CBSE Class 10 Hindi Chapter 5 “Yah Danturit Muskan Aur Fasal”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Kshitij Bhag 2 Book

यह दंतुरित मुस्कान और फसल – Here is the CBSE Class 10 Hindi Kshitij Bhag 2 Chapter 5 Yah Danturit Muskan Aur Fasal Summary with detailed explanation of the lesson ‘Yah Danturit Muskan Aur Fasal’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary.

इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 10 हिंदी कोर्स ए क्षितिज भाग 2 के पाठ 5 यह दंतुरित मुस्कान और फसल के पाठ प्रवेश , पाठ सार , पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें।  चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 यह दंतुरित मुस्कान और फसल पाठ के बारे में जानते हैं।

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कवि परिचय –

कवि –  नागार्जुन जी

 

“यह दंतुरित मुस्कान”

 

यह दंतुरित मुस्कान पाठ प्रवेश (Introduction)

प्रस्तुत कविता “ यह दंतुरित मुसकान ” के कवि नागार्जुन जी हैं। यह दंतुरित मुस्कान कविता में कवि ने एक बच्चे की मुस्कान का बड़ा ही मनमोहक चित्रण किया है। कवि के अनुसार एक बच्चे की मुस्कान को देखकर , हम अपने सब दुःख भूल जाते हैं और हमारा अंतर्मन प्रसन्न हो जाता है। कवि ने यहाँ बाल – अवस्था में एक बालक द्वारा की जाने वाली नटखट और प्यारी हरकतों का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। इस कविता में छोटे बच्चे की मन को हरने वाली मुस्कान को देखकर कवि के मन में जो भाव उमङते है , उन्हें कवि ने कविता में अनेक बिम्बों के माध्यम से प्रकट किया है। कवि का मानना है कि सुन्दरता में ही जीवन का संदेश होता है। इस सुन्दरता का विस्तार ऐसा है कि कठोर मन को भी पिघला देती है। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि उस छोटे बच्चे की मुस्कान को अपने जीवन की सुंदरता बता रहे हैं और उस छोटे बच्चे की मुस्कराहट को इतना प्रभावशाली बता रहे हैं कि अगर कोई कठोर हृदय वाला व्यक्ति भी उसकी मुस्कराहट को देख ले तो वह भी अपने आप को मुस्कुराने से नहीं रोक पाएगा। कवि बताते हैं कि इस छोटे – छोटे नए दाँतों वाली मुस्कराहट की मोहकता तब और बढ़ जाती है जब उसके साथ नज़रों का तिरछापन जुड़ जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब कोई बालक किसी व्यक्ति को नहीं पहचानता है तो उसे सीधी नज़रों से नहीं देखता , लेकिन एक बार पहचान लेने के बाद वो उसे टकटकी लगाकर देखता रहता है।

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यह दंतुरित मुस्कान  पाठ सार (Summary)

“ यह दंतुरित मुसकान ” कविता के कवि नागार्जुन जी हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने उस नन्हे बच्चे की मन को मोह लेने वाली मुस्कान जिसमें कोई छल नहीं है और न ही कोई कपट मात्र है , उस का बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है , जिसके अभी – अभी दूध के दांत निकलने शुरू हुए हैं। क्योंकि कवि काफी लम्बे समय के बाद अपने घर लौटे हैं और उनकी मुलाकात उनके 6 से 8 महीने के बच्चे से पहली बार हो रही हैं। इसीलिए कवि अपने उस नन्हे बच्चे की मन को मोह लेने वाली मुस्कान को देखकर वे कहते हैं कि अगर उसकी इस मुस्कान को कोई पत्थर हृदय वाला व्यक्ति भी देख ले तो , वह भी उसे प्यार किए बिना नहीं रह पाएगा और बच्चे की यह मन को मोह लेने वाली मुस्कान जीवन की कठिनाइयों व परेशानियों से निराश – हताश हो चुके व्यक्तियों को भी एक नई प्रेरणा दे सकती हैं। कवि को उस नन्हे बच्चे को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे कमल का फूल किसी तालाब में खिलने के बजाय उसके घर के आंगन में ही खिल आया हो और कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि उसको छू लेने मात्र भर से ही बांस या बबूल के पेड़ से शेफालिका के फूल गिरने लगेंगे। क्योंकि कवि अपने नवजात बच्चे से पहली बार मिल रहे हैं तो बच्चा अपने पिता यानि कवि को पहचान नहीं पाता है लेकिन कवि को इस बात का कोई अफसोस नहीं है। वह उसकी माँ अर्थात अपनी पत्नी और उसे बच्चे को धन्यवाद देते हुए कहते हैं कि अगर तुम्हारी माँ न होती तो तुम इस धरती पर कैसे आते और मैं तुमसे कैसे मिल पाता यानि तुम्हारी माँ ही तुम्हें इस धरती पर लाई और तुम्हारा मुझसे मिलन करवाया।  जिसके लिए मैं तुम दोनों को धन्यवाद देता हूँ। कवि अपने काम से अक्सर अपने घर से दूर रहते हैं। इसीलिए बच्चा कवि को अपना पिता न समझ कर एक मेहमान समझ रहा है और पहचानने की कोशिश में उन्हें लगातार देखे जा रहा है।  लेकिन कवि उसके मुंह में आये नए – नए दांतों के बीच खिली मुस्कान को देखकर अपने आप को सम्मोहित सा महसूस कर रहे हैं।

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यह दंतुरित मुस्कान पाठ व्याख्या (Lesson Explanation)

 

काव्यांश – 1

तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि – धूसर तुम्हारे ये गात ………
छोङकर तालाब मेरी झोपङी में खिल रहे , जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण ,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण

शब्दार्थ
दंतुरित – नन्हें – नन्हें निकलते दाँत
मुस्कान – मुस्कराहट
मृतक – जिस व्यक्ति के प्राण निकल गए हों , जो मर गया हो
धूलि – धूल
धूसर – पीलापन लिए भूरा या मटमैला रंग
गात – शरीर , काया , जिस्म , बदन , देह , तन
जलजात – जो जल में उत्पन्न हो , कमल
परस – स्पर्श , छूना

 नोट – उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने छोटे से बच्चे की मुस्कराहट का अद्धभुत वर्णन कर रहे हैं। कवि बच्चे की मुस्कराहट को इतना प्रभावशाली बताते हैं कि वो किसी भावहीन व्यक्ति में भी भावनाओं को जगा सकती है और किसी कठोर हृदय व्यक्ति को भी सरल स्वभाव सीखा सकती है। 

व्याख्या – कवि अपने छोटे से बच्चे की मन को हरने वाली मुस्कान को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि तुम्हारी ये छोटे – छोटे दातों वाली मुस्कान इतनी मनमोहक है कि वह किसी मुर्दे अर्थात मरे हुए व्यक्ति में भी जान डाल सकती हैं। कहने का आशय यह है कि तुम्हारी ये निश्छल मुस्कान जीवन की कठिन परिस्थितियों से निराश – हताश हो चुके व्यक्तियों और यहाँ तक कि बेजान व्यक्ति को भी जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं , अगर कोई तुम्हारी इस छोटे – छोटे दातों वाली मुस्कान को देख ले तो वह भी एक बार प्रसन्नता से खिल उठे। उसके भी मन में इस दुनिया की ओर आकर्षण जाग उठे।
आगे कवि कहते हैं कि तुम्हारे इस धूल से सने हुए नन्हें तन को देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि मानों कमल के फूल तालाब को छोङकर मेरी झोंपङी में खिल उठते हो। कहने का आशय यह है कि तुम्हारे धूल से सने नन्हें से तन को निहारने पर मेरा मन कमल के फूल के समान खिल उठा है अर्थात् प्रसन्न हो गया है।
ऐसा लगता है कि तुम जैसे प्राणवान का स्पर्श पाकर ये कठोर चट्टानें पिघल कर जल बन गई होगी। कहने का आशय यह है कि बच्चे की मधुर मुस्कान देख कर पत्थर जैसे कठोर हृदय वाले मनुष्य का मन भी पिघलाकर अति कोमल हो जाता है।

भावार्थ – इस कविता में कवि एक ऐसे बच्चे की मधुर मुस्कराहट की सुंदरता का बखान करता है जिसके अभी एक – दो दाँत ही निकले हैं , अर्थात बच्चा छ: से आठ महीने का है। जब ऐसा बच्चा अपनी मुसकान बिखेरता है तो इससे मुर्दे में भी जान आ जाती है। छोटे से बच्चे के स्पर्श मात्र भर से ही कठोर से कठोर हृदय वाले व्यक्ति के दिल में भी कोमल भावनाएँ जन्म लेने लगती है। कहने का तात्पर्य यह है कि एक छोटे से बच्चे की मुस्कराहट किसी के क्रोधित स्वभाव को परिवर्तित करने में सक्षम होती है।

काव्यांश – 2

छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल ?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान ?
देखते ही रहोगे अनिमेष !
थक गए हो ?
आँख लूँ मैं फेर ? 

शब्दार्थ
कठिन – कठोर
पाषाण – पत्थर
शेफालिका – छह से बारह फुट ऊँचा एक सदाबहार पौधा जिसमें अरहर के समान पाँच-पाँच पत्तियाँ होती हैं और इसके पूरे शरीर पर छोटे-छोटे रोम पाए जाते हैं ,  नील सिंधुआर का पौधा , निर्गुंडी , निलिका
अनिमेष – बिना पलक झपकाए , बिना पलक गिराए हुए , अपलक , एकटक
फेर – हटाना

नोट – इस काव्यांश में कवि अपने स्वभाव में आए परिवर्तन के लिए बच्चे की मुस्कराहट को कारण बताता है और जब पहली बार देखने के कारण बच्चा अपने पिता यानि कवि को पहचान नहीं पा रहा था और वह एकटक दृष्टि से कवि को देखे जा रहा था , तब कवि के अंदर पिता का प्रेम उसे न चाहते हुए भी अपने बच्चे से नज़रें फेरने को कहता है।

व्याख्या – कवि को ऐसा लगता है कि उनके उस छोटे से बच्चे के निश्छल चेहरे में वह जादू है कि उसको छू लेने से बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल गिरने लगते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन की विपरीत परिस्थितियों के कारण कवि का मन बाँस और बबूल की भाँति शुष्क और कठोर हो गया था। बच्चे की मधुर मुस्कराहट को देखकर उसका मन अथवा स्वभाव भी पिघल कर शेफालिका के फूलों की भाँति सरस और सुंदर हो गया है। बच्चा पहली बार अपने पिता ( कवि ) को देख रहा हैं। इस कारण कवि आगे उस छोटे से बच्चे से कहते हैं कि ऐसा लगता है कि तुम ( छोटा बच्चा ) मुझे ( कवि / पिता ) पहचान नहीं पाये हो क्योंकि बच्चा कवि को अपलक अर्थात बिना पलक झपकाए देख रहा है। कवि उस बच्चे से कहते हैं कि यदि वह बच्चा इस तरह अपलक कवि को देखते – देखते थक गया हो तो उसकी सुविधा के लिए कवि उससे आँखें फेर लेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि  बच्चे से उसके पास खङा होकर पूछता है कि तुम मुझे इस तरह लगातार देखते हुए थक गए होंगे। इसलिए लो मैं तुम पर से अपनी नजर स्वयं हटा लेता हूँ। ताकि बच्चा भी अपनी पलकें झपकाए और उसे आराम मिले।

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि स्वीकार कर रहें हैं कि परिस्थितियों के कारण उनका जो स्वाभाव बदल गया था , बच्चे की मुस्कराहट ने उनकी सारी परेशानियों को भुला कर उनके कठोर ह्रदय को फिर से पहले जैसा कर दिया है। इस काव्यांश में हमें एक पिता का अद्धभुत प्रेम भी देखने को मिलता है। क्योंकि जब बच्चा अपने पिता को पहचानने के लिए उसे एकटक दृष्टि से देख रहा होता है तब उस बच्चे को इस तरह कोई परेशानी न हो जाए , वह पिता न चाहते हुए भी अपने बच्चे से नजर फेरने को भी तैयार हो जाता है।

काव्यांश 3 –

क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार ?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम , माँ भी तुम्हानी धन्य !
चिर प्रवासी मैं इतर , मैं अन्य ! 

शब्दार्थ
परिचित –  जिसका परिचय प्राप्त हो , जिसे जानते हों , जाना – पहचाना हुआ
माध्यम – साधन , ज़रिया , ( मीडियम )
धन्य – प्रशंसा या बड़ाई के लायक , परोपकार करने वाला
चिर – जो बहुत दिनों से हो , बहुत दिनों तक चलता रहे , दीर्घ कालव्यापी
प्रवासी – परदेश में रहने वाला व्यक्ति , मूलस्थान छोड़कर अन्य स्थान में बसा व्यक्ति , प्रवास करने वाला
इतर – अन्य , कोई और , दूसरा , भिन्न

नोट – इस काव्यांश में कवि उस स्थिति का वर्णन कर रहें हैं जब बच्चा लगातार कवि को देखे जा रहा है और उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहा हैं। इसे देखकर कवि बच्चे से कह रहे है कि उन्हें इस बात का कोई अफसोस नहीं हैं कि पहली बार की मुलाकात में उनकी ठीक से जान पहचान नहीं हो पा रही हैं। बल्कि मैं तो इस बात से ही खुश हैं कि वे अपने बच्चे से मिल पाए या उसे देख पाए।

व्याख्या – कवि अपने नन्हें शिशु को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि तुम मुझे पहली बार देख रहे हो , इसलिए यदि मुझे पहचान भी न पाए तो वह स्वाभाविक ही है। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि को इस बात का जरा भी अफसोस नहीं है कि बच्चे से पहली बार में उसकी जान पहचान नहीं हो पाई है। एक माँ ही बच्चे को जन्म देकर इस धरती पर लाती हैं। इसीलिए कवि कह रहे हैं कि तुम्हारी माँ के माध्यम से ही आज मैं तुमसे मिल पाया हूँ। अगर तुम्हारी माँ ने माध्यम बनकर मुझे तुमसे ना मिलाया होता तो ,  मैं तुम्हें नहीं जान पाता। इसलिए मैं तुम्हारा और तुम्हारी माँ का आभारी हूँ। और तुम दोनों को दिल से धन्यवाद देता हूँ। अर्थात कवि इस बात के लिए उस बच्चे की माँ अर्थात अपनी पत्नी और अपने बच्चे का शुक्रिया अदा करना चाहता है कि उनके कारण ही कवि को भी उस बच्चे के सौंदर्य का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। तुम्हारी माँ अर्थात कवि की पत्नी ने ही उन्हें बताया कि वह बच्चा उनकी ही संतान है , नही तो मैं तुम्हारे दाँतों से झलकती मुस्कान को भी नहीं जान पाता। कवि आगे कहते हैं कि मैं सदा घर से बाहर (अन्य प्रदेश या जगह) रहता हूँ और बहुत दिनों बाद आज घर आया हूँ। इसलिए मैं तुम्हारे लिए किसी अनजान व्यक्ति की तरह या किसी मेहमान की तरह ही हूँ। अर्थात कवि तो उस बच्चे के लिए एक अजनबी है , परदेसी है इसलिए वह खूब समझता है कि उससे उस बच्चे की कोई जान पहचान नहीं है।

भावार्थ – बच्चा लगातार कवि को देखे जा रहा है और उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहा हैं। इसे देखकर कवि बच्चे से कह रहे है कि मुझे इस बात का कोई अफसोस नहीं हैं कि पहली बार की मुलाकात में हमारी ठीक से जान पहचान नहीं हो पा रही हैं। बल्कि मैं तो इस बात से ही खुश हूँ कि मैं तुमसे मिल पाया या तुम्हें देख पाया। तुम्हारी माँ भी तुम्हें जन्म देकर और तुम्हारी सुन्दर रूप – छवि निहारने के कारण धन्य है। दूसरी ओर एक मैं हूँ जो लगातार लम्बी यात्राओं पर रहने से तुम दोनों से पराया हो गया हूँ। इसीलिए मुझ जैसे अतिथि से तुम्हारा सम्पर्क नहीं रहा अर्थात् मैं तुम्हारे लिए अनजान ही रहा हूँ। और तुम्हारा इस अतिथि से पहले कोई संबंध रहा भी नहीं यानि तुमने मुझे पहले कभी देखा भी नहीं।

काव्यांश 4 

इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही है मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
ओर होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बङी ही छविमान ! 

शब्दार्थ
अतिथि – मेहमान
संपर्क – मिलावट , संयोग , मेल , संबंध , आपसी लगाव , वास्ता , संगति
मधुपर्क –  पूजा के लिए बनाया गया दही , घी , जल , चीनी और शहद का मिश्रण , पंचामृत , चरणामृत
कनखी – आँख की कोर , दूसरों की निगाह बचाकर किया जाने वाला संकेत , तिरछी निगाह से देखने की क्रिया , आँख का इशारा
आँखें चार – ( मुहावरा ) – प्रेम होना , किसी का आमने सामने होना , नजरों से नजरों का मिलना
छविमान – सुंदर , मनमोहक

नोट – इस काव्यांश में कवि अपना और अपने बच्चे के बीच मेहमानों वाला संपर्क बनने का कारण स्पष्ट करते हैं और माँ और बच्चे के वात्सल्य को अत्यधिक मनोरम ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं। और साथ ही साथ बच्चों के नटखट पन को भी दिखने का प्रयास कर रहे हैं।

व्याख्या – कवि अपने आपको किसी मेहमान की तरह बताते हुए कहते हैं कि वे हमेशा ही काफी लम्बे समय तक घर से दूर रहते हैं जिस कारण वे न तो अपनी पत्नी से मिल पाए और न ही अपने बच्चे से , इसीलिए कवि अपने बच्चे से कहते हैं कि मुझ जैसे अतिथि से तुम्हारा सम्पर्क नहीं रहा अर्थात् मैं तुम्हारे लिए अनजान ही रहा हूँ। यह तो तुम्हार माँ है जो तुम्हें अपनी उँगलियों से तुम्हें मधुपर्क चढ़ाती रही अर्थात् तुम्हें वात्सल्य भरा प्यार देती रही। कहने का तात्पर्य यह है कि  बच्चा अपनी माँ की उँगली चूस रहा है तो ऐसा लगता है कि उसकी माँ उसे पंचामृत का पान करा रही है। इस बीच वह बच्चा तिरछी निगाह से कवि को देखता है। तब कवि उसकी इन हरकतों पर कहते हैं कि अब तुम इतने बङे हो गये हो कि तुम तिरछी नजर से मुझे देखकर अपना मुँह फेर लेते हो , इस समय भी तुम वही कर रहे हो। इसके बाद जब मेरी आँखें तुम्हारी आँखों से मिलती है अर्थात् तुम्हारा – मेरा स्नेह प्रकट होता है , तब तुम मुस्कुरा पङते हो। इस स्थिति में तुम्हारे निकलते हुए दाँतों वाली तुम्हारी मधुर मुस्कान मुझे बहुत सुन्दर लगती है और मैं तुम्हारी उस मधुर मुस्कान पर मुग्ध हो जाता हूँ।

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने उस समय का वर्णन किया हैं जब बच्चे के नये-नये दांत निकलने लगते हैं तो उस वक्त वो हर चीज अपने मुँह में डाल लेते है। माँ की गोद में बैठकर बच्चा माँ की अंगुलियों को चूस रहा है। उसे देखकर कवि को ऐसा लग रहा है जैसे माँ की अंगुलियों से निकलने वाले अमृत को पीकर बच्चे की आत्मा तृप्त हो रही हो। बच्चा यह सब करते हुए बीच – बीच में तिरछी नजरों से कवि को भी देख रहा हैं , जिसे देखकर कवि कहते हैं कि जब भी तुम तिरछी नजरों से मुझे देखते हो और फिर जब हम दोनों की आंखें मिलती हैं तो तुम मुस्कुरा उठते हो। तब तुम्हारी ये छोटे – छोटे दांतों वाली निश्चल मुस्कान मुझे बहुत ही सुंदर लगती है अर्थात बहुत अधिक मनमोहक लगती है।

 

“फसल”

 

फसल पाठ प्रवेश (Introduction)

यह कविता हमें किसान और कृषि संस्कृति के करीब ले जाती हैं। हमें कृषि व प्रकृति का महत्व को समझती है। इस कविता के माध्यम से कवि यह बताना चाहते हैं कि इंसान की मेहनत और प्रकृति में मिलने वाले पोषक तत्व , दोनों के योगदान और मिलान से ही खेतों में फसल लहलहा उठती हैं। यानि इंसान और प्रकृति एक दूसरे के पूरक है। बिना इंसान की मेहनत के फसल नहीं हो सकती और ना ही बिना प्रकृति के सहयोग के फसल उगाना संभव नहीं है। इंसान जो भी चाहे , जब भी चाहे प्रकृति से बिना किसी संकोच के ले सकता है। प्रस्तुत कविता में कवि फसल को तैयार होने में किन – किन चीज़ों की आवश्यकता होती है , उनका वर्णन कर रहे हैं।

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फसल पाठ सार (Summary)

” फसल ” कविता के कवि ” नागार्जुन ” जी हैं। अलग – अलग नदियों का पानी जब भाप बनकर उड़ता है तो वो आकाश में बादल के रूप में परिवर्तित हो जाता है। और फिर वही बादल बरस कर धरती पर पानी के रूप में वापस आ जाते हैं। जिससे फसलों को भरपूर पनपने का मौका मिलता हैं। फसल को तैयार होने में किन – किन चीज़ों की आवश्यकता होती है , उनका वर्णन कर रहे हैं। कवि कहते हैं कि एक या दो नहीं बल्कि अनेक नदियों का पानी अपना जादुई असर दिखाता है , तब जाकर फसल पैदा होती हैं। एक नहीं दो नहीं बल्कि लाखों – करोड़ों हाथों के अथक परिश्रम का परिणाम से एक अच्छी फसल तैयार होती है। अर्थात हजारों खेतों पर दुनिया भर के लाखों – करोड़ों किसान दिन रात मेहनत करते हैं। एक या दो नहीं बल्कि हजारों खेतों की उपजाऊ मिट्टी के पोषक तत्व भी इन फसलों के अंदर छुपे हुए हैं। क्योंकि मिट्टी की विशेषताएं भी फसलों की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। यानी मिट्टी से मिलने वाले जरूरी पोषक तत्व फसलों के लिए जरूरी होते हैं और अलग – अलग तरह की फसलों को उगाने के लिए अलग – अलग तरह की  मिट्टी व उसके गुण आवश्यक होते हैं। किसान की मेहनत के साथ – साथ पानी भी आवश्यक है। साथ में मिट्टी का गुणवत्तापूरक भी जरूरी है। क्योंकि मिट्टी की विशेषताओं के अनुसार ही फसल पैदा होती है। अलग-अलग तरह की मिट्टी में अलग – अलग तरह के पोषक तत्व व गुण पाए जाते हैं जिससे अनुसार अलग-अलग तरह की फसलों को पैदा किया जा सकता है। पौधों को बढ़ने के लिए सूरज की किरणें व कार्बन डाइऑक्साइड गैस भी आवश्यक है क्योंकि सूरज की रोशनी में ही ये पौधे मिट्टी से जरूरी पोषक तत्व , पानी व हवा से कार्बन डाइऑक्साइड गैस लेकर अपना भोजन बनाते हैं। जिसे प्रकाश संश्लेषण ( Photosynthesis) कहा जाता हैं। कवि पहले तो प्रश्न पूछते हैं कि फसल क्या हैं ? फिर उसी प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि नदियों के पानी का जादू फसल के रूप दिखाई देता हैं क्योंकि बिना पानी के फसल का उगना नामुकिन हैं। करोड़ों किसानों की दिन – रात की मेहनत का नतीजा फसल के रूप में मिलता हैं। भूरी , काली व खुशबूदार हल्की पीली मिट्टी यानि अलग –  अलग प्रकार की मिट्टी के पोषक तत्व और सूरज की किरणें भी अपना रूप बदल कर इन फसलों के अंदर समाहित रहती हैं। क्योंकि सूरज की रोशनी और हवा में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित कर ही पौधे अपनी पत्तियों के दवारा भोजन बनाते हैं। अच्छी तरह से फसलों को फलने फूलने के लिए किसान की मेहनत के साथ – साथ पानी , मिट्टी का गुणवत्तापूरक , अलग – अलग तरह की मिट्टी में अलग- अलग तरह के पोषक तत्व , पौधों को बढ़ने के लिए सूरज की किरणें व कार्बन डाइऑक्साइड गैस आदि की आवश्यकता होती है। करोड़ों किसानों की दिन- रात की मेहनत , नदियों के पानी का जादू , भूरी , काली व खुशबूदार मिट्टी यानि अलग – अलग प्रकार की मिट्टी के पोषक तत्व और सूरज की किरणें भी अपना रूप बदल कर इन फसलों के अंदर समाहित रहती हैं।

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फसल पाठ व्याख्या (Lesson Explanation)

काव्यांश 1 

एक के नहीं ,
दो के नहीं ,
ढ़ेर सारी नदियों के पानी का जादू ;
एक के नहीं ,
दो के नहीं ,
लाख – लाख कोटि – कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा ;
एक की नहीं ,
दो की नहीं ,
हजार – हजार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म ;

 शब्दार्थ
ढ़ेर सारी – बहुत अधिक
कोटि – करोड़
स्पर्श – छूना
गरिमा – गुरुत्त्व , भारीपन , महत्व , गौरव , गर्व
गुण धर्म – किसी वस्तु में पाई जाने वाली वह विशेष बात या तत्व जिसके द्वारा वह दूसरी वस्तु से अलग मानी जाए

नोट – अलग – अलग नदियों का पानी जब भाप बनकर उड़ता है तो वो आकाश में बादल के रूप में परिवर्तित हो जाता है। और फिर वही बादल बरस कर धरती पर पानी के रूप में वापस आ जाते हैं। जिससे फसलों को भरपूर पनपने का मौका मिलता हैं। इसी का वर्णन कवि इन पंक्तियों में कर रहे हैं।

व्याख्या –  उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि एक या दो नहीं बल्कि अनेक नदियों का पानी अपना जादुई असर दिखाता है , तब जाकर फसल पैदा होती हैं। आगे कवि कहते है कि एक नहीं दो नहीं बल्कि लाखों – करोड़ों हाथों के अथक परिश्रम का परिणाम से एक अच्छी फसल तैयार होती है। अर्थात हजारों खेतों पर दुनिया भर के लाखों – करोड़ों किसान दिन रात मेहनत करते हैं। अपनी फसल की देखभाल करते हैं। उसको समय – समय पर खाद , पानी और जरूरी पोषक तत्व देते हैं। तब जाकर कहीं फसल खेतों पर लहलहा उठती है। अच्छी फसल उगाने के लिए खेतों की मिट्टी अच्छी होनी चाहिए। इसीलिए कवि कहते हैं कि एक या दो नहीं बल्कि हजारों खेतों की उपजाऊ मिट्टी के पोषक तत्व भी इन फसलों के अंदर छुपे हुए हैं। क्योंकि मिट्टी की विशेषताएं भी फसलों की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। यानी मिट्टी से मिलने वाले जरूरी पोषक तत्व फसलों के लिए जरूरी होते हैं और अलग – अलग तरह की फसलों को उगाने के लिए अलग – अलग तरह की  मिट्टी व उसके गुण आवश्यक होते हैं।

भावार्थ  – उपरोक्त पंक्तियों में कवि फसल को तैयार होने में किन – किन चीज़ों की आवश्यकता होती है , उनका वर्णन कर रहे हैं। नदियों का पानी जब भाप बनकर उड़ता है तो वो आकाश में बादल का रूप ले लेता है। और फिर वही बादल वर्षा के रूप में बरस कर धरती पर पानी के रूप में वापस आ जाता है। जिससे फसलों को अच्छी प्रकार से पनपने का मौका मिलता हैं। करोड़ों किसानों की रात – दिन की मेहनत से फसल उगती हैं। अच्छी फसल उगाने के लिए खेतों की मिट्टी अच्छी होनी चाहिए। क्योंकि मिट्टी की विशेषताएं भी फसलों की गुणवत्ता को प्रभावित करती है।

 

काव्यांश 2 –

फसल क्या है ?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी – काली – संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का !

शब्दार्थ
महिमा – महत्वपूर्ण या महान होने की अवस्था या भाव , महानता , बड़ाई , गौरव , बड़प्पन
भूरी – भूरा रंग
काली – काला रंग
संदली – एक प्रकार का हलका पीला रंग
रूपांतर –  रूप में परिवर्तन , किसी वस्तु का बदला रूप , ( ट्रांसफॉरमेशन )
सिमटा – जिसका संकुचन हुआ हो , सिकुड़ा
संकोच –  झिझक , हिचकिचाहट , असमंजस
थिरकन – भावों के साथ पैरों को उठाते , गिराते एवं हिलाते हुए नाचने की अवस्था , थिरक

नोट – फसलों को अच्छी तरह से फलने फूलने के लिए क्या – क्या आवश्यक है उपरोक्त पंक्तियों में कवि इन्हीं का वर्णन कर रहे हैं। किसान की मेहनत के साथ – साथ पानी भी आवश्यक है। साथ में मिट्टी का गुणवत्तापूरक भी जरूरी है। क्योंकि मिट्टी की विशेषताओं के अनुसार ही फसल पैदा होती है। अलग-अलग तरह की मिट्टी में अलग – अलग तरह के पोषक तत्व व गुण पाए जाते हैं जिससे अनुसार अलग-अलग तरह की फसलों को पैदा किया जा सकता है। पौधों को बढ़ने के लिए सूरज की किरणें व कार्बन डाइऑक्साइड गैस भी आवश्यक है क्योंकि सूरज की रोशनी में ही ये पौधे मिट्टी से जरूरी पोषक तत्व , पानी व हवा से कार्बन डाइऑक्साइड गैस लेकर अपना भोजन बनाते हैं। जिसे प्रकाश संश्लेषण ( Photosynthesis) कहा जाता हैं।

व्याख्या –  उपरोक्त पंक्तियों में कवि पहले तो प्रश्न पूछते हैं कि फसल क्या हैं ? फिर उसी प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि नदियों के पानी का जादू फसल के रूप दिखाई देता हैं क्योंकि बिना पानी के फसल का उगना नामुकिन हैं। करोड़ों किसानों की दिन – रात की मेहनत का नतीजा फसल के रूप में मिलता हैं। भूरी , काली व खुशबूदार हल्की पीली मिट्टी यानि अलग –  अलग प्रकार की मिट्टी के पोषक तत्व और सूरज की किरणें भी अपना रूप बदल कर इन फसलों के अंदर समाहित रहती हैं। क्योंकि सूरज की रोशनी और हवा में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित कर ही पौधे अपनी पत्तियों के दवारा भोजन बनाते हैं। जिसे कविता में कवि ने सूरज की किरणों का परिवर्तित रूप और हवा की भावों के साथ पैरों को उठाते , गिराते एवं हिलाते हुए नाचने का नाम दिया हैं।

भावार्थ  – अच्छी तरह से फसलों को फलने फूलने के लिए किसान की मेहनत के साथ – साथ पानी , मिट्टी का गुणवत्तापूरक , अलग – अलग तरह की मिट्टी में अलग- अलग तरह के पोषक तत्व , पौधों को बढ़ने के लिए सूरज की किरणें व कार्बन डाइऑक्साइड गैस आदि की आवश्यकता होती है। करोड़ों किसानों की दिन- रात की मेहनत , नदियों के पानी का जादू , भूरी , काली व खुशबूदार मिट्टी यानि अलग – अलग प्रकार की मिट्टी के पोषक तत्व और सूरज की किरणें भी अपना रूप बदल कर इन फसलों के अंदर समाहित रहती हैं।

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