CBSE Class 10 Hindi Course B Chapter-wise Previous Years Questions (2024) with Solution

 

Class 10 Hindi (Course B) Question Paper (2024) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 10th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 10 Hindi (Course B) question paper (2024).

 

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Chapter 2 – Meera ke Pad

 

प्रश्न 1 – मीरा अपने आराध्य कृष्ण से क्या विनती करती हैं और उन्हें उनके कर्तव्य का स्मरण करवाने के लिए क्या करती हैं?

उत्तर – कवयित्री मीरा भगवान श्री कृष्ण से उनके सभी दुखों का नाश करने की विनती करती है और इसके लिए मीरा भगवान् श्री कृष्ण को उनके भक्त – प्रेम का स्मरण करवाती है और उदाहरण देती हैं कि जिस तरह उन्होंने द्रोपदी की इज्जत को बचाया, जिस तरह उन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का शरीर धारण कर लिया और जिस तरह उन्होंने हाथियों के राजा ऐरावत हाथी को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था, उसी तरह वे अपनी इस दासी मीरा के भी सारे दुःख हर लें अर्थात सभी दुखों का नाश कर दें।

 

प्रश्न 2 – मीरा के ‘पद’ के आधार पर लिखिए कि द्रौपदी, प्रह्लाद आदि का उल्लेख कर मीरा भगवान को उनका कौन-सा रूप स्मरण करवा रही है और क्यों?

उत्तर – द्रौपदी, प्रह्लाद आदि का उल्लेख कर मीरा भगवान को उनका भक्त – प्रेम रूप स्मरण करवा रही है क्योंकि उस रूप में भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों के सभी प्रकार के दुखों को हरने वाले हैं अर्थात दुखों का नाश करने वाले हैं। मीरा भगवान को उनके भक्त – प्रेम रूप का स्मरण इसलिए करवा रही है क्योंकि मीरा जानती हैं कि अपने भक्तों को मुसीबत में देखकर भगवान् उन्हें बचाने व् दर्शन देने अवश्य आते हैं। मीरा भी भगवान् के दर्शन करना चाहती हैं इसीलिए वे भगवान् श्री कृष्ण को बार-बार उनके भक्त-प्रेम रूप का स्मरण करवा रही हैं। 

 

प्रश्न 3 – श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए मीरा कौन-कौन से कार्य करने को तत्पर है? इनसे श्रीकृष्ण के प्रति मीरा के किस भाव का पता चलता है? 

उत्तर – कवयित्री मीरा श्री कृष्ण के दर्शन पाने के लिए कोई भी कार्य करने के लिए तत्पर हैं। वह श्री कृष्ण की नौकर बन कर रहने के लिए भी तैयार हैं ताकि वह किसी भी तरह श्री कृष्ण के नजदीक रह सके। वह नौकर बनकर बागीचा लगाना चाहती है ताकि सुबह उठ कर रोज श्री कृष्ण के दर्शन पा सके। मीरा वृन्दावन की संकरी गलियों में अपने स्वामी की लीलाओं का बखान करना चाहती हैं। मीरा बगीचों के बीच ही ऊँचे ऊँचे महल बनाना और कुसुम्बी साड़ी पहन कर अपने प्रिय के दर्शन करने को तत्पर हैं। मीरा अपने प्रभु गिरधर स्वामी के दर्शन के लिए इतनी बेचैन है कि वह सुबह का इन्तजार नहीं कर पा रही हैं। इन सभी कार्यों से श्री कृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति भावना उजागर होती है। 

 

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Chapter 4 – Parvat Pradesh Mein Pavas 

 

प्रश्न 1 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में वर्णित पर्वतीय प्रदेश की सुंदरता का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर – कवि ने इस कविता में पर्वतीय प्रदेश की सुंदरता का वर्णन इतने अद्धभुत तरीके से किया है कि ऐसा लग रहा है मानो प्रकृति सजीव हो उठी है। पर्वतीय क्षेत्र में वर्षा ऋतु के प्रवेश से प्रकृति के रूप में बार बार बदलाव आ रहा है अर्थात कभी बारिश होती है तो कभी धूप निकल आती है। पहाड़ों पर उगे हजारों फूल ऐसे लग रहे हैं जैसे पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आंखें फाड़ कर नीचे विशाल आईने रूपी तालाब के जल में अपने विशाल आकार को देख रहे हैं। मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर झरने की करतल ध्वनि नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है। पर्वतों पर उगे हुए पेड़ शांत आकाश को ऐसे देख रहे हैं जैसे वो उसे छूना चाह रहे हों। ऐसा लगता है जैसे वे हमें निरन्तर ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं। चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है।

 

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Chapter 5 – TOP

 

प्रश्न 1 – विरासत में मिली वस्तुओं की सँभाल ज़रूरी है, क्यों? ‘ तोप’ कविता के आधार स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – विरासत में मिली वस्तुओं की सँभाल ज़रूरी है क्योंकि विरासत अर्थात निशानी या ‘धरोहर’ दो तरह की होती हैं। एक वे जिनके बारे में जानकर हम अपने देश और समाज की प्राचीन उपलब्धियों के बारे में जान सकते हैं और दूसरी वे जो हमें बताती हैं कि हमारे पूर्वजों से कब क्या गलती हुई थी जिसके कारण देश की कई पीढ़ियों को गहरे दुःख और कष्टों को झेलना पड़ा। अगर अंग्रेजों ने कुछ बाग़-बगीचे बनाये तो उन्होंने तोपें भी तैयार की। पर एक दिन ऐसा भी आया जब हमारे पूर्वजों ने उस सत्ता को उखाड़ फैंका। फिर भी हमें इन निशानियों के माध्यम से याद रखना होगा की भविष्य में कोई और इस तरह हम पर हुक्म ना जमा पाए और यहाँ फिर से वही परिस्थितियाँ न बने जिनके घाव आज तक हमारे दिलों में हरे हैं। 

 

प्रश्न 2 – ‘तोप’ कविता के आधार पर लिखिए कि पूर्वजों से मिली धरोहर का क्या महत्त्व है? इन्हें सँभालकर क्यों रखा जाता है?

उत्तर – पूर्वजों से मिली धरोहर के अत्यधिक महत्त्व हैं। इन धरोहरों के माध्यम से हम अपने देश और समाज की प्राचीन उपलब्धियों को जान सकते हैं और साथ ही साथ सीख भी ले सकते हैं कि हमारे पूर्वजों से कौन-कौन सी ऐसी गलतियाँ हुई थी जिनकी उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। अगर इन धरोहरों को संभाल कर न रखा जाए तो आने वाली पीढ़ी को कभी अपने पूर्वजों के बलिदानों का पता ही नहीं चलेगा और हो सकता है कि अज्ञानता वश वे भी दुबारा वही गलती कर बैठे जिनका परिणाम उनके पूर्वज पहले झेल चुके हों। यही कारण है कि पूर्वजों से मिली धरोहर को सँभालकर रखा जाता है ताकि वे आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन कर सके।  

 

प्रश्न 3 – ‘तोप’ कविता के आधार पर तोप और चिड़िया की प्रतीकात्मकता स्पष्ट करते हुए लिखिए कि इस कविता के माध्यम से कवि ने क्या संदेश दिया है?

उत्तर – जब सुबह और शाम को बहुत सारे व्यक्ति कंपनी के बाग़ में घूमने के लिए आते हैं, तब विरासत में मिली तोप उन्हें अपने बारे में बताती है कि वह अपने ज़माने में बहुत ताकतवर थी। उसने अच्छे अच्छे वीरों के चिथड़े उड़ा दिए थे। अर्थात उस समय तोप का डर हर इंसान को था। क्रांतिकारियों को उसके समक्ष खड़ा करके उड़ा दिया जाता था। इसी का घमंड तोप को था। परन्तु अब तोप की स्थिति बहुत बुरी है। चिड़िया इस पर बैठ कर आपस में बातचीत करने लग जाती हैं। कभी – कभी शरारती चिड़ियाँ खासकर गौरैयें तोप के अंदर घुस जाती हैं। तोप और चिड़िया की प्रतीकात्मकता मानो हमें बताना चाहती हैं कि कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो एक ना एक दिन उसका भी अंत निश्चित होता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है कि किसी भी बुराई को हिम्मत और होंसलों के सहारे खत्म किया जा सकता है।

 

प्रश्न 4 – कंपनी बाग की ‘तोप’ से हमें क्या जानकारी मिलती है? उससे मिलने वाली सीख का भी उल्लेख कीजिए।

उत्तर – 1857 की तोप आज कंपनी बाग़ के प्रवेश द्वार पर रखी गई है इसकी बहुत देखभाल की जाती है। जिस तरह यह कंपनी बाग़ हमें विरासत में अंग्रेजों से मिला है, उसी तरह यह तोप भी हमें अंग्रेजों से ही विरासत में मिली है। इस तोप से हमें जानकारी मिलती है कि अंग्रेजों ने आजादी के लिए लड़ने वाले कई वीरों को इस तोप के सम्मुख खड़ा करके मौत के घाट उतारा था। इस विरासत में मिली तोप के जरिए हमें सीख मिलती है कि अज्ञानता वश हम दुबारा ऐसी कोई गलती न कर बैठे जिनका परिणाम हमारे पूर्वज पहले झेल चुके हैं। साथ – ही – साथ तोप की वर्तमान स्थिति को देख कर भी हमें सीख मिलती है कि किसी भी बुराई को हिम्मत और होंसलों के सहारे खत्म किया जा सकता है। क्योंकि कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो एक ना एक दिन उसका भी अंत निश्चित होता है।

 

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Chapter 6- Kar Chale Hum Fida 

 

प्रश्न 1 – ‘आज धरती बनी है दुलहन साथियो,
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।’
इन पंक्तियों के संदर्भ में सैनिक की भावनाओं को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ये पंक्तियाँ सैनिकों के देश प्रेम व् बलिदान की भावना को उजागर करती हैं। सैनिक देश की धरती को दुल्हन की तरह मान रहे है क्योंकि दुल्हन भी लाल जोड़ा पहनती है और युद्ध के दौरान धरती सैनिकों के खून से लाल हो गई है। सैनिक वीरगति को प्राप्त करने से पहले देशवासियों को सन्देश दे रहे हैं कि जिस तरह दुल्हन को स्वयंवर में हासिल करने के लिए राजा किसी भी मुश्किल को पार कर जाते थे उसी तरह तुम भी अपनी इस दुल्हन को दुश्मनों से बचा कर रखना  क्योंकि अब हम देश की रक्षा का दायित्व आप देशवासियों पर छोड़ कर जा रहे हैं।

 

प्रश्न 2 – ‘कर चले हम फिदा’ कविता से उद्धृत – ‘साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई’ – पंक्ति के संदर्भ में सैनिक जीवन की कठिनाइयों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर –  ‘कर चले हम फिदा’ कविता से उद्धृत – ‘साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई’ – पंक्ति से सैनिक जीवन में सैनिकों द्वारा उठाई जाने वाली कठिनाइयों का अंदाजा लगाया जा सकता है। सैनिक देश की रक्षा के लिए इतने ऊँचे पहाड़ों पर पहरा देते हैं जहाँ आम इंसान को साँस लेने में भी दिक्क्त हो जाए और एक सैनिक को इतनी ठण्ड का सामना करना पड़ता है कि हम लोगों की नसों में ठण्ड के कारण खून जम जाए। एक सैनिक जब युद्ध भूमि में होता है तो वह अपनी आखरी साँस और आखरी खून के कतरे के बह जाने तक दुश्मनों का सामना करता है और कभी पीठ दिखा कर नहीं भागता।  

 

प्रश्न 3 – ‘कर चले हम फिदा’ कविता से उद्धृत ‘तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे’ पंक्ति के संदर्भ में लिखिए कि सैनिक देशवासियों से क्या अपेक्षा रखता है?

उत्तर – सैनिक अपने देश की धरती को सीता माता के आँचल की तरह मानते हैं और सैनिक देशवासियों से अपेक्षा रखते हैं कि जिस तरह उन्होंने अपने रक्त से लक्ष्मण रेखा खींची है देशवासी भी अपने खून से लक्ष्मण रेखा के समान एक रेखा खींच ले और ये तय कर लें कि उस रेखा को पार करके कोई रावण रूपी दुश्मन इस पार ना आ पाए। सैनिक चाहते हैं कि अगर कोई हाथ सीता के आँचल रूपी देशभूमि को छूने के लिए आगे बड़े तो उसे तोड़ दो। अपने वतन की रक्षा के लिए तुम ही राम बनो और तुम ही लक्ष्मण बनो। इस देश की रक्षा का दायित्व सौनिक देशवासियों पर छोड़ कर वीरगति प्राप्त करता है।

 

प्रश्न 4 – कैफ़ी आज़मी का यह-’गीत ‘कर चले हम फ़िदा किनके बारे में लिखा गया है? इस गीत में उनकी किन विशेषताओं का वर्णन किया गया है? 

उत्तर – कैफ़ी आज़मी का यह -’गीत ‘कर चले हम फ़िदा देश की रक्षा में तत्पर सैनिकों के बारे में लिखा गया है। इस गीत में सैनिकों की कई ऐसी विशेषताओं का वर्णन किया गया है, जिनसे शायद एक आम देशवासी परिचित नहीं होता। गीत में देश के सैनिकों की भावनाओं का वर्णन किया गया है। सैनिक कभी भी देश के मानसम्मान को बचाने से पीछे नहीं हटते। भारत-चीन युद्ध के दौरान सैनिकों को गोलियाँ लगने के कारण उनकी साँसें रुकने वाली थी, ठण्ड के कारण उनकी नाड़ियों में खून जम रहा था परन्तु उन्होंने किसी चीज़ की परवाह न करते हुए दुश्मनों का बहादुरी से मुकाबला किया और दुश्मनों को आगे नहीं बढ़ने दिया। सैनिक देश पर मर मिटने का एक भी मौका नई खोना चाहते। सैनिक अपने देश की धरती को सीता के आँचल की तरह मानते हैं और कहते हैं कि अगर कोई हाथ आँचल को छूने के लिए आगे बड़ेगा तो वे उसे तोड़ देंगे। वीरगति को प्राप्त करने से पहले भी वे देश की रक्षा का दायित्व देशवासियों पर छोड़ देते है।

 

प्रश्न 5 – ‘कर चले हम फ़िदा’ कविता की पंक्ति “साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई” में किस स्थिति का वर्णन किया गया है? इसमें सैनिक के हृदय की कौन-सी भावना व्यक्त हुई है?

उत्तर – ‘कर चले हम फ़िदा’ कविता की पंक्ति “साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई” में भारत-चीन युद्ध का वर्णन किया गया है। इस युद्ध के दौरान सैनिकों को गोलियाँ लगने के कारण उनकी साँसें रुकने वाली थी, अत्यधिक ठण्ड के कारण उनकी नाड़ियों में खून जम रहा था परन्तु उन्होंने किसी चीज़ की परवाह न करते हुए दुश्मनों का बहदुरी से मुकाबला किया और दुश्मनों को आगे नहीं बढ़ने दिया। सैनिक गर्व से अपने सर भी कटवाने को तैयार थे, परन्तु हमारे गौरव के प्रतीक हिमालय को उन्होंने झुकने नहीं दिया अर्थात हिमालय पर दुश्मनों के कदम पड़ने नहीं दिए। इस घटना से सैनिकों के हृदय की देशभावना उजागर होती है कि एक सैनिक अपने देश के लिए अपने प्राणों को नौछावर करना अपना सौभाग्य समझता है। और कभी अपने प्राणों की बलिदानी देने से पीछे नहीं हटता। 

 

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Chapter 7 – Atamtran 

 

प्रश्न 1 – ‘आत्मत्राण’ कविता की कौन-सी दो बातें आपको बहुत प्रेरित करती हैं और क्यों? अपने शब्दों में लिखिए। 

उत्तर – ‘आत्मत्राण’ कविता की दो बातें हमें बहुत प्रेरित करती है। एक तो यह कि इस कविता में कवि ने ईश्वर से अपने दुःख दर्द कम न करने को कहा है, बल्कि वे उन दुःख दर्दों को झेलने की शक्ति मांग रहे हैं। कवि मानते हैं कि प्रभु में सब कुछ संभव करने की ताकत है फिर भी वह बिलकुल नहीं चाहते की वही सब कुछ करे। इन पंक्तियों से प्रेरणा मिलती है कि किसी पर भी आश्रित रहने से अच्छा है कि आप स्वयं कोशिश करके मुसीबतों का सामना करें। 

दूसरी बात जिसने हमें प्रेरित किया है वह है कि हम सुख या दुःख किसी भी स्थिति में भगवान् को याद करना न भूलें। कभी भी उस परमेश्वर की शक्ति पर हमें संदेह न हो। हम एक ही भाव से उसे याद करें। 

 

प्रश्न 2 – ‘आत्मत्राण’ कविता के माध्यम से कवि ने अपने अंतर्मन की भावना को किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?

उत्तर – ‘आत्मत्राण’ कविता में कविगुरु ईश्वर से अपने दुःख दर्द कम न करने को कह रहे है, बल्कि कवि सिर्फ ये चाहते हैं कि ईश्वर उन्हें दुःख तकलीफों को झेलने की शक्ति दें। कवि चाहते हैं कि ईश्वर उनमें इतना आत्मविश्वास भर दें कि कवि हर कष्ट पर जीत हासिल कर सकें। कवि की ईश्वर से केवल इतनी  प्रार्थना है की उनके अंदर निर्भयता भरपूर डाल दें ताकि कवि सारी परेशानियों का डट कर सामना कर सकें। सुख के दिनों में भी कवि ईश्वर को एक क्षण के लिए भी ना भूलें अर्थात हर क्षण ईश्वर को याद करता रहे। दुःख से भरी रात में भी अगर कोई कवि कि मदद न करें तो भी उनके मन में ईश्वर के प्रति कोई संदेह न हो। कवि बस ईश्वर से इतनी शक्ति माँगता है। 

 

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Chapter 8 – Bade Bhai Sahab

 

प्रश्न 1 – ‘बड़े भाई साहब’ पाठ से उद्धृत पंक्ति – ‘तालीम जैसे महत्त्व के मामले में ज़ल्दबाज़ी से काम लेना पसंद नहीं करते थे।’ – का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – इस पंक्ति का आशय है कि शिक्षा प्राप्त करना कोई जल्दबाजी का कार्य नहीं है। शिक्षा को सही मायने में तभी हासिल किया जा सकता है जब विद्यार्थी पुस्तक में लिखी बातों को रटने के बजाए समझना प्रारम्भ करे और अपने जीवन में भी उसका सही उपयोग करे। शिक्षा जीवन का सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य है क्योंकि बिना शिक्षा के मनुष्य का जीवन कोई मायने नहीं रखता। 

 

प्रश्न 2 – ‘बड़े भाई साहब’ कहानी से उद्धृत पंक्ति – ‘बुनियाद ही पुख्ता न हो तो, मकान कैसे पायदार बने।’ – का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – इस पंक्ति का आशय है कि जिस प्रकार  एक मकान को मजबूत तथा टिकाऊ बनाने के लिए उसकी नींव को गहरा तथा ठोस बनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार से जीवन को अच्छा व् सफल बनाने के लिए जीवन की नींव का मजबूत होना आवश्यक है और जीवन की नींव को मजबूत बनाने के लिए शिक्षा रूपी भवन की नींव भी बहुत मज़बूत होनी चाहिए, क्योंकि इसके बिना जीवन रूपी मकान पायदार नहीं बन सकता।

 

प्रश्न 3 – ‘बड़े भाई साहब’ कहानी से उद्धृत इस पंक्ति – ‘सफल खिलाड़ी वह है जिसका कोई निशाना खाली न जाए।’ – का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – इस पंक्ति का आशय है कि जीवन में सफल व्यक्ति उसी को माना जाता है जो अपने सभी कार्य सफलता पूर्वक पूरे करता है। सफल बनने और सभी कार्यों को बिना किसी रुकावट से पूर्ण करने के लिए एक व्यक्ति को योजना व् अनुशासन की आवश्यकता होती है। सभी परेशानियों को पार करते हुए जब कोई व्यक्ति अपनी मंजिल को प्राप्त करता है तभी उसे एक सफल व्यक्ति माना जाता है।  

 

प्रश्न 4 – ‘बड़े भाई साहब’ कहानी के अनुसार एक जमाना था कि लोग आठवाँ दरजा पास करके नायक तहसीलदार हो जाते थे, वर्तमान में क्या स्थिति है और इसके क्या कारण हैं?

उत्तर – ‘बड़े भाई साहब’ कहानी के अनुसार एक जमाना था कि लोग आठवाँ दरजा पास करके नायक तहसीलदार हो जाते थे, उस समय की परिस्थितियाँ ही ऐसी होती थी कि हर कोई शिक्षा को महत्त्व नहीं देता था। इसका सबसे बड़ा कारण गरीबी था, जिसके कारण लोग अपने बच्चों को पढ़ाने के बजाए काम काज सिखाते थे। ताकि वे अपने जीवनयापन का जरिया खोज सके। इस कारण उस जमाने में काम पढ़े-लिखे लोग भी ऊँचे दर्जे के पद हासिल कर लेते थे। 

वर्तमान में भी कुछ हद तक परिस्थितियाँ समान ही हैं। कम काबलियत रखने के बावजूद भी कुछ व्यक्ति ऊँची जान-पहचान के कारण ऊँचे मुकाम हासिल कर लेते हैं। या फिर नकली डिग्रियाँ बनवाकर अथवा पैसों के बल पर ऊँचा पद हासिल करते हैं। इन सभी कारणों से राष्ट्र की उन्नति पर गलत असर होता है और गैरज़िम्मेदार व्यक्तियों के हाथों में शक्ति चली जाती है। 

 

प्रश्न 5 – ‘बड़े भाई साहब’ कहानी का नायक पतंग टूर्नामेंट की तैयारियाँ गुप्त रूप से करता था, क्यों? उसके द्वारा ऐसा किया जाना क्या आपको उचित लगता है? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

उत्तर –  ‘बड़े भाई साहब’ कहानी का नायक पतंग टूर्नामेंट की तैयारियाँ गुप्त रूप से करता था क्योंकि –

पक्ष – ‘बड़े भाई साहब’ कहानी के नायक का पतंग टूर्नामेंट की तैयारियों को गुप्त रूप से करना उचित था क्योंकि उसके बड़े भाई साहब उसे खेलने से मना करते थे और केवल पढ़ाई पर ही ध्यान देने को कहते थे। अगर वह खेलते हुए पाया जाता तो उसकी पिटाई भी होती थी। पढ़ाई के साथ-साथ खेलना भी जरुरी होता है। खेल हमारे सर्वांगीण विकास में अहम् भूमिका निभाता है। 

विपक्ष – ‘बड़े भाई साहब’ कहानी के नायक का पतंग टूर्नामेंट की तैयारियों को गुप्त रूप से करना अनुचित था क्योंकि वह अपने बड़े भाई की आज्ञा की अवहेलना करके खेलने जाता था। यहाँ पर वह अपने बड़े भाई को समझा कर और टाइम-टेबल का अनुसरण करके, खेलने के समय में पतंग टूर्नामेंट की तैयारियाँ कर सकता था। 

 

प्रश्न 6 – ‘बड़े भाई साहब’ कहानी के अंत में बड़े भाई साहब पतंग की डोर थामे हॉस्टेल की ओर भागे जाते हैं। उनका इस तरह दौड़े जाना क्या सिद्ध करता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘बड़े भाई साहब’ कहानी के अंत में बड़े भाई साहब पतंग की डोर थामे हॉस्टेल की ओर भागे जाते हैं। उनका इस तरह दौड़े जाना सिद्ध करता है कि भाई साहब का भी मन करता है कि वे भी पतंग उड़ाएँ। लेकिन वे सोचते हैं कि अगर वे ही सही रास्ते से भटक जायेंगें तो अपने छोटे भाई की रक्षा कैसे करेंगे? बड़ा भाई होने के नाते यह भी तो उनका ही कर्तव्य है। अपने छोटे भाई को सही राह पर रखने के लिए उन्होंने कई चीजों से अपने मन को हटा दिया, किन्तु थे तो वे भी बालक ही। इसी कारण जब कटी पतंग की डोर उनके ऊपर से निकली उन्होंने अपने अरमानों को हवा देते हुए पतंग को पकड़ा और हॉस्टल की ओर दौड़ पड़े। 

 

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Chapter 9 – Diary Ka Ek Panna

 

प्रश्न 1 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर बताइए कि ‘ओपन लड़ाई’ किसे कहा गया है और यह अपूर्व थी, कैसे?

उत्तर – जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज तक अर्थात 26 जनवरी 1931 तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और इस सभा को सबके लिए ओपन लड़ाई कहा गया था। क्योंकि पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाल दिया था कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कहीं भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं। किसी ने भी किसी भी तरह से सभा में भाग लिया तो वे दोषी समझे जायेंगे। इधर परिषद् की ओर से नोटिस निकाला गया था कि ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर स्मारक के निचे झंडा फहराया जायेगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सभी लोगों को उपस्थित रहने के लिए कहा गया था। प्रशासन को इस तरह से खुली चुनौती दे कर कभी पहले इस तरह की कोई सभा नहीं हुई थी।

 

प्रश्न 2 – ‘कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया।’ – ‘डायरी का पन्ना’ पाठ से उद्धृत इस कथन में किस काम और कलकत्ता पर लगे कलंक की बात हो रही है और वह कैसे धुल गया? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – बंगाल या कलकत्ता के नाम पर कलंक था की यहाँ स्वतंत्रता का कोई काम नहीं हो रहा है। 26 जनवरी 1931 को ये कलंक काफी हद तक धुल गया और लोग ये सोचने लगे कि यहाँ पर भी स्वतंत्रता के विषय में काम किया जा सकता है। इस कलंक के धुलने का कारण उनका अकल्पनीय योगदान था। कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे। पुलिस अपनी पूरी ताकत के साथ पुरे शहर में पहरे लिए घूम -घूम कर प्रदर्शन कर रही थी। प्रशासन के अत्याचारों को सहते हुए अनगिनत लोग जेल गए और न जाने कितने घायल हो गए। जब लेखक और अन्य स्वयंसेवी अस्पताल गए, तो लोगों को देखने से मालूम हुआ कि 160 आदमी तो अस्पतालों में पहुंचे थे और जो घरों में चले गए उनकी गिनती अलग है। कह सकते हैं कि दो सौ आदमी जरूर घायल हुए। पकड़े गए आदमियों की संख्या का पता नहीं चल सका। पर इतना जरूर पता चला की लालबाज़ार के लॉकअप में स्त्रियों की संख्या 105 थी। इतना सबकुछ पहले कभी नहीं हुआ था ,लोगों का ऐसा प्रचंड रूप पहले किसी ने नहीं देखा था। 

 

प्रश्न 3 – ‘डायरी का पन्ना’ पाठ से उद्धृत पंक्ति ‘आज जो बात थी वह निराली थी।’ — का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – आज का दिन अर्थात 26 जनवरी का दिन निराला इसलिए था क्योंकि आज के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और इस साल अर्थात 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था। सभी मकानों पर हमारा राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे हमें स्वतंत्रता मिल गई हो। स्मारक के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी, उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था, इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। स्त्रियाँ अपनी तैयारियों में लगी हुई थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचने की कोशिश में लगी हुई थी। 

 

प्रश्न 4 – ‘डायरी का पन्ना’ पाठ से उद्धृत — ‘यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – इस पंक्ति का आशय है कि जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज तक अर्थात 26 जनवरी 1931 तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और ये सभा तो कह सकते हैं की सबके लिए ओपन लड़ाई थी। क्योंकि प्रशासन को इस तरह से खुली चुनौती दे कर कभी पहले इस तरह की कोई सभा नहीं हुई थी। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाल दिया था कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं। परन्तु लोगों में स्वतंत्रता प्राप्ति की अग्नि, ज्वालामुखी बन चुकी थी। 

 

प्रश्न 5 – ‘डायरी का पन्ना’ पाठ से उद्धृत ‘आज जो कुछ हुआ वह अपूर्व था।’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – इस पंक्ति का आशय है कि 26 जनवरी 1931 को जो दृश्य देखने को मिल रहे थे और आजादी के लिए लोगों में जो जज़्बा दिख रहा था वह इससे पहले कभी नहीं दिखा था। लोग अपनी जान की परवाह किए बगैर प्रशासन के विरुद्ध आवाज उठा रहे थे। जब लेखक और अन्य स्वयंसेवी अस्पताल गए, तो लोगों को देखने से मालूम हुआ कि 160 आदमी तो अस्पतालों में पहुंचे थे और जो घरों में चले गए उनकी गिनती अलग है। लालबाज़ार के लॉकअप में स्त्रियों की संख्या 105 थी। इतना सबकुछ पहले कभी नहीं हुआ था ,लोगों का ऐसा प्रचंड रूप पहले किसी ने नहीं देखा था। 

 

प्रश्न 6 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ में 26 जनवरी 1931 को अमर – दिन क्यों कहा गया है और उसके लिए क्या तैयारियाँ की गईं?

उत्तर – 26 जनवरी 1931 का दिन हमेशा याद रखा जाने वाला दिन है। 26 जनवरी 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था, जिसके लिए बहुत सी तैयारियाँ पहले से ही की जा चुकी थी। सिर्फ़ इस दिन को मनाने के प्रचार में ही दो हज़ार रूपये खर्च हुए थे। सभी मकानों पर भारत का राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे उन्हें स्वतंत्रता मिल गई हो। कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे। जगह-जगह पर भाषण व् झंडा फहराने का प्रबंध किया गया था। पुलिस व् प्रशासन अपनी पूरी ताकत के साथ पूरे शहर में पहरे लिए घूम-घूम कर प्रदर्शन कर रही थी। न जाने कितनी गाड़ियाँ शहर भर में घुमाई जा रही थी। घुड़सवारों का भी प्रबंध किया गया था। ताकि इस दिन को कोई स्वतंत्रता दिवस के रूप में न मना सके। 

 

प्रश्न 7 – मोनुमेंट के नीचे शाम को सभा होनी थी लेकिन भोर में क्या घटना घटी? ‘डायरी का एक पन्ना’– पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – स्मारक के नीचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था, इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। श्रद्धानन्द पार्क में बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने झंडा गाड़ा तो पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और अपने साथ ले गई, इसके साथ ही वहाँ इकठ्ठे लोगों को मारा और वहाँ से हटा दिया। तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद्र सिंह झंडा फहराने गए परन्तु वे पार्क के अंदर ही ना जा सके। वहाँ पर भी काफी मारपीट हुई और दो-चार आदमियों के सर फट गए। गुजरती सेविका संघ की ओर से लोगों का एक समूह निकला, जिसमें बहुत सी लड़कियाँ थी, उनको भी गिरफ़्तार कर लिया गया।

 

प्रश्न 8 – 26 जनवरी, 1931 के दिन कलकत्ता के बड़े बाज़ार का दृश्य कैसा था? स्वतंत्रता आंदोलन में इस तरह के दृश्यों का क्या महत्त्व रहा होगा? ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।

उत्तर – 26 जनवरी, 1931 के दिन कलकत्ता के बड़े बाज़ार के प्रायः मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और कई मकान तो ऐसे सजाए गए थे कि ऐसा मालूम होता था कि मानो स्वतंत्रता मिल गई हो। कलकत्ते के प्रत्येक भाग में ही झंडे लगाए गए थे। जिस रास्ते से मनुष्य जाते थे, उसी रास्ते में उत्साह और नवीनता मालूम होती थी। लोगों का कहना था कि ऐसी सजावट पहले नहीं हुई। इस तरह के दृश्यों का स्वतंत्रता आंदोलन में अत्यधिक महत्त्व रहा होगा क्योंकि जब आपके सामने कोई हिम्मत व् उत्साह से किसी कार्य को करने की कोशिश करता है तो दूसरे व्यक्ति के अंदर भी उत्साह व् जोश अपने आप भर जाता है। और स्वतंत्रता आंदोलन में जोश व् उत्साह का होना अत्यधिक महत्त्व रखता था। क्योंकि प्रशासन के विरुद्ध कार्य करने के लिए हिम्मत व् उत्साह अहम् भूमिका निभाते हैं।  

 

प्रश्न 9 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर लिखिए कि 26 जनवरी 1931 को बालिका विद्यालय में झंडोत्सव कैसे मनाया गया और इस दिन स्त्री-समाज का क्या विशेष योगदान रहा?

उत्तर – 11 बजे मारवाड़ी बालिका विद्यालय की छात्राओं ने अपने विद्यालय में झंडा फहराने का समारोह मनाया। वहाँ पर जानकी देवी, मदालसा बजाज- नारायण आदि स्वयंसेवी भी आ गए थे। उन्होंने लड़कियों को समझाया कि उत्सव का क्या मतलब होता है। स्त्रियाँ अपनी तैयारियों में लगी हुई थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचाने की कोशिश में लगी हुई थी। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाल दिया था कि अमुक -अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं। ठीक चार बजकर दस मिनट पर सुभाष बाबू अपना जुलूस ले कर मैदान की ओर निकले। जब वे लोग मैदान के मोड़ पर पहुंचे तो पुलिस ने उनको रोकने के लिए लाठियाँ चलाना शुरू कर दिया। बहुत से लोग घायल हो गए। एक  तरफ इस तरह का माहौल था और दूसरी तरफ स्मारक के निचे सीढ़ियों पर स्त्रियाँ झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। स्त्रियाँ बहुत अधिक संख्या में आई हुई थी। मदालसा जो जानकीदेवी और जमना लाल बजाज की पुत्री थी ,उसे भी गिरफ़्तार किया गया था। उससे बाद में मालूम हुआ की उसको थाने में भी मारा गया था। सब मिलाकर 105 स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया था। कलकत्ता में इस से पहले इतनी स्त्रियों को एक साथ कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया था।

 

प्रश्न 10 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ में वर्णित स्वतंत्रता आंदोलन और अंग्रेज़ी सत्ता की क्रूरता का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।

उत्तर –  नेताजी सुभाष चंद्र बोस और स्वयं लेखक सहित कलकत्ता (कोलकता ) के लोगों ने देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस किस जोश के साथ मनाया, अंग्रेज प्रशासकों ने इसे उनका विरोध मानते हुए उन पर और विशेषकर महिला कार्यकर्ताओं पर कैसे-कैसे जुल्म ढाए, इन सब बातों का वर्णन इस पाठ में किया गया है। 26 जनवरी 1931 का दिन हमेशा याद रखा जाने वाला दिन है। 26 जनवरी 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था, जिसके लिए बहुत सी तैयारियाँ पहले से ही की जा चुकी थी। पुलिस अपनी पूरी ताकत के साथ पुरे शहर में पहरे लिए घूम -घूम कर प्रदर्शन कर रही थी। स्मारक के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी, उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था। तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद्र सिंह झंडा फहराने गए परन्तु वे पार्क के अंदर ही ना जा सके। वहाँ पर भी काफी मारपीट हुई और दो-चार आदमियों के सर फट गए। जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज 26 जनवरी 1931 तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी ठीक चार बजकर दस मिनट पर सुभाष बाबू अपना जुलूस ले कर मैदान की और निकले। जब वे लोग मैदान के मोड़ पर पहुंचे तो पुलिस ने उनको रोकने के लिए लाठियाँ चलाना शुरू कर दिया। बहुत से लोग घायल हो गए। सुभाष बाबू पर भी लाठियाँ पड़ी। मदालसा जो जानकीदेवी और जमना लाल बजाज की पुत्री थी, उसे भी गिरफ़्तार किया गया था। उससे बाद में मालूम हुआ की उसको थाने में भी मारा गया था। सब मिलकर 105 स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया था। 

 

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Chapter 10 – Tantara-Vamiro Katha Class 10 Hindi

 

प्रश्न 1 – ‘प्रेम रूढ़ियों का बंधन नहीं मानता’ ‘तताँरा-वामीरो कथा’ के आधार पर सिद्ध कीजिए।

उत्तर – तताँरा पासा गाँव का एक भला और सबकी मदद करने वाला व्यक्ति था। जब भी कोई मुसीबत में होता तो हर कोई उसी को याद करता था और वह भी भागा -भागा वहाँ उनकी मदद करने के लिए पहुँच जाता था। और वामीरो लपाती गाँव की थी, जो अंदमान-निकोबार द्वीप समूह का भाग है। वामीरो के गाँव की परंपरा थी कि गाँव के नवयुवक और युवतियाँ अपने ही गाँव में वैवाहिक संबंध स्थापित कर सकते थे, अन्य किसी गाँव में नहीं। एक शाम को तताँरा दिन भर की कठोर मेहनत करने के बाद समुद्र के किनारे घूमने गया और वहाँ के माहौल में अपने ही विचारों में खोए हुए तताँरा को मधुर संगीत सुनाई दिया जो उसी के आस पास कोई गा रहा था। और जब वह संगीत का पीछा करने लगा तो उसे वहाँ गीत गाती वामीरो दिखी जिसको देखकर वह अपनी सुध-बुध खो बैठा। तताँरा को देखकर वामीरो की भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी। वामीरो अपने गाँव की परंपरा जानती थी फिर भी दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे। वे लोगों द्वारा समझाने पर भी एक दूसरे से प्रेम करते रहे। इससे स्पष्ट होता है कि प्रेम रूढ़ियों का बंधन नहीं मानता। 

 

प्रश्न 2 – रूढ़ियाँ जब बंधन बन बोझ बनने लगें तब उनका टूटना ही अच्छा है, क्यों? ‘तताँरा – वामीरो कथा’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – रूढ़ियाँ और बंधन समाज को अनुशासित करने व् अकृत्य कर्मों को रोकने के लिए बने होते हैं, परन्तु जब इन्हीं के कारण मनुष्यों की भावनाओं को ठेस पहुँचने लगे और ये सब बोझ लगने लगे तो उनका टूट जाना ही अच्छा होता है। तताँरा-वामीरो की कहानी में हमने जाना कि रूढ़ियों के कारण इनका प्रेम -विवाह नहीं हो सकता था, जिसके कारण दोनों को जान गवानी पड़ी। जहाँ रूढ़ियाँ किसी का भला करने की जगह नुकसान करे और जहाँ रूढ़ियाँ आडंबर लगने लगे वहाँ इनका टूट जाना ही बेहतर होता है। समय के साथ व् परिस्थितियों के मुताबिक़ समाज की भलाई के लिए रूढ़ियों को तोड़ना या उनमें बदलाव करने में कोई बुराई नहीं है। 

 

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Chapter 11 – Teesri Kasam ke Shilpkaar Shailendra 

 

प्रश्न 1 – “तीसरी कसम’ एक कलात्मक फिल्म थी। ‘ – इस कथन को ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘तीसरी कसम’ फिल्म कवि शैलेंद्र के जीवन की पहली और अंतिम फिल्म है। इस फिल्म को बहुत सारे पुरूस्कारों से सम्मानित किया गया। यह फिल्म कला से परिपूर्ण थी जिसके लिए इस फिल्म की बहुत तारीफ़ हुई थी। इस फिल्म में शैलेंद्र की भावुकता पूरी तरह से दिखाई देती है। अभिनय को देखते हुए ‘तीसरी कसम’ फिल्म राज कपूर के द्वारा उनके जीवन में की गई सभी फिल्मों में से सबसे खूबसरत फिल्म मानी जाती है। राज कपूर को एशिया के सबसे बड़े शोमैन का ख़िताब हासिल था। वे अपनी आँखों से अभिनय करने और अपनी आँखों से ही भावनाओं को दिखने में माहिर थे। इसके विपरीत शैलेंद्र एक उमदा गीतकार थे जो भावनाओं को कविता का रूप देने में माहिर थे। शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को अपनी कविता और फिल्म की कहानी में शब्द रूप दिए और राजकपूर ने भी उनको बड़ी ही खूबी से निभाया।

 

प्रश्न 2 – ‘तीसरी कसम’ फिल्म को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

उत्तर – ‘तीसरी कसम’ चाहे आज बहुत कामयाब फिल्मों में गिनी जाती हो, लेकिन यह एक कड़वा सच रहा है कि इसे परदे पर दिखाने और प्रसारित करने के लिए लोग बहुत ही मुश्किल से मिले थे। इस फिल्म की कहानी में जो भावनाएँ थी उनको समझना किसी मुनाफा कमाने वालों के लिए आसान नहीं था। इस फिल्म में जिस करुणा के साथ भावनाओं को दर्शाया गया था उनको किसी तराज़ू में नहीं तौला जा सकता था। यहाँ तक कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे बेहतरीन कलाकार थे, शंकर-जयकिशन का संगीत था, जिनका संगीत उस समय सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला था और-तो-और इस फिल्म के परदे पर आने से पहले ही इस फिल्म के गीत बहुत ज्यादा पसंद किये जा चुके थे, परन्तु इतना सब कुछ होने के बाद भी इस फिल्म को खरीदने वाला कोई नहीं था।

 

प्रश्न 3 – ‘तीसरी कसम फिल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।

उत्तर – 1966 में कवि शैलेंद्र के द्वारा बनाई गई फिल्म ‘तीसरी कसम’ हिंदी साहित्य की एक दिल को छू लेने वाली कहानी थी, जिसको बड़ी ही सफलता के साथ कैमरे की रील में उतार कर चलचित्र द्वारा प्रस्तुत किया गया था। कहा जा सकता है कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म नहीं बल्कि कवि शैलेंद्र द्वारा कैमरे की रील पर लिखी गई एक कविता थी। ‘तीसरी कसम’ फिल्म कवि शैलेंद्र के जीवन की पहली और अंतिम फिल्म है। इस फिल्म को बहुत सारे पुरूस्कारों से सम्मानित किया गया। ‘तीसरी कसम’ को ‘राष्ट्रपति स्वर्णपदक’ दिया गया, बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा भी इस फिल्म को सबसे अच्छी फिल्म के लिए पुरस्कृत किया गया और भी बहुत सारे पुरस्कारों द्वारा इस फिल्म को सम्मानित किया गया। मास्को फिल्म फेस्टिवल में भी इस फिल्म को पुरस्कृत किया गया था। यह फिल्म कला से परिपूर्ण थी जिसके लिए इस फिल्म की बहुत तारीफ़ हुई थी। इस फिल्म में शैलेंद्र की भावुकता पूरी तरह से दिखाई देती है। शैलेंद्र ने ऐसी फिल्म बनाई थी जिसे सिर्फ एक सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था क्योंकि इतनी भावुकता केवल एक कवि के हृदय में ही हो सकती है।

 

प्रश्न 4 – ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि सिनेमा की चकाचौंध के बीच रहते हुए भी शैलेंद्र यश और धन-लिप्सा से कोसों दूर थे।

उत्तर – राज कपूर जानते थे कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म शैलेंद्र की पहली फिल्म है इसलिए उन्होंने एक अच्छे और सच्चे मित्र के नाते शैलेंद्र को फिल्म की असफलता के खतरों से भी परिचित करवाया। परन्तु शैलेंद्र तो एक सज्जन, भावनाओं में बहने वाला व्यक्ति था, जिसको न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था न ही नाम कमाने की इच्छा। उसे तो केवल अपने आप से संतोष की कामना थी। ‘तीसरी कसम’ चाहे आज बहुत कामयाब फिल्मों में गिनी जाती हो, लेकिन यह एक कड़वा सच रहा है कि इसे परदे पर दिखाने और प्रसारित करने के लिए लोग बहुत ही मुश्किल से मिले थे।

 

प्रश्न 5 – ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि मूल कहानी का रेशा-रेशा, छोटी-छोटी बारीकियाँ तीसरी कसम फिल्म में उतर आई हैं।

उत्तर – इस फिल्म की कहानी में जो भावनाएँ थी उनको समझना किसी मुनाफा कमाने वालों के लिए आसान नहीं था। इस फिल्म में जिस करुणा के साथ भावनाओं को दर्शाया गया था उनको किसी तराज़ू में नहीं तौला जा सकता था। ‘प्यार हुआ, इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल।’ इसके एक अंतरे की एक पंक्ति है -‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’, इस पंक्ति में संगीतकार जयकिशन का मानना था कि दर्शकों को चार दिशाएँ तो समझ आ सकती है परन्तु दर्शक दस दिशाओं को समझने में परेशान हो सकते हैं। लेकिन शैलेन्द्र का मानना था कि एक कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा और सुंदर भी बनाने की कोशिश करे। ‘तीसरी कसम’ उन कुछ सफल फिल्मों में से है जिन्होंने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है। शैलेंद्र ने राजकपूर जैसे उमदा कलाकार को अपनी फिल्म में एक छोटा आदमी ‘हिरामन’ बना दिया था। राजकपूर ने भी हिरामन की भूमिका को इतनी बखूबी से निभाया की सभी को राजकपूर, हिरामन ही लगे। और छींट की सस्ती साड़ी पहन कर वहीदा रहमान ने जब हीराबाई का किरदार किया तो लोग वहीदा रहमान की प्रसिद्ध ऊँचाइयों को भूल गए। फिल्म में जब कजरी नदी के किनारे घुटने मोड़कर पैर के तलवों के सहारे बैठा हिरामन गीत गाते हुए हीराबाई से पूछता है ‘मन समझती हैं ना आप’, तब हीराबाई ज़ुबान से कुछ नहीं कहती, परन्तु आँखों ही आँखों से सब कुछ बोलती है और दुनिया-भर के शब्द उस भाषा को प्रकट नहीं कर सकते कि हीराबाई क्या कहती है। ऐसी बहुत सी बारीकियों से सजाई गई थी फिल्म- ‘तीसरी कसम’। अपनी मस्ती में डूबकर झूमता हुआ गाड़ीवाला गाना गा रहा है- ‘चलत मुसाफ़िर मोह लियो रे पिंजरे वाली मुनिया’। अर्धगोलाकार छप्पर युक्त बैलगाड़ी में हीराबाई को जाते हुए देख कर उसके पीछे दौड़ते हुए और गाना गाते हुए बच्चों की भीड़- ‘लाली-लाली डोलिया में लाली रे दुलहनिया’, किसी नाटक में काम करने वाली बाई में अपनापन खोज लेने वाला सरल हृदय वाला गाड़ीवान! जिंदगी में कई कमियों को झेलते हुए लोगों के सपनों की कहानियाँ, इसी तरह की बहुत सी बारीकियों वाली फिल्म है ‘तीसरी कसम’।

 

प्रश्न 6 – फिल्मकार शैलेंद्र के बारे में लेखक ने क्या कहा है? उन कथनों से आपके मन में शैलेंद्र की कौन-सी छवि उभरती है?

उत्तर – ‘तीसरी कसम’ को आज इसलिए भी याद किया जाता है क्योंकि इस फिल्म को बनाने के बाद यह भी सिद्ध हो गया कि हिंदी फिल्म जगत में एक सार्थक और उद्द्येश्य से भरपूर फिल्म को बनाना कितना कठिन और कितना जोख़िम भरा काम है। ‘तीसरी कसम’ फिल्म नहीं बल्कि कवि शैलेंद्र द्वारा कैमरे की रील पर लिखी गई एक कविता थी। ‘तीसरी कसम’ फिल्म कवि शैलेंद्र के जीवन की पहली और अंतिम फिल्म है। इस फिल्म को बहुत सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यह फिल्म कला से परिपूर्ण थी जिसके लिए इस फिल्म की बहुत तारीफ़ हुई थी। इस फिल्म में शैलेंद्र की भावुकता पूरी तरह से दिखाई देती है। शैलेंद्र को न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था न ही नाम कमाने की इच्छा। उसे तो केवल अपने आप से संतोष की कामना थी। शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढ़ग या दिखावे को नहीं अपनाया। इन कथनों से हमारे मन में शैलेंद्र की सरल व् भावुक छवि उभरती है। 

 

प्रश्न 7 – फ़िल्मकार शैलेंद्र के जीवन की कौन-सी विशेषताएँ आप अपनाना चाहेंगे और क्यों? ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ के संदर्भ में लिखिए।

उत्तर – शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढ़ग या दिखावे को नहीं अपनाया। उनकी इसी विशेषता को हम अपने जीवन में भी अपनाना चाहेंगे क्योंकि बिना दिखावे के हम अपने असली व्यक्तित्व को सभी के समक्ष ज्यों का त्यों रख सकते हैं और झूठे रंग-ढंग से दूर रह कर हम अपने मानसिक तनाव से कोसों दूर रह सकते हैं। जिस तरह शैलेंद्र मानते थे कि दर्शकों की पसंद को ध्यान में रख कर किसी भी फिल्म निर्माता को कोई भी बिना मतलब की चीज़ दर्शकों को नहीं दिखानी चाहिए। उसी तरह हम भी बिना मतलब की कोई बात किसी से नहीं करना चाहेंगे क्योंकि बिना मतलब के कोई बात कहने पर न तो हमारी बात का कोई मूल्य ही रह जाएगा और न ही कोई हमारी बातों पर अम्ल करेगा। 

 

प्रश्न 8 – ‘शैलेंद्र’ से फ़िल्म की कहानी सुनकर राजकपूर ने अपनी प्रतिक्रिया कैसे व्यक्त की और सच्ची दोस्ती का निर्वाह किस प्रकार किया? ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर – फिल्म को देखकर ऐसा लगता है कि शैलेंद्र ने फिल्म को पहले नहीं लिखा बल्कि राजकपूर की भावनाओं को ही बाद में शब्द दे दिए हों। राजकपूर ने भी अपने परम मित्र की फिल्म में बहुत मन लगाकर काम किया था, बिना किसी मेहनताने की परवाह किए । जब शैलेंद्र राजकपूर के पास ‘तीसरी कसम’ फिल्म की कहानी को ले कर गए तो उन्होंने बड़े  ही उत्साह के साथ फिल्म में काम करना स्वीकार कर लिया। परन्तु तुरंत ही बड़ी गंभीरता के साथ बोले कि शैलेंद्र को उनका मेहनताना पहले ही दे देना होगा। शैलेन्द्र को ऐसी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी क्योंकि राजकपूर उनके बहुत पुराने मित्र थे और पुराना मित्र इस तरह से पूरी जिंदगी-भर की दोस्ती का बदला लेगा ये कभी नहीं सोचा था। शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया और शैलेंद्र का मुरझाया हुआ चेहरा देखकर राजकपूर मुस्कुरा कर बोले कि निकालो एक रूपया, उनका पूरे-का-पूरा मेहनताना वो भी फिल्म से पहले। शैलेंद्र राजकपूर के इस दोस्ताना-अंदाज को जानते तो थे परन्तु एक फिल्म निर्माता के रूप में बड़े-बड़े सूझ-बूझ से व्यवसाय करने वाले भी चक्कर खा जाते हैं। फिर शैलेंद्र तो अभी इस व्यवसाय में नए थे क्योंकि यह उनकी पहली फिल्म थी। राजकपूर जानते थे कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म शैलेंद्र की पहली फिल्म है इसलिए उन्होंने एक अच्छे और सच्चे मित्र के नाते शैलेंद्र को फिल्म की असफलता के खतरों से भी परिचित करवाया। 

 

प्रश्न 9 – कलाकार या फ़िल्म को लेकर शैलेंद्र की सोच आम लोगों से हटकर क्यों थी? कारण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – राजकपूर जानते थे कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म शैलेंद्र की पहली फिल्म है इसलिए उन्होंने एक अच्छे और सच्चे मित्र के नाते शैलेंद्र को फिल्म की असफलता के खतरों से भी परिचित करवाया। परन्तु शैलेंद्र तो एक सज्जन भावनाओं में बहने वाला व्यक्ति था, जिसको न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था न ही नाम कमाने की इच्छा। उसे तो केवल अपने आप से संतोष की कामना थी। शैलेन्द्र का मानना था कि दर्शकों की पसंद को ध्यान में रख कर किसी भी फिल्म निर्माता को कोई भी बिना मतलब की चीज़ दर्शकों को नहीं दिखानी चाहिए। उनका मानना था कि एक कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा और सुंदर भी बनाने की कोशिश करे। और शैलेंद्र का यह यकीन गलत नहीं था क्योंकि दर्शक जो देखता है उसी को सच भी मान लेता है। शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढ़ग या दिखावे को नहीं अपनाया। यही कारण था कि शैलेंद्र की सोच आम लोगों से हटकर थी। 

 

प्रश्न 10 – ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के संदर्भ में लिखिए कि संगीतकार जयकिशन और शैलेंद्र में किस बात को लेकर सहमति नहीं बन पा रही थी? उन दोनों के तर्कों को प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर – ‘श्री 420’ का एक बहुत ही अधिक पसंद किया गया गीत है -‘प्यार हुआ, इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल।’ इसके एक अंतरे की एक पंक्ति है -‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’, इस पंक्ति में संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति जताई थी। उनका मानना था कि दर्शकों को चार दिशाएँ तो समझ आ सकती है परन्तु दर्शक दस दिशाओं को समझने में परेशान हो सकते हैं। लेकिन शैलेन्द्र इस पंक्ति को बदलने के लिए तैयार नहीं हुए। वे चाहते थे कि दर्शकों की पसंद को ध्यान में रख कर किसी भी फिल्म निर्माता को कोई भी बिना मतलब की चीज़ दर्शकों को नहीं दिखानी चाहिए। उनका मानना था कि एक कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा और सुंदर भी बनाने की कोशिश करे। और शैलेंद्र का यह यकीन गलत नहीं था क्योंकि दर्शक जो देखता है उसी को सच भी मान लेता है। शैलेंद ने जो भी गीत लिखे वे सभी बहुत पसंद किये जाते रहे है। शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढ़ग या दिखावे को नहीं अपनाया। वे अपने गीतों में भावनाओं को अधिक महत्त्व देने वाले थे न की अपने गीतों को कठिन बनाने वाले।

 

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Chapter 12 – Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale

 

प्रश्न 1 – ‘अब कहाँ दूसरे के दुःख में दुःखी होने वाले’ पाठ के माध्यम से लेखक ने क्या प्रतिपादित किया है?

उत्तर –  ‘अब कहाँ दूसरे के दुःख में दुःखी होने वाले’ पाठ के माध्यम से लेखक ने मनुष्य के स्वार्थीपन को दर्शाने का प्रयास किया है। प्रकृति ने यह धरती उन सभी जीवधारियों के लिए दान में दी थी जिन्हें खुद प्रकृति ने ही जन्म दिया था। लेकिन समय के साथ-साथ हुआ यह कि आदमी नाम के प्रकृति के सबसे अनोखे चमत्कार ने धीरे-धीरे पूरी धरती को अपनी जायदाद बना दिया और अन्य दूसरे सभी जीवधारियों को इधर -उधर भटकने के लिए छोड़ दिया। किस तरह आदमी नाम का जीव सब कुछ समेटना चाहता है और उसकी यह भूख कभी भी शांत होने वाली नहीं है। वह इतना स्वार्थी हो गया है कि दूसरे प्राणियों को तो पहले ही बेदखल कर चुका था परन्तु अब वह अपनी ही जाति अर्थात मनुष्यों को ही बेदखल करने में जरा भी नहीं हिचकिचाता। परिस्थिति यह हो गई है कि न तो उसे किसी के सुख-दुःख की चिंता है और न ही किसी को सहारा या किसी की सहायता करने का इरादा। लेखक हमें बताना चाहता है कि हमें नदी और सूरज की तरह दूसरों के हित के कार्य करने चाहिए और तोते की तरह सभी को सामान समझना चाहिए तभी संसार के सभी जीवधारी प्रसन्न और सुखी रह सकते हैं।

 

प्रश्न 2 – ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ के लेखक की माँ की तरह आपकी माँ भी आपको कुछ हिदायतें देती होंगी, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए और बताइए कि आप पर क्या प्रभाव पड़ा।

उत्तर – बचपन में लेखक की माँ हमेशा कहती थी कि शाम के समय पेड़ों से पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए क्योंकि उस समय यदि पत्ते तोड़ोगे तो पेड़ रोते हैं। पूजा के समय फूलों को नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि उस समय फूलों को तोड़ने पर फूल श्राप देते हैं। नदी पर जाओ तो उसे नमस्कार करना  चाहिए वह खुश हो जाती है। कभी भी कबूतरों और मुर्गों को परेशान नहीं करना चाहिए।

इसी तरह की कुछ हिदायतें हमारी माँ भी हमें देतीं हैं जैसे – किसी अच्छे काम को करने से पहले गणेश जी की पूजा करनी चाहिए, कार्य सफल होते हैं। किसी परीक्षा में जाओ तो दही शक़्कर खा कर जाओ, परीक्षा अच्छी होती है। घर से जाते हुए बड़ों का आशीर्वाद लेते जाओ, शुभ लाभ मिलते हैं। गौ माँ की सेवा करो, दुखों का नाश होता है। सोते समय ईश्वर को धन्यवाद जरूर दो, कृपा बनी रहती है। 

इन सभी बातों का हम पर यह प्रभाव पड़ा कि इन बातों ने हमारे मन में संस्कार बना दिया और हम हमेशा इन चीजों की वजह से तनाव मुक्त व् सकारात्मक महसूस करते हैं। 

 

प्रश्न 3 – “अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले” पाठ में आए कथन “नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है” के परिप्रेक्ष्य में कोई दो उदाहरण देकर प्रकृति के असंतुलन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – प्रकृति एक सीमा तक ही सहन कर सकती है। कहा जाता है कि जो जितना बड़ा होता है उसको गुस्सा उतना ही कम आता है परन्तु जब आता है तो उनके गुस्से को कोई शांत नहीं कर सकता। प्रकृति को भी जब गुस्सा आता है तो क्या होता है इसका एक नमूना कुछ साल पहले मुंबई में आई सुनामी के रूप में देख ही चुके हैं। ये नमूना इतना डरावना था कि मुंबई के निवासी डर कर अपने-अपने देवी-देवताओं से उस मुसीबत से बचाने के लिए प्रार्थना करने लगे थे।

प्रकृति में आए असंतुलन का बहुत अधिक भयानक परिणाम हुआ है। गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज कोई न कोई नई बीमारियाँ जन्म ले लेती है और मानव का जीवन बहुत अधिक कठिन हो गया है।

 

प्रश्न 4 – प्रकृति में आए असंतुलन के लिए आप किसे जिम्मेदार ठहराते हैं और क्यों? ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ – पाठ के संदर्भ में लिखिए।

उत्तर – प्रकृति ने यह धरती उन सभी जीवधारियों के लिए दान में दी थी जिन्हें खुद प्रकृति ने ही जन्म दिया था। लेकिन समय के साथ-साथ हुआ यह कि आदमी नाम के प्रकृति के सबसे अनोखे चमत्कार ने धीरे-धीरे पूरी धरती को अपनी जायदाद बना दिया और अन्य दूसरे सभी जीवधारियों को इधर -उधर भटकने के लिए छोड़ दिया। इसका अन्जाम यह हुआ कि दूसरे जीवधारियों की या तो नस्ल ही ख़त्म हो गई या उन्हें अपने ठिकानों से कहीं दूसरी जगह जाना पड़ा जहाँ आदमी ना पहुँचा हो। कुछ जीवधारी तो आज भी अपने लिए ठिकानों की तलाश कर रहे हैं। अगर इतना ही हुआ होता तो भी संतोष किया जा सकता था लेकिन आदमी नाम का यह जीव सब कुछ समेटना चाहता था और उसकी यह भूख इतना सब कुछ करने के बाद भी शांत नहीं हुई। अब वह इतना स्वार्थी हो गया है कि दूसरे प्राणियों को तो पहले ही बेदखल कर चुका था परन्तु अब वह अपनी ही जाति अर्थात मनुष्यों को ही बेदखल करने में जरा भी नहीं हिचकिचाता। परिस्थिति यह हो गई है कि न तो उसे किसी के सुख-दुःख की चिंता है और न ही किसी को सहारा या किसी की सहायता करने का इरादा। यदि आपको भरोसा नहीं है तो इस पाठ को पढ़ लीजिए और पाठ को पढ़ते हुए अपने आस पास के लोगों को याद भी कीजिए और ऐसा जरूर होगा कि आपको कई ऐसे व्यक्ति याद आयेंगे जिन्होंने किसी न किसी के साथ ऐसा बर्ताव किया होगा।

 

प्रश्न 5 – ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ में महाकवि शेख अयाज़ की आत्मकथा से किस घटना को उद्धृत किया गया है? उस घटना से आपको क्या सीख मिलती है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ में महाकवि शेख अयाज़ की आत्मकथा से एक घटना को उद्धृत किया गया है। एक दिन शेख अयाज़ के पिता कुँए से नहाकर लौटे। उशेख अयाज़ की माँ ने भोजन परोसा। अभी उनके पिता ने रोटी का पहला टुकड़ा तोड़ा ही था कि उनकी नज़र उनके बाजू पर धीरे-धीरे चलते हुए एक काले च्योंटे पर पड़ी। जैसे ही उन्होंने कीड़े को देखा वे भोजन छोड़ कर खड़े हो गए। उनको खड़ा देख कर शेख अयाज़ की माँ ने पूछा कि क्या बात है? क्या भोजन अच्छा नहीं लगा? इस पर शेख अयाज़ के पिता ने जवाब दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है। उन्होंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है वे उसी को उसके घर यानि कुँए के पास छोड़ने जा रहें हैं। 

इस घटना से हमें दूसरों के प्रति दयालु स्वभाव की सीख मिलती है। किसी का अनजाने में भी बुरा न करने की सीख और यदि गलती से भी कोई  हमारे द्वारा दुखी हो जाता है तो हमारा कर्तव्य बनता है कि  हम उसके दुखों को दूर करने के उपाए भी करें। अपने मन को सदा साफ रखें व् दूसरों के प्रति अपने मन में प्रेम भाव रखें। 

 

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Chapter 13 – Pathjhad ki tuti Pattiyan 

 

प्रश्न 1 – ‘झेन की देन’ पाठ में दिमाग को आराम देने के लिए ‘टी. सेरेमनी’ का उल्लेख किया गया है, टी. सेरेमनी का वर्णन करते हुए लिखिए कि क्या हमारे देश में भी इस प्रकार का कोई उत्सव या विधि अपनाई जाती है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – एक शाम को लेखक का जापानी दोस्त उन्हें चा-नो-यू अर्थात जापान के चाय पीने के एक विशेष आयोजन, में ले गया। वह एक छः मंजिल की इमारत थी। उसकी छत पर एक सरकने वाली दीवार थी जिस पर चित्रकारी की गई थी और पत्तों की एक कुटिया बनी हुई थी जिसमें जमीन पर चटाई बिछी हुई थी। उसके बाहर बैडोल-सा मिट्टी का एक पानी भरा हुआ बरतन था। लेखक और उनके मित्र उस पानी से हाथ-पाँव धोकर अंदर गए। अंदर चाय देने वाला एक व्यक्ति था जिसे चानीज कहा जाता है। उन्हें देखकर वह खड़ा हो गया। कमर झुका कर उसने उन्हें प्रणाम किया और बैठने की जगह दिखाई। अँगीठी को जलाया और उस पर चाय बनाने वाला बरतन रख दिया। वह साथ वाले कमरे में गया और कुछ बरतन ले कर आया। फिर तौलिए से बरतन साफ किए। ये सारा काम उस व्यक्ति ने बड़े ही सलीके से पूरा किया। उस जगह का वातावरण इतना अधिक शांत था कि चाय बनाने वाले बरतन में उबलते हुए पानी की आवाज़ें तक सुनाई दे रही थी। 

हमारे देश में आपसी मेलजोल बढ़ाने के लिए दिवाली, होली, ईद जैसे त्योहार मनाए जाते हैं और मानसिक शांति के लिए भजन-कीर्तन, मंदिर भ्रमण या योग का सहारा लिया जाता है। 

 

प्रश्न 2 – ‘झेन की देन’ पाठ में लेखक ने भूत और भविष्य की चिंता छोड़ वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी है। इस विषय पर आपके क्या विचार हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

उत्तर – ‘झेन की देन’ पाठ में लेखक हमें बताना चाहते हैं कि हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। क्योंकि बीते हुए समय को हम फिर से जी नहीं सकते और आने वाले समय का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वह कैसा होगा। जो समय अभी चल रहा है अर्थात वर्त्तमान, वही सच है। और यह समय कभी न ख़त्म होने वाला और बहुत अधिक फैला हुआ है। क्योंकि हम हमेशा वर्त्तमान में ही रहते हैं। ‘झेन की देन’ पाठ हमें अत्यधिक व्यस्त जीवनशैली और उसके दुष्परिणामों से अवगत करवाता है। अधिक तनाव मनुष्य को पागल बना देता है। इससे बचने का उपाय है मन को शांत रखना। हमें बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना चाहिए और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना चाहिए।  मानसिक तनाव से मुक्त होने के लिए मन से चिंता, तनाव और अधिक काम की बोझिलता हटाना आवश्यक है ताकि शांति एवं चैन से जीवन कटे।

 

प्रश्न 3 – ‘झेन की देन’ पाठ में जापानियों के मानसिक रोग का कारण उनका अमेरिका से प्रतिस्पर्धा बताया गया है। आप इस कारण को कितना उचित मानते हैं? आपकी दृष्टि में जीवन में प्रतिस्पर्धा की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताते हुए कहा कि वहाँ जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं। कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। ऐसा करने के कारण दिमाग थक जाता है और टेंशन में आ कर पूरा इंजन टूट जाता है। यही कारण है कि जापान के लोगों में मानसिक बिमारी बहुत अधिक फैल गई है। हम इन कारणों से पूरी तरह सहमत हैं। हमारी दृष्टि में जीवन में प्रतिस्पर्धा महत्वपूर्ण है। बिना प्रतिस्पर्धा के आप जीवन में कुछ बड़ा हासिल नहीं कर सकते। किन्तु मानसिक तनाव तक पहुंचना गलत है। अपने शारीरिक व् मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी आवश्यक है। 

 

प्रश्न 4 – ‘गिन्नी का सोना’ पाठ में ‘वे सोने में ताँबा नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी क़ीमत बढ़ाते थे।’ ― यह कथन किसके लिए कहा गया है और क्यों? इसका तात्पर्य समझाइए।

उत्तर – ‘गिन्नी का सोना’ पाठ में ‘वे सोने में ताँबा नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी क़ीमत बढ़ाते थे।’ ― यह कथन गाँधी जी के लिए कहा गया है। क्योंकि गाँधी जी ने जीवन भर सत्य और अहिंसा का पालन किया। वे आदर्शों को ऊंचाई तक ले कर जाते थे अर्थात वे सोने में ताँबा मिलकर उसकी कीमत कम नहीं करते थे, बल्कि ताँबे में सोना मिलकर उसकी कीमत बड़ा देते थे। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। वे किसी भी तरह के आदर्शों में कोई भी व्यावहारिक मिलावट नहीं करते थे बल्कि व्यव्हार में आदर्शों को मिलते थे जिससे आदर्श ही सबको दिखे और सब आदर्शों का ही पालन करे और आदर्शों की कीमत बड़े।

 

प्रश्न 5 – गाँधी जी के बारे में लोग क्या कहते थे, गाँधी जी ने सदा क्या प्रयास किया? ‘गिन्नी का सोना’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।

उत्तर – गाँधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। गाँधी जी भी व्यावहारिक आदर्शवादियों में से एक थे। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। यदि गाँधी जी अपने आदर्शों को महत्त्व नहीं देते तो पूरा देश उनके साथ हर समय कंधे-से-कन्धा मिला कर खड़ा न होता। यह बात उनके अहिंसात्मक आंदोलन से स्पष्ट हो जाती है। वह अकेले चलते थे और लाखों लोग उनके पीछे हो जाते थे। नमक का कानून तोड़ने के लिए जब उन्होंने जनता का आह्वान किया तो उनके नेतृत्व में हजारों लोग उनके साथ पैदल ही दांडी यात्रा पर निकल पड़े थे । इसी प्रकार से असहयोग आंदोलन के समय भी उनकी एक आवाज़ पर देश के हजारों नौजवान अपनी पढ़ाई छोड़कर उनके नेतृत्व में आंदोलन के रास्ते पर चल पड़े थे। गाँधी जी ने जीवन भर सत्य और अहिंसा का पालन किया। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। गाँधी जी कभी भी अपने आदर्शों को अपने व्यवहार पर हावी नहीं होने देते थे। बल्कि वे अपने व्यवहार में ही अपने आदर्शों को रखने की कोशिश करते थे। 

 

प्रश्न 6 – आदर्शवादी लोगों ने समाज के लिए क्या किया है? ‘गिन्नी का सोना’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।

उत्तर –  हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगों के कारण ही बच पाए हैं। खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शों को सबसे आगे रखने वाले लोगों ने किया है। व्यवहारवादी लोग तो केवल अपने आप को आगे लाने में लगे रहते हैं उनको कोई फर्क नहीं पड़ता अगर समाज को नुक्सान हो रहा हो।

 

प्रश्न 7 – ‘झेन की देन’ पाठ में लेखक के मित्र द्वारा बताए गए मानसिक रोग के कारणों पर अपनी टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – लेखक के मित्र के अनुसार जापानी मानसिक रोग से पीड़ित हैं। इसका कारण उनकी असीमित आकांक्षाएँ, उनको पूरा करने के लिए किया गया भागम-भाग भरा प्रयास, महीने का काम एक दिन में करने की चेष्टा, अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र से प्रतिस्पर्धा आदि है। लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताते हुए कहा कि वहाँ जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं।  कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। ऐसा करने के कारण दिमाग थक जाता है और टेंशन में आ कर पूरा इंजन टूट जाता है। यही कारण है कि जापान के लोगों में मानसिक बिमारी बहुत अधिक फैल गई है। 

 

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Chapter 14 – Kartoos 

 

प्रश्न 1 – ‘कारतूस’ एकांकी के आधार पर लिखिए कि जिस वजीर अली को पकड़ने के लिए कर्नल जंगल में खेमा डाले हुए था, एकांकी के अंत में वह उसकी प्रशंसा क्यों करता है?

उत्तर – वजीर अली को पकड़ने के लिए कर्नल जंगल में खेमा डाले हुए था। वज़ीर अली ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। परन्तु वज़ीर अली जब सवार का वेश बना कर कर्नल के खेमे में आता है और कर्नल द्वारा वज़ीर अली की गिरफ़्तारी में मदद करने के लिए उसी से मदद माँगता है तो, सवार कर्नल को वज़ीर अली के बारे में बताता है कि वह एक ऐसा सिपाही है जो अपनी जान की परवाह नहीं करता, वह बहुत बहादुर है। सवार के कहने पर कि वह वज़ीर अली को गिरफ्तार करना चाहता है, कर्नल सवार को दस कारतूस दे देता है और जब सवार से नाम पूछता है तो सवार अपना नाम वज़ीर अली बताता है और कर्नल को कहता है कि कर्नल ने उसे कारतूस दिए हैं इसलिए वह उसकी जान को बख्श रहा है। इतना कह कर वज़ीर अली बाहर चला जाता है। लेफ्टिनेंट के पूछने पर कर्नल अपने आप से कहता है कि वह एक ऐसा सिपाही था जो अपनी जान की परवाह नहीं करता और आज ये कर्नल ने खुद देख लिया था। अर्थात वज़ीर अली ने कर्नल के सामने अपनी बहादुरी का प्रत्यक्ष उदाहरण प्रस्तुत कर दिया था। 

 

प्रश्न 2 – ‘कारतूस’ एकांकी के आधार पर लिखिए कि लेफ्टीनेंट को वजीर अली ‘भूत’ क्यों नज़र आ रहा था?

उत्तर – कर्नल व् लेफ्टिनेंट दोनों को पता था कि जंगल की जिंदगी अर्थात जंगल में रहना बहुत खतरनाक होता है। परन्तु वज़ीर अली को पकड़ने के लिए लेफ्टिनेंट और कर्नल को जंगल में डेरा डाले हुए कई हफ्ते हो गए थे। उनके सिपाही भी परेशान हो गए थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वजीर अली कोई आदमी है भी या कोई भूत है, जो उनके हाथ ही नहीं लग रहा था। कर्नल को वजीर अली की कहानियाँ सुन कर रॉबिनहुड के कारनामें  याद आ जाते थे। रॉबिनहुड की ही तरह वजीर अली के मन में भी अंग्रेजों के खिलाफ बहुत अधिक नफ़रत भरी पड़ी थी। वजीर अली ने कोई पाँच महीने ही शासन किया होगा। परन्तु इन पाँच महीनों में ही उसने अवध के राज्य को अंग्रेजों के असर से लगभग बिलकुल साफ़ कर दिया था। इसी कारण वज़ीर अली को पकड़ना अंग्रेजों के लिए आवश्यक  हो गया था परन्तु वज़ीर अली उनके हाथ ही नहीं आ रहा था। इसी कारण लेफ्टीनेंट को वजीर अली ‘भूत’ नज़र आ रहा था। 

 

प्रश्न 3 – ‘कारतूस’ एकांकी के किस पात्र ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया है? उसके चरित्र की किस विशेषता को आप अपनाना चाहेंगे और क्यों?

उत्तर – ‘कारतूस’ पाठ से ज्ञात होता है कि वज़ीर अली अत्यंत साहसी, वीर, महत्त्वाकांक्षी और स्वाभिमानी शासक था। अवध की सत्ता छिनने के बाद उसके इन गुणों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वज़ीर अली ने हमें सर्वाधिक प्रभावित किया है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषता को हम अपनाना चाहेंगे –

साहसी – वज़ीर अली के साहस की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम ही है। उसने कंपनी के वकील की हत्या कर दी थी। वह कर्नल के कैंप में घुसकर उससे कारतूस भी लाता है ये उसके साहसी होने के प्रमाण हैं।

वीर – वज़ीर अली इतना वीर है कि अवध की सत्ता छिनने के बाद भी अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए हर संभव प्रयास करता रहता है।

महत्त्वाकांक्षी – वज़ीर अली महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति है। वह अवध का शासक बनने की महत्त्वाकांक्षा सदा बनाए रखता है।

स्वाभिमानी – वज़ीर अली इतना स्वाभिमानी है कि वह कंपनी के वकील की अपमानजनक बातों को सह नहीं पाता है और उसकी हत्या कर देता है।

 

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Chapter 1 – Harihar Kaka 

 

प्रश्न 1 – आपके पड़ोसी काका की स्थिति हरिहर काका से मिलती-जुलती है। आप उन्हें कैसे समझाएँगे और मदद करेंगे?

उत्तर – हरिहर काका की अपनी देह से कोई संतान नहीं थी, परन्तु उसके पास पंद्रह बीघे ज़मीन थी और वही ज़मीन उसकी जान की आफत बन गई थी। उन्हें अपनों के द्वारा ही धोखे और अपमान का सामना करना पड़ा था। उन्हें बुढ़ापे में न जाने कितने कष्टों को झेलना पड़ा था। अंत में उन्हें उनकी ही ज़मीन के कारण सुरक्षा भी मिली थी। यदि हमारे पड़ोसी काका की स्थिति हरिहर काका से मिलती-जुलती हुई तो हम उन्हें समाज में हो रहे नकारात्मक बदलाव से अवगत करेंगे। आज के मनुष्य की स्वार्थी मनोवृति के बारे में समझाएंगे। हम उन्हें समझाने का प्रयास करेंगे कि माना समाज में सुखी जीवन जीने के लिए रिश्तों-नातों का बहुत अधिक महत्त्व है। परन्तु आज के समाज में सभी मनुष्य, मानवीय और पारिवारिक मूल्यों और कर्तव्यों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। ज्यादातर लोग केवल स्वार्थ के लिए ही रिश्ते निभाते हैं। जहाँ लोगों को लगता है कि उनका फ़ायदा नहीं हो रहा है वहाँ लोग जाना ही बंद कर देते हैं। मनुष्य अपने अमीर रिश्तेदारों से रोज मिलना चाहता है परन्तु अपने गरीब रिश्तेदारों से कोसों दूर भागता है। यदि फिर भी उनके साथ कुछ अन्याय होता है तो हम कानूनी रूप से उनकी पूरी मदद करेंगे। 

 

प्रश्न 2 – हरिहर काका की ज़मीन हड़पने के लिए महंत द्वारा धर्म, माया-मोह का सहारा लिया गया, अपहरण करवाया गया। उनका ऐसा करना आपकी दृष्टि में कितना उचित है? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

उत्तर – हरिहर काका की ज़मीन हड़पने के लिए महंत द्वारा धर्म, माया-मोह का सहारा लिया गया, अपहरण करवाया गया। उनका ऐसा करना हमारी दृष्टि में बिलकुल अनुचित है। महंत को हर कोई धार्मिक व् संत व्यक्ति मानता है और महंत जैसे व्यक्ति ही अधर्म का सहारा लेने लगेंगे तो आम व्यक्ति का धर्म व् भगवान् से ही विश्वास उठ जाएगा। एक महंत मोह-माया से कोसों दूर होता है और यदि वही महंत मोह-माया का जाल बुने तो समाज में अराजकता फैलना संभव है। एक महंत को लोग अपना मार्गदर्शक मानते हैं और अगर वही अपहरण जैसे अपराधों को बढ़ावा दें तो समाज में दुर्गुणों का सैलाब आएगा। 

 

प्रश्न 3 – ‘हरिहर काका’ कहानी समाज के किन पहलुओं की ओर ध्यान आकर्षित करती है? आप अपने आस-पास रह रहे अकेले व्यक्ति की मदद कैसे करेंगे?

उत्तर – ‘हरिहर काका’ कहानी समाज में हो रहे नकारात्मक बदलाव व् आज के मनुष्य की स्वार्थी मनोवृति की ओर ध्यान आकर्षित करती है। हम अपने आस-पास रह रहे अकेले व्यक्ति की मदद उन्हें इस समस्या के प्रति जागरूक करके करेंगे। हम उन्हें समझाएंगे कि माना समाज में सुखी जीवन जीने के लिए रिश्तों-नातों का बहुत अधिक महत्त्व है। परन्तु आज के समाज में सभी मानवीय और पारिवारिक मूल्यों और कर्तव्यों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। जहाँ लोगों को लगता है कि उनका फ़ायदा नहीं हो रहा है वहाँ लोग जाना ही बंद कर देते हैं। यदि उनके साथ भी ऐसा व्यवहार हो रहा है तो वे सावधान रहें और अपने जीते जी अपनी पूँजी किसी के भी नाम न करें। क्योंकि आज का व्यक्ति स्वार्थी मनोवृति का हो गया है। 

 

प्रश्न 4 – ‘भरे-पूरे परिवार में रहता हुआ भी व्यक्ति अकेला हो सकता है।’ ‘हरिहर काका’ और ‘टोपी शुक्ला’ कहानी के आधार पर इस कथन को सिद्ध कीजिए।

उत्तर – ‘भरे-पूरे परिवार में रहता हुआ भी व्यक्ति अकेला हो सकता है।’ ‘हरिहर काका’ और ‘टोपी शुक्ला’ कहानी इस कथन के लिए सही उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। ‘टोपी शुक्ला’ कहानी में टोपी का इफ़्फ़न की दादी से बहुत गहरा सम्बन्ध बन गया था। दोनों अपने घरों में अजनबी और भरे घर में अकेले थे क्योंकि दोनों को ही उनके घर में कोई समझने वाला नहीं था। ‘हरिहर काका’ कहानी में भी हरिहर काका का पूरा परिवार केवल उनकी ज़मीन के कारण ही उनके साथ था। पूरे परिवार ने उनकी ज़मीन हासिल करने के लिए न जाने कितने जुल्म उनपर किए। भरे-पुरे परिवार में भी उनका कोई अपना नहीं था। 

 

प्रश्न 5 – “लेखक का हरिहर काका से घनिष्ठ जुड़ाव है।” ― पाठ में आए इस कथन को तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – लेखक का हरिहर काका से कितना घनिष्ठ जुड़ाव था इसका स्पष्टीकरण इस घटना से होता है, जब लेखक हरिहर काका के घर उनसे उनके हालचाल के बारे में पूछते हैं तो वे लेखक को एक बार सिर उठाकर देखकर और फिर सिर झुका देते हैं और उसके बाद लेखक की ओर नहीं देखते। इससे लेखक को उनकी एक नजर से ही सब कुछ समझ आ गया था। जिन कष्टों में वे थे और उनके मन की जो स्थिति थी, उनको अपने मुँह से कहने की भी कोई जरुरत नहीं थी क्योंकि उनकी आँखे ही सब कुछ कह रही थी। लेखक का हरिहर काका के प्रति जो प्यार था वह लेखक का उनके व्यावहार के और उनके विचारों के कारण था। लेखक का हरिहर काका के प्रति जो प्यार था उसके दो कारण थे। उनमें से पहला कारण था कि हरिहर काका लेखक के पड़ोसी थे और दूसरा कारण लेखक को उनकी माँ ने बताया था कि हरिहर काका लेखक को बचपन से ही बहुत ज्यादा प्यार करते थे। वे लेखक को अपने कंधे पर बैठा कर घुमाया करते थे। एक पिता का अपने बच्चों के लिए जितना प्यार  होता है, लेखक के अनुसार हरिहर काका का उसके लिए प्यार उससे भी अधिक था। लेखक जब व्यस्क हुआ या थोड़ा समझदार हुआ तो उसकी पहली दोस्ती भी हरिहर काका के साथ ही हुई थी। लेखक की माँ ने लेखक को बताया था कि उससे पहले हरिहर काका की गाँव में किसी से इतनी गहरी दोस्ती नहीं हुई थी। लेखक कहता है कि हरिहर काका उससे कभी भी कुछ नहीं छुपाते थे, वे उससे सबकुछ खुल कर कह देते थे। 

 

प्रश्न 6 – हरिहर काका के परिवार ने ठाकुरबारी से लौटने के बाद उन्हें ‘बहुमूल्य वस्तु’ जैसे सहेज कर रखा। यदि उनका परिवार पहले से ही उन्हें उचित प्यार-आदर देता तो स्थिति कैसी होती? कहानी के आधार पर लिखिए।

उत्तर – हरिहर काका के परिवार ने ठाकुरबारी से लौटने के बाद उन्हें ‘बहुमूल्य वस्तु’ जैसे सहेज कर रखा। यदि उनका परिवार पहले से ही उन्हें उचित प्यार-आदर देता तो स्थिति कुछ अलग ही होती। हरिहर काका के परिवार वालों ने उनसे नाता केवल स्वार्थ के लिए रखा था। यदि वे बिना किसी स्वार्थ के हरिहर काका का ध्यान उन्हें अपना मान कर करते तो किसी की भी हिम्मत उनके प्रति दुर्व्यवहार करने की नहीं होती। उनके परिवार को इतनी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता। और हरिहर काका तो उन्हें अपना मानते ही थे वे अपनी ज़मीन अपने परिवार को ही देते न की किसी बाहर वाले को। हरिहर काका केवल प्यार व् सम्मान चाहते थे उन्हें ज़मीन का कोई लालच नहीं था।

 

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Chapter 2 – Sapnon Ke Se Din 

 

प्रश्न 1 – ‘सपनों के से दिन’ पाठ के लेखक और उसके साथी किस प्रकार गर्मियों की छुट्टियाँ बिताया करते? आप गर्मी की छुट्टियों में क्या करते हैं, लिखिए।

उत्तर – हर साल ही छुटियों में लेखक अपनी माँ के साथ अपनी नानी के घर चला जाता था। दोपहर तक तो लेखक और उनके साथी तालाब में नहाते फिर नानी से जो उनका जी करता वह माँगकर खाने लगते। लेखक जिस साल नानी के घर नहीं जा पाता था, उस साल लेखक अपने घर से दूर जो तालाब था वहाँ जाया करता था। लेखक और उसके साथी कपड़े उतार कर पानी में कूद जाते, फिर पानी से निकलकर भागते हुए एक रेतीले टीले पर जाकर रेत के ऊपर लोटने लगते फिर गीले शरीर को गर्म रेत से खूब लथपथ करके फिर उसी किसी ऊँची जगह जाकर वहाँ से तालाब में छलाँग लगा देते थे। लेखक को यह याद नहीं है कि वे इस तरह दौड़ना, रेत में लोटना और फिर दौड़ कर तालाब में कूद जाने का सिलसिला पाँच-दस बार करते थे या पंद्रह-बीस बार। 

हम भी गर्मियों की छुट्टियों में दादी-दादी व् नाना-नानी से मिलने जाते हैं। वहाँ हम अपने बचपन के मित्रों के साथ मिल कर क्रिकेट, वॉलीबॉल, कबड्डी खेलते हैं व् पहाड़ों की चढ़ाई करते हैं। साल भर में इन दिनों का हम बेसब्री से इंतजार करते हैं और इन दिनों में की गई मस्ती को दिलों में समेट कर फिर अगली छुट्टियों का इन्तजार करते हैं। 

 

प्रश्न 2 – ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता है? पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्या महत्त्व है? इससे किन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा मिलती है?

उत्तर – ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लेखक ने बच्चों के व्यवहार को दर्शाने का प्रयास किया है। बचपन में बच्चों का हाल एक ही तरह का होता था। खेलते हुए उन्हें कोई सुध नहीं रहती, सभी के पाँव नंगे, फटी-मैली सी कच्छी और कई जगह से फटे कुर्ते, जिनके बटन टूटे हुए होते थे और सभी के बाल बिखरे हुए होते थे। कई बार तो खेल-खेल में चोट भी लग जाती है। पढ़ाई का कोई ध्यान ही नहीं रहता। पूरा दिन बस खेल-कूद में निकल जाता है। शायद इसीलिए  बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय लगता है। 

परन्तु बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए खेल-कूद भी आवश्यक है। पढ़ाई यदि मानसिक विकास में सहायक है तो खेलकूद मानसिक व् शारीरिक दोनों विकास में योगदान देता है। खेलकूद से कई जीवन-मूल्यों की प्रेरणा मिलती है। जैसे – आपस में मिलझुल कर काम करना, एक-दूसरे के सहयोगी बनना, जीत के साथ-साथ हार को भी सकारात्मकता से लेना व् एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना का विकास इत्यादि। 

 

प्रश्न 3 – ‘सपनों के से दिन’ पाठ में अंग्रेजों द्वारा गाँव के लोगों को सेना में भर्ती करने के लिए नौटंकी का सहारा लिया गया। वर्तमान समय में प्रचार-प्रसार के साधनों में, तरीकों में क्या अंतर आया है?

उत्तर –  ‘सपनों के से दिन’ पाठ में अंग्रेजों द्वारा गाँव के लोगों को सेना में भर्ती करने के लिए नौटंकी का सहारा लिया गया। क्योंकि उस समय प्रचार-प्रसार के साधन नहीं थे। लोगों को किसी भी बात के लिए जागरूक करने का नौटंकी एक माध्यम था। जिसका अंग्रेजों ने सहारा लिया। परन्तु वर्तमान समय में प्रचार-प्रसार के साधनों में, तरीकों में बहुत अंतर आया है। आज यदि किसी को कोई जानकारी देनी हो तो समाचार पत्र, दूरदर्शन, रेडियो व् इंटरनेट जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इन साधनों से अत्यधिक शीघ्रता से जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाई जा सकती है। 

 

प्रश्न 4 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक को बचपन में प्रकृति कैसी प्रतीत होती थी? उस समय लेखक फूलों के साथ कैसा व्यवहार करता था? 

उत्तर – लेखक को बचपन में घास ज्यादा हरी और फूलों की सुगंध बहुत ज्यादा मन को लुभाने वाली लगती थी। उस समय स्कूल की छोटी क्यारियों में फूल भी कई तरह के उगाए जाते थे जिनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी सफ़ेद कलियाँ भी हुआ करतीं थीं। ये कलियाँ इतनी सूंदर और खुशबूदार होती थीं कि लेखक और उनके साथी चपरासी से छुप-छुपा कर कभी-कभी कुछ फूल तोड़ लिया करते थे। परन्तु लेखक को यह याद नहीं कि फिर उन फूलों का वे क्या करते थे। लेखक कहता है कि शायद वे उन फूलों को या तो जेब में डाल लेते होंगे और माँ उसे धोने के समय निकालकर बाहर फेंक देती होगी या लेखक और उनके साथी खुद ही, स्कूल से बाहर आते समय उन्हें बकरी के मेमनों की तरह खा या ‘चर’ जाया करते होगें।

 

प्रश्न 5 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक को विद्यालयी जीवन क्यों अच्छा नहीं लगता था? कारण सहित उत्तर देते हुए लिखिए कि आप अपने विद्यालयी जीवन को रोचक कैसे बना सकते हैं।

उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक को विद्यालयी जीवन इसलिए अच्छा नहीं लगता था क्योंकि हर बच्चे की तरह लेखक को भी खेलकूद में अधिक रूचि थी। पढ़ाई से ज्यादा लेखक को फूल तोड़ने, तालाबों में नहाने व् नानी के घर जाने में आनंद आता था। छुट्टियों में भी जरुरत से ज्यादा काम मिलने के कारण भी लेखक को विद्यालयी जीवन अच्छा नहीं लगता था। 

हम अपने विद्यालयी जीवन को कोई चीजों से रोचक बना सकते है। जैसे – पढाई के साथ-साथ स्कूलों में खेलकूद की सामग्रियों में विभिन्नताएँ ला सकते हैं। पढ़ाई में विषयों से सम्बंधित चीजों पर बच्चों से कागज़, मिट्टी आदि से मॉडल बनवा कर रोचक ढंग से जानकारी उपलब्ध करवा सकते हैं। विषयों से सम्बंधित जगहों पर यात्राएँ करवा कर प्रत्यक्ष ज्ञान दे सकते हैं। प्रतियोगिताएँ करवा कर तथा पुरस्कार देकर बच्चों का मनोबल बढ़ा सकते हैं। 

 

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Chapter 3 – Topi Shukla

 

प्रश्न 1 – ‘मैत्री धर्म, जाति, रंग-भेद, प्रतिष्ठा आदि से ऊपर शुद्ध प्रेम और भावनाओं का प्रतिबिंब है।’ ‘टोपी शुक्ला’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘मैत्री धर्म, जाति, रंग-भेद, प्रतिष्ठा आदि से ऊपर शुद्ध प्रेम और भावनाओं का प्रतिबिंब है।’ ‘टोपी शुक्ला’ पाठ में लेखक ने इस तथ्य को स्पष्ट किया है। लेखक ने दो परिवारों का वर्णन किया है जिसमें से एक हिन्दू और दूसरा मुस्लिम परिवार है। दोनों परिवार समाज के बनाए नियमों के अनुसार एक दूसरे से नफ़रत करते हैं परन्तु दोनों परिवार के दो बच्चों में गहरी दोस्ती हो जाती है। ये दोस्ती दिखाती है कि बच्चों की भावनाएँ किसी भेद को नहीं मानती। एक को सभी प्यार से टोपी कह कर पुकारते हैं और दूसरे को इफ़्फ़न। इफ़्फ़न की दादी की बोली टोपी के दिल में उतर गई थी, उसे भी इफ़्फ़न की दादी की बोली बहुत अच्छी लगती थी। टोपी की माँ और इफ़्फ़न की दादी की बोली एक जैसी थी। टोपी जब भी इफ़्फ़न के घर जाता था तो उसकी दादी के ही पास बैठने की कोशिश करता था।“अम्माँ”। “अब्बू”। “बाजी”। उसे ये शब्द बहुत पसंद आए। एक दिन टोपी के मुँह से खाना खाते समय अम्मी! शब्द सुनते ही मेज़ पर बैठे सभी लोग चौंक गए, टोपी की माँ ने टोपी को फिर बहुत मारा। एक ही बात बार-बार पूछ रही थी कि क्या अब वो इफ़्फ़न के घर जाएगा? इसके उत्तर में हर बार टोपी “हाँ” ही कहता था।

 

प्रश्न 2 – ‘उम्र का फासला आत्मीय संबंधों में बाधा नहीं बनता।’ ‘हरिहर काका’ और ‘टोपी शुक्ला ‘ कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए।

उत्तर – ‘उम्र का फासला आत्मीय संबंधों में बाधा नहीं बनता।’ ‘टोपी शुक्ला’ कहानी में भी इफ़्फ़न की दादी की बोली टोपी के दिल में उतर गई थी, उसे भी इफ़्फ़न की दादी की बोली बहुत अच्छी लगती थी। टोपी जब भी इफ़्फ़न के घर जाता था तो उसकी दादी के ही पास बैठने की कोशिश करता था। टोपी को इफ़्फ़न की दादी का हर एक शब्द शक़्कर की तरह मिठ्ठा, पक्के आम के रस को सूखाकर बनाई गई मोटी परत की तरह मज़ेदार, तिल के बने व्यंजनों की तरह अच्छा लगता था। इफ़्फ़न की दादी के देहांत के बाद टोपी के लिए इफ़्फ़न का पूरा घर खली हो चूका था। उसका इफ़्फ़न की दादी से बहुत गहरा सम्बन्ध बन गया था। दोनों अपने घरों में अजनबी और भरे घर में अकेले थे क्योंकि दोनों को ही उनके घर में कोई समझने वाला नहीं था। दोनों ने एक दूसरे का अकेलापन दूर कर दिया था। 

‘हरिहर काका’ कहानी में भी लेखक का हरिहर काका के प्रति जो प्यार था वह लेखक का उनके व्यावहार के और उनके विचारों के कारण था और उसके दो कारण थे। पहला कारण था कि हरिहर काका लेखक के पड़ोसी थे और दूसरा कारण लेखक को उनकी माँ ने बताया था कि हरिहर काका लेखक को बचपन से ही बहुत ज्यादा प्यार करते थे। जब लेखक व्यस्क हुआ तो उसकी पहली दोस्ती भी हरिहर काका के साथ ही हुई थी। 

 

प्रश्न 3 – ‘टोपी शुक्ला का दोस्त इफ्फन था लेकिन उसकी घनिष्ठ दोस्ती इफ्फन की दादी से भी थी।’ इस कथन को ‘टोपी शुक्ला’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर – दोनों परिवार समाज के बनाए नियमों के अनुसार एक दूसरे से नफ़रत करते हैं परन्तु दोनों परिवार के दो बच्चों में गहरी दोस्ती हो जाती है। ये दोस्ती दिखाती है कि बच्चों की भावनाएँ किसी भेद को नहीं मानती। दोनों में इतनी घनिष्ठ मित्रता थी कि टोपी मार खाने के बाद भी इफ़्फ़न के घर जाने से नहीं कतराता था। इफ़्फ़न के घर आने से टोपी की मित्रता इफ़्फ़न की दादी से भी हो गई थी। इनका सम्बन्ध आत्मीय था। टोपी को इफ़्फ़न की दादी के साथ बैठना पसंद था, उसे उनकी बातें बहुत अच्छी लगती थी। उसका इफ़्फ़न की दादी से बहुत गहरा सम्बन्ध बन गया था। दोनों अपने घरों में अजनबी और भरे घर में अकेले थे क्योंकि दोनों को ही उनके घर में कोई समझने वाला नहीं था। दोनों ने एक दूसरे का अकेलापन दूर कर दिया था। इफ़्फ़न की दादी के देहांत से टोपी को बहुत बुरा लगा था। यहाँ तक कि वह चाहता था कि इफ़्फ़न की दादी के बदले उसकी दादी का देहांत होना चाहिए था। 

 

प्रश्न 4 – ‘टोपी शुक्ला’ पाठ के आधार पर लिखिए कि टोपी शुक्ला के बार-बार फेल होने के पीछे क्या कारण रहे होंगे। शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए अपने सुझाव भी दीजिए।

उत्तर – दसवीं कक्षा में पहुँचने के लिए टोपी को बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ी थी। दो साल तो टोपी फेल ही हुआ था। वह पढ़ाई में बहुत तेज़ था परन्तु उसे कोई पढ़ने ही नहीं देता था। जब भी टोपी पढ़ाई करने बैठता था तो कभी उसके बड़े भाई मुन्नी बाबू को कोई काम याद आ जाता था या उसकी माँ को कोई ऐसी चीज़ मँगवानी पड़ जाती जो नौकरों से नहीं मँगवाई जा सकती थी, अगर ये सारी चीज़े न होती तो कभी उसका छोटा भाई भैरव उसकी कापियों के पन्नों को फाड़ कर उनके हवाई जहाज़ बना कर उड़ाने लग जाता। यह तो थी पहले साल की बात। दूसरे साल उसे टाइफ़ाइड हो गया था। जिसके कारण वह पढ़ाई नहीं कर पाया और दूसरी साल भी फेल हो गया। लगातार दो वर्ष फेल होने पर मिलने वाले ताने टोपी को बहुत बुरे लगते थे और उसने उसी समय कसम खाई कि तीसरी साल उसे टाइफ़ाइड हो या टाइफ़ाइड का बाप, वह पास होकर ही दिखाएगा। परन्तु साल के बीच में ही चुनाव आ गए। टोपी के पिता चुनाव लड़ने के लिए खड़े हो गए। अब जिस घर में कोई चुनाव के लिए खड़ा हो, उस घर में कोई पढ़-लिख कैसे सकता है? जैसा वातावरण टोपी के घर में बना हुआ था, ऐसे वातावरण में कोई कैसे पढ़ सकता था? इसलिए टोपी का पास हो जाना ही बहुत था। 

हमारे अनुसार शिक्षा व्यवस्था में  कुछ परिवर्तन किए जा सकते हैं जिससे बच्चों को मानसिक तनाव से न गुजरना पड़े –

  • कक्षा में कमजोर विद्यार्थियों के लिए अतिरिक्त कक्षा की व्यवस्था की जा सकती है। 
  • तनाव से गुजरने वाले बच्चों के लिए मनोचिकित्सक को विद्यालय भ्रमण करवाया जा सकता है। 
  • अध्यापकों को भी मनोचिकित्सा की तकनीकों को सिखाया जाना चाहिए। 
  • परीक्षा के दौरान कोई ऐसी गतिविधि नहीं करवानी चाहिए जिससे विद्यार्थियों का मन पढ़ाई से भटके। 

 

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