CBSE Class 12 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book Chapter 11 कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण Summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 12 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book के Chapter 11 कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण का पाठ सार लेकर आए हैं। यह सारांश आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Kaise Kare Kahani Ka Natya Rupantaran Summary of CBSE Class 12 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Chapter 11.
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कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरणप पाठ का सार (Kaise Kare Kahani Ka Natya Rupantaran Summary)
विधाओं का अलग–अलग स्वरूप
प्रत्येक कथा साहित्य में मूलतः एक कहानी होती है जिसकी भाषा भी एक जैसी होती है परन्तु विधाओं का स्वरूप अलग–अलग होता है। साहित्य की अलग–अलग विधाओं का अलग–अलग स्वरूप होता है। न सिर्फ उनकी रचना प्रक्रिया अलग होती है बल्कि उनके तत्त्व भी अलग होते हैं। विधा बदल जाने पर भाषा का प्रयोग भी परिवर्तित हो जाता है। साहित्यिक विधाओं का स्वरूप, समय और आवश्यकता के अनुसार बदलता रहता है और विधाओं में आदान–प्रदान की प्रक्रिया चलती रहती है।
कहानी और नाटक में विविधता या अनेकता तथा समानता
कहानी का नाटक में रूपांतरण करने के लिए सबसे पहले कहानी और नाटक में विविधता या अनेकता तथा समानताओं को समझना आवश्यक है। इसके लिए हमें नाटक की विशेषताओं को समझना होगा। जहाँ कहानी का संबंध लेखक और पाठक से जुड़ता है वहीं नाटक लेखक, निर्देशक, पात्र, दर्शक, श्रोता एवं अन्य लोगों को एक–दूसरे से जोड़ता है। क्योंकि दृश्य का स्मृतियों से गहरा संबंध होता है इसलिए नाटक एवं फ़िल्म को लोग देर तक याद रखते हैं। यही कारण है कि गोदान, देवदास, उसने कहा था, सद्गति आदि के नाट्य रूपांतरण कई बार हुए हैं और कई तरह से हुए हैं।
कहानी कही जाती है या पढ़ी जाती है। नाटक मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। नाटक को मंच पर अभिनेता अभिनय द्वारा प्रस्तुत करते हैं। मंच सज्जा होती है, संगीत होता है, प्रकाश व्यवस्था होती है। समानता यह होती है कि कहानी और नाटक दोनों में एक कहानी होती है, पात्र होते हैं, परिवेश होता है, कहानी का क्रमिक विकास होता है, संवाद होते हैं, द्वंद्व होता है, चरम उत्कर्ष होता है।
कहानी को नाटक में रूपांतरित
कहानी को नाटक में रूपांतरित करने के लिए सबसे पहले कहानी की विस्तृत कथावस्तु को समय और स्थान के आधार पर विभाजित किया जाता है। कथावस्तु उन घटनाओं का लेखा–जोखा है जो कहानी में घटती है। प्रत्येक घटना किसी स्थान पर किसी समय में घटती है। ऐसा भी संभव है कि घटना स्थान तथा समयविहीन हो। कहानी की कथावस्तु (कथानक) को सामने रखकर एक–एक घटना को चुन–चुनकर निकाला जाता है और उसके आधार पर दृश्य बनता है। तात्पर्य यह कि यदि एक घटना एक स्थान और एक समय में घट रही है तो वह एक दृश्य होगा। ईदगाह कहानी के संदर्भ में देखें तो इसके आरंभ में लेखक ने मेले को लेकर बच्चों के उतावलेपन और कुतूहल का लंबा मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है इसके लिए पहले दृश्य में गाँव के उस हिस्से को फोकस कर सकते हैं, जहाँ बच्चे भाग–दौड़ कर रहे हैं, तैयार हो रहे हैं, बार–बार अपने पैसे गिन रहे हैं और टोली के निकलने की राह देख रहे हैं। पहले दृश्य का अंतिम हिस्सा हामिद और उसकी दादी अमीना पर केंद्रित हो सकता है और उनके संवाद दिए जा सकते हैं।
दृश्यों को लिखते हुए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
- स्थान और समय के आधार पर कहानी का विभाजन करके दृश्यों को लिखा जा सकता है।
- प्रत्येक दृश्य का कथानक के अनुसार औचित्य हो।
- ऐसे दृश्य नहीं हो सकते जो अनावश्यक हों। ये नाटक की गति को बाधित करेंगे और नाटक उबाऊ हो जाएगा।
- प्रत्येक दृश्य का कथानुसार तार्किक विकास हो रहा है या नहीं। यह सुनिश्चित करने के लिए दृश्य विशेष के उद्देश्य और उसकी संरचना पर विचार आवश्यक है। प्रत्येक दृश्य एक बिंदु से प्रारंभ होता है। कथानुसार अपनी आवश्यकताएँ पूरी करता है और उसका ऐसा अंत होता है जो उसे अगले दृश्य से जोड़ता है।
- दृश्य का पूरा विवरण तैयार किया जाना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि दृश्य में कोई आवश्यक जानकारी छूट जाए या उसका क्रम बिगड़ जाए।
- नाटक ही में नहीं बल्कि नाटक के प्रत्येक दृश्य में प्रारंभ, मध्य और अंत होता है।
- दृश्य कई काम एक साथ करता है। एक ओर वह कथानक को आगे बढ़ाता है तो दूसरी ओर पात्रों और परिवेश को संवादों के माध्यम से स्थापित करता है।
- दृश्य अगले दृश्य के लिए भूमिका भी तैयार करता है।
- ऐसा हो सकता है कि कुछ ऐसे दृश्य बनते हों जिनमें लेखक ने केवल विवरण दिया हो और उसमें कोई संवाद न हो। ऐसे दृश्यों का भी पूरा खाका तैयार कर लेना चाहिए। यह अवश्य देखना चाहिए कि जानकारियाँ, सूचनाएँ और घटनाएँ दोहराई न गई हों।
- दृश्य निर्धारित करने के बाद दृश्यों और मूल कहानी को पढ़ने से यह अनुमान लग सकता है कि मूल कहानी में ऐसा क्या है जो दृश्यों में नहीं आया है।
- लेखक द्वारा परिवेश का विवरण या परिस्थितियों पर टिप्पणियाँ प्रायः दृश्यों में नहीं ढल पातीं। यह देखना आवश्यक है कि परिस्थिति, परिवेश, पात्र, कथानक से संबंधित विवरणात्मक टिप्पणियाँ किस प्रकार की हैं।
विवरणों को नाटक में स्थान
विभिन्न प्रकार के विवरणों को नाटक में स्थान देने के अलग–अलग तरीके हैं। उदाहरण के लिए विवरणात्मक टिप्पणी यदि परिवेश के बारे में है तो उसे मंच सज्जा के अंतर्गत लिया जा सकता है या पार्श्व संगीत के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है। विवरण यदि पात्रों के बारे में है तो उन्हें संवादों के माध्यम से निर्धारित दृश्यों में उचित स्थान पर दिया जा सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कहानी में व्यक्त महत्त्वपूर्ण सूत्र नाटक के स्वरूप के अनुसार अपनी जगह निर्धारित कर लेते हैं।
संवाद लेखन की शर्तें –
दृश्य निर्धारित हो जाने पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि दृश्य की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने वाले तथा दृश्य के क्रमिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संवाद हैं या नहीं। यदि पर्याप्त संवाद नहीं हैं तो उन्हें लिखने का काम किया जाता है।
सबसे पहली और महत्त्वपूर्ण शर्त यह है कि नए लिखे संवाद, कहानी के मूल संवादों के साथ मेल खाते हों।
दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि उनके लिखे जाने का सौ प्रतिशत औचित्य हो।
तीसरी बात जो ध्यान में रहे वह यह है कि संवाद छोटे, प्रभावशाली और बोलचाल की भाषा में हों। कहानी में छपे लंबे संवाद को पाठक पढ़ सकता है लेकिन मंच पर बोले गए लंबे संवाद से तारतम्य बनाए रख पाना कठिन होता है।
नाटक में चरित्र–चित्रण
कहानी में चरित्र–चित्रण अलग प्रकार से किया जाता है और नाटक में उसकी विधि कुछ बदल जाती है। रूपांतरण करते समय कहानी के पात्रों की दृश्यात्मकता और नाटक के पात्रों में उसका प्रयोग किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए प्रेमचंद ने ईदगाह में मेले में जाते हामिद के कपड़ों का जिक्र नहीं किया है और न ही अन्य लड़कों के बारे में कुछ लिखा है परंतु कहानी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हामिद नंगे पैर होगा, उसके कुर्ते में पैबंद लगे होंगे जबकि अन्य लड़कों के कपड़े उनकी अच्छी आर्थिक स्थिति के सूचक होंगे।
संवाद को नाटक में प्रभावशाली बनाने का तरीका
संवाद को नाटक में प्रभावशाली बनाने का एक तरीका अभिनय है जो प्रायः निर्देशक का काम है, पर लेखक भी इस ओर संकेत कर सकता है।
पात्र की भावभंगिमाओं और उसके तौरतरीकों से प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है।
कहानी के लंबे संवादों को छोटा करके उन्हें अधिक नाटकीय बनाया जा सकता है।
स्थानीय रंग में संवादों को रंग कर चरित्र–चित्रण को परिमार्जित किया जा सकता है।
ध्वनि और प्रकाश भी चरित्र–चित्रण करने तथा संवेदनात्मक प्रभाव उत्पन्न करने में कारगर सिद्ध हो सकते हैं। प्रायः निर्देशक ही इस संबंध में निर्णय लेते हैं पर लेखकों के सुझाव सदा स्वागत योग्य होते हैं। लेखक को यदि इन संभावनाओं की जानकारी है तो उसके अंदर आत्मविश्वास पैदा होता है और रूपांतरण का कार्य संतोषजनक होता है।
पात्रों के मनोभावों या मानसिक द्वंद्व के दृश्यों की नाटकीय प्रस्तुति में समस्या व् निर्धारण –
रूपांतरण में एक समस्या पात्रों के मनोभावों को कहानीकार द्वारा विवरण के रूप में व्यक्त प्रसंगों या मानसिक द्वंद्व के दृश्यों की नाटकीय प्रस्तुति में आ सकती है। उदाहरण के लिए ईदगाह का वह हिस्सा जहाँ हामिद इस द्वंद्व में है कि क्या–क्या खरीदे या जहाँ वह यह सोचता है कि अम्मा का हाथ जल जाता है, उसका रूपांतरण कठिन है। रूपांतरण में इस तरह के विवरण प्रस्तुत करने के लिए स्वगत कथन का प्रयोग किया जाता है जिसमें लेखक मंच के कोने में जाकर अपने
आपसे यह संवाद बोलता है। लेकिन आजकल ‘वायस ओवर’ अर्थात ऐसी ध्वनि जो दर्शकों को सुनाई देती है पर पात्र नहीं बोलता के माध्यम से संभव है। अम्मा वाले अंश के लिए फ़ैलेशबैक शैली का उपयोग किया जा सकता है। इसी प्रकार हामिद की ललचाई आँखों, होठों पर जीभ फेरते और बाद में भारी कदमों से दुकान से दूर जाने का दृश्य बनाया जा सकता है।
कहानी का नाट्य रूपांतरण करने से पहले यह जानकारी होना आवश्यक है कि वर्तमान रंगमंच में क्या संभावनाएँ हैं। यह तभी संभव है जब अच्छे नाटक देखे जाएँ। इसलिए रूपांतरण का पहला पाठ यही हो सकता है कि अच्छी नाट्य प्रस्तुतियाँ देखी जाएँ।