लेखक (बालमुकुंद गुप्त) और लॉर्ड कर्ज़न का चरित्र-चित्रण | Character Sketch of the Writer (Balmukund Gupta) and Lord Curzon from CBSE Class 11 Hindi Aroh Book Chapter 4 विदाई संभाषण
लेखक (बालमुकुंद गुप्त) का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of the Writer)
“विदाई संभाषण” पाठ के लेखक बालमुकुंद गुप्त जी हैं। “विदाई संभाषण” बालमुकुंद गुप्त जी की सर्वाधिक चर्चित व्यंग्य कृति “शिवशंभु के चिट्ठे” का एक अंश है । यह पाठ वायसराय कर्ज़न (जो 1899-1904 एवं 1904-1905 तक दो बार वायसराय रहे) के शासन में भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है। इस पाठ में जिस तरह लेखक ने वायसराय कर्ज़न के बारे में बताया है उससे लेखक के व्यक्तित्व के बारे में भी निम्नलिखित बातों का पता चलता है –
भावुक – वायसराय कर्ज़न के वापिस लौटने के समय लेखक का यह कहना कि किसी से भी बिछड़ने का समय बहुत अधिक दुखदाई होता है। इसीलिए आज कर्जन से बिछड़ने पर सभी देशवासी भी बहुत दुखी हैं, लेखक के भावुक वयक्तित्व को दर्शाता है। लेखक यह भी कहते हैं कि उनको नहीं पता कि कर्ज़न के देश में एक दूसरे से बिछड़ते समय लोगों को दुख होता है या नहीं। मगर हमारे देश में तो पशु–पक्षियों को भी एक दूसरे से बिछड़ने का दुख होता है।
भारत के लोगों के भोलेपन को समझना व् समझाना – हालाँकि जब कर्जन दूसरी बार वायसराय बनकर भारत आये थे तब भी भारतवासी खुश नहीं थे। वो चाहते थे कि कर्जन इस देश को छोड़कर कल ही वापस चला जाय। परंतु ऐसा नहीं हुआ। लेखक इसे एक उदाहरण से बताते हैं कि एक बार शिवशंभु के पास दो गायें थी। उनमें से एक गाय काफी बलशाली थी तो दूसरी कमजोर थी। बलशाली गाय अक्सर कमजोर गाय को अपने सींगों से मारा करती थी। एक दिन शिवशंभु ने उस बलशाली गाय को एक पुरोहित को दे दिया। बलशाली गाय से बिछड़ने पर रोज उससे मार खाने वाली दुर्बल गाय बहुत दुखी हुई। और उसने उस दिन, दिनभर कुछ नहीं खाया। लेखक कहते हैं कि जिस देश में पशुओं को भी एक दूसरे से बिछड़ते समय दुःख होता है तो सोचिए उस देश में मनुष्यों की क्या दशा होती होगी।
हिम्मती – लेखक कर्ज़न के समक्ष उनके द्वारा किए गए कामों का जिक्र करते हुआ बिलकुल नहीं घबराते। लेखक कर्जन से सवाल करते हुए कहते हैं कि कर्जन आप यहाँ क्या करने आये थे और क्या करके चले गये। राजा का कर्तव्य होता है कि वह अपनी प्रजा के हित में कार्य करें। लेकिन आपने इस देश की प्रजा के हित में कोई कार्य नही किया। आँख बंद कर मनमाने हुक्म चलाना, प्रजा की कोई बात न सुनना, प्रजा की आवाज को दबाकर उसकी मर्जी के विरुद्ध अपनी जिद से काम करना, क्या यही सुशाशन हैं?
गलत को गलत कहने का साहस रखना – लेखक कर्ज़न को यह कहने का भी साहस रखते हैं कि कर्जन “कृतज्ञता की इस भूमि यानि भारत भूमि” की महिमा न तो समझ पाया और न ही इस देश के लोगों का प्यार व विश्वास जीत पाया, जिसका लेखक को बहुत दुःख है। लेखक कर्जन से कहते हैं कि हे ! कर्जन जिस देश ने तुमको इतना सब कुछ दिया। क्या इस देश से जाते वक्त तुम इस देश का शुक्रिया अदा करते जाओगे। क्या तुम यह कह पाओगे कि हे ! भारत मैंने तेरी बदौलत सब कुछ पाया। धन–दौलत, शान–ओ–शौकत, रुतबा सब कुछ हासिल किया। तूने तो मेरा कुछ नही बिगाड़ा, मगर मैंने तुझे नष्ट करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।
लेखक (सत्यजित राय) के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of the Writer)
प्रश्न 1 – लेखक के भावुक वयक्तित्व का वर्णन कीजिए।
प्रश्न 2 – लेखक को हिम्मती व् साहसी क्यों कहा जा सकता है?
प्रश्न 3 – लेखक ने कर्ज़न को किन उदाहरणों से समझाने की कोशिश की कि भारतीयों के हृदय कितने कोमल हैं?
प्रश्न 4 – लेखक ने कर्ज़न के गलत कामों को किस तरह उजागर किया?
लॉर्ड कर्ज़न का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of Lord Curzon)
लॉर्ड कर्ज़न सरकारी निरंकुशता के पक्षधर थे। यहाँ तक कि उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया और बंगाल का विभाजन भी कर दिया। एक शक्तिशाली पद पर होने के बावजूद लॉर्ड कर्ज़न की कुछ गलतियां उन पर भारी पड़ी और उनके व्यक्तित्व की कुछ झलक इस प्रकार दिखती है –
कर्ज़न ने अंग्रेज़ों का वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश की – कर्ज़न के शासन काल में विकास के बहुत सारे कार्य हुए, नए–नए आयोग बनाए गए, किन्तु उन सबका उद्देश्य शासन में गोरों का वर्चस्व स्थापित करना एवं साथ ही इस देश के संसाधनों का अंग्रेज़ों के हित में सर्वाेत्तम उपयोग करना था। जब कर्जन दूसरे कार्यकाल के लिए भारत आये तो उन्होंने मुंबई में उतरते वक्त कहा था कि यहां से जाते समय मैं भारत को ऐसा बना कर जाऊंगा कि मेरे बाद आने वाले शासकों को वर्षों तक कुछ करना ही नहीं पड़ेगा। वो वर्षों तक चैन की नींद सो सकते हैं। मगर हुआ इसका उल्टा। कर्जन ने अपनी गलत नीतियों के कारण पूरे देश का माहौल खराब कर दिया जिससे चारों ओर अशांति फैल गई।
कर्जन भारत में बड़ी शान–ओ–शौकत से रहते थे – जितनी शान–ओ–शौकत कर्जन ने दिल्ली दरबार में देखी उतनी तो अलिफ़ लैला के अलाहद्दीन ने चिराग रगड़ कर व बगदाद के खलीफा अबुलहसन ने गद्दी पर बैठ कर भी नहीं देखी होगी। यानि भारत आकर लार्ड कर्जन ने अथाह मान–सम्मान व धन–दौलत कमायी। कर्जन की इस देश में इतनी शान थी कि वो और उसकी पत्नी सोने से बनी हुई कुर्सी पर बैठते थे। और देश के सभी राजा–महाराजा सबसे पहले उसी को सलाम करते थे। जुलूस में कर्जन का हाथी सबसे आगे व सबसे ऊँचा होता था। यानि ईश्वर व इग्लैण्ड के महाराजा एडवर्ड के बाद इस देश में कर्जन का दर्जा ही सबसे ऊँचा था।
राजनीति की सही सीख न होना – वैसे तो कर्जन को बहुत ही धीर–गंभीर व्यक्ति माना जाता था। मगर कौन्सिल में उटपटांग कानून पास करते समय उसकी यह गंभीरता नजर नहीं आती थी। धीरे–धीरे उसका प्रभाव कम होने लगा। कौंसिल में अपनी मनपसंद के एक अंग्रेज सदस्य को नियुक्त करवाने के चक्कर में उन्हें देश–विदेश दोनों जगह नीचा देखना पड़ा जिस कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उनका इस्तीफा तत्काल मंजूर भी कर लिया गया और वो वापस इंग्लैंड चले गए।
कर्जन अपना वर्चस्व कायम नहीं रख पाए – इस देश के हाकिम कर्जन के इशारे पर नाचते थे और सभी राजा–महाराजा उसके एक इशारे पर उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाया करते थे। कर्जन ने इस देश के कई राजाओं को बर्बाद कर दिया तो कई नालायको को ऊँचे ओहदों पर भी बिठाया। उसने इस देश की शिक्षा व्यवस्था को खत्म कर दिया और बंगाल को दो भागों में बाँट दिया। इतना शक्तिशाली होने के बाद भी एक फ़ौजी अफसर को अपनी इच्छा अनुसार एक पद पर न बैठा सका तो गुस्से से उसने इस्तीफा दे दिया। जिसे ब्रिटिश सरकार ने तुरंत स्वीकार कर लिया। यानि वह अपनी मर्जी से एक अफसर तक की नियुक्ति नही कर सका, उल्टा उसे अपना पद ही गंवाना पड़ा।
कर्जन एक अच्छा वायसराय न बन सका – कैसर यानी जर्मन तानाशाह शासक और जार यानी रूस के तानाशाह शासक भी कभी–कभी अपनी प्रजा की बात सुन लेते थे और आसिफशाह की प्रार्थना सुनकर नादिरशाह ने क्षण भर में ही दिल्ली में कत्लेआम रोकने का हुक्म दे दिया था। लेकिन प्रजा की बात सुनना तो दूर, कर्जन ने उनको कभी अपने पास फटकने भी नहीं दिया। और आठ करोड़ भारतीय जनता ने कर्जन से बंगाल का विभाजन न करने की प्रार्थना की थी जिसे अपनी जिद पूरी करने के लिए उसने अनसुना कर दिया।
लॉर्ड कर्ज़न के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Lord Curzon)
प्रश्न 1 – कर्ज़न ने अंग्रेज़ों का वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश में क्या कदम उठाए?
प्रश्न 2 – कर्जन का भारत में किस प्रकार का रहन–सहन था?
प्रश्न 3 – कर्जन को किस कारण अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा?
प्रश्न 4 – आपके अनुसार कर्ज़न एक वायसराय क्यों नहीं बन सका?
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