CBSE Class 11 Hindi Vitan Bhag 1 Book Chapter 2 राजस्थान की रजत बूंदें Question Answers

Rajasthan Ki Rajat Bunde Class 11 – CBSE Class 11 Hindi Vitan Bhag-1 Chapter 2 Rajasthan Ki Rajat Bunde Question Answers. The questions listed below are based on the latest CBSE exam pattern, wherein we have given NCERT solutions of the chapter, extract based questions, multiple choice questions, short and long answer questions.

सीबीएसई कक्षा 11 हिंदी वितान भाग-1 पुस्तक पाठ 2 राजस्थान की रजत बूंदें प्रश्न उत्तर | इस लेख में NCERT की पुस्तक के प्रश्नों के उत्तर तथा महत्वपूर्ण प्रश्नों का व्यापक संकलन किया है।

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Rajasthan Ki Rajat Bunde Question and Answers (राजस्थान की रजत बूंदें प्रश्न-अभ्यास)

प्रश्न 1 – राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?
उत्तर – राजस्थान के बारे में सब जानते है कि, राजस्थान में रेत अथाह है। चारो तरफ रेत होने के कारण जब वर्षा होती है, वर्षा का पानी रेत में समा जाता है, फलस्वरूप ऊपरी सतह पर पानी का तो कोई असर नहीं होता, परन्तु नीचे की सतह पर नमी जमा हो जाती है। यह नमी खड़िया मिट्टी की परत के ऊपर तक रहती है। इस नमी को पानी के रूप में बदलने के लिए चार-पाँच हाथ के व्यास की जगह को तीस से साठ हाथ की गहराई तक खोदा जाता है। खुदाई के साथ-साथ चिनाई भी की जाती है। इस चिनाई के बाद खड़िया की पट्टी पर रिस-रिस कर पानी एकत्र हो जाता है। इसी तंग गहरी जगह को कुंई कहा जाता है। यह कुएँ का स्त्रीलिंग रूप है। यह कुएँ से केवल व्यास में छोटी होती है, परंतु गहराई में लगभग समान होती है। आम कुएँ का व्यास पंद्रह से बीस हाथ का होता है, परंतु कुंई का व्यास चार या पाँच हाथ होता है।

प्रश्न 2 – दिनोदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपकी कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं? जानें और लिखें।
उत्तर – आज के समय में दिन प्रतिदिन धरती पर पानी की समस्या एक विकट और बिकराल समस्या का रूप लेते जा रही है और हम मानव के द्वारा प्रकृति से अत्यधिक छेड़ छाड़ ही इसका मुख्य कारण है। मनुष्य ने प्रकृति का जैसा दोहन किया है, उसी का अंजाम आज मनुष्य भुगत रहा है। पेड़-पोधे और जंगलों के कटने के कारण पानी समान्य स्तर से कम होती जा रही है। सभी जगहों पर लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं। अब मनुष्य जल संरक्षण के उपाय खोजने लगा है। इस उपाय खोजने की प्रक्रिया में राजस्थान सबसे आगे है, क्योंकि वहाँ जल का पहले से ही अभाव था। मानव द्वारा निर्मित ऐसे वातावरण में ‘राजस्थान की रजत बूंदे’ पाठ से हमें जल संग्रह और जल प्राप्ति के अन्य उपायों और पानी के उचित प्रयोग पर विचार करने में काफी मदद मिलती है। हमारे देश में भी कई जगहों पर पानी की समस्या से निपटने के लिए सरकार द्वारा कई सरकारी और गैर सरकारी अभियान जोर-शोर से चलाए जा रहे है। लोगो को प्रिंट मीडिया, विज्ञापन, कार्यक्रम के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है। सिनेमा जगत की प्रसिद्ध हस्तियों द्वारा पानी की समस्या के विषय में लोगों को अवगत कराया जा रहा है। जल को पुनरुपयोग करने के तरीकों को जनमानस को बताया जा रहा है। वर्षा के पानी के बचाव के कई उपाय गांवो और शहरो में उपलब्ध किए जा रहे हैं। गांवो में तालाब का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। नदियों को साफ किया जा रहा है। छोटे कुओं और जलाशयों का बड़े स्तर पर निर्माण कर पानी के भूमिगत जल-स्तर को बढ़ाया का रहा है।

प्रश्न 3 – चेजारो के साथ गाँव समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फ़र्क आया है, पाठ के आधार पर बताइए?
उत्तर – चेजारों अर्थात चिनाई करने वाले लोग। ये लोग कुंई निर्माण में हस्त कुशलता में माहिर होते हैं और इन्हें दक्ष चिनाई करने वाले कारीगर कहा जाता है। पुराने समय में राजस्थान में चेज़ारो को विशेष दर्जा प्राप्त था। कुंई के चिनाई के कार्य के दौरान गांव वालों द्वारा इन्हें तरह-तरह के उपहार भेट स्वरूप दी जाती थी और कुई का निर्माण ख़त्म होने के बाद भी इनका रिश्ता गांव से बना रहता था। उन्हें हर तीज, त्योहार तथा शादी-विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर विशेष भेट दी जाती है। सीधे तौर पर देखा जाएं तो उन्हें जलदाता माना जाता था। उनका सम्मान इतना था की फसल पकने के बाद खलिहान में उनके नाम से अनाज का एक ढेर अलग से निकाल कर रखा जाता था। समय के अनुसार अब स्थिति में काफी बदलाव आया है अब उन्हें उपहार और अनाज का भेट नहीं दिया जाता सिर्फ मजदूरी देकर उनसे काम करवाया जाता है।

प्रश्न 4 – निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में कुंइयों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर – जल और विशेष रूप में पेय जल सभी के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। कुंई का जल और रेगिस्तान की गरमी की तुलना करें तो जल अमृत से बढ़कर है। क्योंकि, हम जानते हैं कि राजस्थान हमारे देश का ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा पानी की कमी रहती है। गांवो में यहां के लोग पानी के कुंईयों और बावड़ियों पर निर्भर रहते हैं। कुंईयों का निर्माण ग्राम समाज की सार्वजनिक भूमि पर किया जाता है। ग्राम समाज का मानना होता है कि कुंईयों में पानी बारिश में हुई वर्षा से निर्धारित की जाती है, तो नयी और निजी कुंईयों के निर्माण का मतलब है कि, बारिश के पानी की नमी का बंटवारा। जिससे जल के स्तर में गिरावट आएगी। इसलिए निजी होने के बावजूद, सार्वजनिक क्षेत्र में बने कुंईयों पर ग्राम समाज का नियंत्रण होता है। अगर इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो लोग घर – घर में कई कुंईयां बना देंगे और हर किसी को पानी नहीं मिलेगा। ग्राम समाज नए कुंई के लिए अपनी स्वीकृति तब देता है, जब या तो कुंई गिर कर भर जाएं और नयी कुंई की जरूरत पड़ जाये।

प्रश्न 5 – कुंई निर्माण से संबंधित निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें पालरपानी, पातालपानी, रेजाणीपानी।
उत्तर – पालरपानी – यह पानी का वह रूप है जो सीधे बरसात से मिलता है। यह धरातल पर बहता है और इसे नदी, तालाब आदि में रोका जाता है। इस पानी का वाष्पीकरण जल्दी होता है। काफी पानी जमीन के अंदर चला जाता है।
पातालपानी – जो पानी भूमि में जाकर भूजल में मिल जाता है, उसे पाताल पानी कहते हैं। इसे कुओं, पंपों, ट्यूबबेलों आदि के द्वारा निकाला जाता है।
रेजाणीपानी – यह पानी धरातल से नीचे उतरता है, परंतु पाताल में नहीं मिलता है। यह पालरपानी और पातालपानी के बीच का है। वर्षा की मात्रा नापने में इंच या सेंटीमीटर नहीं, बल्कि ‘रेजा’ शब्द का उपयोग होता है। रेज का माप धरातल में समाई वर्षा को नापता है। रेजाणी पानी खड़िया पट्टी के कारण पाताली पानी से अलग बना रहता है तथा इसे कुंइयों के माध्यम से इकट्ठा किया जाता है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर – (Important Question Answers)

प्रश्न 1 – ‘राजस्थान की रजत बूंदें’ पाठ के आधार पर राजस्थान के रेत की विशेषता बताइए।
उत्तर – राजस्थान में रेत के कण बारीक होते हैं। वे एक-दूसरे से चिपकते नहीं है। आमतौर पर मिट्टी के कण एक-दूसरे से चिपक जाते हैं तथा मिट्टी में दरारें पड़ जाती हैं। इन दरारों से नमी गर्मी में वाष्प बन जाती है। रेत के कण बिखरे रहते हैं। अत: उनमें दरारें नहीं पड़तीं और अंदर की नमी अंदर ही रहती है। यह नमी ही कुंइयों के लिए पानी का स्रोत बनती है।

प्रश्न 2 – कुंई और कुएँ में क्या अंतर है?
उत्तर – कुंई का व्यास संकरा और गहराई कम होती है। इसकी तुलना में कुएँ का व्यास और गहराई कई गुना अधिक होती है। कुआँ भू-जल को पाने के लिए बनाया जाता है पर कुंई वर्षा के जल को बड़े ही विचित्र ढंग से समेटने का साधन है। कुंई बनाने के लिए खड़िया पट्टी का होना अति आवश्यक है जो केवल भू-गर्भ जानकारी वाले लोग ही बताते हैं, जबकि कुएँ के लिए यह जरूरी नहीं है। कुंई मीठे पानी का संग्रह स्थल है, जबकि कुआँ प्रायः खारे पानी का स्रोत होता है।

प्रश्न 3 – कुंई का मुँह छोटा रखने के क्या कारण हैं?
उत्तर – कुंई का मुँह छोटा रखने के निम्नलिखित तीन बड़े कारण हैं –
रेत में जमा पानी कुंई में बहुत धीरे-धीरे रिसता है। अतः मुँह छोटा हो तभी प्रतिदिन जल स्तर पानी भरने लायक बन पाता है।
बड़े व्यास से धूप और गरमी में पानी के भाप बनकर उड़ जाने का खतरा बना रहता है। छोटा मुँह होने से पानी के भाप बन कर उड़ने का खतरा नहीं रहता।
कुंई की स्वच्छता और सुरक्षा के लिए उसे ढककर रखना जरूरी है; मुँह छोटा होने से यह कार्य आसानी से किया जा सकता है।

प्रश्न 4 – कुंई का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर – कुंई राजस्थान के रेगिस्तान में मीठे पानी से पोषण करने वाली एक कलात्मक कृति है। इसे बनाने में वहाँ के लोगों का पीढ़ी दर पीढ़ी का अनोखा अनुभव लगा है और एक समूचा शास्त्र विकसित किया गया है। राजस्थान में जल की कमी तो सदा से ही है। इसे पूरा करने के लिए कुएँ, तालाब, बावड़ी आदि का प्रयोग होता है। कुंई मीठे पानी का संग्रह स्थल है। मरुभूमि में रेत का विस्तार और गहराई अथाह है। यहाँ वर्षा अधिक मात्रा में भी हो तो भी शीघ्रता से भूमि में समा जाती है। पर कहीं-कहीं मरुभूमि में रेत की सतह के नीचे प्रायः दस-पंद्रह से पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर की एक पट्टी चलती है। यह पट्टी जहाँ भी है वहाँ वर्षा का जल भू-तल के जल में नहीं मिल पाता, यह पट्टी उसे रोकती है। यह रुका हुआ पानी संग्रह कर प्रयोग में लाने की विधि है-कुंई। इसे छोटे व्यास में गहरी खुदाई करके बनाया जाता है। इसकी खुदाई एक छोटे उपकरण बसौली से की जाती है। खुदाई के साथ-साथ चिनाई का काम भी चलता रहता है। चिनाई ईंट-पत्थर, खींप की रस्सी और लकड़ी के लट्ठों से की जाती है। यह सब कार्य एक कुशल कारीगर चेलवांजी या चेजारो द्वारा किया जाता है। ये पीढ़ियों के अनुभव से अपने काम में माहिर होते हैं। समाज में इनका मान होता है। कुंई में खड़िया पट्टी पर रेत के नीचे इकट्ठा हुआ जल बूंद-बूंद करके रिस-रिसकर एकत्र होता जाता है। इसे प्रतिदिन दिन में एक बार निकाला जाता है। ऐसा लगता है प्रतिदिन सोने का एक अंडा देनेवाली मुरगी की कहानी कुंई पर भी लागू होती है। कुंई निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में होती हैं। उन पर ग्राम-समाज का अंकुश लगा रहता है।

प्रश्न 5 – राजस्थान में कुंई क्यों बनाई जाती हैं?
उत्तर – राजस्थान में थार का रेगिस्तान है जहाँ जल का अभाव हमेशा से है। नदी-नहर आदि तो स्वप्न की बात है। तालाबों और बावड़ियों के जल से नहाना, धोना और पशुधन की रक्षा करने का काम किया जाता है। कुएँ बनाए भी जाते हैं तो एक तो उनका जल स्तर बहुत नीचे होता है और दूसरा उनसे प्राप्त जल खारा (नमकीन) होता है। अतः पेय जल आपूर्ति और भोजन बनाने के लिए कुंई के पानी का प्रयोग किया जाता है। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए राजस्थान में कुंई बनाई जाती जब कुंई तैयार हो जाती है तो रेत में से रिस-रिसकर जल की बूंदें कुंई में टपकने लगती हैं और कुंई में जल इकट्ठा होने लगता है।

प्रश्न 6 – कुंई की खुदाई किससे की जाती है?
उत्तर – कुंई का व्यास बहुत कम होता है। इसलिए इसकी खुदाई फावड़े या कुल्हाड़ी से नहीं की जा सकती। बसौली से इसकी खुदाई की जाती है। यह छोटी डंडी का छोटे फावड़े जैसा औजार होता है जिस पर लोहे का नुकीला फल तथा लकड़ी का हत्था लगा होता है।

प्रश्न 7 – जब चेलवांजी कुंई की खुदाई कर रहा होता है तो उस समय ऊपर जमीन पर खड़े लोग क्या करते हैं?
उत्तर – जब चेलवांजी कुंई की खुदाई करता है तो कुंई की खुदाई के समय गहराई बढ़ने के साथ-साथ गर्मी बढ़ती जाती है। उस गर्मी को कम करने के लिए ऊपर जमीन पर खड़े लोग बीच-बीच में मुट्ठी भर रेत बहुत जोर के साथ नीचे फेंकते हैं। इससे ऊपर की ताजी हवा रेत के साथ नीचे की तरफ जाती है और गहराई में जमा दमघोंटू गर्म हवा ऊपर लौटती है। इससे चेलवांजी को गर्मी से राहत मिलती है।

प्रश्न 8 – कुंई से पानी कैसे निकाला जाता है?
उत्तर – कुंई से पानी चड़स के द्वारा निकाला जाता है। यह मोटे कपड़े या चमड़े की बनी होती है। इसके मुँह पर लोहे का वजनी कड़ा बँधा होता है। आजकल ट्रकों की फटी ट्यूब से भी छोटी चड़सी बनने लगी है। चडस पानी से टकराता है तथा ऊपर का वजनी भाग नीचे के भाग पर गिरता है। इस तरह कम मात्रा के पानी में भी वह ठीक तरह से डूब जाती है। भर जाने के बाद ऊपर उठते ही चड़स अपना पूरा आकार ले लेता है। दूसरी प्रक्रिया में इस जल को निकालने के लिए गुलेल की आकृति की लकड़ी लगाई जाती है। उसके बीच में फेरडी या घिरणी लगाकर रस्सी से चमड़े की थैली बाँधकर जल निकाला जाता है। जल निकालने का काम केवल दिन में एक बार सुबह-सुबह किया जाता है। उसके बाद कुंई को ढक दिया जाता।

प्रश्न 9 – खड़िया पत्थर की पट्टी कहाँ चलती है?
उत्तर – मरुभूमि में रेत का विस्तार व गहराई अथाह है। यहाँ अधिक वर्षा भी भूमि में जल्दी जमा हो जाती है। कहीं-कहीं मरुभूमि में रेत की सतह के नीचे प्राय: दस-पंद्रह हाथ से पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर की एक पट्टी चलती है। यह पट्टी लंबी-चौड़ी होती है, परंतु रेत में दबी होने के कारण दिखाई नहीं देती।

प्रश्न 10 – खड़िया पत्थर की पट्टी का क्या फायदा है?
उत्तर – खड़िया पत्थर की पट्टी वर्षा के जल को गहरे खारे भूजल तक जाकर मिलने से रोकती है। ऐसी स्थिति में उस क्षेत्र में बरसा पानी भूमि की रेतीली सतह और नीचे चल रही पथरीली पट्टी के बीच अटक कर नमी की तरह फैल जाता है।

प्रश्न 11 – खड़िया पट्टी का विस्तार से वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – राजस्थान की मरुभूमि में रजकणों के नीचे खूब गहराई में खड़िया पत्थर की परत पाई जाती है। यह परत काफ़ी कठोर होती है। इसी परत के कारण रजकणों द्वारा सोख लिया गया जल नीचे भूल-तल के जल में नहीं मिलता और उससे ऊपर रह जाता है। रेत के नीचे सब जगह खड़िया की पट्टी नहीं है। इसलिए कुंई भी सारे राजस्थान में नहीं मिलतीं। चुरू, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर के कई क्षेत्रों में यह पट्टी चलती है और इसी कारण वहाँ गाँव-गाँव में कुंइयाँ हैं। जैसलमेर जिले के एक गाँव खडेरों की ढाणी में तो एक सौ बीस कुइयाँ थीं। लोग इस क्षेत्र को छह-बीसी (छह गुणा बीस) कहते हैं। इस पट्टी को पार भी कहा जाता है। जैसलमेर तथा बाड़मेर के कई गाँव पार के कारण ही आबाद हैं। अलग-अलग जगहों पर खड़िया पट्टी के अलग-अलग नाम हैं। कहीं चह चारोली है तो कहीं धाधड़ों, धड़धड़ो, कहीं पर बिटू से बल्लियों के नाम से भी जानी जाती है। कहीं इस पट्टी को ‘खड़ी’ भी कहते हैं। इसी खड़ी के बल पर खारे पानी के बीच मीठा पानी देती हुई कुंई खड़ी रहती है।

प्रश्न 12 – राजस्थान में कुंई केवल जल आपूर्ति ही नहीं करतीं, सामाजिक संबंध भी बनाती हैं, कैसे? ।
उत्तर – कुंई जनसंपर्क स्थापित करने का काम करती हैं। कुंई की खुदाई करनेवाला चेलवांजी (चेजारो) तो जिस परिवार के लिए कुंई बनाता है उसका माननीय सदस्य बन जाता है, क्योंकि रेतीले मरुस्थल में जल सबसे कीमती अमृत माना जाता है। अतः चेजारो जलदाता है। उसका मान अन्नदाता से भी ऊपर है। केवल कुंई बनाने तक ही नहीं, उसे सदा के लिए तीजत्योहार, शादी-ब्याह में बुलाया जाता है और आदर के साथ भेंट दी जाती है। फ़सल के समय खलिहानों में भी उनके नाम का ढेर अलग से लगाया जाता है। चेजारो के अतिरिक्त कुंई सामान्य जनों को भी एक समान धरातल पर लाती है। निजी होने पर भी कुंई एक सार्वजनिक स्थान पर बनाई जाती है। वहाँ अनेक कुंई होती हैं और पानी लेने का समय एक ही होता है। उसी समय गाँव में मेला-सा लगता है। सभी घिरनियाँ एक साथ घूमती हैं। लोग एक-दूसरे से मिलते हैं। जल लेने के साथ-साथ सामाजिक जुड़ाव भी होता है। निजी होकर भी सार्वजनिक स्थान पर बनी कुइयाँ समाज को जल के नाम पर ही सही, समानता के धरातल पर ले आती हैं। अतः कुंई को सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, कलात्मक एवं पारंपरिक जल संसाधन कहा जा सकता है। ये सामाजिक संबंधों की सूत्रधारिणी हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर (Multiple Choice Questions)

बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) एक प्रकार का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन है जिसमें एक व्यक्ति को उपलब्ध विकल्पों की सूची में से एक या अधिक सही उत्तर चुनने के लिए कहा जाता है। एक एमसीक्यू कई संभावित उत्तरों के साथ एक प्रश्न प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 1 – कुंई शब्द का अर्थ क्या है –
(क) कम व्यास का बहुत ही छोटा सा कुआं
(ख) ज्याद व्यास का बहुत ही छोटा सा कुआं
(ग) कम व्यास का बड़ा सा कुआं
(घ) ज्यादा व्यास का बड़ा कुआं
उत्तर – (क) कम व्यास का बहुत ही छोटा सा कुआं

प्रश्न 2 – कुईं का व्यास छोटा क्यों रखा जाता है –
(क) ताकि कम मात्रा का पानी ज्यादा फैले नहीं
(ख) ऊपर आसानी से निकला जाय
(ग) पानी भाप बनकर उड़े नही
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 3 – कुंई की खुदाई करने वाले लोगों को क्या कहा जाता है –
(क) चेरो
(ख) चेवांजी
(ग) वांजी
(घ) चेलवांजी
उत्तर – (घ) चेलवांजी

प्रश्न 4 – राजस्थान के किन इलाकों में कुंईयों बनाई जाती हैं –
(क) जहां रेत के नीचे पत्थर की पट्टी मिलती है
(ख) जहां रेत के नीचे खड़िया पत्थर की पट्टी मिलती है
(ग) जहां रेत के नीचे मिट्टी की पट्टी मिलती है
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ख) जहां रेत के नीचे खड़िया पत्थर की पट्टी मिलती है

प्रश्न 5 – कुंई की खुदाई किससे की जाती है –
(क) बसौली से
(ख) कुल्हाड़ी से
(ग) कस्सी से
(घ) फावड़े से
उत्तर – (क) बसौली से

प्रश्न 6 – राजस्थान में कुओं के पानी का स्वाद कैसा होता है –
(क) मीठा
(ख) कड़वा
(ग) खारा
(घ) कसौला
उत्तर – (ग) खारा

प्रश्न 7 – कुंई की गर्मी कम करने के लिए ऊपर जमीन पर खड़े लोग मुट्ठी भर नीचे क्या फेंकते हैं –
(क) पानी
(ख) हवा
(ग) मिट्टी
(घ) रेत
उत्तर – (घ) रेत

प्रश्न 8 – राजस्थानी समाज ने वहां उपलब्ध पानी को कितने रूपों में बांटा है –
(क) तीन रूपों में
(ख) दो रूपों में
(ग) चार रूपों में
(घ) पांच रूपों में
उत्तर – (क) तीन रूपों में

प्रश्न 9 – वर्षा की मात्रा नापने के लिए किस शब्द का प्रयोग किया जाता है –
(क) रजा
(ख) रेज
(ग) रेजा
(घ) सेजा
उत्तर – (ग) रेजा

प्रश्न 10 – जहां ईट की चिनाई से कुंई की मिट्टी नहीं रुकती हैं , वहां कुंई को किससे बांधा जाता हैं –
(क) खींप की रस्सी से
(ख) लकड़ी से
(ग) पत्थर से
(घ) मिट्टी से
उत्तर – (क) खींप की रस्सी से

प्रश्न 11 – कुछ जगहों में , कुंई के भीतर की चिनाई किन पेड़ की लकड़ियों से की जाती हैं –
(क) अरणी की लकड़ी से
(ख) बण बाबल की लकड़ी से
(ग) कुंबट या आक की लकड़ी से
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 12 – कुंई के पानी को साफ रखने के लिए उसे किससे ढका जाता है –
(क) लकड़ी के ढक्कन से
(ख) लोहे के ढक्कन से
(ग) जाली के ढक्कन से
(घ) मिट्टी के ढक्कन से
उत्तर – (क) लकड़ी के ढक्कन से

प्रश्न 13 – कुंई से पानी कैसे निकाला जाता हैं –
(क) बड़ी बाल्टी या चड़स के माध्यम से
(ख) मोटी बाल्टी या चड़स के माध्यम से
(ग) छोटी बाल्टी या चड़स के माध्यम से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ग) छोटी बाल्टी या चड़स के माध्यम से

प्रश्न 14 – चड़स किससे बनाये जाते हैं –
(क) मोटे कपड़े या चमड़े से
(ख) लकड़ी से
(ग) घास से
(घ) मिटटी से
उत्तर – (क) मोटे कपड़े या चमड़े से

प्रश्न 15 – चड़स के मुँह पर क्या बंधा होता हैं –
(क) लोहे का वजनी कड़ा
(ख) लकड़ी का वजनी कड़ा
(ग) मिट्टी का वजनी कड़ा
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) लोहे का वजनी कड़ा

प्रश्न 16 – गहरी कुंई से पानी खींचने की सुविधा के लिए उसके ऊपर लगी चकरी को क्या कहते हैं –
(क) धिरनी
(ख) गरेड़ी
(ग) चरखी या फरेड़ी
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 17 – कुंई जिस क्षेत्र में बनाई जाती हैं वह जमीन किसकी होती हैं –
(क) किसी की निजी जमीन होती हैं
(ख) गांव समाज की निजी जमीन होती हैं
(ग) गांव समाज की सार्वजनिक जमीन होती हैं
(घ) गांव के मुखिया की जमीन होती हैं
उत्तर – (ग) गांव समाज की सार्वजनिक जमीन होती हैं

प्रश्न 18 – खड़िया पत्थर की पट्टी राजस्थान के किन इलाकों में अधिक मिलती है –
(क) चुरू और बाड़मेर
(ख) बीकानेर
(ग) जैसलमेर
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 19 – “खंडेरों की ढाणी” में कितनी कुंईयों थी –
(क) एक सौ बीस
(ख) एक सौ तीस
(ग) एक सौ दस
(घ) एक सौ
उत्तर – (क) एक सौ बीस

प्रश्न 20 – जैसलमेर जिले के “खंडेरों की ढाणी” गांव को लोग किस नाम से जानते थे –
(क) तीस -बीसी
(ख) तीन -बीसी
(ग) छह -बीसी
(घ) दो -बीसी
उत्तर – (ग) छह -बीसी

सार-आधारित प्रश्न Extract Based Questions

सार-आधारित प्रश्न बहुविकल्पीय किस्म के होते हैं, और छात्रों को पैसेज को ध्यान से पढ़कर प्रत्येक प्रश्न के लिए सही विकल्प का चयन करना चाहिए। (Extract-based questions are of the multiple-choice variety, and students must select the correct option for each question by carefully reading the passage.)

1 –
कुंई की गहराई में चल रहे मेहनती काम पर वहाँ की गरमी का असर पड़ेगा। गरमी कम करने के लिए ऊपर जमीन पर खड़े लोग बीच-बीच में मुट्ठी भर रेत बहुत जोर के साथ नीचे फेंकते हैं। इससे ऊपर की ताजी हवा नीचे फिकाती है और गहराई में जमा दमघोंटू गरम हवा ऊपर लौटती है। इतने ऊपर से फेंकी जा रही रेत के कण नीचे काम कर रहे चेलवांजी के सिर पर लग सकते हैं इसलिए वे अपने सिर पर कांसे, पीतल या अन्य किसी धातु का एक बर्तन टोप की तरह पहने हुए हैं। नीचे थोड़ी खुदाई हो जाने के बाद चेलवांजी के पंजों के आसपास मलबा जमा हो गया है। ऊपर रस्सी से एक छोटा-सा डोल या बाल्टी उतारी जाती है। मिट्टी उसमें भर दी जाती है। पूरी सावधानी के साथ ऊपर खींचते समय भी बाल्टी में से कुछ रेत, कंकड़-पत्थर नीचे गिर सकते हैं। टोप इनसे भी चेलवांजी का सिर बचाएगा।

प्रश्न 1 – कुंई की गहराई में चल रहे मेहनती काम पर किसका असर पड़ेगा?
(क) मिट्टी
(ख) पानी
(ग) गर्मी
(घ) ठण्ड
उत्तर – (ग) गर्मी

प्रश्न 2 – गद्यांश में वर्णित चेलवांजी कौन हैं?
(क) चेलवांजी अत्यंत परिश्रमी एवं कुशल कारीगर हैं जो कुंई बनाते हैं
(ख) चेलवांजी अत्यंत परिश्रमी एवं कुशल कारीगर हैं जो कुआँ बनाते हैं
(ग) चेलवांजी अत्यंत परिश्रमी एवं कुशल कारीगर हैं जो चिनाई करते हैं
(घ) चेलवांजी अत्यंत परिश्रमी एवं कुशल कारीगर हैं जो खुदाई करते हैं
उत्तर – (क) चेलवांजी अत्यंत परिश्रमी एवं कुशल कारीगर हैं जो कुंई बनाते हैं

प्रश्न 3 – चेलवांजी के व्यक्तित्व से हम कौन-कौन से मूल्य ग्रहण कर सकते हैं?
(क) परिश्रमशीलता, कार्य में निपुणता
(ख) लगन, सामूहिकता
(ग) परोपकार
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 4 – अपना सिर बचाए रखने के लिए चेलवांजी क्या-क्या उपाय करते हैं?
(क) वे अपने सिर पर घास को टोप की तरह पहने हुए हैं
(ख) वे अपने सिर पर लकड़ी से बनी टोपी पहने हुए हैं
(ग) वे अपने सिर पर कांसे, पीतल या अन्य किसी धातु का एक बर्तन टोप की तरह पहने हुए हैं
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) वे अपने सिर पर कांसे, पीतल या अन्य किसी धातु का एक बर्तन टोप की तरह पहने हुए हैं

प्रश्न 5 – ऊपर जमीन पर खड़े लोग बीच-बीच में मुट्ठी भर रेत बहुत जोर के साथ नीचे क्यों फेंकते हैं?
(क) गरमी कम करने के लिए
(ख) खुदाई का काम रोकने के लिए
(ग) चेलवांजी की मदद करने के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (क) गरमी कम करने के लिए

2 –
चेजारो जिस कुंई को बना रहे हैं, वह भी कोई साधारण ढाँचा नहीं है। कुंई यानी बहुत ही छोटा-सा कुआँ। कुआँ पुलिंग है, कुंई स्त्रीलिंग। यह छोटी भी केवल व्यास में ही है। गहराई तो इस कुंई की कहीं से कम नहीं। राजस्थान में अलग-अलग स्थानों पर एक विशेष कारण से कुंईयों की गहराई कुछ कम-ज़्यादा होती है। कुंई एक और अर्थ में कुएँ से बिलकुल अलग है। कुआँ भूजल को पाने के लिए बनता है पर कुंई भूजल से ठीक वैसे नहीं जुड़ती जैसे कुआँ जुड़ता है। कुंई वर्षा के जल को बड़े विचित्र ढंग से समेटती है-तब भी जब वर्षा ही नहीं होती! यानी कुंई में न तो सतह पर बहने वाला पानी है, न भूजल है। यह तो ‘नेति-नेति’ जैसा कुछ पेचीदा मामला है। मरुभूमि में रेत का विस्तार और गहराई अथाह है। यहाँ वर्षा अधिक मात्रा में भी हो तो उसे भूमि में समा जाने में देर नहीं लगती। पर कहीं-कहीं मरुभूमि में रेत की सतह के नीचे प्राय: दस-पंद्रह हाथ से पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर की एक पट्टी चलती है। यह पट्टी जहाँ भी है, काफी लंबी-चौड़ी है पर रेत के नीचे दबी रहने के कारण ऊपर से दिखती नहीं है।

प्रश्न 1 – गद्यांश में कुईं के बारे में क्या बताया गया है –
(क) कुंई यानी बहुत ही छोटा-सा कुआँ
(ख) कुआँ पुलिंग है, कुंई स्त्रीलिंग
(ग) गहराई तो कुंई की कुँए से कहीं से कम नहीं होती
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 2 – कुईं में किस तरह का पानी इकठ्ठा होता है –
(क) नदियों का
(ख) तालाब का
(ग) बारिश का
(घ) नहरों का
उत्तर – (ग) बारिश का

प्रश्न 3 – कुंईयों की गहराई कुछ कम-ज़्यादा क्यों होती है? –
(क) खुदवाई करने वाले के कारण
(ख) खड़िया पत्थर की पट्टी के कारण
(ग) गाँव वालों के कारण
(घ) पानी के स्तर के कारण
उत्तर – (ख) खड़िया पत्थर की पट्टी के कारण

प्रश्न 4 – मरुभूमि में रेत की सतह के नीचे प्राय: कितने नीचे खड़िया पत्थर की पट्टी चलती है ? –
(क) दस-पंद्रह हाथ से पचास-साठ हाथ नीचे
(ख) पंद्रह-बीस हाथ से साठ-सत्तर हाथ नीचे
(ग) दस-पंद्रह हाथ से अस्सी-नब्बे हाथ नीचे
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (क) दस-पंद्रह हाथ से पचास-साठ हाथ नीचे

प्रश्न 5 – खड़िया पत्थर की पट्टी किस कारण ऊपर से नहीं दिखती है? –
(क) रेत के ऊपर दबी रहने के कारण
(ख) रेत के पास रहने के कारण
(ग) रेत के नीचे दबी रहने के कारण
(घ) पानी के नीचे दबी रहने के कारण
उत्तर – (ग) रेत के नीचे दबी रहने के कारण

3 –
रेत के कण बहुत ही बारीक होते हैं। वे अन्यत्र मिलने वाली मिट्टी के कणों की तरह एक दूसरे से चिपकते नहीं। जहाँ लगाव है, वहाँ अलगाव भी होता है। जिस मिट्टी के कण परस्पर चिपकते हैं, वे अपनी जगह भी छोड़ते हैं और इसलिए वहाँ कुछ स्थान खाली छूट जाता है। जैसे दोमट या काली मिट्टी के क्षेत्र में गुजरात,
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार आदि में वर्षा बंद होने के बाद धूप निकलने पर मिट्टी के कण चिपकने लगते हैं और धरती में, खेत और आँगन में दरारें पड़ जाती हैं। धरती की संचित नमी इन दरारों से गरमी पड़ते ही वाष्प बनकर वापस वातावरण में लौटने लगती है।
पर यहाँ बिखरे रहने में ही संगठन है। मरुभूमि में रेत के कण समान रूप से बिखरे रहते हैं। यहाँ परस्पर लगाव नहीं, इसलिए अलगाव भी नहीं होता। पानी गिरने पर कण थोड़े भारी हो जाते हैं पर अपनी जगह नहीं छोड़ते। इसलिए मरुभूमि में धरती पर दरारें नहीं पड़तीं। भीतर समाया वर्षा का जल भीतर ही बना रहता है। एक तरफ थोड़े नीचे चल रही पट्टी इसकी रखवाली करती है तो दूसरी तरफ ऊपर रेत के असंख्य कणों का कड़ा पहरा बैठा रहता है। इस हिस्से में बरसी बूंद-बूंद रेत में समा कर नमी में बदल जाती है। अब यहाँ कुंई बन जाए तो उसका पेट, उसकी खाली जगह चारों तरफ रेत में समाई नमी को फिर से बूंदों में बदलती है। बूंद-बूंद रिसती है और कुंई में पानी जमा होने लगता है-खारे पानी के सागर में अमृत जैसा मीठा पानी।

प्रश्न 1 – रेत के कण किसकी तरह एक दूसरे से चिपकते नहीं हैं –
(क) पानी के कणों की तरह
(ख) मिट्टी के कणों की तरह
(ग) कीचड़ के कणों की तरह
(घ) आटे के कणों की तरह
उत्तर – (ख) मिट्टी के कणों की तरह

प्रश्न 2 – मिट्टी के कणों के आपस में चिपकने के कारण क्या होता है –
(क) मिट्टी के कण परस्पर चिपकते हैं, इसलिए वे अपनी जगह भी छोड़ते हैं
(ख) मिट्टी के कण परस्पर चिपकते हैं, इसलिए वहाँ कुछ स्थान खाली छूट जाता है
(ग) धरती की संचित नमी इन दरारों से गरमी पड़ते ही वाष्प बनकर वापस वातावरण में लौटने लगती है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 3 – मरुभूमि में बिखरे रहने में ही संगठन क्यों कहा गया है?
(क) मरुभूमि में रेत के कण समान रूप से बिखरे रहते हैं, इसलिए यहाँ परस्पर लगाव नहीं, इसलिए अलगाव भी नहीं होता
(ख) पानी गिरने पर कण थोड़े भारी हो जाते हैं पर अपनी जगह नहीं छोड़ते। इसलिए मरुभूमि में धरती पर दरारें नहीं पड़तीं
(ग) भीतर समाया वर्षा का जल भीतर ही बना रहता है।
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 4 – मरुभूमि में धरती पर दरारें क्यों नहीं पड़तीं? –
(क) क्योंकि वहाँ रेत के कण आपस में चिपके रहते हैं
(ख) क्योंकि वहाँ बारिश कम होती है
(ग) क्योंकि वहाँ रेत के कण आपस में चिपके नहीं रहते
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ग) क्योंकि वहाँ रेत के कण आपस में चिपके नहीं रहते

प्रश्न 5 – कुईं का पानी कैसा होता है? –
(क) खारे पानी के सागर में अमृत जैसा मीठा पानी
(ख) मीठे पानी के सागर में अमृत जैसा खारा पानी
(ग) खारे पानी के सागर में अमृत जैसा नमकीन पानी
(घ) खारे पानी के सागर में अमृत जैसा खट्टा पानी
उत्तर – (क) खारे पानी के सागर में अमृत जैसा मीठा पानी

4 –
नीचे खुदाई और चिनाई का काम कर रहे चेलवांजी को मिट्टी की खूब परख रहती है। खड़िया पत्थर की पट्टी आते ही सारा काम रुक जाता है। इस क्षण नीचे धार लग जाती है। चेजारो ऊपर आ जाते हैं।
कुंई की सफलता यानी सजलता उत्सव का अवसर बन जाती है। यों तो पहले दिन से काम करने वालों का विशेष ध्यान रखना यहाँ की परंपरा रही है, पर काम पूरा होने पर तो विशेष भोज का आयोजन होता था। चेलवांजी को विदाई के समय तरह-तरह की भेंट दी जाती थी। चेजारो के साथ गाँव का यह संबंध उसी दिन नहीं टूट जाता था। आच प्रथा से उन्हें वर्ष-भर के तीज-त्योहारों में, विवाह जैसे मंगल अवसरों पर नेग, भेंट दी जाती और फसल आने पर खलियान में उनके नाम से अनाज का एक अलग ढेर भी लगता था। अब सिर्फ मजदूरी देकर भी काम करवाने का रिवाज आ गया है।

प्रश्न 1 – मिट्टी की परख किसे रहती है? –
(क) गाँव वालों को
(ख) चेलवांजी को
(ग) मिट्टी फैंकने वालों को
(घ) उपरोक्त सभी को
उत्तर – (ख) चेलवांजी को

प्रश्न 2 – कुईं खुदवाई का सारा काम कब रुक जाता है? –
(क) नमी मिलते ही
(ख) पानी मिलते ही
(ग) खड़िया पत्थर की पट्टी आते ही
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ग) खड़िया पत्थर की पट्टी आते ही

प्रश्न 3 – कुंई की सफलता पर क्या होता था? –
(क) उत्सव का अवसर
(ख) पानी के लिए कतार
(ग) पानी का इन्तजार
(घ) नाच और गाना
उत्तर – (क) उत्सव का अवसर

प्रश्न 4 – कुंई की सफलता पर चेलवांजी के साथ कैसा व्यवहार होता था? –
(क) चेलवांजी को विदाई के समय तरह-तरह की भेंट दी जाती थी
(ख) वर्ष-भर के तीज-त्योहारों में, विवाह जैसे मंगल अवसरों पर नेग, भेंट दी जाती
(ग) फसल आने पर खलियान में उनके नाम से अनाज का एक अलग ढेर भी लगता था
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 5 – अब कुईं खुदवाई का काम कैसे होता है? –
(क) विशेषज्ञों द्वारा
(ख) चेलवांजी के ही द्वारा
(ग) सिर्फ मजदूरी देकर
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) सिर्फ मजदूरी देकर

5 –
निजी और सार्वजनिक संपत्ति का विभाजन करने वाली मोटी रेखा कुंई के मामले में बड़े विचित्र ढंग से मिट जाती है। हरेक की अपनी-अपनी कुंई है। उसे बनाने और उससे पानी लेने का हक उसका अपना हक है। लेकिन कुंई जिस क्षेत्र में बनती है, वह गाँव-समाज की सार्वजनिक जमीन है। उस जगह बरसने वाला पानी ही बाद में वर्ष-भर नमी की तरह सुरक्षित रहेगा और इसी नमी से साल-भर कुंइयों में पानी भरेगा। नमी की मात्रा तो वहाँ हो चुकी वर्षा से तय हो गई है। अब उस क्षेत्र में बनने वाली हर नई कुंई का अर्थ है, पहले से तय नमी का बँटवारा। इसलिए निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में बनी कुंइयों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता है। बहुत जरूरत पड़ने पर ही समाज नई कुंई के लिए अपनी स्वीकृति देता है।

प्रश्न 1 – निजी और सार्वजनिक संपत्ति का विभाजन करने वाली मोटी रेखा किसके मामले में मिट जाती है? –
(क) पानी के
(ख) कुंई के
(ग) रेत के
(घ) बारिश के
उत्तर – (ख) कुंई के

प्रश्न 2 – कुंई किसके-किसके पास होती थी? –
(क) मुखिया के पास
(ख) हर गाँव में एक
(ग) हर घर की एक
(घ) किसी के पास नहीं
उत्तर – (ग) हर घर की एक

प्रश्न 3 – कुंई किस क्षेत्र में बनती है –
(क) गाँव-समाज की सार्वजनिक जमीन पर
(ख) परिवार की निजी जमीन पर
(ग) व्यक्ति की निजी जमीन पर
(घ) मुखिया की निजी जमीन पर
उत्तर – (क) गाँव-समाज की सार्वजनिक जमीन पर

प्रश्न 4 – नमी की मात्रा कैसे तय होती है? –
(क) वहाँ हो चुकी वर्षा से
(ख) रेत की मात्रा से
(ग) कुईं की गहराई से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (क) वहाँ हो चुकी वर्षा से

प्रश्न 5 – गद्यांश क्या सीख देता है? –
(क) रेत की नमी मूल्यवान है
(ख) रेत से पानी निकाला जा सकता है
(ग) जल ही आवश्यक है
(घ) जल ही जीवन है
उत्तर – (घ) जल ही जीवन है

 

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