CBSE Class 10 Hindi Chapter 2 Sapno Ke Se Din (सपनों के-से दिन) Question Answers (Important) from Sanchayan Book
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- सपनों के-से दिन प्रश्न और उत्तर
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सपनों के-से दिन NCERT Solutions
प्रश्न 1 – कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती-पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?
उत्तर – कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती। यह बात लेखक के बचपन की एक घटना से सिद्ध होता है -लेखक के बचपन के ज्यादातर साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। जब लेखक छोटा था तो उनकी बातों को बहुत कम ही समझ पाता था और उनके कुछ शब्दों को सुन कर तो लेखक को हँसी आ जाती थी। परन्तु जब सभी खेलना शुरू करते तो सभी एक-दूसरे की बातों को बहुत अच्छे से समझ लेते थे। उनका व्यवहार एक दूसरे के लिए एक जैसा ही रहता था।
प्रश्न 2 – पीटी साहब की ‘शाबाश’ फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – मास्टर प्रीतम चंद जो स्कूल के ‘पीटी’ थे, वे लड़कों की पंक्तियों के पीछे खड़े-खड़े यह देखते रहते थे कि कौन सा लड़का पंक्ति में ठीक से नहीं खड़ा है। सभी लड़के उस ‘पीटी’ से बहुत डरते थे क्योंकि उन जितना सख्त अध्यापक न कभी किसी ने देखा था और न सुना था। यदि कोई लड़का अपना सिर भी इधर-उधर हिला लेता या पाँव से दूसरे पाँव की पिंडली खुजलाने लगता, तो वह उसकी ओर बाघ की तरह झपट पड़ते और ‘खाल खींचने’ (कड़ा दंड देना, बहुत अधिक मारना-पीटना) के मुहावरे को सामने करके दिखा देते। यही कारण था कि जब स्कूल में स्काउटिंग का अभ्यास करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता, तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। उनकी एक शाबाश लेखक और उसके साथियों को ऐसे लगने लगती जैसे उन्होंने किसी फ़ौज के सभी पदक या मैडल जीत लिए हों।
प्रश्न 3 – नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?
उत्तर – हर साल जब लेखक अगली कक्षा में प्रवेश करता तो उसे पुरानी पुस्तकें मिला करतीं थी। उसके स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी एक बहुत धनी लड़के को उसके घर जा कर पढ़ाया करते थे। हर साल अप्रैल में जब पढ़ाई का नया साल आरम्भ होता था तो शर्मा जी उस लड़के की एक साल पुरानी पुस्तकें लेखक के लिए ले आते थे। उसे नयी कापियों और पुरानी पुस्तकों में से ऐसी गंध आने लगती थी कि उसका मन बहुत उदास होने लगता था। आगे की कक्षा की कुछ मुश्किल पढ़ाई और नए मास्टरों की मार-पीट का डर और अध्यापक की ये उम्मीद करना कि जैसे बड़ी कक्षा के साथ-साथ लेखक सर्वगुण सम्पन्न या हर क्षेत्र में आगे रहे वाला हो गया हो। यदि लेखक और उसके साथी उन अध्यापकों की आशाओं पर पूरे नहीं हो पाते तो कुछ अध्यापक तो हमेशा ही विद्यार्थियों की ‘चमड़ी उधेड़ देने को तैयार रहते’ थे।
प्रश्न 4 – स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण ‘आदमी’ फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता है?
उत्तर – जब लेखक धोबी द्वारा धोई गई वर्दी और पालिश किए चमकते जूते और जुराबों को पहनकर स्काउटिंग की परेड करते तो लगता कि वे भी फौजी ही हैं। मास्टर प्रीतमसिंह जो लेखक के स्कूल के पीटी थे, वे लेखक और उसके साथियों को परेड करवाते और मुँह में सीटी ले कर लेफ्ट-राइट की आवाज़ निकालते हुए मार्च करवाया करते थे। फिर जब वे राइट टर्न या लेफ्ट टार्न या अबाऊट टर्न कहते तो सभी विद्यार्थी अपने छोटे-छोटे जूतों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर जूतों की ठक-ठक करते और ऐसे घमंड के साथ चलते जैसे वे सभी विद्यार्थी न हो कर, बहुत महत्वपूर्ण ‘आदमी’ हों, जैसे किसी देश का फौज़ी जवान होता है, अर्थात लेखक कहना चाहता है कि सभी विद्यार्थी अपने-आप को फौजी समझते थे।
प्रश्न 5 – हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअतल कर दिया?
उत्तर – मास्टर प्रीतमचंद लेखक की चौथी कक्षा को फ़ारसी पढ़ाने लगे थे। अभी मास्टर प्रीतमचंद को लेखक की कक्षा को पढ़ते हुए एक सप्ताह भी नहीं हुआ होगा कि प्रीतमचंद ने उन्हें एक शब्दरूप याद करने को कहा और आज्ञा दी कि कल इसी घंटी में केवल जुबान के द्वारा ही सुनेंगे। दूसरे दिन मास्टर प्रीतमचंद ने बारी-बारी सबको सुनाने के लिए कहा तो एक भी लड़का न सुना पाया। मास्टर जी ने गुस्से में चिल्लाकर सभी विद्यार्थियों को कान पकड़कर पीठ ऊँची रखने को कहा। जब लेखक की कक्षा को सज़ा दी जा रही थी तो उसके कुछ समय पहले शर्मा जी स्कूल में नहीं थे। आते ही जो कुछ उन्होंने देखा वह सहन नहीं कर पाए। शायद यह पहला अवसर था कि उन्होंने पीटी प्रीतमचंद की उस असभ्यता एवं जंगलीपन को सहन नहीं किया और वह भड़क गए थे। यही कारण था कि हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को मुअतल कर दिया।
प्रश्न 6 – लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?
उत्तर – बचपन में लेखक को स्कूल जाना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था परन्तु जब मास्टर प्रीतमसिंह मुँह में सीटी ले कर लेफ्ट-राइट की आवाज़ निकालते हुए मार्च करवाया करते थे और सभी विद्यार्थी अपने छोटे-छोटे जूतों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर जूतों की ठक-ठक करते और ऐसे घमंड के साथ चलते जैसे वे सभी विद्यार्थी न हो कर, बहुत महत्वपूर्ण ‘आदमी’ हों, जैसे किसी देश का फौज़ी जवान होता है । स्काउटिंग करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। उनकी एक शाबाश लेखक और उसके साथियों को ऐसे लगने लगती जैसे उन्होंने किसी फ़ौज के सभी पदक या मैडल जीत लिए हों। यह शाबाशी लेखक को उसे दूसरे अध्यापकों से मिलने वाले ‘गुड्डों’ से भी ज्यादा अच्छा लगता था। यही कारण था कि बाद में लेखक को स्कूल जाना अच्छा लगने लगा।
प्रश्न 7 – लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुटियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना किया करता था?
उत्तर – जैसे-जैसे लेखक की छुट्टियों के दिन ख़त्म होने लगते तो वह दिन गिनने शुरू कर देता था। हर दिन के ख़त्म होते-होते उसका डर भी बढ़ने लगता था। अध्यापकों ने जो काम छुट्टियों में करने के लिए दिया होता था, उसको कैसे करना है और एक दिन में कितना काम करना है यह सोचना शुरू कर देता। जब लेखक ऐसा सोचना शुरू करता तब तक छुट्टियों का सिर्फ एक ही महीना बचा होता। एक-एक दिन गिनते-गिनते खेलकूद में दस दिन और बीत जाते। फिर वह अपना डर भगाने के लिए सोचता कि दस क्या, पंद्रह सवाल भी आसानी से एक दिन में किए जा सकते हैं। जब ऐसा सोचने लगता तो ऐसा लगने लगता जैसे छुट्टियाँ कम होते-होते भाग रही हों। दिन बहुत छोटे लगने लगते थे। लेखक ओमा की तरह जो ठिगने और बलिष्ट कद का उदंड लड़का था उसी की तरह बनने की कोशिश करता क्योंकि वह छुट्टियों का काम करने के बजाय अध्यापकों की पिटाई अधिक ‘सस्ता सौदा’ समझता था। और काम न किया होने के कारण लेखक भी उसी की तरह ‘बहादुर’ बनने की कल्पना करने लगता।
प्रश्न 8 – पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – लेखक ने कभी भी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में मुस्कुराते या हँसते नहीं देखा था। उनके जितना सख्त अध्यापक किसी ने पहले नहीं देखा था। उनका छोटा कद, दुबला-पतला परन्तु पुष्ट शरीर, माता के दानों से भरा चेहरा यानि चेचक के दागों से भरा चेहरा और बाज़ सी तेज़ आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले जूत-ये सभी चीज़े बच्चों को भयभीत करने वाली होती थी। उनके जूतों की ऊँची एड़ियों के निचे भी खुरियाँ लगी रहतीं थी। अगले हिस्से में, पंजों के निचे मोटे सिरों वाले कील ठुके होते थे। वे अनुशासन प्रिय थे यदि कोई विद्यार्थी उनकी बात नहीं मानता तो वे उसकी खाल खींचने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। वे बहुत स्वाभिमानी भी थे क्योंकि जब हेडमास्टर शर्मा ने उन्हें निलंबित कर के निकाला तो वे गिड़गिड़ाए नहीं, चुपचाप चले गए और पहले की ही तरह आराम से रह रहे थे।
प्रश्न 9 – विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर – विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में जिन युक्तियों को अपनाया गया है उसमें मारना-पीटना और कठोर दंड देना शामिल हैं। इन कारणों की वजह से बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। परन्तु वर्तमान में इस तरह मारना-पीटना और कठोर दंड देना बिलकुल मना है। आजकल के अध्यापकों को सिखाया जाता है कि बच्चों की भावनाओं को समझा जाए, उसने यदि कोई गलत काम किया है तो यह देखा जाए कि उसने ऐसा क्यों किया है। उसे उसकी गलतियों के लिए दंड न देकर, गलती का एहसास करवाया जाए। तभी बच्चे स्कूल जाने से डरेंगे नहीं बल्कि ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल जाएँगे।
प्रश्न 11 – प्रायः अभिभावक बच्चों को खेल-कूद में ज्यादा रूचि लेने पर रोकते हैं और समय बर्बाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए –
(क) खेल आपके लिए क्यों जरुरी है?
उत्तर – खेल जितना मनोरंजक होता है उससे कही अधिक सेहत के लिए आवश्यक होता है। कहा भी जाता है कि ‘स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है।’ बच्चों का तन जितना अधिक तंदुरुस्त होगा, उनका दिमाग उतना ही अधिक तेज़ होगा। खेल-खेल में बच्चों को नैतिक मूल्यों का ज्ञान भी होता है जैसे- साथ-साथ खेल कर भाईचारे की भावना का विकास होता है, समूह में खेलने से सामाजिक भावना बढ़ती है और साथ-ही-साथ प्रतिस्पर्धा की भावना का भी विकास होता है।
(ख) आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिनसे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?
उत्तर – जितना खेल जीवन में जरुरी है, उतने ही जरुरी जीवन में बहुत से कार्य होते हैं जैसे- पढाई आदि। यदि खेल स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, तो पढाई भी आपके जीवन में कामयाबी के लिए बहुत आवश्यक है। यदि हम अपने खेल के साथ-साथ अपने जीवन के अन्य कार्यों को भी उसी लगन के साथ पूरा करते जाएँ जिस लगन के साथ हम अपने खेल को खेलते हैं तो अभिभावकों को कभी भी खेल से कोई आपत्ति नहीं होगी।
Class 10 Hindi Sapno Ke Se Din Lesson 2 – सार-आधारित प्रश्न (Extract Based Questions)
सार-आधारित प्रश्न बहुविकल्पीय किस्म के होते हैं, और छात्रों को पैसेज को ध्यान से पढ़कर प्रत्येक प्रश्न के लिए सही विकल्प का चयन करना चाहिए। (Extract-based questions are of the multiple-choice variety, and students must select the correct option for each question by carefully reading the passage.)
1. हम सभी उसके बारे में सोचते ही हमारे में उन जैसा कौन था। कभी भी उस जैसा दूसरा लड़का नहीं ढूँढ़ पाते थे। उसकी बातें, गालियाँ, मार पिटाई का ढंग अलग था ही, उसकी शक्ल-सूरत भी सबसे अलग थी। हाँड़ी जितना बड़ा सिर, उसके ठिगने चार बालिश्त के शरीर पर ऐसा लगता जैसे बिल्ली के बच्चे के माथे पर तरबूज रखा हो। इतने बड़े सिर में नारियल-की-सी आँखों वाला बंदरिया के बच्चे जैसा चेहरा और भी अजीब लगता। लड़ाई वह हाथ-पाँव नहीं, सिर से किया करता। जब साँड़ की भाँति फुँकारता, सिर झुका कर किसी के पेट या छाती में मार देता तो उससे दुगुने-तिगुने शरीर वाले लड़के भी पीड़ा से चिल्लाने लगते। हमें डर लगता कि किसी की छाती की पसली ही न तोड़ डाले। उसके सिर की टक्कर का नाम हमने ‘रेल-बम्बा’ रखा हुआ था-रेल के (कोयले से चलने वाले) इंजन की भाँति बड़ा और भयंकर ही तो था।
प्रश्न 1. इस कहानी के लेखक और पाठ का नाम बताएं-
उतर – लेखक का नाम – गुरदयाल सिंह
पाठ का नाम – सपनों के-से दिन
प्रश्न 2. सभी बच्चे किसके बारे में ऐसा सोचते है कि उसके जैसा हमारे बीच कोई नही ? और क्यों?
उतर – सभी बच्चे ओमा के बारे में सोचते है क्योंकि ओमा का सिर बहुत बड़ा था और उसके बोलने, मारने पीटने का तरीका और देखने में भी दूसरे बच्चों से सबसे अलग था।
प्रश्न 3. किसकी बातें, गालियाँ और मार पिटाई का ढंग सबसे अलग था?
उतर – ओमा की
प्रश्न 4. ‘बालिश्त’ का क्या अर्थ है-
उतर – बित्ता
प्रश्न 5. लेखक और उसके साथी किसको ‘रेल-बम्बा’ बुलाते थे?
उतर – ओमा को
2. सभी लड़के उस ‘पीटी’ से बहुत डरते थे क्योंकि उन जितना सख्त अध्यापक न कभी किसी ने देखा, न सुना था। यदि कोई लड़का अपना सिर भी इधर-उधर हिला लेता या पाँव से दूसरी पिंडली खुजलाने लगता तो वह उसकी और बाघ की तरह झपट पड़ते और ‘खाल खींचने’ के मुहावरे को प्रत्यक्ष करके दिखा देते।
प्रश्न 1. सभी बच्चे पी.टी. सर से क्यों डरते थे?
उतर – सभी बच्चे पी.टी. (प्रीतम चंद) सर से इसलिए डरते थे क्योंकि पी.टी. सर बहुत सख्त थे अगर कोई विद्यार्थी गलती करता तो उसको डांटते, फटकारते या शारीरिक दंड दे देते थे।
प्रश्न 2. ‘खाल उधेड़ना’ से क्या तात्पर्य है-
उतर – कड़ा दंड देना, बहुत अधिक मारना-पीटना
3. हम कोई गलती न करते तो अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते कहते-शाबाश। वैल बिगिन अगेन-वन, टू, थ्री, थ्री, टू, वन! उनकी एक शाबाश ऐसे लगने लगती जैसे हमने किसी फ़ौज के सभी तमगे जीत लिए हों। कभी यही शाबाश, सभी मास्टरों की ओर से, हमारी सभी कापियों पर साल भर की लिखी ‘गुड्डों’ (गुड का बहुवचन) से अधिक मूल्यवान लगने लगती। कभी ऐसा भी लगता कि कई साल की सख्त मेहनत से प्राप्त की पढ़ाई से भी पीटी साहब के डिसीप्लिन में रह कर प्राप्त की ‘गुडविल’ बहुत बड़ी थी।
प्रश्न 1. कौन किसको आँखें हलके से झपकाते हुए शाबाश कहता है?
उतर – आँखें हलके से झपकाते हुए पी.टी. सर बच्चों को शाबाश कहते है।
प्रश्न 2. बच्चो को किसकी शाबाशी फ़ौज के तमगों जैसी लगती है?
उतर – पी.टी. (प्रीतम चंद) सर की
प्रश्न 3. ‘गुडविल’ से क्या अर्थ है-
उतर – साख, प्रख्याति
Class 10 Hindi सपनों के-से दिन प्रश्न और उत्तर (including questions from Previous Years Question Papers)
प्रश्न 1. लेखक गुरदयाल सिंह अपने छात्र जीवन में छुट्टियों के काम को पूरा करने के लिए योजनाएँ तैयार करते थे। क्या आप की योजनाएँ लेखक की योजनाओं से मेल खाती हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए। (CBSE 2021-22)
उतर :- लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए तरह-तरह की योजनाएँ बनाया करते थे। जैसे- हिसाब के मास्टर जी द्वारा दिए गए दो सौ सवालों को पूरा करने के लिए रोज़ दस सवाल निकाले जाने पर बीस दिन में पूरे हो जाएँगे, लेकिन खेल-कूद में छुट्टियों भागने लगती, तो मास्टर जी की पिटाई का डर सताने लगता फिर लेखक रोज़ के पंद्रह सवाल पूरे करने की योजना बनाते, तब उसे छुट्टियां भी बहुत कम लगने लगती और दिन बहुत छोटे लगने लगते तथा स्कूल का भय भी बढ़ने लगता। ऐसे में लेखक पिटाई से डरने के बावजूद उन लोगों की भाँति बहादुर बनने की कल्पना करने लगते थे, जो छुट्टियों का काम पूरा करने की बजाय मास्टर जी से पिटाई खाना ही अधिक बेहतर समझते थे।
प्रश्न 2. स्कुल किस प्रकार की स्थिति में अच्छा लगने लगता है और क्यों ? (CBSE 2019-20)
उतर :- मास्टर जी जब परेड करवाते तो सभी विद्यार्थी अपने छोटे-छोटे जूतों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर जूतों की ठक-ठक करते जैसे वे सभी विद्यार्थी न हो कर, कोई बहुत महत्वपूर्ण ‘आदमी’ हों । स्काउटिंग पड़े और स्काउटिंग और पिकनिक जैसे कार्यक्रम हों।करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। तो लेखक और उसके दोस्तों को बहुत अच्छा लगता था। स्काउटिंग के दिनों में स्कूल उन्हें बेहद अच्छा लगने लगता था। अतः स्कूल जाना उसी स्थिति में अच्छा लगता है, जब पढ़ाई न करनी पड़े और स्काउटिंग और पिकनिक जैसे कार्यक्रम हों।
प्रश्न 3. विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ ‘सपनों के-से दिन’ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में विचार प्रकट कीजिए । (CBSE 2018-19)
उतर :- पाठ ‘सपनों के से दिन’ में विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए उन्हें कई प्रकार के शारीरिक दंड दिए जाते थे। पिटाई भी इतनी अधिक की चमड़ी उधेड़ने वाली कहावत चरितार्थ, दंड ऐसा कि बच्चे चक्कर खा जाए, बच्चों का कोमल मन ऐसे बर्बरता पूर्ण व्यवहार से अधिक उदंड या फिर दब्बू बना देता है, पढ़ाई – लिखाई में अरुचि आ सकती है इन्हीं कारणों को समझकर मनोचिकित्सकों के अनुसार शारीरिक दंड उचित नहीं है । आज की शिक्षा प्रणाली में प्यार, समझ, सूझ – बुझ व समस्या की जड़ पर पहुँच कर उसका निदान करने में विश्वास होना चाहिए । शारीरिक दंड का आज की शिक्षा नीति में कोई स्थान नहीं है।
प्रश्न 4. सपनों के से दिन पाठ के आधार पर आजकल स्कूली शिक्षा प्रणाली में क्या परिवर्तन आए हैं? (CBSE 2016-17)
उतर :- आज की स्कूली शिक्षा प्रणाली शारीरिक दंड या किसी भी प्रकार के दंड का विरोध करती है, छात्रों की मनोदशा पर विशेष ध्यान दिया जाता है अब छात्रों को मारना या पीटना कानूनी अपराध है। आजकल बच्चों को सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाए जाते हैं। इस प्रकार उनमें अनुशासन, सम्मान, सहयोग, परस्पर प्रेम, निष्ठा आदि गुणों का विकास होता है। जब बच्चे स्कूल में अच्छा करते हैं, तो उन्हें उपहारों से पुरस्कृत किया जाता है, जैसे ट्रॉफी या प्रमाण पत्र। जो अपने आप में शिक्षा के क्षेत्र में उठाया गया एक बहुत बड़ा कदम है। यूँ भी मारने-पीटने से बच्चों के मन में शिक्षा के प्रति अरुचि ही पैदा होती है। तनाव मुक्त एवं शांत मित्रवत वातावरण में प्रदान की जाने वाली शिक्षा जीवन के लिए अधिक लाभदायक सिद्ध होगी।
प्रश्न 5. सपनों के से दिन पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि बचपन का समय सबसे अच्छा होता है। (CBSE 2015-16)
उतर :- ‘सपनों के से दिन’ पाठ में लेखक के बचपन की मस्ती के दिन बड़े निराले थे। लेखक कहता है कि पूरे साल में केवल वे लोग दो महीने ही पढ़ाई करते थे और बाकी समय मौज मस्ती ही करते थे। पढ़ाई से सबको डर लगता था। लेखक और उसके साथी अक्सर स्कूल जाने में आनाकानी करते थे। लेकिन उन्हें पीटी सर की स्काउट क्लास पसंद थी क्योंकि उन्हें खाकी वर्दी पहनने और कुछ फील्ड स्टंट करने का मौका मिलता था। हालांकि पीटी सर काफी सख्त थे, लेकिन स्कूल के प्रधानाचार्य बहुत दयालु थे।
छुट्टियों में जो भी गृह कार्य मिलता, उसे कल पर टालते रहते और सारी छुट्टियां खेलने-कूदने में ही निकाल देते थे। बाद में जब छुट्टियां खत्म होने का समय आता तो जैसे-तैसे या तो गृह कार्य पूरा कर लेते या फिर गृहकार्य पूरा न कर पाने के कारण शिक्षक की पिटाई को एक सस्ता-सौदा समझकर गृह कार्य को यूँ ही छोड़ देते थे।
लेखक छुट्टियों में गाँव में अपनी नानी के घर जाता और वहाँ पर खूब मौज मस्ती करता। लेखक की नानी उसे खूब लाड प्यार दुलार करती और घी-मक्खन-दूध पिलाती। लेखक पूरे गाँव में मौज मस्ती करता, तालाब में नहाता, रेत के टीलों पर लौटता और खेत-खलिहानों में अपने साथियों के साथ भटकता रहता था। इस तरह ‘सपनों के से दिन’ पाठ में लेखक के बचपन के दिन सबसे अच्छे थे।
प्रश्न 6. छात्रों के नेता ओमा के सिर की क्या विशेषता थी? “सपनों के से दिन” के आधार पर बताइए।
उतर :- ओमा लेखक के बचपन का मित्र था। वे दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे। ओमा बहुत शरारती और अनुशासनहीन छात्र था। ओमा की बातें, गालियाँ और उसकी मार-पिटाई का ढंग सभी से बहुत अलग था। वह देखने में भी सभी से बहुत अलग था। उसका मटके के जितना बड़ा सिर था, जो उसके ढाई फुट के छोटे कद के शरीर पर ऐसा लगता था जैसे बिल्ली के बच्चे के माथे पर तरबूज रखा हो। बड़े सिर पर नारियल जैसी आँखों वाला उसका चेहरा बंदरिया के बच्चे जैसा और भी अजीब लगता था।। वह लड़ाई में ‘सिर” से ही वार करता था इसलिए बच्चे “ओमा’ को ‘रेल-बंबा’ कहकर पुकारते थे।
प्रश्न 7. हेडमास्टर शर्मा जी का छात्रों के साथ कैसा व्यवहार था?
उतर :- हेडमास्टर शर्मा जी अनुशासन प्रिय होने के साथ-साथ बहुत ही दयालु और विनम्र व्यक्ति थे। वह बच्चों की पिटाई में विश्वास नहीं करते थे, बल्कि वह उन्हें प्यार से पढ़ाते थे। जब उन्हें बहुत गुस्सा आता था तो वे छात्रों के गाल पर हल्के से थप्पड़ मारकर उन्हें सुधार देते थे। वे क्रूरता से कोसों दूर थे, इसलिए मास्टर प्रीतमचंद की क्रूरता को बर्दाश्त नहीं कर सके। और उन्हे तुरंत स्कूल से निकलवा दिया। वे एक अच्छे प्रशासक, शिक्षक और बहुत उदार व्यक्ति थे।
प्रश्न 8. गरीब घरों के लड़कों का स्कूल जाना क्यों कठिन था? ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उतर :- गरीब घरों के लड़कों का स्कूल जाना इसलिए कठिन था क्योंकि एक तो गरीबी ही सबसे बड़ी बाधा थी। शुल्क देने, पेन – पेंसिल, किताबें आदि खरीदने के लिए ऐसे परिवार पैसे खर्च नहीं करते थे। दूसरी बात बच्चों को ही पढाई में रूचि न होने के कारण किसी दिन बस्ता तालाब में फेंक आए और उनके माँ-बाप ने भी उनको स्कूल भेजने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं की। बच्चा थोड़ा बड़ा होने पर उन्हें किसी पारिवारिक व्यवसाय या हिसाब-किताब लिखने आदि में झोंक दिया जाता था।
प्रश्न 9. “सपनों के से दिन” पाठ के आधार पर लिखिए कि लेखक छात्र-जीवन में छुट्टियों के लिए मिले काम को कैसे पूरा करता या।
उतर :- लेखक छुट्टियों में मिले गृह कार्य को पूरा करने के लिए तरह-तरह की योजनाएँ बनाता था, परंतु छुट्टियों में काम पूरा नहीं कर पाता था। विद्यालय से मिले काम के अनुसार वह समय-सारणी भी बनाता था, परंतु उस काम को पूरा नहीं कर पाने की स्थिति में स्कूल में होने वाली पिटाई का डर अब और ज्यादा सताने लगता। फिर से अपना डर भगाने के लिए सोचते कि दस या पंद्रह सवाल भी आसानी से एक दिन में किए जा सकते हैं। जब ऐसा सोचने तो दिन बहुत छोटे लगने लगते थे। लेखक उस स्थिति में अपने मित्र “ओमा’, की तरह बहादुर बनने की कल्पना करता था। ओमा काम करने की अपेक्षा शिक्षकों द्वारा की गई पिटाई को सस्ता सौदा समझता था।
प्रश्न 10. ‘फ़ारसी की घंटी बजते ही बच्चे डर से क्यों कांप उठते थे? “सपनों के से दिन” पाठ के आधार पर लिखिए।
उतर :- चौथी श्रेणी में मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को फ़ारसी पढ़ाते थे। वे काफी सख्त शिक्षक थे। अगर बच्चे उनके सामने शरारत करे तो वे बच्चों को बहुत डांटते फटकारते थे। बच्चों के मन में डर इतना था कि फ़ारसी की घंटी बजते ही बच्चे काँप उठते थे। एक बार मास्टर प्रीतमचंद ने फ़ारसी का शब्द-रूप याद करने को दिया था और न याद करने पर बच्चों की बुरी तरह पिटाई की, यह सब देखकर हेडमास्टर शर्मा जी सहन नहीं कर सके और उन्हें स्कूल से निलंबित कर दिया, फिर भी बच्चों के मन से डर नही गया वे सोचते थे कि निलंबित होने के बाद भी कहीं मास्टर प्रीतमचंद उन्हें पढ़ाने के लिए न आ जाएँ। राम जी मास्टर या प्रधानाध्यापक जी के कक्षा में आ जाने पर ही उनका यह डर समाप्त होता था।
प्रश्न 11. मास्टर प्रीतमचंद का विद्यार्थियों को अनुशासित रखने के लिए जो तरीका था, वह आज की शिक्षा-व्यवस्था के जीवन-मूल्यों के अनुसार उचित है या अनुचित? तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उतर :- मास्टर प्रीतमचंद बहुत सख्त शिक्षक थे, और वे अक्सर अपने छात्रों को अनुशासित करने के लिए शारीरिक दंड देने का तरीका अपनाते थे। जो आज की शिक्षा प्रणाली में उचित नहीं है। इससे बच्चों के मन में स्कूल के प्रति डर हो सकता है, और पुराने दिनों की तरह उनकी पढ़ाई में रुचि कम हो सकती है। आज की शिक्षा प्रणाली में, बच्चों को अनुशासन जैसा जीवन-मूल्य सिखाने के लिए मनोवैज्ञानिक युक्तियों को अपनाने की व्यवस्था है। शिक्षक आजकल छात्रों को प्यार और स्नेह के साथ अनुशासित करने की कोशिश करते हैं।
प्रश्न 12. पी०टी० साहब की चारित्रिक विशेषताओं और कमियों का उल्लेख अपने शब्दों में कीजिए।
उतर :- “सपनों के से दिन” पाठ में पी०टी० साहब बेहद सख्त शिक्षक के रूप में पाठकों के सामने आते हैं। वे अनुशासनप्रिय थे और चाहते थे कि विद्यालय का प्रत्येक विद्यार्थी अनुशासन में रहे। वे पक्षियों से बहुत प्रेम करते थे, उन्होंने दो तोते पाले हुए थे और दिन में कई बार, भिगोकर रखे बादामों की गिरियों का छिलका उतारकर खिलाते तथा उनसे मीठी मीठी बातें करते रहते थे। विद्यालय से निष्कासित होने पर भी उनके चेहरे पर जरा-सी भी चिंता नहीं दिखाई दी थी। इन सब विशेषताओं के अतिरिक्त उनके चरित्र में बच्चों के प्रति बेहद सख्ती की भावना रखने की कमी दिखाई देती है। स्कूल में वह छात्रों की जरा सी गलती के लिए फटकार लगा देते थे। तथा कई बार ठुड्डों और बेल्ट के बिल्ले से भी मारा करते थे।
प्रश्न 13. पी०टी० अध्यापक कैसे स्वभाव के व्यक्ति थे? विद्यालय के कार्यक्रमों में उनकी कैसी रुचि थी? अपने शब्दों में लिखिए।
उतर :- पी.टी. साहब बहुत सख्त और अनुशासन प्रिय शिक्षक थे। स्कूल में वह छात्रों की जरा सी गलती के लिए फटकार लगा देते थे। स्कूल की प्रार्थना सभा में वह बच्चों को कतार में खड़ा करते थे और अगर कोई बच्चा शरारत करता तो उसकी चमड़ी उधेड़ देते थे। स्काउट परेड के आयोजन में वह अहम भूमिका निभाते थे। तथा अपने मार्गदर्शन में बच्चों से कुशलतापूर्वक परेड करवाते थे और परेड अच्छा करने पर बच्चों को “शाबाशी’” भी दे देते थे इसलिए बच्चों को उनकी यही “शाबाशी’ फ़ौज के तमगों-सी लगती थी और कुछ समय के लिए उनके मन में पी०टी० सर के लिए सम्मान का भाव जाग जाता था।
प्रश्न 14 – कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती-पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?
उत्तर – कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती। यह बात लेखक के बचपन की एक घटना से सिद्ध होती है -लेखक के बचपन के ज्यादातर
साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। जब लेखक छोटा था तो उनकी बातों को बहुत कम ही समझ पाता था और उनके कुछ शब्दों को सुन कर तो लेखक को हँसी आ जाती थी। परन्तु जब सभी खेलना शुरू करते तो सभी एक-दूसरे की बातों को बहुत अच्छे से समझ लेते थे। उनका व्यवहार एक दूसरे के लिए एक जैसा ही रहता था।
प्रश्न 15 – पीटी साहब की ‘शाबाश’ फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – मास्टर प्रीतम चंद जो स्कूल के ‘पीटी’ थे, वे लड़कों की पंक्तियों के पीछे खड़े-खड़े यह देखते रहते थे कि कौन सा लड़का पंक्ति में ठीक से नहीं खड़ा है। सभी लड़के उस ‘पीटी’ से बहुत डरते थे क्योंकि उन जितना सख्त अध्यापक न कभी किसी ने देखा था और न सुना था। यदि कोई लड़का अपना सिर भी इधर-
उधर हिला लेता या पाँव से दूसरे पाँव की पिंडली खुजलाने लगता, तो वह उसकी ओर बाघ की तरह झपट पड़ते और ‘खाल खींचने’ (कड़ा दंड देना, बहुत अधिक मारना-पीटना) के मुहावरे को सामने करके दिखा देते। यही कारण था कि जब स्कूल में स्काउटिंग का अभ्यास करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता, तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। उनकी एक शाबाश लेखक और उसके साथियों को ऐसे लगने लगती जैसे उन्होंने किसी फ़ौज के सभी पदक या मैडल जीत लिए हों।
प्रश्न 16 – नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?
उत्तर – हर साल जब लेखक अगली कक्षा में प्रवेश करता तो उसे पुरानी पुस्तकें मिला करतीं थी। उसके स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी एक बहुत धनी लड़के को उसके घर जा कर पढ़ाया करते थे। हर साल अप्रैल में जब पढ़ाई का नया साल आरम्भ होता था तो शर्मा जी उस लड़के की एक साल पुरानी पुस्तकें लेखक के लिए ले आते थे।
उसे नयी कापियों और पुरानी पुस्तकों में से ऐसी गंध आने लगती थी कि उसका मन बहुत उदास होने लगता था। आगे की कक्षा की कुछ मुश्किल पढ़ाई और नए मास्टरों की मार-पीट का डर और अध्यापक की ये उम्मीद करना कि जैसे बड़ी कक्षा के साथ-साथ लेखक सर्वगुण सम्पन्न या हर क्षेत्र में आगे रहने वाला हो गया हो। यदि लेखक और उसके साथी उन अध्यापकों की आशाओं पर पूरे नहीं हो पाते तो कुछ अध्यापक तो हमेशा ही विद्यार्थियों की ‘चमड़ी उधेड़ देने को तैयार रहते’ थे।
प्रश्न 17 – स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण ‘आदमी’ फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता है?
उत्तर – जब लेखक धोबी द्वारा धोई गई वर्दी और पालिश किए चमकते जूते और जुराबों को पहनकर स्काउटिंग की परेड करते तो लगता कि वे भी फौजी ही हैं। मास्टर प्रीतमसिंह जो लेखक के स्कूल के पीटी थे, वे लेखक और उसके साथियों को परेड करवाते और मुँह में सीटी ले कर लेफ्ट-राइट की आवाज़ निकालते हुए मार्च करवाया करते थे।
फिर जब वे राइट टर्न या लेफ्ट टार्न या अबाऊट टर्न कहते तो सभी विद्यार्थी अपने छोटे-छोटे जूतों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर जूतों की ठक-ठक करते और ऐसे घमंड के साथ चलते जैसे वे सभी विद्यार्थी न हो कर, बहुत महत्वपूर्ण ‘आदमी’ हों, जैसे किसी देश का फौज़ी जवान होता है, अर्थात लेखक कहना चाहता है कि सभी विद्यार्थी अपने-आप को फौजी समझते थे।
प्रश्न 18 – हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअतल कर दिया?
उत्तर – मास्टर प्रीतमचंद लेखक की चौथी कक्षा को फ़ारसी पढ़ाने लगे थे। अभी मास्टर प्रीतमचंद को लेखक की कक्षा को पढ़ते हुए एक सप्ताह भी नहीं हुआ होगा कि प्रीतमचंद ने उन्हें एक शब्दरूप याद करने को कहा और आज्ञा दी कि कल इसी घंटी में केवल जुबान के द्वारा ही सुनेंगे। दूसरे दिन मास्टर प्रीतमचंद ने बारी-बारी सबको सुनाने के लिए कहा तो एक भी लड़का न सुना पाया।
मास्टर जी ने गुस्से में चिल्लाकर सभी विद्यार्थियों को कान पकड़कर पीठ ऊँची रखने को कहा। जब लेखक की कक्षा को सज़ा दी जा रही थी तो उसके कुछ समय पहले शर्मा जी स्कूल में नहीं थे। आते ही जो कुछ उन्होंने देखा वह सहन नहीं कर पाए। शायद यह पहला अवसर था कि उन्होंने पीटी प्रीतमचंद की उस असभ्यता एवं जंगलीपन को सहन नहीं किया और वह भड़क गए थे। यही कारण था कि हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को मुअतल कर दिया।
प्रश्न 19 – लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?
उत्तर – बचपन में लेखक को स्कूल जाना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था परन्तु जब मास्टर प्रीतमसिंह मुँह में सीटी ले कर लेफ्ट-राइट की आवाज़ निकालते हुए मार्च करवाया करते थे और सभी विद्यार्थी अपने छोटे-छोटे जूतों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर जूतों की ठक-ठक करते और ऐसे घमंड के साथ चलते जैसे वे सभी विद्यार्थी न हो कर, बहुत महत्वपूर्ण ‘आदमी’ हों, जैसे किसी देश का फौज़ी जवान होता है ।
स्काउटिंग करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। उनकी एक शाबाश लेखक और उसके साथियों को ऐसे लगने लगती जैसे उन्होंने किसी फ़ौज के सभी पदक या मैडल जीत लिए हों। यह शाबाशी लेखक को उसे दूसरे अध्यापकों से मिलने वाले ‘गुड्डों’ से भी ज्यादा अच्छा लगता था। यही कारण था कि बाद में लेखक को स्कूल जाना अच्छा लगने लगा।
प्रश्न 20 – लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुटियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना किया करता था?
उत्तर – जैसे-जैसे लेखक की छुट्टियों के दिन ख़त्म होने लगते तो वह दिन गिनने शुरू कर देता था। हर दिन के ख़त्म होते-होते उसका डर भी बढ़ने लगता था। अध्यापकों ने जो काम छुट्टियों में करने के लिए दिया होता था, उसको कैसे करना है और एक दिन में कितना काम करना है यह सोचना शुरू कर देता। जब लेखक ऐसा सोचना शुरू करता तब तक छुट्टियों का सिर्फ एक ही महीना बचा होता।
एक-एक दिन गिनते-गिनते खेलकूद में दस दिन और बीत जाते। फिर वह अपना डर भगाने के लिए सोचता कि दस क्या, पंद्रह सवाल भी आसानी से एक दिन में किए जा सकते हैं। जब ऐसा सोचने लगता तो ऐसा लगने लगता जैसे छुट्टियाँ कम होते-होते भाग रही हों। दिन बहुत छोटे लगने लगते थे। लेखक ओमा की तरह जो ठिगने और बलिष्ट कद का उदंड लड़का था उसी की तरह बनने की कोशिश करता क्योंकि वह छुट्टियों का काम करने के बजाय अध्यापकों की पिटाई अधिक ‘सस्ता सौदा’ समझता था। और काम न किया होने के कारण लेखक भी उसी की तरह ‘बहादुर’ बनने की कल्पना करने लगता।
प्रश्न 21 – पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – लेखक ने कभी भी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में मुस्कुराते या हँसते नहीं देखा था। उनके जितना सख्त अध्यापक किसी ने पहले नहीं देखा था। उनका छोटा कद, दुबला-पतला परन्तु पुष्ट शरीर, माता के दानों से भरा चेहरा यानि चेचक के दागों से भरा चेहरा और बाज़ सी तेज़ आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले जूत-ये सभी चीज़े बच्चों को भयभीत करने वाली होती थी।
उनके जूतों की ऊँची एड़ियों के निचे भी खुरियाँ लगी रहतीं थी। अगले हिस्से में, पंजों के निचे मोटे सिरों वाले कील ठुके होते थे। वे अनुशासन प्रिय थे यदि कोई विद्यार्थी उनकी बात नहीं मानता तो वे उसकी खाल खींचने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। वे बहुत स्वाभिमानी भी थे क्योंकि जब हेडमास्टर शर्मा ने उन्हें निलंबित कर के निकाला तो वे गिड़गिड़ाए नहीं, चुपचाप चले गए और पहले की ही तरह आराम से रह रहे थे।
प्रश्न 22 – विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर – विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में जिन युक्तियों को अपनाया गया है उसमें मारना-पीटना और कठोर दंड देना शामिल हैं। इन कारणों की वजह से बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। परन्तु वर्तमान में इस तरह मारना-पीटना और कठोर दंड देना बिलकुल मना है। आजकल के अध्यापकों को सिखाया जाता है कि बच्चों की भावनाओं को समझा जाए,
उसने यदि कोई गलत काम किया है तो यह देखा जाए कि उसने ऐसा क्यों किया है। उसे उसकी गलतियों के लिए दंड न देकर, गलती का एहसास करवाया जाए। तभी बच्चे स्कूल जाने से डरेंगे नहीं बल्कि ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल जाएँगे।
प्रश्न 23 – प्रायः अभिभावक बच्चों को खेल-कूद में ज्यादा रूचि लेने पर रोकते हैं और समय बर्बाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए –
(क) खेल आपके लिए क्यों जरुरी है?
उत्तर – खेल जितना मनोरंजक होता है उससे कही अधिक सेहत के लिए आवश्यक होता है। कहा भी जाता है कि ‘स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है।’ बच्चों का तन जितना अधिक तंदुरुस्त होगा, उनका दिमाग उतना ही अधिक तेज़ होगा। खेल-खेल में बच्चों को नैतिक मूल्यों का ज्ञान भी होता है जैसे- साथ-साथ खेल कर भाईचारे की भावना का विकास होता है, समूह में खेलने से सामाजिक भावना बढ़ती है और साथ-ही-साथ प्रतिस्पर्धा की भावना का भी विकास होता है।
(ख) आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिनसे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?
उत्तर – जितना खेल जीवन में जरुरी है, उतने ही जरुरी जीवन में बहुत से कार्य होते हैं जैसे- पढाई आदि। यदि खेल स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, तो पढाई भी आपके जीवन में कामयाबी के लिए बहुत आवश्यक है। यदि हम अपने खेल के साथ-साथ अपने जीवन के अन्य कार्यों को भी उसी लगन के साथ पूरा करते जाएँ जिस लगन के साथ हम अपने खेल को खेलते हैं तो अभिभावकों को कभी भी खेल से कोई आपत्ति नहीं होगी।
Class 10 Hindi सपनों के-से दिन अतिरिक्त प्रश्न उत्तर (Extra Question Answers)
25 to 30 Words Answers Questions
प्रश्न 1 – ‘बच्चों को खेल सबसे अच्छा लगता है और वे मिलजुल कर खेलते हैं।’ “सपनों के-से दिन” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ से ज्ञात होता है कि लेखक और उसके बचपन के साथी मिल-जुलकर खेलते थे और सभी की हालत एक सी होती थी। जब खेल-खेल में लकड़ी के ढेर से निचे उतरते हुए भागते, तो बहुत से बच्चे अपने-आपको चोट लगा देते थे और कई जगह चोट खाए हुए खून के ऊपर जमी हुई रेत-मिट्टी से लथपथ पिंडलियाँ ले कर अपने-अपने घर जाते तो सभी की माँ-बहनें उन पर तरस नहीं खाती बल्कि उल्टा और ज्यादा पीट देतीं।कई बच्चों के पिता तो इतने गुस्से वाले होते कि जब बच्चे को पीटना शुरू करते तो यह भी ध्यान नहीं रखते कि छोटे बच्चे के नाक-मुँह से लहू बहने लगा है और ये भी नहीं पूछते कि उसे चोट कहाँ लगी है। परन्तु इतनी बुरी पिटाई होने पर भी दूसरे दिन सभी बच्चे फिर से खेलने के लिए चले आते।
प्रश्न 2 – लेखक के गाँव के बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – अपने बचपन के दिनों में लेखक जिन बच्चों के साथ खेलता था, उनमें से ज्यादातर साथी उसी के परिवार की तरह के थे। उन परिवारों में से बहुत के बच्चे तो स्कूल ही नहीं जाते थे और जो कभी गए भी, पढाई में रूचि न होने के कारण किसी दिन बस्ता तालाब में फेंक आए और फिर स्कूल गए ही नहीं और उनके माँ-बाप ने भी उनको स्कूल भेजने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं की। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के गाँव के बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।
प्रश्न 3 – “सपनों के से दिन” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि जो बच्चे बचपन में नहीं पढ़ पाए उसके लिए उनके माता-पिता किस तरह जिम्मेदार थे?
उत्तर – जो बच्चे पढाई में रूचि न होने के कारण बस्ता तालाब में फेंक आते थे और फिर कभी स्कूल नहीं गए, उनके माँ-बाप ने भी उनको दोबारा कभी स्कूल भेजने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं की। यहाँ तक की राशन की दुकान वाला और जो किसानों की फसलों को खरीदते और बेचते हैं वे भी अपने बच्चों को स्कूल भेजना जरुरी नहीं समझते थे। अगर कभी कोई स्कूल का अध्यापक उन्हें समझाने की कोशिश करता तो वे अध्यापक को यह कह कर चुप करवा देते कि उन्हें अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर कोई तहसीलदार तो बनाना नहीं है।
जब उनका बच्चा थोड़ा बड़ा हो जायगा तो पंडित घनश्याम दास से हिसाब-किताब लिखने की पंजाबी प्राचीन लिपि पढ़वाकर सीखा देंगे और दूकान पर खाता लिखवाने लगा देंगे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नहीं सीख पाया है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों की पढ़ाई न हो पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे।
प्रश्न 4 – “सपनों के से दिन” पाठ में लेखक ने अपने स्कूल का वर्णन किस प्रकार से किया है?
उत्तर – लेखक ने अपने स्कूल का वर्णन करते हुए बताया है कि स्कूल के अंदर जाने वाले रास्ते के दोनों ओर गली की तरह के लम्बे सीधे रास्ते में बड़े ढंग से कटे-छाँटे झाड़ उगे थे जिन्हें लेखक और उनके साथी डंडियाँ कहा करते थे। उनसे नीम के पत्तों की तरह महक आती थी, जो आज भी लेखक अपनी आँखों को बंद करके महसूस कर सकता है। उस समय स्कूल की छोटी क्यारियों में फूल भी कई तरह के उगाए जाते थे जिनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी सफ़ेद कलियाँ भी हुआ करतीं थीं। लेखक के स्कूल में केवल छोटे-छोटे नौ कमरे थे, जो अंग्रेजी के अक्षर एच (H) की तरह बने हुए थे।
प्रश्न 5 – स्कूल की छोटी क्यारियों में उगाए गए कई तरह के फूलों का लेखक और उनके साथी क्या करते थे?
उत्तर – लेखक के स्कूल की छोटी क्यारियों में कई तरह के फूल उगाए जाते थे जिनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी सफ़ेद कलियाँ भी हुआ करतीं थीं। ये कलियाँ इतनी सूंदर और खुशबूदार होती थीं कि लेखक और उनके साथी चपरासी से छुप-छुपा कर कभी-कभी कुछ फूल तोड़ लिया करते थे। उनकी बहुत तेज़ सुगंध लेखक आज भी महसूस कर सकता है। परन्तु लेखक को अब यह याद नहीं कि उन फूलों को तोड़कर, कुछ देर सूँघकर फिर उन फूलों का वे क्या करते थे। शायद वे उन फूलों को या तो जेब में डाल लेते होंगे और माँ उसे धोने के समय निकालकर बाहर फेंक देती होगी या लेखक और उनके साथी खुद ही, स्कूल से बाहर आते समय उन्हें बकरी के मेमनों की तरह खा या ‘चर’ जाया करते होगें।
प्रश्न 6 – लेखक ने छुटियों के पहले और आखरी दिनों के फर्क का अंतर किस तरह स्पष्ट किया है?
उत्तर – लेखक के समय में स्कूलों में, साल के शुरू में एक-डेढ़ महीना ही पढ़ाई हुआ करती थी, फिर डेढ़-दो महीने की छुटियाँ शुरू हो जाती थी। लेखक को छुटियों के पहले और आखरी दिनों का फर्क याद है। पहले के दो तीन सप्ताह तो खूब खेल कूद में बीतते थे। हर साल ही छुटियों में लेखक अपनी माँ के साथ अपनी नानी के घर चले जाता था। जैसे-जैसे उनकी छुट्टियों के दिन ख़त्म होने लगते तो वे लोग दिन गिनने शुरू कर देते थे। एक-एक दिन गिनते-गिनते खेलकूद में दस दिन और बीत जाते। काम न किया होने के कारण स्कूल में होने वाली पिटाई का डर अब और ज्यादा बढ़ने लगता।
जैसे-जैसे दिन ‘छोटे’ होने लगते अर्थात छुट्टियाँ ख़त्म होने लगती डर और ज्यादा बढ़ने लगता। छुट्टियों के आखिरी पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने का हिसाब लगाते थे और कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता देते थे।
प्रश्न 7 – लेखक ने ‘सस्ता सौदा’ किसे कहा है? और क्यों?
उत्तर – लेखक ने सस्ता सौदा’ उस समय के मास्टरों द्वारा की जाने वाली पिटाई को कहा है। इसका कारण यह है कि उस समय के अध्यापक गरमी की छुट्टियों के लिए दो सौ सवाल दिया करते थे। बच्चे इसके बारे में तब सोचते जब उनकी छुट्टियाँ पंद्रह-बीस बचती। वे सोचते थे कि एक दिन में दस सवाल करने पर भी बीस दिन में पूरा हो जाएगा। दस दिन छुट्टियाँ और बीतने पर वे बीस सवाल प्रतिदिन पूरा करने की बात सोचते पर काम न करते। अंत में मास्टरों की पिटाई को सस्ता सौदा समझकर उसे ही स्वीकार कर लेते थे।
प्रश्न 8 – मास्टर प्रीतम चंद और हेडमास्टर शर्मा जी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – मास्टर प्रीतम चंद जो स्कूल के ‘पीटी’ थे वे बहुत ही सख्त अध्यापक थे। सभी लड़के उनसे बहुत डरते थे क्योंकि उन जितना सख्त अध्यापक न कभी किसी ने देखा था और न सुना था। यदि कोई लड़का अपना सिर प्रार्थना के समय इधर-उधर हिला लेता या पाँव से दूसरे पाँव की पिंडली खुजलाने लगता तो वह उसकी ओर बाघ की तरह झपट पड़ते और उन पर लात-घूसों की बरसात कर देते।
परन्तु हेडमास्टर शर्मा जी उनके बिलकुल उलट स्वभाव के थे। वह पाँचवीं और आठवीं कक्षा को अंग्रेजी स्वयं पढ़ाया करते थे। लेखक और लेखक के साथियों में से किसी को भी याद नहीं था कि पाँचवी कक्षा में कभी भी उन्होंने हेडमास्टर शर्मा जी को किसी गलती के कारण किसी को मारते या डाँटते देखा या सूना हो।
प्रश्न 9 – पीटी मास्टर प्रीतमचंद में ऐसी क्या बात थी जिसको देखकर बच्चे डरते थे?
उत्तर – पीटी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में कभी भी किसी ने मुस्कुराते या हँसते नहीं देखा था। उनका छोटा कद, दुबला-पतला परन्तु पुष्ट शरीर, चेचक के दागों से भरा चेहरा और बाज़ सी तेज़ आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले जूत-ये सभी चीज़े बच्चों की भयभीत करने वाली होती थी। उनके जूतों की ऊँचीएड़ियों के निचे भी उसी तरह की खुरियाँ लगी रहतीं थी, जैसे ताँगे के घोड़े के पैरों में लगी रहती है।यदि मास्टर प्रीतमचंद सख्त जगह पर भी चलते तो खुरियों और किलों के निशान वहाँ भी दिखाई देते थे। उनका ऐसा व्यक्तित्व बच्चों के मन में भय पैदा करता था और वे उनसे डरते थे।
प्रश्न 10 – फ़ारसी की कक्षा में मास्टर प्रीतमचंद ने किस तरह शारीरिक दंड दिया जिसे लेखक और उनके साथी आजीवन नहीं भूल पाए?
उत्तर – मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को चौथी कक्षा में फ़ारसी पढ़ाते थे। एक सप्ताह बाद ही प्रीतमचंद ने बच्चों को शब्द रूप याद करके आने और उसे जबानी सुनाने को कहा पर कठिन होने के कारण कोई भी लड़का न सुना सका। यह देख प्रीतमचंद को गुस्सा आया और उन्होंने बच्चों को मुरगा बना दिया। उनके द्वारा लड़कों को मुरगा बनाने का ढंग बड़ा ही कष्टदायी था। जब मास्टर जी ने सभी विद्यार्थियों को अपने-अपने कान पकड़ने और अपनी पीठ ऊँची रखने के लिए कहा तो पीठ ऊँची करके कान पकड़ने से, तीन-चार मिनट में ही टाँगों में जलन होने लगती थी। लेखक के जैसे कमज़ोर बच्चे तो टाँगों के थकने से कान पकडे हुए ही गिर पड़ते थे। उनके द्वारा दिया गया यह शारीरिक दंड लेखक और उनके साथी आजीवन नहीं भूल सके।
प्रश्न 11 – जब हेडमास्टर ने प्रीतमचंद को बच्चों को शारीरिक दंड देते हुए देखा तो उन्होंने मास्टर प्रीतमचंद के विरुद्ध क्या कार्यवाही की?
उत्तर – हेडमास्टर शर्मा जी ने देखा कि मास्टर प्रीतमचंद ने छात्रों को मुरगा बनवाकर शारीरिक दंड दे रहे हैं। यह पहला अवसर था कि उन्होंने पीटी प्रीतमचंद की उस असभ्यता एवं जंगलीपन को देखा था। उन्होंने सहन नहीं किया और वह भड़क गए थे। उन्होंने इसे तुरंत रोकने का आदेश दिया। उन्होंने प्रीतमचंद के निलंबन का आदेश रियासत की राजधानी नाभा भेज दिया। वहाँ के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर हरजीलाल के आदेश की मंजूरी मिलना आवश्यक था। ऐसी स्वीकृति मिल जाने के बाद पीटी प्रीतमचंद को हमेशा के लिए स्कूल से निकाल दिया जाना था।
प्रश्न 12 – मास्टर प्रीतमचंद के निलंबन के बाद भी बच्चों के मन में उनका डर किस तरह समाया था?
उत्तर – विद्यालय के लड़के पीटी मास्टर प्रीतमचंद की पिटाई से इतने डरे हुए थे कि यह पता होते हुए भी कि पीटी मास्टर प्रीतमचंद को जब तक नाभा से डायरेक्टर ‘बहाल’ नहीं करेंगे तब तक वह स्कूल में कदम नहीं रख सकते, फिर भी जब भी फ़ारसी की घंटी बजती तो बच्चों की छाती धक्-धक करती फटने को आती। परंतु जब तक शर्मा जी स्वयं या मास्टर नौहरिया राम जी कमरे में फ़ारसी पढ़ाने न आ जाते, तब तक तो सभी बच्चों के चेहरे मुरझाए ही रहते थे। इस तरह उनका डर बच्चों के मन में जमकर बैठ चुका था।
60 से 70 Words Answers Questions
प्रश्न 1 – जिस साल लेखक नानी के घर नहीं जा पाता था, उस साल लेखक अपने घर से दूर जो तालाब था, वहाँ जाया करता था। उस तालाब में लेखक और उसके साथी किस तरह खेलते थे अपने शब्दों में वर्णन कीजिए?
उत्तर – लेखक और उसके साथी कपड़े उतार कर पानी में कूद जाया करते थे, थोड़े समय बाद पानी से निकलकर भागते हुए एक रेतीले टीले पर जाकर रेत के ऊपर लोटने लगते थे। गीले शरीर को गर्म रेत से खूब लथपथ करके फिर उसी तरह भागते थे। किसी ऊँची जगह जाकर वहाँ से तालाब में छलाँग लगा देते थे। जैसे ही उनके शरीर से लिपटी रेत तालाब के उस गंदे पानी से साफ़ हो जाती, वे फिर से उसी टीले की ओर भागते। कई बार तालाब में कूदकर ऐसे हाथ-पाँव हिलाने लगते जैसे उन्हें बहुत अच्छे से तैरना आता हो।
परन्तु एक-दो को छोड़, लेखक के किसी साथी को तैरना नहीं आता था। कुछ तो हाथ-पाँव हिलाते हुए गहरे पानी में चले जाते तो दूसरे उन्हें बाहर आने के लिए सलाह देते कि ऐसा मानो जैसे किसी भैंस के सींग या पूँछ पकड़ रखी हो। उनका हौसला बढ़ाते। कूदते समय मुँह में गंदला पानी भर जाता तो बुरी तरह खाँस कर उसे बाहर निकालने का प्रयास करते थे। कई बार ऐसा लगता कि साँस रुकने वाली है परन्तु हाय-हाय करके किसी न किसी तरह तालाब के किनारे तक पहुँच ही जाते थे।
प्रश्न 2 – मास्टर प्रीतम चंद जो स्कूल के ‘पीटी’ थे, उनसे सब क्यों डरते थे और लेखक और उनके साथियों को क्या ध्यान रखना पड़ता था?
उत्तर – मास्टर प्रीतम चंद जो स्कूल के ‘पीटी’ थे, उनसे सब डरते थे। वे लड़कों की पंक्तियों के पीछे खड़े-खड़े यह देखते रहते थे कि कौन सा लड़का पंक्ति में ठीक से नहीं खड़ा है। उनकी धमकी भरी डाँट तथा लात-घुस्से के डर से लेखक और लेखक के साथी पंक्ति के पहले और आखरी लड़के का ध्यान रखते, सीधी पंक्ति में बने रहने की पूरी कोशिश करते थे। सीधी पंक्ति के साथ-साथ लेखक और लेखक के साथियों को यह भी ध्यान रखना पड़ता था कि आगे पीछे खड़े लड़कों के बीच की दुरी भी एक समान होनी चाहिए।
सभी लड़के उस ‘पीटी’ से बहुत डरते थे क्योंकि उन जितना सख्त अध्यापक न कभी किसी ने देखा था और न सुना था। यदि कोई लड़का अपना सिर भी इधर-उधर हिला लेता या पाँव से दूसरे पाँव की पिंडली खुजलाने लगता तो वह उसकी ओर बाघ की तरह झपट पड़ते और ‘खाल खींचने’ (कड़ा दंड देना, बहुत अधिक मारना-पीटना) के मुहावरे को सामने करके दिखा देते।
प्रश्न 3 – बचपन में बच्चों को स्कूल जाना पसंद नहीं होता किन्तु कुछ परिस्थितियों में बच्चे स्कुल जाना पसंद करते हैं। पाठ के आधार पर उन परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – लेखक के अनुसार उनके बचपन में भी स्कूल सभी के लिए ऐसी जगह नहीं थी जहाँ ख़ुशी से भाग कर जाया जाए। पहली कच्ची कक्षा से लेकर चौथी कक्षा तक, केवल पाँच-सात लड़के ही थे जो ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल जाते होंगे बाकि सभी रोते चिल्लाते ही स्कूल जाया करते थे। फिर भी कभी-कभी कुछ ऐसी स्थितियाँ भी होती थी जहाँ बच्चों को स्कूल अच्छा भी लगने लगता था। वह स्थितियाँ बनती थी जब स्कूल में स्काउटिंग का अभ्यास करवाते समय पीटी साहब सभी बच्चो के हाथों में नीली-पीली झंडियाँ पकड़ा कर वन टू थ्री कहते और बच्चे भी झंडियाँ ऊपर-निचे, दाएँ-बाएँ हिलाते जिससे झंडियाँ हवा में लहराती और फड़फड़ाती। झंडियों के साथ खाकी वर्दियों तथा गले में दो रंग के रुमाल लटकाए सभी बच्चे बहुत ख़ुशी से अभ्यास किया करते थे। कभी-कभी लेखक और उसके साथियों को ऐसा भी लगता था कि कई साल की सख्त मेहनत से जो पढ़ाई उन्होंने प्राप्त की थी, पीटी साहब के अनुशासन में रह कर प्राप्त की ‘गुडविल’ का रॉब या घमंड उससे बहुत बड़ा था। यह ऐसा भी था कि आपको रोज डाँटने वाला कोई ‘अपना’ यदि साल भर के बाद एक बार ‘शाबाश’ कह दें तो यह किसी चमत्कार-से कम नहीं लगता है।
प्रश्न 4 – लेखक की पढ़ाई में हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – लेखक के घर में किसी को भी पढ़ाई में कोई रूचि नहीं थी। यदि नयी किताबें लानी पड़तीं (जो लेखक के समय में केवल एक-दो रूपये में आ जाया करतीं थी) तो शायद इसी बहाने लेखक की पढ़ाई तीसरी-चौथी कक्षा में ही छूट जाती। लेखक लगभग सात साल स्कूल में रहा तो उसका एक कारण लेखक को पुरानी किताबें मिल जाना भी था। कापियों, पैंसिलों, होल्डर या स्याही-दवात में भी मुश्किल से साल भर में एक-दो रूपये ही खर्च हुआ करते थे। परन्तु उस जमाने में एक रूपया भी बहुत बड़ी सम्पति या दौलत हुआ करती थी।
लेखक के स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी एक लड़के को उसके घर जा कर पढ़ाया करते थे। वे बहुत धनी लोग थे। उनका लड़का लेखक से एक-दो साल बड़ा होने के कारण लेखक से एक कक्षा आगे पढ़ता था। हर साल अप्रैल में जब पढ़ाई का नया साल आरम्भ होता था तो शर्मा जी उस लड़के की एक साल पुरानी पुस्तकें लेखक के लिए ले आते थे। इससे लेखक ने सातवीं तक की पढ़ाई कर ली। इस तरह उसकी पढ़ाई में स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का विशेष योगदान था।
प्रश्न 5 – लेखक और उनके साथी पीटी मास्टर के किस रूप को अद्भुत मानते थे?
उत्तर – अपने निष्कासन के बाद कई सप्ताह तक पीटी मास्टर जब स्कूल नहीं आए तब लेखक और उसके साथियों को पता चला कि बाज़ार में एक दूकान के ऊपर उन्होंने जो छोटी-छोटी खिड़कियों वाला चौबारा किराए पर ले रखा था, पीटी मास्टर वहीं आराम से रह रहे थे। उन्हें निष्कासित होने की थोड़ी सी भी चिंता नहीं थी। जिस तरह वह पहले आराम से पिंजरे में रखे दो तोतों को दिन में कई बार, भिगोकर रखे बादामों की गिरियों का छिलका उतारकर खिलाते थे, वे आज भी उसी तरह आराम से पिंजरे में रखे उन दो तोतों को दिन में कई बार, भिगोकर रखे बादामों की गिरियों का छिलका उतारकर खिलाते और उनसे बातें करते रहते हैं। लेखक और उसके साथियों के लिए यह चमत्कार ही था कि जो प्रीतमचंद पट्टी या डंडे से मार-मारकर विद्यार्थियों की चमड़ी तक उधेड़ देते, वह अपने तोतों से मीठी-मीठी बातें कैसे कर लेते थे? उनका यह रूप देख कर लेखक स्वयं में सोच रहा था कि क्या तोतों को उनकी आग की तरह जलती, भूरी आँखों से डर नहीं लगता होगा? लेखक और उसके साथियों की समझ में ऐसी बातें तब नहीं आ पाती थीं, क्योंकि तब वे बहुत छोटे हुआ करते थे। वे तो बस पीटी मास्टर के इस रूप को एक तरह से अद्भुत ही मानते थे।
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