Class 9 NCERT Hindi (Course A) Kshitij Bhag-1 Chapter Wise difficult word meanings
Here, the difficult words and their meanings of all the Chapters of CBSE Class 9 Hindi (Course A) Kshitij Bhag-1 Book have been compiled for the convenience of the students. This is an exhaustive list of the difficult words and meanings of all the Chapters from the NCERT Class 9 Hindi Kshitij Bhag-1 Book. The difficult words’ meanings have been explained in an easy language so that every student can understand them easily.
- Chapter 1 – Do Bailon Ki Katha (दो बैलों की कथा)
- Chapter 2 – Lhasa Ki Or (ल्हासा की ओर)
- Chapter 3 – Upbhoktavad ki Sanskriti (उपभोक्तावाद की संस्कृति)
- Chapter 4 – Sawle Sapno Ki Yaad (साँवले सपनों की याद)
- Chapter 5 – Premchand Ke Fate Joote (प्रेमचंद के फटे जूते)
- Chapter 6 – Mere Bachpan Ke Din (मेरे बचपन के दिन)
- Chapter 7 – Sakhiyan, Sabad (साखियाँ, सबद)
- Chapter 8 – Vakh (वाख)
- Chapter 9 – Savaiye, Sabad (सवैये, सबद)
- Chapter 10 – Kaidi Aur Kokila (कैदी और कोकिला)
- Chapter 11 – Gram Shri (ग्राम श्री)
- Chapter 12 – Megh Aaye (मेघ आए)
- Chapter 13 – Bachche Kaam Par Ja Rahe Hain (बच्चे काम पर जा रहे हैं)
Chapter 1 – Do Bailon Ki Katha (दो बैलों की कथा)
- परले दरजे का – ‘परले दर्जे का बेवकूफ़’ एक मुहावरा है जिसका मतलब है सबसे बड़ा बेवकूफ़
- पदवी – पहचान योग्य नाम या उपलब्धि
- निरापद – सुरक्षित
- सहिष्णुता – सहनशीलता
- अनायास – बिना प्रयत्न के, सरलता से
- वैशाख – भारतीय कैलेंडर का दूसरा महीना
- कुलेल (कल्लोल) – क्रीड़ा
- विषाद – उदासी
- पराकाष्ठा – अंतिम सीमा
- दुर्दशा – दुर्गति, दुरावस्था
- सभ्य – शिष्ट, सुशील
- कदाचित – कभी, शायद
- गण्य – गणनीय, सम्मानित
- सर्वश्रेष्ठ – सब में अच्छा, सर्वोत्तम
- अड़ियल- अड़कर चलनेवाला, हठी
- रीति– क़ायदा, नियम
- पछाई – पालतू पशुओं की एक नस्ल
- चौकस- ठीक, दुरुस्त
- डील– क़द, व्यक्तित्व
- मूक- भाषा- बिना शब्दों या उच्चारण की भाषा
- गुप्त – छिपा हुआ, अपरिचित
- विग्रह – अलगाव
- विनोद – मनोरंजन, क्रीड़ा
- आत्मीयता- अपनापन
- घनिष्ठता – गहरी दोस्ती
- धौल-धप्पा- दोस्ताना हाथा पाई
- चेष्टा – कोशिश
- नाँद – गाय को चारा देने का पात्र
- गोईं – जोड़ी
- हुँकार- ललकारने का शब्द
- पगहिया – पशु बाँधने की रस्सी
- ज़ालिम- ज़ुल्म करने वाला, अत्याचारी
- कनखी- तिरछी नज़र से देखना
- सोता पड़ गया- माहौल शान्त हो गया
- पगहे- पशुओं के गले में बाँधी जानेवाली रस्सी
- चरनी- पशुओं के चरने का स्थान
- गराँव– पशुओं के गले में बाँधी जानेवाली दोहरी रस्सी।
- विद्रोहमय- उपद्रव युक्त
- प्रेमालिंगन- प्रेम में गले लगाना
- प्रतिवाद- विरोध
- नमकहराम- उपकार न माननेवाला
- आक्षेप- दोष लगाना
- मजूर की कड़ी ताकीद- मजदूर को चौकन्ना करना
- खाई- बहुत गहरा गड्ढा
- चूनी- गेहूँ, चावल आदि का छोटा कण
- टिटकार – मुँह से निकलने वाला टिक-टिक का शब्द
- आहत- घायल, ज़ख्मी
- व्यथा- आंतरिक क्लेश या दुःख
- मूक-भाषा- शब्द रहित भाषा, बिना उच्चारण की भाषा
- व्यर्थ- बेकार, फालतू
- ऐंठकर- घमंड दिखाकर
- तेवर- क्रोध दिखाकर
- टाल जाना– टरकाना, हटाना
- मसलहत – हितकर
- आत्मीयता- अपनापन
- बरकत- वृद्धि, लाभ
- विद्रोह- उपद्रव, क्रांति
- मूक-भाषा- शब्द रहित भाषा, बिना उच्चारण के मन ही मन बातचीत
- एकाध- गिनती में बहुत कम, एक आध।
- गराँव – फुँदेदार रस्सी जो बैल आदि के गले में पहनाई जाती है।
- बेतहाशा-बिना सोचे-समझे
- व्याकुल- बेचैन, परेशान
- ठेलने लगे– ढकेलने लगे
- मूक-भाषा- जिसमें शब्द नहीं है न उच्चारण
- आरजू- विनय, विनती
- नौ-दो-ग्यारह- किसी जगह से तुरंत भाग जाना या तेज़ी से गायब हो जाना
- रगेदना – खदेड़ना
- जोखिम- खतरा, संकट
- लपके- अचानक तेजी से आगे बड़े
- तजरबा– अनुभव
- मल्लयुद्ध – कुश्ती
- रगेदा- बल प्रयोग करते हुए भगाना, खदेड़ना
- बेदम- दम रहित, जिसमें जान ही न बची हो
- सांकेतिक भाषा- ऐसी भाषा जिसमें शब्दों का उपयोग नहीं किया गया हो
- तिरस्कार- अपमान, अनादर
- बैरी- दुश्मन, शत्रु
- ग्रास– कौर, निवाला
- खुर- नख, सींगवाले पशुओं के पैरों का अगला सिरा
- कांजीहौस (काइन हाउस) – मवेशीखाना, वह बाड़ा जिसमें दूसरे का खेत आदि खाने वाले या लावारिस चौपाये बंद किए जाते हैं और कुछ दंड लेकर छोड़े या नीलाम किए जाते हैं।
- साबिका – वास्ता, सरोकार
- फाटक- बड़ा दरवाज़ा
- तृप्ति- आवश्यकता पूरी होने पर मिलनेवाली मानसिक शांति।
- विद्रोह- उपद्रव, क्रांति
- बूते पर– ताकत पर, बल पर
- चिप्पड़- छोटा टुकड़ा, छाल
- कांजीहौस- आवारा और लावारिस पशुओं को बंद करने की जगह
- उजड्डपन– असभ्यता, उद्दंडता
- बूते-भर- सामर्थ्य के अंदर या हदों के अंदर
- प्रतिद्वंद्वी- मुकाबला करनेवाला
- आज़माना- जाँचना, परखना
- अधमरा- लगभग मरने की स्थिति में पहुँचा हुआ
- चेत- होश, बोध
- हरज- आपत्ति
- स्वार्थी- अपना ही मतलब देखनेवाला
- खलबली- हलचल होना, हल्ला होना
- मरम्मत- बिगड़ी वस्तु को सुधारना, शारीरिक दण्ड
- ठठरियाँ– बैलों का शरीर शव समान हो गया था, हड्डियाँ निकल आयीं थी
- मृतक – मारा हुआ
- मुद्रा- सिक्का, पैसा
- अंतर्ज्ञान– मन का ज्ञान, बोध
- भीत नेत्र– डरी हुई आँखें
- नाहक- व्यर्थ, फालतू में
- रेवड़ – पशुओं का झुंड
- पागुर- पागुर- जुगाली (पशुओं द्वारा थोड़ा-थोड़ा चारा चबाना)
- परिचित राह- जाना पहचाना रास्ता
- प्रतिक्षण– हर एक पल
- उन्मत्त – मतवाला
- कुलेलें- मजे में खेलना
- थान – पशुओं के बाँधे जाने की जगह
- मवेशीखाना- पशुबंदी गृह
- शूर- बहादुर
- उछाह – उत्सव, आनंद
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Chapter 2 – Lhasa Ki Or (ल्हासा की ओर)
- निम्नश्रेणी- नीचे स्तर का
- टोटीदार बर्तन– नल के जैसा मुँह वाला बर्तन
- मथना- किसी तरल पदार्थ को लकड़ी आदि से हिलाना या चलाना जिससे वह पूरी तरह घुल जाए
- परित्यक्त- जिसे छोड़ दिया गया हो
- थोङ्ला – तिब्बती सीमा का एक स्थान
- दोनों चिटें – जेनम् गाँव के पास पुल से नदी पार करने के लिए जोङ्पोन् (मजिस्ट्रेट) के हाथ की लिखी लमयिक् (राहदारी) जो लेखक ने अपने मंगोल दोस्त के माध्यम से प्राप्त की।
- सुमति – लेखक को यात्रा के दौरान मिला मंगोल भिक्षु जिसका नाम लोब्ज़ङ् शेख था। इसका अर्थ है सुमति प्रज्ञ। अत: सुविधा के लिए लेखक ने उसे सुमति नाम से पुकारा है।
- मनोवृत्ति- मन का सोचना
- निर्भर- आश्रित
- छङ्- एक तरह का नशीला पेय
- परित्यक्त- जिसे छोड़ दिया गया हो
- राहदारी- रास्ते में लिया जाने वाला कर, टैक्स, शुल्क
- चिटें- यात्रा पास या अनुमति पत्र
- डाँड़ा – ऊँची ज़मीन
- थोङ्ला – तिब्बती सीमा का एक स्थान
- खुफ़िया-विभाग- ऐसा छुपा हुआ विभाग जो जानकारी रखता हो
- डकैत- डाकू, लुटेरा
- निर्जन- एकांत जगह, जहाँ लोग न हों
- गवाह- गवाह वह व्यक्ति होता है जो जानता है या जानने का दावा करता है।
- थोङ्ला – तिब्बती सीमा का एक स्थान
- भीटे – टीले के आकार का-सा ऊँचा स्थान
- पिछड़- जो पीछे रह गया हो
- दोन्क्विक्स्तो – स्पेनिश उपन्यासकार सार्वेंतेज (17वीं शताब्दी) के उपन्यास ‘ डॉन क्विक्ज़ोट’ का नायक, जो घोड़े पर चलता था।
- मंगोलों- मंगोल लोग जो मंगोलिया के रहने वाले हैं
- कंडे – गाय-भैंस के गोबर से बने उपले जो ईंधन के काम में आते हैं।
- सत्तू – भूने हुए अन्न (जौ, चना) का आटा
- थुक्पा – सत्तू या चावल के साथ मूली, हड्डी और माँस के साथ पतली लेई की तरह पकाया गया खाद्य-पदार्थ
- यजमान- परिचित
- गंडा – मंत्र पढ़कर गाँठ लगाया हुआ धागा या कपड़ा
- चिरी – फाड़ी हुई
- भरिया – भारवाहक
- कड़ी- तेज
- यजमान- यज्ञ करने वाला, यहाँ, बुद्ध धर्म को मानने वाले या अनुयायी
- भेष- दिखावट, रूप
- कन्जुर- भगवान बुद्ध के वचनों की हाथ से लिखी गयी और अनुवाद की गयीं पुस्तकें हैं।
- पोथियाँ- छोटी पुस्तकें
- सेर- सेर नापने की इकाई है, जिसका अर्थ 933 ग्राम के बराबर है, यानि एक किलोग्राम से थोड़ा कम।
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Chapter 3 – Upbhoktavad ki Sanskriti (उपभोक्तावाद की संस्कृति)
- वर्चस्व – प्रधानता, श्रेष्ठ या मुख्य होने की अवस्था
- उपभोक्तावाद – ऐसी सामाजिक व्यवस्था जिसमें उपभोग करने की वरीयता दी जाती है
- शैली – ढंग, तरीका, रीति
- निरंतर – लगातार
- विज्ञापित – प्रचारित/सूचित
- सौंदर्य प्रसाधन – सुंदरता बढ़ाने वाली सामग्री
- चमत्कृत – आश्चर्यचकित
- संभ्रांत – प्रतिष्ठित, सम्मानित
- परिधान – वस्त्र
- अनंत – जिसका अंत न हो
- सामंती संस्कृति – विशिष्ठ जनों की जीवन-शैली
- अस्मिता – अस्तित्व, पहचान
- अवमूल्यन – मूल्य गिरा देना
- क्षरण – नाश
- दासता – गुलामी, बंधन
- उपनिवेश – वह विजित देश जिसमें विजेता राष्ट्र के लोग आकर बस गए हों
- प्रतिमान – मानदंड
- प्रतिस्पर्धा – होड़
- छ्द्म – बनावटी
- दिग्भ्रमित – रास्ते से भटकना, दिशाहीन
- वशीकरण – वश में करना
- संसाधन – भरण-पोषण, विकास आदि की सामग्री, साधन-सामग्री
- बहुविज्ञापित – जिन वस्तुओं का विज्ञापनों के द्वारा अधिक प्रचार किया जाता है
- शीतल पेयों – ठंडक देने वाली पीने की सामग्री जैसे – जूस इत्यादि
- अपव्यय – फ़िजूलखर्ची
- सरोकार – परस्पर व्यवहार का संबंध, लगाव
- आक्रोश – क्रोध
- अस्मिता – पहचान
- ह्रास – पतन
- लक्ष्य-भ्रम – अपने लक्ष्य या उद्देश्य से भटकना
- तुष्टि – संतोष या तृप्ति
- तात्कालिक – उसी समय का
- मर्यादा – सीमा, हद
- नैतिक – निति के अनुसार होने वाला (व्यवहार या आचरण)
- मापदंड – मापने का पैमाना
- परमार्थ – दूसरों की भलाई
- नींव – मूल, जड़, आधार
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Chapter 4 – Sawle Sapno Ki Yaad (साँवले सपनों की याद)
- हुजूम – जनसमूह, भीड़
- वादी – घाटी
- परिंदों- पक्षी
- साँवले– हल्का काला
- अग्रसर – आगे बढ़ा हुआ
- सैलानी- सैर का शौकीन
- पलायन – दूसरी, जगह चले जाना, भागना
- विलीन – अदृश्य होना, लुप्त हो जाना
- हरारत – उष्णता या गर्मी, हल्का बुखार
- आबशार – निर्झर, झरना
- उत्सुक – बेचैन
- भीतर– अंदर
- सोता फूटना – यह एक मुहाबरा है, जिसका अर्थ है आनंद की अनुभूति होना
- मिथक – प्राचीन पुराकथाओं का तत्व, जो नवीन स्थितियों में नए अर्थ का वहन करता है।
- रासलीला – कृष्ण और गोपियों की प्रेममयी लीलाएँ
- शोख – चंचल
- भाँड़े – बर्तन, बासन
- दूध-छाली – गर्म दूध के ठंडा होने पर ऊपर जमी मलाई की परत
- वाटिका- बागीचा
- विश्राम – आराम
- साँवला – हल्का काला, श्यामवर्ण का
- हिदायत – रास्ता दिखाना
- मिथक – प्राचीन पुराकथाओं का तत्व, जो नवीन स्थितियों में नए अर्थ का वहन करता है।
- शती – सौ वर्ष का समय
- हिफ़ाज़त – रक्षा करना
- दूरबीन – दूर तक देखनेवाला यंत्र
- बर्ड वाचर (Bird Watcher) – जो व्यक्ति पक्षियों को देखता है या पक्षियों को देखना पसंद करता है।
- एकांत – अकेला, अलग
- क्षितिज – वह स्थान जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते दिखाई देते हैं।
- कायल – स्वीकार करने वाला
- गढ़ना – बनाना
- सहपाठी – साथ पढ़नेवाला।
- रोमांचकारी जीवन – रोंगटे खड़े कर देनेवाला, मजा आ जाने वाला
- साइलेंट वैली – साइलेंट वैली नेशनल पार्क पालक्कड जिले केरल में स्थित है।
- सोंधी – सुगंधित, मिट्टी पर पानी पड़ने से उठने वाली गंध
- संकल्प – दृढ़ निश्चय, विचार, इरादा
- वकालत – प्रस्ताव का समर्थन करने की क्रिया
- आत्मकथा- अपनी खुद की कहानी
- अनुरोध – प्रार्थना
- असंभव – मुश्किल, जो हो न सके
- गोरैया – चिड़िया
- जटिल– कठिन
- एयरगन – हवाई बन्दूक, जिसमें बारूद का उपयोग नहीं होता
- डिगना – हिलना, हटना
- नैसर्गिक – सहज, स्वाभाविक
- प्रतिरूप – प्रतिमा, मूर्ति
- यायावरी – यात्रा करने वाला, घुमक्कड़ी
- सुराग – निशान, सबूत
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Chapter 5 – Premchand Ke Fate Joote (प्रेमचंद के फटे जूते)
- कनपटी – कान और आँख के बीच का स्थान
- उभरना – प्रकट होना, निकलना
- बंद – फीता
- बेतरतीब – अव्यवस्थित
- पोशाक– कपड़े
- साहित्यिक – साहित्य शास्त्र के विद्वान्
- पुरखे – पूर्वज
- लज्जा – शर्म
- विचित्र – अनोखी
- उपहास – खिल्ली उड़ाना, मज़ाक उड़ाने वाली हँसी
- आग्रह – पुनः पुनः निवेदन करना
- ट्रेजडी – दुखद घटना, दुर्भाग्यपूर्ण घटना
- क्लेश – दुख
- व्यंग्य – कटाक्ष, ताना
- आनुपातिक – अनुपात के विचार या दृष्टि से होने वाला, जो अनुपात की दृष्टि से ठीक या उचित हो
- विडंबना – अपेक्षित और घटित के बीच होने वाली असंगति
- पैनी – तेज़, तीखी
- ठाठ – वैभव, शोभा, सजावट, शान
- हौसला – साहस, धैर्य
- पस्त होना – जो हार गया हो
- तगादा – किसी कार्य के लिए बार-बार कहना, तकाज़ा, अनुरोध, आग्रह
- कुम्भनदास – कुम्भनदास परम भगवद्भक्त, आदर्श गृहस्थ और महान विरक्त थे
- पन्हैया – देशी जूतियाँ
- बिसरना – भूल जाना
- होरी – होरी गोदान उपन्यास का नायक है। इसमें आदि से अंत तक होरी की दयनीय और संघर्षपूर्ण गाथा कही गई है। वह भारतीय कृषक वर्ग का प्रतिनिधि है।
- नेम – नियम
- धरम – कर्तव्य
- घृणित – निंदित, तिरस्कृत
- बरकाकर – बचाकर
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Chapter 6 – Mere Bachpan Ke Din (मेरे बचपन के दिन)
- स्मृतियों- यादों
- विचित्र-सा- अजीब सा
- आकर्षण- खिंचाव
- परिस्थितियाँ- हालात
- पीढ़ी- कुल, वंश परंपरा में क्रम–क्रम से बढ़नेवाली संतान की प्रत्येक कड़ी
- उत्पन्न- पैदा
- प्राय:- अक्सर
- परमधाम – स्वर्ग
- खातिर- सेवा करना
- वातावरण- माहौल
- पंचतंत्र- पंडित विष्णु शर्मा की रचना है, जिसमें कहानियाँ हैं।
- विदुषी- विद्वान् स्त्री
- वश- काबू
- मौलवी- इस्लाम धर्म का आचार्य
- उपरांत- बाद में
- मिशन स्कूल- ईसाई द्वारा चलाए जाने वाले धार्मिक स्कूल
- मेस- भोजन करने का स्थान
- छात्रावास- वह स्थान जहाँ छात्र रहते हैं, जिसे हॉस्टल भी कहते हैं।
- साथिन- सहेली
- दर्जे- श्रेणी या स्तर
- सीनियर- पद में बड़ा
- तुक- शब्दों के अंत में एक जैसी ध्वनि का मेल, जैसे कविता में तुकबंदी।
- पद- कविता का प्रकार
- विशेष रूप से- खास तौर पर
- प्रभाती- सवेरे गाया जाने वाला गीत
- ब्रजभाषा- ब्रज क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा
- आरंभ- शुरुआत
- प्रतिष्ठित- सम्मानित
- डेस्क- मेज
- अपराधी- जो व्यक्ति अपराध (गलत काम) करता है।
- होस्टल- छात्रावास, वह स्थान जहाँ छात्र रहते हैं।
- पत्रिका- जिसमें लेख छपते हैं
- दर्पण– आइना
- कवि-सम्मेलन- कवियों की बैठक या आयोजन जहाँ वे अपनी कविताएँ सुनाते हैं
- प्रचार-प्रसार- किसी चीज़ या विचार का फैलाव
- सत्याग्रह- सत्य के प्रति आग्रह, गांधी जी द्वारा चलाया गया एक आंदोलन
- स्वतंत्रता- आज़ादी
- संघर्ष- कठिन मेहनत करना
- केंद्र- मुख्य स्थान
- अध्यक्ष- किसी सभा, बैठक, या संगठन का प्रमुख व्यक्ति
- पुरस्कार- ईनाम
- पदक – (प्रशंसासूचक पुरस्कार) सोने-चाँदी या अन्य धातु से बना हुआ गोल या चौकोर टुकड़ा जो किसी विशेष अवसर पर पुरस्कार के रूप में दिया जाता है।
- घटना- कुछ घटित होना, हादसा
- नक्काशीदार – बेल-बूटे के काम से युक्त
- पीतल- एक मिश्र धातु
- फूल – ताँबे और राँगे के मेल से बनी एक मिश्र धातु
- मराठी- महाराष्ट्र राज्य की मुख्य भाषा
- अवकाश- छुट्टी
- उस्तानी- एक महिला शिक्षक या गुरु
- इकड़े-तिकड़े- इधर-उधर (मराठी भाषा के शब्द)
- सांप्रदायिकता- विभिन्न धर्मों या समुदायों के बीच आपसी भेदभाव
- अवधी- अवध क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा
- बुंदेली- बुंदेलखंड क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा
- विवाद- झगड़ा
- विद्यापीठ- शिक्षा का स्थान
- संस्कार- व्यक्ति को अच्छे गुणों से सजाना
- नवाब- मुस्लिम रियासतों के शासक
- कंपाउंड- एक क्षेत्र जो दीवार से घिरा हो, जैसे किसी बंगले या स्कूल का प्रांगण।
- निराहार – बिना कुछ खाए-पिए
- लहरिया – रंग-बिरंगी धारियों वाली विशेष प्रकार की साड़ी जो सामान्यतः तीज, रक्षाबंधन आदि त्यौहारों पर पहनी जाती है।
- मुहर्रम- इस्लामी वर्ष का पहला महीना
- नेग- शगुन या पारंपरिक उपहार
- प्रोफ़ेसर- विश्वविद्यालय या महाविद्यालय में पढ़ाने वाला वरिष्ठ अध्यापक
- वाइस चांसलर – कुलपति
- निकट- पास
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Chapter 7 – Sakhiyan, Sabad (साखियाँ, सबद)
साखियाँ
- मानसरोवर – मन रूपी सरोवर अर्थात हृदय
- सुभर – अच्छी तरह भरा हुआ
- जल – भक्तिभाव
- हंसा – हंस पक्षी, जीवात्मा
- केलि – क्रीड़ा, जीवन यापन
- कराहिं – करना
- मुकुताफल – मोती, मुक्ति
- उड़ि – उड़कर
- अनत – कहीं और
- जाहिं – जाते हैं
- प्रेमी – प्रेम करने वाला, प्रभु का भक्त
- ढूँढ़त – ढूँढ़ता है
- मैं – अहंकार
- फिरौं – घूमता है
- विष – जहर, दुःख
- अमृत – सुख
- होइ – हो जाता है
- हस्ती – हाथी, ज्ञान
- सहज – स्वाभाविक
- दुलीचा – कालीन, छोटा आसन, सहजता
- स्वान (श्वान) – कुत्ता, बिना मतलब के हस्तक्षेप करने वाले लोग
- भूँकन – भौंकना, निंदा करना
- झख मारि – मजबूर होना, वक्त बरबाद करना
- पखापखी – पक्ष-विपक्ष
- कारनै – कारण
- भुलान – भूला हुआ
- निरपख – निष्पक्ष
- भजै – भजन, याद करना
- सोई – वही
- सुजान – चतुर, ज्ञानी
- मूआ – मरना
- सो – वही
- जीवता – जीता है
- दुहुँ – दोनों
- निकटि – निकट, नज़दीक
- जाइ – जाना
- काबा – मुसलमानों का पवित्र तीर्थ स्थल
- कासी – हिंदुयों का पवित्र तीर्थ स्थल
- भया – हो गया
- मोट चून – मोटा आटा
- बैठि – बैठकर
- जीम – भोजन करना
- ऊँचे कुल – ऊँचा कुल, अच्छा खानदान
- जनमिया – जन्म लेकर
- करनी – कर्म
- सुबरन – सोने का
- कलस – घड़ा
- सुरा – शराब
- निंदा – बुराई
- सोइ – उसकी
सबद (पद)
- मोकों – मुझे
- बंदे – व्यक्ति, मनुष्य
- देवल – मंदिर
- कौने – किसी
- क्रिया-कर्म – पूजा-पाठ
- खोजी – खोजना, ढूँढना
- होय तो – हो तो
- तुरतै – तुरंत, उसी समय
- मिलिहौं – मिल सकता हूँ
- तालास – तलाश, खोज
- साधो – सज्जन
- स्वाँसों – साँस लेने वाले
- स्वाँस – साँस
- टाटी – परदे के लिए लगाए हुए बाँस आदि की फट्टियों का पल्ला
- उड़ाणी – उड़ गईं
- हित चित – चित्त की दो अवस्थाएँ
- थूँनी – स्तंभ, टेक
- गिरानी – गिर गई
- बलिंडा – छप्पर की मज़बूत मोटी लकड़ी
- त्रिस्ना – तृष्णा, चाह
- छाँनि – छप्पर
- कुबुधि – कुबुद्धि, कुविचार
- भाँडा – बर्तन
- जोग जुगति – सोच-विचार
- निरचू – थोड़ा भी
- चुवै – चूता है, रिसता है, टपकना
- पाणीं – पानी
- कूड़ – कूड़ा, छल-कपट
- काया – शरीर और मन
- निकस्या – निकल गया
- हरि की गति – ईश्वर का स्वरूप या कृपा
- बूठा – बरसा
- जन – भक्त
- भींनाँ – भीग गया, मग्न हो गया
- भाँन – सूर्य, ज्ञान
- तम – अंधकार, अज्ञान
- खीनाँ – क्षीण हुआ
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- वाख – वाणी, शब्द या कथन, यह चार पंक्तियों में बद्ध कश्मीरी शैली की गेय रचना है।
- रस्सी कच्चे धागे की – कमज़ोर और नाशवान सहारे
- कच्चे सकोरे – स्वाभाविक रूप से कमज़ोर
- नाव – जीवन रूपी नाव
- हूक- तड़प
- चाह- इच्छा।
- सम (शम) – अंत:करण तथा बाह्य-इंद्रियों का निग्रह
- समभावी – समानता की भावना
- खुलेगी साँकल बंद द्वार की – चेतना व्यापक होगी, मन मुक्त होगा
- गई न सीधी राह – जीवन में सांसारिक छ्ल-छद्मों के रास्ते पर चल रही
- सुषुम-सेतु – सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल, हठयोग में शरीर की तीन प्रधान नाड़ियों में से एक नाड़ी (सुषुम्ना), जो नासिक के मध्य भाग (ब्रह्मरंध्र) में स्थित है।
- जेब टटोली – आत्मालोचन किया
- कौड़ी न पाई – कुछ प्राप्त न हुआ
- माझी – ईश्वर, गुरु, नाविक
- उतराई – सद्कर्म रूपी मेहताना
- थल-थल – सर्वत्र
- शिव – ईश्वर
- साहिब – स्वामी, ईश्वर
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- मानुष – मनुष्य
- बसौं – बसना, रहना
- ग्वारन – ग्वाले
- पसु – पशु
- कहा बस – वश में न होना
- चरों – चरता रहूँ
- नित – हमेशा
- धेनु – गाय
- मँझारन – बीच में
- पाहन – पत्थर
- गिरि – पहाड़
- छत्र – छाता
- पुरंदर – इंद्र
- धारन – धारण किया
- खग – पक्षी
- बसेरो – निवास करना
- कालिंदी – यमुना
- कूल – किनारा
- कदंब – एक वृक्ष
- डारन – शाखाएँ, डाल
- या – इस
- लकुटी – लाठी
- कामरिया – छोटा कंबल
- तिहूँ – तीनों
- पुर – लोक
- तजि डारौं – त्याग दूँ
- नवौ निधि – नौ निधियाँ
- बिसारौं– भूलूँ
- तड़ाग – तालाब
- निहारौं – देखता हूँ
- कोटिक – करोड़ों
- कलधौत के धाम – सोने–चाँदी के महल
- करील – काँटेदार झाड़ियाँ
- कुंजन – लताओं से भरा स्थान
- वारौं – न्योछावर करना
- मोरपखा – मोर के पंखों से बना मुकुट
- राखिहौं – रखूँगी
- गुंज – एक जंगली पौधे का छोटा–सा फल
- गरें – गले में
- पहिरौंगी – पहनूँगी
- पितंबर – पीलावस्त्र
- गोधन – गाय रूपी धन
- ग्वारिन – ग्वालों के
- फिरौंगी – घूमूँगी
- भावतो – अच्छा लगना
- वोहि – जो कुछ
- स्वाँग – रूप धारण करना
- करौंगी – करूँगी
- मुरलीधर – कृष्ण
- अधरा – होंठों पर
- धरौंगी – रखूँगी
- काननि – कानों में
- दै – देकर।
- अँगुरी – उँगली
- रहिबो–रहूँगी
- धुनि – धुन
- मंद – मधुर स्वर में
- बजैहै – बजाएँगे
- मोहनी – मोहनेवाली
- तानन सों – तानों / धुनों से
- अटा – अट्टालिका, ऊँचे भवन
- गोधन – गायों का समूह, गाय के रूप में होने वाली संपत्ति
- गैहै – गाते हैं
- टेरि – पुकारकर बुलाना
- सिगरे – सारे
- काल्हि – कल
- समुझैहै – समझाएँगे
- माइ री –हे माई / माँ
- वा – उस
- सम्हारी – सँभाली
- न जैहै – नहीं जाएगी
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Chapter 10 – Kaidi Aur Kokila (कैदी और कोकिला)
- कोकिल- कोयल (यहाँ विद्रोह और क्रांति का प्रतीक)
- बटमार – रास्ते में यात्रियों को लूट लेने वाला
- तम- अन्धकार
- हिमकर – चंद्रमा
- कालिमामयी- काली
- आली- सखी
- हूक- कसक या पीड़ा युक्त आवाज़
- वेदना- पीड़ा
- मृदुल- कोमल
- वैभव- समृद्धि
- बावली- पागल
- अर्द्धरात्रि- आधी रात
- दावानल – जंगल की आग
- ज्वालाएँ- आग की लपटें
- जंजीर – बेड़ियाँ, हथकड़ियाँ
- गहना – आभूषण, जेवर
- हथकड़ी – हाथ में पहनाई जाने वाली जंजीर
- ब्रिटिश-राज – ब्रिटिश शासन
- कोल्हू – बैलों द्वारा चलाया जाने वाला तेल निकालने का यंत्र
- चर्रक-चूँ – कोल्हू की आवाज़
- तान – संगीत की धुन या स्वर
- गिट्टी – छोटे पत्थर
- अँगुली – हाथ की उंगली
- मोट – पुर चरसा (चमड़े का डोल जिससे कुँए आदि से पानी निकाला जाता है।)
- जूआ (जुआ) – बैलों के कंधों पर रखी जाने वाली लकड़ी
- अकड़ – घमंड, अभिमान
- कूँआ – कुआँ (जल स्रोत), यहाँ शोषण का प्रतीक
- करुणा – दया, संवेदना
- गज़ब ढाना – अत्याचार करना
- आली – रानी, शासक वर्ग
- अंधकार – अँधेरा, अज्ञान
- बेध – चीरना, पार करना
- मधुर विद्रोह-बीज – मीठे शब्दों में क्रांति का संदेश
- भाँति – प्रकार, तरीके
- काली – काला रंग
- रजनी – रात्रि, रात
- शासन – सरकार, सत्ता
- करनी – कर्म, कार्य
- लहर – तरंग, प्रभाव
- कल्पना – विचार, सोच
- काल कोठरी – अंधकारमय कारागार, जेल
- कमली – ऊनी चादर
- लौह-शृंखला – लोहे की जंजीरें, बेड़ियाँ
- पहरे – निगरानी, सुरक्षा
- हुंकृति – हुँकार
- ब्याली – सर्पिणी
- गाली – अपमानजनक शब्द
- संकट-सागर – कठनाईयों से भरा जीवन
- मरने की, मदमाती – मौत को गले लगाने की चाहत
- चमकीले गीत – क्रांति के प्रेरणादायक शब्द
- तैराना – बहाना, फैलाना
- हरियाली – हरा-भरा वातावरण
- डाली – पेड़ की शाखा
- नसीब – भाग्य
- कोठरी काली – अंधेरी जेल, कारागार
- नभ – आकाश
- संचार – गति, स्वतंत्रता
- दस फुट का संसार – जेल की छोटी सी कोठरी, सीमित जीवन
- गुनाह – अपराध
- विषमता – असमानता, भेदभाव
- रणभेरी – युद्ध का बिगुल, संघर्ष का आह्वान
- कृति – कार्य, कर्म
- मोहन – मोहनदास करमचंद गाँधी
- व्रत – संकल्प
- प्राणों के आसव – जीवन का सार, आत्मा
- भर दूँ – समर्पित कर दूँ, अर्पण कर दूँ
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Chapter 11 – Gram Shree (ग्राम श्री)
- तलक – तक
- रवि – सूर्य
- उजली – साफ़, स्वच्छ
- तन – शरीर
- हिल – हिलना
- हरित – हरा
- रुधिर – खून
- झलक – झलकना, गिरना
- श्यामल – साँवली
- भू – भूमि, मिट्टी
- नभ – आकाश
- चिर – हमेशा
- निर्मल – साफ़
- नील – नीला
- फलक – सतह
- वसुधा – धन देने वाला
- बाली – फली, फसल
- सनई – एक पौधा जिसकी छाल के रेशे से रस्सी बनाई जाती है
- किंकिंणी – वह करधनी जिसमें छोटे-छोटे घुँघरू लगे हों
- भीनी – हल्दी और मीठी (खुशबू)
- तैलाक्त – जिसमें तेल लगा हो, तैलयुक्त
- हरित – हरा
- धरा – पृथ्वी, धरती, जमीन
- नीलम – एक प्रकार का रत्न
- तीसी – अलसी
- रिलमिल – मिलझुल कर
- मखमली – कोमल
- पेटियों – संदूकों
- छीमियाँ – फलियाँ
- वृंत – डंठल
- रजत – चांदी
- स्वर्ण – सोना
- मंजरी – नया निकला हुआ कोमल पत्ता
- आम्र – आम
- तरु – पेड़
- ढाक – पलाश का वृक्ष
- कोकिला – कोयल
- मतवाली – मदमस्त
- मुकुलित – आधे पके – आधे कच्चे
- दाड़िम – अनार
- चित्तियाँ – दाग
- सुनहले – सुनहरे
- अँवली – छोटा आँवला
- महमह – सुगंध या ख़ुशबू के साथ
- मिरचों – मिर्च
- अंकित – निशान किया हुआ , दागदार , चिह्नित
- सतरंगी – सात रंग की
- सरपत – घास-पात
- सुरखाब – चक्रवाक पक्षी
- पुलिन – नदी आदि का तट, तीर, किनारा
- मगरौठी – एक जलपक्षी
- हिम-आतप – सर्दी की धूप
- अँधियाली – आधी रात का समा
- निशि – रात
- तारक – तारे
- मरकत – पन्ना नामक रत्न
- नीलम – ‘नीलम’ रूपी नीले रंग का रत्न
- आच्छादन – छाया हुआ
- निरुपम – जिसकी कोई उपमा न हो, अतुलनीय, बेजोड़
- हिमांत – शीत ऋतु का अंत
- स्निग्ध – सुंदर, सौम्य
- हरता – आकर्षित करना
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Chapter 12 – Megh Aaye (मेघ आए)
- मेघ – बादल
- बन-ठन के, सँवर के – सजे-धजे, सुंदर रूप में
- बयार – ठंडी हवा
- आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली – वर्षा के आगमन की खुशी में हवा बहने लगी, शहरी मेहमान के आगमन की खबर सारे गाँव में तेज़ी से फैल गई
- पाहुन – अतिथि (विशेष रूप से दामाद)
- पेड़ झुक झाँकने लगे – पेड़ हवा में झुककर बादलों को देखने लगे
- गरदन उचकाए – उत्सुकतापूर्वक सिर उठाना
- धूल भागी घाघरा उठाए – धूल तेज़ हवा में उड़ने लगी, जैसे स्त्रियाँ घाघरा संभालकर दौड़ रहीं हों
- बाँकी चितवन – बाँकपन लिए दृष्टि , तिरछी नज़र
- नदी ठिठकी – नदी का जल थम-सा गया
- घूँघट सरके – संकोचवश घूँघट थोड़ा हट गया
- बूँढ़े पीपल – पुराना (बूढ़ा) पीपल का पेड़
- जुहार करना – आदर के साथ झुककर नमस्कार करना
- बरस बाद सुधि लीन्हीं – कई वर्षों बाद याद किया
- अकुलाई लता – व्याकुल लता (बेल)
- ओट हो किवार की – दरवाजे की आड़ में छिपकर
- हरसाया ताल – प्रसन्न हुआ तालाब
- पानी परात भर के – पानी से भरी परात (बर्तन) लाया
- क्षितिज-अटारी गहराई – अटारी पर पहुँचे अतिथि की भाँति क्षितिज पर बादल छा गए
- दामिनी दमकी – बिजली चमकी , तन-मन आभा से चमक उठा
- क्षमा करो गाँव खुल गई अब भरम की – बादल नहीं बरसेगा का श्रम टूट गया, प्रियतम अपनी प्रिया से अब मिलने नहीं आएगा – यह श्रम टूट गया
- बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके – मेघ झर-झर बरसने लगे, प्रिया-प्रियतम के मिलन से खुशी के आँसू छलक उठे
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Chapter 13 – Bachche Kaam Par Ja Rahe Hain (बच्चे काम पर जा रहे हैं)
- कोहरा – धुंध
- विवरण – व्याख्या, स्पष्ट करना, वर्णन
- अंतरिक्ष – पृथ्वी के वातावरण से बाहर
- दीमक – चींटी की जाति का सफ़ेद रंग का एक छोटा कीड़ा जो समूह में रहता है और कागज़, लकड़ी, पौधों आदि को खा जाता है
- भूकंप – भूचाल, पृथ्वी की सतह का हिलना
- ढह – गिरना, नष्ट होना
- मदरसा – विद्यालय
- हस्बमामूल – यथावत, हमेशा की तरह
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