CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag 1 Book Chapter 13 ग़ज़ल Summary, Explanation
इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag 1 Book के Chapter 13 ग़ज़ल का पाठ सार और व्याख्या लेकर आए हैं। यह सारांश और व्याख्या आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Ghazal Summary, Explanation of CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag-1 Chapter 13.
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ग़ज़ल का सारांश (Ghazal Summary)
यह ‘गजल’ ‘दुष्यंत कुमार जी’ के गजल संग्रह “साये में धूप” से ली गई है। यहाँ पहले शेर की दोनों पंक्तियों का तुक मिलता है और उसके बाद सभी शेरों की दूसरी पंक्ति में उस तुक का निर्वाह होता है। आम तौर पर गज़ल के शेरों में केंद्रीय भाव का होना जरूरी नहीं है लेकिन यहाँ पूरी गज़ल एक खास मनःस्थिति में लिखी गई जान पड़ती है। राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है, उसे खारिज करने और विकल्प की तलाश को मान्यता देने का भाव एक तरह से इस गज़ल का केंद्रीय सूत्र बन गया है। इस प्रकार दुष्यंत की यह गज़ल हिंदी गज़ल का सुंदर नमूना प्रस्तुत करती है।
इस ग़ज़ल के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि भारत की आजादी के वक्त जिस खुशहाल भारत का सपना देखा था वो अभी तक पूरा नहीं हो पाया हैं। यहाँ लोग अभी भी मूलभूत सुख-सुविधाओं से वंचित हैं। देश के विकास का दायित्व जिनके कंधों पर था वो भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुके हैं। आम व शोषित जनता अभावों में जीने की आदी हो चुकी हैं। उन्हें यह विश्वास हो चुका हैं कि वो कुछ भी कर लें लेकिन इस व्यवस्था को बदल नहीं सकते हैं। इसीलिए अब उन्होंने विरोध करना भी छोड़ दिया हैं जो शासक वर्ग के लिए बहुत अच्छा हैं।
हालाँकि कवि लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना चाहते हैं ताकि वो सत्ताधारी लोगों से अपना हक ले सकें। एक सुखी व समृद्ध भारत, कवि का सपना हैं जहाँ हर आदमी प्रेम, स्वाभिमान व आत्मसम्मान के साथ जी सके।
ग़ज़ल पाठ व्याख्या (Ghazal Explanation)
शेर 1 –
कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
शब्दार्थ –
हरेक – प्रत्येक
मयस्सर – उपलब्ध
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में उन नेताओं पर व्यंग्य किया है जो चुनाव के वक्त जनता को रंग-बिरंगे, लोक-लुभावने सपने दिखाते हैं मगर सत्ता में आते ही जनता से किए वादों को भूल जाते हैं।
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि आजादी के वक्त हमारे नेताओं ने तय किया था कि हर घर में खुशियों के दीप जलाएंगे यानि हर घर में खुशहाली लाएंगे लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी हर घर तो छोड़िए, वो एक शहर तक को खुशहाल नहीं बना पाये।
कहने का तात्पर्य यह है कि आजादी के वक्त नेता कहते थे कि भारत के प्रत्येक नागरिक को सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ दी जाएगी, सबको समान अधिकार दिए जाएंगे, उनका जीवन खुशहाल बनाया जायेगा लेकिन आजादी के इतने वर्षों बाद भी सभी नागरिको को तो छोड़िए कुछ लोगों या एक शहर तक को भी जरूरी सुख सुविधाएँ देकर उनका जीवन खुशहाल नही बना पाए। अर्थात हमारे नेताओं ने जनता से किये अपने वादे पूरे नहीं किए।
शेर 2 –
यहाँ दरख्तों के साए में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए।
शब्दार्थ –
दरख्त – पेड़
साए – छाँव
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि पेड़ों की छाया में भी हमें धूप लग रही है जबकि पेड़ों की छाया में हमें छाँव अर्थात ठंडक मिलनी चाहिए। कहने का भाव यह है कि जिन राजनेताओं को हमने अपने लोक-कल्याण, सुरक्षा व विकास के लिए चुना था। आज वही हमारा शोषण कर रहे हैं , भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। ऐसे समाज में जीना बहुत मुश्किल है। कवि इस समाज को छोड़कर कहीं दूर चले जाना चाहते हैं और फिर कभी लौटकर दोबारा यहाँ नहीं आना चाहते हैं। साथ में वो समाज के अन्य लोगों से भी ऐसे समाज को छोड़ने का आह्वान करते हैं।
शेर 3 –
ना हो कमीज तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।
शब्दार्थ –
मुनासिब – उचित, वाजिब, ठीक, योग्य, काबिल
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि समाज के उन लोगों पर कटाक्ष करते हैं जो हर परिस्थिति में जीने के आदी होते है। उनके आसपास क्या हो रहा हैं। इस बात से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। वो अभाव में भी आराम से जी लेते हैं।
कवि कहते हैं कि अभाव में जीवन जीने के आदी इन लोगों के पास यदि पहनने को कमीज अर्थात कपड़े नहीं होते हैं तो वो अपने पांवों को मोड़ कर अपने पेट को ढंक लेते हैं मगर शासक वर्ग के खिलाफ आवाज तक नहीं उठाते हैं। और ऐसे ही लोग, भ्रष्ट शासक वर्ग के लिए बहुत योग्य या अच्छे होते हैं क्योंकि वो उनका विरोध नहीं करते हैं या उस व्यवस्था के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर नहीं करते हैं।
शेर 4 –
खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही,
कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए।
शब्दार्थ –
ख्वाब – सपना, स्वप्न
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि अगर लोग वर्तमान परिस्थितियों को बदल नहीं सकते हैं या शासक वर्ग पर उनकी किसी बात का कोई असर नहीं हो रहा है तो कोई बात नही। कम से कम वो सुंदर सपने तो देख ही सकते हैं।
कवि कहते हैं कि अगर ईश्वर, इंसान की मनचाही मुराद पूरी नहीं कर रहा हैं तो कोई बात नहीं। कम से कम वह सपनों में ही सही, कुछ मनचाहे सुंदर दृश्य या नजारे देखकर खुश तो हो ही सकता हैं। कहने का आशय यह है कि इन्सान को सपने अवश्य देखने चाहिए भले वो पूरे हो या न हो।
शेर 5 –
वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए।
शब्दार्थ –
मुतमइन – इतमीनान से, आश्वस्त
बेकरार – बेचैन, व्याकुल, विकल
असर – प्रभाव, छाप, दबाव, फल
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि गरीब व शोषित वर्ग को यह विश्वास हो गया है कि हम कुछ भी कर लें लेकिन इन परिस्थितियों को नही बदल सकते हैं लेकिन मेरे अन्दर इन परिस्थितियों को बदलने की बेचैनी है।
कवि कहते हैं कि अगर हम सब मिलकर इस भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ आवाज उठायेंगे और हमारी आवाज में दम होगा तो ये परिस्थितियां अवश्य बदलेंगी।
अर्थात आम आदमी को यह विश्वास हो गया है कि अब परिस्थितियां नहीं बदल सकती है लेकिन कवि बेचैनी से इंतजार कर रहा है कि कब लोग एक साथ मिलकर सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाएं और फिर देखिए कैसे बदलाव आएगा और यह सिस्टम बदल जाएगा। कवि का यह व्यंग्य उन लोगों पर है जो मान बैठे हैं कि परिस्थितियां बदल ही नहीं सकती हैं।
शेर 6 –
तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की,
ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए।
शब्दार्थ –
निजाम – राज़
एहतियात – सावधानी
बहर – छंद
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब भी कोई कवि या लेखक शासन की भ्रष्ट नीतियों के खिलाफ लोगो को जागरूक करने के लिए अपनी आवाज बुलंद करता हैं तो शासन वर्ग उस कवि की जुबान बंद करने की कोशिश करता हैं। उसकी अभिव्यक्ति पर रोक लगा देता हैं।
इसीलिए कवि कहते हैं कि यह संभव हैं कि सत्ताधारी लोग अपनी सत्ता बचाये रखने के लिए मेरी जुबान बंद कर सकते हैं या मेरी अभिव्यक्ति की आजादी को छीन सकते हैं। कवि खुद मानते है कि इस सिस्टम को चलाए रखने के लिए ऐसी सावधानी करनी भी ठीक उसी प्रकार जरूरी है जैसे गजल के छंद (बहर) के लिए बंधन या मीटर की सावधानी करनी बहुत जरूरी है। कहने का तात्पर्य यह है कि गजल के छंद लिखते वक्त भी कई बातों का ध्यान रखना पड़ता हैं तब जाकर एक सुंदर व सधी हुई गजल बनती हैं।
शेर 7 –
तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले,
मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।
शब्दार्थ –
गुलमोहर – स्वाभिमान या आत्मसम्मान” के अर्थ में
व्याख्या – यहाँ पर गुलमोहर शब्द का प्रयोग “स्वाभिमान या आत्मसम्मान” के अर्थ में प्रयोग हुआ है। उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि इन्सान को अपने घर में भी पूरे आत्मसम्मान व स्वाभिमान के साथ जीवन जीना चाहिए। और अगर अपने घर के बाहर हमारी जान चली भी जाती हैं तो, वो भी अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए जाय यानि घर हो या बाहर, व्यक्ति को सदैव अपने स्वाभिमान व आत्मसम्मान के साथ जीना चाहिए।
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