Character Sketch of Writer, his Father and Mother, Duttaji Rao Desai and N.V. Soundalgekar from CBSE Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ
Character Sketch of the Writer
जूझ (अर्थात जूझना या संघर्ष करना) कहानी आनंद यादव की आत्मकथा का एक हिस्सा है । इस कहानी के जरिये आनंद यादव के संधर्ष, लगन व मेहनत को जाना जा सकता है और उनके व्यक्तित्व के बारे में निम्नलिखित बातों का पता चलता है –
लेखक खेती से ज्यादा पढ़ाई को महत्त्व देता था – लेखक का मन हमेशा से पाठशाला जाने के लिए तड़पता था। लेखक इसलिए भी पढ़ना चाहता था क्योंकि उसे लगता था कि खेती से उनका गुजारा नहीं हो पाएगा। इसका कारण यह भी था कि उसके दादा के समय में खेती जितनी सफल थी, उसके पिता के समय में नहीं रह गई थी। लेखक चाहता था कि वह पढ़–लिख कर कोई नौकरी कर लेगा जिससे चार पैसे उसके हाथ में रहेंगे।
लेखक पढ़ाई करने के लिए नए-नए तरीके ढूँढता रहता था – लेखक खेतों के काम में अपनी माँ की मदद करते हुए बातों–ही–बातों में अपने पढ़ने की बात छेड़ देता था। परन्तु लेखक की माँ इस विषय में लेखक की कोई मदद नहीं कर सकती थी। क्योंकि लेखक के पिता को लेखक की पढाई पसंद नहीं थी। लेखक अपनी माँ को मना लेता कि अब उनके खेत का सारा काम समाप्त हो गया है इसलिए वे दोनों दत्ता जी राव सरकार के पास जा कर उनको सारी बात समझा सकते हैं जिससे वे लेखक की पढ़ाई के बारे में लेखक के पिता को अच्छे से समझा दे।
चतुर – देसाई दादा के कहे अनुसार लेखक ने अपने पिता को देसाई दादा के घर भेज दिया और कुछ समय बाद पिता को बुलाने के बहाने वह भी देसाई दादा के घर पहुँच गया। सवाल जवाब में लेखक ने पढ़ाई न कर पाने के कारणों को भी बड़ी चतुराई से सामने रखा। सभी बातों को सुनकर देसाई दादा ने लेखक के पिता को खूब बातें सुनाई। और लेखक को रोज स्कूल जाने को कहा और यदि लेखक के पिता उसे न जाने दें तो उसे अपने पास सुबह–शाम जो भी काम हो सके वह करने को कहा और उसके बदले वे उसे पढ़ाएंगे। इस तरह लेखक की चतुराई के कारण लेखक की पढ़ाई की व्यवस्था हो सकी।
पाठशाला जाने के लिए लेखक अपने पिता की सभी शर्तों को मानने के लिए भी तैयार हो गया – देसाई दादा की बातों को मान कर लेखक को पाठशाला भेजने के लिए तो तैयार हो गए परन्तु उन्होंने कई शर्तें रखी जैसे – लेखक की पाठशाला का समय ग्यारह बजे होता है। इसलिए लेखक को दिन निकलते ही खेत पर हाज़िर होना है। ग्यारह बजे तक खेतों पर पानी देना है। खेतों में पानी देकर आते समय ही पढ़ने का बस्ता घर से ले जाना। घर से सीधे पाठशाला पहुँचना। छुट्टी होते ही घर में बस्ता रखकर सीधे खेत पर आकर एक घंटे जानवरों को चराना और कभी खेतों में ज़्यादा काम हुआ तो पाठशाला में गैर–हाज़िरी लगाना। लेखक ने भी सभी शर्तों को मान लिया।
समझदार – लेखक बहुत समझदार भी था। जब लेखक की कक्षा में वसंत पाटील नाम के होशियार लड़के को उसकी होश्यारी के कारण मास्टर ने कक्षा मॉनीटर बना दिया था। तब लेखक को लगता था कि मास्टर को कक्षा की मॉनीटरी लेखक को सौंपनी चाहिए थी। परन्तु दूसरी ओर लेखक को पता था कि उसके पास पाँचवी की परीक्षा पास करने के लिए केवल दो महीने ही है। कक्षा में दंगा करना और पढ़ाई की उपेक्षा करना लेखक के लिए मुमकिन नहीं था। इन सब बातों के कारण लेखक का सारा ध्यान पढ़ाई की ओर ही रहा और पढ़ाई में लेखक वसंत पाटिल की नकल करने लगा। जिसके परिणाम स्वरूप लेखक के मन की एकाग्रता बड़ गई और लेखक को गणित झटपट समझ में आने लगा और सवाल सही होने लगे।
लेखक को कविताएँ भी पसंद थी – लेखक के एक मराठी मास्टर कविता बहुत ही अच्छे ढंग से पढ़ाते थे। लेखक उनके द्वारा सुनाई व् अभिनय की गई कविताओं को ध्यान से सुनता व् देखता था। लेखक अपनी आँखों और कानों का पूरा ध्यान लगाकर मास्टर के हाव–भाव, ध्वनि, गति, चाल और रस को ग्रहण करता था। और उन सभी कविताओं को सुबह–शाम खेत पर पानी लगाते हुए या जानवरों को चराते हुए अकेले में खुले गले से मास्टर के ही हाव–भाव, यति–गति और आरोह–अवरोह के अनुसार गाता था। लेखक को अकेले रहना अच्छा लगता था क्योंकि अकेले में वह कविता ऊँची आवाज़ में गा सकता था और किसी भी तरह का अभिनय कर सकता था। लेखक ने अनेक कविताओं को अपनी खुद की चाल में गाना शुरू किया।
अपनी मेहनत व् लगन के कारण ही लेखक महान कथाकार व उपन्यासकर बना – लेखक को भी यह विश्वास हुआ कि वह भी कविता कर सकता है। लेखक भैंस चराते–चराते, फसलों पर, जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा। मास्टर कविता लिखने में लेखक का मार्गदर्शन भी किया करते थे। लेखक इसी दिशा में कोशिश करने लगा और जाने–अनजाने लेखक की मराठी भाषा भी सुधरने लगी। लेखक लिखते समय अब बहुत सचेत रहने लगा। अलंकार, छंद, लय आदि को सूक्ष्मता से देखने लगा। लेखक पर अब शब्दों का नशा चढ़ने लगा और उसे ऐसा प्रतीत होने लगा कि उसके मन में कोई मधुर बाजा बजता रहता है। यह लेखक की अपनी लगन व मेहनत ही थी कि जहाँ उस छोटे बच्चे के पिता उसकी पढ़ाई–लिखाई के विरोधी थी ,अब वही छोटा बच्चा बड़ा होकर महान कथाकार व उपन्यासकर बन गया था।
Questions related to Character of the Writer
प्रश्न 1 – लेखक जूझ कहानी के माध्यम से हमें क्या सीख देना चाहता है?
प्रश्न 2 – लेखक खेती से ज्यादा पढाई को महत्त्व क्यों देता था?
प्रश्न 3 – लेखक पाठशाला जाने के लिए किन तरीकों को अपनाता है?
प्रश्न 4 – आपके अनुसार लेखक के पिता ने पाठशाला जाने ले लिए लेखक के सामने शर्तें क्यों रखी?
प्रश्न 5 – कक्षा का मॉनिटर न बन कर लेखक ने कैसे समझदारी दिखाई?
प्रश्न 6 – लेखक की कविताओं में रूचि कैसे पता चलती है?
प्रश्न 7 – कविताओं ने लेखक को महान कथाकार व उपन्यासकर बनने में कैसे मदद की?
Character Sketch of the Writer’s Father
गैरजिम्मेदार पिता – लेखक के पिता को लेखक का पाठशाला जाना पसंद नहीं था क्योंकि वे स्वयं आजादी से घूमना चाहते थे और लेखक को खेत के कामों में व्यस्त रखना चाहते थे। इसी वजह से ज्ञात होता है कि लेखक के पिता को अपने बच्चे के भविष्य की कोई चिंता नहीं थी। वे एक गैरजिम्मेदार पिता थे।
आलसी व् बेपरवाह – लेखक के पिता खेती के काम में कोई मदद नहीं करते थे। उनको सारे गाँव भर आजादी के साथ घूमने को मिलता रहे, इसलिए उन्होंने लेखक का पढ़ना बंद कर उसे खेती में जोत दिया था। वे सुबह घर से निकल जाते थे और रात होने पर ही घर आते थे। दिन भर बेकार ही इधर-उधर घूमते रहते थे।
बेकार के तर्क देने वाला – लेखक और देसाई दादा की बातें सुन कर लेखक के पिता ने तर्क दिया कि वे लेखक को स्कूल जाने से नहीं रोकते अगर उसे ज़रा गलत–सलत आदत न पड़ गई होती। इसलिए पाठशाला से निकालकर ज़रा नज़रों के सामने रख लिया है। इस बात को सही साबित करने के लिए लेखक के पिता ने बताया कि लेखक यहाँ–वहाँ कुछ भी करता है। कभी कंडे बेचता, कभी चारा बेचता, सिनेमा देखता, कभी खेलने जाता। खेती और घर के काम में इसका बिलकुल ध्यान नहीं है। जबकि ये सब तर्क बेकार के थे क्योंकि लेखक के पिता उस पर ध्यान नहीं देते थे।
हठी – लेखक के पिता हठी किस्म के व्यक्ति थे। वे किसी भी हाल में लेखक को पाठशाला नहीं जाने देने चाहते थे इसलिए उन्होंने लेखक के सामने कई शर्तें रखी । जैसे – घर पर खाना खाते–खाते लेखक के पिता ने कहा कि उसकी पाठशाला का समय ग्यारह बजे होता है। इसलिए लेखक को दिन निकलते ही खेत पर हाज़िर होना है। ग्यारह बजे तक खेतों पर पानी देना है। खेतों में पानी देकर आते समय ही पढ़ने का बस्ता घर से ले जाना। घर से सीधे पाठशाला पहुँचना। छुट्टी होते ही घर में बस्ता रखकर सीधे खेत पर आकर एक घंटे जानवरों को चराना और कभी खेतों में ज़्यादा काम हुआ तो पाठशाला में गैर–हाज़िरी लगाना इत्यादि।
Questions related to Character of Writer’s Father
प्रश्न 1 – लेखक के पिता एक गैरजिम्मेदार पिता थे। स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 2 – लेखक के पिता आलसी व् बेकार थे। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 2 – अपनी बातों को सही साबित करने के लिए लेखक के पिता ने लेखक पर क्या इल्जाम लगाए?
प्रश्न 3 – लेखक के पिता ने लेखक के समक्ष क्या शर्तें रखी?
Character Sketch of the Writer’s Mother
मेहनती – लेखक की माँ बहुत मेहनती थी। वह धूप में कंडे थापती थी ताकि उन्हें बेच कर घर के छोटे-मोटे काम निकल सके। वह सुबह से शाम खेतों के काम किया करती थी।
आदर्श माँ – लेखक की माँ भी सभी दूसरी माताओं की भाँती एक आदर्श माँ थी। लेखक की माँ यह जानते हुए भी कि पढ़ाई के विषय में वह लेखक की कोई मदद नहीं कर सकती, फिर भी लेखक द्वारा देसाई दादा से बात करने के लिए मान जाती हैं।
साहसी – लेखक की माँ अत्यंत साहसी थी। क्योंकि किसी भी महिला के लिए अपने पति के विरुद्ध जाना स्वाभाविक नही होता। लेखक का साथ देने के लिए लेखक की माँ ने दत्ता जी राव को बताया कि लेखक के पिता खेती के काम में हाथ नहीं लगाते। उनको सारे गाँव भर आजादी के साथ घूमने को मिलता रहे, इसलिए उन्होंने लेखक का पढ़ना बंद कर उसे खेती में जोत दिया है। इसी के आधार पर देसाई दादा ने लेखक का साथ दिया और लेखक के पाठशाला जाने की व्यवस्था हो गई।
Questions related to Character of Writer’s Mother
प्रश्न 1 – पाठ के अनुसार लेखक की माँ एक आदर्श माँ कैसे थी?
प्रश्न 2 – आपके अनुसार लेखक की माँ ने लेखक का साथ देने के लिए जो कुछ भी किया क्या वह सही था?
Character Sketch of the Duttaji Rao Desai
दूसरों की सहायता के लिए तत्पर – जब लेखक अपनी माँ को मना लेता है कि अब उनके खेत का सारा काम समाप्त हो गया है उसके लिए अब कोई काम नहीं है इसलिए वे दोनों दत्ता जी राव सरकार के पास जा कर उनको सारी बात समझा सकते हैं जिससे वे लेखक की पढ़ाई के बारे में लेखक के पिता को अच्छे से समझा दे। माँ भी मान जाती है और रात में दोनों दत्ता जी राव देसाई के यहाँ गए। लेखक की माँ ने दत्ता जी राव को सारी बात कह दी। और वे भी उनकी बात से सहमत हो गए। उन्होंने लेखक के पिता को समझाया और लेखक के पाठशाला जाने की व्यवस्था की।
समझदार – जब लेखक की माँ ने दत्ता जी राव को यह भी बताया कि लेखक के पिता खेती के काम में हाथ नहीं लगाते। उनको सारे गाँव भर आजादी के साथ घूमने को मिलता रहे, इसलिए उन्होंने लेखक का पढ़ना बंद कर उसे खेती में जोत दिया है। यह सुनते ही देसाई दादा को गुस्सा आ गया। पर लेखक कहने पर कि देसाई दादा उसके पिता को यह न बताए कि उसने यहाँ आकर यह सब कहा है नहीं तो उसका पिता उसे बहुत मारेगा। देसाई दादा ने उसकी सारी बातें सुनी और कहा कि वह चिंता न करे उन्हें पता है कि क्या करना है। सवाल जवाब में देसाई दादा ने बड़ी चतुराई से लेखक का पक्ष सुना और लेखक के पिता द्वारा दिए गए सभी तर्कों को काट दिया।
परोपकारी – देसाई दादा ने लेखक को रोज स्कूल जाने को कहा और यदि उसका पिता उसे न जाने दें तो उसे अपने पास सुबह–शाम जो भी काम हो सके वह करने को कहा और उसके बदले वे उसे पढ़ाएंगे इस बात का आश्वासन भी दिया। देसाई दादा ने लेखक और लेखक के पिता दोनी की सारी बातें सुनी और बीती बातें भूल कर अगले दिन से लेखक को स्कूल जाने को कहा।
Questions related to Character of Duttaji Rao Desai
प्रश्न 1 – लेखक ने क्यों देसाई दादा को अपनी सहायता के लिए चुना?
प्रश्न 2 – आपके अनुसार देसाई दादा ने लेखक की किस तरह मदद की?
प्रश्न 3 – देसाई दादा पढ़ाई के महत्त्व को समझते थे। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए?
Character Sketch of N.V. Soundalgekar
एक मास्टर होने के साथ-साथ एक कवि – लेखक के एक मराठी मास्टर थे जिनका नाम न.वा.सौंदलगेकर था। वे कविता बहुत ही अच्छे ढंग से पढ़ाते थे। वे स्वयं भी कविता की रचना करते थे। कभी कक्षा में कोई अपनी कविता याद आती तो वे सुना देते। लेखक उनके द्वारा सुनाई व् अभिनय की गई कविताओं को ध्यान से सुनता व् देखता था।
कविता के सभी भावों का अच्छे से ज्ञान – न.वा.सौंदलगेकर पहले तो एकाध कविता को गाकर सुनाते थे–फिर बैठे–बैठे अभिनय के साथ कविता के भाव बच्चों को समझाते थे। लेखक अपनी आँखों और कानों का पूरा ध्यान लगाकर मास्टर के हाव–भाव, ध्वनि, गति, चाल और रस को ग्रहण करता था। और उन सभी कविताओं को सुबह–शाम खेत पर पानी लगाते हुए या जानवरों को चराते हुए अकेले में खुले गले से मास्टर के ही हाव–भाव, यति–गति और आरोह–अवरोह के अनुसार गाता था।
बच्चों में आत्मविश्वास जगाने वाले – न.वा.सौंदलगेकर स्वयं कविता करते थे और अनेक मराठी कवियों के काव्य–संग्रह उनके घर में थे। वे उन कवियों के चरित्र और उनके संस्मरण बच्चों को बताया करते थे। इसके कारण ये कवि लोग लेखक को ‘आदमी’ ही लगने लगे थे। इसलिए लेखक को भी यह विश्वास हुआ कि वह भी कविता कर सकता है।
एक आदर्श मास्टर – न.वा.सौंदलगेकर कविता लिखने में लेखक का मार्गदर्शन भी किया करते थे। वे लेखक को बताते कि कवि की भाषा कैसी होनी चाहिए, संस्कृत भाषा का उपयोग कविता के लिए किस तरह होता है, छंद की जाति कैसे पहचानें, उसका लयक्रम कैसे देखें, अलंकारों में सूक्ष्म बातें कैसी होती हैं, अलंकारों का भी एक शास्त्र होता है, कवि को शुद्ध लेखन करना क्यों जरूरी होता है, शुद्ध लेखन के नियम क्या हैं, आदि।
Questions related to Character of N.V. Soundalgekar
प्रश्न 1 – न.वा.सौंदलगेकर एक अच्छे कवि भी थे। कैसे पता चलता है?
प्रश्न 2 – न.वा.सौंदलगेकर द्वारा अभिनय के साथ कविता के भाव बच्चों को समझाने से लेखक के अंदर क्या बदलाव आया?
प्रश्न 3 – आपके अनुसार न.वा.सौंदलगेकर एक आदर्श अध्यापक कैसे थे?
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