संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिज़ाज हो गया: धनराज पाठ के पाठ सार, पाठ-व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर

 

Dhanraj Summary Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 book Chapter 18 Summary of Sangharsh Ke Karan Main Tunukmizaz Ho Gya: Dhanraj and detailed explanation of the lesson along with meanings of difficult words. Here is the  complete explanation of the lesson, along with all the exercises, Questions and Answers are given at the back of the lesson. Take Free Online MCQs Test for Class 7.

 

इस लेख में हम हिंदी कक्षा 7 ” वसंत भाग – 2 ” के पाठ – 18 “संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिज़ाज हो गया: धनराज ” पाठ के पाठ सार , पाठ व्याख्या , कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर , इन सभी के बारे में चर्चा करेंगे –

 

संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिज़ाज हो गया: धनराज 

 

Class 7 Hindi Lesson Explanation notes

 

संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिज़ाज हो गया: धनराज पाठ प्रवेश 

हॉकी एक ऐसा खेल है जिसमें दो टीमें लकड़ी या कठोर धातु या फाईबर से बनी विशेष लाठी (स्टिक) की सहायता से रबर या कठोर प्लास्टिक की गेंद को अपनी विरोधी टीम के नेट या गोल में डालने की कोशिश करती हैं। हॉकी का प्रारम्भ वर्ष 2010 से 4,000 वर्ष पूर्व मिस्र में हुआ था। इसके बाद बहुत से देशों में इसका आगमन हुआ पर उचित स्थान न मिल सका। भारत में इसका आरम्भ 150 वर्षों से पहले हुआ था। 11 खिलाड़ियों के दो विरोधी दलों के बीच मैदान में खेले जाने वाले इस खेल में प्रत्येक खिलाड़ी मारक बिंदु पर मुड़ी हुई एक छड़ी (स्टिक) का इस्तेमाल एक छोटी व कठोर गेंद को विरोधी दल के गोल में मारने के लिए करता है। बर्फ़ में खेले जाने वाले इसी तरह के एक खेल आईस हॉकी से भिन्नता दर्शाने के लिए इसे मैदानी हॉकी कहते हैं।

हॉकी के विस्तार का श्रेय , विशेषकर भारत और सुदूर पूर्व में , ब्रिटेन की सेना को है। अनेक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के आह्वान के फलस्वरूप 1971 में विश्व कप की शुरुआत हुई। हॉकी की अन्य मुख्य अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं हैं – ओलम्पिक, एशियन कप, एशियाई खेल, यूरोपियन कप और पैन – अमेरिकी खेल।

प्रस्तुत पाठ में हॉकी के मशहूर खिलाड़ी धनराज पिल्लै का एक इंटरव्यू जो विनीता पाण्डेय द्वारा लिया गया था , जब वे पैतींस वर्ष के हो गए थे। उनके उसी इंटरव्यू का एक छोटा सा भाग , जिसे ठीक करके प्रकाशन के योग्य बनाया गया था उसका वर्णन किया गया है। इस पाठ में वर्णित प्रश्नों से हमें मशहूर खिलाड़ी धनराज पिल्लै जी के व्यक्तित्व और उनके जीवन के संघर्षों का पता चलता है।


संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिज़ाज हो गया: धनराज पाठ सार

Dhanraj

हॉकी के मशहूर खिलाड़ी धनराज पिल्लै जब पैतींस वर्ष के थे , उस समय एक इंटरव्यू  जो विनीता पाण्डेय द्वारा लिया गया था। उनके उसी इंटरव्यू का एक छोटा सा भाग, जिसे ठीक करके प्रकाशन के योग्य बनाया गया था उसका वर्णन इस पाठ में किया गया है। इस पाठ में वर्णित प्रश्नों से हमें मशहूर खिलाड़ी धनराज पिल्लै जी के व्यक्तित्व और उनके जीवन के संघर्षों का पता चलता है। विनीता जी धनराज जी से पूछती हैं कि गाँव की तंग गलियों से लेकर मुंबई के हीरानंदानी पवई कॉम्प्लेक्स तक के उनके सफ़र के बारे में वैसे तो सभी जानते हैं कि बहुत लंबा और मुश्किलों से भरा रहा है फिर भी वे उन्हें उस सफ़र के बारे में कुछ बताएँ। धनराज जी अपने सफ़र के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उनका बचपन बहुत ही मुश्किलों से भरा रहा था। वे बहुत गरीब थे। उनके दो मेरे बड़े भाई थे , जो हॉकी खेलते थे। उन्हीं को देखते हुए धनराज जी को भी हॉकी का शौक चढ़ा। परन्तु उस समय के हालात ऐसे थे कि धनराज जी की आर्थिक स्थिति उन्हें हॉकी – स्टिक खरीदने की इज़ाज़त नहीं देती थी अर्थात गरीबी के कारण उस समय वे हॉकी – स्टिक नहीं खरीद सकते थे। इसलिए वे अपने साथियों की हॉकी – स्टिक को उनसे उधार माँगकर अपना काम चलाते थे। परन्तु वह भी आसान नहीं था क्योंकि अपने साथियों की हॉकी – स्टिक उन्हें तभी मिल पाती थी , जब वे अपना खेल – खेल चुके होते थे। उन्हें उनकी पहली हॉकी – स्टिक तब मिली , जब उनके बड़े भाई को हॉकी खेलने के लिए भारतीय कैंप के लिए चुन लिया गया। धनराज जी अपनी जूनियर राष्ट्रीय हॉकी की शुरुआत के बारे में बताते हैं कि उन्होंने अपनी जूनियर राष्ट्रीय हॉकी सन् 1985 में मणिपुर में खेली थी।  धनराज जी कहते हैं कि 1986 में उन्हें सीनियर टीम में डाल दिया गया और वे अपना बोरिया – बिस्तरा बाँधकर मुंबई चले आए। उस साल उन्होंने और उनके बड़े भाई रमेश ने मुंबई लीग में खेल का बहुत अच्छा प्रदशन किया वहाँ उन्होंने खूब धूम मचाई थी। मुंबई लीग में अच्छे प्रदर्शन के कारण धनराज जी के अंदर एक आशा जागी कि उन्हें ओलंपिक ( 1988 ) के लिए नेशनल कैंप से बुलावा ज़रूर आएगा , पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। उनका नाम तो उस समय 57 खिलाड़ियों की लिस्ट में भी नहीं आया था। उस समय उन्हें बहुत निराशा महसूस हुई थी। धनराज जी के अच्छे प्रदर्शन और मेहनत के कारण एक साल के बाद ही ऑलविन एशिया कप के कैम्प के लिए धनराज जी को चुन लिया गया। धनराज पिल्लै जी की निजी विशेषता को प्रस्तुत करते हुए विनीता पाण्डेय ने लिखा है कि उनकी विशेषता यह है कि वे आपको कभी हँसाते है , कभी रुलाते है , कभी उनकी बातों से आपका मन आश्चर्य से भर सकता है , तो कभी आपको उनकी बातों से क्रोध आ सकता है परन्तु उनके व्यक्तित्व के कारण वह  क्रोध मन – ही – मन रह जाता है। वे ऐसी ज़मीन से उठकर आए हैं जिसमें कोई बनावटीपन नहीं है और वे उस ज़मीन से उठ कर आसमान का सितारा बन कर उभरे हैं। विनीता जी धनराज जी से उनके विद्यार्थी जीवन और उनके स्कूल के दिनों की उनकी यादों के बारे में प्रश्न करती हैं। धनराज जी बड़ी सरलता से जवाब देते हैं कि वे पढ़ने में बिलकुल भी अच्छे नहीं थे। पढ़ाई में अच्छा न होने के कारण धनराज जी विनीता जी से कहते हैं कि अगर वे हॉकी के खिलाड़ी न होते तो शायद उन्हें एक चपरासी की नौकरी भी नहीं मिलती। विनीता जी उनसे एक और प्रश्न करती हुई पूछती हैं कि वे  इतने तुनुकमिशाज क्यों हैं ? और कभी – कभी वे आक्रामक भी हो जाते हैं ! इन प्रश्नों के उत्तर देते हुए धनराज जी कहते हैं कि इन प्रश्नों का संबंध उनके बचपन से जुड़ा हुआ है। वे हमेशा से ही अपने आपको बहुत असुरक्षित महसूस करते रहे थे। धनराज जी ने अपनी माँ को उनके पालन – पोषण करने में किए गए संघर्ष को करते हुए देखा है। वे अपनी तुनुकमिशाजी के पीछे कई वजहें बताते हैं। उनके मन में जो आता है वे सीधे – सीधे कह डालते हैं और इसी के कारण बाद को कई बार उन्हें अपनी बेपाकि पर पछताना भी पड़ता है। अपने गुस्से के बारे में वे कहते हैं कि उन से उनका गुस्सा रोका नहीं जाता। धनराज जी के अंदर अगर कुछ बुरी आदते या उनका व्यवहार अगर कहीं थोड़ा कठोर है भी , फिर भी उनके अंदर कई ऐसी आदते हैं जो उनको  बेहतरीन खिलाड़ी के साथ – साथ एक बेहतरीन इंसान भी बनाती है। विनीता जी धनराज जी से पूछती हैं कि उनके लिए उनका परिवार क्या महत्त्व रखता है ? धनराज जी बड़े प्रेम से उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि उन्हें उनके जीवन में सबसे अधिक प्रेरणा उनकी माँ से मिली है अर्थात वे अपने पुरे जीवन में सबसे अधिक प्रभावित अपनी माँ से हुए हैं। धनराज जी अपनी माँ से बहुत प्यार करते हैं और साथ ही परवाह भी क्योंकि विनीता जी से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि वे चाहे  खेल के दौरान भारत में रहें  या विदेश में , रोज़ रात में सोने से पहले अपनी माँ से ज़रूर बात करते हैं। उनकी माँ ने उन्हें कभी भी अपनी सफलता पर घमंड न करने की सीख दी है। अगला प्रश्न पूछती हुई विनीता जी कहती हैं कि उन्होंने ने सबसे पहले कृत्रिम घास यानि एस्ट्रो टर्फ़ पर हॉकी कब खेली थी ? धनराज जी बताते हैं कि  उन्होंने सबसे पहले कृत्रिम घास तब देखी जब उन्होंने राष्ट्रीय खेलों अर्थात नेशनल्स में भाग लिया था। सोमय्या और जोक्विम कार्वाल्हो ने उन्हें एक कोने में ले जाकर कृत्रिम घास पर खेलने के उपाय बता रहे थे और जब वे धनराज जी को उपाय बताने में लगे हुए थे , तब धनराज जी  झुक – झुककर उस मैदान को छू रहे  थे। क्योंकि उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि विज्ञान इस कदर तरक्की कर सकता है , जिससे कृत्रिम घास तक उगाई जा सकती है। विनीता जी धनराज जी से प्रश्न करती हुई कहती हैं कि हर युवक का एक सपना होता है कि उसके पास एक कार हो। धनराज जी का भी यह सपना रहा होगा तो अपने सपने को पूरा करते हुए उनके पास उनकी अपनी पहली कार कब आई अर्थात धनराज जी ने अपनी पहली कार कब खरीदी ? धनराज जी बताते  हैं कि उनके पास जो पहली कार थी वह एक सेकेंड हैंड अरमाडा थी , जो उन्हें उनके पहले के इम्प्लॉयर ने दी थी। धनराज जी बताते हैं कि उस समय तक वे काफ़ी मशहूर खिलाड़ी बन चुके थे। परन्तु यहाँ पर धनराज जी एक बात साफ कर देना चाहते थे कि यह कोई ज़रूरी नहीं है कि आपकी प्रसिद्धि साथ में पैसा भी लेकर आए ! कहने का तात्पर्य यह है कि धनराज जी अपनी मेहनत के बलबूते पर मशहूर तो हो गए थे परन्तु इससे उनकी आर्थिक स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वे तब भी मुंबई की लोकल ट्रेनों और बसों में सफ़र किया करते थे। क्योंकि उस समय भी टैक्सी में चढ़ना उनकी आर्थिक स्थिति के बाहर था। उस समय वे जो भी थोड़ा बहुत कमाते थे , उससे सबसे पहले अपना परिवार चलाना पड़ता था। उसके बाद उन्होंने धीरे – धीरे पैसे जमा करके अपनी बहन की शादी की और अपनी माँ के लिए हर महीने पुणे कुछ पैसा भेजना शुरू कर दिया था ताकि उन्हें कोई तकलीफ न उठानी पड़े। जस समय उनका यह इंटरव्यू चल रहा था उस समय की बात करते हुए धनराज जी बताते हैं कि आज उनके पास एक फ़ोर्ड आइकॉन है , जिसे उन्होंने सन्  2000 में खरीदा था। यहाँ पर धनराज जी यह भी बताते हैं कि उनकी यह कार किसी कॉरपोरेट हाउस का दिया हुआ तोहफ़ा नहीं है , बल्कि उनकी अपनी  मेहनत से जोड़े रुपयों से खरीदी हुई कार है। विनीता जी उनसे यह भी पूछती हैं कि उनकी सफ़लता का उनके लिए क्या महत्त्व है ? और हॉकी को उन्होंने इतना कुछ दिया , इसके बदले उनको क्या मिला ? धनराज जी बताते हैं कि उन्हें कुछ रुपये ईनाम में मिले थे , मगर आज वर्तमान में खिलाड़ियों को जितना मिलता है , उसके मुकाबले में पहले के खिलाड़ियों को कुछ नहीं मिलता था। उनकी पहली ज़िम्मेदारी थी परिवार में आर्थिक तंगी को दूर करना और उन सबको एक बेहतर ज़िदगी देना क्योंकि उनके परिवार ने अपना अधिकतर समय गरीबी और चीज़ों की कमी में ही गुजार दिया था। धनराज जी बताते हैं कि विदेश में जाकर खेलने से उन्हें जो कमाई हुई , उससे उन्होंने 1994 में पुणे के भाऊ पाटिल रोड पर दो बेडरूम का एक छोटा सा फ्लैट खरीदा था। घर छोटा ज़रूर था परन्तु उनके पुरे परिवार के लिए काफी था। उसके बाद 1999 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें पवई में एक फ्लैट दिया। उस घर के बारे में धनराज जी कहते हैं कि वह ऐसा घर है जो वे अपनी आर्थिक क्षमता से कभी नहीं खरीद सकते थे। विनीता जी उनसे यह भी पूछती हैं कि सेलेब्रिटीज़ के साथ एक ही मंच पर बैठना कैसा लगता है ? इस अनुभव के बारे में धनराज जी बताते हैं कि उन्हें सेलेब्रिटीज़ के साथ एक ही मंच पर बैठना बहुत अच्छा महसूस कराता है। जब वे राष्ट्रपति से मिले तब उन्हें यह महसूस हुआ कि अब वे कितने खास हैं। धनराज जी यह भी कहते हैं कि एक हॉकी ही है जिसके चलते उन्हें हर जगह इतना सम्मान मिला।


संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिज़ाज हो गया: धनराज पाठ व्याख्या

Dhanraj

हॉकी के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी धनराज पिल्लै जब पैतींस वर्ष के हो गए , उनका एक साक्षात्कार विनीता पाण्डेय ने लिया था। इस साक्षात्कार का संपादित अंश यहाँ दिया जा रहा है।

शब्दार्थ –
सुप्रसिद्ध
–  विख्यात , मशहूर , जिसे बहुत से लोग जानते हों
साक्षात्कार – साक्षात्कार में दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी विशिष्टव निश्चित उद्देश्य को सामने रखकर आमने-सामने की परिस्थिति में बातचीत करते हैं , ( इंटरव्यू ) , आँखों के सामने उपस्थित होना , भेंट , मुलाकात
संपादित – जिसे पूरा किया गया हो ( काम ) , जिसे ठीक करके प्रकाशन के योग्य बनाया गया हो ( समाचारपत्र , लेख आदि )
अंश – भाग , खंड , हिस्सा , छोटा टुकड़ा

नोट – यहाँ पर पाठ किस बारे में है , यह बताया गया है।

व्याख्या –  हॉकी के मशहूर खिलाड़ी धनराज पिल्लै का एक इंटरव्यू  जो विनीता पाण्डेय द्वारा लिया गया था , जब वे पैतींस वर्ष के हो गए थे। उनके उसी इंटरव्यू का एक छोटा सा भाग , जिसे ठीक करके प्रकाशन के योग्य बनाया गया था उसका वर्णन किया गया है।

विनीता – खिड़की , पुणे की तंग गलियों से लेकर मुंबई के हीरानंदानी पवई कॉम्प्लेक्स तक आपका सफ़र बहुत लंबा और कष्टसाध्य रहा है। उस सफ़र के बारे में कुछ बताएँ।

धनराज – बचपन मुश्किलों से भरा रहा। हम बहुत गरीब थे। मेरे दोनों बड़े भाई हॉकी खेलते थे। उन्हीं के चलते मुझे भी उसका शौक हुआ। पर , हॉकी – स्टिक खरीदने तक की हैसियत नहीं थी मेरी। इसलिए अपने साथियों की स्टिक उधार माँगकर काम चलाता था। वह मुझे तभी मिलती , जब वे खेल चुके होते थे। इसके लिए बहुत धीरज के साथ अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता था। मुझे अपनी पहली स्टिक तब मिली , जब मेरे बड़े भाई को भारतीय कैंप के लिए चुन लिया गया। उसने मुझे अपनी पुरानी स्टिक दे दी। वह नयी तो नहीं थी लेकिन मेरे लिए बहुत कीमती थी , क्योंकि वह मेरी अपनी थी।

मैंने अपनी जूनियर राष्ट्रीय हॉकी सन् 1985 में मणिपुर में खेली। तब मैं सिर्फ 16 साल का था – देखने में दुबला – पतला और छोटे बच्चे जैसा चेहरा …। अपनी दुबली कद – काठी के बावजूद मेरा ऐसा दबदबा था कि कोई मुझसे भिड़ने की कोशिश नहीं करता था। मैं बहुत जुझारू था – मैदान में भी और मैदान से बाहर भी। 1986 में मुझे सीनियर टीम में डाल दिया गया और मैं बोरिया – बिस्तरा बाँधकर मुंबई चला आया। उस साल मैंने और मेरे बड़े भाई रमेश ने मुंबई लीग में बेहतरीन खेल खेला – हमने खूब धूम मचाई। इसी के चलते मेरे अंदर एक उम्मीद जागी कि मुझे ओलंपिक ( 1988 ) के लिए नेशनल कैंप से बुलावा ज़रूर आएगा , पर नहीं आया। मेरा नाम 57 खिलाड़ियों की लिस्ट में भी नहीं था। बड़ी मायूसी हुई। मगर एक साल बाद ही ऑलविन एशिया कप के कैम्प के लिए मुझे चुन लिया गया। तब से लेकर आज तक मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

शब्दार्थ
कष्टसाध्य
–  जिसे करना कठिन हो , मुश्किल से होने वाला , श्रमसाध्य
हैसियत – आर्थिक सामर्थ्य , सामाजिक मान – मर्यादा , प्रतिष्ठा , इज़्ज़त , रुतबा
धीरज –  धैर्य , संतोष , सब्र , दृढ़ता , मन की स्थिरता
कद – काठी – शरीर की बनावट या संरचना , शरीर का आकार – प्रकार
दबदबा –  प्रभाव , आतंक , डर , रोब
भिड़ना – लड़ाई – झगड़ा कराना
जुझारू – संघर्षशील , जूझने वाला , लड़ने वाला , योद्धा , वीर , बहादुर
बेहतरीन –  बहुत अच्छा , उत्तम , नेक
उम्मीद –  आशा , अपेक्षा , आसरा , भरोसा , सहारा
मायूसी –  मायूस होने की अवस्था या भाव , निराशा , उत्साहहीनता , नाउम्मीदी

नोट – इस गद्यांश में विनीता जी द्वारा धनराज जी से उनके पुणे की तंग गलियों से लेकर मुंबई के हीरानंदानी पवई कॉम्प्लेक्स तक के सफ़र के बारे में पूछ रही हैं और धनराज जी अपने सफ़र के बारे में बता रहे हैं।

व्याख्या – विनीता जी धनराज जी से पूछती हैं कि उनके गाँव ‘ खिड़की ‘ से जो कि पुणे में है वहाँ की तंग गलियों से लेकर मुंबई के हीरानंदानी पवई कॉम्प्लेक्स तक के उनके सफ़र के बारे में वैसे तो सभी जानते हैं कि बहुत लंबा और मुश्किलों से भरा रहा है फिर भी वे उन्हें उस सफ़र के बारे में कुछ बताएँ। धनराज जी अपने सफ़र के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उनका बचपन बहुत ही मुश्किलों से भरा रहा था। वे बहुत गरीब थे। उनके दो मेरे बड़े भाई थे , जो हॉकी खेलते थे। उन्हीं को देखते हुए धनराज जी को भी हॉकी का शौक चढ़ा। परन्तु उस समय के हालात ऐसे थे कि धनराज जी की आर्थिक स्थिति उन्हें हॉकी – स्टिक खरीदने की इज़ाज़त नहीं देती थी अर्थात गरीबी के कारण उस समय वे हॉकी – स्टिक नहीं खरीद सकते थे। इसलिए वे अपने साथियों की हॉकी – स्टिक को उनसे उधार माँगकर अपना काम चलाते थे। परन्तु वह भी आसान नहीं था क्योंकि अपने साथियों की हॉकी – स्टिक उन्हें तभी मिल पाती थी , जब वे अपना खेल – खेल चुके होते थे। यह ऐसी स्थिति थी जिसके लिए बहुत ही सब्र के साथ अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता था। धनराज जी बताते हैं कि उन्हें उनकी पहली हॉकी – स्टिक तब मिली , जब उनके बड़े भाई को हॉकी खेलने के लिए भारतीय कैंप के लिए चुन लिया गया। तब धनराज जी के बड़े भाई ने उनकी पुरानी हॉकी – स्टिक धनराज जी को दे दी। बड़े भाई द्वारा दी गई हॉकी – स्टिक नयी तो नहीं थी लेकिन धनराज जी के लिए वह बहुत कीमती थी , क्योंकि वह अब उनकी अपनी हॉकी – स्टिक थी। धनराज जी अपनी जूनियर राष्ट्रीय हॉकी की शुरुआत के बारे में बताते हैं कि उन्होंने अपनी जूनियर राष्ट्रीय हॉकी सन् 1985 में मणिपुर में खेली थी। उस समय वे केवल 16 साल का थे। और अपने शरीर की बनावट के बारे में वे बताते हैं कि उस समय वे देखने में बहुत दुबले – पतले थे और उनका चेहरा भी किसी छोटे बच्चे जैसा लगता था। लेकिन वे ये भी बताते हैं कि भले ही उनके शरीर की बनावट दुबली – पतली थी परन्तु फिर भी उनका ऐसा प्रभाव था कि कोई भी उनसे लड़ाई – झगड़ा करने की कोशिश नहीं करता था। अपने बारे में धनराज जी ये भी कहते हैं कि वे बहुत संघर्ष शील थे , चाहे मैदान की बात की जाए या मैदान से बाहर की। धनराज जी कहते हैं कि 1986 में उन्हें सीनियर टीम में डाल दिया गया और वे अपना बोरिया – बिस्तरा बाँधकर मुंबई चले आए। उस साल उन्होंने और उनके बड़े भाई रमेश ने मुंबई लीग में खेल का बहुत अच्छा प्रदशन किया वहाँ उन्होंने खूब धूम मचाई थी। मुंबई लीग में अच्छे प्रदर्शन के कारण धनराज जी के अंदर एक आशा जागी कि उन्हें ओलंपिक (1988) के लिए नेशनल कैंप से बुलावा ज़रूर आएगा, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। उनका नाम तो उस समय 57 खिलाड़ियों की लिस्ट में भी नहीं आया था। उस समय उन्हें बहुत निराशा महसूस हुई थी। धनराज जी के अच्छे प्रदर्शन और मेहनत के कारण एक साल के बाद ही ऑलविन एशिया कप के कैम्प के लिए धनराज जी को चुन लिया गया। धनराज जी कहते हैं कि तब से लेकर आज तक उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अर्थात तब से लेकर धनराज जी बस आगे ही बढ़ते चले गए।

( धनराज पिल्लै के व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए विनीता पाण्डेय ने लिखा है- ‘ वह आपको कभी हँसाता है , कभी रुलाता है , कभी विस्मय से भर देता है  , तो कभी खीझ से भी। उसके व्यक्तित्व में कई रंग हैं और कई भाव। उसने ठेठ ज़मीन से उठकर आसमान का सितारा बनने की यात्रा तय की है। ’ )

शब्दार्थ
व्यक्तित्व –  पृथक अस्तित्व , निजी विशेषता
विस्मय –  आश्चर्य , ताज़्ज़ुब , अचंभा
खीझ – वह क्रोध जो मन – ही – मन रहे , झुँझलाहट , कुढ़न , भड़ास , खुंदक
ठेठ – जिसमें बनावटीपन न हो , शुद्ध , निपट , देशी

नोट – यहाँ विनीता पाण्डेय जी ने जो धनराज जी के इंटरव्यू के बाद उनके बारे में ज्ञात किया उसको संक्षिप में बताया है।

व्याख्या – धनराज पिल्लै जी की निजी विशेषता को प्रस्तुत करते हुए विनीता पाण्डेय ने लिखा है कि उनकी विशेषता यह है कि वे आपको कभी हँसाते है , कभी रुलाते है , कभी उनकी बातों से आपका मन आश्चर्य से भर सकता है , तो कभी आपको उनकी बातों से क्रोध आ सकता है परन्तु उनके व्यक्तित्व के कारण वह  क्रोध मन – ही – मन रह जाता है। उसके व्यक्तित्व में कई रंग हैं और कई भाव हैं जिन्हें कोई आम इंसान नहीं समझ सकता। वे ऐसी ज़मीन से उठकर आए हैं जिसमें कोई बनावटीपन नहीं है और वे उस ज़मीन से उठ कर आसमान का सितारा बन कर उभरे हैं।

विनीता – आपका विद्यार्थी जीवन कैसा रहा ? अपने स्कूल के दिनों से आपकी किस प्रकार की यादें जुड़ी हैं ?

धनराज – मैं पढ़ने में एकदम फिसड्डी था। किसी तरह दसवीं तक पहुँचा , मगर उसके आगे तो मामला बहुत कठिन था। एक बात कहूँ – अगर मैं हॉकी खिलाड़ी न होता तो शायद एक चपरासी की नौकरी भी मुझे न मिलती। आज मैं बैचलर ऑफ साइंस या आर्ट्स भले ही न होऊँ पर गर्व से कह सकता हूँ कि मैं बैचलर ऑफ हॉकी हूँ। ( हँसते हुए ) … और मेरी शादी के लिए आप मुझे मास्टर ऑफ हॉकी कह सकते हैं।

विनीता – आप इतने तुनुकमिशाज क्यों हैं ? कभी – कभी आप आक्रामक भी हो जाते हैं !

धनराज –  इस बात का संबंध मेरे बचपन से जुड़ा हुआ है। मैं हमेशा से ही अपने आपको बहुत असुरक्षित महसूस करता रहा। मैंने अपनी माँ को देखा है कि उन्हें हमारे पालन – पोषण में कितना संघर्ष करना पड़ा है। मेरी तुनुकमिशाजी के पीछे कई वजहें हैं। लेकिन मैं बिना लाग – लपेट वाला आदमी हूँ। मन में जो आता है , सीधे – सीधे कह डालता हूँ और बाद को कई बार पछताना भी पड़ता है। मुझसे अपना गुस्सा रोका नहीं जाता। दूसरे लोगों को भी मुझे उकसाने में मज़ा आता है। मुझे जिंदगी में हर छोटी – बड़ी चीज़ के लिए जूझना पड़ा , जिससे मैं चिड़चिड़ा हो गया हूँ। साथ – ही – साथ मैं बहुत भावुक इनसान भी हूँ। मैं किसी को तकलीफ़ में नहीं देख सकता। मैं अपने दोस्तों और अपने परिवार की बहुत कद्र करता हूँ। मुझे अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँगने में कोई शरम महसूस नहीं होती।

शब्दार्थ
फिसड्डी – किसी काम में पिछड़ा हुआ , प्रतियोगिता या प्रयत्न आदि में सबसे पीछे रह जाने वाला , अकुशल ,  निकम्मा
तुनुकमिशाज – मुँह फट
आक्रामक –  आक्रमण करने वाला , आक्रमण करने की मुद्रा वाला
जूझना – डटकर मुकाबला करना , संघर्ष करना , विषम परिस्थितियों का सामना करना , ताकत लगाकर कुछ करने की कोशिश करना
कद्र – गुण की परख , आदर , आदर – सत्कार , इज़्ज़त , प्रतिष्ठा , सम्मान

नोट – इस गद्यांश में विनीता जी धनराज जी से उनके विद्यार्थी जीवन और उससे जुडी यादों के बारे में पूछ रही हैं और साथ – ही – साथ वे उनके तुनुकमिशाज और आक्रामक होने का कारण भी पूछ रही हैं। जिसके जवाब धनराज जी बड़े ही सरल और बिना किसी बनावट के देते हैं।

व्याख्या – विनीता जी धनराज जी से उनके विद्यार्थी जीवन और उनके स्कूल के दिनों की उनकी यादों के बारे में प्रश्न करती हैं कि उनके स्कूल की कौन –  कौन सी यादें उनके साथ आज भी हैं। धनराज जी बड़ी सरलता से जवाब देते हैं कि वे पढ़ने में बिलकुल भी अच्छे नहीं थे। वे बड़ी मुश्किल से किसी तरह दसवीं तक पहुँच गए थे , मगर उसके आगे की पढ़ाई उन्हें नामुमकिन लगी। कहने का तात्पर्य यह है कि धनराज जी पढ़ाई में बहुत कमजोर थे। पढ़ाई में अच्छा न होने के कारण धनराज जी विनीता जी से कहते हैं कि अगर वे हॉकी के खिलाड़ी न होते तो शायद उन्हें एक चपरासी की नौकरी भी नहीं मिलती। आज उनके पास  बैचलर ऑफ साइंस या आर्ट्स की डिग्रियाँ भले ही नहीं हैं परन्तु वे आज गर्व से कह सकते हैं कि वे बैचलर ऑफ हॉकी हैं। इसी के साथ मज़ाक करते हुए तथा  हँसते हुए वे विनीता जी से कहते हैं कि उनकी शादी के लिए उनकी पढ़ाई के बारे में पूछने पर वे उन्हें मास्टर ऑफ हॉकी कह सकती हैं। विनीता जी उनसे एक और प्रश्न करती हुई पूछती हैं कि वे  इतने तुनुकमिशाज क्यों हैं ? और कभी – कभी वे आक्रामक भी हो जाते हैं ! इन प्रश्नों के उत्तर देते हुए धनराज जी कहते हैं कि इन प्रश्नों का संबंध उनके बचपन से जुड़ा हुआ है। वे हमेशा से ही अपने आपको बहुत असुरक्षित महसूस करते रहे थे। उन्होंने उनकी माँ को देखा है कि किस तरह उन्होंने उनका और उनके भाइयों का पालन – पोषण किया अर्थात धनराज जी ने अपनी माँ को उनके पालन – पोषण करने में किए गए संघर्ष को करते हुए देखा है। वे अपनी तुनुकमिशाजी के पीछे कई वजहें बताते हैं। लेकिन वे ये भी कहते हैं कि वे  बिना किसी मिलावट वाले आदमी हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि उनके मन में जो आता है वे सीधे – सीधे कह डालते हैं और इसी के कारण बाद को कई बार उन्हें अपनी बेपाकि पर पछताना भी पड़ता है। अपने गुस्से के बारे में वे कहते हैं कि उन से उनका गुस्सा रोका नहीं जाता। जिस के कारण दूसरे लोगों को भी उन्हें  उकसाने में मज़ा आता है। धनराज जी कहते हैं कि उन्हें अपनी जिंदगी में उनकी जरुरत की हर छोटी – बड़ी चीज़ों के लिए संघर्ष करना पड़ा , जिसका परिणाम यह हुआ की वे चिड़चिड़े हो गए। साथ – ही – साथ वे बहुत भावुक इनसान भी हैं। वे किसी को भी तकलीफ़ में नहीं देख सकते। वे उनके दोस्तों और उनके परिवार का बहुत आदर – सत्कार करते हैं। और अगर उनसे कोई गलती भी हो जाती है तो उन्हें उनकी गलतियों के लिए माफ़ी माँगने में भी कोई शरम महसूस नहीं होती। कहने का तात्पर्य यह है कि धनराज जी के अंदर अगर कुछ बुरी आदते या उनका व्यवहार अगर कहीं थोड़ा कठोर है भी , फिर भी उनके अंदर कई ऐसी आदते हैं जो उनको  बेहतरीन खिलाड़ी के साथ – साथ एक बेहतरीन इंसान भी बनाती है।

विनीता – आपके परिवार की आपके लिए क्या अहमियत है ?

धनराज – सबसे अधिक प्रेरणा मुझे अपनी माँ से मिली। उन्होंने हम सब भाई – बहनों में अच्छे संस्कार डालने की कोशिश की। मैं उनके सबसे नज़दीक हूँ। मैं चाहे भारत में रहूँ या विदेश में , रोज़ रात में सोने से पहले माँ से ज़रूर बात करता हूँ। मेरी माँ ने मुझे अपनी प्रसिद्धि को विनम्रता के साथ सँभालने की सीख दी है। मेरी सबसे बड़ी भाभी कविता भी मेरे लिए माँ की तरह हैं और वह भी मेरे लिए प्रेरणा – स्त्रोत रही हैं।

विनीता – आपने सबसे पहले कृत्रिम घास ( एस्ट्रो टर्फ़ ) पर हॉकी कब खेली ?

धनराज – मैंने सबसे पहले कृत्रिम घास तब देखी जब राष्ट्रीय खेलों ( नेशनल्स ) में भाग लेने 1988 में नयी दिल्ली आया। मुझे याद है कि किस तरह सोमय्या और जोक्विम कार्वाल्हो मुझे एक कोने में ले जाकर कृत्रिम घास पर खेलने के गुर बता रहे थे। और जब वे बताने में लगे हुए थे , मैं झुक – झुककर उस मैदान को छू रहा था। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि विज्ञान इस कदर तरक्की कर सकता है , जिससे कृत्रिम घास तक उगाई जा सके !

शब्दार्थ
अहमियत – महत्व , गंभीरता , वजनदारी
प्रसिद्धि – प्रसिद्ध होने की अवस्था या भाव , शोहरत , ख्याति , सफलता
विनम्रता – विनम्र होने की अवस्था या भाव , शिष्टता , सुशीलता , शालीनता
कृत्रिम – जो प्राकृतिक न हो , मानव – निर्मित , आर्टिफ़िशल , नकली , बनावटी , दिखावटी
गुर – किसी काम को करने की युक्ति , तरकीब , उपाय , मूलमंत्र

नोट – इस गद्यांश में विनीता जी धनराज जी से उनके लिए उनके परिवार के महत्त्व और कृत्रिम घास पर उनके पहले हॉकी मैच के बारे में पूछ रहीं हैं।

व्याख्या – विनीता जी धनराज जी से पूछती हैं कि उनके लिए उनका परिवार क्या महत्त्व रखता है ? धनराज जी बड़े प्रेम से उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि उन्हें उनके जीवन में सबसे अधिक प्रेरणा उनकी माँ से मिली है अर्थात वे अपने पुरे जीवन में सबसे अधिक प्रभावित अपनी माँ से हुए हैं। उनकी माँ ने धनराज और उनके सब भाई – बहनों में अच्छे संस्कार डालने की कोशिश की और धनराज जी कहते हैं कि सब भाई – बहनों में से वे ही अपनी माँ के सबसे नज़दीक हैं। धनराज जी अपनी माँ से बहुत प्यार करते हैं और साथ ही परवाह भी क्योंकि विनीता जी से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि वे चाहे  खेल के दौरान भारत में रहें  या विदेश में , रोज़ रात में सोने से पहले अपनी माँ से ज़रूर बात करते हैं। वे बताते हैं कि उनकी माँ ने उन्हें उनकी सफलता को शालीनता के साथ सँभालने की सीख दी है कहने का तात्पर्य यह कि उनकी माँ ने उन्हें कभी भी अपनी सफलता पर घमंड न करने की सीख दी है। अपनी सबसे बड़ी भाभी , जिनका नाम वे कविता बताते हैं , उन्हें भी वे अपनी माँ की तरह ही मानते हैं और बताते हैं कि वे भी उनकी माँ की ही तरह उनके लिए प्रेरणा – स्त्रोत रही हैं। अगला प्रश्न पूछती हुई विनीता जी कहती हैं कि उन्होंने ने सबसे पहले कृत्रिम घास यानि एस्ट्रो टर्फ़ पर हॉकी कब खेली थी ? धनराज जी बताते हैं कि  उन्होंने सबसे पहले कृत्रिम घास तब देखी जब उन्होंने राष्ट्रीय खेलों अर्थात नेशनल्स में भाग लिया था। ये 1988 की बात है और तब धनराज जी नेशनल्स खेलने नयी दिल्ली गए थे। वे अपने अनुभव को साँझा करते हुए कहते हैं कि उन्हें याद है कि किस तरह सोमय्या और जोक्विम कार्वाल्हो ने उन्हें एक कोने में ले जाकर कृत्रिम घास पर खेलने के उपाय बता रहे थे क्योंकि वे जानते थे कि धनराज जी पहली बार कृत्रिम घास पर खेलने जा रहे हैं और कृत्रिम घास पर खेलना प्राकृतिक घास पर खेलने से बहुत अलग होता है। और जब वे धनराज जी को उपाय बताने में लगे हुए थे , तब धनराज जी  झुक – झुककर उस मैदान को छू रहे  थे। क्योंकि उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि विज्ञान इस कदर तरक्की कर सकता है , जिससे कृत्रिम घास तक उगाई जा सकती है।

विनीता – हर युवक का यह सपना होता है कि उसके पास एक कार हो। आपके पास अपनी पहली कार कब आई ?

Dhanrajधनराज – मेरी पहली कार एक सेकेंड हैंड अरमाडा थी , जो मुझे मेरे पहले के इम्प्लॉयर ने दी थी। तब तक मैं काफ़ी नामी खिलाड़ी बन चुका था। मगर यह कोई ज़रूरी नहीं कि शोहरत पैसा साथ लेकर आए ! मैं तब भी मुंबई की लोकल ट्रेनों और बसों में सफ़र करता था। क्योंकि टैक्सी में चढ़ने की हैसियत मुझमें नहीं थी। मुझे याद है , एक बार किसी फ़ोटोग्राफ़र ने एक भीड़ से भरे रेलवे स्टेशन पर मेरी तसवीर खींचकर अगली सुबह अखबार में यह खबर छाप दी कि ‘ हॉकी का सितारा पिल्लै अभी भी मुंबई की लोकल ट्रेनों में सफ़र करता है। ’ उस दिन मैंने महसूस किया कि मैं एक मशहूर चेहरा बन चुका हूँ और मुझे लोकल ट्रेनों में सफ़र करने से बचना चाहिए। लेकिन मैं कर ही क्या सकता था ? मैं जो भी थोड़ा बहुत कमाता , उससे अपना परिवार चलाना पड़ता था। धीरे – धीरे पैसे जमा करके बहन की शादी की और अपनी माँ के लिए हर महीने पुणे पैसा भेजना शुरू किया। आज मेरे पास एक फ़ोर्ड आइकॉन है , जिसे मैंने सन्  2000 में खरीदा था। मगर वह किसी कॉरपोरेट हाउस का दिया हुआ तोहफ़ा नहीं , बल्कि मेरी मेहनत की गाढ़ी कमाई से खरीदी हुई कार है।

विनीता – सफ़लता का आपके लिए क्या महत्त्व है ? हॉकी को आपने इतना कुछ दिया , इसके बदले आपको क्या मिला ?

Dhanrajधनराज – कुछ रुपये ईनाम में मिले थे , मगर आज खिलाड़ियों को जितना मिलता है , उसके मुकाबले में पहले कुछ नहीं मिलता था। मेरी पहली ज़िम्मेदारी थी परिवार में आर्थिक तंगी को दूर करना और उन सबको एक बेहतर ज़िदगी देना। विदेश में जाकर खेलने से जो कमाई हुई , उससे मैंने 1994 में पुणे के भाऊ पाटिल रोड पर दो बेडरूम का एक छोटा सा फ्लैट खरीदा।घर छोटा ज़रूर है पर हम सबके लिए काफी है। 1999 में महाराष्ट्र सरकार ने मुझे पवई में एक फ्लैट दिया। वह ऐसा घर है जिसे खरीदने की मेरी खुद की हैसियत कभी नहीं हो पाती।

विनीता – सेलेब्रिटीज़ के साथ एक ही मंच पर बैठना कैसा लगता है ?

धनराज – बहुत अच्छा ! जब हम राष्ट्रपति से मिले तब यह महसूस हुआ कि हम कितने खास हैं। हॉकी ही है जिसके चलते हर जगह प्रतिष्ठा मिली।

 

शब्दार्थ –
नामी
– नामवाला , प्रतिष्ठित , मशहूर , प्रसिद्ध , यशस्वी
शोहरत –  प्रसिद्धि , ख्याति , व्यापक चर्चा
हैसियत – आर्थिक सामर्थ्य , सामाजिक मान – मर्यादा , प्रतिष्ठा , इज़्ज़त , रुतबा
गाढ़ी कमाई – कड़ी मेहनत से अर्जित धन या संपत्ति
प्रतिष्ठा – मान – मर्यादा , सम्मान , इज़्ज़त

नोट – इस गद्यांश में उस भाग का वर्णन किया गया है जिसमें विनीता जी धनराज जी की पहली कार लेने ,  उनकी सफलता के महत्त्व और उनके सेलेब्रिटीज़ के साथ मंच पर बैठने पर उनके अनुभव पर प्रश्न करती हैं।

व्याख्या – विनीता जी धनराज जी से प्रश्न करती हुई कहती हैं कि हर युवक का एक सपना होता है कि उसके पास एक कार हो। धनराज जी का भी यह सपना रहा होगा तो अपने सपने को पूरा करते हुए उनके पास उनकी अपनी पहली कार कब आई अर्थात धनराज जी ने अपनी पहली कार कब खरीदी ? धनराज जी बताते  हैं कि उनके पास जो पहली कार थी वह एक सेकेंड हैंड अरमाडा थी , जो उन्हें उनके पहले के इम्प्लॉयर ने दी थी। धनराज जी बताते हैं कि उस समय तक वे काफ़ी मशहूर खिलाड़ी बन चुके थे। परन्तु यहाँ पर धनराज जी एक बात साफ कर देना चाहते थे कि यह कोई ज़रूरी नहीं है कि आपकी प्रसिद्धि साथ में पैसा भी लेकर आए ! कहने का तात्पर्य यह है कि धनराज जी अपनी मेहनत के बलबूते पर मशहूर तो हो गए थे परन्तु इससे उनकी आर्थिक स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वे तब भी मुंबई की लोकल ट्रेनों और बसों में सफ़र किया करते थे। क्योंकि उस समय भी टैक्सी में चढ़ना उनकी आर्थिक स्थिति के बाहर था। भूतकाल के एक वाक्य को याद करते हुए वे बताते हैं कि एक बार किसी फ़ोटोग्राफ़र ने एक भीड़ से भरे रेलवे स्टेशन पर उनकी तसवीर खींचकर अगली सुबह अखबार में छाप दी थी और उसके साथ ही यह खबर भी छापी गई कि ‘ हॉकी का सितारा पिल्लै अभी भी मुंबई की लोकल ट्रेनों में सफ़र करता है। ’ उस दिन उन्होंने महसूस किया कि अब वे एक मशहूर चेहरा बन चुके हैं और उन्हें लोकल ट्रेनों में सफ़र करने से अब बचना चाहिए। लेकिन अपनी आर्थिक स्थिति के आगे वे कर ही क्या सकते थे ? उस समय वे जो भी थोड़ा बहुत कमाते थे , उससे सबसे पहले अपना परिवार चलाना पड़ता था। उसके बाद उन्होंने धीरे – धीरे पैसे जमा करके अपनी बहन की शादी की और अपनी माँ के लिए हर महीने पुणे कुछ पैसा भेजना शुरू कर दिया था ताकि उन्हें कोई तकलीफ न उठानी पड़े। जस समय उनका यह इंटरव्यू चल रहा था उस समय की बात करते हुए धनराज जी बताते हैं कि आज उनके पास एक फ़ोर्ड आइकॉन है , जिसे उन्होंने सन्  2000 में खरीदा था। यहाँ पर धनराज जी यह भी बताते हैं कि उनकी यह कार किसी कॉरपोरेट हाउस का दिया हुआ तोहफ़ा नहीं है , बल्कि उनकी अपनी  मेहनत से जोड़े रुपयों से खरीदी हुई कार है। विनीताजी उनसे यह भी पूछती हैं कि उनकी सफ़लता का उनके लिए क्या महत्त्व है ? और हॉकी को उन्होंने इतना कुछ दिया , इसके बदले उनको क्या मिला ? धनराज जी बताते हैं कि उन्हें कुछ रुपये ईनाम में मिले थे , मगर आज वर्तमान में खिलाड़ियों को जितना मिलता है , उसके मुकाबले में पहले के खिलाड़ियों को कुछ नहीं मिलता था। उनकी पहली ज़िम्मेदारी थी परिवार में आर्थिक तंगी को दूर करना और उन सबको एक बेहतर ज़िदगी देना क्योंकि उनके परिवार ने अपना अधिकतर समय गरीबी और चीज़ों की कमी में ही गुजार दिया था। धनराज जी बताते हैं कि विदेश में जाकर खेलने से उन्हें जो कमाई हुई , उससे उन्होंने 1994 में पुणे के भाऊ पाटिल रोड पर दो बेडरूम का एक छोटा सा फ्लैट खरीदा था। घर छोटा ज़रूर था परन्तु उनके पुरे परिवार के लिए काफी था। उसके बाद 1999 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें पवई में एक फ्लैट दिया। उस घर के बारे में धनराज जी कहते हैं कि वह ऐसा घर है जो वे अपनी आर्थिक क्षमता से कभी नहीं खरीद सकते थे। विनीता जी उनसे यह भी पूछती हैं कि सेलेब्रिटीज़ के साथ एक ही मंच पर बैठना कैसा लगता है ? इस अनुभव के बारे में धनराज जी बताते हैं कि उन्हें सेलेब्रिटीज़ के साथ एक ही मंच पर बैठना बहुत अच्छा महसूस कराता है। जब वे राष्ट्रपति से मिले तब उन्हें यह महसूस हुआ कि अब वे कितने खास हैं। धनराज जी यह भी कहते हैं कि एक हॉकी ही है जिसके चलते उन्हें हर जगह इतना सम्मान मिला।


Sangharsh Ke Karan Main Tunukmizaz Ho Gya : Dhanraj Question Answer (संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिज़ाज हो गया: धनराज प्रश्न अभ्यास)

 

प्रश्न 1 – साक्षात्कार पढ़कर आपके मन में धनराज पिल्लै की कैसी छवि उभरती है ? वर्णन कीजिए।

उत्तर – धनराज पिल्लै का साक्षात्कार पढ़कर उनके बारे में यही छवि उभरती है कि वे सीधा – सरल जीवन व्यतीत करने वाले मध्यमवर्गीय परिवार से नाता रखने वाले हैं। वे देखने में बहुत सुंदर नहीं हैं। हॉकी के खेल में इतनी प्रसिद्धि प्राप्त करने का जरा भी अभिमान उनमें नहीं है। आम लोगों की भाँति लोकल ट्रेनों में सफर करने में भी कतराते नहीं। विशेष लोगों से मिलकर बहुत प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। उन्हें माँ से बहुत लगाव है। इतनी प्रसिद्धि पाने पर भी आर्थिक समस्याओं से जूझते रहें। वे आपको कभी हँसाते है , कभी रुलाते है , कभी उनकी बातों से आपका मन आश्चर्य से भर सकता है , तो कभी आपको उनकी बातों से क्रोध आ सकता है परन्तु उनके व्यक्तित्व के कारण वह  क्रोध मन – ही – मन रह जाता है। उसके व्यक्तित्व में कई रंग हैं और कई भाव हैं जिन्हें कोई आम इंसान नहीं समझ सकता। वे ऐसी ज़मीन से उठकर आए हैं जिसमें कोई बनावटीपन नहीं है और वे उस ज़मीन से उठ कर आसमान का सितारा बन कर उभरे हैं। लोग भले ही उनको तुनुकमिज़ाज समझे लेकिन वे बहुत सरल हृदय मनुष्य हैं।

 प्रश्न 2 – धनराज पिल्लै ने जमीन से उठकर आसमान का सितारा बनने तक की यात्रा तय की है। लगभग सौ शब्दों में इस सफ़र का वर्णन कीजिए।

उत्तर – धनराज पिल्लै का बचपन काफ़ी आर्थिक संकटों के बीच गुजरा है। उन्होंने गरीबी को काफ़ी करीब से देखा है। धनराज पिल्लै ने ज़मीन से उठकर आसमान का सितारा बनने तक का सफर तय किया है। उनके पास अपने लिए एक हॉकी स्टिक तक खरीदने के पैसे नहीं थे। शुरुआत में मित्रों से उधार लेकर और बाद में अपने बड़े भाई की पुरानी स्टिक से उन्होंने काम चलाया लेकिन आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई। अंत में मात्र 16 साल की उम्र में उन्हें मणिपुर में 1985 में जूनियर राष्ट्रीय हॉकी खेलने का मौका मिला। इसके बाद इन्हें सन् 1986 में सीनियर टीम में स्थान मिला। उस वर्ष अपने बड़े भाई के साथ मिलकर उन्होंने मुंबई लीग में अपने बेहतरीन खेल से खूब धूम मचाई। मुंबई लीग में अच्छे प्रदर्शन के कारण धनराज जी के अंदर एक आशा जागी कि उन्हें ओलंपिक ( 1988 ) के लिए नेशनल कैंप से बुलावा ज़रूर आएगा , पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। उनका नाम तो उस समय 57 खिलाड़ियों की लिस्ट में भी नहीं आया था। उस समय उन्हें बहुत निराशा महसूस हुई थी। धनराज जी के अच्छे प्रदर्शन और मेहनत के कारण एक साल के बाद ही 1989 में उन्हें ऑलविन एशिया कप कैंप के लिए चुना गया। उसके बाद वे लगातार सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते रहे और उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

प्रश्न 3 – ‘ मेरी माँ ने मुझे अपनी प्रसिद्धि को विनम्रता से सँभालने की सीख दी है ’ – धनराज पिल्लै की इस बात का क्या अर्थ है ?

उत्तर – धनराज पिल्लै का यह कहना कि ‘ मेरी माँ ने मुझे अपनी प्रसिद्धि को विनम्रता से सँभालने की सीख दी है। ‘ का तात्पर्य है कि मनुष्य चाहे कितनी भी सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ जाए उसे कभी घमंड नहीं करना चाहिए और किसी को अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए। माँ की इसी सीख को उन्होंने जीवन में अपनाया है।


 
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