लेखक (जैनेंद्र कुमार) का चरित्र-चित्रण | Character Sketch of the Writer (Jainendra Kumar) from CBSE Class 12 Hindi Chapter 11 बाजार दर्शन
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लेखक (जैनेंद्र कुमार) का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of the Writer)
“बाजार दर्शन” जैनेंद्र कुमार जी द्वारा लिखित एक रोचक निबंध है। उन्होंने बाजार के बारे में खुलकर अपने दिल की बात सामने रखी है। वे अपने परिचितों, मित्रों से जुड़े अनुभव बताते हुए यह स्पष्ट करते हैं कि बाजार की जादुई ताकत कैसे हमें अपना गुलाम बना लेती है। अगर हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें, तो उसका लाभ उठा सकते हैं। लेकिन अगर हम ज़रूरत को तय कर बाजार में जाने के बजाय उसकी चमक-दमक में फँस गए तो वह असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर हमें सदा के लिए बेकार बना सकता है।
- लेखक फ़जूल खर्ची का विरोध करते हैं – लेखक अपने एक मित्र का उदाहरण दे कर समझाते हैं कि उनका मित्र अपनी पत्नी के साथ कुछ जरूरत का सामान लेने बाजार गया था लेकिन बाजार से उन्होंने इतना गैर जरूरी सामान खरीद लिया कि उनके पास घर वापस आने के लिए रेल का टिकट खरीदने तक के लिए भी पैसे नही बचे थे। इस तरह की फ़जूल खर्ची का लेखक विरोध करते हैं।
- लेखक पैसे को पावर मानते हैं और पैसे के महत्व को भी समझते है – पैसा ही पावर है क्योंकि आज के समय में पैसे से ही सब कुछ खरीदा जा सकता हैं। बिना पैसे के जीवन जीना असंभव है। पैसे में “पर्चेजिंग पावर है” कहने का आशय यह है कि जेब में जितना अधिक पैसा होगा, उतना ही अधिक सामान की खरीदारी की जा सकेगी। फिर चाहे वो सामान उनकी जरूरत का हो या न हो। कुछ लोग इसी पर्चेजिंग पावर का इस्तेमाल करने में खुशी महसूस करते हैं। परन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो पैसे के महत्व को समझते है और फ़जूल खर्ची करने से अपने मन पर नियंत्रण रखते हैं और अपनी बुद्धि और संयम से जोड़े हुए पैसों को खर्च करने के बजाय सहेज कर रखने में ज्यादा गर्व महसूस करते है।
- लेखक बाजार को फ़जूल खर्चे का जिम्मेदार मानता है – लेखक मानता है कि बाजार सबको मूक आमंत्रित करता हैं। बाजार का तो काम ही ग्राहकों को आकर्षित करना है। जब कोई व्यक्ति बाजार में खड़ा होता है तो आकर्षक तरीके से रखे हुए सामान को देख कर उसके मन में उस सामान को लेने की तीव्र इच्छा हो जाती है। और अगर उसके पास पर्चेजिंग पावर है तो वह बाजार की गिरफ्त में आ ही जाएगा।
- लेखक के अनुसार जब पता ही न हो कि हमें क्या लेना हैं, तब बाजार नहीं जाना चाहिए – लेखक के अनुसार जब पता ही न हो कि हमें क्या लेना हैं? तो बाजार की सभी वस्तुएं हमें अपनी और आकर्षित करेंगी। जिसका परिणाम हमेशा बुरा ही होगा। क्योंकि हम ऐसी स्थिति में बेकार की चीजों को ले आएँगे। बाजार में एक जादू हैं जो आँखों के रास्ते काम करता हैं।
- लेखक मानते हैं कि बाजार के आकर्षण से बचने के लिए हमें अपने मन पर खुद ही नियंत्रण रखना होगा – अगर मन खाली हो तो बाजार जाना ही नहीं चाहिए क्योंकि अगर आँखे बंद भी कर ली जाए तो तब भी मन यहां वहां घूमता रहता है। हमें अपने मन पर खुद ही नियंत्रण रखना होगा। क्योंकि अगर व्यक्ति की जेब भरी है और मन भी भरा है तो बाजार का जादू उस पर असर नहीं करेगा। लेकिन अगर जेब भरी है और मन खाली है तो बाजार उसे जरूर आकर्षित करेगा। और फिर व्यक्ति को सभी चीज़े अपने काम की लगेगी और बिना सोचे विचारे वह सारा सामान खरीदने लगेगा।
- लेखक बाजार की सार्थकता तभी मानते है जब व्यक्ति केवल अपनी जरूरत का सामान खरीदें – बाजार हमेशा ग्राहकों को अपनी चकाचौंध से आकर्षित करता है। व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण होना चाहिए। लेकिन जो लोग अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रखते हैं। ऐसे व्यक्ति न तो खुद बाज़ार से कुछ लाभ उठा सकते हैं और न ही बाजार को लाभ दे सकते हैं।
लेखक (जैनेंद्र कुमार) के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of the Writer)
प्रश्न 1 – पैसे में पर्चेजिंग पावर है कहने का क्या आशय है?
प्रश्न 2 – लेखक फ़जूल खर्ची का विरोध करते हैं। स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 3 – बाजार सामान लाने जाने के लिए मन का भरा होना क्यों आवश्यक है?
प्रश्न 4 – बाजार की चकाचौंध से बचने के लिए मन को नियंत्रण में रखना क्यों जरुरी है?
प्रश्न 5 – जो लोग अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रखते वे क्या हानि कर बैठते हैं?
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