CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag 1 Book Chapter 5 गलता लोहा Question Answers
Galtaa Lohaa Class 11 – CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag-1 Chapter 5 Galtaa Lohaa Question Answers. The questions listed below are based on the latest CBSE exam pattern, wherein we have given NCERT solutions of the chapter, extract based questions, multiple choice questions, short and long answer questions.
सीबीएसई कक्षा 11 हिंदी आरोह भाग-1 पुस्तक पाठ 5 गलता लोहा प्रश्न उत्तर | इस लेख में NCERT की पुस्तक के प्रश्नों के उत्तर तथा महत्वपूर्ण प्रश्नों का व्यापक संकलन किया है।
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Galtaa Lohaa Question and Answers (गलता लोहा प्रश्न-अभ्यास )
प्रश्न 1 – कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है?
उत्तर – जिस समय धनराम तेरह का पहाड़ा सुनाने में असमर्थ हो गया तो मास्टर त्रिलोक सिंह ने जबान के चाबुक लगाते हुए कहा कि ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?’ यह सच है कि किताबों की विद्या का ताप लगाने की सामर्थ्य धनराम के पिता की नहीं थी। उन्होंने बचपन में ही अपने पुत्र को धौंकनी फूंकने और सान लगाने के कामों में लगा दिया था। वे उसे धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगे। उपर्युक्त प्रसंग में किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है।
प्रश्न 2 – धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं समझता था?
उत्तर – धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझता था क्योंकि वह स्वयं को नीची जाति का समझता था। यह बात बचपन से उसके मन में बैठा दी गई थी।
मोहन कक्षा का सबसे होशियार लड़का था। वह हर प्रश्न का उत्तर देता था। उसे मास्टर जी ने पूरी पाठशाला का मॉनीटर बना रखा था। वह अच्छा गाता था।
मास्टर जी को लगता था कि एक दिन मोहन बड़ा आदमी बनकर स्कूल तथा उनका नाम रोशन करेगा। इन्हीं कारणों की वजह से धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझता था।
प्रश्न 3 – धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों?
उत्तर – मोहन ब्राहमण जाति का था और उस गाँव में ब्राहमण शिल्पकारों के यहाँ उठते-बैठते नहीं थे। यहाँ तक कि उन्हें बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। मोहन धनराम की दुकान पर काम खत्म होने के बाद भी काफी देर तक बैठा रहा। इस बात पर धनराम को हैरानी हुई। उसे अधिक हैरानी तब हुई जब मोहन ने उसके हाथ से हथौड़ा लेकर लोहे पर नपी-तुली चोटें मारी और धौंकनी फूंकते हुए भट्ठी में लोहे को गरम किया और ठोक-पीटकर उसे गोल रूप दे दिया। मोहन पुरोहित खानदान का पुत्र होने के बाद निम्न जाति के काम कर रहा था। धनराम शंकित दृष्टि से इधर-उधर देखने लगा।
प्रश्न 4 – मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?
उत्तर – मोहन अपने गाँव का एक होनहार विद्यार्थी था। पाँचवीं कक्षा तक आते-आते मास्टर जी सदा उसे यही कहते कि एक दिन वह अपने गाँव का नाम रोशन करेगा। जब पाँचवीं कक्षा में उसे छात्रवृत्ति मिली तो मास्टर जी की भविष्यवाणी सच होती नज़र आने लगी। यही मोहन जब पढ़ने के लिए अपने रिश्तेदार रमेश के साथ लखनऊ पहुँचा तो उसने इस होनहार को घर का नौकर बना दिया। बाजार का काम करना, घरेलु काम-काज में हाथ बँटाना, इस काम के बोझ ने गाँव के मेधावी छात्र को शहर के स्कूल में अपनी जगह नहीं बनाने दी। इन्हीं स्थितियों के चलते लेखक ने मोहन के जीवन में आए इस परिवर्तन को जीवन का एक नया अध्याय कहा है।
प्रश्न 5 – मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है और क्यों?
उत्तर – जब धनराम तेरह का पहाड़ा नहीं सुना सका तो मास्टर त्रिलोक सिंह ने व्यंग्य वचन कहे ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?’ लेखक ने इन व्यंग्य वचनों को ज़बान के ‘चाबुक’ कहा है। चमड़े की चाबुक शरीर पर चोट करती है, परंतु ज़बान की चाबुक मन पर चोट करती है। यह चोट कभी ठीक नहीं होती। इस चोट के कारण धनराम आगे नहीं पढ़ पाया और वह पढ़ाई छोड़कर पुश्तैनी काम में लग गया।
प्रश्न 6 – (1) बिरादरी का यही सहारा होता है।
(क) किसने किससे कहा?
(ख) किस प्रसंग में कहा?
(ग) किस आशय से कहा?
(घ) क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है?
उत्तर –
(क) यह कथन मोहन के पिता वंशीधर ने अपने एक संपन्न रिश्तेदार रमेश से कहा।
(ख) वंशीधर ने मोहन की पढ़ाई के विषय में चिंता की तो रमेश ने उसे अपने पास रखने की बात कही। उसने कहा कि मोहन को उसके साथ लखनऊ भेज दीजिए। घर में जहाँ चार प्राणी है, वहाँ एक और बढ़ जाएगा और शहर में रहकर मोहन अच्छी तरह पढ़ाई भी कर सकेगा।
(ग) यह कथन रमेश के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कहा गया। बिरादरी के लोग ही एक-दूसरे की मदद करते हैं।
(घ) कहानी में यह आशय स्पष्ट नहीं हुआ। रमेश ने अपने वायदे को पूरा नहीं किया तथा मोहन को घरेलू नौकर बना दिया। उसके परिवार ने उसका शोषण किया तथा प्रतिभाशाली छात्र का भविष्य चौपट कर दिया। अंत में उसे बेरोज़गार कर घर भेज दिया।
(2) उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी- कहानी का यह वाक्य
(क) किसके लिए कहा गया है?
(ख) किस प्रसंग में कहा गया है?
(ग) यह पात्र-विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है?
उत्तर –
(क) यह वाक्य मोहन के लिए कहा गया है।
(ख) जिस समय मोहन धनराम के आफ़र पर आकर बैठता है और अपना हँसुवा ठीक हो जाने पर भी बैठा रहता है, उस समय धनराम एक लोहे की छड़ को गर्म करके उसका गोल घेरा बनाने का प्रयास कर रहा है, पर निहाई पर ठीक घाट में सिरा न फँसने के कारण लोहा उचित ढंग से मुड़ नहीं पा रहा था। यह देखकर मोहन उठा और हथौड़े से नपी-तुली चोट मारकर उसे सुघड़ गोले का रूप दे दिया। अपने सधे हुए अभ्यस्त हाथों का कमाल दिखाकर उसने सर्जक की चमकती आँखों से धनराम की ओर देखा था।
(ग) यह कार्य कहानी का प्रमुख पात्र मोहन करता है जो एक ब्राह्मण का पुत्र है। वह अपने बालसखा धनराम को अपनी सुघड़ता का परिचय देता है। अपनी कुशलता दिखाता है। मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित नहीं वरन् मेहनतकश और सच्चे भाई-चारे की प्रस्तावना करता प्रतीत होता है। मानो मेहनत करनेवालों का संप्रदाय जाति से ऊपर उठकर मोहन के व्यक्तित्व के रूप में समाज का मार्गदर्शन कर रहा हो।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर – (Important Question Answers)
प्रश्न 1 – धनराम को मास्टर त्रिलोक ने तेरह का पहाड़ा न सुनने पर क्या कहा?
उत्तर – धनराम से जब तेरह का पहाड़ा न सुनाया गया तो मास्टर त्रिलोक ने उसे बेंत से मारने की जगह अपनी चाबुक जैसी चुभने वाली जुबान का प्रयोग किया और कहा – “ तेरे दिमाग में तो लोहा भरा हुआ है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?
प्रश्न 2 – मोहन की क्या विशेषता थी?
उत्तर – मोहन एक बुद्धिमान बालक था। उसकी विशेषता थी की वह जाति व्यवस्था के व्यवसाय से जुड़ा नहीं रहना चाहता था। वह अपनी मेहनत के सहारे एक अच्छी नौकरी करनी चाहता था। अपने दोस्तों की सहायता के लिए भी वह हमेशा उदार रहता था।
प्रश्न 3 – पाठ में वंशीधर का पात्र कैसा दिखाया गया है?
उत्तर – पाठ में वंशीधर का पात्र अपने बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित पिता की तरह था। जो यह चाहता है की उसका बेटा पढ़ – लिखकर एक अच्छा अफसर बने। वह इस जाति व्यवसाय में फंसकर न रहे। वह चाहता है की उसके बेटे तथा उसके परिवार को एक बेहतर जिंदगी मिलें। इसके लिए वह खुद से जितना हो सके उतनी मेहनत भी करता है परन्तु वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पता।
प्रश्न 4 – वंशीधर किस घटना से डर गए थे?
उत्तर – मोहन को जब उच्च स्तर की पढाई के लिए दूसरे गाँव जाना पड़ता था तो स्कूल एक नदी पार कर के जाना पड़ता था। एक दिन नदी का स्तर बारिश के पानी से अधिक उफ्फान पर था। तब मोहन नदी पार कर रहा था। उस दिन मोहन बहुत मुश्किल से नदी पार कर पाया था। वह डूबने से बाल– बाल बचा था। इस घटना से वंशीधर डर गए थे।
प्रश्न 5 – रमेश द्वारा मोहन के पिता को क्या आश्वासन दिया गया था?
उत्तर – रमेश ने मोहन के पिता से कहा कि वह मोहन को अपने साथ लखनऊ ले जाएगा। घर में चार सदस्य हैं एक और बढ़ जाएगा तो क्या? शहर में रहकर यह वहीं के स्कूल में पढ़ेगा। गाँव में कई मील दूर जाकर पढ़ने की समस्या भी समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार की सहानुभूतिपूर्ण बातें कहकर रमेश ने उन्हें आश्वस्त कर लिया था।
प्रश्न 6 – मोहन के पिता के जीवन-संघर्ष का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर – मोहन के पिता वंशीधर तिवारी गाँव के पुरोहित थे। पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान करना-करवाना उनका पैतृक पेशा था। इन आयोजनों को करवाने के लिए उन्हें दूर-दूर तक चलकर जाना पड़ता था जो अब उनके वृद्ध शरीर के बस की बात नहीं रही थी। पुरोहिताई में भी आय बहुत कम होती थी। इस कारण घर-परिवार का खर्चा चलाना भी दूभर हो रहा था। मोहन जैसे होनहार बालक को पढ़ा पाना भी एक कठिनाई थी। यजमानों के भरोसे घर चलना मुश्किल था। इन सब कारणों को देखकर लगता है कि उनका जीवन संघर्षपूर्ण था।
प्रश्न 7 – मास्टर त्रिलोक सिंह का अपने विद्यार्थियों के प्रति व्यवहार कैसा था?
उत्तर – मास्टर त्रिलोक सिंह मोहन को छोड़कर अन्य सभी के साथ बड़े कठोर थे। किसी भी गलती पर छड़ी से पीटना उनके लिए एक आम बात थी। लड़कों की पिंडलियों पर ऐसी ज़ोर से छड़ी मारते कि छड़ी ही टूट जाती थी। इतना ही नहीं वे मोहन से भी लड़कों को पिटवाते और उठक-बैठक लगवाते थे। जिसकी गलती होती उसी से संटी मँगवाते थे। कभी-कभी ऐसी कड़ी बात कहते कि बालक सदा के लिए निराश हो जाता। पाठशाला के सभी बालकों को उनकी एक आवाज़ से साँप सँघ जाता था।
प्रश्न 8 – ‘धनवान रमेश ने मोहन का भविष्य बनाया नहीं बिगाड़ा था’ कैसे?
उत्तर – रमेश मोहन को पढ़ाई करवाने लखनऊ लाया था, पर उसने उसे घरेलू नौकर बना दिया। बाजार से सौदा लाना और घर में काम करना मोहन की दिनचर्या बन गई मुश्किल से उसे एक सामान्य स्कूल में भरती करवाया गया, पर घर के कामकाज के कारण वह विद्यालय में अपनी वैसी जगह नहीं बना सका जैसी उसमें प्रतिभा थी। उसे दिनभर ताने सुनाए जाते कि बी.ए., एम.ए. को नौकरी नहीं मिलती तो…। इसके बाद उसे काम सीखने के लिए कारखाने में डाल दिया गया। इससे मोहन पढ़ भी न सका और गाँव में अपने बूढे माता-पिता के साथ न रह सका। इस वजह से हम कह सकते हैं कि धनवान रमेश ने मोहन का भविष्य बनाया नहीं बिगाड़ा था।
प्रश्न 9 – जब मोहन भट्टी के पास बैठकर काम करता है, तो उसकी आँखों के लिए क्या कहा गया है?
उत्तर – जब मोहन धनराम से मिलता है, तो धनराम अपनी भट्टी में काम कर रहा होता है। मोहन भी वहां बैठ जाता है और एक घुमावदार लोहे की मोटी छड़ बनाता है। धनराम यह देखकर हैरान हो जाता है। मोहन की आँखों में एक सृजक की चमक थी, जिसमें ना कोई स्पर्धा और न ही कोई हार जीत का भाव था। यह बातें मोहन की आँखों के लिए कही हुई है जब वह धनराम की भट्टी में काम कर रहा था।
प्रश्न 10 – मोहन के जीवन में गांव की परेशानियों तथा शहर के जीवन की परेशानीयों में क्या अंतर था?
उत्तर – मोहन को गांव और शहर दोनो ही जगहों पर कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन ये दोनों जगह अलग अलग थी। मोहन एक बुद्धिमान बालक था। वह पढ़ना चाहता था। लेकिन गांव में आठवीं के आगे स्कूल नहीं था और दूसरी जगह पर उसे नदी पार कर के जाना पड़ता था। जिसके कारण वह एक बार डूबने से बाल-बाल बचा था। शहर में स्कूल तो था लेकिन रमेश और उसका परिवार उसको आगे पढ़ना नहीं चाहते थे। वह वहां पर घर का सारा काम करता था। जिस कारण उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती थी। इसलिए उसे गांव और शहर में अलग अलग परेशानियों का सामना करना पड़ा था।
प्रश्न 11 – एक अध्यापक की दृष्टि से त्रिलोक सिंह की कौन सी बातें सही नही थी?
उत्तर – एक अध्यापक का काम होता है पढ़ाना व् विद्यार्थी को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना। वह अपने सभी विद्यार्थियों को समान रूप से पढ़ाता है। किसी में कोई भी भेद या अंतर नहीं करता है। लेकिन मास्टर त्रिलोक सिंह ऐसा नहीं करते थे। वह मोहन और धनराम के बीच जाति भेद रखते थे। वहीँ धनराम से अच्छे से बात भी नहीं करते थे। बार बार वह उसे उसकी जाति या उसके निम्न होने पर तंज कसते थे। वही दूसरी तरफ वह मोहन के प्रति अच्छा व्यवहार करते थे क्योंकि वह एक उच्च जाति से संबंध रखता था और पढ़ने में भी अच्छा था। वह उसे प्रोत्साहित भी करते थे। लेकिन धनराम के साथ वह ऐसा नहीं करते क्योंकि वह पढ़ने में भी अच्छा नहीं था।
प्रश्न 12 – मास्टर त्रिलोक सिंह “ तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे। विद्या का ताप कहां लगेगा इसमें? यह बात किससे और क्यों कही?
उत्तर – मास्टर त्रिलोक ने ये बात की तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे। विद्या का ताप कहां लगेगा इसमें? धनराम से कही थी। क्योंकि धनराम ने मास्टर को तेरह का पहाड़ा नहीं सुनाया था। वह एक लोहार था और अपने पिता का वह कार्य करने में हाथ बटाता था। सारा दिन लोहे का काम करने के कारण वह पढ़ाई नहीं कर पाता था। इसलिए मास्टर ने धनराम को ये बात कही।
प्रश्न 13 – धनराम के पिता के पास उसे पढ़ाने का सामर्थ्य क्यों नहीं था तथा उन्होंने उसकी पढ़ाई छुड़ाकर उसे किस काम में लगा दिया?
उत्तर – धनराम के पिता लोहार थे। उनकी आमदनी इतनी नहीं थी की वह धनराम को आगे पढ़ा सके। जितनी कमाई होती थी उस से बस वह अपना और अपने परिवार का पेट ही भर पाते थे। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। जिस कारण वह धनराम को पढ़ाने में समर्थ नहीं थे। जैसे ही धनराम कुछ समझने और सोचने के लायक हुआ उन्होंने उसे अपने लोहार के काम में ही लगा दिया। ताकि वह भी काम कर के कुछ आमदनी कमा सके।
प्रश्न 14 – मोहन पढ़ने में अच्छा था फिर भी धनराम उसे अपना प्रतिद्वंदी क्यों नहीं समझता था?
उत्तर – मोहन पढ़ने में अच्छा था। इसलिए उसे पूरे स्कूल का मॉनिटर बनाया गया था। धनराम भी उसी स्कूल में पढ़ता था लेकिन फिर भी वह मोहन को अपना प्रतिद्वंदी नहीं समझता था। इसका एक कारण यह था की मोहन उच्च जाति से संबंध रखता था और धनराम निम्न जाति का बालक था। जाति के नाम पर उन्हें हमेशा जो कुछ भी मिला है वह सब बचा हुआ ही मिला है। उनके साथ व्यवहार भी अच्छे से नही किया जाता था। उच्च जाति के लोगो का अधिकार सभी वस्तुओं और फलों पर रहता था। इसी कारण धनराम भी यही सोचता था की मोहन का विद्या पाना और उसमे अच्छा होना उसका अधिकार है क्योंकि वह उच्च जाति का है। इसलिए धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंदी नहीं मानता था।
प्रश्न 15 – मोहन को अपनी भट्टी पर काम करता देख धनराम को आश्चर्य क्यों हुआ? इस घटना का पूर्ण वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर – जब मोहन धनराम के साथ बैठकर भट्टी में काम करने लगा तो यह देखकर धनराम को आश्चर्य हुआ। उसे यह आश्चर्य उसकी कारीगिरी देख कर नही हुआ बल्कि मोहन को यह काम करते देख कर हुआ। क्योंकि बचपन से ही उन्हें जाति भेद के बारे में बताया जाता है। उच्च और निम्न का फर्क समझाया जाता है। जाति के आधार पर बांटे गए काम और व्यवसाय को उन्हें बचपन में ही समझा दिया जाता है। धनराम एक निम्न जाति से संबंधित था और मोहन उच्च जाति से। मोहन की आँखों में कोई स्पर्धा और कोई हार जीत और उच्च – निम्न का भाव नहीं था। यह सब देखकर धनराम को आश्चर्य हुआ।
प्रश्न 16 – लेखक के अनुसार मोहन के जीवन का नया अध्याय कौन सा है?
उत्तर – मोहन के गांव से लखनऊ शहर जाना लेखक ने उसके जीवन का नया अध्याय कहा है। क्योंकि यहां पर आने से मोहन का जीवन पूरी तरह बदल चुका था। उसे यहां एक नई जिंदगी का आभास हुआ। सभी लोग उसे केवल अपने काम और अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे थे। उसे यहां पढ़ने का समय भी नहीं मिलता था। वह किसी से कुछ कह भी नही सकता था। वह अपने गांव भी जाकर अपने पिता से नहीं मिल सकता था। जब लखनऊ से कोई गांव जाता तभी वह उसके साथ गांव जा सकता था। यहां पर एक मेधावी छात्र केवल सभी के कार्य मात्र रह गया था। इसलिए लेखक ने इसे मोहन के जीवन का नया अध्याय बताया है।
प्रश्न 17 – मास्टर त्रिलोक द्वारा धनराम को बोली गई बातों को लेखक ने जुबान का चाबुक क्यों कहा है?
उत्तर – मास्टर त्रिलोक द्वारा धनराम को बोली गए ये शब्द की “तेरे दिमाग में तो लौहा भरा हुआ है विद्या का ताप कहां से आएंगे’ जुबान का चाबुक इसलिए कहा है क्योंकि धनराम निम्न जाति से संबंध रखता है और लोहार का काम करता है। मास्टर जी उसके काम और उसकी जाति पर तंज कसते हुए यह सब कहते है। जिससे हर किसी इंसान को बुरा लगेगा और मार तो सिर्फ शरीर पर दिखाई देती है। लेकिन जुबान से बोले गए शब्द इंसान को अंदर तक दुखी करती है। जिस प्रकार चाबुक भी बहुत दर्द और दुख देता है, उसी प्रकार जुबान रूपी चाबुक भी बहुत दुःख और दर्द देता है। इसलिए मास्टर के शब्दों को लेखक ने जुबान का चाबुक कहा है।
प्रश्न 18 – ‘गलता लोहा’ शीर्षक की सार्थकता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर – ‘गलता लोहा’ कहानी दो सहपाठियों – धनराम लोहार और मोहन (पुरोहित पुत्र) ब्राह्मण के परस्पर व्यवहार को व्यक्त करती हुई दोनों के जीवन का संक्षिप्त परिचय देती है। इस कहानी में तेरह का पहाड़ा न सुना पाने के कारण धनराम से मास्टर जी कहते हैं कि ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है, विद्या को ताप इसे कैसे लगेगा।’ कहानी के अंत में मोहन का जाति-भेद भुलाकर धनराम के आफ़र पर बैठकर बातें करना और उसे सरिया मोड़कर दिखाने के बाद यह पंक्ति कही गई। है-“मानो लोहा गलकर नया आकार ले रहा हो।” अतः यह शीर्षक पूर्णतः सार्थक है।
प्रश्न 19 – ‘गलता लोहा’ कहानी का उद्देश्य बताइए।
उत्तर – गलता लोहा शेखर जोशी की कहानी-कला को एक प्रतिनिधि नमूना है। समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी करने वाली यह कहानी इस बात का उदाहरण है कि शेखर जोशी के लेखन में अर्थ की गहराई का दिखावा और बड़बोलापन जितना ही कम है, वास्तविक अर्थ-गांभीर्य उतना ही अधिक। लेखक की किसी मुखर टिप्पणी के बगैर ही पूरे पाठ से गुजरते हुए हम यह देख पाते हैं कि एक मेधावी, किंतु निर्धन ब्राह्मण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है। सामाजिक विधि-निषेधों को ताक पर रखकर वह धनराम लोहार के आफर पर बैठता ही नहीं, उसके काम में भी अपनी कुशलता दिखाता है। मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे की प्रस्तावना करता प्रतीत होता है, मानो लोहा गलकर एक नया आकार ले रहा हो।
बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर (Multiple Choice Questions)
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) एक प्रकार का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन है जिसमें एक व्यक्ति को उपलब्ध विकल्पों की सूची में से एक या अधिक सही उत्तर चुनने के लिए कहा जाता है। एक एमसीक्यू कई संभावित उत्तरों के साथ एक प्रश्न प्रस्तुत करता है।
प्रश्न 1 – “गलता लोहा” कहानी हमारे समाज में फैली किस व्यवस्था को उजागर करती है –
(क) शिक्षा विभाजन
(ख) जातिगत विभाजन
(ग) भूमि विभाजन
(घ) कार्य विभाजन
उत्तर – (ख) जातिगत विभाजन
प्रश्न 2 – “गलता लोहा” कहानी के अनुसार, उस समय ब्राह्मण वर्ग के लोगों के साथ किस वर्ग के लोगों का उठना-बैठना मर्यादा के विरुद्ध माना जाता था –
(क) अशिक्षित वर्ग के लोगों का
(ख) यजमान वर्ग के लोगों का
(ग) मूर्तिकार वर्ग के लोगों का
(घ) शिल्पकार वर्ग के लोगों का
उत्तर – (घ) शिल्पकार वर्ग के लोगों का
प्रश्न 3 – “गलता लोहा” कहानी का नायक कौन हैं – एक गरीब ब्राह्मण बालक मोहन
(क) एक गरीब ब्राह्मण बालक मोहन
(ख) लौहार का पुत्र धनराम
(ग) अध्यापक त्रिलोक सिंह
(घ) सामाजिक परिस्थितियाँ
उत्तर – (क) एक गरीब ब्राह्मण बालक मोहन
प्रश्न 4 – “गलता लोहा” कहानी के अनुसार, मोहन के पिता बंशीधर क्या काम करते थे – पण्डितगिरि या पुरोहिताई का काम
(क) खेती-बाड़ी का काम
(ख) लौहार का काम
(ग) पण्डितगिरि या पुरोहिताई का काम
(घ) अध्यापक का काम
उत्तर – (ग) पण्डितगिरि या पुरोहिताई का काम
प्रश्न 5 – गणनाथ की कितने मील की सीधी चढ़ाई अब बंशीधर के बूते की बात नहीं थी –
(क) तीन मील
(ख) दो मील
(ग) एक मील
(घ) पाँच मील
उत्तर – (ख) दो मील
प्रश्न 6 – मोहन चंद्रदत्त जी के यहाँ रुद्री पाठ करने क्यों नही गया –
(क) क्योंकि उसे पढ़ाई करनी थी
(ख) क्योंकि उसे पूजा पाठ व अनुष्ठान करना अच्छा नहीं लगता था
(ग) क्योंकि उसे पूजा पाठ नहीं आता था
(घ) क्योंकि उसे पूजा पाठ व अनुष्ठान करने का कोई अनुभव नहीं था
उत्तर – (घ) क्योंकि उसे पूजा पाठ व अनुष्ठान करने का कोई अनुभव नहीं था
प्रश्न 7 – मोहन घर से क्या लेकर खेत की तरफ निकल गया –
(क) हंसुवा
(ख) कुल्हाड़ी
(ग) पुस्तक
(घ) हथोड़ी
उत्तर – (क) हंसुवा
प्रश्न 8 – हंसुवा कहते हैं – घास काटने की दराँती या औजार
(क) लोहा पीटने का औजार
(ख) घास काटने की दराँती या औजार
(ग) पत्थर तोड़ने का औजार
(घ) घास को बारीक करने का औजार
उत्तर – (ख) घास काटने की दराँती या औजार
प्रश्न 9 – दराँती में धार लगाने के उद्देश्य से मोहन कहाँ गया – अपने स्कूल के दोस्त धनराम के आँफर में
(क) गाँव के प्रसिद्ध लौहार के आँफर में
(ख) अपने स्कूल के दोस्त धनराम के आँफर में
(ग) अपने स्कूल के अध्यापक के आँफर में
(घ) अपने रिश्तेदार के आँफर में
उत्तर – (ख) अपने स्कूल के दोस्त धनराम के आँफर में
प्रश्न 10 – धनराम का संबंध किस जाति से था –
(क) किसान
(ख) पुजारी
(ग) बड़ाई
(घ) लोहार
उत्तर – (घ) लोहार
प्रश्न 11 – मोहन और धनराम के प्रारंभिक विद्यालय के टीचर का क्या नाम था –
(क) मास्टर त्रिनाथ सिंह
(ख) मास्टर त्रिपाल सिंह
(ग) मास्टर त्रिलोक सिंह
(घ) मास्टर लोक सिंह
उत्तर – (ग) मास्टर त्रिलोक सिंह
प्रश्न 12 – “जुबान की चाबुक” का अर्थ हैं –
(क) कड़वे वचन बोलना
(ख) सत्य वचन बोलना
(ग) झूठे वचन बोलना
(घ) किसी के कहे हुए वचन बोलना
उत्तर – (क) कड़वे वचन बोलना
प्रश्न 13 – “तेरे दिमाग में तो लोहा भरा हैं रे “, यह किसने किससे कहा –
(क) मास्टर त्रिलोक सिंह ने माधव से कहा
(ख) मास्टर त्रिलोक सिंह ने धनराम से कहा
(ग) मास्टर त्रिलोक सिंह ने मोहन से कहा
(घ) मास्टर त्रिलोक सिंह ने लौहार से कहा
उत्तर – (ख) मास्टर त्रिलोक सिंह ने धनराम से कहा
प्रश्न 14 – मास्टर त्रिलोक सिंह की किस बात से सभी छात्र डरते थे –
(क) जोर से बोलने से
(ख) डाँट लगाने से
(ग) छड़ी की मार से
(घ) माता-पिता से शिकायत करने से
उत्तर – (ग) छड़ी की मार से
प्रश्न 15 – स्कूल का क्या नियम था – जो मार खाता था उसको अपने लिए खुद ही डंडा लाना पड़ता था।
(क) जो मार खाता था वह दुबारा स्कूल नहीं आता
(ख) जो मार खाता था उसको अपने लिए खुद ही डंडा लाना पड़ता था
(ग) जो मार खाता था उसको सभी के लिए डंडा लाना पड़ता था
(घ) जो डंडा लता था वही मार खाता था
उत्तर – (ख) जो मार खाता था उसको अपने लिए खुद ही डंडा लाना पड़ता था
प्रश्न 16 – मोहन ने तकनीकी स्कूल में कितने वर्ष तक पढ़ाई की –
(क) डेढ़ वर्ष
(ख) ढ़ाई वर्ष
(ग) एक वर्ष
(घ) तीन वर्ष
उत्तर – (क) डेढ़ वर्ष
प्रश्न 17 – लखनऊ में मोहन का अधिकतर समय कैसे बीतता था –
(क) पढ़ाई करते हुए
(ख) खेल खेलते हुए
(ग) धरेलू कार्य करते हुए
(घ) गाना गाते हुए
उत्तर – (ग) धरेलू कार्य करते हुए
प्रश्न 18 – मोहन अपने पिता को अपनी वास्तविकता नहीं बताना चाहता था –
(क) क्योंकि वह अपने पिता को दुख नहीं पहुंचाना चाहता था
(ख) क्योंकि वह अपने पिता से बहुत डरता था
(ग) क्योंकि वह रमेश से डरता था
(घ) क्योंकि वह गाँव वापिस नहीं जाना चाहता था
उत्तर – (क) क्योंकि वह अपने पिता को दुख नहीं पहुंचाना चाहता था
प्रश्न 19 – मोहन ने लोहे की कारीगरी कहाँ से सीखी थी –
(क) लौहारी स्कूल से
(ख) तकनीकी स्कूल से
(ग) घरेलु काम-काज से
(घ) अपने मित्र से
उत्तर – (ख) तकनीकी स्कूल से
प्रश्न 20 – धनराम —————— देखकर आश्चर्य चकित रह गया –
(क) मोहन को घास काटने का कार्य करते हुए
(ख) मोहन को पुरोहिताई का कार्य करते हुए
(ग) मोहन को गाँव के लोगों की मदद करते हुए
(घ) मोहन को लोहार का कार्य करते हुए
उत्तर – (घ) मोहन को लोहार का कार्य करते हुए
सार-आधारित प्रश्न Extract Based Questions
सार–आधारित प्रश्न बहुविकल्पीय किस्म के होते हैं, और छात्रों को पैसेज को ध्यान से पढ़कर प्रत्येक प्रश्न के लिए सही विकल्प का चयन करना चाहिए। (Extract-based questions are of the multiple-choice variety, and students must select the correct option for each question by carefully reading the passage.)
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
1 –
लंबे बँटवाले हँसुवे को लेकर वह घर से इस उद्देश्य से निकला था कि अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट-छाँटकर साफ़ कर आएगा। बूढे वंशीधर जी के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा। यही क्या, जन्म भर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर संसार चलाया था, वह भी अब वैसे कहाँ कर पाते हैं। यजमान लोग उनकी निष्ठा और संयम के कारण ही उन पर श्रद्धा रखते हैं लेकिन बुढ़ापे का जर्जर शरीर अब उतना कठिन श्रम और व्रत-उपवास नहीं झेल पाता।
प्रश्न 1 – मोहन घर से किस उद्देश्य के लिए निकला –
(क) खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट-छाँट कर साफ़ करने
(ख) खेतों में उगी फसल को काट-छाँट कर लाने
(ग) खेतों की रखवाली करने के लिए
(घ) खेतों में आए आवारा पशुओं को भगाने के लिए
उत्तर – (क) खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट-छाँट कर साफ़ करने
प्रश्न 2 – वशीधर कौन सा कार्य करता था –
(क) पुरोहिताई का
(ख) खेती – बाड़ी का
(ग) पढ़ाई का
(घ) घूमने का
उत्तर – (क) पुरोहिताई का
प्रश्न 3 – वशीधर के लिए कौन सा कार्य कठिन हो गया?
(क) पुरोहिताई का
(ख) झाड़ियों की काट-छाँट का
(ग) व्रत-उपवास का
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4 – यजमान किस पर श्रद्धा रखते हैं तथा क्यों?
(क) वंशीधर पर
(ख) मोहन पर
(ग) पूजा पाठ पर
(घ) ईश्वर पर
उत्तर – (क) वंशीधर पर
प्रश्न 5 – यजमान वंशीधर पर श्रद्धा क्यों रखते हैं –
(क) उनके सेवा भाव के कारण
(ख) उनकी निष्ठा व संयम के कारण
(ग) उनकी दयालुता के कारण
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ख) उनकी निष्ठा व संयम के कारण
2 –
मोहन को लेकर मास्टर त्रिलोक सिंह को बड़ी उम्मीदें थीं। कक्षा में किसी छात्र को कोई सवाल न आने पर वही सवाल वे मोहन से पूछते और उनका अनुमान सही निकलता। मोहन ठीक-ठीक उत्तर देकर उन्हें संतुष्ट कर देता और तब वे उस फिसड्डी बालक को दंड देने का भार मोहन पर डाल देते। ‘पकड़ इसका कान, और लगवा इससे दस उठक-बैठक,’ वे आदेश दे देते।
धनराम भी उन अनेक छात्रों में से एक था जिसने त्रिलोक सिंह मास्टर के आदेश पर अपने हमजोली मोहन के हाथों कई बार बेंत खाए थे या कान खिंचवाएँ थे।मोहन के प्रति थोड़ी-बहुत ईष्य रहने पर भी धनराम प्रारंभ से ही उसके प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था। इसका एक कारण शायद यह था कि बचपन से ही मन में बैठा दी गई जातिगत हीनता के कारण धनराम ने कभी मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा बल्कि वह इसे मोहन का अधिकार समझता रहा था। बीच-बीच में त्रिलोक सिंह मास्टर का यह कहना कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल का और उनका नाम ऊँचा करेगा, धनराम के लिए किसी और तरह से सोचने की गुंजाइश ही नहीं रखता था। और धनराम! वह गाँव के दूसरे खेतिहर या मज़दूर परिवारों के लड़कों की तरह किसी प्रकार तीसरे दर्जे तक ही स्कूल का मुँह देख पाया था। त्रिलोक सिंह मास्टर कभी-कभार ही उस पर विशेष ध्यान देते थे।
प्रश्न 1 – मास्टर त्रिलोक सिंह को किससे बड़ी उम्मीदें थीं –
(क) मोहन से
(ख) धनराम से
(ग) अपनी कक्षा के छात्रों से
(घ) सभी से
उत्तर – (क) मोहन से
प्रश्न 2 – धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वद्वी क्यों नहीं मानता था –
(क) क्योंकि उसके मन में बचपन से डर का भाव भर दिया गया था
(ख) क्योंकि उसके मन में बचपन से नीची जाति के होने का भाव भर दिया गया था
(ग) क्योंकि उसके मन में बचपन से ऊँची जाति के होने का भाव भर दिया गया था
(घ) क्योंकि उसके मन में बचपन से सभी से सम्मान का भाव भर दिया गया था
उत्तर – (ख) क्योंकि उसके मन में बचपन से नीची जाति के होने का भाव भर दिया गया था
प्रश्न 3 – त्रिलोक मास्टर ने मोहन के बारे में क्या घोषणा की थी –
(क) कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल व उनका नाम रोशन करेगा
(ख) कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा व्यापारी बनकर स्कूल व उनका नाम रोशन करेगा
(ग) कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा जमींदार बनकर स्कूल व उनका नाम रोशन करेगा
(घ) कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा अफ़सर बनकर स्कूल व उनका नाम रोशन करेगा
उत्तर – (क) कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल व उनका नाम रोशन करेगा
प्रश्न 4 – धनराम बड़ा आदमी बनने की गुंजाइश क्यों नहीं रहता था –
(क) वह नासमझ था
(ख) वह पढ़ाई नहीं करता था
(ग) वह गरीब परिवार से था
(घ) वह मंदबुद्धि था
उत्तर – (ग) वह गरीब परिवार से था
प्रश्न 5 – धनराम कहाँ तक की पढ़ाई कर पाया था –
(क) दूसरी कक्षा तक
(ख) तीसरी कक्षा तक
(ग) पहली कक्षा तक
(घ) पाँचवीं कक्षा तक
उत्तर – (ख) तीसरी कक्षा तक
3 –
धनराम की मंदबुद्ध रही हो या मन में बैठा हुआ डर कि पूरे दिन घोटा लगाने पर भी उसे तेरह का पहाड़ा याद नहीं हो पाया था। छुट्टी के समय जब मास्साब ने उससे दुबारा पहाड़ा सुनाने को कहा तो तीसरी सीढ़ी तक पहुँचते-पहुँचते वह फिर लड़खड़ा गया था। लेकिन इस बार मास्टर त्रिलोक सिंह ने उसके लाए हुए बेंत का उपयोग करने की बजाय ज़बान की चाबुक लगा दी थी, तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?’ अपने थैले से पाँच छह दरातियाँ निकालकर उन्होंने धनराम को धार लगा लाने के लिए पकड़ा दी थीं। किताबों की विद्या का ताप लगाने की सामध्य धनराम के पिता की नहीं थी। धनराम हाथ-पैर चलाने लायक हुआ ही था कि बाप ने उसे धौंकनी फेंकने या सान लगाने के कामों में उलझाना शुरू कर दिया और फिर धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगा। फर्क इतना ही था कि जहाँ मास्टर त्रिलोक सिंह उसे अपनी पसंद का बेत चुनने की छूट दे देते थे वहाँ गंगाराम इसका चुनाव स्वयं करते थे और ज़रा सी गलती होने पर छड़, बेंत, हत्था जो भी हाथ लग जाता उसी से अपना प्रसाद दे देते। एक दिन गंगाराम अचानक चल बसे तो धनराम ने सहज भाव से उनकी विरासत सँभाल ली और पास-पड़ोस के गाँव वालों को याद नहीं रहा वे कब गंगाराम के आफर को धनराम का आफर कहने लगे थे।
प्रश्न 1 – धनराम तेरह का पहाड़ा क्यों नहीं याद कर पाया?
(क) धनराम की मंदबुद्ध
(ख) मन में बैठा हुआ पिटाई का डर
(ग) केवल (क)
(घ) (क) और (ख) दोनों
उत्तर – (घ) (क) और (ख) दोनों
प्रश्न 2 – ज़बान की चाबुक’ से क्या अर्थ है?
(क) इसका अर्थ है-व्यंग्य-वचन
(ख) इसका अर्थ है-हास्य-वचन
(ग) इसका अर्थ है-क्रोध-वचन
(घ) इसका अर्थ है-संकोच-वचन
उत्तर – (क) इसका अर्थ है-व्यंग्य-वचन
प्रश्न 3 – त्रिलोक सिह ने धनराम को क्या कहा?
(क) कि तेरे दिमाग में भूसा भरा है। तुझे पढ़ाई नहीं आएगी।
(ख) कि तेरे दिमाग में मिट्टी भरा है। तुझे पढ़ाई नहीं आएगी।
(ग) कि तेरे दिमाग में लोहा भरा है। तुझे पढ़ाई नहीं आएगी।
(घ) कि तेरे दिमाग में ख़ास भरा है। तुझे पढ़ाई नहीं आएगी।
उत्तर – (ग) कि तेरे दिमाग में लोहा भरा है। तुझे पढ़ाई नहीं आएगी।
प्रश्न 4 – अध्यापक और लोहार के दड़ देने में क्या अंतर था –
(क) याद न करने पर मास्टर त्रिलोक बच्चे को अपनी पसंद का बेत चुनने की छूट देते थे, जबकि लोहार गंगाराम सज़ा देने का हथियार स्वयं ही चुनते थे।
(ख) लोहार गंगाराम गलती होने पर वे छड़, बेंत, हत्था-जो भी हाथ लगता, उससे सज़ा देते थे
(ग) मास्टर कभी – कभी केवल व्यंग कस कर छोड़ देते थे किन्तु लोहार गंगाराम हर बार पिटाई ही करते थे
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 5 – गंगाराम अचानक चल बसे तो धनराम ने सहज भाव से ————————-
(क) शरारतें करने में लग गया
(ख) उनकी विरासत सँभाल ली
(ग) उसका सारा डर समाप्त हो गया
(घ) उनका इकठ्ठा किया धन बर्बाद कर दिया
उत्तर – (ख) उनकी विरासत सँभाल ली
4 –
औसत दफ़्तरी बड़े बाबू की हैसियत वाले रमेश के लिए सोहन को अपनी भाई-बिरादर बतलाना अपने सम्मान के विरुद्ध जान पड़ता था और उसे घरेलू नौकर से अधिक हैसियत ५ह नहीं देता था, इस बात को मोहन भी समझने लगा था। थोड़ी बहुत हीला हवाली करने के बाद रमेश ने निकट के ही एक साधारण रो रूकुल में उसका नाम लिखवा दिया। लेकिन एकदम नए वातावरण और रात-दिन के काम के बोझ के कारण गाँव का वह मेधावी छात्र शहर के स्कूली जीवन में अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया। उसका जीवन एक बंधी बँधाई लीक पर। चलता रहा। साल में एक बार गर्मियों की छुट्टी में गाँव जाने का मौक भी तभी मिलता जब रमेश या उसके घर का कोई प्राणी गाँव जाने वाला होता वरना उन छुट्टयों को भी अगले दरजे की तैयारी के नाम पर उसे शहर में ही गुज़ार देना पड़ता था। अगले दरजे की तैयारी तो बहाना भर थी, सवाल रमेश और उसकी गृहस्थी की सुविधा-असुविधा का था। मोहन ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था, क्योंकि और कोई चारा भी नहीं था। घरवालों को अपनी वास्तविक स्थिति बतलाकर वह दुखी नहीं करना चाहता था। वंशीधर उसके सुनहरे भविष्य के सपने देख रहे थे।
प्रश्न 1 – रमेश मोहन को किस हैसियत में रखता था –
(क) नौकर की
(ख) बच्चों की
(ग) भाई की
(घ) परिवार की
उत्तर – (क) नौकर की
प्रश्न 2 – रमेश मोहन को नौकर की हैसियत में क्यों रखता था –
(क) रमेश औसत दप्तरी बड़े बाबू की हैसियत का था,अतः वह मोहन को अपना भाई-बिरादर बताकर अपना अपमान नहीं करवाना चाहता था
(ख) रमेश बड़े बाबू की हैसियत का था, अतः वह मोहन को अपना भाई-बिरादर बताकर अपना अपमान नहीं करवाना चाहता था
(ग) रमेश बड़े बाबू की हैसियत का था, अतः वह मोहन को छोटा समझता था
(घ) रमेश की शहर में कभी जान पहचान थी अतः वह मोहन को अच्छा नहीं समझता था
उत्तर – (क) रमेश औसत दप्तरी बड़े बाबू की हैसियत का था,अतः वह मोहन को अपना भाई-बिरादर बताकर अपना अपमान नहीं करवाना चाहता था
प्रश्न 3 – मोहन स्कूल में अपनी पहचान क्यों नहीं बना पाया?
(क) घर के अत्यधिक काम के कारण
(ख) नए वातावरण के कारण
(ग) घर के सदस्यों के व्यवहार के कारण
(घ) घर के अत्यधिक काम और नए वातावरण के कारण
उत्तर – (घ) घर के अत्यधिक काम और नए वातावरण के कारण
प्रश्न 4 – मोहन ने परिस्थितियों से समझौता क्यों कर लिया –
(क) वह अपनी वास्तविक स्थिति घर वालों को बताकर घर वापिस नहीं जाना चाहता था
(ख) वह अपनी वास्तविक स्थिति घर वालों को बताकर दुखी नहीं करना चाहता था
(ग) वह अपनी वास्तविक स्थिति किसी को बताकर रमेश का अपमान नहीं करना चाहता था
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ख) वह अपनी वास्तविक स्थिति घर वालों को बताकर दुखी नहीं करना चाहता था
प्रश्न 5 – वंशीधर किसके सुनहरे भविष्य के सपने देख रहे थे –
(क) मोहन के
(ख) रमेश के
(ग) धनश्याम के
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) मोहन के
5 –
सामान्य तौर से ब्राह्मण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था। किसी काम-काज के सिलसिले में यदि शिल्पकार टोले में आना ही पड़ा
तो खड़े-खड़े बातचीत निपटा ली जाती थी। ब्राह्मण टोले के लोगों को बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। पिछले कुछ वर्षों से शहर में जा रहने के बावजूद मोहन गाँव की इन मान्यताओं से अपरिचित हो ऐसा संभव नहीं था। धनराम मन-ही-मन उसके व्यवहार से असमंजस में पड़ा था लेकिन प्रकट में उसने कुछ नहीं कहा और अपना काम करता रहा। लोहे की एक मोटी छड़ को भट्टी में गलाकर धनराम गोलाई में मोड़ने की कोशिश कर रहा था। एक हाथ से सँडसी पकड़कर जब वह दूसरे हाथ से हथौड़े की चोट मारता तो निहाई पर ठीक घाट में सिरा न फैसने के कारण लोहा उचित ढंग से मुड़ नहीं पा रहा था। मोहन कुछ देर तक उसे काम करते हुए देखता रहा फिर जैसे अपना संकोच त्यागकर उसने दूसरी पकड़ से लोहे को स्थिर कर लिया और धनराम के हाथ से हथौड़ा लेकर नापी-तुली चोट मारते, अभ्यस्त हार्थों से धौंकनी फेंककर लोहे को दुबारा भट्टी में गरम करते और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोकते पीटते सुघड़ गोले का रूप दे डाला।
प्रश्न 1 – गाँव की सामान्य तौर पर क्या मान्यता थी –
(क) ब्राह्मण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था
(ख) शिल्पकार टोले के लोगों का ब्राह्मण टोले में उठना-बैठना नहीं होता था
(ग) ब्राह्मण टोले के लोगों को शिल्पकार टोले के लोगों का अपमान करना आम बात थी
(घ) ब्राह्मण टोले के लोग अपने आप को शिल्पकार टोले के लोगों से ऊंचा मानते थे
उत्तर – (क) ब्राह्मण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था
प्रश्न 2 – धनराम मन-ही-मन किसके व्यवहार से असमंजस में पड़ा था –
(क) अध्यापक के
(ख) मोहन के
(ग) रमेश के
(घ) गाँव के लोगों के
उत्तर – (ख) मोहन के
प्रश्न 3 – मोहन धनराम के आफर क्यों गया था?
(क) हँसुवे की धार तेज़ करवाने के लिए
(ख) उसका अपमान करवाने के लिए
(ग) उसके पिता के गुजर जाने का दुःख जताने
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) हँसुवे की धार तेज़ करवाने के लिए
प्रश्न 4 – धनराम अपने काम में सफल क्यों नहीं हो रहा था?
(क) क्योंकि वह एक हाथ से सँड़सी पकड़ कर रखे हुए था
(ख) क्योंकि वह दूसरे हाथ से हथौड़े की चोट मार रहा था
(ग) क्योंकि वह एक हाथ से सँड़सी पकड़कर दूसरे हाथ से हथौड़े की चोट मारता तो निहाई पर ठीक घाट में सिरा न फैसने का कारण लोहा सही तरीके से नहीं मुड़ रहा था
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ग) क्योंकि वह एक हाथ से सँड़सी पकड़कर दूसरे हाथ से हथौड़े की चोट मारता तो निहाई पर ठीक घाट में सिरा न फैसने का कारण लोहा सही तरीके से नहीं मुड़ रहा था
प्रश्न 5 – मोहन ने धनराम का अधूरा काम कैसे पूरा किया?
(क) मोहन कुछ देर तक धनराम के काम को देखता रहा
(ख) अचानक वह उठा और दूसरी पकड़ से लोहे को स्थिर करके धनराम का हथौड़ा लेकर नपी तुली चोट की
(ग) उसने स्वयं धौंकनी फूककर लोहे को दोबारा भट्टी में गरम किया और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोक-पीटकर सुघड़ गोले में बदल दिया
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
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