CBSE Class 10 Hindi (Course A) Chapter-wise Previous Years Questions (2023) with Solution

 

Class 10 Hindi (Course B) Question Paper (2023) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 10th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 10 Hindi (Course A) question paper (2023).

 

Kshitij Bhag 2 

 

Chapter 1 – Surdas Ke Pad (लगभग 25-30 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – सूर की गोपियाँ सच्चा राजधर्म किसे बता रही हैं? उनके अनुसार कृष्ण किस प्रकार राजधर्म का पालन नहीं कर रहे हैं?

उत्तर – सूर की गोपियों के अनुसार राजधर्म तो यही कहता है कि राजा को प्रजा के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए और न ही प्रजा को सताना चाहिए। उनके अनुसार कृष्ण राजधर्म का पालन नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि श्री कृष्ण पहले से ही बहुत चतुर चालाक थे, और अब मथुरा पहुँचकर शायद उन्होंने राजनीति शास्त्र भी पढ़ लिया है, जिस के कारण वे और अधिक बुद्धिमान हो गए हैं, जो उन्होंने उद्धव के द्वारा जोग (योग) का संदेश भेजा है। गोपियों के अनुसार मथुरा जाते समय उनका मन श्री कृष्ण अपने साथ ले गए थे, जो अब उन्हें वापस चाहिए। वे तो दूसरों को अन्याय से बचाते हैं, वे गोपियों के लिए योग का संदेश भेजकर उन पर अन्याय कर रहे हैं। गोपियाँ चाहती हैं कि श्री कृष्ण को योग का संदेश वापस लेकर स्वयं दर्शन के लिए आना चाहिए।

 

प्रश्न 2 – सूरदास की गोपियाँ व्यंग्यपूर्वक उद्धव को ‘बड़भागी’ क्यों कहती हैं? ‘पद’ में आए दो दृष्टांतों से स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – सूरदास की गोपियाँ उद्धव को भाग्यवान कहते हुए व्यंग्य कसती हैं। उनकी बातों में वक्रोक्ति है। क्योंकि सुनने में तो उनकी बातें प्रशंसा लग रही हैं किंतु वास्तव में वे कहना चाह रही हैं कि उद्धव बड़े अभागे हैं क्योंकि वे श्री कृष्ण के सानिध्य में रहते हुए भी , श्री कृष्ण के प्रेम का अनुभव नहीं कर सके। न तो वे श्री कृष्ण के हो सके, न श्री कृष्ण को अपना बना सके। उन्होंने प्रेम का आनंद जाना ही नहीं। यह उद्धव का दुर्भाग्य है क्योंकि जो कोई भी श्री कृष्ण के साथ एक क्षण भी व्यतीत कर लेता है वह कृष्णमय हो जाता है।

 

प्रश्न 3 – ‘सूरदास’ के पद के आधार पर लिखिए कि ‘हारिल पक्षी’ के उदाहरण से गोपियाँ अपने बारे में क्या बताना चाहती हैं।

उत्तर – ‘हारिल पक्षी’ के उदाहरण से गोपियाँ बताना चाहती हैं कि उनके लिए श्री कृष्ण हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जिस तरह हारिल पक्षी अपने पंजों में लकड़ी को बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़े रहता है, उसे कहीं भी गिरने नहीं देता, उसी प्रकार गोपियों ने भी मन, वचन और कर्म से नंद पुत्र श्री कृष्ण को अपने ह्रदय के प्रेम-रूपी पंजों से बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़ा हुआ है अर्थात दृढ़तापूर्वक अपने हृदय में बसाया हुआ है। 

 

प्रश्न 4 – ‘ऊधौ, तुम हो अति बड़भागी’ पद में वर्णित गुड़ और चींटी के उदाहरण के माध्यम से गोपियों की किस मनोदशा का वर्णन हुआ है?

उत्तर – गोपियाँ उद्धव अर्थात श्री कृष्ण के मित्र से व्यंग कर रही हैं, वे उद्धव को भाग्यशाली कहती हैं क्योंकि वे श्री कृष्ण के साथ रहते हुए भी उनके प्रेम के बंधन से अछूते रहे हैं जबकि गोपियाँ श्री कृष्ण के मोहजाल में ऐसी फस गई हैं जैसे चींटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं। वे खुद को अभागिन अबला नारी समझती हैं, जिस प्रकार चींटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं, ठीक उसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण के प्रेम में उलझ गई हैं, उनके मोहपाश में लिपट गई हैं। वे श्रीकृष्ण के प्रेम से खुद को दूर नहीं रख पा रही है। 

 

प्रश्न 5 – ‘ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी’ पद के आधार पर लिखिए कि गोपियों ने किन उदाहरणों से सिद्ध किया है कि उद्धव कृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम से वंचित ही रहे। किन्हीं दो उदाहरणों से अपने उत्तर को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – गोपियाँ उद्धव पर व्यंग करते हुए कह रही हैं कि वे बहुत भाग्यशाली हैं, जो अभी तक श्री कृष्ण के साथ रहते हुए भी उनके प्रेम के बंधन से अछूते हैं और न ही उनके मन में श्रीकृष्ण के प्रति कोई प्रेम-भाव उत्पन्न हुआ है। गोपियाँ उद्धव की तुलना कमल के पत्तों व तेल के मटके के साथ करती हुई कहती हैं कि जिस प्रकार कमल के पत्ते हमेशा जल के अंदर ही रहते हैं, लेकिन उन पर जल के कारण कोई दाग दिखाई नहीं देता अर्थात् वे जल के प्रभाव से अछूती रहती हैं और इसके अतिरिक्त जिस प्रकार तेल से भरी हुई मटकी पानी के मध्य में रहने पर भी उसमें रखा हुआ तेल पानी के प्रभाव से अप्रभावित रहता है, उसी प्रकार श्री कृष्ण के साथ रहने पर भी उद्धव के ऊपर श्रीकृष्ण के प्रेम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

 

प्रश्न 6 – ‘सूर के पद’ में गोपियों के माध्यम से सूरदास की भक्ति-भावना सामने आती है। इस कथन के आलोक में सूरदास की भक्ति-भावना पर टिप्पणी कीजिए। (किन्हीं दो बिंदुओं को उत्तर में अवश्य शामिल करें)

उत्तर – ‘सूर के पद’ में गोपियों के माध्यम से सूरदास की भक्ति-भावना सामने आती है।

गोपियाँ उद्धव को भाग्यशाली कहती हैं क्योंकि वे श्री कृष्ण के साथ रहते हुए भी उनके प्रेम के बंधन से अछूते रहे हैं जबकि गोपियाँ श्री कृष्ण के मोहजाल में ऐसी फस गई हैं जैसे चींटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं।

गोपियाँ श्री कृष्ण और अपने सम्बन्ध को हारिल पक्षी और उसकी लकड़ी के समान मानती हैं। जिस तरह हारिल पक्षी अपने पंजों में लकड़ी को बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़े रहता है, उसे कहीं भी गिरने नहीं देता, उसी प्रकार गोपियों ने भी मन, वचन और कर्म से नंद पुत्र श्री कृष्ण को अपने ह्रदय के प्रेम-रूपी पंजों से बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़ा हुआ है अर्थात दृढ़तापूर्वक अपने हृदय में बसाया हुआ है।

 

प्रश्न 7 – ‘सूर के पद’ में प्रेम की मर्यादा का निर्वाह किसने और किस प्रकार नहीं किया?

उत्तर – ‘सूर के पद’ में प्रेम की मर्यादा का निर्वाह श्री कृष्ण ने नहीं किया क्योंकि वे जब मथुरा वापस नहीं आते और उद्धव के द्वारा मथुरा यह संदेश भेज देते हैं कि वह वापस नहीं आ पाएंगे, तो इस संदेश को सुनकर गोपियाँ टूट-सी जाती हैं और उनकी विरह की व्यथा और बढ़ जाती है। मथुरा जाते समय श्री कृष्ण गोपियों का मन अपने साथ ले गए थे। गोपियों के अनुसार श्री कृष्ण तो दूसरों को अन्याय से बचाते हैं, लेकिन गोपियों के अनुसार वे उन पर अन्याय कर रहे हैं। राजधर्म तो यही कहता है कि प्रजा के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए अथवा न ही सताना चाहिए। परन्तु श्रीकृष्ण वापिस न आ कर प्रेम की मर्यादा का निर्वाह नहीं कर रहे हैं। 

 

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Chapter 2 – Ram Lakshman Parshuram Samvad (लगभग 25-30 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – परशुराम शिव धनुष टूटने पर इतने अधिक क्रोधित क्यों हो गए? शिव धनुष तोड़ने वाले के प्रति उनकी प्रतिक्रिया क्या थी? ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ प्रसंग के आधार पर लिखिए।

उत्तर – श्री राम जी के द्वारा शिव धनुष तोड़े जाने के कारण परशुराम जी क्रोधित हो जाते हैं क्योंकि उस धनुष के साथ परशुराम जी के भाव जुड़े थे। उन्हें क्रोध में देखकर जब जनक के दरबार में सभी लोग भयभीत हो गए तो श्री राम ने आगे बढ़कर परशुराम जी से कहा कि भगवान शिव के धनुष को तोड़ने वाला उनका ही कोई एक दास होगा। श्री राम के वचन सुनकर क्रोधित परशुराम जी उनसे बोले कि सेवक वह कहलाता है , जो सेवा का कार्य करता है। शत्रुता का काम करके तो लड़ाई ही मोल ली जाती है। जिसने भगवान शिव जी के इस धनुष को तोड़ा है , वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु है। फिर वे राजसभा की तरफ देखते हुए कहते हैं कि जिसने भी शिव धनुष तोड़ा है वह व्यक्ति खुद बखुद इस समाज से अलग हो जाए , नहीं तो सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे।

 

प्रश्न 2 – ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ प्रसंग के आधार पर परशुराम के स्वभाव और व्यक्तित्व की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – राम, लक्ष्मण, परशुराम संवाद में परशुराम जी अपना परिचय अत्यधिक क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति के रूप में देते हैं और बताते हैं कि वे पूरे विश्व में क्षत्रिय कुल के घोर शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हैं।वे लक्ष्मण जी को अपना फरसा दिखाते हैं और कहते हैं कि शायद उन्होंने परशुराम जी के स्वभाव के विषय में नहीं सुना है। वे केवल बालक समझकर लक्ष्मण जी का वध नहीं कर रहे हैं। लक्ष्मण जी उन्हें केवल एक मुनि समझने की भूल न करें। वे बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी स्वभाव के व्यक्ति हैं। उन्होंने अपनी भुजाओं के बल से पृथ्वी को कई बार राजाओं से रहित करके उसे ब्राह्मणों को दान में दे दिया था। अपने फरसे से उन्होंने सहस्रबाहु अर्थात हजारों लोगों की भुजाओं को काट डाला था।

 

प्रश्न 3 – ‘लक्ष्मण की बातें परशुराम के गुस्से को और बढ़ा रही थीं। – ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ कविता के आलोक में इस कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर – जब सीता स्वयंवर में श्री राम द्वारा शिव – धनुष के तोड़े जाने के बाद मुनि परशुराम जी को यह समाचार मिला तो वे क्रोधित होकर वहाँ आते हैं। फिर वे राजसभा की तरफ देखते हुए कहते हैं कि जिसने भी शिव धनुष तोड़ा है वह व्यक्ति खुद बखुद इस समाज से अलग हो जाए, नहीं तो सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे। परशुराम जी के इन क्रोधपूर्ण वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कुराए और परशुराम जी का अपमान करते हुए बोले कि बचपन में उन्होंने ऐसे छोटे – छोटे बहुत से धनुष तोड़ डाले थे , किंतु ऐसा क्रोध तो कभी किसी ने नहीं किया। लक्ष्मण जी की व्यंग्य भरी बातें सुनकर परशुराम जी और अधिक क्रोधित हो जाते हैं। 

 

प्रश्न 4 – ‘इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं’ – पंक्ति के द्वारा लक्ष्मण परशुराम से क्या कह रहे हैं? उन्होंने अपने व्यवहार को उचित ठहराते हुए क्या तर्क दिया?

उत्तर – ‘इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं’ – पंक्ति में लक्ष्मण जी वीरता और साहस का परिचय देते हुए परशुराम जी से कहते हैं कि हम भी कोई ऐसे ही नहीं है जो कुछ भी देख कर डर जाएँ और मैंने फरसे और धनुष – बाण को अच्छी तरह से देख लिया है इसलिए मैं ये सब आप से अभिमान सहित ही बोल रहा हूँ अर्थात हम कोई एक कोमल फल नहीं है जो हाथ लगाने भर से टूट जाएँ। हम बालक जरूर हैं लेकिन फरसे और धनुष – बाण भी बहुत देखे हैं इसलिए हमें नादान बालक न समझे।

 

प्रश्न 5 – राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में परशुराम के क्रोध का क्या कारण था? उन्होंने आते ही क्रोध में क्या माँग की? क्या आपको उनका क्रोध उचित प्रतीत होता है? तर्क संगत उत्तर दीजिए।

उत्तर – राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में परशुराम के क्रोध का कारण शिव धनुष का तोड़ा जाना था। श्री राम जी के द्वारा शिव धनुष तोड़े जाने के कारण जब परशुराम जी क्रोधित हो जाते हैं और सभा में सभी को ललकारते हुए कहते हैं कि जिसने भगवान शिव जी के इस धनुष को तोड़ा है , वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु है। फिर वे राजसभा की तरफ देखते हुए कहते हैं कि जिसने भी शिव धनुष तोड़ा है वह व्यक्ति खुद बखुद इस समाज से अलग हो जाए , नहीं तो सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे।

 

प्रश्न 6 – ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ में लक्ष्मण ने अपने कुल की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है? (किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए।)

उत्तर – लक्ष्मण अपने कुल की विशेषता का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि उनके कुल की परंपरा है कि वे देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय , इन सभी पर वीरता नहीं दिखाया करते, क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपकीर्ति अथवा अपयश (बदनामी) होता है। इसीलिए आप मारें तो भी, हमें आपके पैर पकड़ने चाहिए।

 

प्रश्न 7 – ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम’ के तीनों मुख्य पात्रों में से किससे आप सर्वाधिक प्रभावित होते हैं और क्यों?

उत्तर – लक्ष्मण जी के उत्तरों ने, परशुराम जी के क्रोध रूपी अग्नि में आहुति का काम किया। जिससे उनका क्रोध अत्यधिक बढ़ गया। जब श्री राम ने देखा कि परशुराम जी का क्रोध अत्यधिक बढ़ चुका है। अग्नि को शांत करने के लिए जैसे जल की आवश्यकता होती हैं। वैसे ही क्रोध रूपी अग्नि को शांत करने के लिए मीठे वचनों की आवश्यकता होती हैं। श्री राम ने भी वही किया। श्री राम ने अपने मीठे वचनों से परशुराम जी का क्रोध शांत करने का प्रयास किया। जितने क्रोधित स्वभाव के लक्ष्मण जी थे उसके बिलकुल विपरीत श्री राम का स्वभाव अत्यंत शांत था। इसी कारण राम जी के व्यवहार ने हमें सबसे अधिक प्रभावित किया। 

 

प्रश्न 8 – ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ के अंतर्गत लक्ष्मण वीरों और कायरों की कौन-सी विशेषताएँ बताते हैं और क्यों?

उत्तर – लक्ष्मण ने वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएं बताई है –

  • वीर पुरुष अपनी महानता का गुणगान खुद नहीं करते।
  • युद्धभूमि में शूरवीर युद्ध करते हैं न की अपने प्रताप का गुणगान करते हैं।
  • स्वयं किए गए प्रसिद्ध कार्यों पर कभी अभिमान नहीं करते।
  • वीर पुरुष किसी के खिलाफ गलत शब्दों का प्रयोग नहीं करते।
  • वह अन्याय के विरुद्ध हमेशा खड़े रहते हैं।
  • वीर योद्धा शांत , विनम्र , और साहसी हृदय के होते हैं।

 

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Chapter 3 – Atmakathya (लगभग 25-30 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – ‘आत्मकथ्य’ से उद्धृत निम्नलिखित काव्य-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए –

“उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।”

उत्तर – “उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।” पंक्ति का भाव कवि का अपनी प्रिय की स्मृति के सहारे जीवन जीने से है। कवि की पत्नी की मृत्यु युवावस्था में ही हो गई थी। अपनी पत्नी के साथ बिताये मधुर पलों की स्मृतियाँ ही अब कवि के जीवन जीने का एकमात्र सहारा व मार्गदर्शक हैं। इसीलिए कवि उन्हें किसी के साथ बांटना नहीं चाहते हैं। उन्हें सिर्फ अपने दिल में संजो कर रखना चाहते है। जैसे थका हुआ यात्री शेष रास्ता देखते हुए अपनी मंजिल पा जाता है वैसे ही कवि अपनी पत्नी की यादों के सहारे अपना शेष जीवन बिता लेगा। मनुष्य अपनी सुखद स्मृतियों की याद में अपना सारा जीवन व्यतीत कर सकता है।

 

प्रश्न 2 – ‘आत्मकथ्य’ कविता की पंक्ति – “यह विडंबना ! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।” – का भाव अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – “यह विडंबना ! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।” – का भाव यह है कि कवि अपने प्रपंची मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर , उनको शर्मिंदा नही करना चाहते हैं। इसीलिए कवि अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहते हैं। कवि को यह बड़े दुर्भाग्य की बात लगती है कि उनके जो मित्र उन्हें आत्मकथा लिखने को कह रहे हैं, उन लोगों ने कवि को धोखे दिए हैं या उनके साथ छल – प्रपंच किए हैं। कवि के सरल स्वभाव के कारण जीवन में उनसे जो गलतियां हुई हैं , उन सभी के बारे में लिखकर कवि अपना और अपने मित्रों का मजाक नहीं बनाना चाहते हैं। 

 

प्रश्न 3 – ‘आत्मकथ्य’ में कवि आत्मकथा न लिखने के लिए जिन तर्कों का सहारा ले रहा है उनमें से किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – कवि तर्क देते हैं कि यह तो बड़े दुर्भाग्य की बात है कि कवि को उनकी आत्मकथा लिखने को कहा जा रहा है क्योंकि सरल मन वाले की हँसी कैसे उड़ाई जाए। कवि तो अभी तक स्वयं दूसरों के स्वभाव को समझ नहीं पाया है। उनके सरल स्वभाव के कारण जीवन में उनसे जो गलतियां हुई। कुछ लोगों ने जो उन्हें धोखे दिए या उनके साथ जो छल–प्रपंच किया हैं। उन सभी के बारे में लिखकर वे अपना और उनका मजाक नहीं बनाना चाहते। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि अपने प्रपंची मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर, उनको शर्मिंदा नही करना चाहते हैं। इसीलिए कवि अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहते हैं।

 

प्रश्न 4 – इस वर्ष पाठ्यक्रम में पढ़ी कौन-सी कविता है जिसमें आत्मकथा लेखन के विषय में कवि ने अपनी राय व्यक्त की है? आत्मकथा के विषय में कवि के विचारों में से किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – इस वर्ष पाठ्यक्रम में पढ़ी ‘आत्मकथ्य’ कविता में आत्मकथा लेखन के विषय में कवि ने अपनी राय व्यक्त की है। अपनी आत्मकथा लिखने में कवि को कोई रूचि नहीं है क्योंकि न तो वे अपने धोखेबाज़ मित्रों के बारे में बता कर उन्हें शर्मिंदा करना चाहते हैं और न ही अपने द्वारा की गई गलतियों को बता कर अपना मज़ाक उड़वाना चाहते हैं और न ही अपने और अपनी पत्नी की निजी बातों का जिक्र करना चाहते हैं। इन्ही कारणों से वे कई तर्क दे कर अपनी आत्मकथा लिखने से बचना चाहते हैं। 

 

प्रश्न 5 – ‘कंथा के सीवन को उधेड़ने’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए कि कवि के लिए आत्मकथा लिखना सीवन उधेड़ने जैसा क्यों है?

उत्तर – ‘कंथा के सीवन को उधेड़ने’ का अर्थ हैं कि अपने अंतरमन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़ कर उसके भीतर छुपी बातों को उजागर करना। कवि के लिए आत्मकथा लिखना सीवन उधेड़ने जैसा इसीलिए है क्योंकि कवि के अनुसार उनका जीवन बहुत छोटा सा है। उसकी बड़ी-बड़ी कहानियां वे कैसे लिखें। क्योंकि कवि के अनुसार उनके छोटे से जीवन में उन्होंने अभी तक सुनाने लायक कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं की हैं। जो वे पाठकों को सुना सकें।

 

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Chapter 4 – Utsah Aur At Nahi Rahi Hai (लगभग 25-30 शब्दों में) 

 

प्रश्न 1 – बादलों से संबंधित किन बिंबों का प्रयोग ‘उत्साह’ कविता में है?

उत्तर – ‘उत्साह’ कविता में बादल निम्नलिखित अर्थों की ओर संकेत करता है – 

  • बादल पीड़ित-प्यासे जन की आकाँक्षा को पूरा करने वाला है।
  • मानव जीवन की कठिनाइयों को दूर करने का संकेत देता है। 
  • मानव को जीवन में उत्साह और संघर्ष के लिए प्रेरित करता है। 
  • जीवन में नवीनता व् परिवर्तन लाने की ओर संकेत करता है। 

 

प्रश्न 2 – इस वर्ष पाठ्यक्रम में पढ़ी किस कविता में कवि ने बादलों से अनुरोध किया है? उसके अनुरोध की मुख्य बातों को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – कवि बादलों से जोर – जोर से गरजने का निवेदन कर रहे हैं और बादलों से कहते हैं कि हे बादल ! तुम जोरदार गर्जना अर्थात जोरदार आवाज करो और आकाश को चारों तरफ से , पूरी तरह से घेर लो यानि इस पूरे आकाश में भयानक रूप से छा जाओ और फिर जोरदार तरीके से बरसो क्योंकि यह समय शान्त होकर बरसने का नहीं हैं।

 

प्रश्न 3 – ‘अट नहीं रही है’ कविता में कवि ने फागुन मास के सौंदर्य को किस प्रकार चित्रित किया है?

उत्तर – कवि की आँख फागुन की सुंदरता से हट नहीं रही है , क्योंकि फागुन के महीने में प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फागुन बहुत मतवाला , मस्त और शोभाशाली है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। पेड़ों की डालियाँ पत्तों से भरी हुई हैं , पेड़ों पर फूल आ जाने से पेड़ कहीं हरे और कहीं लाल दिखाई दे रहे हैं , उनको देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने अपने हृदय पर फूलों की माला पहन रखी हो। फूलों की खुशबू भी पूरे वातावरण में फैल गई है। इसलिए कवि की आँखें फागुन की सुन्दरता से मंत्रमुग्ध होकर उससे हटाने से भी नहीं हटती।

 

प्रश्न 4 – ‘अट नहीं रही है’ – कविता में किसका वर्णन हुआ है और कवि ने उस सौंदर्य के बारे में क्या कहा है?

उत्तर – कविता ‘अट नहीं रही है’ में कवि ने फागुन के सब ओर फैले सौन्दर्य और मन को मोहने वीले रूप के प्रभाव को दर्शाया है। फागुन के सौंदर्य का वर्णन अत्यधिक अद्धभुत तरीके से किया है। वसंत को घर – घर में फैला हुआ दिखाया है। यहाँ ‘घर – घर भर देते हो’ में फूलों की शोभा की ओर संकेत किया गया है और मन में उठी खुशी को भी दर्शाया गया है। ‘उड़ने को पर – पर करना’ भी ऐसा सांकेतिक प्रयोग है। यह पक्षियों की उड़ान पर भी लागू होता है और मन की उमंग पर भी। सौंदर्य से आँख न हटा पाना भी उसके विस्तार की झलक देता है। कवि ने पेड़ों पर आए नए पत्ते एवं फूलों का अद्धभुत सुंदरता से वर्णन किया है , फूलों से फैलने वाली मनमोहक सुगंध का , वृक्षों पर आए नए फलों का , आसमान में उड़ते हुए पक्षियों का , खेत – खलियान में आई हुई फसल का , चारों तरफ से फैली हुई हरियाली से लोगों में आए हुए उल्लास के माध्यम से प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किया है।

 

प्रश्न 5 – ‘उत्साह’ कविता क्रांति और बदलाव की कविता किस प्रकार है? किन्हीं दो बिंदुओं से स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘उत्साह’ कविता क्रांति और बदलाव की कविता है, क्योंकि कविता में बादल एक तरफ पीड़ित – प्यासे लोगों की इच्छाओं को पूरा करने वाला है , तो दूसरी तरफ वही बादल नयी कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति चेतना को संभव करने वाला भी है। कवि जीवन को विस्तृत और संपूर्ण दृष्टि से देखता है। कविता में सुंदर कल्पना और क्रांति – चेतना दोनों हैं। सामाजिक क्रांति या बदलाव में साहित्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है , निराला इसे ‘नवजीवन’ और ‘नूतन कविता’ के संदर्भों में देखते हैं।

 

प्रश्न 6 – पाठ्यक्रम में पढ़ी कौन-सी कविता पूरी तरह प्रकृति के सौंदर्य पर केन्द्रित है? उसमें वर्णित प्राकृतिक सुंदरता के किन्हीं दो बिंदुओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – प्रस्तुत कविता ‘अट नहीं रही है’ में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने फागुन के सब ओर फैले सौन्दर्य और मन को मोहने वीले रूप के प्रभाव को दर्शाया है। फागुन के सौंदर्य का वर्णन अत्यधिक अद्धभुत तरीके से किया है। वसंत को घर – घर में फैला हुआ दिखाया है। यहाँ ‘घर – घर भर देते हो’ में फूलों की शोभा की और संकेत किया गया है और मन में उठी खुशी को भी दर्शाया गया है। ‘उड़ने को पर – पर करना’ भी ऐसा सांकेतिक प्रयोग है। यह पक्षियों की उड़ान पर भी लागू होता है और मन की उमंग पर भी। सौंदर्य से आँख न हटा पाना भी उसके विस्तार की झलक देता है। कवि ने पेड़ों पर आए नए पत्ते एवं फूलों का अद्धभुत सुंदरता से वर्णन किया है , फूलों से फैलने वाली मनमोहक सुगंध का , वृक्षों पर आए नए फलों का , आसमान में उड़ते हुए पक्षियों का , खेत – खलियान में आई हुई फसल का , चारों तरफ से फैली हुई हरियाली से लोगों में आए हुए उल्लास के माध्यम से प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किया है।

 

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Chapter 5 – Yah Danturit Muskan Aur Fasal (लगभग 25-30 शब्दों में) 

 

प्रश्न 1 – आपने अपने पाठ्यक्रम में किस कविता में अन्न उपजाने की पूरी प्रक्रिया पढ़ी है? उस प्रक्रिया का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर – किसान की मेहनत के साथ – साथ पानी , मिट्टी का गुणवत्तापूरक , अलग – अलग तरह की मिट्टी में अलग- अलग तरह के पोषक तत्व , पौधों को बढ़ने के लिए सूरज की किरणें व कार्बन डाइऑक्साइड गैस आदि की आवश्यकता होती है। करोड़ों किसानों की दिन- रात की मेहनत , नदियों के पानी का जादू , भूरी , काली व खुशबूदार मिट्टी यानि अलग – अलग प्रकार की मिट्टी के पोषक तत्व और सूरज की किरणें भी अपना रूप बदल कर इन फसलों के अंदर समाहित रहती हैं। ये सभी फसल उगाने के लिए बहुत आवश्यक हैं।

 

प्रश्न 2 – ‘यह दंतुरित मुस्कान’ में शिशु कवि को ‘अनिमेष’ देख रहा है। ‘अनिमेष’ का अर्थ लिखते हुए बताइए कि बच्चे ऐसा क्यों करते हैं?

उत्तर – ‘यह दंतुरित मुस्कान’ में शिशु कवि को ‘अनिमेष’ देख रहा है। ‘अनिमेष’ का अर्थ होता है बिना पलक झपकाए देखना। बच्चा पहली बार अपने पिता (कवि) को देख रहा है। इस कारण कवि उस छोटे से बच्चे से कहते हैं कि ऐसा लगता है कि तुम (छोटा बच्चा) मुझे (कवि / पिता) पहचान नहीं पाये हो क्योंकि बच्चा कवि को अपलक अर्थात बिना पलक झपकाए देख रहा है। बच्चे जब किसी नई चीज़ या व्यक्ति को देखते हैं तो वे हैरानी व् उत्सुकता के कारण अपलक या बिना पालक झपकाए देखते रहते हैं। 

 

प्रश्न 3 – ‘फसल’ किन-किन रूपों का जादू है? इसे बनाए रखने के लिए हमें क्या प्रयास करने चाहिए?

उत्तर – फसल ढेर सारी नदियों के पानी का जादू, लाखों लोगों के हाथों के स्पर्श की गरिमा तथा भिन्न प्रकार की मिट्टी के गुण, सूर्य की किरणों और वायु की मंद गति का परिणाम है। यानी फसल मनुष्य और प्रकृति दोनों के मिलकर कार्य करने से उपजता है। इसे बनाए रखने के लिए हमें फसल के लिए आवश्यक तत्वों का संरक्षण करना चाहिए। उन्हें बर्बाद नहीं करना चाहिए। 

 

प्रश्न 4 – “धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात …..

छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात”

‘तुम्हारी ये दंतुरित मुस्कान’ से ली गई उपर्युक्त पंक्तियों में प्रयुक्त बिंब को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – कवि जब बच्चे के धूल से सने हुए नन्हें तन को देखता है तो ऐसा लगता है कि मानों कमल के फूल तालाब को छोड़कर कवि की झोंपड़ी में खिल उठते हो। कहने का आशय यह है कि बच्चे के धूल से सने नन्हे से तन को निहारने पर कवि का मन कमल के फूल के समान खिल उठा है अर्थात् प्रसन्न हो जाता है।

ऐसा लगता है कि किसी प्राणवान का स्पर्श पाकर ये कठोर चट्टानें पिघलकर जल बन गई होगी। कहने का आशय यह है कि बच्चे की मधुर मुस्कान देख कर पत्थर जैसे कठोर हृदय वाले मनुष्य का मन भी पिघलाकर अति कोमल हो जाता है।

 

प्रश्न 5 – बच्चे की दंतुरित मुस्कान का किस-किस पर क्या-क्या प्रभाव पड़ता है? यह ‘दंतुरित मुस्कान’ कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर – कवि के अनुसार बच्चे की मुस्कुराहट इतनी प्रभावशाली होती हैं कि वो किसी भावहीन व्यक्ति में भी भावनाओं को जगा सकती है और जीवन की कठिन परिस्थितियों से निराश-हताश हो चुके व्यक्तियों और यहाँ तक कि बेजान व्यक्ति को भी जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। बच्चे की मधुर मुस्कान देख कर पत्थर जैसे कठोर हृदय वाले मनुष्य का मन भी पिघल कर अति कोमल हो जाता है।

 

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Yah Danturit Muskan Aur Fasal Summary, Explanation, Word Meanings

Yah Danturit Muskan Aur Fasal Question Answers (Important) | Class 10 Hindi Kshitij book

 

Chapter 6 – Sangatkar (लगभग 25-30 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – कवि की दृष्टि में ‘संगतकार’ की मनुष्यता क्या है? तर्क सहित बताइए कि क्या आप उससे सहमत हैं?

उत्तर – संगतकार जब गाता है तब उसकी आवाज़ में एक घबराहट स्पष्ट सुनाई देती है। ऐसा नहीं है कि वह कम प्रतिभावान है या उसे गाना नहीं आता बल्कि वह तो अपनी आवाज़ को मुख्य गायक की आवाज़ से कभी ऊँचा नहीं उठने देता। कवि के अनुसार इसे संगतकार की असफलता नहीं मानना चाहिए क्योंकि संगतकार अगर चाहे तो वह मुख्य गायक के सुर में सुर मिलकर गा सकता है परन्तु मुख्य गायक की आवाज़ का महत्व बरकरार रखने के लिए वह अपनी आवाज को मुख्य गायक की आवाज से दबा कर रखता है। ऐसा करके संगतकार अपनी महानता का परिचय देता है। 

 

प्रश्न 2 – मुख्य गायक को अकसर संगतकार की जरूरत क्यों पड़ती है? ‘संगतकार’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – संगतकार वह है जो मुख्य गायक के सुर में अपना सुर मिलाकर गाने को प्रभावशाली बनाने में मदद करता है। और जब कभी मुख्य गायक अपनी सुर साधना में खो कर कही भटक जाता हैं और गीत के मुख्य सुरों को भूल जाता हैं तो उस समय यही संगतकार दुबारा मुख्य सुरों को पकड़ने में उसकी मदद करता हैं। 

 

प्रश्न 3 – ” ‘संगतकार’ जैसे व्यक्तियों के योगदान पर समाज का उतना ध्यान नहीं गया है और उन्हें यथोचित सम्मान भी नहीं मिला है।” – इस कथन पर ‘संगतकार’ कविता के संदर्भ में टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – ” ‘संगतकार’ जैसे व्यक्तियों के योगदान पर समाज का उतना ध्यान नहीं गया है और उन्हें यथोचित सम्मान भी नहीं मिला है।” क्योंकि संगतकार जैसे व्यक्ति दूसरों की भलाई के लिए अपनी योग्यता को सभी से छुपा कर रखते हैं और लोगों को उनके बारे में जानकारी नहीं रहती। जिस कारण उन्हें उचित सम्मान नहीं मिलता। 

 

प्रश्न 4 – ‘संगतकार’ मुख्य गायक की सहायता किस-किस तरह से करता है?

उत्तर – संगतकार कई रूपों में मुख्य गायक की सहायता करता है। वे मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ और गूँज को मिलाकर मुख्य गायक की आवाज़ का बल बढ़ाने का काम करते हैं। जब मुख्य गायक गायन की गहराई में चले जाते हैं और मूल स्वर से भटक जाते हैं तब संगतकार स्थायी पंक्ति को पकड़कर मुख्य गायक को वापस मूल स्वर में लाते हैं। जब मुख्य गायक थक जाता है तो उसकी टूटती-बिखरती आवाज़ को बल देकर संगतकार उसे अकेला होने या बिखरने से बचाते हैं। और सदैव उसके साथ होने का एहसास करवाते हैं। 

 

प्रश्न 5 – संगतकार की मनुष्यता को कवि ने किन शब्दों में रेखांकित किया है? क्या इस विषय में आप उससे सहमत हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।

उत्तर – संगतकार में योग्यता, प्रतिभा, क्षमता और अवसर होने के बावजूद वह अपनी आवाज़ को कभी भी मुख्य गायक की आवाज़ से ऊँचा नहीं उठाता और कभी भी अपनी गायिकी को मुख्य गायक के गायन से बेहतर सिद्ध करने का प्रयास नहीं करता। कवि द्वारा इसे संगतकार की मनुष्यता कहा गया है। हम भी इस तर्क से सहमत हैं। क्योंकि एक संगतकार मुख्य गायक के सुर में अपना सुर मिलाकर गाने को प्रभावशाली बनाने में मदद करता है। और जब कभी मुख्य गायक अपनी सुर साधना में खो कर कही भटक जाता हैं और गीत के मुख्य सुरों को भूल जाता हैं तो उस समय यही संगतकार दुबारा मुख्य सुरों को पकड़ने में उसकी मदद करता हैं।

 

प्रश्न 6 – ‘संगतकार’ कविता के आधार पर लिखिए कि मुख्य गायक के साथ संगतकार की भूमिका किन रूपों में होती हैं।

उत्तर – संगतकार कई रूपों में मुख्य गायक की सहायता करता है। वे मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ और गूँज को मिलाकर मुख्य गायक की आवाज़ का बल बढ़ाने का काम करते हैं। जब मुख्य गायक गायन की गहराई में चले जाते हैं और मूल स्वर से भटक जाते हैं तब संगतकार स्थायी पंक्ति को पकड़कर मुख्य गायक को वापस मूल स्वर में लाते हैं। जब मुख्य गायक थक जाता है तो उसकी टूटती-बिखरती आवाज़ को बल देकर संगतकार उसे अकेला होने या बिखरने से बचाते हैं। और सदैव उसके साथ होने का एहसास करवाते हैं।

 

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Chapter 7 – Netaji ka Chashma (लगभग 25-30 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर लिखिए कि नेताजी की मूर्ति पर लगे असली चश्में को देख हालदार साहब के मन में क्या विचार आया?

उत्तर – नेताजी की मूर्ति पर लगे असली चश्में को देख हालदार साहब के मन में विचार आया कि जिसने भी सुभाष चंद्र जी की मूर्ति बनवाई है उसको देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होगी या फिर अच्छी मूर्ति बनाने के लिए जो खर्चा लगता है और जो उन्हें मूर्ति बनाने के लिए खर्च दिया गया होगा उस से कहीं बहुत ज्यादा खर्च होने के कारण सही मूर्तिकार को उपलब्ध नहीं करवा पाए होंगे। या हो सकता है कि काफी समय भाग- दौड़ और लिखा – पत्री में बरबाद कर दिया होगा और बोर्ड के शासन करने का समय समाप्त होने की घड़ियाँ नजदीक आ गई हों और मूर्ति का निर्माण उससे पहले करवाना हो जिस कारण किसी स्थानीय कलाकार को ही मौक़ा देने का निश्चय कर लिया गया होगा, और अंत में उस कस्बे के एक मात्र हाई स्कूल के एक मात्र ड्राइंग मास्टर को ही यह काम सौंप दिया गया होगा। 

 

प्रश्न 2 – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में चश्मे के बहाने से देशभक्ति की भावना पर किस प्रकार बल दिया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में चश्मे के बहाने से देशभक्ति की भावना पर बल दिया गया है क्योंकि चश्मे के बहाने ही पाठ में शहीदों का सम्मान करने की प्रेरणा मिलती है। साथ ही सीख भी मिलती है कि केवल बड़े-बड़े कारनामे करने से आप देशभक्त नहीं कहलाए जाते । अगर आप अपने देश और उससे जुड़े सभी भावों का सम्मान करते हैं तब भी आप देशभक्त कहलाए जा सकते हैं। 

 

प्रश्न 3 – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर लिखिए कि –

 हालदार साहब का कस्बे के नागरिकों का कौन-सा प्रयास सराहनीय लगा और क्यों?

उत्तर – मूर्ति पर असली चश्में को पहनाने पर हवालदार साहब नागरिकों की देश-भक्ति की सराहना कर रहे हैं, क्योंकि वह मूर्ति कोई आम मूर्ति नहीं थी बल्कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी की थी। उस पर एक बहुत ही बड़ी कमी थी। उस मूर्ति पर मूर्तिकार चश्मा बनाना भूल गया था। जो कहीं न कहीं नेता जी का अपमान स्वरूप देखा जा सकता है, क्योंकि नेता जी ने आज़ादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व त्याग दिया था। उनकी छवि को उनके ही सादृश्य प्रस्तुत करना, हर देशवासी का कर्तव्य है और कस्बे के नागरिकों ने भी अपने इसी कर्तव्य का निर्वाह करने की कोशिश की थी। अतः हवलदार साहब इस घटना को देश भक्ति से जोड़ कर देख रहे हैं।

 

प्रश्न 4 – हालदार साहब को नेताजी की मूर्ति में कौन-सी कमी नज़र आई और उन्होंने उसके कारण के विषय में क्या-क्या अनुमान लगाया? 

उत्तर – जो कहानी लेखक हमें सुना रहे हैं वह कहानी सुभाष चंद्र जी की मूर्ति के बारे में है , बल्कि उसके भी एक छोटे-से हिस्से के बारे में है। लेखक के मुताबिक़ जो सुभाष चंद्र जी की मूर्ति में कमी रह गई है उसके बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे-जिसने भी सुभाष चंद्र जी की मूर्ति बनवाई है उसको देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होगी या फिर अच्छी मूर्ति बनाने के लिए जो खर्चा लगता है और जो उन्हें मूर्ति बनाने के लिए खर्च दिया गया होगा उस से कहीं बहुत ज्यादा खर्च होने के कारण सही मूर्तिकार को उपलब्ध नहीं करवा पाए होंगे। या हो सकता है कि काफी समय भाग-दौड़ और लिखा-पत्री में बरबाद कर दिया होगा और बोर्ड के शासन करने का समय समाप्त होने की घड़ियाँ नजदीक आ गई हों और मूर्ति का निर्माण उससे पहले करवाना हो जिस कारण किसी स्थानीय कलाकार को ही मौक़ा देने का निश्चय कर लिया गया होगा, और अंत में उस कस्बे के एक मात्र हाई स्कूल के एक मात्र ड्राइंग मास्टर को ही यह काम सौंप दिया गया होगा। 

 

प्रश्न 5 – कैप्टन नेताजी की मूर्ति पर लगा चश्मा अकसर क्यों बदल देता था? उसकी इस हरकत से आपके मन में उसके प्रति कौन-से भाव आते हैं?

उत्तर – कैप्टन नेताजी की मूर्ति पर लगा चश्मा अकसर बदल देता था क्योंकि उसके पास जब कोई ग्राहक मूर्ति पर लगे फ्रेम जैसा फ्रेम माँगने आता था तो वह उसे मूर्तिवाला फ्रेम देकर उसकी जगह दूसरा फ्रेम लगा देता है। इसके पीछे कैप्टन चश्मेवाले की मजबूरी यह थी कि उसके पास सीमित मात्रा में फ्रेम थे और नेताजी की मूर्ति को वह बिना चश्मे के नहीं रहने देना चाहता था। यह उसकी शहीदों के प्रति सम्मान का भाव दर्शाता है। 

 

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Chapter 8 – Balgobin Bhagat (लगभग 25-30 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – बालगोबिन भगत के प्रति लेखक क्यों आकृष्ट था? – पाठ के आधार पर किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – बालगोबिन भगत के प्रति लेखक के आकृष्ट होने के दो मुख्य कारण थे – 

पहला था उनका संगीत। बालगोबिन भगत के गाने में एक विशेष प्रकार की माधुर्यता और दिव्यता थी, जो लेखक को बहुत प्रभावित करती थी। उनकी आवाज में एक जादू था, जो सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता था। और उनकी आवाज सुन कर लेखक उनकी और खींचा चला जाता था। 

दूसरा कारण था उनका धार्मिक समर्पण। बालगोबिन भगत अपने पुरे साल भर की सारी फसल कबीर को भेंट कर देते थे और प्रसाद में जो फसल वापिस मिलती थी उसी से जीवन यापन करते थे। उनके इसी धार्मिक समर्पण और निष्ठा के कारण बालगोबिन भगत के प्रति लेखक आकृष्ट थे। 

 

प्रश्न 2 – लेखक की आँखों से देखा गया बालगोबिन भगत की ‘प्रभाती’ का दृश्य कैसा था? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – लेखक की आँखों से देखा गया बालगोबिन भगत की प्रभाती का दृश्य बहुत ही मनमोहक था। सुबह-सुबह, पोखरे के ऊँचे भिडे पर बैठकर, बालगोबिन भगत अपनी खैजड़ी बजाते हुए गा रहे थे। तारे की छाँव में उनका मस्तक चमक रहा था। ठंडी हवा और कुहासे के बीच, उनका संगीत और गाना सारा वातावरण मोहक और रहस्यमय बना रहा था।

 

प्रश्न 3 – ‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ में किन सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया गया है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – ‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ में कई सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया गया है जैसे – 

पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं को चुनौती – बालगोबिन भगत ने गृहस्थ होते हुए भी साधु की तरह जीवन बिताया और कबीर की भक्ति को प्रमुखता दी। यह पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं को चुनौती देता है, जो गृहस्थ और साधु जीवन के बीच स्पष्ट विभाजन मानती हैं।

पारंपरिक शोक विधियों की उपेक्षा – अपने इकलौते बेटे की मृत्यु पर बालगोबिन भगत ने पारंपरिक शोक विधियों को अपनाने के बजाय अपने विश्वास और संगीत को प्राथमिकता दी, जिससे समाज की सामान्य शोक-प्रक्रिया की परंपराओं पर प्रश्न उठता है।

विधवा विवाह का समर्थन – बालगोबिन भगत ने अपनी पतोहू को उसके भाई के साथ भेज दिया और उसकी दूसरी शादी करवाने का आदेश भी दिया। यह समाज में विधवाओं के साथ होने वाले अन्याय के विरुद्ध उठाया हुआ एक कदम है। 

 

प्रश्न 4 – बालगोबिन भगत की ‘गर्मियों की संझा’ के दृश्य का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर – गर्मियों की उमसभरी शाम में बालगोबिन भगत अपने घर के आँगन में आसन जमा बैठते। गाँव के उनके कुछ प्रेमी भी जुट जाते। खँजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। एक पद बालगोबिन भगत कह जाते, उनकी प्रेमी-मंडली उसे दुहराती, तिहराती। धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता-एक निश्चित ताल, एक निश्चित गति से, धीरे-धीरे मन तन पर हावी हो जाता। होते-होते, एक क्षण ऐसा आता कि बीच में खँजड़ी लिए बालगोबिन भगत नाच उठते थे और उनके साथ ही सबके तन और मन नृत्यशील हो उठते थे। सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत हो जाता था।

 

प्रश्न 5 – बालगोबिन भगत गृहस्थी के भीतर भी संन्यासी किस तरह थे? 

उत्तर – बालगोबिन भगत बेटा – पतोहू से युक्त परिवार , खेतीबारी और साफ़ – सुथरा मकान रखने वाले गृहस्थ थे, फिर भी उनका आचरण साधुओं जैसा था। वह सदैव खरी – खरी बातें कहते थे। वे झूठ नहीं बोलते थे। वे किसी की वस्तु को बिना पूछे प्रयोग नहीं करते थे। वे खामखाह किसी से झगड़ा नहीं करते थे। वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में रहते थे। वे अपनी उपज को कबीरपंथी मठ पर चढ़ावा के रूप में दे देते थे। वहाँ से जो कुछ प्रसाद रूप में मिलता था उसी में परिवार का निर्वाह करते थे।

 

प्रश्न 6 – भगत की पुत्र-वधू भी उनकी उतनी ही चिंता करती थी जितनी भगत उसकी करते थे। – ‘बालगोबिन भगत’ पाठ से उदाहरण देते हुए इस कथन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – भगत की पुत्रवधू भी उनकी उतनी ही चिंता करती थी जितनी भगत उसकी करते थे। वह उन्हें इसलिए अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि भगत के इकलौते पुत्र और उसके पति की मृत्यु के बाद भगत अकेले पड़ गए थे। वह वृद्धावस्था में अकेले पड़े भगत की सेवा करना चाहती थी और उनकी सेवा करके अपना जीवन बिताना चाहती थी। परन्तु भगत भी जानते थे कि उनकी पतोहू का अभी पूरा जीवन पड़ा है वह नया घर बसा कर खुश रह सकती है इसलिए उन्होंने उसे उसके भाई के साथ भेज दिया और उसकी दूसरी शादी करवाने का आदेश दिया ताकि वह बाकि का जीवन सुख से जी सके।

 

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Chapter 9 – Lakhnavi Andaz (लगभग 25-30 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – ‘नवाब साहब ने खीरे बाहर फेंक दिए’- आपकी दृष्टि में उनका यह व्यवहार कहाँ तक उचित है?

उत्तर – अपनी झूठी शान दिखाने के लिए नवाब साहब ने खीरे बाहर फेंक दिए। उनका यह व्यवहार बिलकुल भी उचित नहीं था क्योंकि उन्होंने स्वयं ही खीरे खाने के लिए ख़रीदे थे और लेखक के सामने खीरे खाना उन्हें अपनी शान के विरुद्ध लग रहा था। 

 

प्रश्न 2 – ‘झूठी शान और दिखावे से अपना व्यक्तित्व ही धूमिल पड़ता है।’ इस कथन को ‘लखनवी अंदाज़’ कहानी के आधार पर उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘झूठी शान और दिखावे से अपना व्यक्तित्व ही धूमिल पड़ता है।’ ‘लखनवी अंदाज़’ कहानी के आधार पर यह स्पष्ट होता है। उदाहरण के लिए, जब नवाब साहब की खीरे काटने की हर एक क्रिया – प्रक्रिया और उनके जबड़ों की कंपन से यह स्पष्ट था कि उन खीरों को काटने और उस पर जीरा – मिला नमक और लाल मिर्च की लाली बिखेरने की सारी प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रस का स्वाद लेना की कल्पना मात्र से ही जल से भर गया था। जिस तरह जब हम अपनी पसंदीदा खाने की किसी चीज़ को देखते हैं तो हमारे मुँह में पानी आ जाता है उसी तरह नवाब साहब के मुँह में भी खीरों को खाने के लिए तैयार करते समय पानी भर आया था। नवाब साहब ने सेकंड क्लास का टिकट ही इस ख़याल से लिया होगा ताकि कोई उनको खीरा खाते न देख लें लेकिन अब लेखक के ही सामने इस तरह खीरे को खाने के लिए तैयार करते समय अपना स्वभाविक व्यवहार कर रहे थे। 

 

प्रश्न 3 – नवाब साहब की झूठी शानों-शौकत और घमंड भरे व्यवहार को देखकर लेखक ने उनके साथ किस प्रकार का व्यवहार किया? ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर इसे साबित कीजिए।

उत्तर – नवाब साहब अपनी नवाबी शान-शौकत को दिखाने की आदत रखते थे। वह अपनी हरकत से ठाट-बाट का प्रदर्शन करने में लगे थे। लेखक के डब्बे में आने पर नवाब साहब ने लेखक के साथ सफ़र करने के लिए किसी भी प्रकार की कोई ख़ुशी जाहिर नहीं की। लेखक भी बिना नवाब की ओर देखते हुए उनके सामने की सीट पर जा कर बैठ गए। और जब उन्होंने खीरे खाने की तैयारी की तो उससे उनके दिखावे की झलक स्पष्ट दिख रही थी जिस कारण लेखक ने उनके द्वारा खीरे खाने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

 

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Chapter 10 – Ek Kahani Yeh Bhi (लगभग 25-30 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – ‘एक कहानी यह भी’ के आधार पर स्वतंत्रता आंदोलन के आखिरी चरण के परिदृश्य का वर्णन कीजिए जिनमें कोई दो बिंदु अवश्य शामिल हों।

उत्तर – “एक कहानी यह भी” के आधार पर स्वतंत्रता आंदोलन के आखिरी चरण का परिदृश्य बहुत ही जोशीला और सक्रिय था। स्वतंत्रता आंदोलन के आखिरी चरण में प्रभात फेरियां और हड़तालें अपनी चरम पर थी। लेखिका और उनके साथी प्रभात फेरियां निकालते, हड़तालें करवाते और नारे लगाते थे। इससे आजादी की भावना और जोश हर जगह फैला हुआ था। स्वतंत्रता आंदोलन के आखिरी चरण में छात्रों की भागीदारी भी कई गुना बढ़ गई थी। स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राएं आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। लेखिका भी इन गतिविधियों में शामिल होकर स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान देती थीं।

 

प्रश्न 2 – हम कैसे कह सकते हैं कि मन्नू भण्डारी के पिता बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे?

उत्तर – अजमेर से पहले उनके पिता जी इंदौर में थे जहाँ उनका बहुत अधिक सम्मान और इज़्ज़त की जाती थी, उनकी बहुत प्रतिष्ठा थी और उनका नाम था। उनके पिता जी केवल शिक्षा के उपदेश ही नहीं देते थे , बल्कि उन दिनों वे आठ – आठ, दस – दस विद्यार्थियों को अपने घर रखकर पढ़ाया करते थे, और उन विद्यार्थियों में से कई तो बाद में ऊँचे – ऊँचे पदों पर पहुँचे।

 

प्रश्न 3 – ‘एक कहानी यह भी’ के संदर्भ में लिखिए कि वर्तमान पड़ोस-कल्चर में किन बातों का अभाव दृष्टिगोचर होता है।

उत्तर – उस ज़माने में लड़कियों को उतनी अधिक आज़ादी नहीं थी परन्तु उस जमाने की एक अच्छी बात यह थी कि उस ज़माने में एक घर की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थीं बल्कि पूरे मोहल्ले तक फैली रहती थीं इसलिए मोहल्ले के किसी भी घर में जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी , बल्कि कुछ घर तो परिवार का हिस्सा ही थे। लेखिका आज के वर्तमान समय की बात करते हुए कहती हैं कि आज तो लेखिका को बड़ी प्रबलता के साथ यह महसूस होता है कि अपनी ज़िदगी खुद जीने के इस वर्तमान समय या युग में दबाव ने महानगरों के फ़्लैट में रहने वालों को हमारे इस पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाले ‘पड़ोस – कल्चर’ से बिलकुल अलग करके हम सभी को कितना संकीर्ण,असहाय और असुरक्षित बना दिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि लेखिका पुराने समय के ‘पड़ोस – कल्चर’ को आज के फ़्लैट सिस्टम से बहुत अधिक अच्छा और सुरक्षित मानती हैं। 

 

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Chapter 11 – Naubatkhane Mein Ibadat (लगभग 25-30 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – बिस्मिल्ला खाँ की एक संगीत साधक के रूप में क्या विशेषताएँ थीं? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ की एक संगीत साधक के रूप में कई विशेषताएँ थीं। बिस्मिल्ला खाँ अपनी संगीत कला को समर्पित कलाकार थे। वे अपनी संगीत कला में निखार लाने के लिए खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगा करते थे। वे सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते थे और बार-बार सच्चे सुर की माँग करते। थे। इससे बिस्मिल्ला खाँ की विनम्रता और सीखने की ललक जैसी विशेषताओं का पता चलता है।

 

प्रश्न 2 – भारत रत्न बिस्मिल्ला खाँ पर ‘सादा जीवन उच्च विचार’ वाली कहावत चरितार्थ होती है, कैसे?

उत्तर – बिस्मिल्लाह खाँ को भारत रत्न का सम्मान अद्धभुत शहनाई वादक के रूप में मिला था। इसके बावजूद भी वे बहुत सादगी से रहते थे। एक दिन बिस्मिल्ला खाँ के एक शिष्य ने डरते – डरते बिस्मिल्ला खाँ साहब को टोका कि आपको भारत सरकार का सर्वोच्च सम्मान अर्थात भारतरत्न भी मिल चुका है, यह फटी धोती न पहना करें। “अच्छा नहीं लगता, जब भी कोई आता है आप इसी फटी धोती में सबसे मिलते हैं।” उस शिष्य की बात सुनकर बिस्मिल्ला खाँ साहब मुसकराए। दुलार व् वात्सल्य से भरकर उस शिष्य से बोले कि ये जो भारतरत्न उनको मिला है न यह शहनाई पर मिला है, उनकी लंगोटी पर नहीं। अगर वे भी सब लोगों की तरह बनावटी शृंगार देखते रहते, तो पूरी उमर ही बीत जाती, और शहनाई की तो फिर बात ही छोड़ो। तब क्या वे खाक रियाज़ कर पाते। कहने का तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब बहुत ही सीधे – सादे व्यक्ति थे। वे कोई भी दिखावा करना सही नहीं समझते थे। वे केवल अपने रियाज़ को ही महत्वपूर्ण मानते थे। भारत रत्न बिस्मिल्ला खाँ पर ‘सादा जीवन उच्च विचार’ वाली कहावत चरितार्थ होती है। 

 

प्रश्न 3 – बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के लिए सर्वोच्च सम्मान पाकर भी नमाज के बाद सजदे में गिड़गिड़ाते – ‘मेरे मालिक एक सुर बख्श दे।’ – इससे उनकी कौन-सी दो विशेषताएँ उभरकर आती हैं?

उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के लिए सर्वोच्च सम्मान पाकर भी नमाज के बाद सजदे में गिड़गिड़ाते – ‘मेरे मालिक एक सुर बख्श दे।’ बिस्मिल्ला खाँ को यह भरोसा था कि कभी न कभी ईश्वर उन पर यूँ ही दयालु व् दयावान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर बिस्मिल्ला खाँ की ओर उछालेगा, और फिर कहेगा कि ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी इच्छा को पूरी। इससे बिस्मिल्ला खाँ के बारे में पता चलता है कि उन्हें अपनी शहनाई बजाने में किसी प्रकार का घमंड नहीं था बल्कि वे तो सारा दिन रियास करते रहते थे। वे एक सच्चे संगीतज्ञ थे। 

 

प्रश्न 4 – बिस्मिल्ला खाँ ‘मालिक’ से कौन-सी दुआ माँगते थे? इससे उनके व्यक्तित्व का कौन-सा पहलू सामने उभरता है।

उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ ने अपनी पूरी जिंदगी में ईश्वर से अपने संगीत की समृद्धि के अलावा कुछ नहीं माँगा। वे हमेशा नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते थे कि मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। उनके सुर में ऐसा गुण व् योग्यता पैदा करे कि उनके सुरों को सुन कर हर किसी की आँखों से सच्चे मोती की तरह लगातार आँसू निकल आएँ। बिस्मिल्ला खाँ को यह भरोसा था कि कभी न कभी ईश्वर उन पर यूँ ही दयालु व् दयावान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर बिस्मिल्ला खाँ की ओर उछालेगा, और फिर कहेगा कि ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी इच्छा को पूरी। इससे बिस्मिल्ला खाँ के बारे में पता चलता है कि उन्हें अपनी शहनाई बजाने में किसी प्रकार का घमंड नहीं था बल्कि वे तो सारा दिन रियास करते रहते थे। वे एक सच्चे संगीतज्ञ थे। 

 

प्रश्न 5 – बिस्मिल्ला खाँ को लेखक ‘मंगल ध्वनि का नायक’ क्यों कहता है? 

उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि शहनाई की ध्वनि मंगलदायी मानी जाती है। इसका वादन मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। अर्थात शहनाई को केवल शुभ कार्य या कल्याण अवसरों पर ही बजाय जाता है। बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष की आयु तक शहनाई बजाते रहे। उनकी गणना भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक के रूप में की जाती है। उन्होंने शहनाई को भारत ही नहीं विश्व में लोकप्रिय बनाया। इसलिए बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक कहा गया है।

 

प्रश्न 6 – काशी में किस प्रकार के परिवर्तन हो रहे थे और उन परिवर्तनों पर बिस्मिल्ला खाँ क्या सोचते थे?

उत्तर – समय के साथ – साथ काशी में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं जो बिस्मिल्ला खाँ को दुखी करते हैं , जैसे –

पक्का महाल से मलाई बरफ़ वाले गायब हो रहे हैं।

कुलसुम की कचौड़ियाँ और जलेबियाँ अब नहीं मिलती हैं।

संगीत और साहित्य के प्रति लोगों में वैसा मान – सम्मान नहीं रहा।

गायकों के मन में संगतकारों के प्रति सम्मान भाव नहीं रहा।

हिंदू – मुसलमानों में सांप्रदायिक सद्भाव में कमी आ गई है।

 

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Chapter 12 – Sanskriti (लगभग 25-30 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – ‘संस्कृति’ पाठ के आधार पर बताइए कि ‘संस्कृत व्यक्ति’ कौन होता है? उसकी खूबियों पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – वास्तविक अर्थों में संस्कृत व्यक्ति उसे कहा जा सकता है जो अपना पेट भरा होने तथा तन ढका होने पर भी निठल्ला नहीं बैठता है। वह अपने विवेक और बुद्धि से किसी नए तथ्य का दर्शन करता है और समाज को अत्यंत उपयोगी आविष्कार देकर उसकी सभ्यता का मार्ग प्रशस्त करता है। उदाहरणार्थ न्यूटन संस्कृत व्यक्ति था जिसने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की। इसी तरह सिद्धार्थ ने मानवता को सुखी देखने के लिए अपनी सुख – सुविधा छोड़कर जंगल की ओर चले गए थे। साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ वह है जो अपनी बुद्धि, अपनी समझ और अपनी क्षमता से किसी ऐसे नए तथ्य का आविष्कार करे जो सभी के लिए कल्याणकारी हो।

 

प्रश्न 2 – ‘संस्कृति’ पाठ के आधार पर लिखिए कि आज के विज्ञान के विद्यार्थियों को लेखक न्यूटन के मुकाबले कहाँ देखता है। उसकी बातों से अपनी सहमति/असहमति तर्कों द्वारा साबित कीजिए। 

उत्तर – न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण अर्थात ग्रैविटेशन के सिद्धांत अथवा प्रिंसिपल का आविष्कार किया। इसलिए वह संस्कृत मानव था। आज के युग का प्राकृतिक नियमों के सिद्धांतों के विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण को तो भली-भाँती समझता है ही, उसके साथ उसे और भी अनेक बातों का ज्ञान प्राप्त है जिनसे शायद न्यूटन अपरिचित ही रहा। अर्थात आज के विद्यार्थी को भले ही गुरुत्वाकर्षण के साथ – साथ कई सिद्धांत और बातें पता हों लेकिन ऐसा होने पर भी हम आज के भौतिक विज्ञान के विद्यार्थी को न्यूटन की अपेक्षा अधिक सभ्य भले ही कह सकते है पर न्यूटन जितना संस्कृत नहीं कह सकते। लेखक की इन बातों से हम सहमत हैं क्योंकि न्यूटन ने अपनी योग्यता , स्वभाव या आचार – व्यवहार का इस्तेमाल करके नए तथ्य का आविष्कार किया जबकि आज के विद्यार्थियों को ये आविष्कार बिना किसी कोशिश के ही प्राप्त हुए हैं।

 

प्रश्न 3 – लोग संस्कृति और सभ्यता को ठीक-ठीक समझने में अभी भी भूल क्यों करते हैं? 

उत्तर – लेखक की दृष्टि में सभ्यता और संस्कृति शब्दों की सही समझ अब तक इसलिए नहीं बन पाई है क्योंकि लोग सभ्यता और संस्कृति शब्दों का प्रयोग तो खूब करते हैं पर वे इनके अर्थ के बारे में भ्रमित रहते हैं। वे इनके अर्थ को जाने – समझे बिना मनमाने ढंग से इनका प्रयोग करते हैं। इन शब्दों के जो अर्थ उन्हें पहले समझ में आते भी हैं , वे बाद में इन शब्दों के साथ भौतिक और आध्यात्मिक जैसे विशेषण लगाकर और भी गलत – सलत लगने लग जाते हैं। ऐसी स्थिति में लोग इनका अर्थ अपने – अपने विवेक से लगा लेते हैं। इससे स्पष्ट है कि इन शब्दों के सही अर्थ की समझ अब तक नहीं बन पाई है।

 

प्रश्न 4 – ‘संस्कृति’ पाठ के लेखक किन तर्कों के आधार पर न्यूटन को ‘संस्कृत मानव’ कहते हैं? क्या आप भी उनसे सहमत हैं?

उत्तर – न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे यह तर्क दिया गया है कि न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत संबंधी नए तथ्य का दर्शन किया और इस सिद्धांत की खोज किया। नई चीज़ की खोज करने के कारण न्यूटन संस्कृत मानव था। कुछ लोग जो न्यूटन के पीढ़ी के हैं, वे न्यूटन के सिद्धांत को जानने के अलावा अन्य बहुत – सी उन बातों का ज्ञान रखते हैं जिनसे न्यूटन सर्वथा अनभिज्ञ था, परंतु उन्हें संस्कृत मानव इसलिए नहीं कहा जा सकता है क्योंकि उन्होंने न्यूटन की भाँति किसी नए तथ्य का आविष्कार नहीं किया। ऐसे लोगों को संस्कृत मानव नहीं बल्कि सभ्य मानव कहा जा सकता है। इस तर्क से हम भी सहमत हैं।

 

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Kritika Bhag 2 

 

Chapter 1 – Mata Ka Aanchal (लगभग 50-60 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – “बच्चों के सुख-दुख, झगड़े- खेल क्षणिक होते हैं।” – इस कथन का आशय स्पष्ट करते हुए ‘माता का अँचल’ पाठ के किन्हीं दो उदाहरणों के संदर्भ से इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए। 

उत्तर – “बच्चों के सुख-दुख, झगड़े- खेल क्षणिक होते हैं।” उदाहरण के लिए जब गुरू जी द्वारा गुस्सा करने व् पिटाई करने पर भोलानाथ अपने पिता की गोद में रोने-बिलखने लगता है परन्तु रस्ते में अपने मित्रों को मजा करते देख वह स्वयं को रोक नहीं पाता व् ज़िद्द करके उनके साथ खेलने चला जाता है। वह अपनी मार की पीड़ा खेल की क्रीड़ा के आगे भूल जाता है। इसका कारण यह है कि बच्चे अपनी स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रुचि रखते है। उनके साथ खेलना मस्ती करना उन्हें अच्छा लगता है।

 

प्रश्न 2 – ‘भोलानाथ का बचपन सरल, सहज और सामाजिक था जबकि हमारा बचपन जटिल, उलझाऊ और एकांतिक बन चुका है।’ – इस कथन के आलोक में ‘माता का अँचल’ पाठ – से दो उदाहरण लेते हुए अपने जीवन के दो उदाहरणों के साथ तुलनात्मक टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – ‘भोलानाथ का बचपन सरल, सहज और सामाजिक था जबकि हमारा बचपन जटिल, उलझाऊ और एकांतिक बन चुका है।’ उदाहरण के लिए – भोलानाथ की माँ जिद्द करके उन्हें अनेक पक्षियों के नाम से निवाले बनाकर बड़े प्यार से खिलाती थी। भोलानाथ की माँ भोलानाथ को बहुत लाड -प्यार करती थी। वह कभी उन्हें अपनी बाहों में भर कर खूब प्यार करती , तो कभी उन्हें जबरदस्ती पकड़ कर उनके सिर पर सरसों के तेल से मालिश करती। जबकि आज के बच्चे बिना फ़ोन के खाना खाने को तैयार नहीं होते और न ही आज के व्यस्त दिनचर्य में माता-पिता को बच्चों के साथ अधिक समय मिल पता है। 

दूसरा उदाहरण भोलानाथ और उनकी मित्र मण्डली द्वारा खेले जाने वाले अलग-अलग खेल है जिनसे बच्चे स्वयं ही मनोरंजन करते थे। आज के बच्चों के पास न तो खेल-खलियान हैं और न ही अधिक मित्र जिसके कारण उनका बचपन जटिल, उलझाऊ और एकांतिक बन चुका है।

 

प्रश्न 3 – ‘माता का अँचल’ पाठ में बच्चों का जीवन अधिक प्राकृतिक और सामाजिक था, आज की तुलना में’ – इस कथन को ‘माता का अँचल’ से उदाहरण लेकर स्पष्ट करें।

उत्तर – ‘माता का अँचल’ पाठ में बच्चों का जीवन अधिक प्राकृतिक और सामाजिक था, आज की तुलना में’ – इस कथन को ‘माता का अँचल’ से कई उदाहरणों से स्पष्ट किया जा सकता है जैसे –

भोलानाथ अपने हमउम्र दोस्तों के साथ तरह-तरह के नाटक करते थे। कभी चबूतरे का एक कोना ही उनका नाटक घर बन जाता तो, कभी बाबूजी की नहाने वाली चौकी ही रंगमंच बन जाती।और उसी रंगमंच पर सरकंडे के खंभों पर कागज की चादर बनाकर उनमें मिट्टी या अन्य चीजों से बनी मिठाइयों की दुकान लग जाती। तो कभी-कभी बच्चे बारात का भी जुलूस निकालते थे जिसमें तंबूरा और शहनाई भी बजाई जाती थी। दुल्हन को भी विदा कर लाया जाता था। बाबूजी भी बच्चों के खेलों में भाग लेकर उनका आनंद उठाते थे। कभी आम की फसल के दौरान आँधी चलने से बहुत से आम गिर जाते थे। बच्चे उन आमों को उठाने भागा करते थे। आज के बच्चों के पास न तो खेल-खलियान हैं और न ही अधिक मित्र जिसके कारण उनका बचपन जटिल, उलझाऊ और एकांतिक बन चुका है।

 

प्रश्न 4 – आज हमारा जीवन तकनीक और वस्तुओं पर निर्भर हो चला है जबकि भोलानाथ और उसके साथी इन सबसे परे होकर भी अत्यंत प्रसन्न और समृद्ध बचपन को जी रहे थे। आज के बच्चों को एक भरा-पूरा और अनुभव – सम्पन्न बचपन देने के लिए आप क्या सुझाव देंगे? पाठ के अनुभव के आधार पर उत्तर दीजिए। 

उत्तर – आज हमारा जीवन तकनीक और वस्तुओं पर निर्भर हो चला है जबकि भोलानाथ और उसके साथी इन सबसे परे होकर भी अत्यंत प्रसन्न और समृद्ध बचपन को जी रहे थे। भोलानाथ के समय में बच्चे आँगन व् खेत में पड़ी हुई किसी भी वस्तु को उठा कर उसे ही खेल का आधार बना लिया करते थे। वे खेत की मिट्टी, पत्थर, लकड़ी, पेड़ों के पत्तों व् घर के टूटे-फूटे सामान से ही खेलते व् खुश हो जाते थे। खेल की सामग्रियाँ बच्चे खुद से तैयार करते थे।

परन्तु आज खेल सामग्री का निर्माण बच्चे स्वयं नहीं करते बल्कि खिलौनों को बाज़ार से खरीद कर लाते है। बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए खेलने की समय-सीमा भी तय कर दी जाती है। अब की पीढ़ी खेलने के लिए वीडियो गेम, क्रिकेट, वॉलीबॉल, फुटबॉल, बेसबॉल जैसी आदि चीजों से खेलते हैं। ऐसा लगता है जैसे आज के बच्चों का धूल-मिट्टी से कोई सम्बन्ध ही नहीं रहा है।

आज के बच्चों को एक भरा-पूरा और अनुभव – सम्पन्न बचपन देने के लिए बच्चों को उनके पसंद के अनुसार बिना रोक-टोक के खेलने देना चाहिए। 

 

प्रश्न 5 – ‘माता का अँचल’ पाठ के भोलानाथ के जीवन के प्रसंग आपको अपने बचपन की याद दिलाते होंगे। ऐसे दो प्रसंगों का तुलनात्मक वर्णन कीजिए।

उत्तर – ‘माता का अँचल’ पाठ के भोलानाथ के जीवन के प्रसंग हमें अपने बचपन की याद दिलाते हैं। भोलानाथ अपने हमउम्र दोस्तों के साथ तरह-तरह के नाटक करते थे। कभी चबूतरे का एक कोना ही उनका नाटक घर बन जाता तो कभी सरकंडे के खंभों पर कागज की चादर बनाकर उनमें मिट्टी या अन्य चीजों से बनी मिठाइयों की दुकान लग जाती। तो कभी-कभी बच्चे बारात का भी जुलूस निकालते थे। हम भी अपने बचपन में इसी तरह के खेल खेला करते थे। ‘माता का अँचल’ पाठ में भोलानाथ अपने हमउम्र दोस्तों के साथ में कभी-कभी उन आमों को उठाने के लिए भागते थे जो आम आँधी चलने से खेत में गिर जाते थे। हम भी चोरी-छिपे दूसरे लोगों के खेतों से सेब व् नाशपाती जैसे फल चुराते थे और न पकड़े जाने पर अपनी जीत मानते थे। 

 

प्रश्न 6 – ‘माता का अँचल’ पाठ के आधार पर ग्रामीण संस्कृति की मुख्य विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए। यह भी बताइए कि आज के समय में उनमें कौन-से बदलाव आए हैं।

उत्तर – ‘माता का अँचल’ पाठ में ग्रामीण संस्कृति की कई विशेषताऐं बताई गई हैं जैसे – गाँव में माता-पिता अपने बच्चों के साथ अधिक समय व्यतीत करते हैं। पिता बच्चों के हर खेल में शामिल होने का प्रयास करते हैं और माता अपने बच्चे को अच्छे से खाना खिलाने के लिए तरह-तरह के स्वांग रचती है। गाँव के लोग भी सभी बच्चों को अपने ही बच्चों की तरह प्यार करते हैं और बच्चे मंडलियाँ बना कर अलग-अलग ढंग से खेल-खेलते हैं। 

आज के व्यस्त समय में माता-पिता अपने बच्चों के साथ अधिक समय व्यतीत नहीं कर पाते और दिन भर व्यस्त होने के कारण न ही पिता बच्चों के साथ हर खेल में शामिल हो सकता है। आज के समय में सुरक्षा के माध्यम से बच्चों को अकेले बाहर जाने नहीं दिया जा सकता और न ही आज के बच्चों के पास खेत-खलियान बचे हैं जहाँ वे कोई खेल खेल सके। 

 

प्रश्न 7 – ‘माता का अँचल’ पाठ में बच्चों की दिनचर्या आजकल के बच्चों की दिनचर्या से भिन्न है, कैसे? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर – ‘माता का अँचल’ पाठ में बच्चों की दिनचर्या आजकल के बच्चों की दिनचर्या से भिन्न है। ‘माता का अँचल’ पाठ में बच्चों की दिनचर्या पूजा पाठ से शुरू होता था। बच्चे पिता के साथ समय बिताते थे। माता के हाथों से भर-पेट खाना खा कर, बालों में सरसों का तेल लगा कर मित्र मंडली के साथ बे-रोकटोक खेलने निकल जाते थे। आजकल के बच्चों की सुबह लेट उठ कर शुरू होती है। बच्चे माता-पिता के साथ समय न बिता कर फ़ोन देखने में व्यस्त हो जाते हैं। हल्का-फुल्का खाना खा कर वे या तो फ़ोन में व्यस्त हो जाते हैं या घर के अंदर ही वीडियो गेम आदि खेलते हैं। 

 

प्रश्न 8 – “माता के अँचल में जो सुकून मिलता है, और कहीं नहीं।” कथन के संदर्भ में उदाहरण सहित अपने विचार लिखिए। 

उत्तर – एक पिता चाहे अपनी संतान से कितना भी प्रेम करता हो पर जो आत्मीय सुख माँ की छाया अथवा गोद में प्राप्त होता है वह पिता से प्राप्त नहीं होता। माँ के आँचल में बच्चा स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। यही कारण था कि प्रस्तुत पाठ में बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव होने पर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है।

 

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Chapter 2 – Saana Saana Hath Jodi (लगभग 50-60 शब्दों में)

 

प्रश्न 1 – ” ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ में मनोरम प्राकृतिक दृश्यों के चित्रण के साथ-साथ लेखिका की आंतरिक यात्रा का अंकन भी है” – पाठ के आधार पर इन दोनों पक्षों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – ” ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ में मनोरम प्राकृतिक दृश्यों के चित्रण के साथ-साथ लेखिका की आंतरिक यात्रा का अंकन भी है” क्योंकि बाह्य जगत की यात्रा के साथ-साथ लेखिका उन विशालकाय पर्वतों के बीच और घाटियों के ऊपर बने तंग कच्चे-पक्के रास्तों से गुज़रते हुए महसूस कर करि थी जैसे वे किसी घनी हरियाली वाली गुफा के बीच हिलते-ढुलते निकल रहे हों। इस बिखरी हुई बेहद सुंदरता का मन पर यह प्रभाव पड़ा कि सभी घूमने आए हुए यात्री झूम-झूमकर गाना गाने लगे-“सुहाना सफर और ये मौसम हँसी…।” परन्तु लेखिका खामोश थी। वह किसी ऋषि की तरह शांत बैठी हुई थी। इसका कारण यह था कि लेखिका अपने चारों और की प्राकृतिक सुंदरता को अपने अंदर समाना चाहती थी।

 

प्रश्न 2 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के संदर्भ में लिखिए कि प्राकृतिक जल संचय की व्यवस्था को कैसे सुधारा जा सकता है? इस दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – प्रकृति ने जल-संचय की बड़ी अद्भुत व्यवस्था की है। प्रकृति, सर्दियों के समय में पहाड़ों पर बर्फ बरसा देती है और जब गर्मी शुरू हो जाती है तो उस बर्फ को पिघला कर नदियों को जल से भर देती है। जिससे गर्मी से व्याकुल लोगों को गर्मियों में जल की कमी नहीं होती। यदि प्रकृति ने बर्फ के माध्यम से जल संचय की व्यवस्था ना की होती तो हमारे जीवन के लिए आवश्यक जल की आपूर्ति सम्भव नहीं थी। प्रकृति सर्दियों में पर्वत शिखरों पर बर्फ के रूप में गिरकर जल का भंडारण करती है। जो गर्मियों में जलधारा बनकर प्यास बुझाते हैं। नदियों के रूप में बहती यह जलधारा अपने किनारे बसे नगर-गाँवों में जल-संसाधन के रूप में तथा नहरों के द्वारा एक विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई करती हैं और अंततः सागर में जाकर मिल जाती हैं। सागर से जलवाष्प बादल के रूप में उड़ते हैं, जो मैदानी क्षेत्रों में वर्षा तथा पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ के रूप में बरसते हैं। इस प्रकार ‘जल-चक्र’ द्वारा प्रकृति ने जल-संचयन तथा वितरण की व्यवस्था की है।

 

प्रश्न 3 – “साना-साना हाथ जोड़ि” पाठ की लेखिका को लोंग स्टॉक में धर्म चक्र को देख कर संपूर्ण भारत की सोच एक जैसी क्यों प्रतीत हुई? आपके विचार से अन्य कौन-सी बातों में भारत की आत्मा एक-सी प्रतीत होती है?

उत्तर – लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका ने उसके बारे में पूछा तो पता चला कि यह धर्म-चक्र है। इसे प्रेयर व्हील भी कहा जाता है। इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका को यह सुन कर एक बात समझ में आई कि चाहे मैदान हो या पहाड़, सभी वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद इस देश की आत्मा एक जैसी। लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की अवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक जैसी ही हैं।

 

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