Character Sketch of Naubatkhane Mein Ibadat

 

बिस्मिल्लाह खान का चरित्र-चित्रण | Character Sketch of Bismillah Khan from CBSE Class 10 Hindi Chapter 11 नौबतखाने में इबादत 

 

नौबतखाने में इबादत यतींद्र मिश्र की एक कृति है जो भारत के श्रेष्ठ शहनाई वादक और भारतरत्न बिस्मिल्लाह खान के जीवन का एक संक्षिप्त विवरण है। 

 

बिस्मिल्लाह खान का चरित्र-चित्रण  (Character Sketch of Bismillah Khan)

 

    • सच्चे संगीतकार: बिस्मिल्लाह खान एक सच्चे संगीतकार थे तभी उन्होंने कभी भी अपने संगीत के बीच धर्म की दीवार नहीं आने दी और काशी के सभी प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में जाकर शहनाई बजाई। 
    • भारतीय संस्कृति के सच्चे पूत: बिस्मिल्लाह खान भारतीय संस्कृति के एक सच्चे सपूत माने जाते हैं उनकी नजर में भारतीय संस्कृति में सभी धर्म एक बराबर हैं तथा वह आधुनिक गायको तथा वादकों में भारतीय संस्कृति के प्रति श्रद्धा की कमी के लिए काफी चिंतित थे। 
  • फिल्मों के दीवाने: बिस्मिल्लाह खान बचपन में सुलोचना और गीताबाली की फिल्मों के बहुत शौकीन थे। इसके लिए वह अपने मौसी, नाना और मामा से 2-2 पैसे मांगते थे लेकिन कोई भी फिल्म कभी मिस नहीं करते थे। 
  • खाने के शौकीन: बिस्मिल्लाह खां खाने के बहुत शौकीन थे, विशेषकर कुलसुम के देसी घी की कचौड़ी और जलेबी। 
  • शहनाई के दीवाने: बिस्मिल्लाह खान शहनाई के बहुत बड़े दीवाने थे और पूरी जिंदगी शहनाई को ही अर्पित कर दी। वह 80 साल की उम्र में भी नमाज में शहनाई में प्रवीण होने की प्रार्थना करते थे। 
  • शरारती: बचपन में बिस्मिल्लाह खान काफी शरारती थे। वह छुपकर नाना जी को शहनाई बजाते देखते थे और नाना जी के जाने के बाद उनकी मीठी वाली शहनाई ढूंढते थे और सामने आने वाली सभी शहनाई को उठाकर फेंक देते थे और मामा की शहनाई को पत्थर से तोड़ देते थे। 

 

बिस्मिल्लाह खान के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Bismillah Khan)

  • बिस्मिल्लाह खां क्यों चिंतित थे?
  • “बिस्मिल्लाह खां सच्चे अर्थों में संगीतकार थे”, इस कथन की पुष्टि कीजिए? 
  • बिस्मिल्लाह खान किससे प्रेरित थे?

 

Naubatkhane Mein Ibadat Summary

लेखक कहते हैं कि बिस्मिल्लाह खान का नाम अमीरुद्दीन था। उनका जन्म बिहार के डुमरांव नामक गांव में हुआ था हालांकि बचपन में ही वह काशी अपनी नानी के घर आ गए थे। 

उनके ननिहाल में मामा तथा नाना एक प्रसिद्ध शहनाई वादक थे। ये सब लोग बालाजी मंदिर में शहनाई बजाया करते थे। मात्र 14 वर्ष की आयु में बिस्मिल्लाह खान ने मंदिर में शहनाई का रियाज करना शुरू कर दिया। 

बिस्मिल्लाह खान ने एक साक्षात्कार में कहा कि उनको रसूलन और बतूलन बाई के गीत बड़े पसंद थे और इन दोनो ने ही मेरे मन में संगीत के प्रति प्रेम उत्पन्न किया। 

बिस्मिल्लाह खां कहते हैं कि 80 बरस होने के बावजूद आज भी मैं नमाज में शहनाई के सच्चे सुर प्राप्त करने की प्रार्थना करता हूं। 

लेखक कहते हैं कि मोहर्रम के 10 दिन बिस्मिल्लाह खान के घर में कोई शहनाई नहीं बजाता था न ही किसी कार्यक्रम में जाता था। 8 तारीख को बिस्मिल्लाह खान दालमंडी से लेकर के फातमान तक जब नोहा बजाते हुए निकलते थे तो सबकी आंखों में आसूं आ जाते थे। 

बिस्मिल्लाह जी फिल्मों के बहुत शौकीन थे खासकर कि सुलोचना और गीताबाली जैसी अभिनेत्रियों की फिल्मों की। इसके अलावा वह कुलसुम की देसी घी की कचौड़ी के शौकीन थे। 

लेखक कहते हैं कि बिस्मिल्लाह खां काशी के संगीत आयोजन में संकटमोचन मंदिर और विश्वनाथ तथा बालाजी मंदिर में शहनाई बजाया करते थे। 

गंगा काशी और शहनाई उनके जीवन का अभिन्न अंग थे।

लेखक आगे कहते हैं कि सन 2000 के बाद से देसी घी और कचौड़ी तथा जलेबी में निरंतर स्वाद घटता गया। इसका कारण पक्का महल के मलाई बर्फ वालो का काशी से विदा था। 

लेखक के अनुसार, बिस्मिल्लाह खां आधुनिक गायन और वादकों में संस्कृति के प्रति घटती श्रद्धा और रियाजो के महत्व के प्रति काफी चिंतित रहते थे। 

21 अगस्त 2006 को 90 वर्ष की आयु में दो धर्मों के बीच के सेतु बिस्मिल्लाह खां ने इस दुनिया से विदा ले लिया। 

 

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