लेखक (शेखर जोशी), मोहन, धनराम और मास्टर त्रिलोक सिंह का चरित्र-चित्रण | Character Sketch of the Writer (Shekhar Joshi), Mohan, Dhanram and Master Trilok Singh from CBSE Class 11 Hindi Aroh Book Chapter 5 गलता लोहा
लेखक (शेखर जोशी) का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of the Writer Shekhar Joshi)
गलता लोहा’ ‘शेखर जोशी’ की कहानी–कला का एक प्रतिनिधि नमूना है। जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि शेखर जोशी जी एक बहुत अच्छे लेखक हैं।
शेखर जोशी जी की यह कहानी हमारे समाज में फैली जातिगत विभाजन को भी उजागर करती है जिसमें ब्राह्मण वर्ग के लोगों का शिल्पकार वर्ग के लोगों के बीच उठना–बैठना मर्यादा के विरुद्ध माना जाता है। हालाँकि यह पुराने समय की बात है। और इससे लेखक के समाज के प्रति जागरूकता का पता भी चलता है।
समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी करने वाली यह कहानी इस बात का उदाहरण है कि शेखर जोशी के लेखन में अर्थ की गहराई का दिखावा और बड़बोलापन जितना कम है, वास्तविक अर्थ–गांभीर्य उतना ही अधिक है।
लेखक (शेखर जोशी) के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of the Writer)
प्रश्न 1 – गलता लोहा पाठ के आधार पर बताइए कि शेखर जोशी जी एक बहुत अच्छे लेखक हैं?
प्रश्न 2 – शेखर जोशी जी ने गलता लोहा पाठ में किस समस्या को उजागर किया है?
मोहन का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of Mohan)
मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधर पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे की प्रस्तावना करता प्रतीत होता है, मानो लोहा गलकर एक नया आकार ले रहा हो। पाठ के आधार पर मोहन के व्यक्तित्व के बारे में निम्नलिखित बातों का पता चलता है –
ज़िम्मेदार व्यक्ति – मोहन एक गरीब ब्राह्मण बालक हैं जिसके पिता पुरोहिताई का काम कर अपना घर चलाते हैं। लेकिन समय के साथ अब वो काफी वृद्ध हो चुके हैं। इसीलिए अब दिन प्रति दिन उनके लिए पुरोहिताई का काम करना मुश्किल होता जा रहा है। एक दिन जब मोहन के पिता जी को पूजा के लिए दो मील की खड़ी चढ़ाई चढ़नी थी। तो वे चाहते थे कि मोहन जाकर वहाँ रुद्रपाठ कर आये। लेकिन मोहन को इस तरह के पूजा पाठ व अनुष्ठान करने का कोई अनुभव नहीं था। इसीलिए उसने अपने पिता को कोई जवाब नही दिया और घास काटने के बहाने घर से निकल गया।
पढ़ाई में अच्छा विद्यार्थी – पूरी कक्षा में मोहन मास्टर जी का सबसे चहेता शिष्य था क्योंकि पढ़ाई के साथ–साथ वह हर चीज में अव्वल रहता था। इसीलिए मास्टर साहब ने उसे पूरे स्कूल का मॉनिटर बनाया हुआ था। मास्टर साहब को मोहन से बहुत उम्मीदें थी। वो कहते थे कि यह लड़का एक दिन कुछ न कुछ बड़ा काम अवश्य करेगा। भले ही किसी सवाल का जबाब पूरी कक्षा में किसी बच्चे को न आये मगर मोहन उस सवाल का जवाब देकर मास्टर जी को संतुष्ट कर देता था।
पढाई के साथ दूसरे कामों को भी बखूबी संभालना – जब गाँव में पढ़ाई के लिए दूर के स्कूल जाते हुए मोहन को मुश्किलों का सामना करना पढ़ रहा था, तब उसके पिता के कहने पर रमेश ने सहानुभूति जताते हुए उन्हें सुझाव दिया कि वो आगे की पढाई के लिए मोहन को उसके साथ लखनऊ भेज दें। लखनऊ में रमेश व उसके परिवार वालों के लिए वह एक मामूली धरेलू नौकर से ज्यादा कुछ नही था। घर के सारे काम–काज करना अब उसकी ही जिम्मेदारी बन गयी थी। इसके अलावा आस–पड़ोस की महिलाएं जिन्हें वह चाची और भाभी कह कर पुकारता था, वो भी अक्सर उससे ही अपना काम कराती थी। इन सब कामों के बाद मोहन के पास पढ़ाई के लिए समय ही नहीं बचता था। गांव का यह मेधावी छात्र शहर जाकर एक मामूली घरेलू नौकर का जीवन जीने लगा।
जातिवाद में विश्वास न रखने वाला – धनराम ने मोहन की दराँती की धार को तेज कर उसे मोहन को सौंप दिया। लेकिन मोहन दराँती को पकड़कर काफी देर तक उसके पास ही बैठा रहा। सामान्यतया ग्रामीण क्षेत्रों में ब्राह्मण जाति के लोगों का शिल्पकार जाति के लोगों के साथ बैठना उचित नहीं माना जाता था। लेकिन मोहन धनराम के पास काफी देर तक बैठकर उसके काम को ध्यान से देखता रहा। इससे ज्ञात होता है कि मोहन को जाति से कोई मतलब नहीं था।
हर तरह के काम में निपुण – धनराम जब लोहे की एक मोटी छड़ी को भट्टी में गला कर उसे गोलाई देने की कोशिश कर रहा था, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी वह उस लोहे की छड़ी को उचित आकार में नहीं ढाल पा रहा था। मोहन काफी देर तक उसे काम करते हुए देखता रहा। फिर अचानक उसने अपना संकोच त्यागा और एक हाथ में धनराम के हाथ से लोहे की छड़ी लेकर दूसरे हाथ से उसमें हथौड़े से चोट करने लगा। बीच–बीच में वह उस छड़ी को भट्टी में गरम कर, फिर उसमें चोट मार कर उसे आकार देने की कोशिश करने लगा। बहुत जल्दी ही उसने उस छड़ी को गोल आकार दे दिया।
मोहन किसी भी काम को छोटा नहीं समझता था – लोहे की छड़ को गोलाई देते हुए देख कर धनराम मोहन से कुछ न कह सका और वह मोहन को देखता ही रह गया। उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक पुरोहित खानदान का लड़का उसकी लोहे की भट्टी में बैठकर बड़ी ही कुशलता पूर्वक काम कर रहा था। लेकिन मोहन को तो जैसे इन बातों से कोई मतलब नही था। धनराम की आंखों में अपने लिए मौन प्रशंसा देखकर मोहन की आंखों में एक अजीब सी चमक छा गई। लेकिन उस चमक में ना तो कोई स्पर्धा थी और ना ही हार जीत का भाव।
मोहन के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Mohan)
प्रश्न 1 – मोहन का व्यक्तित्व कैसा था?
प्रश्न 2 – पढ़ाई में अच्छा होने के कारण मास्टर जी को मोहन से क्या उम्मीदें थी?
प्रश्न 3 – लखनऊ में मोहन का जीवन कैसा था?
प्रश्न 4 – मोहन जातिप्रथा को नहीं मानता था। उदहारण सहित बताइए।
प्रश्न 5 – मोहन किसी काम को छोटा नहीं समझता था और हर तरह के काम में निपुण था। स्पष्ट कीजिए।
धनराम का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of Dhanram)
धनराम अपने पैतृक काम ऑफर (ऑफर , वह जगह होती है जहां पर आग की भट्टी में लोहे को गला कर उससे अनेक तरह के लोहे के बर्तन या औजार बनाए जाते है यानि लोहे के औजार या बर्तन बनाने की जगह को ऑफर कहा जाता है।) में लोहे के औजार बनाने का कार्य करता था।
धनराम मोहन का स्कूल का दोस्त था।
जब मास्टर जी किसी बच्चे को डंडे मारने व कान खिंचने की सजा देना चाहते थे तो वो ये काम मोहन से करवाते थे। उन सभी बच्चों में धनराम भी एक था जिसने मास्टर जी के कहने पर मोहन से कई बार मार खाई थी। लेकिन धनराम इसका कभी बुरा नही मानता था।
धनराम पढ़ने लिखने में शुरू से ही बहुत कमजोर था। एक बार मास्टर जी ने उससे तेरह का पहाड़ा सुनाने को कहा लेकिन वह उसे पूरा नहीं सुना पाया। इसके बाद मास्टरजी ने उसकी डंडे से खूब पिटाई की।
पढ़ाई में कमजोर होने के कारण धीरे–धीरे धनराम के पिता ने उसे आँफर का काम सीखाना शुरू कर दिया। और पिता गंगाराम की मृत्यु होने के बाद धनराम ने अपना पारिवारिक काम संभाल लिया।
धनराम के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Dhanram)
प्रश्न 1 – धनराम कौन था?
प्रश्न 2 – धनराम क्या कार्य करता था?
प्रश्न 3 – धनराम के पिता ने उसे आँफर का काम सीखाना क्यों शुरू कर दिया?
मास्टर त्रिलोक सिंह का चरित्र-चित्रण Character Sketch of Master Trilok Singh –
पढ़ाई के मामले में मास्टर जी कठोर थे। स्कूल के सभी बच्चे मास्टर त्रिलोक सिंह से बहुत डरते थे।
अच्छे बच्चों को मास्टर जी प्रोत्साहित भी करते थे। मास्टर साहब को मोहन से बहुत उम्मीदें थी। वो कहते थे कि यह लड़का एक दिन कुछ न कुछ बड़ा काम अवश्य करेगा।
मास्टर जी बच्चों को सज़ा स्वयं नहीं देते थे। मास्टर जी किसी बच्चे को डंडे मारने व कान खिंचने की सजा देना चाहते थे तो वो ये काम मोहन से करवाते थे।
पढ़ाई में कमजोर बच्चों को भी मास्टर जी आगे लाने की कोशिश करते थे। एक बार मास्टर जी ने धनराम से तेरह का पहाड़ा सुनाने को कहा लेकिन वह उसे पूरा नहीं सुना पाया। इसके बाद मास्टरजी ने उसकी डंडे से खूब पिटाई की।
पिटाई अधिक होने पर अक्सर डंडे टूट जाते थे। इसलिए मास्टर जी ने स्कूल का नियम बनाया था, जो मार खाता था उसको अपने लिए खुद ही डंडा लाना पड़ता था।
मास्टर त्रिलोक सिंह के चरित्र सम्बंधित प्रश्न Question related to Character of Master Trilok Singh
प्रश्न 1 – मास्टर जी से बच्चे क्यों डरते थे?
प्रश्न 2 – मास्टर जी बच्चों को किस तरह सजा देते थे?
प्रश्न 3 – स्कूल का क्या नियम था?
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