नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़ कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए
2
‘विकास’ का सवाल आज विमर्श के केंद्र में है। आधुनिकता के प्रतिफल के रूप में प्रगट हुई ‘विकास’ की अवधारणा के बारे में लोगों का विश्वास था कि विकास की यह अदभुत घटना आधुनिक मनुष्य को अभाव, समाज और प्रकृति की दासता एवं जीवन को विकृत करने वाली शक्तियों से मुक्ति दिला देगी। लेकिन आधुनिक विकास के जोस्वप्न देखे थे उसके अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आए। इसके फलस्वरूप लोगों का मन वैकल्पिक उपायों के बारे में सोचने लगा है। इस क्रम में हमें बरबस कुमारप्पा के विचार याद याद आते है जिन्होंने इसबात को मजबूती के साथ रखा है कि विकास की जो गांधीवादी अवधारणा है वही सार्थक एवं टिकाऊ है।
जे.सी. कुमारप्पा का आर्थिक दर्शन व्यापक और मौलिक है। कुमारप्पा का आर्थिक चिंतन गांधीवादी अहिंसा पद्धति पर आधारित होने के कारण व्यक्ति की स्वतंत्रता, सृजनशीलता तथा दैनिक काम से उसके स्वस्थ संबंध को महत्वपूर्ण मानता है। कुमारप्पा के अपुसार सार किसी के दैनिक कामों में ही उसके सभी आदर्श, सिद्धांत और धर्म प्रकट हो जाते है| यदि उचित रीति पर काम किया जाए तो वही काम मनुष्य के व्यक्तित्व, के विकास का रूप बन जाता है। कुमारप्पा बढ़ते हुए श्रम विभाजन के सर्दर्भ में वे लिखते है – “चीजों के बनाने की पद्धति में केंद्रीकरण के अंतर्गत जो श्रम-विभाजन होता है, जो कि स्टैंडर्ड माल तैयार करने के लिए आवश्यक है, उसमें व्यक्तिगत कारीगरी दिखाने का कोई अवसर नहीं मिलता। केंद्रित उद्योग में काम करने वाला उस बड़ी मशीन का एक हा भर बनकर रह जाता है। उसकी स्वतंत्रता और उसका व्यक्तित्व समाप्त हो जाता|
कुमारप्पा के ये विचार आज के स्वयंचलित मशीन आधारित महाकाय उद्योगों में कार्यरत मजदूरों के जीवन का प्रत्यक्ष अध्ययन करने पर उन विचारों की सत्यता को सिद्ध करते हैं। आज इस बात को लेकर कोई दो राय नहीं है कि केंद्रीय उत्पादन व्यवस्था, अपने दुर्गणों से छुटकारा नहीं पा सकती। वह और भयावह तब बन जाती है जब वह “आवश्यकता के अनुसार उत्पादन” के बजाय “बाजार के लिए उत्पादन” पर ध्यान केंद्रित करती है। बेतहाशा उत्पादन बाजार की तलाश करने के लिए विवश होता है तथा उसका अंत गलाकाट परस्पर होड़ तथा युद्ध, उपनिवेशवाद इत्यादि में होता है। कुमारप्पा उपरोक्त तथ्यों को भलीभाँति परख चुके थे तथा स्थायी स्रोतों के दोहन पर ध्यान देने तथा उन्हें विकसित करने पर जोर देते रहे। दमा ‘विकास’ की जिस अवधारणा की बात करते हैं, उसके केंद्र में प्रकृति एवं मनुष्य है। मनुष्य की सुप्त शक्तियों के विकास के लिए अनुकूल वातावरण निर्माण करना ही सच्चे विकास का उद्देश्य है।
निम्नलिखित 10 प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उचित विकल्पों का चयन कीजिए: अंक-10
Also Check out Related CUET Hindi Reading Comprehension Test Links
CUET Hindi Reading Comprehension Test 1
CUET Hindi Reading Comprehension Test 3
CUET Hindi Reading Comprehension Test 4
CUET Hindi Reading Comprehension Test 5
CUET Hindi Reading Comprehension Test 6
CUET Hindi Reading Comprehension Test 7
CUET Hindi Reading Comprehension Test 8
CUET Hindi Reading Comprehension Test 9
CUET Hindi Reading Comprehension Test 10
CUET Hindi Reading Comprehension Test 11
CUET Hindi Reading Comprehension Test 12
CUET Hindi Reading Comprehension Test 13
CUET Hindi Reading Comprehension Test 14
CUET Hindi Reading Comprehension Test 15