CBSE Class 11 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book Chapter 14 कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया Summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 11 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book के Chapter 14 कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया का पाठ सार लेकर आए हैं। यह सारांश आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Karyalayi Lekhan Aur Prakriya Summary of CBSE Class 11 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Chapter 14.
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कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया पाठ सार (Karyalayi Lekhan Aur Prakriya Summary)
आपने कभी न कभी आम सरकारी दफ़तर में कागज़ों और फ़ाइलों के ढेर देखे होंगे। इन फाइलों का दफ़तरों के कामकाज में महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकारी कामकाज की गाड़ी फाइलों के पहियों पर ही दौड़ती है। चाहे किसी विषय पर विचार करना हो या उस पर निर्णय लेना हो , उस विषय से संबंधित एक फाइल होती है। उस विषय से संबंधित जो प्रस्ताव या पत्र बाहरी व्यक्तियों या दूसरे कार्यालयों से प्राप्त होते हैं उन्हें फाइल की दाहिनी तरफ रखा जाता है। किसी प्रस्ताव या विषय पर विचार के लिए जो टिप्पणियाँ लिखी जाती हैं या अपने विचार प्रकट किए जाते हैं वे फाइल की बाईं तरफ लगे पृष्ठों पर होते हैं। सरकारी कार्यालयों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए इन पत्रों को कई श्रेणियों में बाँट दिया गया है। उदाहरण के लिए कई पत्र सूचनाएँ माँगने या भेजने के लिए लिखे जाते हैं। कुछ पत्रों द्वारा मुख्यालय या बड़े अधिकारी अपने अधीन कार्यरत कार्यालयों या अधीन कार्य करने वाले कर्मचारियों को आदेश भेजते हैं। कुछ पत्र अखबारों को विभागीय गतिविधियों की जानकारी देने के लिए भेजे जाते हैं।
औपचारिक पत्र (फॉर्मल लेटर)
सरकारी पत्र औपचारिक पत्र की श्रेणी में आते हैं। ज्यादातर ये पत्र एक कार्यालय, विभाग अथवा मंत्रालय से दूसरे कार्यालय, विभाग या मंत्रालय को लिखे जाते हैं। पत्र के शीर्ष पर कार्यालय, विभाग या मंत्रालय का नाम व पता लिखा जाता है। पत्र के बाईं तरफ जिसे पत्र लिखा जा रहा है उसका नाम, पता और फाइल संख्या लिखी जाती है जिससे यह स्पष्ट हो सके कि पत्र किस विभाग द्वारा किस विषय के तहत कब लिखा जा रहा है। यदि आवश्यक हो तो अधिकारी का नाम भी दिया जाता है। वर्तमान में ‘सेवा में’ का प्रयोग धीरे-धीरे कम हो रहा है। ‘विषय’ में संक्षेप में यह लिखा जाता है कि पत्र लिखने का प्रयोजन क्या है। पत्र की भाषा सरल एवं सहज होनी चाहिए। अत्यधिक कठिन शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। इस पत्र के बाईं ओर प्रेषक का पता और तारीख दी जाती है। पत्र के अंत में ‘भवदीय’ शब्द का प्रयोग अधोलेख के रूप में होता है। भवदीय के नीचे पत्र भेजने वाले के हस्ताक्षर और हस्ताक्षर के नीचे कोष्ठक में पत्र लिखने वाले का नाम और नाम के नीचे पदनाम लिखा जाता है।
मुख्य टिप्पण (नोटिग)
किसी भी ऐसे पत्र जिस पर किसी विषय पर विचार किया जा रहा है, उस पर जो राय, मंतव्य, आदेश अथवा निर्देश दिया जाता है वह टिप्पणी कहलाती है। टिप्पणी शब्द अंग्रेजी के नोटिग शब्द के अर्थ में प्रयुक्त होता है। टिप्पणी लिखने की प्रक्रिया को हम टिप्पण यानी नोटिग कहते हैं। टिप्पणी का उद्देश्य उन तथ्यों को स्पष्ट तथा तर्कसंगत रूप से प्रस्तुत करना है जिन पर कोई निर्णय लिया जाना है और किसी भी मामले को नियमानुसार निपटाना है। साथ ही उन बातों की ओर भी संकेत करना है जिनके आधार पर उस निर्णय को स्वीकार किया जा सकता है।
टिप्पण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं – सहायक स्तर पर टिप्पण तथा अधिकारी स्तर पर टिप्पण।
सहायक स्तर पर टिप्पण – कार्यालय में टिप्पण कार्य अधिकतर सहायक स्तर पर होता है। इसे आरंभिक टिप्पण या मुख्य टिप्पण भी कहते हैं, जिसमें सहायक किसी मामले का संक्षिप्त ब्योरा देते हुए अपने विचार रखता है। उसका इस प्रकार के टिप्पण में सबसे पहले मुख्य पत्र या आवती में दिए गए विवरण या तथ्य का सार दिया जाता है। फिर उसमें उल्लेखित प्रस्ताव की व्याख्या की जाती है और उस विषय से संबंधित नियमों-विनियमों को ध्यान में रखते हुए अपनी राय दी जाती है। यह आवश्यक है कि टिप्पणी अपने आप में पूर्ण एवं स्पष्ट होनी चाहिए। इसमें असली मुद्दे पर अधिक बल देना चाहिए और साथ ही साथ टिप्पणी संक्षिप्त, विषय-संगत, तर्कसंगत और क्रमबद्ध होनी चाहिए। टिप्पण करने वाले को अपने विचार संतुलित एवं शिष्ट भाषा में देने चाहिए। इसमें व्यक्तिगत आक्षेप, उपदेश या पूर्वाग्रहों के लिए कोई स्थान नहीं होता। और सबसे महत्वपूर्ण बात टिप्पणी सदैव अन्य पुरुष में लिखी जाती है।
आनुषंगिक टिप्पण
सहायक, आरंभिक या मुख्य टिप्पणी को जब उस विषय से सम्बन्ध रखने वाले अधिकारी के पास भेजता है तो वह अधिकारी टिप्पणी पढ़ने के बाद नीचे मंतव्य लिखता है। इसे आनुषंगिक टिप्पणी कहते हैं और यह क्रिया आनुषंगिक टिप्पण कहलाती है। अगर अधिकारी अपने सहायक की भेजी गई टिप्पणी से पूरी तरह सहमत है तो इस प्रकार की टिप्पणी की आवश्यकता नहीं होती। अधिकारी अधीनस्थ की टिप्पणी के नीचे या तो केवल हस्ताक्षर कर लेता है या ‘मैं उपर्युक्त टिप्पणी से सहमत हूँ’, यह लिखता है। परन्तु अधिकारी अगर उस भेजी गई टिपण्णी को और सशक्त एवं तर्कसंगत बनाने के लिए अपनी ओर से कुछ जोड़ना चाहता है तो वह अपना मत या अपने विचार आनुषंगिक टिप्पणी के रूप में लिख सकता है। एक बात याद रखने योग्य यह है कि अधिकारी को अधीनस्थ की टिप्पणी को काटने, बदलने या हटाने का अधिकार नहीं है। वह केवल अपनी सहमति, आंशिक सहमति या असहमति व्यक्त कर सकता है। साथ ही साथ आनुषंगिक टिप्पणी प्रायः संक्षिप्त होती है लेकिन असहमति की स्थिति में कई बार इस प्रकार की टिप्पणी बड़ी भी हो सकती है।
अनुस्मारक या स्मरण पत्र
जब पहले से किसी भेजे गए पत्र या ज्ञापन इत्यादि का उत्तर समय पर प्राप्त नहीं होता तो याद दिलाने के लिए ‘अनुस्मारक’ भेजा जाता है। इसे ‘स्मरण पत्र’ भी कहते हैं। इसका प्रारूप औपचारिक पत्र की तरह ही होता है मगर इसका आकार उससे छोटा होता है। अनुस्मारक के शुरू में पहले भेजे गए पत्र का हवाला दिया जाता है। और जब एक से अधिक अनुस्मारक भेजे जाते हैं, तो पहले अनुस्मारक को ‘अनुस्मारक-1’, दूसरे को ‘अनुस्मारक-2’, तीसरे को ‘अनुस्मारक-3’ इत्यादि लिखते हैं।
अर्धसरकारी पत्र
औपचारिक-पत्र के विपरीत अर्ध-सरकारी पत्र में अनौपचारिकता का अंश देखने को मिलता है। इसमें एक मैत्री भाव होता है। अर्ध-सरकारी पत्र तब लिखे जाते हैं जब लिखने वाला अधिकारी संबंधित अधिकारी को व्यक्तिगत स्तर पर जानता है। इस प्रकार का पत्र ऐसी स्थिति में भी लिखा जाता है जब किसी खास मसले पर संबोधित अधिकारी का ध्यान व्यक्तिगत रूप से आकर्षित कराया जाता है या उसका व्यक्तिगत परामर्श लिया जाए। प्रारूप में बाईं ओर शीर्ष पर प्रेषक का नाम होता है। इसके नीचे उसका पदनाम होता है। पत्र के प्रारंभ में संबोधन के रूप में महोदय या प्रिय महोदय का प्रयोग नहीं होता। ऐसे पत्र में आमतौर पर प्रयोग किया जाने वाला संबोधन ‘प्रिय श्री…’ या ‘प्रियवर श्री…, हो सकता है। पत्र के अंत में अधोलेख के रूप में दाहिनी ओर ‘भवदीय’ के स्थान पर ‘आपका’ का प्रयोग किया जाता है। अंत में बाईं ओर सम्बोधित अधिकारी का नाम, पदनाम और पूरा पता दिया जाता है।
कार्यसूची (एजेंडा)
किसी भी संस्था की औपचारिक बैठक की कार्यसूची उस बैठक में चर्चा के लिए निर्धारित विषयों की पहले से प्राप्त जानकारी देती है। इससे बैठक के अनुशासित संचालन में सहायता मिलती है। निर्धरित विषयों से सम्बंधित या उससे जुड़ी हुई स्पष्ट टिप्पणियाँ सदस्यों को कार्यसूची के साथ पहले ही भेजी जाती हैं ताकि वे बैठक में पूरी तैयारी से आ सकें। कार्यसूची में क्रमशः उपस्थित लोगों की राय का पूरा विवरण दिया जाता है।
प्रेस विज्ञप्ति (प्रेस रिलीज़)
कोई संस्थान या व्यक्ति किसी विषय या किसी बैठक में जो निर्णय लेता है, उसे प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से आम जनता तक पहुँचाया जाता है। निर्णय में हुई देरी का कारण भी बताया जाता है और उस निर्णय से होने वाले लाभ के बारे में भी जानकारी दी जाती है।
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