CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag 1 Book Chapter 14 वचन Summary, Explanation
इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag 1 Book के Chapter 14 वचन का पाठ सार और व्याख्या लेकर आए हैं। यह सारांश और व्याख्या आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Vachan Summary, Explanation of CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag-1 Chapter 14.
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वचन का पाठ सारांश (Vachan Summary)
अक्क महादेवी जी कर्नाटक के प्रसिद्ध कवयित्री के रूप में जानी जाती है। यहाँ इनके दो वचन पाठ्यक्रम में लिए गए हैं। दोनों वचनों का अंग्रेजी से अनुवाद केदारनाथ सिंह ने किया है। प्रथम वचन में इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश दिया गया है। यह उपदेशात्मक न होकर प्रेम-भरा मनुहार है। वे चाहती हैं कि मनुष्य को अपनी भूख, प्यास, नींद आदि वृत्तियों व क्रोध, मोह, लोभ, अह, ईष्र्या आदि भावों पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। वह लोगों को समझाती हैं कि इंद्रियों को वश में करने से ही शिव की प्राप्ति संभव है। अक्क महादेवी की कविता हे! भूख मत मचल बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता है। इस कविता में कवयित्री भूख से कहती हैं कि तू ज्यादा मत मचल इससे उनकी भक्ति में अवरोध उत्पन्न होता है।
दूसरा वचन एक भक्त का ईश्वर के प्रति समर्पण है। कवयित्री ने कविता के माध्यम से ईश्वर के प्रति अपनी संपूर्ण भक्ति को व्यक्त करती है। प्रस्तुत कविता में अहंकार को नष्ट कर ईश्वर की भक्ति में खुद को समाहित करने की बात की गई है। चन्नमल्लिकार्जुन की अनन्य भक्त अक्क महादेवी उनकी अनुकंपा के लिए हर भौतिक वस्तु से अपनी झोली खाली रखना चाहती हैं। वे ऐसी निस्पृह स्थिति की कामना करती हैं जिससे उनका स्व या अहंकार पूरी तरह से नष्ट हो जाए। वह ईश्वर को जूही के फूल के समान बताती हैं, वह कामना करती हैं कि ईश्वर उससे ऐसे काम करवाए जिनसे उसका अहंकार समाप्त हो जाए। वह उससे भीख मँगवाए, भले ही उसे भीख न मिले। वह उससे घर की मोह-माया छुड़वा दे। जब कोई उसे कुछ देना चाहे तो वह गिर जाए और उसे कोई कुत्ता छीनकर ले जाए। कवयित्री का एकमात्र लक्ष्य अपने परमात्मा की प्राप्ति है।
वचन पाठ व्याख्या (Vachan Explanation)
1 –
हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद ! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर ! मत चूक अवसर
आई हूँ सदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का
शब्दार्थ –
मचल – पाने की जिद
तड़प – छटपटाना
पाश – बंधन
ढील – ढीला करना
मद – नशा
मदहोश – नशे में उन्मत या होश खो बैठना
चराचर – जड़ व चेतन
चूक – छोड़ना, भूलना
चन्नमल्लिकार्जुन – भगवान् शिव
व्याख्या – प्रस्तुत पद में कवयित्री अक्क महादेवी इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश देती है। इसमें कवयित्री इंद्रियों से आग्रह करती हुई भूख से कहती हैं कि तू मचलकर मुझे मत सता। सांसारिक प्यास से वे कहती हैं कि तू मन में और कुछ पाने की इच्छा मत जगा। नींद से कहती हैं कि हे नींद ! तू मानव को सताना छोड़ दे, क्योंकि नींद से उत्पन्न आलस्य के कारण वह प्रभु-भक्ति को भूल जाता है। क्रोध से कहती हैं कि हे क्रोध! तू उथल-पुथल मत मचा, क्योंकि तेरे कारण मनुष्य का विवेक व् बुद्धि नष्ट हो जाती है। वह मोह को कहती हैं कि वह अपने बंधन ढीले कर दे। क्योंकि उसके कारण मनुष्य दूसरे का अहित करने की सोचता है। लोभ से कहती हैं कि हे लोभ! तू मानव को ललचाना छोड़ दे। अहंकार से कहती हैं कि हे अहंकार! तू मनुष्य को अधिक पागल न बना। ईर्ष्या को मनुष्य को जलाना छोड़ देने का आग्रह करती हैं। वे सृष्टि के जड़-चेतन जगत् को संबोधित करते हुए कहती हैं कि तुम्हारे पास शिव-भक्ति का जो अवसर है, उससे चूकना मत, क्योंकि मैं शिव का संदेश लेकर तुम्हारे पास आई हैं। चराचर को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
2 –
हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
शब्दार्थ –
जूही – एक सुगधित फूल
भीख – भिक्षा
हाथ बढ़ाना – सहायता करना
झपटकर – खींचकर
व्याख्या – इस पद में कवयित्री ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव व्यक्त करती है। वह अपने अहंकार को नष्ट करके ईश्वर में समा जाना चाहती है। कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती है कि हे जूही के फूल को समान कोमल व परोपकारी ईश्वर! आप मुझसे ऐसे-ऐसे कार्य करवाइए जिससे मेरा अहम् भाव नष्ट हो जाए। आप ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कीजिए जिससे मुझे भीख माँगनी पड़े। मेरे पास कोई साधन न रहे। आप ऐसा कुछ कीजिए कि मैं पारिवारिक मोह से दूर हो जाऊँ। क्योंकि घर का मोह सांसारिक चक्र में उलझने का सबसे बड़ा कारण है और घर के भूलने पर ईश्वर का घर ही लक्ष्य बन जाता है। वह आगे कहती है कि जब वह भीख माँगने के लिए झोली फैलाए तो उसे कोई भीख न दे। यदि कोई उसे कुछ देने के लिए हाथ बढ़ाए तो जो वह दे रहा हो वह वस्तु नीचे गिर जाए। इस प्रकार वह सहायता भी व्यर्थ हो जाए। उस गिरे हुए पदार्थ को वह उठाने के लिए झुके तो कोई कुत्ता उससे झपटकर छीनकर ले जाए। यहाँ कवयित्री त्याग की पराकाष्ठा को प्राप्त करना चाहती है। वह मान-अपमान के दायरे से बाहर निकलकर ईश्वर में विलीन होना चाहती है। सारे मोह-बंधनों से मुक्त होना चाहती हैं।
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