इस बिखरी हुई बेहद सुंदरता का मन पर यह प्रभाव पड़ा कि सभी घूमने आए हुए यात्री झूम-झूमकर गाना गाने लगे-“सुहाना सफर और ये मौसम हँसी…।” परन्तु लेखिका खामोश थी। वह किसी ऋषि की तरह शांत बैठी हुई थी। इसका कारण यह था कि लेखिका अपने चारों और की प्राकृतिक सुंदरता को अपने अंदर समाना चाहती थी।

 

प्रश्न 6 – भारत का स्विट्जरलैंड किसे कहते हैं और क्यों ? ‘साना-साना हाथ जोड़ि….’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर – लायुंग में लेखिका बर्फ देखने आई थी लेकिन प्रदूषण के कारण वहाँ बर्फबारी बहुत कम होती है। लेखिका को बर्फ देखने के लिए कटाओ जाने का सुझाव दिया गया। कटाओ को भारत का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। कटाओ में प्राकृतिक सौंदर्य अभी भी पूरी तरह से बरकरार था क्योंकि यह पर्यटक स्थल के रूप में अभी उतना विकसित नहीं हुआ था। कटाओ में लेखिका को बर्फ से ढके पहाड़ चांदी की तरह लग रहे थे। जिन्हें देखकर लेखिका बहुत ही आनंदित महसूस कर रही थी। जहाँ एक ओर कटाओ में लोग बर्फ के साथ फोटो खिंचवा रहे थे। वहीं दूसरी ओर लेखिका तो इस नजारे को अपनी आंखों में भर लेना चाहती थी।

 

प्रश्न 7 – ‘सेवन सिस्टर्स वाटर फॉल’ को देख लेखिका ने अपनी भावनाओं को कैसे अभिव्यक्त किया है ? ‘साना-साना हाथ जोड़ि…’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर – ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ को देख लेखिका ने अपनी भावनाओं को अद्भुत तरीके से अभिव्यक्त किया है । उस पानी को अपनी अंजनी में भर कर लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे उसने संकल्प कर अपने अंदर की सारी बुराइयों व दुष्ट वासनायों को इस झरने के निर्मल धारा में बहा दिया हो। यह सब लेखिका के मन व आत्मा को शांति देने वाला था। लेखिका को पर्वत , झरने , घाटियों , वादियों के ऐसे दुर्लभ नजारे पहली बार देखने को मिल रहे थे और उन्हें सभी कुछ बेहद खूबसूरत लग रहा था।

 

प्रश्न 8 – “‘कटाओ’ की सुंदरता इसलिए भी बची हुई थी कि वह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल नहीं था और वहाँ पर दुकानों का न होना वरदान समान था”- इस पर अपने विचार लिखिए ।

उत्तर – ‘कटाओ’ को अपनी स्वच्छता और सुंदरता के कारण हिंदुस्तान का स्विट्जरलैंड कहा जाता है या यह कहना गलत नहीं होगा कि कटाओ, स्विट्जरलैंड से भी अधिक सुंदर है। यह सुंदरता आज इसलिए विद्यमान है कि यहाँ कोई दुकान आदि नहीं है। यदि यहाँ भी दुकानें खुल जाएँ, व्यवसायीकरण हो जाए तो इस स्थान की सुंदरता जाती रहेगी, इसलिए कटाओं में दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। ‘कटाओ’ में दुकान न होने से व्यवसायीकरण नहीं हुआ है जिससे आने-जाने वाले लोगों की संख्या सीमित रहती है, जिससे यहाँ की सुंदरता बची है। जैसे दुकानें आदि खुल जाने से अन्य पवित्र स्थानों की सुंदरता जाती रही है वैसे ही दुकानों के खुल जाने से कटाओ की सुंदरता भी मटमैली हो जाएगी।

 

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