Namak ka Daroga Questions Answers

 

CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag 1 Book Chapter 1 नमक का दरोगा Question Answers

Namak ka Daroga Class 11 – CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag-1 Chapter 1 Namak ka Daroga Question Answers. The questions listed below are based on the latest CBSE exam pattern, wherein we have given NCERT solutions of  the chapter,  extract based questions, multiple choice questions, short and long answer questions.

सीबीएसई कक्षा 11 हिंदी आरोह भाग-1 पुस्तक पाठ 1 नमक का दरोगा प्रश्न उत्तर | इस लेख में NCERT की पुस्तक के प्रश्नों के उत्तर  तथा महत्वपूर्ण प्रश्नों का व्यापक संकलन किया है।

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Namak Ka Daroga Question and Answers (नमक का दरोगा प्रश्न-अभ्यास)

 

प्रश्न 1 – कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?
उत्तर – हमें इस कहानी का पात्र मुंशी वंशीधर सबसे अधिक प्रभावित करता है। वह ईमानदार, शिक्षित, कर्तव्यपरायण व धर्मनिष्ठ व्यक्ति है। उसके पिता उसे बेईमानी का पाठ पढ़ाते हैं, घर की दयनीय दशा का हवाला देते हैं, परंतु वह इन सबके विपरीत ईमानदारी का व्यवहार करता है। वह स्वाभिमानी है। अदालत में उसके खिलाफ गलत फैसला लिया गया, परंतु उसने स्वाभिमान नहीं खोया। उसकी नौकरी छीन ली गई। कहानी के अंत में उसे अपनी ईमानदारी का फल मिला। पंडित अलोपीदीन ने उसे अपनी सारी जायदाद का आजीवन मैनेजर बनाया और साथ ही साथ कई सुविधाएँ भी दी जो शायद वह नौकरी कर के कभी प्राप्त नहीं कर सकता था।

प्रश्न 2 – ‘नमक का दारोगा’ कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन-से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?
उत्तर – पंडित अलोपीदीन अपने क्षेत्र के नामी-गिरामी सेठ थे। सभी छोटे-बड़े व्यक्ति उनसे कर्ज लेते थे। उनका व्यक्तित्व एक शोषक-महाजन का सा था, पर उन्होंने सत्य-निष्ठा का भी मान किया। उनके व्यक्तित्व के दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं –
1. निपुण व्यवसायी – पंडित अलोपीदीन धन के महत्त्व को भली-भाँति समझने वाला अति कुशल व्यापारी था। वह जानता था कि किस व्यक्ति से किस भाषा में बोल कर काम निकलवाया जा सकता है। किसी भी सफल व्यापारी का महत्त्वपूर्ण गुण मीठी जुबान है और पंडित अलोपीदीन मीठी जुबान में बोलने और व्यवहार करने में कुशल था। उसे धन लेने और देने का ढंग आता था। वह अपने प्रत्येक कार्य को किसी भी तरह करवा लेता था। जब वंशीधर किसी भी अवस्था में रिश्वत लेकर उसका काम करने को तैयार नहीं हुआ था तो उसने अदालत के माध्यम से अपनी रक्षा कर ली थी। केवल अपनी रक्षा ही नहीं की थी, अपितु वंशीधर को नौकरी से निकलवा भी दिया था। वह हर वस्तु का मोल लगाना जानता था।

2. दूर-दृष्टि का स्वामी- पंडित अलोपीदीन बहुत दूर की सोचता था। दारोगा वंशीधर ने गैर-कानूनी कार्य के लिए अलोपीदीन को गिरफ्तार किया था। उसे चालीस हज़ार रुपए रिश्वत भी अपने कर्त्तव्य से डिगा नहीं पाई थी। अलोपीदीन अदालत से छूट गया था, पर वह वंशीधर की कर्त्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी पर मन ही मन मुग्ध हो गया था। अपनी दूर दृष्टि के कारण उसने पहचान लिया था कि वंशीधर सामान्य दारोगा नहीं था। वह परिश्रमी, ईमानदार, निष्ठावान् और कर्त्तव्य पर अडिग रहने वाला आदमी था। ऐसा व्यक्ति सरलता से प्राप्त नहीं हो सकता। इसीलिए वह स्वयं उसके घर पहुँचा था और उसे अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त कर दिया था। जिस व्यक्ति ने उसे गिरफ्तार किया था उसी को उसने अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी थी। यदि उसके स्थान पर कोई सामान्य इंसान होता तो उसे इतना ऊँचा ओहदा देने की जगह उससे बदला लेने की बात सोचता।

प्रश्न 3 – कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उद्धृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं –
(क) वृद्ध मुंशी
(ख) वकील
(ग) शहर की भीड़

उत्तर –
(क) वृदध मुंशी – यह वंशीधर का पिता है जो भ्रष्ट चरित्र का प्रतिनिधि है। इसे धन में ही सब कुछ दिखाई देता है। यह अपने बच्चों को ऊपर की कमाई तथा आम आदमी के शोषण की सलाह देता है।

पाठ में यह अंश उसके विचारों को व्यक्त करता है –

उनके पिता एक अनुभवी पुरुष थे। समझाने लगे – बेटा! घर की दुर्दशा देख रहे हो। ऋण के बोझ से दबे हुए हैं। लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ न मालूम कब गिर पड़े। अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो। नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्ध नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ-ही-लाभ है, लेकिन बेगरज को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो। यह मेरी जन्मभर की कमाई है।
वे बेटे द्वारा रिश्वत न लेने पर उसकी पढ़ाई-लिखाई को व्यर्थ मानते हैं-‘‘ पढ़ना-लिखना सब अकारण गया। ”

(ख) वकील – वकील समाज के उस पेशे का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सिर्फ अपने लाभ की फिक्र करते हैं। उन्हें न्याय-अन्याय से कोई मतलब नहीं होता उन्हें धन से मतलब होता है। अपराधी के जीतने पर भी वे प्रसन्न होते हैं-‘‘ वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े। स्वजन बांधवों ने रुपयों की लूट की। उदारता का सागर उमड़ पड़ा। उसकी लहरों ने अदालत की नींव तक हिला दी।”
वकीलों ने नमक के दरोगा की चेतावनी तक दिलवा दी कि –
‘‘यद्यपि नमक के दरोगा। मुंशी वंशीधर का अधिक दोष नहीं है, लेकिन यह बड़े खेद की बात है कि उसकी उद्दंडता और विचारहीनता के कारण एक भलेमानस को झेलना पड़ा। नमक के मुकदमे की बढ़ी हुई नमकहलाली ने उसके विवेक और बुद्ध को भ्रष्ट कर दिया। भविष्य में उसे होशियार रहना चाहिए।”

(ग) शहर की भीड़ – शहर की भीड़ तमाशा देखने का काम करती है। उन्हें निंदा करने व तमाशा देखने का मौका चाहिए। उनकी कोई विचारधारा नहीं होती। अलोपीदीन की गिरफ्तारी पर शहर की भीड़ की प्रतिक्रिया देखिए –

दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक-वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी। जिसे देखिए, वही पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछार हो रही थीं. मानो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचने वाला ग्वाला, कल्पित बनाने वाले सेठ और साहूकार, यह सब-के-सब देवताओं की भाँति गरदनें चला रहे थे। जब दूसरे दिन पंडित अलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकड़ियाँ, हृदय में ग्लानि और क्षोभभरे, लज्जा से गरदन झुकाए अदालत की तरफ चले, तो सारे शहर में हलचल मच गई। मेलों में कदाचित् आँखें इतनी व्यग्र न होती होंगी। भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा।

प्रश्न 4 – निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए – नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।
(क) यह किसकी उक्ति है?
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?
(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?
उत्तर –
(क) यह उक्ति (कथन) नौकरी पर जाते हुए पुत्र को हिदायत देते समय वृद्ध मुंशी जी ने कही थी।

(ख) जिस प्रकार पूरे महीने में सिर्फ एक बार पूरा चंद्रमा दिखाई देता है, वैसे ही वेतन भी पूरा एक ही बार दिखाई देता है। उसी दिन से चंद्रमा का पूर्ण गोलाकार घटते-घटते लुप्त हो जाता है, वैसे ही उसी दिन से वेतन भी घटते-घटते समाप्त हो जाता है। इन समानताओं के कारण मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद कहा गया है।

(ग) एक पिता के द्वारा पुत्र को इस तरह का मार्गदर्शन देना सर्वथा अनुचित है। माता-पिता का कर्तव्य बच्चों में अच्छे संस्कार डालना है। सत्य और कर्तव्यनिष्ठा बताना है। ऐसे में पिता के ऐसे वक्तव्य से हम सहमत नहीं हैं।

प्रश्न 5 – ‘नमक का दारोगा’ कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस कहानी के अन्य शीर्षक हो सकते हैं –
(क) सत्य की जीत – इस कहानी में सत्य शुरू में भी प्रभावी रहा और अंत में भी वंशीधर के सत्य के सामने अलोपीदीन को हार माननी पड़ी है।

(ख) ईमानदारी – वंशीधर ईमानदार था। वह भारी रिश्वत से भी नहीं प्रभावित हुआ। अदालत में उसे हार मिली, नौकरी छूटी, परंतु उसने ईमानदारी का त्याग नहीं किया। अंत में अलोपीदीन स्वयं उसके घर पहुँचा और इस गुण के कारण उसे अपनी समस्त जायदाद का मैनेजर बनाया।

(ग) धन पर धर्म की जीत – शुरुआत में लग रहा था कि धन अधिक प्रबल है परन्तु धर्म के आगे धन को अपना मस्तक झुकाना ही पड़ा।

प्रश्न 6 – कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते?
उत्तर – कहानी के अंत में अलोपीदीन द्वारा वंशीधर को नियुक्त करने का कारण तो स्पष्ट रूप से यही है कि उसे अपनी जायदाद का मैनेजर बनाने के लिए एक ईमानदार व्यक्ति मिल गया। दूसरा उसके मन में आत्मग्लानि का भाव भी था कि मैंने इस ईमानदार की नौकरी छिनवाई है, तो मैं इसे कुछ सहायता प्रदान करूँ। अतः उन्होंने एक तीर से दो शिकार कर डाले।

जहाँ तक कहानी से समापन की बात है तो प्रेमचंद के द्वारा लिखा गया समापन ही सबसे ज्यादा उचित है। पर समाज में ऐसा सुखद अंत किसी किसी ईमानदार को ही देखने को मिलता है। अकसर देखने को मिलता है कि ईमानदार व्यक्ति को अपमान ही मिलता है। परन्तु जिस तरह प्रमचंद जी ने कहानी को समाप्त किया गया है उससे समाज को सीख लेने की आवश्यकता है ताकि ईमानदारी सदा कायम रहे।

 

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर – (Important Question Answers)

 

प्रश्न 1 – नौकरी की खोज में निकलने से पूर्व वंशीधर के घर की हालत कैसी थी?
उत्तर – रोजगार की खोज में निकलने से पूर्व वंशीधर के घर की हालत बहुत बुरी थी। उनके पिता एक साधारण पद पर नियुक्त थे तथा उनका मासिक वेतन बहुत कम था। यह धन मास के प्रारंभ में ही समाप्त हो जाता और फिर उनके घर में रोजी-रोटी के लाले पड़ते थे। इसके अतिरिक्त वे ऋण के बोझ से दबे हुए थे और उनके पिता का स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं था। घर में लड़कियाँ घास-फूस की तरह बढ़ रही थीं और पिता कगार के वृक्ष हो चुके थे। आर्थिक विपन्नता ने सब को रुला रखा था।

 

प्रश्न 2 – कहानी में वृद्ध मुंशी का पात्र कौन है और कैसा है?
उत्तर – कहानी में मुंशी जी का पात्र वंशीधर के पिता है। वह अपनी परिस्थिति से चिंतित है, तथा अपने पुत्र की नौकरी के सहारे अपने घर कि परिस्थिति को सही दिशा दिखाना चाहते हैं। अपने अनुभव में उन्होंने देखा है कि केवल वेतन के सहारे अच्छी जिंदगी नहीं जी जा सकती अतः उनके अनुसार नौकरी पर रिश्वत लेने में कोई बुराई नहीं है। इसलिए वह अपने बेटे वंशीधर को बेईमान बनने का ज्ञान देते हैं।

 

प्रश्न 3 – कहानी ‘नमक का दरोगा’ के अनुसार पंडित अलोपीदीन का इलाके में कैसा प्रभाव था?
उत्तर – कहानी ‘नमक का दरोगा’ के अनुसार पंडित अलोपीदीन अपने इलाके के बड़े प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित जमींदार थे जो लाखों रुपयों का लेन-देन करते थे तथा धन को ही सब कुछ मानते थे। प्रत्येक व्यक्ति उनसे बहुत प्रभावित था और उनका ऋणी भी था। वे प्रत्येक व्यक्ति को धन का लालच देकर उन्हें अपनी मुट्ठी में कर लेते और उन्हें कठपुतलियाँ बनाकर नचाते हुए उनसे सभी सही-गलत काम करवाते थे। इसी प्रकार सभी उनसे मोहित थे। इलाके का न्यायालय, वकील, पुलिस आदि सब उनके गुलाम थे।

 

प्रश्न 4 – वंशीधर के पिता ने वंशीधर को नौकरी पर जाने से पहले किन बातों को गिरह में बाँधने की सीख दी?
उत्तर – वंशीधर के पिता ने निम्नलिखित बातों को गिरह में बाँधने की सीख वंशीधर को दी –

ओहदे पर ऐसे नजर रखनी चाहिए जैसे पीर के मजार पर।

मजार पर चढ़-चढ़ावे और चादर की तरह ऊपरी कमाई पर ओहदे से ज्यादा ध्यान देना चाहिए।

जिस आदमी को तुमसे काम हो उससे कठोरता से पेश आना चाहिए और उससे जहाँ तक हो सके पैसे खींचना चाहिए।

बेगरजे आदमी से अर्थात् उन लोगों से जिन्हें तुमसे काम न हो, विनम्रता से पेश आना चाहिए, क्योंकि वे तुम्हारे किसी काम के नहीं हैं।

 

प्रश्न 5 – वंशीधर के पिता ने वंशीधर से नौकरी से मिलने वाले वातन के बारे में क्या कहा था ?
उत्तर – वंशीधर के पिता ने वंशीधर से नौकरी पर जाने से पहले क्या कहा था कि वेतन पूर्णमासी के चांद कि भांति होता है। वंशीधर के पिता द्वारा कहे गए इस कथन का अर्थ था कि चांद महीने में एक बार पूर्णिमा को पूरा नज़र आता है, और मासिक वेतन भी महीने में एक ही बार मिलता है। पूर्णिमा के बाद चांद का आकार धीरे धीरे घटता चला जाता है, और अंत में खत्म हो जाता है। इसी प्रकार वेतन भी सिर्फ एक बार ही पूरा नज़र आता है, और धीरे धीरे खत्म हो जाता है।

 

प्रश्न 6 –  “नौकरी में औहदे कि ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।” यह बात किसके द्वारा कही गई है, तथा इसका क्या अर्थ है?
उत्तर – यह वाक्य मुंशी जी अपने बेटे वंशीधर से उस समय कहते हैं जब वह नौकरी की तलाश में घर से बाहर जा रहा था। इस वाक्य के द्वारा वे वंशीधर को समझाना चाहते थे कि नौकरी के पद से रिश्वत और उपहारों का मूल्य अधिक होता है। इसलिए जब भी कोई नौकरी मिले तो उसमे पद की ओर अधिक ध्यान देने से अधिक उस नौकरी में मिलने वाली रिश्वत के अत्यधिक मौकों की और ध्यान देना चाहिए।

 

प्रश्न 7 – ‘लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।’ वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है ?
उत्तर – मुंशी वंशीधर के पिता द्वारा अपनी पुत्रियों के लिए प्रयुक्त यह वाक्य परिवार में उनलड़कियों की हीन और उपेक्षा की स्थिति को प्रकट करती है। जिस प्रकार घास-फूस की वृद्धि और सुरक्षा की कोई परवाह नहीं करता। उसे खाद-पानी देने की कोई आवश्यकता कभी अनुभव नहीं की जाती पर फिर भी वह बढ़ता ही जाता है, उसी प्रकार परिवार में लड़कियाँ भी उपेक्षित रहकर युवावस्था की ओर तेजी से बढ़ती जाती हैं। अर्थात लड़कियों को केवल घास-फूस अर्थात तुच्छ वस्तु व् परिवार पर बोझ समझा जाता है।

 

प्रश्न 8 – रात के समय जब वंशीधर ने पुल से गुजर रहे वाहनों की आवाज सुनी तो वंशीधर के मन में क्या विचार आया?
उत्तर – रात को सोते वक्त वंशीधर को पुल से गुजर रहे वाहनों कि गड़गड़ाहट सुनाई दी तो उन्हें कुछ गड़बड़ होने का आभास हुआ। वंशीधर ने सोचा कि इतनी देर रात को वाहन कौन ले जा सकता है ? ज़रूर कुछ गलत हो रहा है।

 

प्रश्न 9 – वंशीधर की बातों को सुनकर पंडित अलोपीदीन स्तंभित क्यों रह गए?
उत्तर – पंडित अलोपीदीन को लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था। वे धन के सहारे को चट्टान समझते थे, क्योंकि उनका मानना था कि जब तक धन हो तब तक कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, किंतु जब गैर-कानूनी ढंग से नमक की बोरियाँ ले जाते हुए उन्हें नमक के दारोगा मुंशी वंशीधर द्वारा रंगे हाथों पकड़ लिया गया और उन्होंने उसे धन का लालच देकर उनसे पीछा छुड़ाना चाहा, किंतु वंशीधर ने धन स्वीकार करने से मना कर दिया, तब पंडित अलोपीदन स्तंभित रह गए, क्योंकि अपने जीवन में उन्होंने पहली बार ऐसा मनुष्य देखा था जिसे धन का लालच न हो और जो धन से ज्यादा अपने धर्म का पालन करता हो। जो धन को देखकर डगमगाए न और जिसे धन अपने कर्तव्य-पथ से भटका नहीं सकता। पहली बार पंडित अलोपीदीन को धर्म के आगे धन हारता हुआ दिखा था इसलिए वे स्तंभित रह गए।

 

प्रश्न 10 – पंडित अलोपीदीन ने रिश्वत के लिए चालीस हजार का प्रस्ताव दिया तो वंशीधर ने क्या किया?
उत्तर – जब  पंडित अलोपीदीन ने रिश्वत के लिए चालीस हजार रुपए का प्रस्ताव दिया, तो वंशीधर ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। वंशीधर ने सत्य, निष्ठा और ईमानदारी के धर्म का निर्वाह करते हुए अलोपीदीन द्वारा चालीस हजार रुपए का प्रस्ताव ठुकरा दिया। धर्म इंसान के निष्ठा निर्धारित करता है और वंशीधर के ‘धर्म’ ने अलोपीदीन के ‘धन’ को नीचा दिखा दिया, अर्थात धन के राज को वंशीधर के धर्म से हारना पड़ा।

 

प्रश्न 11 – वंशीधर ने जब पंडित अलोपीदीन को हिरासत में लिया तो आस – पास के क्षेत्रों के लोगों कि क्या प्रतिक्रिया थी ?
उत्तर – वंशीधर ने जब पंडित अलोपीदीन को हिरासत में लिया तो रातों – रात यह समाचार सारे क्षेत्र में फैल गया। सभी लोग पण्डित जी के इस व्यवहार पर अपने अपने अनुसार तंज कस रहे थे। पंडित जी के उपर हर तरफ से निंदा कि वर्षा हो रही थी। पानी को दूध के नाम से बेचने वाला ग्वाला, रिश्वत लेने वाले अधिकारी, रेल में बिना टिकट यात्रा करने वाले बाबु लोग, जाली दस्तावेज तैयार करने वाले सेठ और साहूकार। यह सब के सब पंडित जी को कोस रहे थे।

 

प्रश्न 12 – ‘पढ़ना – लिखना सब अकारथ गया।’ वृद्ध मुंशी जी ने यह वाक्य क्यों कहा?
उत्तर – मुंशी जी के पुत्र वंशीधर ने हजारों रुपए की रिश्वत लेने से इंकार करके पंडित अलोपीदीन को अपनी हिरासत में ले लिया था था। यह बात जब मुंशी जी को जान पड़ी तो उन्होंने अपने पुत्र को डांटने के लिए कहा कि ‘ पढ़ना – लिखना सब अकारथ गया  ‘ अर्थात पढ़ना और लिखना सब व्यर्थ चला गया। क्योंकि उनके अनुसार वंशीधर ने रिश्वत स्वीकार न करके बहुत बड़ी गलती की थी।

 

प्रश्न 13 – वंशीधर के वृद्ध पिता अलोपीदीन से लल्लो-चप्पो की बातें क्यों करने लगे?
उत्तर – वंशीधर के वृद्ध पिता पंडित अलोपीदीन से लल्लो-चप्पो अर्थात् चमचागिरी की बातें इसलिए करने लगे, क्योंकि वे जानते थे कि पंडित अलोपीदीन बहुत बड़े और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और अगर उन्होंने उनका अपमान किया तो उनका जीना मुश्किल हो जाएगा। इसके अतिरिक्त वे यह भी जानते थे कि वे बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं और उनके पास बहुत अधिक धन-सम्पत्ति है। इसलिए यदि वे उनको प्रसन्न रखते हैं तो कदाचित् वे वंशीधर को भी क्षमा कर सकते हैं। वे तो यह भी मानते थे कि उनका लड़का महामूर्ख है जिसने ऐसे प्रतिष्ठित धनी और धन को ठुकराया है, जिन्हें सब पूजते हैं। अतः धन के लोभी और हीनभाव से ग्रस्त होकर लल्लो-चप्पो की बातें करने लगे।

 

प्रश्न 14 – पंडित अलोपीदीन ने वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर क्यों नियुक्त कर दिया?
उत्तर – पंडित अलोपीदीन ने देखा कि वंशीधर एक ईमानदार व्यक्ति हैं, जिन्हें धन भी अपने कर्तव्यपथ से नहीं हटा सकता, क्योंकि जब वे गैर-कानूनी तरीके से नमक की बोरियाँ ले जा रहे थे और उन्हें वंशीधर द्वारा रंगे हाथों पकड़ लिया गया। उनसे बचने के लिए पंडित अलोपीदीन ने उन्हें धन का लालच देना चाहा तब भी वे धन लेकर उन्हें आजाद करने के लिए राजी नहीं हुए और अपने धर्म का पालन करते हुए हिरासत में ले लिया। अतः इससे वे जान गए कि वंशीधर एक धर्मनिष्ठ और कर्तव्यपरायण व्यक्ति हैं जिन्हें धन का कोई लोभ नहीं था। इसलिए वे जान गए कि वंशीधर निस्स्वार्थ भाव से कार्य कर सकते हैं। पंडित अलोपीदीन के पास बहुत अधिक जायदाद थी। इसलिए उनको उसके लेन-देन को सँभालने के लिए एक ईमानदार और जिम्मेदार व्यक्ति की खोज थी जिस पर उनकी नज़रों में केवल वंशीधर ही खरे उतर पाए। इसलिए अलोपीदीन ने वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त किया।

 

प्रश्न 15 – अलोपीदीन के पक्ष में मजिस्ट्रेट के फैसले पर वकील की प्रतिक्रिया से क्या निष्कर्ष निकलता है?
उत्तर – मजिस्ट्रेट ने अपना नतीजा पंडित अलोपीदीन के पक्ष में सुनाया था। मजिस्ट्रेट  के इस नतीजे से वकील अत्याधिक प्रसन्न था। वकील का प्रसन्न होना न्यायालय के नतीजे पर प्रश्न उठाता है और शर्मसार करता है। धन के आधार पर न्यायालय में न्याय दिलाना वकीलों का धर्म नहीं है। लेकिन इस नतीजे पर वकीलों कि भागीदारी के कारण वंशीधर को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। वंशीधर बहुत ही ईमानदार व्यक्ति था, और उसने ईमानदारी का परिचय देते हुए पंडित अलोपीदीन को अपनी हिरासत में लिया था। लेकिन, फिर भी न्यायालय ने वकीलों कि दलीलों के कारण नतीजा उसके खिलाफ आया और उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

 

प्रश्न 16 – कहानी ‘नमक का दरोगा’ के पात्र पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व की विशेषता बताइए।
उत्तर – पंडित अलोपीदीन के पात्र की मुख्यतः दो विशेषताएं हैं। वह लक्ष्मी के पुजारी और ईमानदारी के प्रशंसक हैं। पंडित अलोपीदीन को लक्ष्मी जी के ऊपर अखंड विश्वास था, वह समझते थे कि लक्ष्मी की सहायता से किसी को भी अपने अधीन कर सकते हैं। उन्होंने लक्ष्मी की सहायता से ही न्यायालय को भी अपने अधीन कर लिया था। पंडित अलोपीदीन लक्ष्मी के साथ साथ ईमानदारी को भी मानते हैं। वंशीधर की ईमानदारी से प्रभावित हो कर, वह वंशीधर को अपनी सभी संपत्तियों का प्रबंधक बना देते हैं। वंशीधर के लिए उनके मन में कोई भी दोष नहीं है, जबकि वंशीधर ने ही पंडित अलोपीदीन को जेल भेज कर न्यायालय में प्रस्तुत किया था।

पंडित अलोपीदीन ऐसे अनेक गुणों से संपन्न व्यक्ति थे जो सामान्य लोगों में दिखाई नहीं देते। उन्हीं गुणों के कारण वे नगर के ही नहीं अपितु पूरे समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके थे। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. अति धनी एवं सम्मान प्राप्त  –  पंडित जी अपने क्षेत्र के अति संपन्न एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, जिस कारण उन्हें छोटे बड़े सभी लोग जानते थे। जब उन्हें नमक-कांड में गिरफ्तार किया गया तो लोगों ने उन्हें कोसा और बुरा-भला कहा, लेकिन जब वे अदालत के द्वारा छोड़ दिए गए, लोगों ने उन्हें वाह-वाही दी और मुंशी वंशीधर को कोसा।
  2. चतुर व्यवसायी – पंडित अलोपीदीन व्यवसायी थे, लेकिन वे सीधे-सादे सरल स्वभाव वाले व्यवसायी नहीं थे। वे अपना कोई भी काम निकलवाने के लिए दाँव-पेंच लगाना जानते थे। नमक-कांड में वे गिरफ्तारी से छूट जाने के लिए चालीस हज़ार तक रिश्वत देने को तैयार थे तो अदालत में वकीलों आदि को उन्होंने खरीद ही लिया था। अपराधी होने पर भी वे अपराधी सिद्ध नहीं हुए थे। उन्हें गिरफ्तार करने वाले मुंशी वंशीधर को ही अदालत की नसीहत सुननी पड़ी थी और बाद में अपनी नौकरी से हाथ भी धोना पड़ा था।
  3. मृदुभाषी – पंडित अलोपीदीन मृदुभाषी थे। वे अपनी जुबान से काम निकलवाना जानते थे। गिरफ्तारी के समय भी उनकी जुबान पर कड़वाहट या धमकी नहीं थी और बाद में मुंशी वंशीधर को अपना मैनेजर बनाते समय भी उनकी जुबान से रस टपक रहा था।
  4. दूर-दृष्टि – पंडित जी बहुत दूर की सोचने वाले व्यक्ति थे। वे भली-भाँति समझ गए थे कि मुंशी वंशीधर सच्चा, ईमानदार और धर्मनिष्ठ व्यक्ति था, जो किसी भी लालच में नहीं फँस सकता था। वह कर्त्तव्यनिष्ठ और परिश्रमी था। उस जैसा काम करने वाला ढूँढ़ने पर भी नहीं मिल सकता था। जो कर्त्तव्य-भावना से पूर्ण चालीस हज़ार जैसी राशि को ठुकरा सकता है, अपनी दारोगा की नौकरी त्याग सकता वह किसी भी अवस्था में बेईमानी नहीं कर सकता। इसीलिए उन्होंने वंशीधर को  ऊँची तनख्वाह पर अपनी जायदाद का मैनेजर नियुक्त कर दिया था। कोई भी सामान्य व्यक्ति कभी ऐसा करने की बात सोच भी नहीं सकता था, जैसे पंडित जी ने कर दिया था।
  5. शान-शौकत में विश्वास –  पंडित जी संपन्न थे और उन्हें शान-शौकत और रईसी जीवन में गहरा विश्वास था। उनका पहनावा, शौक, बैलगाड़ियों की सजावट आदि इसी के परिचायक हैं।

 

प्रश्न 17 –  मुंशी वंशीधर की चारित्रिक विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – “नमक का दारोगा” कि कहानी में वंशीधर सबसे महत्वपूर्ण पात्र है और उसका चरित्र अत्याधिक प्रभावशाली है। वंशीधर एक ईमानदार, शिक्षित और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति है। अपने पिता के द्वारा दिए गए बेईमानी के ज्ञान के बावजूद, वह ईमानदार है। वह एक स्वाभिमानी व्यक्ति है। न्यायालय द्वारा उनके खिलाफ नतीजा दिए जाने पर भी उन्होंने अपना आत्मसम्मान नहीं खोया। कहानी में वंशीधर के पात्र कि ईमानदारी और स्वाभिमान पाठकों को अत्यधिक प्रभावित करता है।

मुंशी वंशीधर उस व्यक्तिगत विशिष्टता के स्वामी थे, जैसा आज के युग में चिराग(दीपक) लेकर ढूँढ़ने पर भी दिखाई नहीं देता। उनकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. निर्धन एवं अभावग्रस्त –  मुंशी जी का परिवार अभावग्रस्त था। वे ऐसे परिवार से संबंधित थे जिसकी आय का साधन केवल उनके पिता थे जो किसी प्रकार खींचतान कर घर की गाड़ी खींच रहे थे। बहिनों की जिम्मेदारी उन पर थी और वे स्वयं भी विवाहित थे, पर उनके पास थोड़ी-सी पढ़ाई-लिखाई के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था।
  2. दृढ़ निश्चयी और कर्मठ –  मुंशी जी सुनते सब की थे पर करते अपने मन की ही थे। उनके पिता ने उन्हें दुनियादारी और रिश्वत के महत्त्व का पाठ पढ़ाया था, जो उन्होंने ध्यान से सुना अवश्य था, पर किया वही जो उनके मन को अच्छा लगा था। उन्होंने रिश्वत नहीं ली और अपना सिर नहीं झुकने दिया, चाहे उन्हें इस के लिए अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी थी। रात के समय जब सभी सो रहे थे तब भी वे अपनी पिस्तौल लेकर वहाँ चले गए थे जहाँ पंडित जी की नमक से भरी बैलगाड़ियाँ जा रही थीं।
  3. कर्त्तव्यनिष्ठ एवं कठोर –  मुंशी जी कर्त्तव्यनिष्ठ और कठोर थे। वे जानते थे कि पंडित अलोपीदीन क्या थे और क्या कर सकते थे, पर वे अकेले ही उनके और उनके धन के सामने डट गए थे। अदालत में भी उन्होंने अकेले ही डटने का साहस किया था।
  4. पारखी –  मुंशी जी पारखी दृष्टि रखते थे। जब पंडित जी उसके घर आए थे तो वे पारखी दृष्टि से यह जान गए थे कि उनसे समझदार स्वामी उन्हें कहीं नहीं मिलेगा। वे सरकारी विभागों की स्थिति को परख गए थे।

 

प्रश्न 18 –  ‘नमक का दरोगा’ कहानी सद्गुणों के प्रभाव की कहानी है, कैसे?
उत्तर – प्रस्तुत कथन -“’नमक का दरोगा’ कहानी सद्गुणों के प्रभाव की कहानी है”– पूर्णतः सत्य है। इस कहानी का नायक वंशीधर वास्तव में एक ऐसा व्यक्ति है जिसमें प्राय: सभी सद्गुणों का निवास है; जैसे-आज्ञाकारी पुत्र, ईमानदार, परिश्रमी, कर्तव्यनिष्ठ, दृढ़ चरित्र वाला आदि। दूसरी ओर अलोपीदीन जिसने सदा झूठ, बेईमानी और धोखाधड़ी से ही जीवन गुजारा, अपने असीमित धन से वंशीधर जैसे व्यक्ति को खरीदना चाहता था, किंतु अंत में वंशीधर के गुणों से प्रभावित होकर उसने उसे अपने ही यहाँ पर एक ऐसे पद के लिए नियुक्त किया जिसके लिए वंशीधर जैसे विश्वसनीय और ईमानदार व्यक्ति की आवश्यकता थी। इसलिए यह एक सद्गुणों के प्रभाव की कहानी है। इसमें सद्गुणों के प्रभाव में आकर अवगुणों ने घुटने टेक दिए।

 

बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर (Multiple Choice Questions)

बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) एक प्रकार का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन है जिसमें एक व्यक्ति को उपलब्ध विकल्पों की सूची में से एक या अधिक सही उत्तर चुनने के लिए कहा जाता है। एक एमसीक्यू कई संभावित उत्तरों के साथ एक प्रश्न प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 1 – ‘नमक का दरोगा’ पाठ के लेखक हैं –
(क) प्रेमचंद
(ख) प्रेम चौहान
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) प्रेम प्रसाद
उत्तर – (क) प्रेमचंद

प्रश्न 2 – अंग्रेजों ने नमक पर अपना एकाधिकार करने के लिए क्या किया –
(क) नमक को स्वयं खरीद कर
(ख) नमक की बिक्री पर रोक लगाकर
(ग) नमक का एक नया व अलग विभाग बना दिया
(घ) नमक कानून बना कर
उत्तर – (ग) नमक का एक नया व अलग विभाग बना दिया

प्रश्न 3 – लेखक के अनुसार , ईश्वर प्रदत्त वस्तु क्या थी –
(क) नौकरी
(ख) वेतन
(ग) ऊपरी कमाई
(घ) नमक
उत्तर – (घ) नमक

प्रश्न 4 – लोग किस वस्तु का व्यापार चोरी-छिपे करने लगे थे –
(क) नाव
(ख) लकड़ी
(ग) नमक
(घ) गाड़ी
उत्तर – (ग) नमक

प्रश्न 5 – कौन सा विभाग ऊपरी कमाई का सबसे अच्छा साधन बन गया था –
(क) नमक विभाग
(ख) जल विभाग
(ग) वाहन विभाग
(घ) दरोगा विभाग
उत्तर – (क) नमक विभाग

प्रश्न 6 – “नमक का दरोगा” कहानी , का नायक कौन हैं –
(क) वकील
(ख) पंडित अलोपीदीन
(ग) वंशीधर
(घ) वंशीधर के पिता
उत्तर – (ग) वंशीधर

प्रश्न 7 – वंशीधर के पिता को जीवन का कैसा अनुभव था –
(क) सुखद
(ख) कड़वा
(ग) दुखद
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ख) कड़वा

प्रश्न 8 – नमक विभाग में किसे दरोगा की नौकरी मिली –
(क) वकील
(ख) पंडित अलोपीदीन
(ग) वंशीधर
(घ) वंशीधर के पिता
उत्तर – (ग) वंशीधर

प्रश्न 9 – वंशीधर के पिता ने नौकरी में ओहदे को क्या नाम दिया –
(क) पीर की चादर
(ख) पीर का मजार
(ग) प्रसाद
(घ) ऊपरी कमाई
उत्तर – (ख) पीर का मजार

प्रश्न 10 – मुंशी वंशीधर के पिता के अनुसार , मासिक वेतन ———— होता है –
(क) पूर्णिमा का चाँद
(ख) अमावस्या का चाँद
(ग) चाँद की सोलह कलाएँ
(घ) चाँद की तरह
उत्तर – (क) पूर्णिमा का चाँद

प्रश्न 11 – नमक की कालाबाज़ारी कौन कर रहा था –
(क) वकील
(ख) पंडित अलोपीदीन
(ग) वंशीधर
(घ) वंशीधर के पिता
उत्तर – (ख) पंडित अलोपीदीन

प्रश्न 12 – पंडित अलोपीदीन को किस पर अखंड विश्वास था –
(क) कानून पर
(ख) धर्म पर
(ग) स्वयं पर
(घ) लक्ष्मी पर
उत्तर – (घ) लक्ष्मी पर

प्रश्न 13 – “न्याय और नीति , ये सब लक्ष्मी के खिलौने है” , यह किसका कथन है –
(क) वकील का
(ख) पंडित अलोपीदीन का
(ग) वंशीधर का
(घ) वंशीधर के पिता का
उत्तर – (ख) पंडित अलोपीदीन का

प्रश्न 14 – “चालीस हजार नहीं चालीस लाख पर भी असम्भव ” , यह कथन किसका है –
(क) वकील का
(ख) पंडित अलोपीदीन का
(ग) वंशीधर का
(घ) वंशीधर के पिता का
उत्तर – (ख) पंडित अलोपीदीन का

प्रश्न 15 – अलोपीदीन क्या देखकर मूर्छित होकर गिर पड़े –
(क) नमक की बोरियाँ
(ख) दरोगा को
(ग) हथकड़ियाँ
(घ) वंशीधर का गुस्सा
उत्तर – (ग) हथकड़ियाँ

प्रश्न 16 – दुनिया सोती हैं पर दुनिया की ———- जागती रहती हैं –
(क) बातें
(ख) इन्द्रियाँ
(ग) आँख
(घ) जीभ
उत्तर – (घ) जीभ

प्रश्न 17 – वंशीधर को अपनी ईमानदारी का इनाम किस रूप में मिला –
(क) नौकरी से निकाले जाने के
(ख) नौकरी में उच्च पद मिल के
(ग) नौकरी में निम्न पद मिल के
(घ) इन में से कोई नहीं
उत्तर – (क) नौकरी से निकाले जाने के

प्रश्न 18 – पंडित अलोपीदीन ने वंशीधर की तारीफ में क्या कहा –
(क) उन्होंने अपने कर्तव्य को ईमानदारी व सच्चाई के साथ निभाने वाले व्यक्ति को अपने जीवन में पहली बार देखा
(ख) उन्होंने ईमानदारी व सच्चाई के साथ काम करने वालों को बहुत बार देखा है
(ग) उन्होंने अपने कर्तव्य को ईमानदारी व सच्चाई के साथ न निभाने वाले व्यक्ति को अपने जीवन में पहली बार देखा
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) उन्होंने अपने कर्तव्य को ईमानदारी व सच्चाई के साथ निभाने वाले व्यक्ति को अपने जीवन में पहली बार देखा

प्रश्न 19 – पंडित अलोपीदीन को अपनी जायजाद को सभांलने के लिए कैसा व्यक्ति चाहिए था –
(क) ईमानदार
(ख) कर्तव्यनिष्ठ
(ग) ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ
(घ) घूसखोर
उत्तर – (ग) ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ

प्रश्न 20 – ‘नमक का दरोगा’ पाठ में धर्म ने किसे पैरों तले कुचल डाला –
(क) घमंड को
(ख) धन को
(ग) न्याय को
(घ) कानून को
उत्तर – (ख) धन को

 

सार-आधारित प्रश्न Extract Based Questions

सारआधारित प्रश्न बहुविकल्पीय किस्म के होते हैं, और छात्रों को पैसेज को ध्यान से पढ़कर प्रत्येक प्रश्न के लिए सही विकल्प का चयन करना चाहिए। (Extract-based questions are of the multiple-choice variety, and students must select the correct option for each question by carefully reading the passage.)

 

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

1 –
जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वर-प्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे। अनेक प्रकार के छल-प्रपंचों का सूत्रपात हुआ, कोई पूस से काम निकालता था, कोई चालाकी से। अधिकारियों के पौ-बारह थे। पटवारीगिरी का सर्वसम्मानित पद छोड़-छोड़कर लोग इस विभाग की बरकंदाजी करते थे। इसके दारोगा पद के लिए तो वकीलों का भी जी ललचाता था। यह वह समय था, जब अंग्रेज़ी शिक्षा और ईसाई मत को लोग एक ही वस्तु समझते थे। फ़ारसी का प्राबल्य था। प्रेम की कथाएँ और श्रृंगार रस के काव्य पढ़कर फारसीदां लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे।

प्रश्न 1 – ईश्वर प्रदत्त वस्तु क्या हैं?
(क) नमक-विभाग
(ख) नमक
(ग) व्यापार
(घ) शिक्षा
उत्तर – (ख) नमक

प्रश्न 2 – नमक के निषेध से क्या परिणाम हुआ?
(क) नमक के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया
(ख) प्रतिबंध के कारण लोग चोरी छिपे इसका व्यापार करने लगे
(ग) इससे रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 3 – नमक विभाग की नौकरी के आकर्षण का क्या कारण था?
(क) इसमें आराम से काम होता था
(ख) इसमें कोई रोक-टोक करने वाला नहीं था
(ग) इसमें ऊपर की कमाई होती थीं
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) इसमें ऊपर की कमाई होती थीं

प्रश्न 4 – फ़ारसी का क्या प्रभाव था?
(क) प्रेम की कथाएँ और श्रृंगार रस के काव्य फारसी में ही थे
(ख) फ़ारसी पढ़े लोगों को अच्छी नौकरियाँ मिल जाती थीं।
(ग) इसमें ऊपर की कमाई करने मदद होती थीं
(घ) इन में से कोई नहीं
उत्तर – (ख) फ़ारसी पढ़े लोगों को अच्छी नौकरियाँ मिल जाती थीं।

प्रश्न 5 – वकीलों का जी किसलिए ललचाता था?
(क) अधिकारी पद के लिए
(ख) अंग्रेजी पद के लिए
(ग) व्यापारी पद के लिए
(घ) दारोगा पद के लिए
उत्तर – (घ) दारोगा पद के लिए

 

2 –
उनके पिता एक अनुभवी पुरुष थे। समझाने लगे-बेटा घर की दुर्दशा देख रहे हो। ऋण के बोझ से दबे हुए हैं। लड़कियां हैं यह घास फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ न मालूम कब गिर पड़े अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो। नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्ध नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी वारकरा होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देख उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है, लेकिन बेगर को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो। यह मेरी जन्मभर की कमाई है।

प्रश्न 1 – ओहदे को पीर की मजार क्यों कहा गया है?
(क) क्योंकि जिस तरह पीर की मज़ार पर लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं, उसी तरह नौकरी में ऊपर की कमाई के रूप में चढ़ावा मिलता है
(ख) क्योंकि नौकरी में ऊपर की कमाई के रूप में चढ़ावा मिलता है
(ग) क्योंकि जिस तरह पीर की मज़ार पर लोग जाते हैं, उसी तरह नौकरी में भी लोग अधिकारियों से मिलने आते है
(घ) क्योंकि पीर की मज़ार की तरह नौकरी में भी सभी इज्जत करते हैं
उत्तर – (क) क्योंकि जिस तरह पीर की मज़ार पर लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं, उसी तरह नौकरी में ऊपर की कमाई के रूप में चढ़ावा मिलता है

प्रश्न 2 – वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?
(क) क्योंकि यह जल्दी समाप्त हो जाता है
(ख) क्योंकि यह चाँद की तरह अच्छा लगता है
(ग) क्योंकि यह महीने में पूर्णमासी के चाँद की तरह एक बार मिलता है
(घ) क्योंकि यह एक बार घट कर बढ़ता जाता है
उत्तर – (ग) क्योंकि यह महीने में पूर्णमासी के चाँद की तरह एक बार मिलता है

प्रश्न 3 – वेतन व ऊपरी आय में क्या अंतर हैं?
(क) वेतन पूर्णमासी के चाँद की तरह है जो एक दिन दिखता है और अंत में लुप्त हो जाता है
(ख) ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है। जिससे सदैव प्यास बुझती है
(ग) वेतन मनुष्य देता है इसलिए उसमें बढ़ोतरी नहीं होती, जबकि ऊपर की कमाई ईश्वर देता है इसलिए इसमें बरकत होती है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 4 – ‘लड़कियां हैं यह घास फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।’ का क्या आशय है –
(क) लड़कियाँ फजूल हैं
(ख) लड़कियाँ जल्दी-जल्दी बढ़ती हैं
(ग) लड़कियाँ किसी काम की नहीं होती
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ख) लड़कियाँ जल्दी-जल्दी बढ़ती हैं

प्रश्न 5 – पिता अपने बेटे को क्या सीख दे रहा है?
(क) नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है
(ख) निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए
(ग) ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

 

3 –
पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था। वह कहा करते थे कि संसार का तो कहना ही क्या, स्वर्ग में भी लक्ष्मी का ही राज्य है। उनका यह कहना यथार्थ ही था। न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं। लेटे ही लेटे गर्व से बोले-चलो, हम आते हैं। यह कहकर पंडित जी ने बड़ी निश्चितता से पान के बीड़े लगाकर खाए फिर लिहाफ़ ओढ़े हुए दारोगा के पास। आकर बोले-बाबू जी, आशीर्वाद कहिए हमसे ऐसा कौन-सा अपराध हुआ कि गाड़ियों रोक दी गई। हम ब्राह्मणों पर तो आपकी कृपा-दृष्टि रहनी चाहिए। वंशीधर रुखाई से बोले-सरकारी हुक्म !

पंडित आलोपदीन ने हँसकर कहा हम सरकारी हुक्म को नहीं जानते और न सरकार को। हमारे सरकार तो आप ही हैं। हमारा और आपका तो घर का मामला है, हम कभी आपसे बाहर हो सकते हैं? मापने व्यर्थ का कष्ट उठाया। यह हो नहीं सकता कि इधर से जाएँ और इस घाट के देवता को भेंट न चढ़ावें। मैं तो आपकी सेवा में स्वयं ही आ रहा था। वंशीधर पर ऐश्वर्य की मोहिनी वशी का कुछ प्रभाव न पड़ा। ईमानदारी की नयी उमंग थी। कड़ककर बोले-हम उन नमकहरामों में नहीं हैं जो कौड़ियों पर अपना ईमान बेचते फिरते हैं। आप इस समय हिरासत में हैं। आपका कायदे के अनुसार चालान होगा। बस मुझे अधिक बातों की पुरसत नहीं है। जमादार बदलू सिंह, तुम इन्हें हिरासत में ले चलो, मैं हुक्म देता हैं।

प्रश्न 1 – लक्ष्मी जी के बारे में पडित जी की क्या राय थी?
(क) पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था
(ख) वे कहते थे कि संसार और स्वर्ग में लक्ष्मी का राज है
(ग) न्याय और नीति लछमी के इशारे पर नाचते हैं
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 2 – गद्यानुसार पडित अलोपीदीन का व्यवहार कैसा है?
(क) पंडित अलोपीदीन चालाक उद्योगपति है
(ख) वह चापलूसी, रिश्वत आदि से अपना काम निकलवाना जानता है
(ग) पंडित अलोपीदीन एक ईमानदार व्यापारी है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ख) वह चापलूसी, रिश्वत आदि से अपना काम निकलवाना जानता है

प्रश्न 3 – गद्यानुसार वंशीधर का व्यवहार कैसा है?
(क) वंशीधर एक चालाक दरोगा है
(ख) रिश्वत लेने में माहिर होने के कारण वह सरकारी कर्मियों व अदालत से नहीं घबराता
(ग) वह ईमानदार है तथा गैरकानूनी कार्य करने वालों को सजा दिलाना चाहता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) वह ईमानदार है तथा गैरकानूनी कार्य करने वालों को सजा दिलाना चाहता है

प्रश्न 4 – घाट के देवता को भेंट चढाने से क्या तात्पर्य हैं?
(क) क्षेत्र के नमक के दरोगा को रिश्वत देना आवश्यक है
(ख) क्षेत्र के देवता को भोग लगाना आवश्यक है
(ग) क्षेत्र के बड़े अधिकारियों को रिश्वत देना आवश्यक है
(घ) इन में से कोई नहीं
उत्तर – (क) क्षेत्र के नमक के दरोगा को रिश्वत देना आवश्यक है

प्रश्न 5 – वंशीधर की रुलाई का क्या कारण था?
(क) रेत का गैर-कानूनी व्यापार
(ख) पानी का गैर-कानूनी व्यापार
(ग) पत्थरों का गैर-कानूनी व्यापार
(घ) नमक का गैर-कानूनी व्यापार
उत्तर – (घ) नमक का गैर-कानूनी व्यापार

 

4 –
दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक-वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी। जिसे देखिए, वहीं पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछारें हो रही थीं मानी संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचनेवाला ग्वाला, कल्पित रोशनामधे भरनेवाले अधिकारी वर्ग, रेन में बिना टिकट सफर करने वाले बाद लोग, जाली दस्तावेज़ लानानेवाले सेठ और साहूकार, यह सब-वे-सब देवताओं की भाँति गरदने चला रहे थे। जब दूसरे दिन पंडित भलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकड़ियाँ, हृदय में ग्लानि और क्षोभ भरे, लज्जा से गरदन झुकाए अदालत की तरफ चले तो सारे शहर में हलचल मच गई। मेलों में कदाचित् आँखें इतनी व्यग्र न होती होंगी। भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा।

किंतु अदालत में पहुँचने की देर थी। पंडित अलोपीदीन इस अगाध वन के सिंह थे। अधिकारी वर्ग उनके भक्त, मले उनके सेवक, वकील मुलार उनके आज्ञापालक और अदला चपरासी तथा चौकीदार तो उनके बि| माल के गुलाम थे। उन्हें देखते ही लो। चारों तरफ से दौड़े। सभी लोग विस्मित हो रहे थे। इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया, बल्दिा इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करनेवाला धन और अनन्य वाघालता हो, वह यय कानून के पंजे में आए । प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था। बड़ी तत्परता से इस आक्रमण को रोकने के निमित्त वकीलों की एक सेना तैयार की गई। न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया। वंशीधर चुपचाप खड़े थे। उनके पास सत्य के सिवा न कोई बल था, न स्पष्ट भाषण के अतिरिक्त कोई शस्त्र। गवाह थे किंतु लोभ से डाँवाडोल।

प्रश्न 1 – दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जगती थी।’ से क्या तात्पर्य हैं –
(क) रात के समय सब सो जाते हैं पर सपनों में सब बातें करते रहते हैं
(ख) रात के समय हुई घटना की चर्चा आग की तरह सारे शहर में फैल गई, हर आदमी मजे लेकर यह बात एक-दूसरे बता रहा था
(ग) जब पूरी दुनिया सो जाती है, तब कुछ लोगों की जुबान चलती है
(घ) कुछ लोगों की जुबान सभी के सो जाने के बाद ही चलती है
उत्तर – (ख) रात के समय हुई घटना की चर्चा आग की तरह सारे शहर में फैल गई, हर आदमी मजे लेकर यह बात एक-दूसरे बता रहा था

प्रश्न 2 – देवताओं की तरह गरदने चलाने का क्या मतलब है –
(क) स्वयं को सबसे बड़ा समझना
(ख) स्वयं को अपराधी समझना
(ग) स्वयं को देवता समझना
(घ) स्वयं को निर्दोष समझना
उत्तर – (घ) स्वयं को निर्दोष समझना

प्रश्न 3 – कौन-कौन लोग गरदन चला रहे थे?
(क) पानी को दूध के नाम से बेचने वाला ग्वाला
(ख) नकली बही-खाते बनाने वाला अधिकारी वर्ग
(ग) रेल में बेटिकट यात्रा करने वाले बाबू जाली दस्तावेज बनाने वाले सेठ और साहूकार
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 4 – पंडित अलोपीदीन को अदालत रूपी वन का सिंह कहा गया, क्यों?
(क) क्योंकि पंडित अलोपीदीन अदालत और न्याय को नहीं नहीं मानता था
(ख) क्योंकि पंडित अलोपीदीन अदालत और न्याय से अपने आप को ऊँचा मानता था
(ग) क्योंकि अदालत में उसके खरीदे हुए अधिकारी, अमले, अरदली, चपरासी, चौकीदार आदि थे, जो उसके हुबम के गुलाम थे
(घ) क्योंकि अदालत में उसके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं था
उत्तर – (ग) क्योंकि अदालत में उसके खरीदे हुए अधिकारी, अमले, अरदली, चपरासी, चौकीदार आदि थे, जो उसके हुबम के गुलाम थे

प्रश्न 5 – लोगों के विस्मित होने का क्या कारण था?
(क) लोग अलोपीदीन की गिरफ्तारी से हैरान थे
(ख) क्योंकि उन्हें अलोपीदीन की धन की ताकत व बातचीत की कुशलता का पता था कि वह छूट जाएगा
(ग) उन्हें अलोपीदीन के पकड़े जाने पर हैरानी थी क्योंकि वह अपने धन के बल पर कानून की हर ताकत से बचने में समर्थ था
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

5 –
वंशीधर ने धन से बैर मोल लिया था, उसका मूल्य चुकाना अनिवार्य था। कठिनता से एक सप्ताह बीता होगा कि मुअत्तली का परवाना आ पहुँचा। कार्य-परायणता का दंड मिला। बेचारे भग्न हृदय, शोक और खेद से व्यथित घर को चले। बूढ़े मुंशीजी तो पहले ही से कुड़-बुड़ा रहे थे कि चलते-चलते इस लड़के को समझाया था लेकिन इसने एक न सुनी। सब मनमानी करता है। हम तो कलवार और कसाई के तगादे सहें, बुढ़ापे में भगत बनकर बैठें और वहाँ बस वही सूखी तनख्वाह! हमने भी तो नौकरी की है, और कोई ओहदेदार नहीं थे, लेकिन काम किया, दिल खोलकर किया और आप ईमानदार बनने चले हैं। घर में चाहे अँधेरा हो, मस्जिद में अवश्य दीया जलाएँगे। खेद ऐसी समझ पर! पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया। इसके थोड़े ही दिनों बाद, जब मुंशी वंशीधर इस दुरावस्था में घर पहुँचे और बूढ़े पिताजी ने समाचार सुना तो सिर पीट लिया। बोले-जी चाहता है कि तुम्हारा और अपना सिर फोड़ लूँ। बहुत देर तक पछता-पछताकर हाथ मलते रहे। क्रोध में कुछ कठोर बातें भी कहीं और यदि वंशीधर वहाँ से टल न जाते तो अवश्य ही यह क्रोध विकट रूप धारण करता। वृद्ध माता को भी दुःख हुआ। जगन्नाथ और रामेश्वर यात्रा की कामनाएँ मिट्टी में मिल गईं। पत्नी ने तो कई दिनों तक सीधे मुँह से बात भी नहीं की।

प्रश्न 1 – धन से बैर मोल लेने का क्या अर्थ है –
(क) धन गवा लेना
(ख) समृद्ध व्यक्ति से पन्गा लेना
(ग) जुए में धन हार जाना
(घ) धन से दुश्मनी ले लेना
उत्तर – (ख) समृद्ध व्यक्ति से पन्गा लेना

प्रश्न 2 – बूढ़े मुंशीजी पहले से ही क्यों कुड़-बुड़ा रहे थे –
(क) क्योंकि उनके लड़के ने उनकी बात नहीं सुनी
(ख) क्योंकि उनका लड़का मनमानी करता था
(ग) क्योंकि उनका लड़का ईमानदारी की राह पर चला था
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 3 – जब मुंशी वंशीधर दुरावस्था में घर पहुँचे तो उनके पिता जी ने क्या किया –
(क) बूढ़े पिताजी ने समाचार सुना तो सिर पीट लिया
(ख) वे बोले-जी चाहता है कि तुम्हारा और अपना सिर फोड़ लूँ
(ग) बहुत देर तक पछता-पछताकर हाथ मलते रहे
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 4 – यदि वंशीधर पिता जी के क्रोध पर से टल न जाते तो अवश्य ही क्या हो जाता –
(क) क्रोध शांत हो जाता
(ख) क्रोध विकट रूप धारण करता
(ग) क्रोध कुछ समय ही रहता
(घ) दोनों को क्रोध आ जाता
उत्तर – (ख) क्रोध विकट रूप धारण करता

प्रश्न 5 – वंशीधर को वापिस घर आया देख कौन दुखी हुए –
(क) माता-पिता व् पत्नी
(ख) केवल माता
(ग) केवल पत्नी
(घ) केवल पिता
उत्तर – (क) माता-पिता व् पत्नी

 

6 –
पंडित अलोपीदीन ने वंशीधर से कहा-दारोगा जी, इसे खुशामद न समझिए, खुशामद करने के लिए मुझे इतना कष्ट उठाने की जरूरत न थी। उस रात को आपने अपने अधिकार-बल से मुझे अपनी हिरासत में लिया था किन्तु आज मैं स्वेच्छा से आपकी हिरासत में हूँ। मैंने हजारों रईस और अमीर देखे, हजारों उच्च पदाधिकारियों से काम पड़ा, किन्तु मुझे परास्त किया तो आपने। मैंने सबको अपना और अपने धन का गुलाम बनाकर छोड़ दिया। मुझे आज्ञा दीजिए कि आपसे कुछ विनय करूँ। वंशीधर ने अलोपीदीन को आते देखा तो उठकर सत्कार किया किन्तु स्वाभिमान सहित। समझ गए कि यह महाशय मुझे लज्जित करने और जलाने आए हैं। क्षमा-प्रार्थना कर चेष्टा नहीं की, वरन उन्हें अपने पिता की यह ठकुर-सुहाती की बात असह्य-सी प्रतीत हुई। पर पंडितजी की बातें सुनीं तो मन की मैल मिट गई। पंडितजी की ओर उड़ती हुई दृष्टि से देखा। सदभाव झलक रहा था। गर्व ने अब लज्जा के सामने सिर झुका दिया। शरमाते हुए बोले-यह आपकी उदारता है जो ऐसा कहते हैं। मुझसे जो कुछ अविनय हुई है, उसे क्षमा कीजिए। मैं धर्म की बेड़ी में जकड़ा हुआ था, नहीं तो वैसे मैं आपका दास हूँ। जो आज्ञा होगी, वह मेरे सिर-माथे पर। अलोपीदीन ने विनीत भाव से कहा-नदी तट पर आपने मेरी प्रार्थना नहीं स्वीकार की थी किन्तु आज स्वीकार करनी पड़ेगी।

प्रश्न 1 – रात को वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन को अपनी हिरासत में कैसे लिया था –
(क) अपने बल से
(ख) अपने अधिकार से
(ग) अपने शातिर दिमाग से
(घ) अपने अधिकार-बल से
उत्तर – (घ) अपने अधिकार-बल से

प्रश्न 2 – वंशीधर ने अलोपीदीन को आते देखा तो –
(क) उठकर सत्कार किया
(ख) उठकर स्वाभिमान के लिए वहाँ से चले गए
(ग) उठकर सत्कार किया किन्तु स्वाभिमान सहित
(घ) गुस्से से वहाँ से चले गए
उत्तर – (ग) उठकर सत्कार किया किन्तु स्वाभिमान सहित

प्रश्न 3 – वंशीधर ने अलोपीदीन को आते देख क्या सोचा –
(क) वे लज्जित करने आए हैं
(ख) वे लज्जित करने और जलाने आए हैं
(ग) वे जलाने आए हैं
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ख) वे लज्जित करने और जलाने आए हैं

प्रश्न 4 – पंडितजी की बातें सुनीं तो वंशीधर पर क्या प्रभाव पड़ा –
(क) वह उनकी बातें पूरी सुने बिना चला गया
(ख) उसका गुस्सा शांत हो गया
(ग) उसको बहुत गुस्सा आया
(घ) उसके मन की मैल मिट गई
उत्तर – (घ) उसके मन की मैल मिट गई

प्रश्न 5 – पंडितजी की बातें सुनीं तो वंशीधर पर क्या प्रभाव पड़ा सफाई में क्या कहा –
(क) मुझसे जो कुछ अविनय हुई है, उसे क्षमा कीजिए
(ख) मैं धर्म की बेड़ी में जकड़ा हुआ था, नहीं तो वैसे मैं आपका दास हूँ
(ग) जो आज्ञा होगी, वह मेरे सिर-माथे पर
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

 

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