CBSE Class 11 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book Chapter 2 पत्रकारिता के विविध आयाम Summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 11 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book के Chapter 2 पत्रकारिता के विविध आयाम का पाठ सार लेकर आए हैं। यह सारांश आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Patrakarita ke Vividh Aayam Summary of CBSE Class 11 Core Abhivyakti Aur Madhyam Chapter 2.
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पत्रकारिता के विविध आयाम पाठ सार (Patrakarita ke Vividh Aayam Summary)
पत्रकारिता का संबंध् सूचनाओं को इकट्ठा करना और उन सूचनाओं को पढ़ने योग्य बनाकर आम पाठकों तक पहुँचाने से है। परन्तु हर सूचना को समाचार नहीं कहा जा सकता है। पत्रकार कुछ ही घटनाओं, समस्याओं और विचारों को समाचार के रूप में आम लोगो के सामने प्रस्तुत करते हैं। अगर यह बात है तो फिर किस घटना, समस्या या विचार को समाचार कहा जा सकता है? किसी घटना के समाचार बनने के लिए उसमें नवीनता, जनरुचि, निकटता, प्रभाव जैसे तत्त्वों का होना ज़रूरी होता है। समाचारों के संपादन में तथ्यपरकता, वस्तुपरकता, निष्पक्षता और संतुलन जैसे सिद्धांतों का ध्यान रखना पड़ता है। इन सिद्धांतों का ध्यान रखकर ही पत्रकारिता आम जनता के बिच अपनी विश्वसनीयता को स्थापित करती है। लेकिन पत्रकारिता का संबंध केवल समाचारों से ही नहीं है। उसमें संपादकीय, लेख, कार्टून और फोटो भी प्रकाशित होते हैं। पत्रकारिता के कई प्रकार हैं। उनमें खोजपरक पत्रकारिता, वॅाचडॉग पत्रकारिता और एडवोकेसी पत्रकारिता प्रमुख हैं।
पत्रकारिता
अपने रोज़मर्रा के जीवन में एक आम व्यक्ति की इच्छा नया और ताजा समाचार जानने की या पिछले कुछ घंटे का हाल जानने की या यूँ कहें बीती रात की खबरें जानने की होती है। मनुष्य का सहज स्वभाव है कि वह अपने आसपास की चीजों, घटनाओं और लोगों के बारे में ताजा जानकारी रखना चाहता है। मनुष्य में कुछ भी नया जानने का भाव बहुत अधिक तीव्र होता है। यही जिज्ञासा समाचार और बड़े अर्थ में पत्रकारिता का मूल तत्त्व है। अगर किसी को कुछ नया जानने की इच्छा ही नहीं रहेगी तो समाचार की भी ज़रूरत ही नहीं रहेगी।
एक बड़ा प्रश्न यह भी है कि हम सूचनाएँ या समाचार क्यों जानना चाहते हैं? असल में सूचनाएँ हमारा अगला कदम तय करने में हमारी सहायता करती हैं। सूचनाएँ हमारे दैनिक जीवन के साथ-साथ पूरे समाज को भी प्रभावित करती हैं। हम अपने पास-पड़ोस, शहर, राज्य और देश-दुनिया के बारे में हमेशा से जानना चाहते हैं। आज देश-दुनिया में जो कुछ भी घटित हो रहा है, उसकी अधिकतर जानकारी हमें समाचार के विभिन्न माध्यमों से ही मिलती है।
समाचार
हम हर दिन समाचारपत्र पढ़ते हैं या टेलीविज़न, रेडियो या फिर इंटरनेट पर समाचार देखते, सुनते और पढ़ते हैं। समाचार संगठनों में काम करने वाले पत्रकार देश-दुनिया में घटने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं को समाचार के रूप में बदलकर हम तक पहुँचाते हैं। इसके लिए वे रोज़ सूचनाओं को इकट्ठा करते हैं और उन्हें समाचार के प्रारूप में ढालकर हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं। यह पूरी प्रक्रिया पत्रकारिता कहलाती हैं।
समाचार की कुछ परिभाषाएँ
– प्रेरक और उत्तेजित कर देने वाली हर सूचना समाचार है।
– समय पर दी जाने वाली हर सूचना समाचार का रूप धरण कर लेती है।
– किसी घटना की रिपोर्ट ही समाचार है।
– समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है?
आसान भाषा में समझने का प्रयास करते हैं कि समाचार क्या है?
मित्रों, रिश्तेदारों और सहकर्मियों से उनका हालचाल या उनका कुशल समाचार पूछना और उन्हें अपना बताना समाचार माध्यमों के लिए समाचार नहीं है। इसकी कारण यह है कि आपसी हालचाल या कुशल समाचार पूछना हमारा निजी मामला है। हमारे नज़दीकी लोगों के अलावा अन्य किसी की उसमें दिलचस्पी नहीं होगी। असल में समाचार माध्यम कुछ लोगों के लिए नहीं बल्कि अपने हजारों-लाखों समाचार पढ़ने वालों, सुनने वालों और देखने वालों के लिए काम करते हैं। तो यह भी स्पष्ट है कि वे समाचार के रूप में उन्हीं घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं को चुनते हैं जिन्हें जानने में अधिक से अधिक लोगों की रुचि होती है। यहाँ पर समाचारों से तात्पर्य उन घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं से है जिनका किसी न किसी रूप में सार्वजनिक महत्त्व होता है। ये समाचार ऐसी वर्तमान समय की घटनाओं, समस्याओं और विचारों पर आधारित होते हैं जिन्हें जानने की अधिक से अधिक लोगों में इच्छा होती है और जिनका अधिक से अधिक लोगों के जीवन पर प्रभाव पड़ता है। पत्रकार और समाचार संगठन ही किसी भी समाचार के चुनने, आकार और उसकी प्रस्तुति का निर्णय करते हैं। यही कारण है कि हमें विभिन्न समाचारपत्रों और अलग-अलग समाचार चैनलों में समाचारों के चुनाव और उन्हें दिखाने में फर्क दिखाई पड़ता है। इन विभिन्नताओं का अर्थ यह बिलकुल नहीं समझना चाहिए कि समाचार की कोई परिभाषा ही नहीं है। किसी घटना, समस्या और विचार में कुछ ऐसे तत्त्व होते हैं जिनके होने पर उस के समाचार बनने की योग्यता बढ़ जाती है।
हम समाचार को इस तरह परिभाषित कर सकते हैं – समाचार किसी भी ऐसी ताजा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक से अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिक से अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।
समाचार के तत्त्व
अक्सर लोग अनेक कामों को मिलजुल कर करते हैं। सुख-दुख की घड़ी में वे साथ होते हैं, मेलों और उत्सवों, दुर्घटनाओं और विपदाओं के समय वे साथ होते हैं। गाँव, कस्बे या शहर में बिजली-पानी के न होने से लेकर बेरोज़गारी, महंगाई और आर्थिक समस्या जैसी कठिनाइयों से उन्हें जूझना होता है। इसी तरह लोग अपने समय की घटनाओं, रुचिओं और प्रक्रियाओं पर सोचते हैं। लेकिन फिर भी प्रश्न उठता है कि कोई घटना, समस्या या विचार कब और कैसे समाचार बनता है? आखिर वे कौन-से कारक हैं जिनके होने पर कोई घटना खबर बन जाती है? किसी घटना, विचार और समस्या के समाचार बनने की योग्यता तब बढ़ जाती है, जब उनमें निम्नलिखित में से कुछ या इनमें से अधिकांश या सभी तत्त्व शामिल हों –
– नवीनता
– निकटता
– प्रभाव
– जनरुचि
– टकराव या संघर्ष
– महत्त्वपूर्ण लोग
– उपयोगी जानकारियाँ
– अनोखापन
– पाठक वर्ग
– नीतिगत ढाँचा
अब हम इन तत्त्वों या कारकों पर एक-एक कर विचार करते हैं और यह समझने की कोशिश करते हैं कि किसी घटना, समस्या या विचार के समाचार बनने में इनकी कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
नवीनता
किसी भी घटना, विचार या समस्या के समाचार बनने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वह नया यानी ताजा हो। कहा भी जाता है ‘न्यू’ है इसलिए ‘न्यूज़’ है। घटना जितनी ताजा होगी, उसके समाचार बनने की योग्यता उतनी ही बढ़ जाती है। तात्पर्य यह है कि समाचार वही है जो ताजा घटना के बारे में जानकारी देता है। लेकिन अगर द्वितीय विश्वयुद्ध या अन्य कोई बहुत महत्वपूर्ण तथा स्मरणीय घटना के बारे में आज भी कोई नयी जानकारी मिलती है जिसके बारे में हमें पहले से जानकारी नहीं थी तो निश्चय ही यह समाचार संगठनों के लिए समाचार है। दुनिया के अनेक स्थानों पर बहुत-सी ऐसी चीजें होती हैं जो न जाने कितने वर्षों से वहाँ पर हैं लेकिन यह किसी अन्य देश के लिए कोई नयी बात हो सकती है और निश्चय ही यह भी समाचार बन सकती है। कुछ ऐसी घटनाएँ भी होती हैं जो रातोंरात या अचानक से नहीं घटती बल्कि जिन्हें घटने में वर्षों लग जाते हैं। मान लीजिए किसी गाँव में पिछले 20 वर्षों में लोगों के जीवन जीने के ढंग में क्या-क्या परिवर्तन आए और इन परिवर्तनों के क्या कारण थे-यह जानकारी भी समाचार है। लेकिन यह एक ऐसी समाचारीय घटना है, जिसे घटने में बीस वर्ष लगे। इस बात से यह स्पष्ट होता है कि घटना का ताजा होना ही ज़रूरी नहीं है। नया पन या नवीनता के तत्त्व होने पर भी उसके समाचार बनने की योग्यता बढ़ जाती है।
निकटता
मानव स्वभाव है कि सबसे करीब वाला ही सबसे प्रिय भी होता है। स्वाभाविक है कि लोग उन घटनाओं के बारे में जानने के लिए अधिक उत्सुक या बैचेन होते हैं जो उनके करीब होती हैं। लेकिन यह निकटता भौगोलिक नज़दीकी के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक नज़दीकी से भी जुड़ी हुई है। यही कारण है कि हम अपने शहर और आसपास के क्षेत्रों के अलावा अपने राज्य और देश के अंदर क्या हुआ, यह जानने को बैचेन रहते हैं। लेकिन एक जैसी महत्त्व वाली किन्हीं दो घटनाओं, जिनमें से एक हमारे नजदीक घटी हो और दूसरी कहीं दूर-दराज के क्षेत्र में घटी हो, भले ही दोनों का महत्त्व समान हों परन्तु उनमें से स्थानीय समाचारपत्र में उस घटना के खबर बनने की संभावना ज़्यादा होती है जो उस समाचार पात्र को पढ़ने वाले लोगों के ज़्यादा करीब घटित हुई है। इसके दो कारण हैं – एक कारण तो उस घटना का करीब होना और दूसरा उसका असर उन पाठको पर भी पड़ता है। उदाहरण के लिए किसी एक खास कॉलोनी में चोरी-डकैती की घटना के बारे में वहाँ के लोगों की रुचि होना स्वाभाविक है। रुचि इसलिए कि घटना उनके करीब हुई है और इसलिए भी कि इसका संबंध स्वयं उनकी अपनी सुरक्षा से है।
प्रभाव
किसी घटना के समाचारीय महत्त्व का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि उससे कितने सारे लोग प्रभावित हो रहे हैं या कितने बड़े भू-भाग पर उसका असर हो रहा है। किसी घटना से जितने अधिक लोग प्रभावित होंगे, उसके समाचार बनने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर सरकार के किसी निर्णय से अगर सिर्फ सौ लोगों को लाभ हो रहा हो तो यह उतना बड़ा समाचार नहीं है जितना कि किसी निर्णय से लाभ पाने वाले लोगों की संख्या अगर एक लाख हो। इसके साथ ही सरकार अनेक नीतिगत फैसले लेती है जिनका प्रभाव एक दम से दिखाई नहीं पड़ता लेकिन उन नीतियों के प्रभाव लम्बे समय बाद महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं इसलिए इसी दृष्टि से उनके समाचारीय महत्त्व को आँका जाना चाहिए।
जनरुचि
कोई भी विचार, घटना और समस्या समाचार तभी बन सकती है, जब उस विचार, घटना और समस्या से पढ़ने वालों या देखने वालों का एक बड़ा वर्ग या समूह उसके बारे में जानने में रुचि रखता हो। हर समाचार संगठन का अपना एक लक्ष्य समूह (टार्गेट ऑडिएंस) होता है और वह समाचार संगठन अपने समाचार पढ़ने वालों या सुनाने वालों की रुचियों को ध्यान में रखकर समाचारों को चुनता है।
टकराव या संघर्ष
किसी घटना में टकराव या संघर्ष का पहलू होने पर उसके समाचार के रूप में चयन की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि लोगों में टकराव या संघर्ष के बारे में जानने की स्वाभाविक रूचि होती है। युद्ध और सैनिक टकराव के बारे में जानने की लोगों में सबसे ज़्यादा रुचि होती है। लेकिन टकराव का अर्थ केवल खून-खराबा या खूनी संघर्ष ही नहीं होता बल्कि खेलों में जब दो टीमें आपस में मुकाबला करती हैं या चुनावों में राजनीतिक दलों के बीच राजनीतिक संघर्ष होता है तो उसे भी जानने में लोगों की उतनी ही रूचि होती है।
महत्त्वपूर्ण लोग
यह मनुष्य का स्वभाव है कि उसे मशहूर और जाने-माने लोगों के बारे में जानने की इच्छा होती है। कई बार किसी घटना से जुड़े लोगों के महत्त्वपूर्ण होने के कारण भी उसका समाचारीय महत्त्व बढ़ जाता है। असल में लोग यह जानना चाहते हैं कि मशहूर लोगों ने उनका मुकाम कैसे , उनका जीवन कैसा होता है और विभिन्न मुद्दों पर उनके क्या विचार हैं। जैसे अगर प्रधानमंत्री को जुकाम भी हो जाए तो यह एक खबर होती है। इसी तरह किसी फल्मी सितारे या क्रिकेट खिलाड़ी का विवाह भी खबर बन जाती है जबकि यह एक अत्यधिक निजी विषय होता है। लेकिन कई बार समाचार माध्यम महत्त्वपूर्ण लोगों की खबर देने के लालच में उनके निजी जीवन की सीमाएँ लाँघ जाते हैं।
उपयोगी जानकारियाँ
बहुत सारी ऐसी सूचनाएँ भी समाचार मानी जाती हैं जिनका समाज के किसी विशेष वर्ग के लिए खास महत्त्व हो सकता है। ये लोगों की उस समय उपयोग की सूचनाएँ भी हो सकती हैं। जैसे – स्कूल कब खुलेंगे, किसी खास कॉलोनी में बिजली कब बंद रहेगी, पानी का दबाव कैसा रहेगा, वहाँ का मौसम कैसा रहेगा, आदि। ऐसी सूचनाओं का हमारे रोज़मर्रा के जीवन में काफी उपयोग होता है और इसलिए उन्हें जानने में आम लोगों की सहज दिलचस्पी होती है।
अनोखापन
यह कहना एक दम सही होगा कि अनहोनी घटनाएँ समाचार होती हैं। लोग इनके बारे में जानना चाहते हैं। एक पुरानी कहावत है कि कुत्ता आदमी को काट ले तो वह खबर नहीं लेकिन अगर आदमी कुत्ते को काट ले तो वह खबर है। कहने का तात्पर्य यह है कि जो कुछ प्राकृतिक नहीं है या किसी रूप में असाधारण है, वही समाचार है। लेकिन समाचार मीडिया को इस तरह की घटनाओं के विषय में काफी सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि कई बार यह देखा गया है कि किसी अनोखे बच्चे के पैदा होने की घटना का समाचार चिकित्सा विज्ञान के विषय से काटकर किसी अंधविश्वासी विषय में प्रस्तुत कर दिया जाता है। समाचार मीडिया को इन चीजों से बचना चाहिए।
पाठक वर्ग
समाचार संगठन समाचारों का चुनाव करते हुए उनके समाचारों को पढ़ने वाले वर्ग की रुचियों और ज़रूरतों का विशेष ध्यान रखते हैं। जाहिर है कि किसी समाचारीय घटना का महत्त्व इससे भी तय होता है कि किसी खास समाचार को पढ़ने वाला वर्ग कौन है और वे संख्या में कितने अधिक है। वर्तमान समय में समाचार पढ़ने वाले वर्ग का समाचारों के महत्त्व के आकलन में प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इसका एक नतीजा यह हुआ है कि अमीरों और मध्यम वर्ग में अधिक पढ़े जाने वाले समाचारों को ज्यादा महत्त्व मिल रहा है। लेकिन गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों और उनसे जुड़ी खबरों को नज़रअंदाश करने का स्वभाव बढ़ता जा रहा है।
नीतिगत ढाँचा
विभिन्न समाचार संगठनों की समाचारों को चुनने और उसे सभी के समक्ष दिखाने को लेकर एक नीति होती है। इस नीति को ‘संपादकीय नीति’ भी कहते हैं। संपादकीय नीति का निश्चय संपादक या समाचार संगठन के मालिक करते हैं। समाचार संगठन, समाचारों के चयन में अपनी संपादकीय नीति का भी ध्यान रखते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वे केवल संपादकीय नीति के अनुकूल खबरों का चुनाव करते हैं बल्कि वे उन खबरों को भी चुनते हैं जो संपादकीय नीति के अनुकूल नहीं है। यह ज़रूर हो सकता है कि संपादकीय लाइन के विपरीत खबरों को उतनी प्रमुखता न दी जाए जितनी अनुकूल खबरों को दी जाती है।
संपादन
समाचार संगठनों में द्वारपाल की भूमिका संपादक और सहायक संपादक, समाचार संपादक, मुख्य उपसंपादक और उपसंपादक आदि निभाते हैं। वे न सिर्फ अपने संवाददाताओं और अन्य स्रोतों से प्राप्त समाचारों को चुनने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं बल्कि किस तरह उन समाचारों को दिखाया जाए इसकी ज़िम्मेदारी भी उन्हीं पर होती है।
संपादन का अर्थ है किसी सामग्री से उसकी अशुद्धियों को दूर करके उसे पढ़ने योग्य बनाना। एक उपसंपादक अपने रिपोर्टर की खबर को ध्यान से पढ़ता है और उसकी भाषा-शैली, व्याकरण, वर्तनी तथा तथ्य संबंधी अशुद्धियों को दूर करता है। वह उस खबर के महत्त्व के अनुसार उसे काटता-छाँटता है और उसे कितनी और कहाँ जगह दी जाए, यह तय करता है। इसके लिए वह संपादन के कुछ सिद्धातों का पालन करता है।
संपादन के सिद्धांत –
पत्रकारिता कुछ सिद्धातों पर चलती है। एक पत्रकार से उम्मीद की जाती है कि वह समाचार इकट्ठे करते समय और उन्हें लिखते समय इन सिद्धांतों का पालन करेगा। पत्रकारिता का विश्वास बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धातों का पालन करना ज़रूरी है-
– तथ्यों की शुद्धता (एक्युरेसी)
– वस्तुपरकता (ऑब्जेक्टीविटी)
– निष्पक्षता (फेयरनेस)
– संतुलन (बैलेंस)
– स्रोत (सोर्सिंग-एट्रीब्यूशन)
तथ्यों की शुद्धता या तथ्यपरकता (एक्युरेसी)
यदि आदर्श रूप में देखा जाए तो मीडिया और पत्रकारिता जैसी होनी चाहिए या वास्तविकता की तस्वीर है। यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि किसी भी विषय के बारे में समाचार लिखते वक्त यह ध्यान रखा जाए कि हम किन सूचनाओं और तथ्यों का चुनाव करते हैं और किन्हें छोड़ देते हैं। चुनौती यही है कि ये सूचनाएँ और तथ्य सबसे अहम हों और पूरी घटना की एक तस्वीर पढ़ने वाले के सामने प्रस्तुत करते हों। तथ्य बिलकुल सटीक और सही होने चाहिए और उन्हें तोड़ा-मरोड़ा नहीं जाना चाहिए।
वस्तुपरकता (ऑब्जेक्टीविटी)
वस्तुपरकता और तथ्यपरकता के बीच काफी समानता भी है लेकिन दोनों के बीच के अंतर को भी समझना ज़रूरी है। एक जैसे होते हुए भी ये दोनों अलग विचार हैं। तथ्यपरकता का संबंध जहाँ अधिक से अधिक तथ्यों से है वहीं वस्तुपरकता का संबंध इस बात से है कि कोई व्यक्ति तथ्यों को कैसे देखता है? वस्तुपरकता के विचारों का संबंध हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक मूल्यों से अधिक है। वस्तुपरकता का तकाजा यही है कि एक पत्रकार समाचार के लिए तथ्यों को इकठ्ठा करते हुए और उसे सभी के समक्ष रखते हुए अपनी धारणाओं या विचारों से उन्हें प्रभावित न होने दे। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह दुनिया हमेशा सतरंगी और भिन्न-भिन्न प्रकार की रहेगी। हर चीज़ को देखने के दृष्टिकोण भी अनेक होंगे। इसलिए कोई भी समाचार सबके लिए एक साथ वस्तुपरक नहीं हो सकता। लेकिन एक पत्रकार को जहाँ तक संभव हो, अपने लेखन में वस्तुपरकता का ध्यान ज़रूर रखना चाहिए।
निष्पक्षता (फेयरनेस)
एक पत्रकार के लिए निष्पक्ष होना भी बहुत ज़रूरी है। उसकी निष्पक्षता से ही उसके समाचार संगठन का भरोसा जनता के बिच बनता है। यह विश्वास तभी बनता है जब समाचार संगठन बिना किसी का पक्ष लिए सचाई सामने लाते हैं। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। इसकी राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में अहम भूमिका है। आज मीडिया एक बहुत बड़ी ताकत है। एक ही झटके में वह किसी की इज्ज़त पर कलंक लगाने की ताकत रखती है। इसलिए किसी के बारे में समाचार लिखते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कहीं किसी को अनजाने में ही बिना सुनवाई के फाँसी पर तो नहीं लटकाया जा रहा है।
संतुलन (बैलेंस)
निष्पक्षता की अगली कड़ी संतुलन है। अधिकतर मीडिया पर आरोप लगाया जाता है कि समाचार कवरेज संतुलित नहीं है यानी वह किसी एक पक्ष की ओर झुका है। समाचार में संतुलन की आवश्यकता वहीं पड़ती है जहाँ किसी घटना में अनेक पक्ष शामिल हों और उनका आपस में किसी न किसी रूप में टकराव हो। समाचार में संतुलन का महत्त्व तब कहीं अधिक हो जाता है जब किसी पर किसी तरह के आरोप लगाए गए हों या इससे मिलती-जुलती कोई स्थिति हो। उस स्थिति में हर पक्ष की बात समाचार में आनी चाहिए नहीं तो यह एकतरफा चरित्र हनन का हथियार बन सकता है। व्यक्तिगत किस्म के आरोपों में आरोपित व्यक्ति के पक्ष को भी स्थान मिलना चाहिए। लेकिन यह स्थिति तभी संभव हो सकती है जब आरोपित व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में हो और आरोपों के पक्ष में पक्के सबूत नहीं हों या उनका सही साबित होना काफी संदिग्ध हो। लेकिन घोषित अपराधियों या गंभीर अपराध के आरोपियों को संतुलन के नाम पर सफाई देने का अवसर देने की ज़रूरत नहीं है।
स्रोत
किसी भी दैनिक समाचारपत्र के लिए पीटीआई (भाषा), यूएनआई (यूनीवार्ता) जैसी समाचार एजेंसियाँ और स्वयं अपने ही संवाददाताओं और रिपोर्टरों का तंत्र समाचारों का स्रोत होता है। लेकिन चाहे समाचार एजेंसी हो या समाचारपत्र, इनमें काम करने वाले पत्रकारों के भी अपने समाचार स्रोत होते हैं। समाचार की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि इसमें शामिल की गई सूचना या जानकारी का कोई स्रोत हो और वह स्रोत इस तरह की सूचना या जानकारी देने का अधिकार रखता हो और उसमें समर्थ हो। आमतौर पर पत्रकार स्वयं किसी सूचना का प्रारंभिक स्रोत नहीं होता। वह किसी घटना के समय घटनास्थल पर उपस्थित नहीं होता। वह घटना के बाद घटनास्थल पर पहुँचता है इसलिए यह सब कैसे हुआ, यह जानने के लिए उसे दूसरे स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
पत्रकारिता के अन्य आयाम
समाचारपत्र पढ़ते समय पाठक हर समाचार से एक ही तरह की जानकारी की अपेक्षा नहीं रखता। समय, विषय और घटना के अनुसार पत्रकारिता में लेखन के तरीके बदल जाते हैं। यही बदलाव पत्रकारिता में कई नए आयाम जोड़ता है। समाचार के अलावा विचार, टिप्पणी, संपादकीय, फोटो और कार्टून पत्रकारिता के अहम हिस्से हैं। संपादकीय पृष्ठ को समाचारपत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं।
पत्रकारिता के कुछ प्रमुख प्रकार
खोजपरक पत्रकारिता
खोजपरक पत्रकारिता से तात्पर्य ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें गहराई से छान-बीन करके ऐसे तथ्यों और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है जिन्हें दबाने या छुपाने का प्रयास किया जा रहा हो। आमतौर पर खोजी पत्रकारिता सार्वजनिक महत्त्व के मामलों में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को सामने लाने की कोशिश करती है।
विशेषीकृत पत्रकारिता
पत्रकारिता का अर्थ घटनाओं की सूचना देना मात्र नहीं है। पत्रकार से अपेक्षा होती है कि वह घटनाओं की तह तक जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और आम पाठक को बताए कि उस समाचार का क्या महत्त्व है? इसके लिए विशेषता की आवश्यकता होती है। पत्रकारिता में विषय के हिसाब से विशेषता के सात प्रमुख क्षेत्र हैं। इनमें संसदीय पत्रकारिता, न्यायालय पत्रकारिता, आर्थिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, विज्ञान और विकास पत्रकारिता, अपराध पत्रकारिता तथा फैशन और फ़िल्म पत्रकारिता शामिल हैं। इन क्षेत्रों के समाचार और उनकी व्याख्या उन विषयों में विशेषता हासिल किए बिना देना कठिन होता है।
वॉचडॉग पत्रकारिता
लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य उत्तरदायित्व सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है और कहीं भी कोई गड़बड़ी हो तो उसका परदाफाश करना है। इसे परंपरागत रूप से वॉचडॉग पत्रकारिता कहा जाता है।
एडवोकेसी पत्रकारिता
ऐसे अनेक समाचार संगठन होते हैं जो किसी विचारधारा या किसी खास उद्देश्य या मुद्दे को उठाकर आगे बढ़ते हैं और उस विचारधारा या उद्देश्य या मुद्दे के पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और ज़ोर-शोर से अभियान चलाते हैं। इस तरह की पत्रकारिता को पक्षधर या एडवोकेसी पत्रकारिता कहा जाता है।
वैकल्पिक पत्रकारिता
मीडिया स्थापित राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था का ही एक हिस्सा है और व्यवस्था के साथ तालमेल बिठाकर चलने वाले मीडिया को मुख्यधारा का मीडिया कहा जाता है। इस तरह की मीडिया आमतौर पर व्यवस्था के अनुकूल और आलोचना के एक निश्चित दायरे में ही काम करता है। इस तरह के मीडिया का स्वामित्व आमतौर पर बड़ी पूँजी के पास होता है और वह मुनाफे के लिए काम करती है। उसका मुनाफा मुख्यतः विज्ञापन से आता है। इसके विपरीत जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करता है उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहा जाता है। आमतौर पर इस तरह के मीडिया को सरकार और बड़ी पूँजी का समर्थन हासिल नहीं होता है। वह अपने पाठकों के सहयोग पर निर्भर होता है।
समाचार माध्यमों में मौजूदा रुझान
व्यापारीकरण और बाजार होड़ के कारण कुछ वर्षों में समाचार मीडिया ने अपने खास बाजार (क्लास मार्केट) को आम बाजार (मास मार्केट) में बदलने की कोशिश की है। यही कारण है कि समाचार मीडिया और मनोरंजन की दुनिया के बीच का अंतर कम होता जा रहा है और कभी-कभार तो दोनों में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। समाचार के नाम पर मनोरंजन बेचने की इस रूचि के कारण आज समाचारों में वास्तविक और आम लोगों से सम्बंधित सूचनाओं और जानकारियों का अभाव होता जा रहा है। आज निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि समाचार मीडिया का एक बड़ा हिस्सा लोगों को ‘जानकार नागरिक’ बनाने में मदद कर रहा है बल्कि ज़्यादातर मौकों पर यही लगता है कि लोग ‘गुमराह उपभोक्ता’ अधिक बन रहे हैं, अगर आज समाचार की परिभाषा के आधार पर देश के जाने-माने समाचार चैनलों का मूल्यांकन करें तो एक-आध चैनल को छोड़कर ज़्यादातर सूचनारंजन (इंफोटेनमेंट) के चैनल बनकर रह गए हैं, जिसमें सूचना कम और मनोरंजन ज़्यादा है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि समाचार मीडिया में हमेशा से ही सनसनीखेज़ या पीत-पत्रकारिता और पेज-थ्री पत्रकारिता की धाराएँ मौजूद रही हैं। इनका हमेशा अपना स्वतंत्र अस्तित्व रहा है। आज हर समाचार संगठन सबसे अधिक बिकाऊ बनने की होड़ में एक ही तरह के समाचारों पर टूटता दिखाई पड़ रहा है। इससे विविधता खत्म हो रही है और ऐसी स्थिति पैदा हो रही है जिसमें अनेक अखबार हैं और सब एक जैसे ही हैं। विविधता समाप्त होने के साथ-साथ समाचार माध्यमों में केन्द्रीयकरण की रूचि भी बाद रही है।
लेकिन समाचार मीडिया के प्रबंधक बहुत समय तक इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकते क्योंकि विश्वास और प्रभाव समाचार मीडिया की सबसे बड़ी ताकत होती है। आज समाचार मीडिया का जनता के बीच विश्वास में तेजी से पतन हो रहा है और इसके साथ ही लोगों की सोच को प्रभावित करने की इसकी क्षमता भी कम हो रही है। समाचारों को उनके न्यायसंगत और स्वाभाविक स्थान पर बहाल करके ही समाचार मीडिया का जनता में विश्वास और प्रभाव के पतन की प्रक्रिया को रोका जा सकता है।
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