CBSE Class 12 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book Chapter 3 विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन Summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 12 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book के Chapter 3 विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन का पाठ सार लेकर आए हैं। यह सारांश आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Vibhinn Madhyam Ke Liye Lekhan Summary of CBSE Class 12 Core Abhivyakti Aur Madhyam Chapter 3.
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विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन पाठ का सार (Vibhinn Madhyam Ke Liye Lekhan Summary)
जनसंचार के जितने भी माध्यम हैं उनके लिए लेखन के अलग-अलग तरीके हैं। जैसे अखबार और पत्र-पत्रिकाओं में लिखने की अलग शैली है, जबकि रेडियो और टेलीविज़न के लिए यदि लिखना हो तो उसकी अलग कला है। क्योंकि माध्यम अलग-अलग हैं इसलिए उनकी ज़रूरतें भी अलग-अलग हैं। माध्यमों के लेखन के लिए बोलने, लिखने के अतिरिक्त पढ़ने वालों और सुनने वालों और देखने वालों की ज़रूरत को भी ध्यान में रखा जाता है। इस पाठ में हम इन सभी को समझेगें।
सबसे पहले प्रमुख जनसंचार माध्यम कौन-कौन से हैं यह जान लेते हैं?
जनसंचार माध्यमों में प्रिंट, टी.वी., रेडियो और इंटरनेट प्रमुख है। जहाँ समाचारों को अखबारों में पढ़ा जाता है, वहीँ टी.वी. पर देखा जाता है, रेडियो पर सुना जाता है और इंटरनेट पर समाचारों को पढ़ा, सुना या देखा जाता है।
जनसंचार के माध्यमों में, समाचारों के लेखन और प्रस्तुति में अंतर जानने के लिए कभी ध्यान से किसी शाम या रात को टी.वी. और रेडियो पर सिर्फ समाचार सुनिए और मौका मिले तो इंटरनेट पर जाकर उन्हीं समाचारों को फिर से पढ़िए। अगले दिन सुबह अखबार ध्यान से पढ़िए। इन सभी माध्यमों में पढ़े, सुने या देखे गए समाचारों की लेखन-शैली, भाषा और प्रस्तुति में आपको फर्क नज़र आएगा। सबसे सहज और आसानी से नज़र आने वाला अंतर तो यही दिखाई देता है कि जहाँ अखबार पढ़ने के लिए है, वहीं रेडियो सुनने के लिए और टी.वी. देखने के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही इंटरनेट पर पढ़ने, सुनने और देखने, तीनों की ही सुविधा है। जाहिर है कि अखबार छपे हुए शब्दों का माध्यम है जबकि रेडियो बोले हुए शब्दों का।
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के बीच फर्क को समझने के लिए सभी माध्यमों के लेखन की बारीकियों को समझना बहुत आवश्यक है। लेकिन इन माध्यमों के बीच के फर्क को समझने के लिए इन माध्यमों की विशेषताओं, उसकी खूबियों और खामियों से परिचित होना जरुरी है।
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की खूबियाँ और खामियाँ –
हर माध्यम की अपनी कुछ खूबियाँ हैं तो कुछ खामियाँ भी हैं। खबर लिखने के समय इनका पूरा ध्यान रखना पड़ता है और इन माध्यमों की ज़रूरत को समझना पड़ता है। इन्ही खूबियों और खामियों के कारण कोई माध्यम-विशेष किसी को अधिक पसंद आता है तो किसी को कम। लेकिन इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि जनसंचार का कोई एक माध्यम सबसे अच्छा या बेहतर है या कोई एक-दूसरे से कम बेहतर है। सब की अपनी कुछ खूबियाँ और खामियाँ हैं। जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के बीच फ़र्क चाहे जितना हो लेकिन वे आपस में प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी हैं।
अखबार में समाचार पढ़ने और रुककर उस पर सोचने में एक अलग तरह की संतुष्टि मिलती है।
टी.वी. पर घटनाओं की तसवीरें देखकर उसकी जीवंतता का एहसास होता है। इस तरह का रोमांच अखबार या इंटरनेट पर नहीं मिल सकता।
रेडियो पर खबरें सुनते हुए आप जितना उन्मुक्त होते हैं, उतना किसी और माध्यम में संभव नहीं है।
इंटरनेट अंतरक्रियात्मकता (इंटरएक्टिविटी) और सूचनाओं के विशाल भंडार का अद्भुत माध्यम है, बस एक बटन दबाइए और सूचनाओं के अथाह संसार में पहुँच जाइए। जिस भी विषय पर आप जानना चाहें, इंटरनेट के ज़रिये वहाँ पहुँच सकते हैं।
कहा जा सकता है कि ये सभी माध्यम हमारी अलग-अलग ज़रूरतों को पूरा करते हैं और इन सभी की हमारे दैनिक जीवन में कुछ न कुछ उपयोगिता है। यही कारण है कि अलग-अलग माध्यम होने के बावजूद इनमें से कोई समाप्त नहीं हुआ, बल्कि इन सभी माध्यमों का लगातार विस्तार और विकास हो रहा है।
प्रिंट माध्यम –
प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना है। छापाखाना यानी प्रेस के आविष्कार ने दुनिया की तसवीर बदल दी। भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 में गोवा में खुला। इसे मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए खोला था। तब से लेकर आज तक की मुद्रण तकनीक में बहुत बदलाव आया है और मुद्रित माध्यमों का विस्तार भी हुआ है।
मुद्रित माध्यमों के तहत अखबार, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि हैं।
मुद्रित माध्यमों की खूबियाँ –
मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता या शक्ति यह है कि छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। उसे आप आराम से और धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं।
अगर आप अखबार या पत्रिका पढ़ रहे हों तो आप अपनी पसंद के अनुसार किसी भी पृष्ठ और उस पर प्रकाशित किसी भी समाचार या रिपोर्ट से पढ़ने की शुरुआत कर सकते हैं।
मुद्रित माध्यमों के स्थायित्व का एक लाभ यह भी है कि आप उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं और उसे संदर्भ की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।
मुद्रित माध्यम लिखित भाषा का विस्तार है। इसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ शामिल हैं।
मुद्रित माध्यम चिंतन, विचार और विश्लेषण का माध्यम है। इस माध्यम में आप गंभीर और गूढ़ बातें लिख सकते हैं क्योंकि पाठक के पास न सिर्फ उसे पढ़ने, समझने और सोचने का समय होता है बल्कि उसकी योग्यता भी होती है।
मुद्रित माध्यमों की खामियाँ –
मुद्रित माध्यमों का पाठक वही हो सकता है जो साक्षर हो और जिसने औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा के ज़रिये एक विशेष स्तर की योग्यता भी हासिल की हो। निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम किसी काम के नहीं हैं।
मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन करने वालों को अपने पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-साथ उनके शैक्षिक ज्ञान और योग्यता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन करने वालों को पाठकों की रुचियों और ज़रूरतों का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है।
मुद्रित माध्यम रेडियो, टी.वी. या इंटरनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते। ये एक निश्चित अवधि पर प्रकाशित होते हैं।
मुद्रित माध्यमों के लेखकों और पत्राकारों को प्रकाशन की समय-सीमा का पूरा ध्यान रखना पड़ता है।
मुद्रित माध्यमों में लेखक को जगह (स्पेस) का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि अखबार या पत्रिका में असीमित जगह नहीं होती।
मुद्रित माध्यम के लेखक या पत्रकार को छपने से पहले आलेख में मौजूद सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर करना आवश्यक है क्योंकि एक बार प्रकाशन के बाद वह गलती या अशुद्धि वहीं चिपक जाएगी।
मुद्रित माध्यमों में लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें –
- लेखन में भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शैली का ध्यान रखना ज़रूरी है। प्रचलित भाषा के प्रयोग पर ज़ोर रहता है।
- समय-सीमा और आवंटित जगह के अनुशासन का पालन करना हर हाल में जरूरी है।
- लेखन और प्रकाशन के बीच गलतियों और अशुद्धियों को ठीक करना ज़रूरी होता है।
- लेखन में सहज प्रवाह के लिए तारतम्यता बनाए रखना ज़रूरी है
रेडियो –
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल है।
रेडियो पत्रकारों को अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि अखबार पाठकों को यह सुविधा उपलब्ध रहती है कि वे अपनी पसंद और इच्छा से कभी भी और कहीं से भी पढ़ सकते हैं। लेकिन रेडियो के श्रोता को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती।
रेडियो में अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं है।
रेडियो मूलतः एकरेखीय (लीनियर) माध्यम है और रेडियो समाचार बुलेटिन का स्वरूप, ढाँचा और शैली इस आधार पर ही तय होता है।
रेडियो में शब्द और आवाज़ ही सब कुछ है।
रेडियो प्रसारणकर्ताओं के लिए अपने श्रोताओ को बाँधकर रखने की चुनौती सबसे कठिन है।
उलटा पिरामिड-शैली
उलटा पिरामिड-शैली में समाचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना / विचार / समस्या का ब्योरा कालानुक्रम के बजाए सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरू होता है। तात्पर्य यह कि इस शैली में, कहानी की तरह क्लाइमेक्स अंत में नहीं बल्कि खबर के बिलकुल शुरू में आ जाता है। उलटा पिरामिड शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता।
उलटा पिरामिड शैली के तहत समाचार को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है-इंट्रो, बॉडी और समापन। समाचार के इंट्रो या लीड को हिंदी में मुखड़ा भी कहते हैं। इसमें खबर के मूल तत्त्व को शुरू की दो या तीन पंक्तियों में बताया जाता है। यह खबर का सबसे अहम हिस्सा होता है। इसके बाद बॉडी में समाचार के विस्तृत ब्योरे को घटते हुए महत्त्वक्रम में लिखा जाता है। हालाँकि इस शैली में अलग से समापन जैसी कोई चीज़ नहीं होती और यहाँ तक कि प्रासंगिक तथ्य और सूचनाएँ दी जा सकती हैं, अगर ज़रूरी हो तो समय और जगह की कमी को देखते हुए आखिरी कुछ लाइनों या पैराग्राफ को काटकर हटाया भी जा सकता है और उस स्थिति में खबर वहीं समाप्त हो जाती है।
रेडियो के लिए समाचार लेखन-बुनियादी बातें –
रेडियो के लिए समाचार कॉपी तैयार करते हुए कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है –
- साफ-सुथरी और टाइप्ड कॉपी होनी चाहिए।
- प्रसारण के लिए तैयार की जा रही समाचार कॉपी को कंप्यूटर पर ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए।
- कॉपी के दोनों ओर पर्याप्त हाशिया छोड़ा जाना चाहिए।
- एक लाइन में अधिकतम 12-13 शब्द होने चाहिए।
- पंक्ति के आखिर में कोई शब्द विभाजित नहीं होना चाहिए और पृष्ठ के आखिर में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाहिए।
- समाचार कॉपी में ऐसे जटिल और उच्चारण में कठिन शब्द, संक्षिप्ताक्षर (एब्रीवियेशंस), अंक आदि नहीं लिखने चाहिए जिन्हें पढ़ने में ज़बान लड़खड़ाने लगे।
- अंकों को लिखने के मामले में खास सावधानी रखनी चाहिए। जैसे-एक से दस तक के अंकों को शब्दों में और 11 से 999 तक अंकों में लिखा जाना चाहिए। लेकिन 2837550 लिखने के बजाय अठ्ठाइस लाख सैंतीस हजार पाँच सौ पचास लिखा जाना चाहिए अन्यथा वाचक/ वाचिका को पढ़ने में बहुत मुश्किल होगी।
- अखबारों में % और $ जैसे संकेत चिह्नों से काम चल जाता है लेकिन रेडियो में यह पूरी तरह वर्जित है यानी प्रतिशत और डॉलर लिखा जाना चाहिए।
- तिथियों को उसी तरह लिखना चाहिए जैसे हम बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं-15 अगस्त उन्नीस सौ पचासी न कि अगस्त 15, 1985 ।
- संक्षिप्ताक्षरों के इस्तेमाल में काफी सावधानी बरतनी चाहिए।
टेलीविज़न
टेलीविज़न में दृश्यों की अहमियत सबसे ज्यादा है। टेलीविज़न देखने और सुनने का माध्यम है और इसके लिए समाचार या आलेख (स्क्रिप्ट) लिखते समय इस बात पर खास ध्यान रखने की ज़रूरत पड़ती है कि आपके शब्द परदे पर दिखने वाले दृश्य के अनुकूल हों। इसमें कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा खबर बताने की कला का इस्तेमाल होता है। दृश्य यानी कैमरे से लिए गए शॉट्स, जिनके आधार पर खबर बुनी जानी है। टेलीविज़न पर खबर दो तरह से पेश की जाती है। इसका शुरुआती हिस्सा, जिसमें मुख्य खबर होती है, बगैर दृश्य के न्यूज़ रीडर या एंकर पढ़ता है। दूसरा हिस्सा वह होता है जहाँ से परदे पर एंकर की जगह खबर से संबंधित दृश्य दिखाए जाते हैं। इसलिए टेलीविज़न पर खबर दो हिस्सों में बँटी होती है।
टी.वी. खबरों के विभिन्न चरण –
किसी भी टी.वी. चैनल पर खबर देने का मूल आधार वही होता है जो प्रिंट या रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रचलित है यानी सबसे पहले सूचना देना। टी.वी. में भी यह सूचनाएँ कई चरणों से होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। ये चरण हैं –
- फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़
- ड्राई एंकर
- फोन-इन
- एंकर-विजुअल
- एंकर-बाइट
- लाइव
- एंकर-पैकेज
रेडियो और टेलीविशन समाचार की भाषा और शैली –
भारत जैसे विकासशील देश में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मज़दूर तक सभी हैं। इन सभी लोगों की सूचना की ज़रूरतें पूरी करना ही रेडियो और टी.वी. का उद्देश्य है।
- लोगों तक पहुँचने का माध्यम भाषा है और इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी को आसानी से समझ में आ सके लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े।
- हम आपसी बोलचाल में जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह की भाषा का इस्तेमाल रेडियो और टी.वी. समाचार में भी करें।
- सरल भाषा लिखने का सबसे बेहतर उपाय यह है कि वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ।
- ऐसे कई शब्द हैं जिनका अखबारों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है लेकिन रेडियो और टी.वी. में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है।
- द्वारा शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है।
- तथा, एवं, अथवा, व, किन्तु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या, लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। – – – साफ-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए।
- मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक और जहाँ ज़रूरी हो, वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं।
- वाक्य छोटे-छोटे हों। एक वाक्य में एक ही बात कहने का धीरज हो।
- वाक्यों में तारतम्य ऐसा हो कि कुछ टूटता या छूटता हुआ न लगे।
- शब्द प्रचलित हों और उनका उच्चारण सहजता से किया जा सके।
इंटरनेट –
इंटरनेट पत्रकारिता, ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता। इसे चाहे जो कहें, नयी पीढ़ी के लिए अब यह एक आदत-सी बनती जा रही है। जिन लोगों को इंटरनेट की आदत हो चुकी है, उन्हें हर घंटे-दो-घंटे में खुद को अपडेट करने की लत लगती जा रही है।
भारत में कंप्यूटर साक्षरता की दर बहुत तेजी से बढ़ रही है। पर्सनल कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों की संख्या में भी लगातार इज़ाफा हो रहा है।
इंटरनेट सिर्फ एक टूल यानी औजार है, जिसे आप सूचना, मनोरंजन, ज्ञान और व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का बेहतरीन औजार है, वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी ज़रिया है।
रिसर्च या शोध का काम तो इंटरनेट ने बेहद आसान कर दिया है।
किसी खबर की पृष्ठभूमि तत्काल जानने के लिए जहाँ पहले ढेर सारी अखबारी कतरनों की फाइलों को ढूँढ़ना पड़ता था, वहीं आज चंद मिनटों में इंटरनेट विश्वव्यापी संजाल के भीतर से कोई भी बैकग्राउंडर या पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है।
एक जमाना था जब टेलीप्रिंटर पर एक मिनट में 80 शब्द एक जगह से दूसरी जगह भेजे जा सकते थे, आज स्थिति यह है कि एक सेकेंड में 56 किलोबाइट यानी लगभग 70 हजार शब्द भेजे जा सकते हैं।
इंटरनेट पत्रकारिता
इंटरनेट पर अखबारों का प्रकाशन या खबरों का आदान-प्रदान ही वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता है। इंटरनेट पर यदि हम, किसी भी रूप में खबरों, लेखों, चर्चा-परिचर्चाओं, बहसों, फीचर, झलकियों, डायरियों के ज़रिये अपने समय की धड़कनों को महसूस करने और दर्ज करने का काम करते हैं तो वही इंटरनेट पत्रकारिता है।
विश्व स्तर पर इस समय इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है। पहला दौर था 1982 से 1992 तक जबकि दूसरा दौर चला 1993 से 2001 तक। तीसरे दौर की इंटरनेट पत्रकारिता 2002 से अब तक की है।
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है।
भारत के लिए पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता है जबकि दूसरा दौर सन् 2003 से शुरू हुआ है।
रीडिफ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है जो कुछ गंभीरता के साथ इंटरनेट पत्रकारिता कर रही है।
हिंदी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ के साथ शुरू हुई।
‘प्रभासाक्षी’ नाम से शुरू हुआ अखबार, प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ इंटरनेट पर ही उपलब्ध है।
आज पत्रकारिता के लिहाज़ से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट बीबीसी की है। यही एक साइट है जो इंटरनेट के मानदंडों के हिसाब से चल रही है।
सबसे बड़ी समस्या हिंदी के फौंट की है। अभी भी हमारे पास कोई एक ‘की-बोर्ड’ नहीं है।
डायनमिक फौंट की अनुपलब्धता के कारण हिंदी की ज्यादातर साइटें खुलती ही नहीं हैं। अब माइक्रोसॉफट और वेबदुनिया ने यूनिकाड फौंट बनाए हैं।
हिंदी जगत जब तक हिंदी के बेलगाम फौंट संसार पर नियंत्रण नहीं लगाएगा और ‘की-बोर्ड’ का मानकीकरण नहीं करेगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।