सवैया पाठ के पाठ सार, पाठ-व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर
Savaiyaa Summary of CBSE Class 10 Hindi (Course A) Kshitij Bhag-2 Chapter and detailed explanation of the Poem along with meanings of difficult words. Here is the complete explanation of the Poem, along with all the exercises, Questions and Answers given at the back of the lesson.
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 10 हिंदी कोर्स ए क्षितिज भाग 2 के पाठ
strong>सवैया के पाठ प्रवेश , पाठ सार , पाठ व्याख्या , कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 सवैया पाठ के बारे में जानते हैं।
- See Video Explanation of सवैया
- सवैया पाठ प्रवेश
- सवैया पाठ सार
- सवैया पाठ व्याख्या
- सवैया प्रश्न – अभ्यास
कवि परिचय –
कवि – देव
सवैया पाठ प्रवेश (Savaiyaa – Introduction to the chapter)
प्रस्तुत पाठ में दिए गए कवित्त – सवैयों में जहाँ एक ओर कवि के द्वारा रूप – सौंदर्य का चित्रण करते हुए आलंकारों का अद्भुत प्रदर्शन देखने को मिलता है , वहीं दूसरी ओर कवि का प्रेम और प्रकृति के प्रति अनेक भावों की अंतरंग अभिव्यक्ति भी देखने को मिलती है। पहले सवैये में कवि देव ने श्री कृष्ण के राजसी रूप का वर्णन किया है। कवि का कहना है कि कृष्ण के पैरों की पायल मधुर धुन सुना रही हैं। कृष्ण ने कमर में करधनी पहनी है। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र लिपटा हुआ है और उनके गले में फूलों की माला बहुत सुंदर लग रही है तथा उनके सिर पर मुकुट सजा हुआ है। श्रीकृष्ण के रूप को देखकर ऐसा प्रतीत होता है , जैसे वे समस्त जगत को अपने ज्ञान की रोशनी से उज्जवल कर रहे हैं। दूसरे कवित्त में बसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन किया गया है , उसे कवि ने एक नन्हे बालक की संज्ञा दी है। बसंत के लिए किसी पेड़ की डाल का पालना बना हुआ है और उस पालने पर नई पत्तियों का बिस्तर लगा हुआ है। बसंत ने फूलों से बने हुए कपड़े पहने हैं , जिससे उसकी शोभा और भी ज्यादा बढ़ गई है , पवन के झोंके उसे झूला झुला रहे हैं। तीसरे कवित्त में कवि ने चाँदनी रात की सुंदरता का बखान किया है। चाँदनी का तेज ऐसे बिखर रहा है , जैसे किसी मणि के प्रकाश से धरती जगमगा रही हो। इस प्रकाश में दूर – दूर तक सब कुछ साफ – साफ दिख रहा है। पूरा आसमान किसी दर्पण की तरह लग रहा है जिसमें चारों तरफ रोशनी फैली हुई है।
देव की इन कवित्त – सवैयों से उनके प्राकृतिक सौंदर्य को अद्धभुत तरीकों से प्रस्तुत करने की कला का ज्ञान होता है। शब्दों की आवृत्ति का प्रयोग कर उन्होंने सुन्दर ध्वनि-चित्र भी प्रस्तुत किये हैं। अपनी रचनाओं में वे अलंकारों का भरपूर प्रयोग करते थे।
See Video Explanation of सवैया
सवैया पाठ सार (Savaiyaa Summary)
प्रस्तुत पाठ में दिए गए कवित्त – सवैयों में से प्रथम सवैये में श्री कृष्ण के अद्धभुत रूप का वर्णन किया गया है और इस छोटे से सवैये को पढ़ने मात्र से ही हमें श्री कृष्ण के सौन्दर्य का अनुभव हो जाता है। इस सवैये में कवि देव ने श्री कृष्ण के रूप का वर्णन करते हुए कहा है कि श्री कृष्ण के पैरों की पायल और कमर में बंधा कमर का आभूषण भी मधुर आवाज कर रहा है। श्री कृष्ण के साँवले शरीर पर पिले वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं और उनके हृदय पर जंगली फूलों की माला सुशोभित हो रही है। उनके सिर पर मुकुट सजा हुआ है और उनकी बड़ी – बड़ी चंचल आँखें बहुत सुंदर लग रही हैं। उनका मुँह चाँद जैसा लग रहा है , जिससे मंद – मंद मुसकान की चाँदनी बिखर रही है। श्री कृष्ण संसार रूपी मंदिर में सुंदर दीपक के सामान ऐसे सुशोभित हैं जैसे वे सभी की मदद करने के लिए संसार को प्रकाशित किए हुए हों। श्री कृष्ण का रूप इतना मनोरम और अद्धभुत है कि जो कोई उनके दर्शन मात्र कर ले उसके जीवन से अज्ञान रूपी अन्धकार दूर हो जाता है और उसका जीवन प्रकाशमय हो जाता है। प्रथम कवित्त में कवि देव ने बसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन अत्यधिक अद्भुत तरीके से किया है। बसंत ऋतु को कवि ने कामदेव के बच्चे यानि नवजात शिशु के रूप में दर्शाया है। जिस प्रकार जब किसी घर में बच्चा जन्म लेता हैं तो उस घर में खुशी का माहौल छा जाता है। घर के सभी लोग उस बच्चे की देखभाल में जुट जाते हैं। और उसे अनेक प्रकार से बहलाने व प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। ठीक उसी प्रकार जब कामदेव का नन्हा शिशु यानि बसंत आता है , तब प्रकृति अपनी खुशी किस – किस तरह से प्रकट करती है। बसंत के आगमन पर , बसंत के लिए किसी पेड़ की डाल का पालना बना हुआ है और उन डालियों पर उग आये नए – नए कोमल पत्ते उस पालने में बिछौने के समान है। बसंत ने फूलों से बने हुए कपड़े पहने हैं , जिससे उस नन्हे शिशु यानि बसंत का शरीर अत्यधिक शोभायमान हो रहा है। पवन के झोंके उसे झूला झुला रहे हैं। मोर व तोते अपनी – अपनी आवाज में उससे बातें कर रहे है। कमल की कली रूपी नायिका अपने पराग कणों रूपी नमक , राई से बसंत रूपी नन्हे शिशु की नजर उतार रही हैं। सुबह होते ही गुलाब की कलियाँ चुटकी बजाकर जगाती हैं। दूसरे कवित्त में कवि देव ने चाँदनी रात की सुंदरता का सुंदर वर्णन किया है। पूर्णमासी की चाँदनी रात में धरती और आकाश के सौंदर्य को निहारते हुए कवि कहते हैं कि चाँदनी का तेज ऐसे बिखर रहा है जैसे यह संसार स्फटिक की शिला (पत्थर) से बना हुआ एक सुंदर मंदिर हो। कवि की नजरें जहां तक़ जाती हैं वहां तक उन्हें चांदनी ही चाँदनी नजर आती हैं। उसे देखकर कवि को ऐसा प्रतीत हो रहा हैं जैसे धरती पर दही का समुद्र हिलोरा ले रहा हो। और चांदनी रूपी दही का समंदर उन्हें समस्त आकाश में भी उमड़ता हुआ नजर आ रहा है। ऐसा लगता है कि पूरे आँगन में फर्श पर दूध का झाग फैल गया है। पूर्णमासी की रात को जब पूरा चन्द्रमा अपनी चाँदनी बिखेरता हैं तो आकाश और धरती बहुत खूबसूरत दिखाई देते हैं। और हर जगह झीनी और पारदर्शी चाँदनी नजर आती है । कवि ने यहां पर उसी चाँदनी रात का वर्णन किया हैं। यहाँ पर कवि ने चाँद की तुलना राधा से न कर , उसके प्रतिबिंब से की हैं। अर्थात कवि ने राधा रानी को चाँद से भी श्रेष्ठ बताया हैं।
सवैया पाठ व्याख्या Explanation (Savaiyaa Lesson Explanation)
कवित्त
पाँयनि नूपुर मंजु बजै , कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत , हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल , मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग – मंदिर – दीपक सुंदर , श्रीब्रजदूलह ‘ देव ’ सहाई॥
शब्दार्थ (Word Meaning)
पाँयनि – पैरों के
नूपुर – पायल
मंजु – मधुर
बजै – बजना
कटि – कमर
किंकिनि – करघनी / कमर का आभूषण
धुनि – धुन
साँवरे – साँवले
अंग – शरीर
लसै – लिपटा
पट – वस्त्र
पीत – पीला
हिये – हृदय पर
बनमाल – तुलसी , कुंद , मंदार , परजाता और कमल इन पाँच चीजों की बनी हुई माला
सुहाई – सुशोभित होना
किरीट – मुकुट
दृग – आँखें
मंद – धीरे
मुखचंद – चाँद जैसा मुँह
जुन्हाई – चाँदनी
जै – जैसे
जग – संसार
श्रीब्रजदूलह – श्री कृष्ण
सहाई – मदद करने वाला , साथ देने वाला
नोट – इस सवैये में श्री कृष्ण के अद्धभुत रूप का वर्णन किया गया है और इस छोटे से सवैये को पढ़ने मात्र से ही हमें श्री कृष्ण के सौन्दर्य का अनुभव हो जाता है।
व्याख्या – इस सवैये में कवि देव ने श्री कृष्ण के रूप का वर्णन अत्यधिक मनोरम ढंग से किया है। कवि का कहना है कि श्री कृष्ण के पैरों की पायल मधुर धुन पैदा कर रही है। श्री कृष्ण के कमर में बंधी करघनी अर्थात कमर का आभूषण भी मधुर आवाज कर रहा है। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र लिपटा हुआ है अर्थात श्री कृष्ण के साँवले शरीर पर पिले वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं और उनके हृदय पर तुलसी , कुंद , मंदार , परजाता और कमल इन पाँच चीजों की बनी हुई माला अर्थात जंगली फूलों की माला सुशोभित हो रही है। उनके सिर पर मुकुट सजा हुआ है और उनकी बड़ी – बड़ी चंचल आँखें बहुत सुंदर लग रही हैं। उनका मुँह चाँद जैसा लग रहा है , जिससे मंद – मंद मुसकान की चाँदनी बिखर रही है। श्री कृष्ण संसार रूपी मंदिर में सुंदर दीपक के सामान ऐसे सुशोभित हैं जैसे वे सभी की मदद करने के लिए संसार को प्रकाशित किए हुए हों।
भावार्थ – इस सवैये का भाव यह है कि श्री कृष्ण का रूप इतना मनोरम और अद्धभुत है कि जो कोई उनके दर्शन मात्र कर ले उसके जीवन से अज्ञान रूपी अन्धकार दूर हो जाता है और उसका जीवन प्रकाशमय हो जाता है।
कवित्त
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के ,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै , केकी – कीर बतरावैं ‘ देव ’ ,
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन ,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि ,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥
शब्दार्थ (Word Meaning)
डार – डाल
द्रुम – पेड़
पलना – पालना
बिछौना – बिस्तर
नव पल्लव – नई पत्तियाँ
सुमन – फूल
झिंगूला – झूला
सोहै – शोभा
तन – शरीर
पवन – हवा
झूलावै – झुलाना
केकी – मोर
कीर – तोते
बतरावैं – बातें करना
कोकिल – कोयल
हलावै – हिलाना
कर तारी दै – हाथ से ताली बजाना
पूरित – पूर्ण किया या भरा हुआ
सों – ऐसी
उतारो – उतारना
राई – एक प्रकार की छोटी सरसों
नोन – नमक
कंजकली – कमल की कली
लतान – लता रूपी
सारी – साड़ी
मदन – कामदेव
महीप – महाराज
प्रातहि – सुबह – सुबह
जगावत – जागना
चटकारी दै – चुटकी बजाकर
नोट – इस कवित्त में कवि देव ने बसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन अत्यधिक अद्भुत तरीके से किया है। बसंत ऋतु को कवि ने कामदेव के बच्चे यानि नवजात शिशु के रूप में दर्शाया है। जिस प्रकार जब किसी घर में बच्चा जन्म लेता हैं तो उस घर में खुशी का माहौल छा जाता है। घर के सभी लोग उस बच्चे की देखभाल में जुट जाते हैं। और उसे अनेक प्रकार से बहलाने व प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। ठीक उसी प्रकार जब कामदेव का नन्हा शिशु यानि बसंत आता है , तब प्रकृति अपनी खुशी किस – किस तरह से प्रकट करती है। किस तरह से बसंत ऋतु की देखरेख कर रही है , यहाँ पर कवि उसी का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या – इस कवित्त में कवि देव द्वारा बसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन किया गया है। बसंत ऋतु को कवि एक नन्हे से बालक के रूप में देख रहे हैं। कवि वर्णन करते हैं कि बसंत के आगमन पर , बसंत के लिए किसी पेड़ की डाल का पालना बना हुआ है और उन डालियों पर उग आये नए – नए कोमल पत्ते उस पालने में बिछौने के समान है। बसंत ने फूलों से बने हुए कपड़े पहने हैं , जिससे उस नन्हे शिशु यानि बसंत का शरीर अत्यधिक शोभायमान हो रहा है। पवन के झोंके उसे झूला झुला रहे हैं। मोर व तोते अपनी – अपनी आवाज में उससे बातें कर रहे है। कोयल भी प्रसन्न होकर तालियां बजाकर – बजाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रही हैं। कवि देव कहते हैं कि कमल की कली रूपी नायिका जिसने अपने सिर तक लता रूपी साड़ी पहनी है , वह अपने पराग कणों रूपी नमक , राई से बसंत रूपी नन्हे शिशु की नजर उतार रही हैं। यह बसंत रूपी नन्हा शिशु कामदेव महाराज का पुत्र है , जिसे सुबह होते ही गुलाब की कलियाँ चुटकी बजाकर जगाती हैं। दरअसल गुलाब की कली पूरी खिलने से पहले थोड़ी चटकती हैं। इसी का वर्णन कवि देव ने इस तरह अद्धभुत तरीके से किया है।
भावार्थ – इस कवित्त का भाव यह है कि बसंत ऋतु की सुंदरता अत्यधिक अद्धभुत होती है ,जिस कारण कवि ने उसे कामदेव के पुत्र के रूप में वर्णित किया है। जिस प्रकार एक नन्हा बालक अपने साथ परिवार में खुशियाँ ले कर आता है , उसी प्रकार बसंत ऋतु भी व्यक्ति के जीवन में नई उमंग ले कर आती है। जिस तरह घर के सभी लोग उस बच्चे की देखभाल में जुट जाते हैं। उसी प्रकार प्रकृति भी बसंत ऋतु की देखरेख करती है।
कवित्त
फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर ,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘ देव ’ ,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति ,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै ,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥
शब्दार्थ (Word Meaning)
फटिक – स्फटिक
सिलानि – शिला ( पत्थर )
सौं – जैसे
सुधारयौ – पारदर्शी
सुधा – चाँदनी
उदधि – समुद्र
दधि – दहीं
को सो – के जैसा
अधिकाइ – अत्यधिक
उमगे – उमड़ना
अमंद – श्रेष्ठ , उत्तम , चुस्त , फ़ुरतीला , प्रयत्नशील
को सो – के जैसा
फेन – झाग
फैल्यो – फैलना
फरसबंद – फर्श पर
तरुनि – चाँदनी
तामें – रात में
ठाढ़ी झिलमिली – झीनी और पारदर्शी
जोति – चमकमिल्यो – मिलना
मल्लिका – चमेली , एक प्रकार का फूल , बेला
मकरंद – पुष्प रस , फूलों का रस
आरसी – दर्पण , आईना , शीशा
अंबर – आकाश
आभा – चमक
उजारी – उज्जवल
प्रतिबिंब – पानी व शीशे में दिखाई देने वाली छाया , परछाईं
सो – जैसा
नोट – इस कवित्त में कवि देव ने चाँदनी रात की सुंदरता का सुंदर वर्णन किया है।
व्याख्या – इस कवित्त में पूर्णमासी की चाँदनी रात में धरती और आकाश के सौंदर्य को निहारते हुए कवि कहते हैं कि चाँदनी का तेज ऐसे बिखर रहा है जैसे यह संसार स्फटिक की शिला (पत्थर) से बना हुआ एक सुंदर मंदिर हो। कवि की नजरें जहां तक़ जाती हैं वहां तक उन्हें चांदनी ही चाँदनी नजर आती हैं। उसे देखकर कवि को ऐसा प्रतीत हो रहा हैं जैसे धरती पर दही का समुद्र हिलोरा ले रहा हो। और चांदनी रूपी दही का समंदर उन्हें समस्त आकाश में भी उमड़ता हुआ नजर आ रहा है। इस प्रकाश में दूर दूर तक बाहर और अंदर सब कुछ साफ – साफ दिख रहा है। ऐसा लगता है कि पूरे आँगन में फर्श पर दूध का झाग फैल गया है। कवि को इस चाँदनी रात में आकाश के तारे भी सुंदर सुसज्जित खड़ी किशोरियों ( युवा लड़कियों ) की भाँति लग रहे हैं। ऐसा लगता है कि मोतियों को चमक मिल गई है या जैसे बेले के फूल को रस मिल गया है। पूरा आसमान किसी दर्पण की तरह लग रहा है जिसमें चारों तरफ रोशनी की चमक उज्ज्वलित हो रही है। इन सब के बीच पूर्णमासी का चाँद ऐसे लग रहा है जैसे उस दर्पण में राधा का प्रतिबिंब दिख रहा हो।
भावार्थ – पूर्णमासी की रात को जब पूरा चन्द्रमा अपनी चाँदनी बिखेरता हैं तो आकाश और धरती बहुत खूबसूरत दिखाई देते हैं। और हर जगह झीनी और पारदर्शी चाँदनी नजर आती है । कवि ने यहां पर उसी चाँदनी रात का वर्णन किया हैं। यहाँ पर कवि ने चाँद की तुलना राधा से न कर , उसके प्रतिबिंब से की हैं। अर्थात कवि ने राधा रानी को चाँद से भी श्रेष्ठ बताया हैं।
सवैया प्रश्न – अभ्यास (Savaiyaa Question Answers)
प्रश्न 1 – कवि ने ‘ श्रीब्रजदूलह ’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर – कवि ने ‘ श्रीब्रजदूलह ’ शब्द श्री कृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। उन्हें श्री कृष्ण को संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा है क्योंकि जिस प्रकार एक दीपक सम्पूर्ण मंदिर को पवित्रता और सकारात्मकता के भाव से भर देता है , ठीक उसी प्रकार से श्री कृष्ण सम्पूर्ण संसार को पवित्रता और सकारात्मकता के भाव से भर देते हैं।
प्रश्न 2 – पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है ?
उत्तर –
पहले सवैये में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है –
कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई – ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण।
साँवरे अंग लसै पट पीत – में ‘प’ वर्ण की आवृत्ति के कारण।
हिये हुलसै बनमाल सुहाई – में ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति के कारण।
पहले सवैये में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है –
मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई – मुख रूपी चंद्रमा
जै जग – मंदिर – दीपक सुंदर – जग (संसार) रूपी मंदिर के दीपक।
प्रश्न 3 – निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य – सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
पाँयनि नूपुर मंजु बजें , कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत , हिये हुलसै बनमाल सुहाई।।
उत्तर –
प्रस्तुत पंक्तियाँ देवदत्त द्विवेदी द्वारा रचित सवैया से ली गई है। इसमें देव द्वारा श्री कृष्ण के सौंदर्य का बखान किया गया है।
देव जी कहते हैं कि श्री कृष्ण के पैरों में पड़ी हुई पायल बहुत मधुर ध्वनि कर रही है और कमर में बंधा हुआ कमरबन्ध भी मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रहा है। श्री कृष्ण के साँवले सलोने शरीर पर पीले रंग का वस्त्र सुशोभित हो रहा है और उनके गले में पड़ी हुई बनमाला बहुत ही सुंदर जान पड़ती है।
काव्य – सौंदर्य – उक्त पंक्तियों में सवैया छंद का सुंदर प्रयोग किया गया है। छंद में ब्रज भाषा के प्रयोग से मधुरता व् सरसता का मिश्रण है। उक्त पंक्तियों में कटि किंकिनि , पट पीत , हिये हुलसै में ‘ क ‘ , ‘ प ‘ , ‘ ह ‘ वर्ण कि एक से अधिक बार आवृत्ति के कारण अनुप्रास की अधिकता मिलती है।
प्रश्न 4 – दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल – रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है।
उत्तर – दूसरे कवित्त में कवि ने ऋतुराज वसंत के बाल – रूप का जिस प्रकार वर्णन किया है वह परंपरागत वसंत के वर्णन से पूर्णतया भिन्न है। वसंत के परंपरागत वर्णन में प्रकृति में चारों और बिखरे सौंदर्य , फूलों के खिलने , मन को प्रसन्न करने वाले वातावरण का होना , पशु – पक्षियों एवं अन्य प्राणियों के आनंदित होने , नायक – नायिका की संयोग अवस्था का वर्णन एवं चारों ओर प्रसन्नाता के वातावरण का वर्णन होता है। परन्तु इस कवित्त में ऋतुराज वसंत को कामदेव के नवजात शिशु के रूप में चित्रित किया है। इस बालक के साथ पूरी प्रकृति अपने – अपने तरीके से निकटता प्रकट करती है। इस बालक का पालना पेड़ – पौधे की डालियाँ हैं , उसका बिछौना , नए – नए पल्लव हैं , उसके वस्त्र फूलों के हैं तथा हवा के द्वारा उसके पालने को झुलाते हुए दर्शाया गया है। प्रकृति के अनेक पक्षी उस बालक को प्रसन्न करने के लिए उससे बातें करते हैं। साथ – ही – साथ कमल की कली उसे बुरी नजर से बचाती है और गुलाब चटककर प्रात:काल उसे जगाता है। इस तरह का वर्णन अपने आप में ही अनोखा और अत्यधिक अद्भुत है।
प्रश्न 5 – ‘ प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै ’ – इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘ प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै ’ – इस पंक्ति का भाव यह है कि वसंत रुपी बालक , पेड़ की डाल रुपी पालने और नए – नए पल्लव रूपी बिछौने में सोया हुआ है। प्रात:काल ( सुबह ) होने पर उसे गुलाब का फूल चटकारी अर्थात् चुटकी दे कर जगा रहा है। तात्पर्य यह है कि वसंत आने पर प्रात:काल गुलाब के फूलों का वसंत के समय सुबह चटकर खिलना कवि को ऐसा आभास दिलाता है मानो वसंत रुपी सोए हुए बालक को गुलाब चुटकी बजाकर जगाने का प्रयास कर रहा है।
प्रश्न 6 – चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन – किन रूपों में देखा है ?
उत्तर – चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने निम्नलिखित रूपों में देखा है –
- आकाश में फैली चाँदनी को पारदर्शी शिलाओं से बने सुधा मंदिर के रूप में , जिससे सब कुछ देखा जा सकता है।
- सफेद दही के उमड़ते समुद्र के रूप में।
- ऐसी फ़र्श जिस पर दूध का झाग ही झाग फैली है।
- आकाश के तारों को सुंदर सुसज्जित खड़ी किशोरियों के रूप में।
- आसमान को स्वच्छ निर्मल दर्पण के रूप में।
प्रश्न 7 – ‘ प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद ’ – इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन – सा अलंकार है ?
उत्तर – ‘ प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद ’ – इस पंक्ति का भाव यह है कि कवि ने यहाँ ‘ चन्द्रमा सौन्दर्य का श्रेष्ठतम उदाहरण हैं ‘ इस उदाहरण के विपरीत राधिका की सुन्दरता को चाँद की सुन्दरता से श्रेष्ठ दर्शाया है तथा चाँद के सौन्दर्य को राधिका का प्रतिबिम्ब मात्र बताया है।
उपरोक्त पंक्ति में आपको उपमा अलंकार का आभास हो सकता हो परन्तु यहाँ चाँद के सौन्दर्य की उपमा राधा के सौन्दर्य से नहीं की गई है बल्कि चाँद को राधा से हीन बताया गया है , इसलिए यहाँ व्यतिरेक अलंकार है , उपमा अलंकार नहीं है।
प्रश्न 8 – तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन – किन उपमानों का प्रयोग किया है ?
उत्तर – तीसरे कवित्त में कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता के वर्णन के लिए कवि ने निम्नलिखित उपमानों का वर्णन किया है –
- स्फटिक शिला से निर्मित सुधा मंदिर
- दही का समुद्र
- दूध का झाग
- मोतियों की चमक
- दर्पण की स्वच्छता
प्रश्न 9 – पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर – पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ –
- प्रकृति का अद्भुत चित्रण
- ब्रज भाषा का सुंदर प्रयोग
- अलंकारों से परिपूर्ण पंक्तियाँ
- लयबद्धता एवं संगीतात्मकता से पूर्ण
- कवित्त एवं सवैया छंद का प्रयोग
- मानवीकरण अलंकार का अद्भुत प्रयोग
- तत्सम शब्दों का सुंदर प्रयोग
Also See :
- Surdas Ke Pad Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Ram Lakshman Parshuram Samvad Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Atmakathya Class 10 Summary, Explanation, Question Answers| Atmakatha
- Utsah Aur hat Nahi Rahi Hai Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Yah Danturit Muskan Aur Fasal Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Chaya Mat Chuna Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Kanyadan Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Sangatkar Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Netaji ka Chashma Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Balgobin Bhagat Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Lakhnavi Andaz Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Maanviy Karuna Ki Divy Chamak Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Ek Kahani Yeh Bhi Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Stri – Shiksha Ke Virodhi Kurtakon Ka Khandan Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Naubatkhane Mein Ibadat Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
- Sanskruti Class 10 Summary, Explanation, Question Answers