CBSE Class 10 Hindi Chapter 6 “Sangatkar”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Kshitij Bhag 2 Book
संगतकार – Here is the CBSE Class 10 Hindi Kshitij Bhag 2 Chapter 6 Sangatkar Summary with detailed explanation of the lesson ‘Sangatkar’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary.
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 10 हिंदी कोर्स ए क्षितिज भाग 2 के पाठ 6 संगतकार के पाठ प्रवेश , पाठ सार , पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 संगतकार पाठ के बारे में जानते हैं।
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- संगतकार पाठ प्रवेश
- संगतकार पाठ सार
- संगतकार पाठ व्याख्या
- संगतकार प्रश्न – अभ्यास
“ संगतकार ”
संगतकार पाठ प्रवेश (Sangatkar – Introduction to the chapter)
संगतकार कविता के कवि ‘ मंगलेश डबराल जी ‘ हैं। इस कविता में कवि कहते हैं कि किसी भी गीत को बनाते वक्त मुख्य गायक के साथ – साथ अनेक लोग जैसे संगीतकार , गीतकार , अनेक वाद्य यंत्र वादक (जो वाद्य यंत्रों को बजाते हैं जैसे ढोलक , तबला , सितार आदि ) अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संगतकार भी उन्हीं में से एक है जो मुख्य गायक के सुर में अपना सुर मिलाकर गाने को प्रभावशाली बनाने में मदद करता है। और जब कभी मुख्य गायक अपनी सुर साधना में खो कर कही भटक जाता हैं और गीत के मुख्य सुरों को भूल जाता हैं तो उस समय यही संगतकार दुबारा मुख्य सुरों को पकड़ने में उसकी मदद करता हैं। यानि गाना गाते वक्त मुख्य गायक के साथ – साथ संगतकार की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। लेकिन ये लोग अक्सर गुमनाम ही रह जाते हैं। संगतकार कविता गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका के महत्त्व पर विचार करती है। दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियों – जैसे – नाटक , फ़िल्म , संगीत , नृत्य के बारे में तो यह सही है ही , हम समाज और इतिहास में भी ऐसे अनेक उदाहरणों को देख सकते हैं , जहाँ नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। कविता हममें यह संवेदनशीलता विकसित करती है कि उनमें से प्रत्येक का अपना – अपना महत्त्व है और उनका सामने न आना उनकी कमजोरी नहीं मानवीयता है। संगीत की सूक्ष्म समझ और कविता की दृश्यात्मकता इस कविता को ऐसी गति देती है मानो हम इन सभी दृश्यों को अपनी आँखों के सामने घटते हुए देख रहे हों।
Sangatkar Summary – संगतकार पाठ सार
इस कविता में कवि ने गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका के महत्त्व का प्रतिपादन किया है। यह कविता मुख्य संगीतकार का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका के ईद – गिर्द घूमती है। जब मुख्य गायक किसी संगीत सभा में अपना कोई गीत प्रस्तुत कर रहा होता है तो उसकी भारी व गंभीर आवाज के साथ ही हमें संगतकार ( मुख्य गायक का साथ देने वाला सह गायक ) की आवाज सुनाई देती है। वह आवाज हल्की – हल्की मगर सुंदर और मधुर सुनाई देती हैं। कवि उस संगतकार की आवाज सुन कर अंदाजा लगा रहे हैं कि यह संगतकार मुख्य गायक का छोटा भाई भी हो सकता है या मुख्य गायक का कोई शिष्य भी हो सकता है या फिर संगीत सीखने के लिए पैदल चलकर मुख्य गायक के पास आने वाला कोई उनका दूर का रिश्तेदार भी हो सकता है। और सबसे खास बात यह हैं कि यह संगतकार जब से गायक ने गाना शुरू किया है तब से उसका साथ देना आया है। यानि शुरू से ही वह संगतकार मुख्य गायक की आवाज में अपनी आवाज मिलाकर उसके संगीत को और प्रभावशाली बनाता आया है। कवि संगतकार के उस हुनर के बारे में वर्णन करते है , जब मुख्य संगीतकार अपनी ही धुन में खो जाता है और अपने सुरों से भटकने लग जाता है , तब संगतकार ही अपनी खूबियों का प्रदर्शन करते हुए सब कुछ संभाल लेता है। कभी – कभी मुख्य गायक किसी गाने का अंतरा गाने में इतना मगन (तल्लीन) हो जाता हैं कि वह अपने सुरों से ही भटक जाता हैं। यानि असली सुरों को ही भूल जाता हैं। और अपने ही गीत या ताल में लगने वाले स्वरों के उच्चारण को भूल जाता है। वह संगीत के उस मोड़ पर आ जाता है जहाँ अंत निकट हो। ऐसी स्थिति में संगतकार , जो हमेशा मुख्य सुरों को पकड़े रहता है। वही उस समय सही सरगम को दुबारा पकड़ने में मुख्य गायक की मदद कर उसे उस विकट स्थिति से बाहर लाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि संगतकार हमेशा मूल स्वरों को ही दोहराता रहता हैं। जब मुख्य गायक गीत गाते हुए सुरों की दुनिया में खो जाता हैं और अंतरे के सुर – तान की बारीकियों में उलझकर बिखरने लगता हैं व मुख्य सुरों को भूल जाता हैं । तब वह संगतकार के गाने को सुनकर वापस मुख्य सुर से जुड़ जाता हैं। अर्थात संगतकार , सुर से भटके हुए मुख्य गायक को वापस सुर पकड़ने में मदद करता हैं। कवि आगे कहते हैं कि उस समय ऐसा लगता है मानो जैसे कि वह संगतकार मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान संमेटते हुए उसके साथ आगे बढ़ रहा है। उस समय उस मुख्य गायक को अपना बचपन याद आ जाता है जब वह नया – नया गाना सीखता था या नौसिखिया था। और उसका गुरु उसको सुरों से भटकने न दे कर सही सुरों पर बने रहने में उसकी मदद करता था। कवि संगतकार की उन और अधिक बातों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं जिनके बारे में हम अनजान हैं। कवि बताना चाहते हैं कि संगतकार हर मुश्किल घडी में मुख्य गायक का साथ देता है और उसे हर मुसीबत से बाहर निकालता है। जब कभी मुख्य गायक संगीत शास्त्र से संबंधित विधा का प्रयोग करके ऊंचे स्वर में गाता है तो उसका गला बैठने लगता है। उससे सुर सँभलते नहीं हैं। तब गायक को ऐसा लगने लगता है जैसे कि अब उससे आगे गाया नहीं जाएगा। उसके भीतर निराशा छाने लगती है। उसका मनोबल खत्म होने लगता है। उसकी आवाज कांपने लगती हैं जिससे उसके मन की निराशा व हताशा प्रकट होने लगती है। उस समय मुख्य गायक का हौसला बढ़ाने वाला व उसके अंदर उत्साह जगाने वाला संगतकार का मधुर स्वर सुनाई देता हैं। जब भी संगतकार मुख्य गायक के स्वर में अपना स्वर मिलता है यानि उसके साथ गाना गाता है तो उसकी आवाज में एक संकोच साफ सुनाई देता है। और उसकी हमेशा यही कोशिश रहती है कि उसकी आवाज मुख्य गायक की आवाज से धीमी रहे। अर्थात उसका स्वर भूल कर भी मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा न हो जाए इसका ध्यान वह बहुत अच्छे से रखता है। लेकिन हमें इसे संगतकार की कमजोरी या असफलता नही माननी चाहिए क्योंकि वह मुख्य गायक के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए ऐसा करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि अपना स्वर ऊँचा कर वह मुख्य गायक के सम्मान को ठेस नही पहुँचाना चाहता है। संगतकार जान – बूझकर अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा नहीं होने देते हैं। यह संगतकार द्वारा अपनी प्रतिभा का त्याग है जो योग्यता और सामर्थ्य होने पर भी मुख्य गायक की सफलता में बाधक नहीं बनता है और मानवता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है।
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संगतकार पाठ व्याख्या – Sangatkar Explanation
काव्यांश 1 –
मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज सुंदर कमजोर कांपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज में
वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से
शब्दार्थ –
मुख्य गायक – मुख्य संगीतकार
चट्टान – पत्थर का बहुत बड़ा और विशाल खंड
भारी स्वर – गंभीर आवाज
कमजोर – दुर्बल , निर्बल , अशक्त , शक्तिहीन , ढीला
शिष्य – छात्र
गरज – बहुत गंभीर या घोर शब्द
गूँज – भौरों के गुंजार करने का शब्द , गुंजार , कलरव , प्रतिध्वनि , गुंजार
प्राचीन काल – प्राचीन समय या बहुत पहले बिता हुआ समय
नोट – इन पंक्तियों में कवि ने गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका के महत्त्व का प्रतिपादन किया है। यह कविता मुख्य संगीतकार का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका के ईद – गिर्द घूमती है।
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब मुख्य गायक किसी संगीत सभा में अपना कोई गीत प्रस्तुत कर रहा होता है तो उसकी भारी व गंभीर आवाज के साथ ही हमें संगतकार ( मुख्य गायक का साथ देने वाला सह गायक ) की आवाज सुनाई देती है। वह आवाज हल्की – हल्की मगर सुंदर और मधुर सुनाई देती हैं। कवि उस संगतकार की आवाज सुन कर अंदाजा लगा रहे हैं कि यह संगतकार मुख्य गायक का छोटा भाई भी हो सकता है या मुख्य गायक का कोई शिष्य भी हो सकता है या फिर संगीत सीखने के लिए पैदल चलकर मुख्य गायक के पास आने वाला कोई उनका दूर का रिश्तेदार भी हो सकता है। और सबसे खास बात यह हैं कि यह संगतकार जब से गायक ने गाना शुरू किया है तब से उसका साथ देना आया है। यानि शुरू से ही वह संगतकार मुख्य गायक की आवाज में अपनी आवाज मिलाकर उसके संगीत को और प्रभावशाली बनाता आया है।
भावार्थ – इन पंक्तियों के माध्यम से कवि मुख्य संगीतकार का साथ देने वाले संगतकार की ओर लोगो का ध्यान लाना चाहते हैं। क्योंकि जितना योगदान किसी गायन में मुख्य संगीतकार का होता है उतना ही योगदान संगतकार का भी होता है। उसकी आवाज भले ही धीमे आती हो , परन्तु उसकी आवाज में भी मधुरता और सुंदरता होती है। कवि अनुमान लगाते हैं कि वह संगीतकार का कोई भाई या शिष्य या कोई रिश्तेदार भी सकता है क्योंकि वह संगीतकार के साथ बहुत समय पहले से ही संगतकार की भूमिका निभा रहा है।
काव्यांश 2 –
गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लॉघकर
चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को संभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था
शब्दार्थ –
अंतरा – मुखड़े को छोड़कर गीत का शेष भाग , गीत की टेक से अगली पंक्तियाँ , गीत के चरण
जटिल – उलझा हुआ , कठिन , दुर्बोध , जो आसानी से सुलझ न सके
तान – संगीत में स्वरों का कलात्मक विस्तार
सरगम – सात सुरों का समूह , स्वर-ग्राम , सप्तक , सातों सुरों के उतार – चढ़ाव या आरोह – अवरोह का क्रम , किसी गीत या ताल में लगने वाले स्वरों का उच्चारण
लॉघकर – पर करना
अनहद – अनाहत या सीमातीत
स्थायी – हमेशा बना रहने वाला , सदा स्थित रहने वाला , नष्ट न होने वाला
समेटना – बिखरी या फैली हुई वस्तु को इकट्ठा करना , बटोरना
नौसिखिया – जिसने कोई काम हाल ही में सीखा हो , जो काम में निपुण न हो , अनाड़ी , अदक्ष
नोट – कविता के इस अंश में कवि संगतकार के उस हुनर के बारे में वर्णन कर रहा है जब मुख्य संगीतकार अपनी ही धुन में खो जाता है और अपने सुरों से भटकने लग जाता है , तब संगतकार ही अपनी खूबियों का प्रदर्शन करते हुए सब कुछ संभाल लेता है।
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि कभी – कभी मुख्य गायक किसी गाने का अंतरा गाने में इतना मगन (तल्लीन) हो जाता हैं कि वह अपने सुरों से ही भटक जाता हैं। यानि असली सुरों को ही भूल जाता हैं। और अपने ही गीत या ताल में लगने वाले स्वरों के उच्चारण को भूल जाता है। वह संगीत के उस मोड़ पर आ जाता है जहाँ अंत निकट हो। ऐसी स्थिति में संगतकार , जो हमेशा मुख्य सुरों को पकड़े रहता है। वही उस समय सही सरगम को दुबारा पकड़ने में मुख्य गायक की मदद कर उसे उस विकट स्थिति से बाहर लाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि संगतकार हमेशा मूल स्वरों को ही दोहराता रहता हैं। जब मुख्य गायक गीत गाते हुए सुरों की दुनिया में खो जाता हैं और अंतरे के सुर – तान की बारीकियों में उलझकर बिखरने लगता हैं व मुख्य सुरों को भूल जाता हैं । तब वह संगतकार के गाने को सुनकर वापस मुख्य सुर से जुड़ जाता हैं। अर्थात संगतकार , सुर से भटके हुए मुख्य गायक को वापस सुर पकड़ने में मदद करता हैं। कवि आगे कहते हैं कि उस समय ऐसा लगता है मानो जैसे कि वह संगतकार मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान संमेटते हुए उसके साथ आगे बढ़ रहा है। उस समय उस मुख्य गायक को अपना बचपन याद आ जाता है जब वह नया – नया गाना सीखता था या नौसिखिया था। और उसका गुरु उसको सुरों से भटकने न दे कर सही सुरों पर बने रहने में उसकी मदद करता था।
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियों से हमें ज्ञात होता है कि संगतकार की भूमिका एक मुख्य संगीतकार के लिए क्या है। संगतकार हमेशा मुख्य गायक के लिए एक मार्गदर्शक का कार्य करता है। जब – जब भी गायक अपने संगीत की मुख्य लय से भटक जाता है तो संगतकार ही मुख्य सुरों तक वापिस आने में उसकी सहायता करता है।
काव्यांश 3 –
तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला|
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई , उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाँढस बँधता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग
शब्दार्थ –
तारसप्तक – संगीत शास्त्र से संबंधित एक विधा , हिंदी साहित्य में प्रयोगवादी कवियों द्वारा संपादित काव्य – ग्रंथ
प्रेरणा – किसी को किसी कार्य में प्रवृत्त करने की क्रिया या भाव , मन में उत्पन्न होने वाला प्रोत्साहनपरक भाव-विचार , ( इंस्पिरेशन )
उत्साह – उमंग , जोश , उछाह , हौसला , साहस , हिम्मत , दृढ़ संकल्प
ढाँढस बँधता – तसल्ली देना
राग – किसी ख़ास धुन में बैठाये हुए स्वर का ढाँचा , प्रेम , अनुराग
नोट – उपरोक्त काव्यांश में कवि संगतकार की उन और अधिक बातों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं जिनके बारे में हम अनजान हैं। कवि बताना चाहते हैं कि संगतकार हर मुश्किल घडी में मुख्य गायक का साथ देता है और उसे हर मुसीबत से बाहर निकालता है।
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब कभी मुख्य गायक संगीत शास्त्र से संबंधित विधा का प्रयोग करके ऊंचे स्वर में गाता है तो उसका गला बैठने लगता है। उससे सुर सँभलते नहीं हैं। तब गायक को ऐसा लगने लगता है जैसे कि अब उससे आगे गाया नहीं जाएगा। उसके भीतर निराशा छाने लगती है। उसका मनोबल खत्म होने लगता है। उसकी आवाज कांपने लगती हैं जिससे उसके मन की निराशा व हताशा प्रकट होने लगती है। उस समय मुख्य गायक का हौसला बढ़ाने वाला व उसके अंदर उत्साह जगाने वाला संगतकार का मधुर स्वर सुनाई देता हैं। उस सुंदर आवाज को सुनकर मुख्य गायक फिर नए जोश से गाने लगता हैं। कवि आगे कहते हैं कि कभी – कभी संगतकार मुख्य गायक को यह बताने के लिए भी उसके स्वर में अपना स्वर मिलाता है कि वह अकेला नहीं है। कोई है जो उसका साथ हर वक्त देता है। और यह भी बताने के लिए कि जो राग या गाना एक बार गाया जा चुका है। उसे फिर से दोबारा गाया जा सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कभी – कभी मुख्य गायक अपने द्वारा गायी गई पंक्तियों को दोहराना नहीं चाहता जिस वजह से वह अपनी लय से भटकने लगता है , तभी मुख्य गायक का साथ देने संगतकार आ जाता है और मुख्य गायक को हौसला देता है कि जब – जब भी वह डगमगाएगा उसका साथ देने के लिए वह हमेशा उसके साथ है और जो पंक्तियाँ मुख्य गायक गा चूका है उन पंक्तियों को भी दोहराया जा सकता है।
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियों से हमें ज्ञात होता है कि संगतकार की भूमिका मुख्य गायक के जीवन में अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होती है। क्योंकि जब – जब भी मुख्य गायक अपना गीत गाते हुए कोई गलती करता है या कही कुछ भूल जाता है तो संगतकार उसकी गलतियों को छुपाने के लिए उसके द्वारा गाई गई पंक्तियों को दोहराता है। इससे मुख्य गायक को सँभलने का मौका मिल जाता है।
काव्यांश 4 –
और उसकी आवाज में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊंचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए
शब्दार्थ –
हिचक – हिचकने की क्रिया , हिचकिचाहट , कोई काम करने से पहले मन में होने वाली हलकी रुकावट , संकोच , झिझक
विफलता – विफल होने की अवस्था या भाव , असफलता , नाकामयाबी
मनुष्यता – इनसानियत , मानवता , दया , बुद्धि आदि , सज्जनता।
नोट – इस काव्यांश में कवि , संगतकार जो हमेशा मुख्य गायक के पीछे गाता है , उसकी इस स्थिति को कम न समझने को कहते हैं कि भले ही संगतकार मुख्य गायक के हमेशा पीछे ही गाता है। परन्तु उसका इस तरह पीछे गाना कोई संगतकार की कमजोरी या असफलता नही माननी चाहिए बल्कि उसका सम्मान करना चाहिए।
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब भी संगतकार मुख्य गायक के स्वर में अपना स्वर मिलता है यानि उसके साथ गाना गाता है तो उसकी आवाज में एक संकोच साफ सुनाई देता है। और उसकी हमेशा यही कोशिश रहती है कि उसकी आवाज मुख्य गायक की आवाज से धीमी रहे। अर्थात उसका स्वर भूल कर भी मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा न हो जाए इसका ध्यान वह बहुत अच्छे से रखता है। लेकिन हमें इसे संगतकार की कमजोरी या असफलता नही माननी चाहिए क्योंकि वह मुख्य गायक के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए ऐसा करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि अपना स्वर ऊँचा कर वह मुख्य गायक के सम्मान को ठेस नही पहुँचाना चाहता है। यह उसका मानवीय गुण हैं।
भावार्थ – उपर्युक्त पंक्तियों का भाव यह है कि संगतकार जान-बूझकर अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा नहीं होने देते हैं। यह संगतकार द्वारा अपनी प्रतिभा का त्याग है जो योग्यता और सामर्थ्य होने पर भी मुख्य गायक की सफलता में बाधक नहीं बनता है और मानवता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है।
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