namak-ka-daroga-summary

 

CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag 1 Book Chapter 1 नमक का दरोगा Summary

 इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag 1 Book के Chapter 1 नमक का दारोगा का पाठ सार लेकर आए हैं। यह सारांश आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि वे इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Namak ka Daroga Summary of CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag-1 Chapter 1.  
 
Also See : नमक का दरोगा Question Answers | NCERT Solutions Class 11 Chapter 1
 

नमक का दरोगा पाठ सार (Summary)

प्रस्तुत कहानी ‘नमक का दारोगा’ प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी है। कहानी में ही आए हुए एक मुहावरे को लें तो यह धन के ऊपर धर्म की जीत की कहानी है। कहानी में धन का प्रतिनिध्त्वि पंडित अलोपीदीन और धर्म का प्रतिनिधित्व मुंशी वंशीधर नामक पात्रों ने किया है। ईमानदार कर्मयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने के बाद पंडित अलोपीदीन अपने धन की महिमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से निकलवा देते हैं, लेकिन अंत में सत्य के आगे उनका सिर झुक जाता है। वे सरकारी नौकरी से निकाले गए वंशीधर को बहुत ऊँचे वेतन और भत्ते के साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करते हैं और गहरे अपराध्-बोध् से भरी हुई वाणी में निवेदन करते हैं, कि ‘परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह वंशीधर को सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, किन्तु धर्मनिष्ठ दारोगा बनाए रखे।

कहानी के इस अंतिम प्रसंग से पहले तक की समस्त घटनाएँ प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा उस भ्रष्टाचार की व्यापक सामाजिक स्वीकार्यता को अत्यंत साहसिक तरीके से हमारे सामने उजागर करती हैं।

अंग्रेजों ने नमक पर अपना एकाधिकार करने के लिए नमक का एक नया व अलग विभाग बना दिया था। जिससे नमक जैसी तुच्छ वस्तु भी लोगों को आसानी से मिलनी मुश्किल हो गई। इसी कारण कुछ लोग इसका चोरी छुपे व्यापार भी करने लगे जिसके कारण भ्रष्टाचार की जड़े खूब फैलने लगी। कोई रिश्वत देकर अपना काम करवाता तो , कोई चालाकी – होशियारी से। इस कारण अधिकारी वर्ग की कमाई तो अचानक कई गुना बढ़ गई थी।

इस विभाग में ऊपरी कमाई बहुत अधिक होती थी। इसीलिए अधिकतर लोग इस विभाग में काम करने के इच्छुक रहते थे। बड़े-बड़े पदों पर आसीन लोग भी नमक अधिकारी बनने को तत्पर रहते थे। लेखक कहते हैं कि उस दौर में लोग महत्वपूर्ण विषयों के बजाय प्रेम कहानियों व श्रृंगार रस के काव्यों को पढ़कर भी उच्च पदों में आसीन हो जाते थे।

कहानी के नायक मुंशी वंशीधर भी इतिहास भूगोल की बातों से ज्यादा प्रेम कहानियों का अध्ययन कर नौकरी की खोज में निकल पड़े। उनके पिता को जीवन का कड़वा अनुभव था। इसीलिए कर्ज के बोझ तले डूबे पिता ने अपने घर की दुर्दशा और घर में जवान होती बेटियों का हवाला देकर वंशीधर से कहा कि पद प्रतिष्ठा के आधार पर नौकरी का चुनाव करने के बजाए ऐसी नौकरी का चुनाव करना जिसमें ऊपरी कमाई ज्यादा होती हो। ताकि घर के हालत कुछ सुधर सकें। वंशीधर के पिता का मानना था कि मासिक वेतन तो पूर्णमासी के चाँद की तरह होती है जो महीने के पहले दिन दिखाई देती है और धीरे-धीरे घटते-घटते अमावस्या तक खत्म हो जाती है। लेकिन ऊपरी कमाई तो एक बहता स्रोत है जो हमेशा आदमी की प्यास बुझाता है यानी आदमी की जरूरतें पूरी करता है। वो साथ में यह भी कहते कि वेतन तो मनुष्य देता है। इसीलिए इसमें वृद्धि नहीं होती है। ऊपरी कमाई ईश्वर की देन है इसीलिए इसमें बरकत होती रहती हैं। उपदेश देने के साथ-साथ पिता ने आशीर्वाद भी दिया और आज्ञाकारी पुत्र की तरह वंशीधर ने पिता की बात सुनी और घर से नौकरी की तलाश में निकल पड़े। सौभाग्य से उन्हें नमक विभाग में दरोगा की नौकरी मिल गई जिसमें वेतन तो अच्छा था ही साथ में ऊपरी कमाई भी बहुत अधिक थी।

जब यह बात उनके पिता को पता चली तो वो बहुत अधिक खुश हो गए। मुंशी वंशीधर ने सिर्फ छह महीने में ही अपनी कार्यकुशलता , ईमानदारी और अच्छे व्यवहार से सभी अधिकारियों को अपना प्रशंसक बना लिया था। सभी अधिकारी उन पर बहुत अधिक विश्वास करते थे।

नमक के दफ्तर से एक मील पूर्व की ओर जमुना नदी बहती थी। उस पर नावों का एक पुल बना हुआ था। जाड़े के दिन व रात का समय था। दरोगा जी बहुत गहरी नींद में सोए हुए थे कि अचानक उनकी आंख खुली और उन्हें नदी के पास गाड़ियों और नाव चलाने वाले लोगों की आवाजें सुनाई दी।  दरोगा जी को संदेह हुआ कि इतनी रात में गाड़ियां नदी क्यों पार कर रही हैं। जरूर कुछ गड़बड़ हैं। यह सोचकर उन्होंने वर्दी पहनी और जेब में बंदूक रख , घोड़े में बैठकर पुल तक पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि गाड़ियों की एक लंबी कतार पुल पार कर रही थी। उन्होंने पास जाकर पूछा कि यह गाड़ियां किसकी है ? तो पता चला कि यह गाड़ियां पंडित अलोपीदीन की है। मुंशी वंशीधर यह सुनकर चौंक पड़े क्योंकि पंडित अलोपीदीन उस इलाके के एक प्रतिष्ठित मगर बहुत ही चालाक जमींदार थे। उनका व्यापार बहुत लम्बा-चौड़ा था। वो लोगों को धन कर्ज के रूप में देते थे।

खैर वंशीधर ने जब गाड़ियों की जांच की तो पता चला कि गाड़ियों में नमक के बोरे भरे थे। उन्होंने गाड़ियां रोक ली। पंडित अलोपीदीन को जब एक व्यक्ति ने कहा कि उनकी गाड़ियों को दरोगा ने रोक लिया है तो उन पर इस बात का कुछ ख़ास असर नहीं पड़ा , क्योंकि उन्हें अपने धन के बल पर बहुत विश्वास था। वह कहते थे कि सिर्फ इस धरती पर ही नहीं बल्कि स्वर्ग में भी लक्ष्मीजी का ही राज चलता है और उनका यह कहना काफी हद तक सच भी था क्योंकि न्याय और नीति यह सब आज के समय में लक्ष्मी जी के खिलौने ही तो हैं। वह जिसको जैसे नचाना चाहती हैं उसको वैसा ही नचा देती है। उन्होंने उस व्यक्ति को गर्व से कहा कि तुम चलो हम आते हैं।

पंडित अलोपीदीन ने वंशीधर से गाड़ियां को रोकने के बारे में पूछा तो वंशीधर ने कहा कि वो सरकार के हुक्म का पालन कर रहे हैं। पंडित अलोपीदीन ने अब दरोगा जी को अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से रिश्वत के जाल में फंसाने की कोशिश की। दरोगा जी को धन लालच देकर गाड़ी छोड़ने के बारे में बात की। परंतु वंशीधर ईमानदार व्यक्ति थे। उन्होंने पैसे लेने की बजाए पंडित जी को ही गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। यह देखकर पंडित जी आश्चर्यचकित रह गए। और उन्होंने रिश्वत की रकम बढ़ा कर फिर से वंशीधर को लालच दिया। मगर वंशीधर ने उनके लालच के मायाजाल में न फंस कर सीधे ही उनको गिरफ्तार कर लिया। यानी धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।

खबर चारों तरफ आग की तरह फैल गई। अगले दिन पंडित अलोपीदीन के हाथों में हथकड़ियां डालकर उन्हें अदालत में लाया गया। पंडित अलोपीदीन की गर्दन झुकी हुई थी और उनका हृदय शर्म व ग्लानि से भरा था। पंडितजी को कानून की गिरफ्त में देखकर वहां खड़े सभी लोग आश्चर्यचकित थे। खैर वकीलों व गवाहों की एक पूरी फौज खड़ी थी जो पंडितजी के पक्ष में बोलने को तैयार थी। अदालत में भी भरपूर पक्षपात हुआ और मुकद्दमा शुरू होते ही समाप्त हो गया। और पंडितजी को रिहा कर दिया गया लेकिन सत्यनिष्ठ और ईमानदार वंशीधर को अदालत ने भविष्य में सतर्क रहने की हिदायत दे दी।

पंडित अलोपीदीन अपने धन की शक्ति के बल पर पायी हुई जीत पर मुस्कुराते हुए वहां से बाहर निकले। और बेचारे वंशीधर लोगों के व्यंग बाण सुनते हुए। लगभग एक सप्ताह के अंदर ही वंशीधर को अपनी ईमानदारी का इनाम भी नौकरी से निकाले जाने के रूप में मिल गया यानी उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। हृदय में अथाह दुख लिए वो निराश मन से अपने घर की तरफ चल दिए। घर पहुंचकर पिता ने तो चार बातें सुनाई ही , पत्नी ने भी सीधे मुंह बात नहीं की। एक सप्ताह यूं ही गुजर गया।

एक शाम वंशीधर के पिता आंगन में बैठे राम नाम का जाप कर रहे थे। तभी वहां पंडित अलोपीदीन पहुंच गए। वंशीधर के पिता ने पंडित अलोपीदीन को देखा और उनका स्वागत किया और उनसे  चापलूसी भरी बातें करने लगे और साथ में उन्होंने अपने बेटे को भी जमकर कोसना शुरू कर दिया। लेकिन जब पंडित अलोपीदीन ने उन्हें बताया कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसे कई अमीरों व उच्च अधिकारियों को देखा है जिन्हें आसानी से पैसे से खरीदा जा सकता हैं। मगर अपने कर्तव्य को इतनी ईमानदारी व सच्चाई के साथ निभाने वाले व्यक्ति को उन्होंने अपने जीवन में पहली बार देखा। जिसने अपने कर्तव्य व धर्म को धन से बड़ा माना।

वंशीधर ने जब पंडित जी को देखा तो उन्हें लगा कि शायद पंडित जी उसे खरी खोटी सुनाने आए होंगे लेकिन पंडित जी की बातें सुनकर उसका भ्रम दूर हुआ।खैर काफी देर बातें करने के बाद वंशीधर ने पंडित जी से कहा कि वह जो भी हुकुम देंगे , वो उसको मानने के लिए तैयार हैं। इस पर पंडित जी ने स्टांप लगा हुआ एक पत्र , इस प्रार्थना के साथ वंशीधर के हाथ में दिया कि वह उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर ले। वंशीधर ने जब उस पत्र को पढ़ा तो वह आश्चर्य चकित रह गया। दरअसल पंडित जी ने वंशीधर को अपनी सारी जायजाद का स्थाई मैनेजर नियुक्त किया था। यह देख वंशीधर की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने पंडित जी से कहा कि वह इस योग्य नहीं है। पंडित जी मुस्कुराते हुए बोले कि उन्हें अयोग्य आदमी ही चाहिए। वंशीधर बोला कि उसमें इतनी बुद्धि नहीं है कि वह इतनी बड़ी जिम्मेदारी को संभाल सके। पंडित जी ने कहा कि उन्हें विद्वान व्यक्ति नहीं बल्कि ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की आवश्यकता हैं। वंशीधर ने कांपते हुए हाथों से उस पत्र पर दस्तखत कर दिए और पंडित अलोपीदीन ने वंशीधर को खुशी से गले लगा लिया।
 
Also See : 

Hindi Aroh Bhag 1 Book Lessons

Hindi Aroh Bhag 1 Question Answers